प्यार के बंदी (नार्वेजियन कहानी) : कनुत हामसुन - अनुवाद : पूर्णिमा चावला
Pyar Ke Bandi (Norwegian Story in Hindi) : Knut Hamsun
आज ही मैंने अपना मन हलका करने के लिए लिखा है कि कैफे से मेरी नौकरी छूट गई है और इसके साथ ही मेरे सुख भरे दिन भी समाप्त हो गए हैं। मैंने अपना सर्वस्व खो दिया है। उस कैफे का नाम 'कैफे मैक्सीमिलीयन' था।
एक युवक सलेटी रंग का सूट पहने अपने दो दोस्तों के साथ लगातार कई शाम मेरी निगरानी की मेजों में से एक पर आकर बैठता रहा। वहाँ कई लोग आते, उन सबका मेरे प्रति मैत्रीपूर्ण व्यवहार होता, मगर वह युवक चुपचाप बैठा रहता। इस कोमल काले बालों वाले लंबे छरहरे युवक की नीली आँखें कभी-कभार मुझ पर पड़ जातीं। उसके ऊपरी होंठों पर मूँछें उगनी शुरू ही हुई थीं।
हाँ, शुरू-शुरू में उसे शायद मेरे प्रति कोई शिकायत रही हो। वह सप्ताह- भर आता रहा। मेरी आँखें उसे देखने की अभ्यस्त हो गई थीं। जब कभी वह न आता, उसका अभाव खटकने लगता। एक साँझ वह वहाँ नहीं आया। मैं कैफे में उसे इधर- उधर ढूँढ़ती रही। अंत में वह मुझे एक बड़े खंभे के उस पार दूसरे प्रवेशद्वार के समीप बैठा नजर आया। वह एक सर्कस लेडी के पास बैठा था, जिसने पीली ड्रेस व कोहनी तक लंबे दस्ताने पहन रखे थे। वह युवा थी। उसकी आँखें काली व खूबसूरत थीं, जबकि मेरी आँखें नीली हैं।
मैंने पल-भर ठिठककर उनकी आपसी बातचीत सुनी। वह उसकी किसी बात से तंग आकर उसे भला-बुरा कह रही थी और वहाँ से उठ जाने के लिए विवश कर रही थी। मैंने मन में कहा 'ब्लैस्ड वर्जिन' वह मेरी ओर क्यों नहीं देखता !
अगली शाम अपने मित्रों के साथ वह फिर आया और मेरी सर्विस की पाँच मेजों में से एक पर आ बैठा। मैंने उसका पहले की तरह स्वागत नहीं किया। मैं शरमा गई और मैंने उसे अनदेखा कर दिया, जब उसने मुझे संकेत से बुलाया तो मैं उसकी ओर बढ़ी।
"तुम कल क्यों नहीं आए ?" मैंने पूछा।
उसने कार्ड दिया और कहा, "इसे "उसके पास " उसकी बात पूरी होने से पूर्व ही मैं उस पीले कपड़ों वाली के पास उसका कार्ड ले गई। रास्ते में मैंने उसका नाम पढ़ लिया- ब्लादीमीयरत्ज टी०एक्स०एक्स० ।
जब मैं वापस आई तो उसने प्रश्नसूचक आँखों से मेरी ओर देखा ।
"हाँ, मैंने उसे दे दिया है।" मैंने बताया।
"कोई उत्तर नहीं मिला?"
