रिश्तो की किस्त (कहानी) : ज्योति नरेन्द्र शास्त्री
Rishton Ki Kist (Hindi Story) : Jyoti Narendra Shastri
तुम्हारी तनख्वाह आ गई होगी होगी ...... आज पुरी एक तारीख़ हो गई है इस महीने तुम्हारी बेटी पर खर्च किये तीन हजार रुपये भेजने है साक्षी को फोन पर उसकी बहन जमना ने बोला । तन्खवाह तों अभी नहीं आई और इस महीने कटौतिया भी थोड़ी ज्यादा है सो इस कारण से मै इस महीने पूरे 3 हजार तों नहीं भेज सकूंगी, कुछ कम भेज दूंगी , अगले महीने पूरे भेज दूंगी ।
पैसे कोई झाड़ पर नहीं उगते जमना ने उसकी बात काटते हुए कहा । यहां भी सौ खर्चे है , कभी कुछ तों कभी कुछ । जब तुम्हारी बस की ही नहीं थी तों क्यो अपनी बेटी को इतनी महंगी कॉलेज में एडमिशन दिलाया । ये तों शुक्र है मै वही खर्चा लेती हु जो उपर का होता है । रहन-सहन और खाने का खर्च लु तों तुझ पर तों पहाड़ टूट पड़े ।
जमना के फोन रखने के बाद साक्षी की आँखो में आंसु थे । उसे एक-एक करके सब चीज याद आ रही थी । कितने चाव से माँ बाप ने शादी की थी । शादी के कुछ दिनों बाद ही साक्षी की जोइनिंग एलडीसी के पद पर हो गई थी । यह नौकरी हालांकि उसके स्तर की तों नहीं थी किन्तु परिवार की खुशी और परिवार की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए उसने जोइन कर लिया था । विवाह के कुछ समय बाद एक बेटा और एक बेटी हो जाने के कारण पढ़ाई से लगभग ध्यान बंट गया था । इस कारण पुरा ध्यान बच्चों की परवरिश पर देना पड़ा । कुछ समय बाद उसके पति को एक गंभीर बीमारी हो गई जिस कारण उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर अपने पति की दवा दारु में ही शेष समय बिता दिया । होनी को कुछ और मंजूर था , साक्षी के पति अनुराग छह महीने चले इलाज के बाद भी भगवान को प्यारे हो गयें । ससुराल की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी किन्तु दवा दारु में काफी रुपये खर्च हो गयें थे । देवर-जेठ और सास-ससुर ने उसे कुलक्षणा कहकर की आते ही हमारे बेटे को खा गई घर से निकाल दिया । साक्षी चाहती तों प्रॉपर्टी का आधा हिस्सा भी ले सकती थी किन्तु रिश्ते निभाने की चाह ने सम्पति के लालच को उस पर हावी नहीं होने दिया । साक्षी अपना ससुराल छोड़कर अब मायके में आ गई थी ।
साक्षी प्राइवेट जॉब करके अपने बच्चों , छोटे भाई और अपनी बहन जमना की पढ़ाई का खर्चा चलाने लगी । अपने भाई और बहन की पढ़ाई खातिर उसने अपनी खुशियों की बली दे दी । उसने एक एलडीसी की प्राइवेट जॉब पकड़ ली थी । जॉब के बाद जो भी समय बीतता साक्षी उसमे पूरे मन से पढ़ाई करती । कुछ दिनों की मेहनत के बाद साक्षी का फिर से एलडीसी के पद पर चयन हो गया किन्तु उसी समय जमना भयंकर बीमार पड गई । जिस समय जमना बीमार पड़ी साक्षी की माँ और भाई तीर्थयात्रा पर गयें थे । साक्षी को जॉइन करने के लिए पूरे पंद्रह मिले लेकिन जमना हॉस्पिटल में एडमिट थी उसकी तबियत ठीक ना होने के कारण साक्षी उसे छोड़कर कही जा भी नहीं सकती थी क्योकि अगर वो अपनी बहन को छोड़कर जॉइन करने जाती तों बेमानी