ऑथेलो (नाटक) : विलियम शेक्सपियर
Othello (English Play in Hindi) : William Shakespeare
तीसरा अंक : दृश्य - 1 : ऑथेलो (नाटक)
(दुर्ग के सामने)
(कैसियो तथा कुछ गायकों का प्रवेश; साथ में विदूषक हैं।)
कैसियो : उस्तादो! यहाँ गाइए! मैं आपके परिश्रम के लिए आपको संतुष्ट कर दूँगा। जनरल के स्वागत में एक छोटी-सी तान छेड़ दीजिए!
(संगीत)
विदूषक : वाह उस्तादो, क्या आपके बाजे नेपल्स होकर आए हैं कि वे नाक के सुर से अलाप रहे हैं?
एक संगीतज्ञ : कैसे जनाब?
विदूषक : क्या ये सब हवाई बाजे हैं?
एक संगीतज्ञ : मेरी की कसम, आप ही जो बताएँ?
विदूषक : अरे इसमें तो एक किस्सा है। यह लो उस्तादो! अपना इनाम! जनरल आपके संगीत से इतने खुश हो गए हैं कि मुहब्बत की खातिर वे चाहते हैं कि आप अब और शोरगुल न करें।
एक संगीतज्ञ : अच्छी बात है जनाब! हम चुप हैं।
विदूषक : अगर आपके पास कोई ऐसा संगीत हो जो सुनाई न दे तो उसे छेड़ दें! जनरल उस संगीत को पसन्द नहीं करते जो सुनाई दे जाता है।
एक संगीतज्ञ : माफ कीजिए! ऐसा कोई संगीत हमारे हुनर में नहीं।
विदूषक : तो अपने बाजे अपने थैलों में रखिए और हवा में गायब हो जाइए!
(संगीतज्ञों का प्रस्थान)
कैसियो : सुनते हो मेरे अच्छे दोस्त!
विदूषक : नहीं, मैं तुम्हारे अच्छे दोस्त को नहीं सुनता! मैं तुम्हें सुनता हूँ।
कैसियो : भई, यह चकल्लस बन्द करो। यह लो तुम्हारे लिए सोने का एक मामूली सिक्का है। अगर तुम्हें वह महिला जगी हुई मिले जो कि तुम्हारी स्वामिनी की सेवा में नियुक्त है, तो ज़रा जाकर उससे कह दो कि कैसियो नाम का एक आदमी तुमसे बात करने की प्रार्थना करता है। मेरे लिए यह काम कर दोगे?
विदूषक : ज़रूर! अगर वह जाग गई होगी, और इधर आएगी तो मैं कह दूँगा।
कैसियो : बहुत अच्छे हो तुम।
(विदूषक का प्रस्थान; इआगो का प्रवेश)
खूब समय से आए इआगो?
इआगो : तो क्या रात तुम सोए ही नहीं?
कैसियो : नहॉ। जब हम एक-दूसरे से अलग हुए थे तभी भोर हो गई थी। मैंने तुम्हारी पत्नी को बुलवाने का साहस किया है। मेरी इच्छा है कि वह किसी तरह मुझे दयालु डैसडेमोना के समीप पहुँचा दे।
इआगो : मैं अभी उसे तुम्हारे पास भेजता हूँ, और मैं ऐसी तरकीब भी निकालूँगा कि तब तक मूर बीच से अलग हो जाए जब तक तुम आज़ादी से अपनी बात कह सको।
कैसियो : मैं इसके लिए तुम्हारा बड़ा आभारी होऊँगा।
(इआगो का प्रस्थान)
मैंने कभी फ्लोरेंसवासी को इतना दयालु और ईमानदार नहीं देखा।
(इमीलिया का प्रवेश)
इमीलिया : नमस्कार लेफ्टिनेण्ट! मुझे तुम्हारे प्रति स्वामी के असंतोष की बात जानकर बहुत दुःख हुआ, परन्तु विश्वास रखो, मुझे आशा है सब ठीक ही होगा, जनरल और उनकी पत्नी इसी विषय पर बात-चीत कर रहे हैं और देवी तुम्हारी ओर से ज़ोर देकर कह रही हैं। किन्तु मूर का कहना है कि जिस व्यक्ति को तुमने घायल किया है वह साइप्रस का एक बड़ा प्रभावशाली और महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है और राजनीति के दृष्टिकोण से वे तुम्हें निकालने के अतिरिक्त और कुछ कर भी नहीं सकते थे। फिर भी उन्होंने तुम्हारे प्रति अपने प्रेम को स्वीकार किया है और तुम्हें तुम्हारे पद को पुन: प्राप्त कराने की चेष्टा में वे सबसे पहला अवसर प्राप्त करते ही अपनी पसन्द को ही सबसे अधिक स्थान देंगे, और किसी के सिफारिश करने की ज़रूरत ही क्या है।
कैसियो : फिर भी मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ अगर तुम बुरा न मानो तो, और हो सके तो मुझे डैसडेमोना से एकान्त में बातें करने का कुछ सुयोग अवश्य दोगी।
इमीलिया : आइए! भीतर आ जाएँ! मैं आपको ले चलती हूँ जहाँ आपको उनसे किसी तरह की रुकावट के बिना बातचीत करने का, अपनी बात कहने का काफी समय मिलेगा।
कैसियो : इसके लिए मैं सचमुच आपका बहुत आभारी होऊँगा।
(प्रस्थान)
तीसरा अंक : दृश्य - 2
(दुर्ग का एक प्रकोष्ठ)
(ऑथेलो, इआगो और अन्य नागरिकों का प्रवेश)
ऑथेलो : हरकारे को इन पत्रों को दे दो और उसके द्वारा सिनेट को मेरा अभिवादन भिजवा दो! इसके बाद मुझसे दुर्ग प्राचीर पर मिलना, मैं वहीं जा रहा हूँ।
इआगो : जो आज्ञा स्वामी! मैं अभी करता हूँ।
ऑथेलो : अच्छा महोदयो! क्या हम इस सुरक्षा-प्राचीर की ओर चलें?
नागरिक : हम श्रीमान की सेवा में साथ रहेंगे।
(प्रस्थान)
तीसरा अंक : दृश्य - 3
(दुर्ग का उद्यान)
(डैसडेमोना, कैसियो और इमीलिया का प्रवेश)
डैसडेमोना : विश्वास रखो कैसियो! मैं तुम्हारी ओर से जितना कुछ कह सकूँगी, अवश्य कहूँगी।
इमीलिया : यही करें देवी! इस विषय में मेरे पति भी बड़े दुःखी हुए हैं, ऐसे-जैसे यह आपत्ति उन्हीं पर पड़ी हो।
डैसडेमोना : निश्चय ही तुम्हारे पति बड़े ईमानदार हैं। इसमें सन्देह मत करो कि मैं तुम्हें अपने स्वामी के विश्वास और मैत्री का पात्र बनाने में कुछ उठा रखूँगी।
कैसियो : ओ दयालु देवी! मुझे चाहे जो कुछ हो जाए, मैं सदैव आपका वफादार और सच्चा सेवक बना रहूँगा।
डैसडेमोना : हाँ-हाँ, इसके लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देती हूँ। तुम अवश्य ही मेरे पति से परिचित हो। तुम बहुत दिनों तक उनके साथ रहे हो और मैं देखूँगी कि राजनीति की आवश्यकता से अधिक वे तुम्हारे प्रति उपेक्षा-भाव नहीं रखेंगे।
कैसियो : किन्तु राजनीति के मामले तो उन्हें न जाने कितने दिन मुझसे दूर रखेंगे; हो सकता है कि कुछ कल्पित और आधारहीन घटनाएँ बन जाएँ या आवश्यकता से अधिक तूल दिया जाए कि मेरी अनुपस्थिति में मेरी जगह ही भर जाए और जनरल अपने प्रति मेरे प्रेम और मेरी अतीत को सेवाओं को ही भूल जाएँ।
डैसडेमोना : इस विषय में ऐसी आशंकाएँ मत करो! इमीलिया के सामने मैं यह दृढ़ प्रतिज्ञा करती हूँ कि तुम्हें तुम्हारा पद पुन: प्राप्त होगा। यदि मैं मैत्री-भाव से वचन देती हूँ तो सदैव उसका अक्षरश: पालन भी करती हूँ। मैं अपने पति को चैन नहीं लेने दूँगी, मैं उन्हें सोने नहीं दूँगी, जब तक वे मान न जाएँ, और तब तक इस विषय पर बातें करूँगी जब तक वे स्वीकार ही न कर लें। शथ्या पर मैं उनसे एक शिक्षक के समान बातें करूँगी। भोजन के समय मैं उस स्थान को पश्चात्ताप की भूमि बना दूँगी। जो कुछ वे करते हैं हर जगह कैसियो का मामला घुल-मिल जाएगा। इसलिए चिन्ता छोड़ दो, क्योंकि तुम्हारी वकील मैं मर भले ही जाऊँ, लेकिन तुम्हारी बात को भूलूँगी नहीं।
(कुछ दूरी पर ऑथेलो और इआगो का प्रवेश)
इमीलिया : श्रीमती! स्वामी आ रहे हैं।
कैसियो : देवी! मुझे आज्ञा दें!
