रील कट गई (हास्य कहानी) : स्वप्निल श्रीवास्तव (ईशू)
Reel Cut Gai (Hasya Kahani) : Swapnil Srivastava Ishoo
दूर कहीं जानी पहचानी धुन बज रही थी, लगा की सुनी सुनाई सी है, कान के पट थोड़े और खोले तो जान पड़ा कि अपने ही मोबाइल की रिंगटोन थी, छह….पूरी नीद टूट गयी। भारी पलकों से आँख खोली तो ऑटोमोड में हाथ मोबाइल ढूँढने लगा, ज़ोर लगा कर देखने पर भी आँखें धुंधली तस्वीर ही उतार पा रहीं थीं, लगा की कुछ मिस्ड-काल जैसा लिखा है। मरी-थकी उँगलियों से जब गौर करवाया तो देखा आठ मिस्ड-काल थे, उसमें से तीन तो बॉस के, तब कहीं जा कर मुकुंद के शरीर में उर्जा का संचार हुआ। अब दिमाग तो इशारा कर रहा था कि उठ जाओ पर शरीर था कि अलग ही सुर पकड़े बैठा था। सर दर्द, बदन दर्द, गले में खराश, पेट में भारीपन, पूरा शरीर जैसे टूट रहा था। खैर मुकुंद को समझते देर न लगी की वह अत्यधिक नशे यानी हैंगओवर का शिकार हुआ था। उठ कर बैठा तो एक और अचम्भा, अरे, यह तो अपना ही बिस्तर है, यानी अपने ही घर। रजाई से पैर बाहर निकाला तो बाकायदा, टी-शर्ट और पायजामा पहन रखा था।
मुकुंद, नॉएडा में अकेला ही रहता था, छोटे शहर के बच्चों का यही हाल, पहले आगे की पढाई के लिए बड़े शहर जाओ फिर नौकरी की तलाश में दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर। इस मामले में मुकुंद थोड़ा लकी था, इलाहाबाद से मेरठ एमबीए, फिर नॉएडा में नौकरी। एक्सेल का ज्ञान अच्छा था तो एक फार्मा कंपनी में जूनियर बिज़नेस अनालिसिस्ट बन गया। काम जिम्मेदारी का था, मुकुंद कंप्यूटर में डाटा न खंगालें तो सारे बॉसों का दिन शुरू न हो, अब रिपोर्ट हाथ में नहीं होगी तो गरियाएंगे किसको?
आज मुकुंद की हालत तरस खाने लायक ही थी, एक तो शरीर साथ नहीं दे रहा था, ऊपर से कल रात की पार्टी को लेकर ढेरों सवाल। खैर अभी वक़्त नहीं था, अभी तो एक रियलिस्टिक सा बहाना ढूँढना था, बॉस का एक मिस्ड-कॉल ही गुनाह होता है, यहाँ तो तीन- तीन थे।
दो-तीन मिनट दिमाग के घोड़े दौड़ाए फिर हिम्मत कर फोन लगा हि दिया, अभी एक रिंग भी पूरी न हुई थी कि उधर से डेस्परेट सी आवाज़ आई, “कहाँ हो मुकुंद? फोन क्यों नहीं उठा रहे?” सुनने में भले आप को लगे कि चिंता भाव में पूछा गया प्रश्न है, पर असल में बेहद ही अथारिटेटिव स्टेटमेंट था।
मुकुंद इतनी त्वरित प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं था, पर प्राइवेट जॉब इस जैसी स्थिति के लिए तैयार कर ही देती है। थोड़ा संभलते हुए बोला, “सर कल रात फ़ूड पायज़निग हो गयी थी, रात भर नर्सिंग होम में था, रात दो बजे ग्लूकोस चढ़ी तब जरा सा आराम मिला….