पुतली की कहानी : राजस्थानी लोक-कथा
Putli Ki Kahani : Lok-Katha (Rajasthan)
चार मित्र थे। इनमें से एक खाती था, एक दर्जी था, एक सुनार था और एक ब्राह्मण था। चारों ने परदेश में जाकर धन कमाने की सोची। और एक दिन ठीक मुहूर्त देखकर अपने गांव से रवाना हो गए। चलते- चलते शाम हो गयी तो एक कुँए के पास रात-वासे के लिए ठहर गए।
सबने भोजन किया और फिर सोने की तैयारी करने लगे। सुनार के पास सोना था इसलिए उसने कहा, ‘‘ भाइयों सबका एक साथ सो जाना ठीक नहीं होगा।’’
दर्जी ने कहा, ‘‘हाँ भाई, ठीक कहते हो। हमको बारी-बारी से पहरे पर जागना चाहिए।’’
ब्राह्मण ने सबके पहरे का समय निश्चित किया। पहरे पर सबसे पहले खाती की बारी आई। वह जागने का प्रयत्न करने लगा किन्तु थकावट के कारण उसको नींद आने लगी। उसने सोचा कुछ काम करना चाहिए।
खाती ने एक लकड़ी का टुकड़ा लिया, औजार निकाले और पुतली बनाने लगा। अपना पहरा खत्म होते-होते उसने लकड़ी की एक सुन्दर पुतली बना ली और फिर दर्जी को जगाकर सो गया।
दर्जी ने देखा पुतली तो बहुत सुन्दर बनी है उसने रंग -रंगीले कपड़े निकाले। पुतली का नाप लिया और फिर सीने लगा। अपने पहरे के समय़ मे उसने पुतली के लिए अच्छी-सी चोली और घेरदार घाघरा तैयार कर लिया। साड़ी के नाप का चूँदड़ी का कपड़ा लिया और पुतली को सभी कपड़े पहना-ओढाकर ख़ड़ी कर दी।...
फिर आधी रात के बाद सुनार की बारी आई। वह सोना निकालकर गहने
बनाने लगा। धीरे-धीरे उसने बोरला, झेला, कर्णफूल, नथ, हँसली, हार, चूड़ियाँ,
पायल-सभी गहने बना लिये और पुतली को पहना दिए। पुतली गहनों-कपड़ों
में बहुत सुन्दर दिखने लगी।
अन्त में ब्राह्मण की बारी आई। वह पुतली को देखकर विचार में पड़ गया।
उसने सोचा, इस पुतली को अपने मन्त्र-बल से जीवित करना चाहिए। वह
मन्त्र बोलता हुआ उस पर जल छिड़कने लगा। सुबह होते-होते पुतली जीवित
होकर जवान लड़की बन गई। सवेरा होते ही सभी जाग गए और सुन्दर लड़की
को अपने पास देखकर आश्चर्य करने लगे।
ब्राह्मण ने कहा, “इसको मैंने मन्त्र-बल से जीवित किया है इसलिए मैं
ही इसके साथ विवाह करूँगा।"
खाती बोला, “वाह जी! यह कैसे हो सकता है? पुतली तो मैंने बनाई
थी।"
दर्जी बोला, “इसके लिए मैंने ही कपड़े तैयार किए हैं। इसके साथ तो
मैं ही विवाह करूँगा।”
सुनार ने कहा, “भाइयो! मैंने हज़ारों रुपयों का सोना खर्च करके इसके
लिए गहने बनाए हैं। अब कैसे हो सकता है कि यह दूसरे के घर चली जाए?”
इतने में गाँव के कई लोग भी जागकर अपने काम-धन्धे के लिए कुएँ पर
आ गए। चारों को लड़ते-झगड़ते देखकर गाँववालों में से एक समझदार बूढ़ा
बोला, “भाई, क्यों लड़ते हो? पूरा मामला समझाकर कहो ।” चारों ने बारी-बारी
से अपने बयान दिए और लड़की के साथ विवाह करने का अपना अधिकार
बताया।
बूढ़े ने सबकी बातें समझकर कहा, “खाती ने पुतली बनाई और ब्राह्मण
ने इसको जीवित किया इसलिए दोनों इसके बाप हैं। दोनों में से किसी का
भी विवाह इस लड़की के साथ नहीं हो सकता। रही बात दर्जी की। इसने
कपड़े तैयार किए हैं। यह काम मामा का होता है। विवाह पर मामा '"मायरे
के रूप में कपड़े लाता है और विवाह करने वाला व्यक्ति गहने लाता है। गहने
पहनाने वाला सुनार है। वही इस लड़की से विवाह कर सकता है।”
सबको यह न्याय स्वीकार करना पड़ा। सुनार उस लड़की से विवाह कर
अपने घर लौट आया और दोनों सुख से रहने लगे।
(पुरुषोत्तमलाल मेनारिया)