डैसडेमोना : क्यों? डरो न! तुम भी सुनो, मैं उनसे कहती हूँ।
कैसियो : देवी! इस समय नहीं। मैं बहुत परेशान हूँ। अपने कार्य को भी प्रस्तुत नहीं कर सकूँगा।
डैसडेमोना : अच्छी बात है, जैसा तुम चाहो।
(कैसियो का प्रस्थान)
इआगो : हूँ! मुझे यह पसन्द नहीं।
ऑथेलो : क्या कहते हो?
इआगो : कुछ नहीं स्वामी, अथवा यदि... मैं नहीं जानता क्या है यह सब!
ऑथेलो : क्या वह जो मेरी पत्नी के पास से गया है, कैसियो ही नहीं था?
इआगो : कैसियो! स्वामी! नहीं, हाँ पता नहीं, समझ में नहीं आता, वह क्यों ऐसे अपराधी की भाँति चुपचाप सरक जाता...आपको आते देखकर?
ऑथेलो : मेरे ख्याल से वही था...
डैसडेमोना : आइए स्वामी! मैं अभी एक प्रार्थी से बात कर रही थी, एक आदमी आपकी नाराजगी से बहुत ही दुःखी हो गया है।
ऑथेलो : तुम्हारा मतलब किससे है?
डैसडेमोना : क्यों? आपका लेफ्टिनेण्ट कैसियो था। मेरे प्रिय स्वामी! यदि मुझमें आपको प्रभावित करने की कुछ भी शक्ति है तो उसकी इस वेदना को देखकर उसका समर्पण स्वीकार करिए, क्योंकि यदि वह आपको सच्चे हृदय से प्यार करनेवाला नहीं है, जिसने अज्ञान से भूल की है, चालाकी से नहीं, तो मैं भी किसी चेहरे को देखकर उसकी ईमानदारी को नहीं पहचानती। मैं विनय करती हूँ, आप उसे फिर बुला लें।
ऑथेलो : क्या वही यहाँ से अभी-अभी गया था?
डैसडेमोना : हाँ, वही था और वह इतना दुःखी और लज्जित था कि उसके दुःख को मैंने भी अनुभव किया है। स्वामी, उसे फिर बुला लें।
ऑथेलो : अभी नहीं, प्रिये डैसडेमोना! फिर कभी!
डैसडेमोना : किन्तु शीघ्र ही न?
ऑथेलो : प्रिये! जितनी शीघ्रता से हो सके उतनी ही। तुम्हारे लिए निश्चय!
डैसडेमोना : आज रात भोजन के समय?
ऑथेलो : नहीं, आज रात नहीं।
डैसडेमोना : तो कल भोजन के समय?
ऑथेलो : मैं घर खाना नहीं खाऊँगा। मुझे दुर्ग में कप्तानों के साथ खाना है।
डैसडेमोना : तो फिर कल रात, या मंगलवार की सुबह सही, या मंगल की दुपहर या रात, या बुध की दुपहर। मैं प्रार्थना करती हूँ, समय बता दीजिए। लेकिन तीन दिन से ज़्यादा न कहें। सच कहती हूँ, वह वास्तव में बड़ा पश्चात्ताप कर रहा है। आमतौर पर देखने में आपकी नज़र में उसकी नशेबाज़ी का कसूर, सिवाय इसके कि युद्धकाल में अच्छे से अच्छे आदमी को भी मिसाल पेश करने के लिए सज़ा देनी ही चाहिए, ऐसा कोई कसूर भी नहीं है कि उसे आपकी ओर से इतनी कड़ी सजा मिले। बताइए? वह कब आए? ऑथेलो! सच कहिए! मुझे ताज्जुब होता है कि क्या ऐसी भी कोई बात है जो आप मुझसे करने को कहें और मैं ऐसे ही उसके उत्तर में अनिश्चित-सी रह जाऊँ? वही माइकिल कैसियो, जो आपकी ओर से कितनी ही बार प्रेम सन्देशे पहुँचाने आया था, मैंने अनेक बार जब आपके बारे में ऐसी बातें कीं, जैसे मैं आपको महत्त्व न देती होऊँ, वही आपकी ओर से बोलता था। सच, मुझे बड़ा अचरज होता है यह सोच-सोचकर कि आज मुझे उसी व्यक्ति को फिर से उसका पद दिलाने के लिए इतना अनुनय करना पड़ रहा है। सच कहती हूँ, इतना तो मैं ही आसानी से कर सकती थी।
ऑथेलो : मैं कहता हूँ बस करो! जब वह चाहे उसे बुला लो! मैंने तो तुमसे कुछ भी इंकार नहीं किया।
डैसडेमोना : यह मैं तुमसे ऐसी कोई बहुत बड़ी चीज़ तो नहीं माँग रही? यह तो ऐसे ही समझो जैसे मैं तुमसे तुम्हारे दस्ताने पहन लेने की प्रार्थना कर रही होऊँ, या कहूँ कि अच्छा भोजन करिए, सर्दी में कपड़े पहनिए, या कहूँ कि इसमें आपका लाभ है, इसे अवश्य करिए! नहीं! जब मैं आपसे कुछ विशेष प्रार्थना करूँगी जिसमें मैं आपके प्रेम की परीक्षा करूँगी, तो वह सचमुच कोई बहुत बड़ी बात होगी और शायद स्वीकार करते हुए आपको भय भी होगा।
ऑथेलो : मैं तुम्हें कुछ भी मना नहीं करूँगा। अब तनिक मुझे कुछ समय के लिए एकान्त में रहने दो!
डैसडेमोना : मैं कब मना करती हूँ। मैं जाती हूँ स्वामी!
ऑथेलो : जा रही हो डैसडेमोना! मैं बस सीधा तुम्हारे पास ही आता हूँ।
डैसडेमोना : चलो इमीलिया (पति से ) आप जैसा ठीक समझें करें! मैं तो सदैव आपका ही अनुसरण करूँगी।
(डैसडेमोना और इमीलिया का प्रस्थान)
ऑथेलो : आह, कितनी प्यारी है! भले ही मेरी आत्मा का नाश हो जाए, किन्तु मैं तुझसे प्रेम करता हूँ और जब मैं तुझसे प्रेम करना छोड़ दूगा, संसार में प्रलय आ जाएगी।
इआगो : मेरे वीर स्वामी...
ऑथेलो : क्या कहते हो इआगो?
इआगो : क्या जब आप श्रीमती से विवाह से पूर्व प्रेम कर रहे थे, माइकिल कैसियो सब कुछ जानता था?
ऑथेलो : शुरू से आखिर तक...सब जानता था...क्यों क्या बात है?
इआगो : नहीं, अपने एक विचार को संपुष्ट करने के लिए; और कोई बात नहीं थी।
ऑथेलो : ऐसा कौन-सा विचार था इआगो?
इआगो : मैं समझता था तब वह उन्हें नहीं जानता था।
ऑथेलो : अरे, वह तो हम दोनों के बीच अक्सर सन्देश लाता-लिवाता था।
इआगो : सचमुच!
ऑथेलो : बिल्कुल! उसमें तुम क्या देखते हो? क्या वह ईमानदार नहीं है?
इआगो : ईमानदार! स्वामी?
ऑथेलो : ईमानदार! हाँ, ईमानदार!
इआगो : स्वामी! यदि मैं कुछ जानता!
ऑथेलो : क्यों, तुम क्या सोचते हो?
इआगो : स्वामी! सोचता हूँ!
ऑथेलो : (स्वगत) स्वामी! सोचता हूँ!! ईश्वर देखे, यह तो मेरे ही शब्दों को दुहरा रहा है, जैसे इसके मस्तिष्क में कोई भयानक विचार है, इतना भयानक कि प्रकट नहीं किया जा सकता। तुम्हारा कुछ मतलब अवश्य है। (प्रकट) मैंने अभी तुम्हें यह कहते सुना था कि तुम इसे पसन्द नहीं करते। जब कैसियो मेरी पत्नी के पास से गया था तब तुम्हें क्या पसन्द नहीं आया था? और जब मैंने कहा कि मेरे सारे प्रेम-परिणय-काल में वह मेरा विश्वासपात्र था तब तुम बड़बड़ा उठे। सचमुच! जब तुमने यह शब्द कहा था तब तुम्हारी भौहें ऐसी संकुचित हो गई थीं जैसे तुम अपने मस्तिष्क में कोई भयानक विचार छिपाने का प्रयत्न कर रहे थे। यदि तुम्हें मेरे प्रति कुछ स्नेह है तो मुझसे अपने विचार प्रकट कर दो!
