रंगों का परीलोक (परी कथा) : कर्मजीत सिंह गठवाला

Rangon Ka Parilok (Hindi Pari Katha) : Karamjit Singh Gathwala

बहुत समय पहले, जब आसमान में इंद्रधनुष धरती को रोज़ छूने आता था, तब बादलों के ऊपर एक अद्भुत लोक था। उस लोक को सब "रंगों का परीलोक" कहते थे। वहाँ परियाँ रहती थीं—कुछ नीली, कुछ हरी और कुछ सफेद। उनके पंख इतने चमकीले थे कि जब वो उड़तीं तो लगता जैसे आकाश में तारों की बौछार हो रही हो। ये परियाँ सिर्फ़ सुंदर नहीं थीं, बल्कि उनका दिल भी उतना ही निर्मल था। उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी खुशी बाँटना। कोई रोता तो परियाँ उसके आँसू मोती बना देतीं और उसकी जगह मुस्कान बिखेर देतीं। कोई दुखी होता तो उनके गीत उसकी उदासी को हवा में उड़ा देते।

परीलोक के पास एक गाँव था। उस गाँव के बच्चे हमेशा रंग-बिरंगे कपड़े पहना करते। लाल, पीले, नीले, हरे—हर रंग जैसे किसी फूल से उठकर कपड़े पर सज गया हो। उनके कपड़े हवा में लहराते तो लगता जैसे रंगों की बहार आ गई हो।

बच्चे सुबह से शाम तक खेलते, गाते और नाचते रहते। उनके खिलखिलाने की आवाज़ से फूलों में और भी रंग भर जाते। पंछी उनका साथ देते, अपनी चहचहाहट में उनका गीत मिला देते। बादल भी मानो बच्चों के दोस्त थे—कभी छाँव बनकर ठंडक देते, कभी बारिश बनकर खेल करवाते। गाँव के बच्चे सिर्फ़ खेलों में ही नहीं, बल्कि अपने परिवार के प्यार में भी डूबे रहते। वे अपने माता-पिता को दिल से चाहते थे। सुबह जब सूरज उगता तो बच्चे सबसे पहले माता-पिता के पास दौड़कर उन्हें गले लगाते। उनकी मासूम झप्पियों से थकान भी पिघल जाती और माता-पिता का चेहरा खिल उठता।

और दादा-दादी! वे तो मानो पूरे गाँव के खजाने थे। रात होते ही बच्चे उनके पास इकट्ठे हो जाते। दादी अपनी मीठी आवाज़ में कहानियाँ सुनातीं—राजकुमारों, परियों और जादुई जंगलों की। दादा अपने अनुभवों से उन्हें जीवन का सच्चा ज्ञान देते। बच्चे तल्लीन होकर सुनते और उनके दिल में बुज़ुर्गों के लिए गहरा स्नेह उमड़ता।

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एक दिन गाँव में एक छोटी बच्ची बीमार पड़ गई। उसका नाम था कमल। वह कई दिनों से खेलों में शामिल नहीं हो पा रही थी। उसके दोस्त उदास हो गए। परियों ने यह देखा और उन्होंने तय किया कि अब बच्चों को एक बड़ा रहस्य बताया जाए।

नीली परी आसमान से उतरी और बोली,
"बच्चों, जानना चाहोगे कि असली खुशी कहाँ है?"

बच्चों ने हाँ में सिर हिलाया।

हरी परी ने मुस्कुराकर कहा,
"खुशी तब सबसे बड़ी होती है जब तुम उसे बाँटते हो। और दुख? वह सबसे छोटा हो जाता है जब सब मिलकर उसे उठाते हैं।"

सफेद परी ने अपने पंख फैलाए और समझाया,
"अगर तुम सब मिलकर कमल के साथ रहोगे, उसे हँसाओगे, गाओगे और प्यार दोगे, तो उसका दुख धीरे-धीरे उड़ जाएगा।"

अगले ही दिन बच्चों ने मिलकर योजना बनाई। सभी अपने सबसे सुंदर कपड़े पहनकर कमल के घर पहुँचे। कोई रंग-बिरंगे फूल लेकर आया, कोई पंछियों के गीत गाकर सुनाने लगा। कुछ बच्चों ने नृत्य किया, तो कुछ ने कहानियाँ सुनाईं।

कमल पहले तो थकी हुई थी, मगर धीरे-धीरे उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई। उसके आँसू हँसी में बदल गए। उसे लगा जैसे बीमारी की सारी थकान कहीं खो गई हो।

परियाँ आसमान से यह दृश्य देख रही थीं और उनके पंखों से रंगीन रोशनी बरस रही थी। उस दिन बच्चों ने सच में सीखा कि खुशी बाँटने से बढ़ती है और दुख बाँटने से घटता है।

इस घटना के बाद गाँव ने हर साल "खुशियों का त्योहार" मनाना शुरू किया। उस दिन हर बच्चा और बड़ा अपने सबसे रंग-बिरंगे कपड़े पहनता। फूलों की मालाएँ सजतीं, पंछियों की आवाज़ों से वातावरण गूँजता और बादल भी प्यारी-प्यारी बूँदें बरसाते।

सब लोग मिलकर नाचते, गाते और एक-दूसरे से गले मिलते। त्योहार का नियम था—उस दिन कोई अकेला नहीं रहेगा। अगर किसी के दिल में दुख है, तो सब मिलकर उसे दूर करेंगे। अगर कोई खुश है, तो उसकी खुशी सबके साथ बाँटी जाएगी।

परियाँ हर त्योहार पर आकर बच्चों को आशीर्वाद देतीं। नीली परी कहती,
"तुम्हारी मुस्कान से आसमान भी चमकता है।"

हरी परी कहती,
"तुम्हारे प्यार से धरती हरी-भरी रहती है।"

सफेद परी कहती,
"तुम्हारी मासूमियत से दुनिया उज्जवल बनती है।"

और सचमुच, उस गाँव की हँसी और प्यार पूरे संसार में फैल गया। यात्री जब उस गाँव से होकर गुजरते, तो कहते—"यहाँ के फूल ज़्यादा खिले क्यों लगते हैं? यहाँ के पंछी इतनी मधुर आवाज़ में क्यों गाते हैं? यहाँ के लोग इतने खुश क्यों हैं?"

उत्तर हमेशा एक ही था—
"क्योंकि इस गाँव में दुख बाँटे जाते हैं और खुशियाँ फैलाई जाती हैं।"

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समय बीतता गया। बच्चे बड़े हुए, फिर उनके बच्चे हुए। मगर परियों का संदेश पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा—
हमेशा हँसो और दूसरों को हँसाओ।
नाचो, गाओ, जीवन को रंगों से भरो।
अपने माता-पिता से प्यार करो और दादा-दादी के स्नेह को संजोकर रखो।
और सबसे महत्वपूर्ण—दुख बाँटो, ताकि कोई अकेला न रहे।

कहते हैं आज भी जब कोई बच्चा दिल से हँसता है, तो नीली, हरी और सफेद परियाँ अपने पंख फड़फड़ाकर आशीर्वाद देती हैं। बादलों के बीच हल्की-सी रंगीन रौशनी फैलती है, और वही इस बात का सबूत होती है कि रंगों का परीलोक अब भी जीवित है।

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