पुखराज (अंग्रेज़ी कहानी) : रस्किन बॉन्ड

Pukhraj (English Story in Hindi) : Ruskin Bond

हिमालय की चीर से भरी ढलानों को निहारते हुए दी ब्लू दन्यूब की स्वरलहरियों को सुनना भी एक विचित्र अनुभव था। दोनों दो अलग दुनिया की चीज़ें थीं लेकिन फिर भी वाल्ट्ज़ का संगीत उस माहौल के लिए ही बना हुआ लगता था। मंद बहती हवा में हिलती चीरों की डालियाँ संगीत की लय के साथ कदमताल करती प्रतीत हो रहीं थीं। रिकॉर्ड प्लेयर नया था लेकिन रेकॉर्ड्स पुराने थे, माल रोड के पीछे कबाड़ी की दुकान से लिए गए।

चीड़ की कतारों के नीचे सिंदूर लगे थे, उनमें से एक ख़ास सिंदूर के पेड़ ने मेरा ध्यान खींचा। यह उन सभी पेड़ों से बड़ा था और कॉटेज के नीचे एक छोटे से टीले पर अकेला खड़ा था । हवा इतनी तेज़ नहीं थी कि इसके पुराने, मज़बूत तनों को हिला सके लेकिन वहाँ कुछ हिल रहा था,पेड़ पर धीरे- धीरे झूलता, वाल्ट्ज़ के संगीत के धुन पर नाचता हुआ।
वहाँ कोई था जो पेड़ से टंगा हुआ था ।

एक रस्सी हवा में लटकी नाच रही थी , वह शरीर धीरे-धीरे इधर –उधर घूम रहा था। मेरी तरफ़ घूमा और मैंने एक लड़की का चेहरा देखा। उसके बाल खुले थे। उसकी आँखें कुछ नहीं देख रहीं थीं, हाथ और पैर बेजान थे; वह बस घूमे जा रही थी और वाल्ट्ज़ का संगीत बज रहा था।
मैंने प्लेयर बंद किया और नीचे भागा।
पेड़ों के बीच बने रास्ते से नीचे उस घास के टीले की ओर जहां वह बड़ा सिंदूर था ।

एक लंबी पूंछ वाली नीलकंठ चिड़िया ने डर कर तेज़ी से उडान भरते हुए नीचे घाटी की ओर छलांग लगाई। पेड़ पर कोई नहीं था, कुछ भी नहीं । एक बड़ी से तने ने टीले को आधा घेर रखा था और मैं उस तक पहुँच कर उसे छू सकता था । एक लड़की बिना पेड़ पर चढ़े उस तने तक नहीं पहुँच सकती थी।
जब मैं वहाँ खड़ा उन शाखाओं को देख रहा था , किसी ने पीछे से टोका
‘आप क्या देख रहे हैं ?’

मैं चौंक कर मुड़ा। वह मुझसे मुख़ातिब एक लड़की थी , जिंदा , स्वस्थ , चमकदार आँखों और सम्मोहक मुस्कान के साथ । वह बहुत ही प्यारी थी । मैंने कई वर्षों से इतनी ख़ूबसूरत लड़की नहीं देखी थी ।
‘तुमने मुझे चौंका दिया ,’ मैंने कहा । ‘तुम बिलकुल अचानक आई’।
‘क्या आपने कुछ देखा – पेड़ पर’? उसने पूछा।
‘मुझे लगा मैंने किसी को खिड़की से देखा है इसलिए मैं नीचे आया । क्या तुमने कुछ देखा?’
‘नहीं।’ उसने अपना सिर हिलाया ,मुस्कुराहट थोड़ी देर के लिए उसके चेहरे से हट गयी थी । ‘मैं कुछ नहीं देखती लेकिन दूसरे लोग देखते हैं – कई बार।’
‘क्या देखते हैं वो?’
‘मेरी बहन’
‘तुम्हारी बहन?’
‘हाँ। उसने ख़ुद को इस पेड़ से लटका लिया था। बहुत साल पहले। लेकिन कई बार आप उसे वहाँ लटका देख सकते हैं।’
वह ऐसे बोल रही थी जैसे जो हुआ वह उसके लिए कोई बहुत दूर की बात थी।

