राजकुमार की ज़िद्द : बिहार की लोक-कथा
Rajkumar Ki Zid : Lok-Katha (Bihar)
एक समय की बात है। अंग देश में एक राजकुमार था। उसका नाम तेजप्रताप था। जैसा नाम वैसा काम। तेजप्रताप बहुत ज़िद्दी था। वह जिस किसी चीज़ को पाने की ज़िद्द कर लेता उसे हासिल किए बिना नहीं रहता था।
एक रात राजकुमार तेजप्रताप ने सपने में एक अत्यंत सुंदर जलपरी को देखा। उसकी सुंदरता पर राजकुमार मोहित हो गया। सुबह जब आँख खुली तो जलपरी का सौंदर्य उसके दिलो-दिमाग़ पर छाया हुआ था। मन-ही-मन उसके दिमाग़ में जलपरी उमड़-घुमड़ रही थी। वह अपने पिता को अपने सपने एवं इच्छा से अवगत कराना चाह रहा था।
राजकुमार ने सपने से अवगत कराते हुए अपने पिता से कहा, “पिताजी मैं जलपरी से शादी करूँगा।” इतना सुनना था कि उसके पिता ने कहा, “बेटा तेजप्रताप तू पागल हो गया है क्या?” जलपरी समुद्र के अंदर रहती है, वहाँ तुम कैसे जा पाओगे। समुद्र के अंदर बड़े ख़तरनाक जानवर रहते हैं। वह तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। तुम जलपरी से शादी की ज़िद्द छोड़ दो।”
“नहीं पिताजी, मैं जलपरी को अपनी रानी बनाकर ही रहूँगा। वह जहाँ भी रहती होगी उसे वहाँ से ढूँढ़कर लाऊँगा। मेरा यह आख़िरी फ़ैसला है।” इतना कहकर राजकुमार तेजप्रताप अपनी तलवार लेकर और घोड़े पर सवार होकर जलपरी से शादी करने के लिए चल दिया।
कई दिनों की कठिन यात्रा के बाद राजकुमार समुद्र के पास जा पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने समुद्र देव से हाथ जोड़कर कहा, “हे समुद्र देव! मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप मेरी मदद कीजिए। मैं इस समुद्र के बीच रहने वाली राजकुमारी से शादी करना चाहता हूँ।” राजकुमार की बात सुनकर समुद्र देव जल में प्रकट हुए और बोले, “राजकुमार मैं तुम्हारी हिम्मत देखकर बहुत प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें एक नाव देता हूँ। तुम इसमें बैठकर जलपरी तक आसानी से पहुँच जाओगे। यह नाव तुम्हें जलपरी के महल तक पहुँचा देगी। रास्ते में तुम्हें बड़े-बड़े सर्प, मगरमच्छ, ज़हरीले जीव-जंतु, राक्षस तथा ख़तरनाक दरियाई घोड़े मिलेंगे। तुम सबको मारते-काटते आगे बढ़ते जाना। समुद्र के बीच पहुँचते ही तुम्हें पानी पर तैरता हुआ एक सुंदर महल दिखाई देगा। महल के बाहर बड़े-बड़े दो राक्षस पहरा देते मिलेंगे। तुम उन्हें मारकर महल के अंदर घुस जाना। महल के अंदर जलपरी पलंग पर सोती मिलेगी। उसके पास पहुँचकर जैसे ही जलपरी को छुओगे तो वह उठकर बैठ जाएगी और तुमसे एक सवाल पूछेगी। अगर तुम जलपरी के सवाल का जवाब दे दोगे तो जलपरी तुमसे शादी करने को तैयार हो जाएगी। अगर तुम उसके सवाल का जवाब नहीं दे सके तो जलपरी तुम्हें तोता बनाकर अपने महल में हमेशा के लिए क़ैद कर लेगी। मैं तुम्हें यह सोने की अँगूठी दे रहा हूँ। इसे तुम पहन लो। इस अँगूठी को पहनने से जलपरी के सवाल का जवाब मालूम हो जाएगा।”
राजकुमार समुद्र देव से आज्ञा लेकर नाव में बैठकर आगे की ओर चल दिया। वह बड़े-बड़े सर्पों, मगरमच्छों, ज़हरीले जीवों, राक्षसों तथा दरियाई घोड़ों को मारते-काटते कई दिनों की यात्रा के बाद समुद्र के बीच जल पर तैरते जलपरी के महल के पास जा पहुँचा। महल के बाहर पहरा दे रहे दो राक्षसों को भी अपनी तलवार से मारकर महल के अंदर प्रवेश कर गया।
जलपरी एक पलंग पर गहरी नींद में सोई हुई थी। राजकुमार ने जलपरी के पलंग के पास पहुँचकर जैसे ही उसके बदन को छुआ वैसे ही वह नींद से जागकर पलंग पर उठ बैठी। उसने राजकुमार तेजप्रताप से पूछा, “तुम कौन हो और यहाँ किसलिए आए हो?”
जलपरी की बात सुनकर राजकुमार तेजप्रताप बोला, “मेरा नाम राजकुमार तेजप्रताप है। मैं अंगदेश के राजा गोपाल सिंह का पुत्र हूँ। मैं यहाँ तुमसे शादी करने के लिए आया हूँ।” इतनी बात सुनकर जलपरी बोली, “तुम बड़े साहस और हिम्मत वाले राजकुमार हो। मैं तुम्हें देखकर बहुत ख़ुश हूँ। मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ। अगर तुमने यदि मेरे एक सवाल का सही जवाब दे दिया तो मैं तुमसे शादी कर लूँगी। और यदि तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तो मैं तुम्हें तोता बनाकर पिंजड़े में हमेशा के लिए क़ैद कर लूँगी।”
जलपरी ने पूछा, “बताओ सुबह जो निकलता है, शाम को डूब जाता है, वह क्या है?” समुद्र देव द्वारा दी हुई अँगूठी ने राजकुमार तेजप्रताप के कान में धीरे से कहा, “कह दो सूरज है।” कुछ देर रुक कर राजकुमार ने कहा, “सूरज है।” इतना सुनते ही जलपरी हँस पड़ी और पलंग से नीचे उतर कर तेजप्रताप से लिपट कर बोली, “तुम्हारा जवाब सही है। आज से मैं तुम्हारी पत्नी बन गई। मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ।”
राजकुमार तेजप्रताप ने अपनी जेब में रखा सिंदूर निकाला और जलपरी की माँग में भरकर उसे अपनी रानी बना लिया। जलपरी ने तुरंत एक उड़नखटोला मँगवाया और उसमें राजकुमार तेजप्रताप संग बैठकर अंग देश की ओर उड़ चली।
सच ही तो कहा गया है कि यदि आप किसी चीज़ को सच्चे दिल से चाहो तो सारी कायनात उसे मिलाने में जुट जाती है। राजकुमार तेजप्रताप के साथ ऐसा ही हुआ और उसकी ज़िद्द पूरी हुई।
(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)