इआगो : स्वामी! जानते हैं मैं आपसे प्रेम करता हूँ?
ऑथेलो : मैं जानता हूँ तुम करते हो! मैं जानता हूँ तुम ईमानदार, वफादार और प्रेमी हो और बोलने के पहले सोच लेते हो, और इसीलिए तुम्हारी यह झिझक मुझे और भी ज़्यादा डरा रही है। किसी भी बदमाश और धोखेबाज़, झूठे आदमी में यह मामूली चालबाज़ियाँ मानी जातीं, किन्तु एक ईमानदार आदमी में यही मन की गहराई में उतरी हुई हिचकिचाहट जो भावना की चपेट में बाहर निकलती, दूसरा ही साक्ष्य प्रस्तुत करती है।
इआगो : मैं माइकल कैसियो के लिए तो कसम खाकर कह सकता हूँ कि वह ईमानदार है।
ऑथेलो : मैं भी यही सोचता हूँ।
इआगो : आदमी को वही होना चाहिए जो कि वह दिखाई दे। यदि वे ऐसे नहीं दिखाई देते तो अवश्य ही वे मानवता को धोखा दे सकते हैं।
ऑथेलो : अवश्य ही मनुष्य को वही होना चाहिए जो वे दिखाई दें।
इआगो : तब तो कैसियो को भी ईमानदार होना चाहिए क्योंकि वह दिखाई तो ऐसा ही देता है।
ऑथेलो : नहीं-नहीं, तुम्हारा मतलब इससे कुछ ज़्यादा ही है। बताओ! मुझसे सब मन की बात कहो, अपने हृदय की भीतरी बात मुझसे कहो, साफ-साफ, कुछ भी छिपाना नहीं, चाहे कैसी बुरी क्यों न हो।
इआगो : मेरे श्रेष्ठ स्वामी, मुझे क्षमा करें! मैं हर प्रकार से आपकी सेवा करने को कर्तव्य के नाते बँधा हुआ हूँ, किन्तु जो दास तक नहीं करते, हृदय के वे आन्तरिक भाव प्रकट करने को बाध्य नहीं हूँ। यही मान लीजिए कि मेरे भाव गन्दे हैं, कुटिल हैं, बुरे हैं, झूठ हैं और विशाल और महान से महान मस्तिष्क में भी कुटिल विचार घुस सकते हैं। ऐसा कौन-सा मस्तिष्क है जिसमें कभी भी कुविचारों ने अपना राज्य नहीं किया, भले ही वह साधारण रूप में कैसा भी चिन्तन क्यों न करें?
ऑथेलो : इसका मतलब यह कि तुम मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र कर रहे हो, और मेरे खास दोस्त होकर! अगर तुम समझते हो कि मेरे साथ इतनी ही बुराई की गई है, तो भी मुझसे तुम इतना रहस्य बनाए हुए हो?
इआगो : हो सकता है मैं अपने विचार में गलत होऊँ। मैं जानता हूँ कि मेरी प्रकृति में बुराई देखने की प्रवृत्ति अधिक है और बहुधा मेरी ईर्ष्या मुझे ऐसी कमियाँ देखने की ओर झुकाती है जो वास्तव में होती भी नहीं। फिर भी मैं अनुनय करता हूँ कि आपकी बुद्धिमत्ता एक ऐसे व्यक्ति पर ध्यान नहीं देगी, जो कि अपने बिखरे हुए अनिश्चित वाक्यों से आपको कष्ट दे रहा है और स्वयं अधकचरे चिन्तन में ही पड़ा रहता है। अत: यह आपकी मानसिक शान्ति के लिए ठीक नहीं है, न आपके भले के लिए ही है, न मेरे पौरुष के लिए आत्मविश्वास और बुद्धि के लिए ही उचित है कि आप मेरे आन्तरिक भावों की जानकारी प्राप्त करें।
ऑथेलो : तुम्हारा क्या मतलब है?
इआगो : अच्छा काम निस्संदेह प्रत्येक के लिए बहुमूल्य कोष होता है। जो मेरे धन के बटुए को चुराता है वह तो साधारण मूल्य की वस्तु चुराता है, मामूली चीज़ है वह तो! पहले मेरी थी, फिर उसकी हो गई। धन तो हज़ारों के प्रयोगों में आता हैं। लेकिन जो मेरे अच्छे नाम को चुराता है वह तो मुझे ऐसी चीज़ से लूट लेता है जिससे उसका कुछ बनता नहीं, लेकिन मैं तो कहीं का नहीं रहता।
ऑथेलो : ईश्वर की सौगन्ध! मुझे अपने विचार बताओ न!
इआगो : यदि मेरा हृदय आपके सामने खुला रखा रहे तब भी आप पता नहीं चला सकते। तब तक, जब तक मेरा हृदय मेरे वक्ष में है उसके भावों का पता चलाना असम्भव ही है।
ऑथेलो : उफ़!
इआगो : आह मेरे प्रभु! हरी आँखोंवाली राक्षसी ईर्ष्या से सावधान रहिए। यह उस व्यक्ति का उपहास करती है जो अपने मस्तिष्क को इसके सामने समर्पित कर देता है। यह उसकी वेदनाग्रस्त भावनाओं से निर्मम क्रीड़ा करती है। सन्देह से निरन्तर वह उसको छलती रहती है। जो व्यक्ति जानता है कि उसे उसकी ऐसी पत्नी ने अपमानित, अनादृत किया है, जिसकी वह तनिक भी चिन्ता नहीं करता, वह अवश्य उस व्यक्ति की तुलना में सुखी है जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता है, किन्तु फिर भी उसपर सन्देह करता है और फिर उसे अत्यन्त चाहता है।
ऑथेलो : आह अभिशाप!
इआगो : सन्तोषमय दारिद्र्य भी धन है, अनंत धन भी शीत-ऋतु की भाँति दारिद्र्य है यदि सदैव यह भय बना रहे कि कहीं यह धन चला न जाए। हे परमेश्वर! मानव-मात्र की ईर्ष्या से रक्षा करो।
ऑथेलो : क्यों, ऐसा क्यों है? क्या तुम समझते हो कि चन्द्रमा की बढ़ती कलाओं के परिवर्धित रूप जैसे ईर्ष्या के परिवर्धित स्वरूप को देखते-देखते ही मेरा जीवन भी व्यतीत होगा? नहीं! एक बार सन्देह में पड़ना अनिश्चय से मुक्ति प्राप्त करने के समान है। मुझे तुम पशु समझना यदि मैं तुम्हारे विचित्र काल्पनिक विचारों को गाम्भीर्य से प्रश्रय दूँ। मुझे इसमें ईर्ष्या नहीं होती कि मेरी पत्नी सुन्दरी है, अच्छा भोजन करने की शौकीन है, समाज में मिलती-जुलती है, खूब बातें करती है, गाती है, खेलती है, नाचती है। जब स्त्री पतिव्रता होती है यह सब बातें तो उसकी अच्छाइयों में चार चाँद लगाती हैं; न मैं यही सोचता हूँ कि मुझमें बहुत कम गुण हैं, इसीलिए वह मेरे प्रति ईमानदार नहीं रहेगी। उसने अपनी आँखें खोलकर मुझे अपने प्रेमी के रूप में चुना था। नहीं इआगो! सन्देह करने से पूर्व मैं देखूँगा और सन्देह करूँगा तो प्रमाण चाहूँगा और प्रमाण मिलते ही प्रेम या ईर्ष्या को सदा के लिए विदा कर दूँगा।
इआगो : मुझे यह सुनकर प्रसन्नता होती है, क्योंकि अब मुझे आपको स्पष्टतया अपना प्रेम और कर्तव्य दिखाने का सुयोग मिलेगा। अत: अपने प्रति प्रेम के रूप में सुनिए! अभी मुझे इसका प्रमाण नहीं मिला है। मैं केवल यही इशारा करता हूँ कि आप अपनी पत्नी पर दृष्टि रखें और जब वह कैसियो के साथ हो उसे ध्यान से देखें। ऐसा व्यवहार करिए जैसे न आप ईर्ष्यालु हैं, न ऐसे रहें कि कुछ भी होता रहे, हमें क्या परवाह। उसे देखिए, किन्तु उसे न जानने दीजिए कि आप क्या कर रहे हैं। मैं यह स्वीकार नहीं करूँगा कि आपका महान और पवित्र तथा कुलीन स्वभाव किसी प्रकार भी प्रताड़ित हो जाए। मैं अपने देश की स्त्रियों के स्वभाव को जानता हूँ। वेनिस में तो वे परमात्मा से भी उन चालबाज़ियों को नहीं छिपातीं जिन्हें अपने पति को कभी मालूम भी नहीं होने देतीं। उनका सबसे बड़ा ध्येय पाप से बचे रहना नहीं, बल्कि यह होता है कि कहीं पकड़ी न जाएँ।
ऑथेलो : यह तुम कहते हो?