'नहीं।'
मुझे एक मार्क थमाते समय मुस्कराकर वह बोला, "खामोशी भी तो एक उत्तर है।" वह पूरी शाम बैठा उस स्त्री व उसके साथियों को घूरता रहा। ग्यारह बजे उठा और उसकी मेज पर जा पहुँचा, पर उसने उसे घास तक न डाली। अलबत्ता उसके दो साथियों ने जैसे-तैसे उससे कुछ बातचीत की और उलटे सीधे मजाक और प्रश्न भी। वहाँ वह कुछ देर ठहरा और जब वह वापस आया तो मैंने उसे बताया कि उन्होंने उसे बेवकूफ बनाया है और उसके रेनकोट की जेब में बीयर उँडेल दी है। उसने कोट उतारा और सर्कस वाली लड़की की मेज की ओर तीखी नजरों से देखा । मैंने उसका कोट सुखा दिया। "धन्यवाद स्लोव, " उसने कहा ।
जैसे ही मैं उसे कोट पहनाने में सहायता कर रही थी, चुपके से मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेर दिया।
ह गंभीर मुद्रा में बैठ गया। उसके एक मित्र ने एक और बीयर लाने का आदेश दिया। मैंने उसका टैंकर्ड भरने के लिए उठाया और साथ में एक्स०एक्स० का भी उठाना चाहा।
"नहीं, " यह कहते ही उसने अपना हाथ रख दिया।
उसके स्पर्श से मैंने अपनी बाँह ढीली छोड़ दी। उसने निस्संदेह मेरी इस हरकत को भाँप लिया था, अतः शीघ्रता से मैंने अपना हाथ खींच लिया।
रात को अपने बिस्तर के पास घुटने टेक उसके लिए मैंने प्रार्थना की और खुशी से मैंने अपना दायाँ हाथ चूम लिया।
एक बार उसने मुझे फूल दिए ढेर सारे जो उसने भीतर आने से पूर्व फूल बेचने वाली एक लड़की से खरीदे थे-लाल व ताजे फूलों की लगभग पूरी एक टोकरी । उसने उन फूलों को देर तक अपने सामने रखा। उसका कोई भी दोस्त उसके साथ नहीं था। जब भी मुझे समय मिलता, खंभे की ओट से उसे झाँक लिया करती और सोचती कि ब्लादीमीयरत्ज टी०एक्स०एक्स० ही इसका नाम है।
ऐसे ही एक घंटा बीत गया। बीच-बीच में वह अपनी घड़ी देखता रहा ।
"क्या आप किसी की प्रतीक्षा में हैं?" मैंने पूछा ।
उसने अनमने मन से मेरी ओर देखा और जल्दी में उत्तर दिया, "नहीं, मैं किसी की प्रतीक्षा नहीं कर रहा। भला मैं किसी की क्यों राह देखने लगा ?"
"मेरे विचार से तो आप किसी के आगमन के प्रत्याशी हैं।" मैंने अपनी बात दोहराई।
"इधर आओ।" उसने मुझे पास बुलाया और कहा कि ये सब तुम्हारे लिए हैं।
और उसने मुझे सारे फूल दे दिए।
मैंने आभार प्रकट किया, पर मेरे मुँह में शब्द फुसफुसाकर रह गए। प्रसन्नता की सुर्खी मेरे चेहरे पर छा गई। साँस रोके हुए मैंने अपने आपको बुफे के सामने खड़े पाया जहाँ मैं ऑर्डर दिया करती थी।
"क्या चाहिए?" काउंटर पर खड़ी इंचार्ज ने पूछा।
'आपका क्या विचार है?" फूलों की ओर देखते हुए मैं बोली ।
"मेरा विचार "पागल हो क्या तुम?" उसने उत्तर दिया।
" बूझो तो यह फूल मुझे किसने पेश किए हैं?" मैंने पूछा ।
मैनेजर पास से कहते हुए निकला कि उसने लकड़ी की टाँग वाले सज्जन को कहते हुए सुना है कि उसके पास तुम बीयर लेकर नहीं गईं।
"मुझे ब्लादीमीयरत्ज से मिले हैं।" इतना कहते ही मैं बीयर का गिलास लिए भागी।
टी० एक्स० एक्स० अभी गया नहीं था। जब वह जाने लगा तो मैंने फिर से उसका शुक्रिया अदा किया।
"वास्तव में ये फूल किसी और के लिए खरीदे थे।' झिझकते हुए वह बोला ।
"हाँ, शायद उसने खरीदे किसी और के लिए पर मिले मुझे।" और उसने फूलों के लिए मेरा धन्यवाद भी स्वीकार किया।
"शुभ रात्रि! ब्लादीमीयरत्ज साहब!"