हम दोनों पेड़ से कुछ दूर चले आए थे। टीले के उपर एक अब उपयोग में नहीं लायी जा रही टेनिस कोर्ट में ( अंग्रेजों के समय के हिल स्टेशन की स्मृति ) एक पत्थर की बेंच पड़ी थी। वह उसपर बैठ गयी और कुछ पलों की हिचकिचाहट के बाद मैं भी उसके बगल में बैठ गया।
‘ क्या तुम पास ही रहती हो’? मैंने पूछा।
‘पहाड़ी के ऊपर। मेरे पिता की एक छोटी बेकरी है।।’
उसने मुझे अपना नाम बताया- हमीदा। उसके दो छोटे भाई थे।
‘तुम बहुत छोटी रही होगी जब तुम्हारी बहन नहीं रही।’
‘हाँ । लेकिन वह मुझे याद है । वह बहुत सुंदर थी। ’
‘तुम्हारी तरह।’

वह अविश्वास से हंसी । ‘ओह , मैं तो उसकी तूलना में कुछ भी नहीं । आपको मेरी बहन को देखना चाहिए था। ’
‘उसने ख़ुद को क्यों ख़त्म कर लिया?’
‘क्योंकि वह जीना नहीं नहीं चाहती । यही एक एक कारण था, नहीं ? उसकी शादी होने वाली थी लेकिन वह किसी और को प्यार करती थी, कोई
और जो उसके धर्म का नहीं था। यह एक पुरानी कहानी है जिसका अंत हमेशा दुखद ही होता है। है न !’
‘हमेशा नहीं । लेकिन उस लड़के का क्या हुआ जिससे वह प्यार करती थी? क्या उसने भी ख़ुद को मार लिया?’
‘नहीं , उसने दूसरी जगह नौकरी कर ली। नौकरी पाना आसान नहीं होता, है न ?’
‘मैं नहीं जानता। मैंने कभी नौकरी के लिए कोशिश नहीं की। ’
‘ फिर आप क्या करते हैं?’
‘मैं कहानी लिखता हूँ। ’
‘क्या लोग कहानी खरीदते हैं?’
‘क्यों नहीं? अगर तुम्हारे पिता ब्रेड बेच सकते हैं, मैं भी कहानियाँ बेच सकता हूँ।’
‘लोगों को रोटी जरूर चाहिए । वे कहानी के बिना रह अकते हैं। ’
‘नहीं, हमीदा, तुम गलत हो। लोग कहानियों के बिना नहीं रह सकते।’

हमीदा! मैं उसे प्यार करने से ख़ुद को रोक नहीं सका। सिर्फ़ प्यार करने से। कोई इच्छा या वासना मेरे मन में नहीं आई थी। ऐसा कुछ भी नहीं था। मैं उसे सिर्फ़ देख कर ही ख़ुश था, उसे देखना जब वह मेरे कॉटेज के बाहर घास पर बैठी होती, उसके होंठों पर जंगली बेरियों के रस में सने होते । वह बोलती जाती –अपने दोस्तों ,अपने कपड़ों, अपनी प्रिय चीजों के बारे में।
‘क्या तुम्हारे माता-पिता को बुरा नहीं लगेगा अगर तुम यहाँ हर दिन आओगी ?’ मैंने पूछा ।
मैंने उन्हें बताया है कि आप मुझे पढ़ा रहे हैं।’
‘क्या पढ़ा रहा हूँ?’
‘उन्होंने नहीं पूछा । आप मुझे कहानी सुना सकते हैं।’
तो मैंने उसे कहानियाँ सुनाई।

वह गर्मियों के दिन थे।
सूरज की किरणें उसकी तीसरी उँगली में पहनी गयी अंगूठी पर चमक रहीं थीं : एक पारदर्शी सुनहरा पुखराज, चांदी में जड़ा हुआ।
‘यह बहुत ख़ूबसूरत अंगूठी है’, मैंने कहा।
‘ आप पहनो इसे,’ उसने तुरंत अपनी उँगली से उसे उतारते हुए कहा। ‘यह आपको अच्छे विचार देगा। यह अच्छी कहानियाँ लिखने में आपकी मदद करेगा।’
उसने अंगूठी मेरी छोटी उँगली में पहना दी।
‘मैं इसे कुछ दिन पहनुंगा, मैंने कहा । ‘फिर तुम मुझे इसे लौटाने देना।’

उस दिन बारिश ने आने का वादा किया था। मैं नीचे पहाड़ों की तली में धारा की ओर जाने वाले रास्ते पर उतर गया। वहाँ मुझे हमीदा मिली, पानी के ऊपर पथरीले किनारों से लगी छायादार जगह में पत्तियाँ चुनती हुई।
‘तुम इनका क्या करोगी?’ मैंने पूछा
‘यह एक ख़ास तरह की पत्ती है। आप इसे सब्जी की तरह पका सकते हैं।
‘यह स्वादिष्ट है?’
‘नहीं , लेकिन यह गठिया के लिया अच्छी है।’
‘क्या तुम्हें गठिया है?’
‘ अरे नहीं । ये मेरी दादी के के लिए हैं, वह बहुत बूढ़ी हैं।’
‘ झरने के ऊपर और पत्तियाँ हैं,’ मैंने कहा, ‘लेकिन हमें पानी में उतरना होगा।’