इआगो : उसने अपने पिता को धोखा देकर आपसे विवाह किया। और जब वह आपके रंग से, आपके रूप से डरती हुई दिखाई दी उस समय उसने आपसे अत्यन्त प्रेम किया।
ऑथेलो : सच! वह यही करती थी।
इआगो : तो क्या आप इसका स्वाभाविक अन्त भी नहीं निकाल सकते? इतनी कम उम्र में तो उसने अपने पिता की आँखों में धूल झोंक दी कि वह अन्त तक इसे जादू ही समझता रहा। मैं क्या करूँ, आपके प्रति मेरा स्नेह सब कहलवाए दे रहा है!
ऑथेलो : मैं सदा-सदा के लिए तुम्हारा आभारी रहूँगा।
इआगो : मुझे लगता है कि मेरी बात ने आपको गड़बड़ में डाल दिया है।
ऑथेलो : बिलकुल नहीं, रत्ती-भर भी नहीं।
इआगो : मुझे डर है कि असर हो गया है। मुझे आशा है कि जो भी मैंने कहा है उसे आप मेरे प्रेम का ही परिणाम समझेंगे। आप विचलित हो गए हैं। नहीं-नहीं, आप मेरी बात पर इतना ध्यान न दें, इतनी गम्भीरता से न लें उसे। यह तो केवल सन्देह है। इन्हें किसी प्रकार से तथ्य समझकर ऐसा महत्त्व न दें।
ऑथेलो : हाँ! मैं ऐसा नहीं कर रहा।
इआगो : प्रभु, यदि आप ऐसा करेंगे तो मेरी जीभ से निकली बातों का इतना बुरा परिणाम निकलेगा कि जिसकी मैंने आशा भी नहीं की थी। कैसियो मेरा सम्माननीय, योग्य और प्रिय मित्र है। मेरे स्वामी! आप पर न जाने क्या प्रभाव पड़ गया है!
ऑथेलो : नहीं, मुझपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मैं तो डैसडेमोना को अच्छी और ईमानदार के अतिरिक्त और कुछ नहीं मानता।
इआगो : वह ऐसी सदैव रहें! और आप भी सदैव यही सोचते रहें!
ऑथेलो : और फिर भी मैं सोचता हूँ कि प्रकृति अपने स्वाभाविक पथ को छोड़कर किस प्रकार...
इआगो : हाँ, यही तो असली बात है। अब स्पष्ट कह दूँ। अपनी स्वाभाविक सहज प्रकृति छोड़ सकी वह कि उसने अपनी ही जाति, देश और वर्ण के, उन समस्त गुणों से युक्त जिनके प्रति कि उसका आकर्षण था-कुलीन पुरुषों का त्याग कर दिया। धिक्कार है! और यही एक अत्यन्त अप्राकृतिक, अनहोनी-सी अस्वाभाविक बात दिखाई देती है। किन्तु क्षमा करें, मेरा कथन तो एक सर्वसाधारण के लिए है और डैसडेमोना के प्रति केन्द्रित नहीं है। यद्यपि मुझे आशंका है कि उसका रुख, अपनी बुद्धि में स्थिरता पाने पर बदला, और उसने अपने देशवासियों से आपकी तुलना की और सम्भवत: इस विवाह पर खेद हुआ, पश्चात्ताप ही हुआ।
ऑथेलो : विदा! विदा! अगर कुछ और देखो तो मुझे बताना। अपनी स्त्री से कहना कि हर बात को गौर से देखती रहे। अब मुझे छोड़ जाओ।
इआगो : मेरे स्वामी, मुझे आज्ञा दें।
(प्रस्थान)
ऑथेलो : आह! मैंने विवाह ही क्यों किया! यह ईमानदार आदमी और भी, निश्चय से, बहुत कुछ जानता है, जो यह बतलाता नहीं।
इआगो : (लौटकर) स्वामी! मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप इस विषय को यहीं रोक दें और खोजबीन न करें! अभी रुकें और देखें कि क्या-क्या होता है? इसमें शक नहीं कि कैसियो को उसका पद फिर देना चाहिए क्योंकि वह उसके योग्य है, फिर भी कुछ दिन के लिए अभी इस नियुक्ति का साधन नहीं समझता। आप इस पर भी ध्यान दें कि कहीं डैसडेमोना कैसियो की नियुक्ति के लिए बहुत ज़्यादा ज़ोर तो नहीं देती। इसी से सारा मामला स्पष्ट हो जाएगा। इस दौरान में मुझे डर है और मुझे डरने के कारण भी है, क्योंकि जहाँ तक मैं समझता हूँ, यह सब व्यर्थ का सन्देह ही प्रमाणित होगा। डैसडेमोना पवित्र हैं। यही मेरी प्रार्थना है।
ऑथेलो : तुम इस बात से मत डरो कि मैं आत्मसंयम खो बैठूँगा।
इआगो : तब मैं चलूँ!
(प्रस्थान)
ऑथेलो : यह व्यक्ति बहुत ही ईमानदार और मनुष्य-चरित्र की गहराइयों को जानता है। यदि मैं उसे दुश्चरित्र पाता हूँ तो निश्चय ही उससे सम्बन्ध-विच्छेद कर लूँगा और यद्यपि इसमें मेरा हृदय विदीर्ण हो जाएगा, मैं उसे जीवन के क्षेत्र में जुटने के लिए अकेला छोड़ दूँगा। सम्भवत: मैं कला ही नहीं, वे गुण भी नहीं जानता जिनसे ये सुन्दरियाँ प्रभावित होती हैं, और फिर मेरी उम्र भी तो ढलान पर आ गई है। पर फिर भी ये सब मामूली बातें हैं। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं तो उसे खो ही चुका हूँ। मुझे धोखा दिया गया है और मुझे तो उससे घृणा करके ही सान्त्वना मिल सकती हैं। मैं एक मेंढक बनकर अन्धेरे और गन्दगी में रहना पसन्द करूँगा, न कि ऐसी स्त्री के साथ जो अन्यों से प्रेम करती है। और यह बड़े लोगों के साथ कितना बड़ा अभिशाप है कि छोटे लोगों की भाँति वे पीड़ा और दुःखों से मुक्त नहीं रहते। यह भाग्य तो भृत्यों की भाँति अवश्यम्भावी हैं; मेरी स्त्री परपुरुष से प्रेम करे! यह लो! वह फिर आ रही है।
(डैसडेमोना और इमीलिया का प्रवेश)
यदि यह विश्वासघातिनी है तब ईश्वर ने नारी को अपनी आकृति में निर्माण करके अपना अपमान ही किया है। मैं इस पर विश्वास नहीं करता।
डैसडेमोना : ऑथेलो! तुम्हारे आमन्त्रित कुलीन द्वीपवासी प्रतीक्षा कर रहे हैं। भोजन तैयार है।
ऑथेलो : उफ़! मुझसे भूल हो गई।
डैसडेमोना : कैसी बात कर रहे हो? क्या तबीयत ठीक नहीं है?
ऑथेलो : मेरे सिर में दर्द हो रहा है।
डैसडेमोना : जागने के कारण ही हुआ है। अभी ठीक हो जाएगा। लाओ, मैं तुम्हारे सिर पर कपड़ा कसकर बाँध दूँ, घण्टे-भर में चला जाएगा।
ऑथेलो : नहीं, तुम्हारा रूमाल तो बहुत छोटा है।
(ऑथेलो रूमाल को हटाता है। रूमाल गिर जाता है।)
रहने दो! मैं चलता हूँ तुम्हारे साथ।
डैसडेमोना : हाय! तुम्हारी तबीयत को न जाने क्या हो गया!