होती । लोग तंज कसते की देखो छोटी बहन तों जिंदगी और मौत से जूझ रही थी और बड़ी बहन को सरकारी नौकरी की पड़ी थी । इस बार भी साक्षी ने अपनों की खातिर अपने घर पर दस्तक देते सौभाग्य को ठुकराकर दुर्भाग्य का हाथ थामा । कुछ दिनों बाद जमना भी अच्छी हो गई । ठीक होते ही जमना ने कहा तुम्हारा यह अहसान मै जिंदगी भर नहीं भूलूंगी । पढ़ा लिखाकर साक्षी ने जमना की शादी एक अच्छे घर में कर दी । कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा किन्तु थोड़े दिनों बाद जमना के तेवर बदल गयें । अब उसे अपने विनोद की अस्सी हजार की भारी भरकम तन्खवाह के सामने अपनी बहन साक्षी की 9 हजार की तन्खवाह मामूली मालूम पड़ती थी । उसने दूरिया बनाना शुरु कर दिया ।
वक्त का पहिया घूमता गया । अब साक्षी की बेटी पूरे सतरह बरस की हो गई थी । 12 वी मैथ साइंस से करने के बाद साक्षी की बेटी तमन्ना को बी. सी. ए. मे बैंगलोर की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल गया । साक्षी की इतनी गुंजाइस नहीं थी की वह अपनी बेटी को बैंगलोर जैसे महंगे शहर में पढ़ा सके । फीस के पैसे तों फिर भी स्कॉलरशिप से मिल जाते किन्तु 3 साल चलने वाले इस कोर्स के लिए रहने का खर्च साक्षी के बजट से बाहर था । उसने सोचा यही एडमिशन दिला दु किन्तु साक्षी की बहन जमना जिसकी पति की पोस्टिंग आइटी बैंगलोर में थी । साक्षी को जमना ने कहा हमारे साथ रहने में क्या हर्ज है । तमन्ना जैसी तुम्हारी बेटी वैसे ही मेरी बेटी । हमारे पास ही रह लेगी । वैसे भी मेरी बेटी नहीं हसी तों तमन्ना को मै अपनी बेटी की तरह रखूंगी । साक्षी का दिल तों गवाही नहीं दे रहा था , वह जमना के बदलते. स्वभाव से परिचित थी किन्तु अपनी मम्मी के कहने पर की जमना के वहा तमन्ना को भेजने मे हर्ज ही क्या है , तैयार हो गई ।
कुछ दिनों तक सब ठीक चलता रहा । धीरे-धीरे जमना ने साक्षी पर अहसानो की चादर तानना शुरु कर दिया । उसे तमन्ना के रहने , खाने से एक्स्ट्रा खर्च तक गिनाना शुरु कर दिया । कॉलेज जाते समय स्कूटी से इतना तेल लगता है , इतने थी स्टेशनरी आती है इत्यादि ।
काफी देर तक रोने के बाद साक्षी उठ खड़ी हुई । अब वह खुद को और कमजोर , विवश व लाचार नहीं देखना चाहती थी । उसने सोच लिया था अब वह मामूली पहचान के साथ नहीं रहेगी । यू. पी. एस. सी. की तैयारी करके वह खुद को स्थापित करेगी । फार्म भरने की आखिरी उम्र में से उसकी उम्र महज 3 वर्ष कम थी । उसने सोच लिया था अब वह जी तोड़ मेहनत करेगी , लेकिन हार नहीं मानेगी । अब तक वह खुद को लुटाकर रिश्तो की किस्त ही तों भरती आई थी । अब वह खुद को और नहीं लुटायेगी । रिश्ते कोई एक तरफा थोड़ी होते है , दोनो तरफ से निभाए जाते है । सारे रिश्ते मै ही क्यो निभाऊ । सब कुछ अच्छा या बुरा मै ही क्यो सोचु । 2 साल की हाड तोड़ मेहनत के बाद आज साक्षी ने यू. पी. एस.सी . परीक्षा में देशभर में आठवा स्थान प्राप्त किया था । हर कोई उससे मिलने को लाइन में लगा था जिन में एक उसकी बहन जमना और जीजा विनोद भी थे ।