अभी भी नर्सिंग होम में ही हूँ, वो ड्रिप चढ़ रही थी तो फ़ोन उठा नहीं पाया…..।” बहाना एकदम कारगर था और अभिनय सटीक, लगा की चेक–मेट हो गई पर तभी बॉस ने ढाई घर की चाल चल दी, बोले, “ओह अच्छा…..अब कैसी तबियत है?” क्या करता, “अभी तो थोड़ा आराम है, बस घर जा कर कपड़े बदल कर ऑफिस आ जाता हूँ…” बॉस तो बॉस होते हैं, हर कोई बॉस थोड़े ही बनता है, बिना दर्द दिए इंजेक्शन लगाना अच्छे से जानते हैं, सो बोले, “कोई ज़ल्दी नहीं मुकुंद, आराम से आओ, बस एक काम करो, लैपटॉप खोल पाओ तो रिपोर्ट भेज देना, टीम से बात नहीं कर पाया हूँ, दो बार कॉनकॉल पोस्टपोन करनी पड़ी।” मुकुंद बोला, “सर जस्ट गिव मी हाफ अन ऑवर….”, इतना समय तो काफी था अपने आप को सँभालने के लिए, एक बार रिपोर्ट भेज दी तो एक आध घंटे की फुर्सत।
बॉस ने फ़ोन काटा तभी याद आया, लैपटॉप? कल तो ऑफिस से रोहन के घर पार्टी में गया था, लैपटॉप तो वहीँ होगा। पलटते ही रोहन को फ़ोन लगाया, “हलो, रोहन….।”
“हाँ भाई, मेरे शेर…..,पार्टी की जान, मेरी जान, क्या बात है, कल क्या मस्त नांचा है बे तू…., पर है कहाँ, ऑफिस नहीं आएगा क्या?” मुकुंद तो जैसे भूल ही गया फोन क्यों लगाया था, ये क्या पार्टी की शान, शेर, डांस, क्या था यह सब, थोड़ा रुका फिर संभलते हुए बोला, “यार रोहन, मेरा लैपटॉप तेरे घर पर था, तू ऑफिस लाया है क्या?” रोहन पूरे कॉन्फिडेंस से बोला, “ना भाई, तेरा लैपटॉप घर पर तो नहीं था, तू ही ले गया होगा….”
मुकुंद की घिग्घी बांध गयी, ऑफिस का नया लैपटॉप, उसमें पूरे साल की रिपोर्ट…बॉस तो उल्टा टांग देगा। हड़बड़ाते हुए बोला, “यार रोहन, मुझे घर किसने छोड़ा था, प्रकाश ने या बल्ली नें?” अब चौंकाने की बारी रोहन की थी, बोला, “भई क्या हो गया है तुझे, कल रात की उतरी नहीं क्या? प्रकाश और बल्ली दोनों ही मेरे घर पर सोए थे, तू ही बड़ा चौड़ा हो रहा था….नहीं, मैं अपने घर जाऊँगा, दूसरे की पलंग पर नींद नहीं आती…..और क्या….सो गया ये जहाँ….सो गया आसमाँ…..सो गयी….,क्या हुआ मेरे अनिल कपूर, रील कट गयी क्या?”
मुकुंद ने बिना कुछ कहे फ़ोन काट दिया और मन में बोला, “शर्मिंदगी की भी हद होती है, आखिरी कन्वर्सेशन जो धुंधला सा याद आ रहा है, उसमें तो मैं ही बोल रहा था, अबे पियो कुछ नहीं होता, तीन- चार पैग तक तो समझ ही नहीं आता की दारु पी रहें है या कोल्डड्रिंक……अरे हाँ, एग-करी का भी तो ज़िक्र था..क्या…ये साले होटल वाले एग-करी बनाना नहीं जानते, अबे बिना अंडा फ्राई किये भला अंडा करी बनती है कभी….। पर ये गाने की क्या कहानी है, और दूसरे की पलंग पर नींद नहीं आती का क्या मतलब,…कोई तो आया होगा मुझे छोड़ने।”
खैर यह सारे सवाल उतने ज़रूरी नहीं थे जितना लैपटॉप ढूंढना, अपने आप से बोला, “बल्ली को फ़ोन करता हूँ शायद उसको कुछ याद हो….”