(ऑथेलो और डैसडेमोना का प्रस्थान)
इमीलिया : मुझे इसी का हर्ष है कि मुझे यह रूमाल मिल गया। डैसडेमोना को यह ऑथेलो का पहला प्रेमोपहार है। मेरे पति ने बहुधा मुझसे इसे चुराने को कहा था, किन्तु वह इसे इतना प्रेम करती है कि कभी नहीं छोड़ती। ऑथेलो ने भी तो उसे इसे ठीक से रखने को कह रखा है। तभी तो वह इसे इतना सहेजे रहती है कि कभी इसे चूमती है, कभी इससे बातें करती है। मैं इसके रंग-रूप की नकल करवा लूँगी और इआगो को दे दूँगी। पता नहीं वह इसका क्या करेंगे। जो हो, वे खुश होंगे, मैं तो इसीलिए यह काम कर रही हूँ।
(इआगो का प्रवेश)
इआगो :. क्यों? यहाँ अकेली क्या कर रही हो?
इमीलिया : अब मत डाँटना! मेरे पास तुम्हारे लिए एक चीज़ है।
इआगो : मेरे लिए एक चीज़? होगी कोई ऐसी-वैसी...
इमीलिया : हाय!
इआगो : कैसी मूर्ख पत्नी है?
इमीलिया : बस यही! लो, इस रूमाल के बदले में मुझे क्या दोगे?
इआगो : कैसा रूमाल?
इमीलिया : कैसा रूमाल! वही जो ऑथेलो ने डैसडेमोना को पहले-पहल दिया था, वही जो तुम मुझसे अक्सर चुरा. लेने को कहते थे।
इआगो : क्या तुमने उसे चुरा लिया है?
इमीलिया : नहीं, उससे अनजाने ही यह गिर गया था और किस्मत से क्योंकि मैं वहाँ थी, मैंने इसे उठा लिया। यह देखो, यह रहा?
इआगो : शाबाश! लाओ, मुझे दो!
इमीलिया : तुम इसका क्या करोगे कि मुझसे बार-बार इसको लाने के लिए कहा करते थे?
इआगो : (छीनकर) तुम्हें उस सबसे क्या?
इमीलिया : यदि तुम्हारे लिए इसका कोई विशेष महत्त्व नहीं है तो मुझे लौटा दो! अगर उसे नहीं मिलेगा तो सचमुच पागल हो जाएगी।
इआगो : यह न कहना कि तुम्हें इसके बारे में कुछ भी पता है। मुझे इससे बहुत काम है। तुम जाओ, मुझे सोचने दो!
(इमीलिया का प्रस्थान)
मैं इस रूमाल को कसक के निवास-स्थान पर छोड़ आऊँगा और उसे यह मिलेगा। ईर्ष्यालु प्रकृति के लोगों के लिए बहुत ही साधारण बातें भी शास्त्रों की भाँति प्रमाण बन जाती हैं। इस रूमाल का गहरा प्रभाव पड़ सकता है। मेरे विषैले तर्कों से ऑथेलो फुँक ही रहा है। भयानक विचार तो वास्तव में विष की भाँति ही होते हैं। पहले तो पता नहीं चलता कि उनमें क्या भयानकता है किन्तु कुछ ही समय के बाद जब वे रक्त पर अपना प्रभाव डालते हैं तब गन्धक की भाँति सुलग उठते हैं। यह लो! वह आ ही रहा है।
(ऑथेलो का प्रवेश)
इआगो : कोई भी निद्रा के वशीभूत करनेवाली औषधि, कोई भी विस्मृत करनेवाली वस्तु अब मुझे कलवाली नींद वापस नहीं देगी।
ऑथेलो : कितना विश्वासघात! कितना धोखा!
इआगो : क्या है सेनानायक! सदा ही अपने विचार में उसी बात को क्यों रखते हो?
ऑथेलो : चले जाओ! तुम्हींने मुझे इस यातना में डाला है। धोखा खाते रहना उसकी जान लेने की तुलना में कहीं अधिक अच्छा है।
इआगो : क्यों स्वामी! क्या हुआ?
ऑथेलो : मुझे क्या पता चलता कि वह गुप्त रूप से अपनी वासना को कैसे शान्त करती है? न मैं कभी ऐसी बात को स्वप्न में भी सोच सकता था। मेरी तो इससे कोई हानि नहीं होती! मुझे अच्छी नींद आती, मैं प्रसन्न और मस्त रहता। मैंने तो कैसियो को उसका चुंबन लेते नहीं देखा था! यदि लुटनेवाले को पता ही न चले कि वह लुट रहा है, तो उसका न जानना ही अच्छा है और इस तरह वह लुटता ही नहीं।
इआगो : मुझे यह सुनकर वेदना होती है।
ऑथेलो : किन्तु अब सदा के लिए मेरी शान्ति चली गई है। चला गया है सन्तोष! वे सेनाएँ, वे महायुद्ध जो महत्त्वाकाँक्षा को अच्छाई में बदलते हैं, सब मेरे लिए विदा हो गए हैं। वे हिनहिनाते अश्व, तुरही की तीखी ध्वनि, प्रतिध्वनित भेरी-निनाद और कर्णभेदी वाद्यस्वर, राजसी पताका और युद्ध के वैभव और आवेश, सब मेरे लिए अपरिचित हो गए हैं। ओ भीषण तोप! तू जो अपने कर्कश कण्ठ से अमर प्रेम का भीषण गर्जन करती थी। विदा! ऑथेलो अब योद्धा नहीं रहा!
इआगो : स्वामी, क्या यह सम्भव है?
ऑथेलो : ओ धूर्त! पहले तुझे प्रमाण देना होगा कि मेरी स्त्री सचमुच विश्वासघातिनी है। मुझे पक्का प्रमाण चाहिए! वरना मैं कसम से कहता हूँ कि तेरे लिए कुत्ता होना बेहतर होता बनिस्बत इसके कि तू मेरे एक बार भड़ककर उठ खड़े होने वाले गुस्से का नतीजा झेले!
इआगो : क्या बात यहाँ तक पहुँच गई?
ऑथेलो : या तो मुझे दिखा या मुझे प्रमाण दे कि फिर शक की कोई गुन्जाइश नहीं रहे, अन्यथा देख! तेरा जीवन ही उत्तर देगा।
इआगो : मेरे वीर स्वामी!
ऑथेलो : यदि तू उसके पातिव्रत पर लाँछन लगाता है और मुझे पीड़ित करता है, तो यह न समझ कि तू दण्डहीन ही रह जाएगा। यदि तेरा अभियोग असत्य है तो तू भले ही भयानक से भयानक काम कर कि आकाश कांप उठे और धरती आश्चर्य से भर जाए, किन्तु इससे बढ़कर पाप तू संसार में नहीं कर सकता कि उसके नाम पर कलंक लगाए।
इआगो : हे भगवान! मुझे क्षमा कर! क्या आपमें न्यायशीलता नहीं, या सत्-असत्-विवेक नहीं रहा! ईश्वर आपकी सहायता करे! मुझे नौकरी से छुट्टी दें! (स्वयं से) ओ मूर्ख! ईमानदारी, प्रेम और स्वामिभक्ति से प्रेरित होकर तू क्या कर बैठा कि आज तेरे गुण ही पाप बन गए। ओ दुरित संसार! देख! ईमानदारी और सच्चाई में कितनी हानि है। आपने मुझे यह शिक्षा दी है, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। अब मैं कोई मित्र ही नहीं बनाऊँगा क्योंकि प्रेम ही इतनी हानि का कारण बनता है।
(जाने को होता है)
ऑथेलो : नहीं, जाओ मत। तुम्हें ईमानदार होना चाहिए!
इआगो : नहीं, मुझे बुद्धिमान होना चाहिए क्योंकि ईमानदारी ही बेवकूफी है वह जिसके कार्य करती है उसी को खो देती है।
ऑथेलो : जो भी हो, मैं अभी तक अपनी पत्नी को ईमानदार समझता हूँ और फिर भी मुझे सन्देह होता है। मुझे लगता है तुम ठीक हो, परन्तु लगता है नहीं ऐसा नहीं है। मुझे प्रमाण तो मिलना चाहिए। पवित्र चन्द्रमा के समान उसका उज्ज्वल मुख मेरे मुख की भाँति ही काला हो गया है। यदि संसार में प्रतिहिंसा को पूर्ण करने का कोई साधन है तो वह दण्डहीना नहीं रहेगी। किन्तु मैं अनिश्चय से मुक्त होना चाहता हूँ।
इआगो : मुझे लगता है स्वामी! आपको आवेश ने दबा लिया है। मुझे दुःख है कि मैंने आपको इस ओर से सचेत ही क्यों किया। किन्तु क्या आप सचमुच इस विषय में सन्तुष्ट होना चाहते हैं?
ऑथेलो : निश्चय!
