Pariyan Aur Diwali (Hindi Pari Katha) Karamjit Singh Gathwala

परियाँ और दीवाली (परी कथा) : कर्मजीत सिंह गठवाला

आसमान के एक रंग-बिरंगे कोने में परियों का एक अद्भुत देश है । वहाँ हर जगह फूलों की खुशबू तैरती रहती है, बादल रुई के फाहों जैसे मुलायम लगते हैं और तारे रात में चाँदी की बूँदों की तरह चमकते हैं । यह जगह जादुई है—क्योंकि वहाँ सुन्दर परियाँ अपने पंख फैलाकर खेलती, गुनगुनाती और प्रकृति की रक्षा करती हैं ।

इसी जादुई देश में रहती थी एक छोटी सुनहरी परी। उसकी आँखें ओस की बूँदों जैसी चमकदार थीं और उसके पंख इंद्रधनुष के सातों रंगों से चमकते थे। सब उसे “सुनहरी” कहकर पुकारते थे।

एक दिन सुनहरी परी ने देखा कि धरती पर बहुत हलचल है। हर ओर लोग घर साफ़ कर रहे थे, रंग-बिरंगी लाइटें सजा रहे थे, मिठाइयाँ बना रहे थे और बच्चों के हाथों में चमचमाते दीपक थे। आसमान से यह नज़ारा किसी बड़े पर्व जैसा लग रहा था।

सुनहरी परी ने अपनी माँ, गुलाबी परी, से पूछा –

“माँ! धरती पर लोग इतने दीपक क्यों जला रहे हैं? वे इतना उल्लास क्यों मना रहे हैं? क्या आज कोई खास दिन है?”

गुलाबी परी, जो पूरे परी देश की सबसे बुद्धिमान परी मानी जाती थी, मुस्कुराई और बोली –

“हाँ बेटी, आज दीवाली है। यह एक महान त्योहार है, जिसे भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है।”

सुनहरी परी की जिज्ञासा और बढ़ गई। वह अपनी छोटी-सी छड़ी घुमाते हुए बोली –

“भगवान राम? अयोध्या? माँ, यह सब कौन हैं? और उनकी वापसी पर इतना बड़ा उत्सव क्यों?”

गुलाबी परी ने धीरे-धीरे कहानी सुनानी शुरू की –

* * * * *

“बहुत समय पहले धरती पर अयोध्या नाम का एक राज्य था। वहाँ राम नाम के एक महान और धर्मप्रिय राजकुमार रहते थे। वे मर्यादा, साहस और करुणा के प्रतीक थे। राम ने अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने पिता दशरथ के वचन को निभाने के लिए चौदह साल का वनवास स्वीकार किया।

वन में रहते हुए, राक्षसराज रावण ने माता सीता का हरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया। तब भगवान राम ने वानरों, भालुओं, पक्षियों और प्रकृति की सहायता से रावण का सामना किया। हनुमान जी ने पर्वत लाँघे, जामवंत ने बल दिया, नदियों ने मार्ग बनाया, समुद्र ने रास्ता दिया, और यहाँ तक कि पेड़-पौधों और वन्य पशु पक्षियों ने भी पुल बनाने में सहयोग किया। कहते हैं कि गिलहरी की पीठ पर पंजे का निशान उसी सहायता का प्रतीक है, जब गिलहरी सेतु बनाने में अपना सहयोग दे रही थी तो राम जी ने उसको स्नेह और करुणा से सहलाया तो उसकी पीठ पर यह निशान पड़ गया।

आख़िरकार राम ने रावण का वध किया और सीता माता को वापस लाए। जब वे चौदह साल बाद अयोध्या पहुँचे तो वहाँ के लोगों ने दीप जलाकर उनका भव्य स्वागत किया। पूरी अयोध्या दीपों से जगमगा उठी, मानो धरती पर तारों का सागर उतर आया हो। वही दिन था—दीवाली का।”

सुनहरी परी मंत्रमुग्ध होकर कहानी सुनती रही। फिर उसने धीरे से पूछा –

“माँ, क्या हम परियों ने भी सीता माता की मदद की थी? हमारा उनसे क्या रिश्ता है?”