मुकुंद, रोहन, प्रकाश और बल्ली, कालेज के दोस्त थे, चारों ने एमबीए साथ किया, फिर धक्के खाने दिल्ली चले आये। मुकुंद और रोहन एक ही फार्मा कम्पनी में थे, प्रकाश हैंडसेट कम्पनी में सेल्स एग्जीक्यूटिव और बल्ली टेलिकॉम में सीनियर कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव। चारों नया खून, घर से दूर, हाथ में पैसा तो महीने दो महीने में बैठक हो ही जाया करती थी। वह तो भला हो मेट्रो शहरों के विस्तारीकरण का जो दूरियां इतनी बढ़ गयी, वरना साथ रह रहे होते तो हर रोज़ कोई बहाना होता। कल की बैठक की भी कोई ख़ास वज़ह नहीं थी, बस रोहन का बॉस छुट्टी पर था और हाथ में कोई अपॉइंटमेंट नहीं था, उधर प्रकाश गुडगाँव से गाजियाबाद, स्टोर विजिट को आया था। दोनों ने जोर दिया तो बल्ली और मुकुंद मना न कर पाए।
मुकुंद ने बल्ली को फ़ोन लगाया तो पूरी- पूरी घंटी गयी पर फोन नहीं उठा, थोड़ी ही देर में पलट कर बल्ली का फ़ोन आ गया, “हलो….हाँ मुकुंद, बोल ….” आवाज़ में इतनी थकावट थी मानो कोई नींद में बोल रहा हो।
“हलो, बल्ली…कहाँ हो बे? एक बात बताओ कल रात पार्टी के बाद मुझे घर छोड़ने कौन आया था, प्रकाश या तुम?” थोड़ी देर तो सन्नाटा रहा फिर उधर से हलकी सी आवाज़ आई, “भाई, मैं और प्रकाश तो अभी भी रोहन के घर सो रहे हैं…थैंक्स….तेरा फ़ोन नहीं आता तो पता नही कब तक सोता रहता।” मुकुंद का तो मानो दिमाग ही काम करना रुक गया हो, “एक तो सर दर्द ऊपर से भारी भरकम सवाल, मैं घर कैसे आया…घर के अन्दर कौन छोड़ गया… मेरे कपड़े किसने बदले…, हे भगवान! कुछ तो क्लू दीजिए, मेरा लैपटॉप….”
खैर पलंग से उठ कर जैसे ही अलमारी खोली, पैंट-शर्ट ठीक वैसे ही हैंगर पर टंगे थे जैसे रोज रखता था, थोड़ा शक हुआ तो देखा, जूते भी शू-रैक में बाकायदा अपनी जगह पर थे, ऊपर से मोजे भी जूतों के अन्दर। मुकुंद जितना भी याद करने की कोशिश करता, अंडा करी पर आ कर रुक जाता, बेचारे को यह तक तो याद नहीं था की अंडा करी खाई भी थी या नहीं। थोड़ी और तफशीश की तो टेबल पर लैपटॉप बैग और उसमे लैपटॉप भी दिख गया, बिना समय गवाए हैंगओवर का सटीक इलाज, नीबू पानी बनाया और कपकपाते हाथो से रिपोर्ट निकालने लगा। थोड़ा समय लगा पर लगभग सभी रिपोर्ट भेजने के बाद जान में जान आई।
अब समय था शर्लाक होम्स बनने का, कब, कौन, कैसे, कहाँ और क्यूँ? बड़ी हिम्मत जुटा नहा-धो कर जैसे ही ऑफिस के लिए बाहर निकला तो एक और अजूबा इंतज़ार कर रहा था। सोचा था ऑफिस के लिए ऑटो-रिक्शा कर लेंगे, पर यहाँ तो अपनी ही मोटर-साइकिल खड़ी थी, वह भी सीधी, मिडिल स्टैंड पर, ठीक अपनी पार्किंग वाली जगह पर, यहाँ तक कि हेलमेट भी बाकायदा लॉक किया हुआ था। मुकुंद मन ही मन बुदबुदाया, “अब तो हद हो गयी, अंडा करी के आगे कुछ याद नहीं आ रहा ऊपर से सब कुछ वैसा दिख रहा है जैसे नार्मल दिन हो”। मोटर-साइकिल उठाई और चल दिया सेक्टर 56, रास्ते में एक गिलास अनार का जूस, और फिर थके हुए हाथो से हैंडल मोड़ दिया ऑफिस की ओर, हालत पहले से बेहतर थी पर उतनी नहीं कि हकीकत पता कर सके। ऑफिस पहुंचते ही सीधे पहुंचा रोहन के पास, पर यह क्या, रोहन को देख कर लगा ही नहीं कि कल रात कुछ हुआ हो, कड़क पैंट-शर्ट, बालों में जेल, क्लीनशेव, डिओडरंट की खुशबू, लगता ही नहीं था ऑफिस आता हो, ऐसा तैयार होता था मानों शादी के लिए लड़की देखने जा रहा हो।
मुकुंद पड़ोस वाली चेयर खींचते हुए रोहन के एकदम पास आया और धीरे से कान में बोला, “भाई वाकई रील कट गयी है…एग करी के डिस्कशन के आगे कुछ याद ही नहीं आ रहा…।” इतना सुनना था की रोहन खिलखिला कर हंसा, पर ऑफिस का लिहाज़ कर धीरे से बोला, “आओ मेरे अनिल कपूर, बाहर चलते है, सुट्टा मारते मारते पूरी कहानी सुनाता हूँ…..।”