अगली सुबह उठी तो बारिश हो रही थी। मैंने सोचा आज मुझे हरी या फिर काली ड्रेस पहननी चाहिए, हाँ, हरी चलेगी, बिलकुल नई है, वही पहनूंगी। सच, बहुत ही प्रसन्न थी ।
जब मैं ट्राम-स्टाप पर पहुँची तो मैंने एक स्त्री को भीगते हुए ट्राम की प्रतीक्षा करते पाया । उसके पास छाता नहीं था। मैंने उसे अपने छाते के नीचे आने का आग्रह किया, परंतु उसने कृतज्ञता प्रकट करते हुए न कर दी। मैंने भी अपना छाता बंद कर दिया । सोचा कि तब भीगने वाली वही अकेली नहीं होगी।
उस शाम ब्लादीमीयरत्ज कैफे में आया तो मैंने बड़े गर्व से उसका फिर से फूलों के लिए धन्यवाद किया ।
"कौन से फूल"" उसने पूछा, 'छोड़ो उनका जिक्र । "
"मैं बस, थैंक्स ही करना चाहती थी।" मैं बोली।
वह अपने कंधे सिकोड़ते हुए बोला, "मैं तुम्हें प्यार नहीं करता, मेरी बाँदी।"
मैं तो वह नहीं थी जिसे वह चाहता था— यकीनन नहीं, उसके इस व्यवहार की तो मैंने अपेक्षा नहीं की थी, पर मैं निराश भी नहीं थी, क्योंकि मैंने अनुभव किया कि वह सदा ही मेरी किसी न किसी मेज पर आकर बैठता रहा। और मैं ही उसे बीयर पेश करती और 'वेलकम बैक ब्लादीमीयरत्ज' कहती थी।
अगली शाम वह कुछ विलंब से आया।
"क्या तुम्हारे पास कुछ पैसे हैं, स्लेव ।" उसने पूछा।
"नहीं, मुझे खेद है, मैं एक गरीब लड़की हूँ।" मैंने उत्तर दिया।
तब उसने मेरी ओर देखा और मुस्कराते हुए बोला, "तुम्हें कुछ भ्रम हुआ है। गलत मत समझो, मुझे कल तक के लिए चाहिए।"
"मेरे पास घर में एक सौ तीस मार्क पड़े हैं, " मैं बोली, "पंद्रह मिनट इंतजार करो, कैफे बंद होते ही तुम मेरे साथ चलना, दे दूँगी।"
उसने पंद्रह मिनट इंतजार किया। फिर मेरे साथ गया। उसने बताया कि उसे केवल सौ मार्क चाहिए।
सारा रास्ता वह मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चला। न एक कदम आगे, न एक कदम पीछे, ठीक सभ्य व्यक्तियों की तरह ।
जब हम घर के मुख्य द्वार पर रुके तो मैंने बताया कि मेरे पास एक छोटा सा कमरा है।
"मैं ऊपर नहीं आऊँगा," झट से वह बोला, "यहीं राह देखूँगा।" मेरे वापस आने तक वह रुका रहा।
वापस आकर मैंने उसे नोट दिए। गिनते ही उसने बताया कि सौ से ऊपर हैं। "मैं दस मार्क टिप में दूँगा। हाँ-हाँ, सुनो तो, मैं दस मार्क बख्शीश में देना चाहता हूँ।" उसने मुझे पैसे दिए और शुभरात्रि कहता चलता बना। मैंने उसे गली के मोड़ पर रुकते और बूढ़ी लँगड़ी भिखारिन को ताँबे का सिक्का देते हुए देखा।
अगली शाम आते ही उसने अफसोस प्रकट करते हुए बताया कि वह पैसे वापस लौटा पाने में असमर्थ है। मैं प्रसन्न थी कि वह नहीं कर सकता। उसने मान लिया है कि उससे पैसे खर्च हो गए हैं।
"कोई क्या कह सकता है स्लेव, " मुस्कराते हुए वह बोला, "तुम लेडी-इन- येलो को तो जानती हो ?"
"तुम हमारी वेटरेस को स्लेव क्यों कहते हो, " उसके दोस्त ने उसे टोका, "मेरे विचार से तुम स्वयं इससे अधिक स्लेव हो।"
मैंने बीच में दखल देते हुए पूछा, "बीयर ?"