गुलाबी परी ने अपनी बेटी को गोद में लिया और प्यार से बोली –

“बेटी, हम परियाँ प्रकृति की आत्माएँ हैं। हम फूलों में खुशबू भरती हैं, नदियों को मधुर कलकल कराती हैं, हवाओं में संगीत घोलती हैं। जब माता सीता वन में थीं, तब जंगल ने उन्हें छाया दी, नदियों ने उन्हें शीतलता दी, पक्षियों ने गीत गाकर उनका मन बहलाया। और चूँकि हम परियाँ प्रकृति के हर अंश में बसती हैं, इसलिए हम भी उनके साथ थीं।

हमारी आत्मा हमेशा अच्छाई और सत्य के साथ रहती है। माता सीता खुद धरती की बेटी हैं—वह प्रकृति का ही रूप हैं। इसलिए उनका रिश्ता हम परियों से माँ-बेटियों जैसा है। जब सीता दुखी थीं, तो हमारी आत्माएँ उनके दुख से काँप उठती थीं, और जब वे राम के संग लौटीं तो हम भी खुशी से झूम उठीं।”

सुनहरी परी की आँखें चमक उठीं। उसने उत्साह से कहा –

“तो माँ, अगर हम भी माता सीता की बेटियाँ हैं, तो क्या हम परियाँ भी दीवाली मनाती हैं?”

गुलाबी परी प्यार से हंसी । उसके हंसने से ऐसा लगता था जैसे फूलों की कलियां चटख रही हों, उसने मंद-मंद मुस्कराते हुए कहा –

“हाँ, बिल्कुल बेटी! जब धरती पर इंसान दीप जलाते हैं, तो परियाँ आसमान में तारों को और भी उज्ज्वल बना देती हैं। जब लोग पटाखे चलाते हैं, तब हम परियाँ फूलों की पंखुड़ियों से रंग-बिरंगे झरने बरसाती हैं। जब इंसान मिठाइयाँ खाते हैं, तब हम परियाँ अमृत की बूँदें फूलों पर टपकाती हैं ताकि उनकी खुशबू और मीठी हो जाए।

पेड़ अपने पत्तों से ताली बजाते हैं, पक्षी मीठे गीत गाते हैं, नदियाँ अपने कलकल स्वर में संगीत सुनाती हैं, पहाड़ गूँजते हैं, और पूरी प्रकृति राम और सीता की वापसी की खुशी में दीवाली मनाती है।”

सुनहरी परी अब बहुत खुश हो गई। उसने अपने नन्हे पंख फैलाए और बोली –

“वाह माँ! आज मैं भी तारों में और चमक भरूँगी और धरती के बच्चों को शुभ दीवाली कहूँगी !”

* * * * *

उस रात धरती पर दीपक झिलमिला रहे थे। हर घर सजाया गया था, हर आँगन में रंगोली बनी थी। बच्चों के हँसी-खेल की आवाज़ गूँज रही थी।

आसमान में, परियाँ भी दीवाली मना रही थीं। सुनहरी और उसकी सहेलियाँ आसमान से झाँक-झाँककर दीपों की कतारें देख रही थीं। उन्होंने तारा-मालाओं को और तेज़ चमका दिया। बादल फूलों की वर्षा करने लगे, और हवा में मीठी सुगंध तैर गई।

धरती और आकाश दोनों ही दीपों की रोशनी से जगमगा उठे। मानो इंसान और परियाँ मिलकर एक ही उत्सव मना रहे हों।

* * * * *

गुलाबी परी ने धीरे से सुनहरी से कहा –

“याद रखना बेटी, दीवाली सिर्फ दीप जलाने या मिठाई खाने का त्योहार नहीं है। यह त्योहार अच्छाई के अंधकार पर विजय का प्रतीक है। यह याद दिलाता है कि जहाँ सत्य और धर्म होते हैं, वहाँ सारी प्रकृति साथ देती है। चाहे परियाँ हों, पक्षी हों, नदियाँ हों या इंसान—सब मिलकर भगवान राम की इस विजय का उत्सव मनाते हैं।”

सुनहरी परी ने सिर हिलाया और मन ही मन संकल्प किया कि वह हमेशा अच्छाई और सत्य का साथ देगी।

और तभी दूर से अयोध्या की ओर देखते हुए उसे लगा जैसे दीपों की पंक्तियाँ आकाश तक पहुँच गई हों और परियों के तारों से मिल गई हों। सचमुच उस रात दीवाली सिर्फ अयोध्या की नहीं, बल्कि पूरी प्रकृति और परियों के देश की भी थी।

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