रहने के लिए एक मकान (कहानी) : एस.भाग्यम शर्मा

Rehne Ke Liye Ek Makaan (Hindi Story) : S Bhagyam Sharma

मैं अपने गांव लौटने लगा तो मेरे आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे। मेरे दोहेते अपने घर के बालकनी से प्रेम से हाथ हिला रहे थे,”बाय ग्रैंड पा, सी यू नाना…”

धीरेधीरे मैं बस स्टैंड की ओर चल दिया।

मैं मन ही मन सोचने लगा,’बस मिले तो 5 घंटे में मैं अपने गांव पहुंच जाऊंगा। जातेजाते बहुत अंधेरा हो जाएगा, फिर बस स्टैंड पर उतर कर वहां एक होटल है। उस में कुछ खापी कर औटो से अपने घर चला जाऊंगा।’

2 साल पहले मेरी पत्नी बीमार हो कर गुजर गई। तब से मैं अकेला ही हूं। मेरे गांव का मकान पुस्तैनी है। उस की छत टिन की है। पहले घासपूस की छत थी।

जब एक बार बारिश में बहुत परेशानी हुई तब टिन डलवा दिया था। मेरा एक भाई था वह भी कुछ साल पहले ही चल बसा था। अब इस घर में आखिरी पीढ़ी का रहने वाला सिर्फ मैं ही हूं।

मेरी इकलौती बेटी बड़े शहर में है अत: वह यहां नहीं आएगी। जब बारिश होती है तो छत से यहांवहां पानी टपकता है। एक बार इतनी बारिश हुई कि दूर स्थित एक बांध टूट
गया और कमर भर पानी मकान के अंदर तक जा घुसा था। कई बार सोचा घर की मरम्मत करा दूं पर इस के लिए भी एकाध लाख रूपए तो चाहिए ही।

मैं सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हुआ हूं अत: मुझे पैंशन मिलती है। उम्र के साथ दवा भी खाने होते हैं मगर फिर भी इस खर्च के बाद थोड़ाबहुत बच जरूर जाता है।

2 महीने में एक बार मैं शुक्रवार को दोहेतो को देखने की उत्सुकता में बेटी के घर जा कर 2-3 दिन ठहर कर खुशीखुशी दिन बिता कर मैं वापस आ जाता हूं। इस से ज्यादा ठहरना मुझे ठीक नहीं लगता।

मेरे दामाद अपना प्रेम या विरोध कुछ भी नहीं दिखाते। मैं घर में प्रवेश करता तो एक मुसकान छोड़ अपने कमरे में चले जाते।

दामाद शादी के समय बिल्डिंग बनाने वाली बड़ी कंपनी में सीनियर सुपरवाइजर थे। जो मकान बने वे बिक न सके। बैंक से उधार लिए रुपए को न चुकाने के कारण कंपनी बंद हो गई थी। तब से वह रियल ऐस्टेट का ब्रोकर बन गया।

“कुदरत की मरजी से किसी तरह सब ठीकठाक चल रहा है पापा,” ऐसा मेरी बेटी कहती।

पति की नौकरी जब चली गई थी तब मेरी बेटी दोपहर के समय टीवी सीरियल न देख कर सिलाई मशीन से अड़ोसपड़ोस के बच्चों व महिलाओं के कपड़े सिल कर कुछ पैसे बना लेती।

“पापा, आप ने कहा था ना कि बीए कर लिया है तो अब बेकार मत बैठो, कुछ सीखना चाहिए। तब मैं सिलाई सीखी। वह अब मेरे काम आ रही है पापा,” भावविभोर हो कर वह कहती।

पिछली बार जब मैं गया था तो दोहेतो ने जिद्द की, “नानाजी, आप हमारे साथ ही रहो। क्यों जाते हो यहां से?”

बच्चे जब यह कह रहे थे तब मैं ने अपने दामाद के चेहरे को निहारा। उस में कोई बदलाव नहीं।

मेरी बेटी रेनू ही आंखों में आंसू ला कर कहती,”पापा… बच्चों का कहना सही है। अम्मां के जाने के बाद आप अकेले रहते हैं जो ठीक नहीं। आप बीमार भी रहते हो।”

वह कहती,”पापा, हमारे मन में आप के लिए जगह है पर घर में जगह की कमी है। आप को एक कमरा देना हो तो 3 रूम का घर चाहिए। रियल ऐस्टेट के बिजनैस में अभी मंदी है। तकलीफ का जीवन है। इस घर में बहुत दिनों से रहते आए हैं अत: इस का किराया भी कम है। अभी इस को खाली करें तो दोगुना किराया देने के लिए लोग तैयार हैं। क्या करें? इस के अलावा मेरा सिरदर्द जबतब आ कर परेशान करता है।”

मैं बेटी को समझाता,”बेटा रो मत। यह सब कुछ मुझे पता है। अब गांव में भी क्या है? मुझे तुम्हारे साथ ही रहना है ऐसा भी नहीं। पड़ोस में एक कमरे का घर मिल जाए तो भी मैं रह लूंगा। मैं अभी ₹21 हजार पैंशन पाता हूं। ₹6-7 हजार भी किराया दे कर रह लूंगा। अकेला तो हूं। तुम्हारे पड़ोस में रहूं तो मुझे बहुत हिम्मत रहेगी,” यह कह कर मैं ने बेटी का चेहरा देखा।