इआगो : किन्तु स्वामी! मैं आपको कैसे संतुष्ट करूँ? यह तो असम्भव है। आप देखिए न! न वे बकरों की भाँति मुखर हैं, न बन्दरों की भाँति चपल, न भेड़ियों की भाँति ही कि मैं उन्हें दिखा देता। किन्तु यदि अभियोग और घटनात्मक साक्ष्य ही अहम् हैं, जिनसे सत्य का द्वार खुलता है और उन्हीं से आपको सन्तोष हो जाए तो मैं प्रस्तुत हूँ।
ऑथेलो : मुझे इसका पक्का प्रमाण दो कि वह विश्वासघातिनी है।
इआगो : मैं यह काम पसन्द नहीं करता, किन्तु क्योंकि मैं इस विषय में इतना फँस गया हूँ और वह भी प्रेम और ईमानदारी के कारण, तो अब यही सही। मैं अभी कुछ दिन हुए कैसियो के निकट सोया था और दाढ़ के दर्द के कारण नींद नहीं आ पाई थी। बहुत-से लोग इतने संयमहीन होते हैं कि वे सोते में बड़बड़ाते हैं और अपनी भीतरी बात कह जाते हैं। ऐसा ही कैसियो भी है। मैंने उसे स्वप्न में कहते सुना-प्रिये डैसडेमोना! हमें चौकस रहना चाहिए और अपने इस प्रेम को छिपाए रखना चाहिए।-और श्रीमान! उसके बाद उसने नींद में ही मेरा हाथ पकड़कर दबाया और बोला : आह सुन्दरी! और तब उसने ऐसे चुम्बनों की झड़ी लगा दी और साथ ही बोला...ओ दुर्भाग्य! तूने इसे उस मूर के पल्ले बाँध दिया!
ऑथेलो : भयानक! विकराल!
इआगो : किन्तु यह तो एक स्वप्न-मात्र था!
ऑथेलो : किन्तु कोई ऐसी घटना अवश्य हुई होगी! यदि यह स्वप्न-मात्र ही है तो भी इससे पाप का कितना सन्देह होता है!
इआगो : यह तों स्वप्न ही है, किन्तु है तो सन्देहजनक। जहाँ प्रमाण नहीं है वहाँ यही तो सहायक होता है।
ऑथेलो : मैं उस स्त्री के टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा।
इआगो : नहीं, बुद्धि से काम लीजिए! हमने अभी उसे कुछ भी बुरा करते नहीं देखा। हो सकता है वह सच्चरित्र ही हो। किन्तु यह बताएँ, क्या अपनी पत्नी के हाथ में कभी-कभी एक ऐसा रूमाल नहीं देखा है जिस पर रंगों से स्ट्रॉबेरी फलों की तस्वीरें-सी बनी हैं?
ऑथेलो : वही तो उसको मैंने प्रथम प्रेमोपहार के रूप में दिया था।
इआगो : मुझे पता नहीं था, किन्तु मैं निश्चय से कह सकता हूँ कि मैंने कैसियो को उससे अपनी दाढ़ी पोंछते देखा था।
ऑथेलो : यदि यह सत्य है...
इआगो : वही रूमाल था या कोई और, अगर वह डैसडेमोना का ही है तो वह उसके विरुद्ध एक प्रमाण ही है।
ऑथेलो : काश, उस गुलाम कैसियो की 40,000 ज़िन्दगियाँ होतीं! एक ज़िन्दगी से मेरे बदले की आग कैसे ठण्डी हो सकेगी? अब मुझे पूरी बात का विश्वास हुआ। देखो इआगो! अब मैं अपने सारे प्रेम को विलीन किए देता हूँ। अब वह लुप्त हो रहा है और उसका स्थान नरक से निकली हुई काले रंग की प्रतिहिंसा ले रही है। अरे प्रेम! मेरे हृदय के सिंहासन से उतरकर गहरी घृणा को स्थान दे दे! विषाक्त विचारों के भार से ओ मेरे वक्ष! भर जा! फल उठ! सर्प की सी विषैली जिह्वा! लपलपा उठ!
इआगो : शान्त रहें!
ऑथेलो : रक्त चाहिए इआगो! मुझे लहू चाहिए!!
इआगो : शान्त भी रहिए! सम्भव है आपका विचार बदल जाए।
ऑथेलो : नहीं इआगो! कभी नहीं। जिस प्रकार काले सागर की बर्फीली धारा कोई भाटा नहीं जानती और निरन्तर मारमरा समुद्र और डाडनिलीज़ की ओर बहती चली जाती है, इसी प्रकार मेरे खूनी विचार भी विकराल गति से पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे और न उन्हें कभी प्रेम का भाटा ही कम करेगा, जब तक कि उचित महान प्रतिहिंसा ही उन्हें निगल नहीं लेगी। आकाश के ज्वलंत पिण्डों की शपथ! (झुककर) मैं एक पवित्र प्रतिज्ञा के लिए उचित शपथ ग्रहण करता हूँ कि मैं अपने वचनों को अन्त तक निभाऊँगा।
इआगो : अभी मत उठो, क्योंकि मैं भी आपके साथ ही शपथ ग्रहण करूँगा। (झुककर) ओ आकाश के ज्वलंत पिण्डो! ओ सर्वव्यापी तत्त्वो! साक्षी बनो कि मैं अपने सारे विवेक और शारीरिक शक्ति से इस ऑथेलो की सेवा करूँगा जिसके साथ अन्याय हुआ है। वह मुझे आज्ञा दे और कैसा भी भयानक खूनी ही काम क्यों न हो, उसकी आज्ञा का पालन करना ही मेरी न्याय की ओर खड़ी होने वाली चेतना का पर्याय बने।
(दोनों खड़े होते हैं।)
ऑथेलो : तुमने मेरे साथ प्रतिज्ञा की है, मैं केवल धन्यवाद ही नहीं देता किन्तु भविष्य में इसका उचित पुरस्कार भी दूँगा। अभी से कार्य प्रारम्भ करो! तीन दिन में सूचना दो कि कैसियो जीवित नहीं रहा।
इआगो : यद्यपि कैसियो मेरा मित्र है, फिर भी आपके लिए मैं यह भी करने को तैयार हूँ। किन्तु डैसडेमोना को जीवित रहने दें!
ऑथेलो : मरने दो उसे, तुम जाओ! मुझे सोचने दो कि किस आसान तरीके से मैं इस खूबसूरत शैतान को खत्म कर सकूँ। आइन्दा तुम मेरे लेफ्टिनेण्ट हो।
इआगो : मैं तो सदा ही आपका हूँ।
(प्रस्थान)
तीसरा अंक : दृश्य - 4
(दुर्ग के सामने)
(डैसडेमोना, इमीलिया और विदूषक का प्रवेश)
डैसडेमोना : क्यों जी, तुम्हें पता है कि कैसियो कहाँ है? ( यहाँ मूल में स्पमे शब्द का प्रयोग हुआ है। स्पमे के दो अर्थ हैं- कहाँ पड़ा है अर्थात् कहाँ है और दूसरा अर्थ है- कहाँ झूठ बोल रहा है। डैसडेमोना स्पमे का अर्थ लेती है-कहाँ है और विदूषक अर्थ लेता है-कहाँ झूठ बोल रहा है। उससे हास्य उत्पन्न होता है। यह कोई उच्चकोटि का हास्य नहीं है। किन्तु हमें याद रखना चाहिए कि शेक्सपियर के नाटक खेले जाते थे और दर्शकों में सभी दर्जे के लोग आते थे। उन्हें भी उसे सन्तुष्ट करना पड़ता था। अनुवाद में हम हिन्दी में ऐसा शब्द नहीं ढूँढ़ सके जिसका स्पमे का सा प्रयोग हो सके और दोनों अर्थ एकसाथ निकल सकें, इसलिए हमने परिर्वतन किया है।)
विदूषक : क्या जाने कहाँ है?
डैसडेमोना : क्यों?
विदूषक : वह एक योद्धा है और लड़ाकू का गलत पता देना मानो मौत को बुलाना है।
डैसडेमोना : चलो हटो! कहाँ रहता है वह!
विदूषक : इसे बताने का अर्थ है मैं झूठ बोलूँ!
डैसडेमोना : इसका मतलब?
विदूषक : मैं नहीं जानता वह कहाँ रहता है, और गलत बता दूँ तो वह झूठ ही है।
डैसडेमोना : तुम उसके बारे में पूछताछ कर पता चला सकते हो?
