प्रेम (रूसी कहानी) : इवान तुर्गनेव

Prem (Russian Story) : Ivan Turgenev

शिकार से लौटते हुए मैं बगीचे के मध्य बने रास्ते पर चला जा रहा था, मेरा कुत्ता मुझसे आगे-आगे दौड़ा जा रहा था। अचानक उसने चौंककर अपने डग छोटे कर दिए और फिर दबे कदमों से चलने लगा, मानो उसने शिकार को सूँघ लिया हो। मैंने रास्ते के किनारे ध्यान से देखा। मेरी नजर गौरेया के उस बच्चे पर पड़ी जिसकी चोंच पीली और सिर रोंएदार था। तेज हवा बगीचे के पेड़ों को झकझोर रही थी। बच्चा घोंसले से बाहर गिर गया था। और अपने नन्हे अर्द्धविकसित पंखों को फड़फड़ाते हुए असहाय-सा पड़ा था।

कुत्ता धीरे-धीरे उसके नजदीक पहुँच गया था। तभी समीप के पेड़ से एक काली छाती वाली बूढ़ी गौरेया कुत्ते के थूथन के एकदम आगे किसी पत्थर की तरह आ गिरी और दयनीय एवं हदयस्पर्शी चीं…चीं..चूँ…चूँ…चें…चें… के साथ कुत्ते के चमकते दाँतों वाले खुले जबड़े की दिशा में फड़फड़ाने लगीं।

वह बच्चे को बचाने के लिए झपटी थी और अपने फड़फड़ाते पंखों से उसे ढक-सा लिया था। लेकिन उसकी नन्ही जान मारे डर के काँप रही थी, उसकी आवाज फट गई और स्वर बैठ गया था। उसने बच्चे की रक्षा के लिए खुद को मौत के मुँह में झोंक दिया था।

उसे कुत्ता कितना भयंकर जानवर नजर आया होगा! फिर भी यह गौरेया अपनी ऊँची सुरक्षित डाल पर बैठी न रह सकी। खुद को बचाए रखने की इच्छा से बड़ी ताकत ने उसे डाल से उतरने पर मजबूर कर दिया था। मेरा टेजर रुक गया, पीछे हट गया… जैसे उसने भी इस ताकत को महसूस कर लिया था।

मैंने कुत्ते को जल्दी से वापस बुलाया और सम्मानपूर्वक पीछे हट गया। नहीं, हँसिए नहीं। मुझमें उस नन्ही वीरांगना चिड़िया के प्रति, उसके प्रेम के आवेग के प्रति श्रद्धा ही उत्पन्न हुई।

मैंने सोचा, प्रेम मृत्यु और मृत्यु के डर से कहीं अधिक शक्तिशाली है। केवल प्रेम पर ही जीवन टिका हुआ है और आगे बढ़ रहा है।