“अरे, जाओ पापा… अब सिंगलरूम कौन बनाता है? सब 2-3 कमरों का बनाते हैं। मिलें तो भी किराया ₹10 हजार। यह सब हो नहीं सकता पापा,” कह कर बेटी माथे को सहलाने लग जाती।

अगली बार जब मैं बेटी के घर गया, तब एक दिन सुबह सैर के लिए निकला। अगली 2 गलियों को पार कर चलते समय एक नई कई मंजिल मकान को मैं ने देखा जो कुछ ही दिनों में पूरा होने की शक्ल में था।

उस में एक बैनर लगा था,’सिंगल बैडरूम का फ्लैट किराए पर उपलब्ध है।’

मुझे प्रसन्नता हुई और उत्सुकता भी। वहां एक बैंच पर सिक्योरिटी गार्ड बैठा था। मैं ने उस से जा कर पूछताछ की।

“दादाजी, उसे सिंगल बैडरूम बोलते हैं। मतलब एक ही हौल में सब कुछ होता है। 1-2 से ज्यादा नहीं रह सकते। आप कितने लोग हैं?” वह बोला।

“मैं बस अकेला ही हूं। मेरी बेटी पड़ोस में ही रहती है। इसीलिए यहां लेना चाहता हूं।”

“अच्छा फिर तो ठीक है। घर को देखिएगा…” कह कर अंदर जा कर चाबी के गुच्छों के साथ बाहर आया।

दूसरे माले में 4 फ्लैट थे।

“इन चारों के एक ही मालिक हैं। 3 फ्लैटों के पहले ही ऐडवांस दे चुके हैं।”

उस ने दरवाजे को खोला। लगभग 250 फुट चौड़ा और लंबा एक हौल था। उस में एक तरफ खाना बनाने के लिए प्लेटफौर्म आधी दीवार खींची थी। दूसरी तरफ छोटा सा बाथरूम बड़ा अच्छा व कंपैक्ट था।

“किराया कितना है?” मैं ने पूछा।

“मुझे तो कहना नहीं चाहिए फिर भी ₹ 7 हजार होगा क्योंकि इसी रेट में दूसरे फ्लैट भी दिए हैं। ऐडवांस ₹50 हजार है। रखरखाव के लिए ₹500-600 से ज्यादा नहीं होगा। मतलब सबकुछ मिला कर ₹7-8 हजार के अंदर हो जाएगा दादाजी,” वह बोला।

“ठीक है भैया, इसे मुझे दिला दो। मालिक से कब बात करें?”

“अभी बात कर लो। एक फोन लगा कर बुलाता हूं। आप बैठिए,” वह बोला।”

वहां एक प्लास्टिक की कुरसी थी। मैं उस पर बैठ कर इंतजार करने लगा।

सिक्योरिटी गार्ड ने बताया,“वे खाना खा रही हैं। 10-15 मिनट में पहुंच जाएंगी। तब तक आप यह अखबार पढ़िए।”

मालिक से बात कर किराया थोड़ा कम करने के बारे में पूछ लूंगा। फिर एक औटो पकड़ कर घर जा कर लड़की को भी ला कर दिखा कर तय कर लेंगे। बेटी इस मकान को देख कर आश्चर्य करेगी।

ऐडवांस के बारे में कोई बड़ी समस्या नहीं है। मैं पास के एक बैंक में हर महीने जो पैसे जमा कराता हूं उस में ₹30 हजार के करीब तो होंगे ही।बाकी रुपयों के लिए पैंशन वाले बैंक से उधार ले लूंगा। फिर एक दिन शिफ्ट हो जाऊंगा।

यहां आने के बाद एक आदमी का खाना और चाय का क्या खर्चा होगा?

‘आप खाना बनाओगे क्या पापा,’ ऐसा डांट कर बेटी प्यार से खाना तो भिजवा ही देगी।

खाना बनाने का काम भी बच जाएगा। पास में लाइब्रैरी तो होगा ही। वहां जा कर दिन कट जाएगा।

सामने की तरफ थोड़ी दूर पर एक छोटा सा टी स्टौल था। मैं ने सोचा 1 कप चाय पी कर हो आते हैं। तब तक मकानमालकिन भी आ ही जाएगी।

वहां कौफी की खुशबू आ रही थी | मैं ने सोचा कि कौफी पी लूं। यहां रहने आ जाऊंगा तो नाश्ते और चाय की कोई फिकर नहीं रहेगी।

पैसे दे कर वापस आया तो सिक्योरिटी गार्ड बोला,“घर के औनर आ गए हैं। वे ऊपर गए हैं। आप वहीं चले जाइए।”

मैं धीरेधीरे सीढ़ियां चढ़ने लगा। ऊपर पहुंच कर औनर को नमस्कार बोला।

पीठ दिखा कर खड़ी वह महिला धीरे से मुड़ी तो वह मेरी बेटी रेणू थी।

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