थोड़ी देर उपरांत लेडी - इन- येलो भीतर आई। टी०एक्सएक्स० ने खड़े हो झुककर उसका अभिवादन किया। वह इतना झुका कि उसके बाल माथे पर आ गिरे। वह पास से निकली और एक खाली मेज पर जा बैठी, पर उसने जानबूझकर दो कुर्सियाँ जोड़कर रख दीं। टी०एक्स०एक्स० शीघ्रता से फलाँगकर उसके साथ वाली कुर्सी पर जा बैठा। दो मिनट बाद उठ खड़ा हुआ और ऊँचे स्वर में कहने लगा, 'अच्छा, मैं चला जाऊँगा और मैं फिर कभी वापस नहीं आऊँगा।"
"शुक्रिया।" उसने उत्तर दिया।
मैं खुशी से फूली किसी को कुछ किसी को कुछ कहती काउंटर की ओर भाग गई। मैंने उन्हें बताया कि वह किसी भी दशा में लेडी-इन-येलो के पास नहीं जाएगा।
मैनेजर ने पास से निकलते समय चिकोटी भरी, पर मैं तो कहीं और ही खोई हुई थी।
बारह बजे जब रेस्तराँ बंद हुआ तो टी०एक्स०एक्स० मेरे साथ मेरे घर तक गया। "मुझे उन दस मार्कों में से पाँच मार्क चाहिए, जो मैंने तुम्हें कल टिप में दिए थे।" वह बोला ।
मैं उसे दस मार्क देना चाहती थी, पर उसने पाँच मार्क मुझे बख्शीश के रूप में वापस कर दिए। वह मेरा कोई भी अनुरोध मानने को तैयार नहीं था ।
"आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ," मैं बोली, "काश! मैं तुम्हें ऊपर बुलाने का साहस कर सकती, लेकिन मेरे पास तो एक छोटा-सा कमरा है। "
"मैं ऊपर नहीं जाऊँगा," उसने उत्तर दिया, "गुडनाइट ।"
वह चला गया। वह फिर उस बूढ़ी भिखारिन के पास से निकला। उसके सिर हिलाकर माँगने के बावजूद वह उसे पैसे देना भूल गया। मैंने भागकर सड़क पार की और उसे पैसे देते हुए कहा कि उस सलेटी ड्रेस वाले सज्जन की ओर से हैं जो अभी-अभी तुम्हारे पास से निकला है- हाँ, उस स्लेटी ड्रेस वाले की ओर से ।
"सलेटी ड्रेस वाले सज्जन ?" उस भिखारिन ने पूछा।
"काले बालों वाला ब्लादीमीयरत्ज । "
'क्या तुम उसकी पत्नी हो ?"
"नहीं, मैं उसकी बंदिनी हूँ।" मैंने उत्तर दिया।
वह लगातार कई शाम खेद प्रकट करता रहा कि वह उसके पैसे वापस कर पाने में असमर्थ है। मैंने उसे चुप रहने की याचना की। उसने इतने ऊँचे स्वर में कहा कि सभी वहाँ बैठे सुन सकें। कइयों ने तो उसकी खिल्ली भी उड़ाई।
"मैं खलनायक हूँ, दुष्ट हूँ," वह बोला, "मैंने तुमसे पैसे उधार लिए हैं और मैं वापस नहीं कर सकता। सच, इन नोटों के लिए मुझे हाथ कटवा देना चाहिए।" इन बातों को सुन मैं दुखी होती और सोचती कि किसी प्रकार उसे कुछ पैसे और दे पाती, चाहे मैं जानती थी कि मैं मजबूर हूँ ।
वह मुझे बताता रहा कि लेडी इन येलो अपनी सर्कस के साथ चली गई है- कि वह उसे भूल चुका है और उसे जरा भी याद नहीं करता...।
"और इसीलिए तूने उसे आज एक और पत्र लिखा है?" उसके मित्र ने पूछा ।
"यह अंतिम था।" ब्लादीमीयरत्ज ने उत्तर दिया।
मैंने फूल बेचने वाली से एक गुलाब का फूल खरीदा और उसके कोट की बाईं ओर वाले होल में लगा दिया। फूल लगाते समय मैंने उसकी साँसों को अपने हाथ पर महसूस किया । इसलिए मैं फूल बड़ी कठिनाई से रोक सकी।
'थैंक्स!" उसने कहा।