हमने अपने जूते उतारे और नदी के पानी में उतर गए। घाटी धीरे धीरे अंधकार में समा रही थी और बुझ चुके सूरज के साथ अब दिखाई देना भी बंद हो गयी थी। पानी के ठीक किनारे पत्तियाँ उगी हुईं थीं । हम उन्हें उठाने के लिए झुके लेकिन ख़ुद को एक दूसरे की बाँहों में पाया और धीरे से उतर आए पत्तियों के कोमल बिछौने पर , जैसे कि किसी सपने में हों। दूर अंधेरे में चिड़िया की मीठी आवाज मधुर गीत में बदल रही थी।

ऐसा लग रहा था जैसे गा रही हो , ‘ यह समय नहीं जो बीत रहा , ये तो मैं और तुम हैं । यह तो मैं और तुम हैं ……’।
मैंने अगले दिन उसका इंतज़ार किया लेकिन वह नहीं आयी । कई दिन बीत गए उसे देखे हुए ।

क्या वह बीमार हो गयी? क्या उसे घर में रखा हुआ है? क्या उसे बाहर कहीं भेज दिया गया? मैं यह भी नहीं जानता था कि वह कहाँ रहती थी इसलिए किसी से पूछ भी नहीं सका । पूछना चाहता भी तो क्या पूछता?

फिर एक दिन मैंने लगभग एक मील नीचे सड़क पर एक छोटी सी चाय की दुकान में एक लड़के को ब्रेड और पेस्ट्री लाते देखा। उसकी आँखों के ऊपर को उठे तिरछे कटाव में मुझे हमीदा की थोड़ी झलक मिली। जब वह बाहर निकला तो मैंने ऊपर पहाड़ी तक उसका पीछा किया। उस तक पहुँच कर मैंने पूछा: ‘क्या तुम्हारी बेकरी है?’

उसने ख़ुश होकर सिर हिलाया, ‘हाँ । क्या आपको कुछ चाहिए –ब्रेड , बिस्कुट , केक ? मैं आपके घर पहुंचा सकता हूँ’?
‘जरूर । लेकिन क्या तुम्हारी एक बहन नहीं? एक लड़की जिसका नाम हमीदा है’?
उसके चेहरे के भाव बदल गए । अब वह मेरे दोस्ताना व्यवहार नहीं कर रहा था। वह कुछ उलझा हुआ सा और भयभीत दिख रहा था ।
‘आप क्यों जानना चाहते हो’?
‘मैंने उसे कुछ समय से नहीं देखा है’।
‘आप उसे देख भी नहीं सकते। ’
‘ तुम्हारा मतलब है वह चली गयी’?
‘ क्या आप नहीं जानते? आप जरूर बहुत समय से बाहर होंगे। बहुत साल पहले ही वह गुजर गयी। उसने ख़ुद को मार लिया। आपने इस बारे में नहीं सुना था?’
‘लेकिन क्या वह उसकी बहन नहीं थी –तुम्हारी दूसरी बहन?’
‘मेरी एक ही बहन थी –हमीदा –और वह मर गयी जब मैं बहुत छोटा था । यह एक पुरानी कहानी है, इस बारे में किसी और से पूछें’।
वह मुड़ा और तेज़ी से चला गया और मैं चुपचाप वहाँ खड़ा रह गया । मेर दिमाग सवालों से भरा हुआ था जिनके कोई उत्तर नहीं थे ।

उस रात तेज़ आँधी आई। मेरे शयनकक्ष की खिड़की हवा से टकराती तेज़ आवाजें कर रही थी । मैं उसे बंद करने उठा और बाहर झाँका । बिजली की चमक के साथ मैंने उस कृशकाय शरीर को दुबारा देखा , सिंदूर के पेड़ पर झूलता हुआ।
मैंने उसके चेहरे को देखने की कोशिश की लेकिन उसका सिर झुका हुआ था और बाल हवा में उड़ रहे थे ।
क्या वह एक सपना था?

यह कहना मुश्किल था । लेकिन मेरे हाथ में पड़ा पुखराज़ अंधेरे में चमक रहा था और जंगल से आती फुसफुसाहट कहती प्रतीत हो रही थी , यह समय नहीं जो बीत रहा है मेरे दोस्त । यह तुम और मैं है ….’

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