विदूषक : मैं उसके लिए सारे जहान से सवाल कर सकता हूँ और इस तरीके के सवालों से आपको जवाब देने लायक बन सकता हूँ।
डैसडेमोना : तो उसकी तलाश करो! उसे यहाँ आने की आज्ञा दो! उससे कहना, मैंने उसकी बात अपने स्वामी तक पहुँचा दी है और आशा करती हूँ सब ठीक होगा।
विदूषक : यह काम तो इंसान की अक्ल के दायरे के भीतर का ही है और इसलिए मैं इसे करने की कोशिश कर सकता हूँ।
(प्रस्थान)
डैसडेमोना : न जाने मेरा रूमाल कहाँ खो गया, इमीलिया?
इमीलिया : मैं नहीं जानती देवी!
डैसडेमोना : मुहरों से भरा मेरा बटुआ खो जाता, तो भी सच कहती हूँ मुझे इतना अफसोस न होता जितना उसके खो जाने से हुआ है। किन्तु मेरे पति वीर और उदात्त भावनाओं से ओतप्रोत हैं। उनमें क्षुद्र ईर्ष्या नहीं है। अन्यथा उनमें संदेह और ईर्ष्या जगाने को तो यही बहुत है।
इमीलिया : क्या वे ईर्ष्यालु नहीं?
डैसडेमोना : कौन? वे? मैं समझती हूँ जहाँ उनका जन्म हुआ था, प्रचण्ड सूर्य ने ऐसे विकारों का पहले ही शोषण कर लिया था!
इमीलिया : लीजिए, वे आ रहे हैं।
डैसडेमोना : मैं अब उन्हें तब तक नहीं छोडूँगी, जब तक वे कैसियो को नहीं बुला लेते।
(ऑथेलो का प्रवेश)
प्रणाम स्वामी! आनन्द तो है?
ऑथेलो : आह देवी! (स्वगत) ढोंग करना कितना कठिन है। (प्रकट) कैसी हो डैसडेमोना! अच्छी तो हो!
डैसडेमोना : मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ मेरे दयालु स्वामी!
ऑथेलो : मुझे अपना हाथ दो प्रिये! अरे! यह इतना पसीजा हुआ क्यों है?
डैसडेमोना : इसे न दीर्घ आयु ने छुआ है, न किसी दुर्भाग्य ने ही।
ऑथेलो : तुम्हारे हाथ का पसीजापन बताता है कि तुम्हारा हृदय भी बहुत शीघ्र द्रवित हो जाता है। कितना गर्म है। पसीजा हुआ। यह हाथ बताता है कि तुम्हें एकान्त में व्रत, उपवास, तप और भक्तिपूर्ण अन्य कार्यों में समय बिताना चाहिए, क्योंकि मुझे इसमें एक ऐसी तरुण वासनामय आत्मा की झलक मिल रही है जो शीघ्र ही लोभ के वशीभूत होकर जाल में फँस सकती है। सचमुच कितना दयालु और स्निग्ध हृदय है।
डैसडेमोना : अब जो चाहे कह लीजिए, पर यह वही हाथ है जिसने मेरा हृदय आपको दिया था।
ऑथेलो : कैसा दयालु हाथ है! पहले समय में जब हाथ मिलते थे तब हृदय भी मिल जाते थे, किन्तु आजकल के विवाहों में हृदय नहीं मिलते, केवल हाथ ही मिलते हैं।
डैसडेमोना : मैं इस विषय में क्या कह सकती हूँ। चलिए भी! आपको अपना वचन तो याद है?
ऑथेलो : कौन-सा वचन प्रियतमे!
डैसडेमोना : मैंने आपसे बातें करने कैसियो को बुलवाया है।
ऑथेलो : मेरी आँख दुःख रही है। बड़ी तकलीफ है। तनिक पोंछने को अपना रूमाल तो देना।
डैसडेमोना : यह लो स्वामी!
ऑथेलो : वह जो मैंने दिया था तुम्हें।
डैसडेमोना : वह तो मेरे पास नहीं रहा।
ऑथेलो : नहीं है?
डैसडेमोना : हाँ स्वामी! नहीं है।
ऑथेलो : यह तो एक अपराध है। वह रूमाल मेरी माता को एक मिस्री स्त्री ने दिया था जोकि जादूगर थी और मनुष्य की आन्तरिक भावनाओं को पढ़ लेती थी। उस स्त्री ने मेरी माता से कहा था कि जब तक वह उसे अपने पास रखेगी, वह आकर्षक बनी रहेगी और मेरे पिता को अपने वश में ऐसे कर लेगी कि वह उसे सदैव प्रेम करेगा। किंतु यदि वह उसे खो देगी या किसी और को भेंट दे देगी तो मेरा पिता उससे घृणा करने लगेगा और प्रेम और वासना की परितृप्ति के लिए और ही आधार ढूँढ़ने लगेगा। मरते समय माँ ने इसे मुझे दिया था और कहा था कि जब कभी भी मैं विवाह करूँ इसे अपनी स्त्री को भेंट दूँ। यही मैंने किया और इसीलिए तुम उसे अपनी आँखों का तारा समझकर प्यार करो। वह खो जाएगा तो तुम्हारी हानि होगी और ऐसी कि कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकेगा।
डैसडेमोना : क्या ऐसा हो सकता है?
ऑथेलो : यह बिलकुल सत्य है। वह एक जादुई रूमाल है। एक ऐसी पैगम्बर थी जिसने सूर्य के दो सौ भ्रमण देखे थे (अथात् 200 बरस की थी)। उसने तो उसे सिया था और वह भी कब? तब जबकि उसपर ईश्वरीय आवेश छाया था। हाल-सा आया हुआ था। वे कीड़े जिन्होंने इसका रेशम उगला था वे भी पवित्र थे। और गंधादि द्रव्य लगाकर सुरक्षित किए हुए शवों-कुमारियों के शवों-के हृदय-प्रदेश में भिगोकर इसे रंगा गया था।
डैसडेमोना : क्या यह सब सच है?
ऑथेलो : बिलकुल! तभी कहता हूँ उसके बारे में सदैव ध्यान रखना!
डैसडेमोना : अच्छा होता, ऐसा रूमाल मुझे मिलता ही नहीं।
ऑथेलो : हैं? क्या कहती हो?
डैसडेमोना : इतने ज़ोर से और डाँटकर क्यों बोल रहे हो?
ऑथेलो : वह खो गया! वह नहीं है? बोलो! क्या वैसे ही इधर-उधर हो गया है।
डैसडेमोना : भगवान रक्षा करें।
ऑथेलो : यह क्या कहा?
डैसडेमोना : खोया तो नहीं है, लेकिन खो जाए तो?
ऑथेलो : कैसे? कहाँ?
डैसडेमोना : मैं कहती हूँ खोया नहीं।
ऑथेलो : तो लाओ! मुझे ला के दिखाओ!
डैसडेमोना : दिखा दूँगी, पर इस वक़्त नहीं। मैं जानती हूँ यह मेरी प्रार्थना को टालने की तरकीब है। मैं अनुभव करती हूँ कैसियो को फिर बुला लिया जाए।
ऑथेलो : पहले रूमाल लाओ। मेरे दिमाग में शक पैदा हो रहे हैं।
डैसडेमोना : हाँ, हाँ! ठीक है! मैं कहती हूँ तुम्हें कैसियो से अधिक उपयुक्त कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा।
ऑथेलो : रूमाल!
डैसडेमोना : मैं कहती हूँ कैसियो की बात करो न!
ऑथेलो : रूमाल!
डैसडेमोना : वह व्यक्ति जो सदैव तुम्हारे प्रेम पर निर्भर रहा और जिसने तुम्हारे साथ विपत्तियों का सामना किया...
ऑथेलो : रूमाल!
डैसडेमोना : सचमुच! दोषी तुम्हीं हो!
ऑथेलो : लानत है!
(प्रस्थान)
इमीलिया : क्या वे ईर्ष्यालु नहीं हैं?
डैसडेमोना : ऐसा तो मैंने कभी नहीं देखा! निश्चय ही रूमाल में कुछ अद्भुत बात अवश्य है। मुझे उसके खो जाने का अत्यन्त खेद है।
इमीलिया : एक-दो बरस में मनुष्य की असली प्रकृति का परिचय नहीं हो जाता। सारे पुरुष पेट हैं और सारी स्त्रियाँ भोजन हैं। वे बड़ी भूख से हमें खाते हैं और जब पेट भर जाता है तब हमें छोड़ देते हैं। वह लो! मेरे पति और कैसियो आ रहे हैं।
(कैसियो और इआगो का प्रवेश)
इआगो : और कोई तरीका नहीं है। बस ये ही कर सकती हैं। लो तुम्हारा सौभाग्य! जाओ प्रार्थना करो!