मैंने काउंटर से अपने वेतन के शेष पैसे माँगे और उसे दे दिए "एक तुच्छ- सी भेंट।" उसने मेरा शुक्रिया अदा किया।
उस सारी साँझ मेँ प्रसन्नचित्त घूमती फिरी। फिर अचानक ब्लादीमीयरत्ज ने बताया कि वह इन पैसों से एक सप्ताह के लिए कहीं दूर जा रहा है और वापस आते ही पैसे लौटा देगा। मैं सुनते ही पसीज गई।
"मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, माई लव।" यह कहते ही उसने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ रह गई। मैंने चाहे उससे पूछा नहीं, पर वह क्या अपना अता-पता बताए बिना ही चला जाएगा। मेरी आँखों के सामने सारा रेस्तराँ, जलते फानूस और सारे मेहमान घूमते महसूस हुए। मैं सह न सकी। घबराकर मैंने उसके दोनों हाथ कसकर पकड़ लिए।
"सप्ताह भर में मैं तुम्हारे पास लौट आऊँगा।" इतना कहते ही वह एकाएक उठ खड़ा हुआ।
"बहुत अच्छा, " मैंने कहा। क्या अंतर पड़ता है। एक सप्ताह में ही वह मेरे पास वापस आ जाएगा। मैंने आभार प्रकट करने के लिए मुड़कर उसकी ओर देखा तो वह जा चुका था ।
एक रात जब मैं घर वापस पहुँची तो उसका पत्र पड़ा पाया, जो ठीक एक सप्ताह बाद मुझे मिला था। उसने टूटे मन से लिखा था कि वह उस लेडी इन- येलो का पीछा करने गया था— कि वह मेरे पैसे वापस नहीं कर सकता कि वह मुसीबत में है और नीचे लिखा था कि वह उस पीली वेशभूषा वाली लड़की की जुल्फों का असीर है।
मैं रात-दिन तड़पती रही, पर कुछ न कर सकी। एक सप्ताह पश्चात् मेरी नौकरी छूट गई और मैं एक नई नौकरी की तलाश में जुट गई। दिन-भर होटलों, रेस्तराओं में प्रार्थना पत्र देती फिरी और कई घरों के द्वार खटखटाए और अपनी सेवाएँ अर्पित करनी चाहीं । पर कुछ लाभ नहीं हुआ। दिन के समाचारपत्र रात को खरीद लाती और घर आकर नौकरी संबंधी विज्ञापनों को ध्यान से पढ़ती। सोचती कि कोई- सा भी काम मिल जाने से हम दोनों मेरी व ब्लादीमीयरत्ज की समस्या हल हो सकती है।
गत रात समाचारपत्रों में मैंने उसका नाम देखा और उसके विषय में पढ़ा। मैं सीधे ही बाहर निकल गई थी। घर से बाहर गलियों में घूमती आज वापस लौटी हूँ याद नहीं आता कि कहीं भी सो सकी या थकानवश कहीं सीढ़ियों पर तनिक विश्राम लिया हो ।
आज मैंने पुनः पढ़ा है। पिछली रात जब मैंने पढ़ा था, सर्वप्रथम अपने हाथ भींच लिए थे फिर कुर्सी पर बैठी थी। थोड़ी देर पश्चात् कुर्सी से ढासना लगा नीचे फर्श पर बैठी सोचती रही। फिर मैंने अपने हाथों से फर्श पीटा था। संभवतः मेरी चेतना जवाब दे गई थी। शून्यता से मेरा मस्तिष्क भन्ना उठा। मैं अपने होश- हवास खो बैठी थी। अचेतन अवस्था में उठकर मैं बाहर चली गई थी। गली के मोड़ पर उसी बूढ़ी भिखारिन को ताँबे का सिक्का देते हुए कहा था कि यह उस स्लेटी सूट वाले सज्जन की ओर से है ...याद है न... ?
"शायद तुम उसकी प्रेमिका हो।" उसने पूछा।
"मैं उसकी विधवा हूँ।" मैंने उत्तर दिया।
मैं सुबह तक गलियों-सड़कों पर मारी मारी फिरती रही हूँ और अब फिर से पढ़ा है-
ब्लादीमीयरत्ज टी०एक्स०एक्स० ही उसका नाम था ।