डैसडेमोना : कैसे हो वीर कैसियो! क्या समाचार है?
कैसियो : देवी! मेरी वही प्रार्थना है। मैं अनुनय करता हूँ कि आपकी सशक्त सहायता से मैं फिर स्वामी का प्रेम और विश्वास प्राप्त कर सकूँ। मैं उनका हृदय से सम्मान करता हूँ। मैं तो बुरे से बुरे परिणाम को भी शीघ्र जानना चाहता हूँ। यदि मेरा अपराध इतना बड़ा है कि न मेरी अतीत की सेवाएँ काम आती हैं, न वर्तमान का दुर्भाग्य ही, न भविष्य में मर्यादा से रहने की मेरी प्रतिज्ञा ही, न मेरा पश्चात्ताप ही मुझे उनके प्रेम का पात्र फिर से बना सकता है, तो कम से कम इतना अधिकार तो मैं चाहता ही हूँ कि इस विषय में जो भी हो वह तो मुझे बता दिया जाए! उससे यह तो होगा कि मैं सन्तुष्ट हो जाऊँगा और परिस्थितियों के सामने समर्पण कर दूँगा, चाहे भाग्य ने मेरे लिए कैसी भी भिक्षा क्यों न आयोजित कर रखी हो!
डैसडेमोना : हाय वीर कैसियो! मैंने स्वामी से प्रार्थना की, किन्तु उन पर प्रभाव नहीं पड़ा। वे वैसे नहीं हें जैसे पहले थे। यदि अपनी बदलती प्रकृति के अनुरूप ही उनकी आकृति में भी परिवर्तन आ गया होता तो मैं उन्हें पहचान भी नहीं पाती। तुम्हारी ओर से मैं जो कुछ कह सकती थी वह सब कह चुकी हूँ और बार-बार कहने से वे क्रुद्ध ही हुए हैं। इसलिए तुम्हें कुछ दिन धैर्य से काम लेना चाहिए। जो कुछ कर सकती हूँ अवश्य करूँगी। तुम्हारे लिए इतना करूँगी जितना अपने लिए भी नहीं करती। बस अब यही समझ लो!
इआगो : क्या स्वामी आज अत्यन्त क्रुद्ध हैं?
इमीलिया : वे यहाँ से बहुत ही अस्त-व्यस्त-से असन्तुष्ट-से गए हैं।
इआगो : क्या वे भी कभी अपने ऊपर से अधिकार खो सकते हैं! मैं उनके निकट खड़ा रहा हूँ और उनके समीप ही तोपों के गोले सेना पर बरसते रहे हैं, उन्होंने अपने भाई पर भी गोला चलाया है, किन्तु फिर भी मैंने उन्हें विचलित नहीं देखा। वे सदैव स्थिर चेतस थे। उनके इतने क्रुद्ध होने का कोई कारण अवश्य रहा होगा। मैं जाता हूँ उनके पास!
डैसडेमोना : मैं कहती हूँ ज़रूर जाओ!
(इआगो का प्रस्थान)
अवश्य ही राज्य-सम्बन्धी कोई बात है। या तो वेनिस से कोई सँवाद आया है या कोई गुप्त षड्यन्त्र है जो हाल में ही साइप्रस में पकड़ा गया है जिसने उनके दृढ़ चित्त को विचलित कर दिया है। महत्त्वपूर्ण घटनाओं से विचलित बुद्धि होकर मनुष्य साधारण विषयों में झगड़ पड़ते हैं, जो किसी अन्य अवसर पर उन्हें क्रुद्ध नहीं कर पाते। उनपर तो वास्तव में उन्हें असली क्रोध होता भी नहीं। देखो न! हमारी छोटी उंगली में भी दर्द होता है तो सारे शरीर को वेदना की अनुभूति होने लगती है। नहीं! हमें मनुष्यों को अतिमानव नहीं समझना चाहिए, न उनसे ऐसे व्यवहार की आशा ही करनी चाहिए जैसा कि दूल्हा दुल्हन से करता है। मुझे ही दण्ड मिलना चाहिए। इमीलिया! मैं ही उनको अनावश्यक रूप से उत्तेजित करने वाली हूँ क्योंकि मैं उन्हें कठोर कह रही हूँ, किन्तु अब मैं देखती हूँ मैंने उन पर अनजाने ही मिथ्या दोषारोपण किया है और वे निर्दोष हैं।
इमीलिया : ईश्वर से प्रार्थना करो कि किसी राज्य-विषयक बात से ही वे ऐसे हैं, न कि तुमपर ईर्ष्या या सन्देह के कारण।
डैसडेमोना : कैसा बुरा दिन है! मैंने तो उन्हें कभी भी कुद्ध नहीं किया।
मीलिया : किन्तु ईर्ष्यालु व्यक्ति तो ऐसे उत्तर से सन्तुष्ट नहीं होते। वे किसी विशेष कारण से तो ईर्ष्या करते नहीं, वे तो ऐसे होते ही हैं क्योंकि होते ही वे ईर्ष्यालु हैं। ईर्ष्या एक राक्षसी है, जो स्वयं-जात और स्वयं को खाकर ही जीवित रहती है।
डैसडेमोना : ईश्वर ऑथेलो के मस्तिष्क को इसके प्रवाह से बचाए रखें!
इमीलिया : ऐसा ही हो।
डैसडेमोना : मैं उन्हें देखती हूँ। कैसियो! तुम इधर-उधर घूम लो! यदि मैं उन्हें ठीक पाऊँगी तो फिर तुम्हारी बात चलाऊँगी और जहाँ तक मुझसे हो सकेगा तुम्हारे लिए प्रयत्न करूँगी।
कैसियो : मैं हृदय से आपका आभार स्वीकार करता हूँ देवी!
(डैसडेमोना और इमीलिया का प्रस्थान)
(बियान्का का प्रवेश)
बियान्का : अरे! मेरे दोस्त! कैसियो!
कैसियो : तुम घर से दूर क्या कर रही हो? मेरी प्रिये! सुन्दरी बियान्का! अच्छी तो हो! सच प्रिये! मैं तो तुम्हारे ही घर आ रहा था!
बियान्का : और मैं तुम्हारे निवासस्थान की ओर जा रही थी कैसियो! हफ्ते-भर से तुम नहीं आए। सात दिन, सात रातें! उफ़, कितना समय निकाल दिया तुमने? और प्रेमियों के घण्टे! घड़ियाल में नहीं बजते ये घण्टे, हृदय में बजते हैं। गिनते-गिनते थक गई।
कैसियो : क्षमा करो बियान्का, मुझे मुसीबतों ने परेशान कर दिया है। यह जो मेरी लम्बी गैरहाज़िरी रही है इसका मुआवज़ा मैं किसी ऐसे वक़्त ज़रूर चुका दूँगा जिसमें मुझे ज़रा और आज़ादी होगी। प्रिय बियान्का! तब तक मेरे लिए तुम इस रूमाल की नकल काढ़ देना।
(डैसडेमोना का रूमाल देता है।)
बियान्का : अरे! यह तुम्हें कहाँ मिला कैसियो! यह बात है! तब तो तुम्हारी अनुपस्थिति का कारण है! किसी नई मित्र से उपहार लेने में लगे रहते हो! यह बात है! समझ गई।
कैसियो : क्या फिजूल की बातें करती हो! जिस शैतान ने तुम्हारे मुँह में ऐसे विचार रखे हैं उन्हें उसीपर उगल दो! शायद तुम्हें इसकी जलन है कि इसे मुझे किसी प्रेमिका ने भेंट कर दिया है कि यह यादगार बनी रहे। नहीं बियान्का! ऐसी बात नहीं है।
बियान्का : तो बताओ फिर? यह है किसका?
कैसियो : मैं नहीं जानता प्रिये! मुझे अपने कमरे में पड़ा मिला। इसके ऊपर अच्छी कढ़ाई है। इससे पहले कि इसकी मालकिन इसे वापस माँग बैठै, मैं चाहता हूँ मेरे पास इसकी एक नकल रह जाए। यह तुम कर दो न! और इसी समय चली जाओ।
बियान्का : क्यों, तुम अकेले रहोगे?
कैसियो : मैं यहाँ जनरल की सेवा में हूँ और न मेरे लिए यह ठीक ही है, न फायदेमन्द ही कि एक औरत के साथ देखा जाऊँ।
बियान्का : क्यों, उसमें क्या बात है?
कैसियो : तुम यह न समझो कि मैं तुम्हें नहीं चाहता।
बियान्का : पर तुम मेरी परवाह नहीं करते। यह भी नहीं कि दस कदम मुझे पहुँचा ही देते! बताओ न, आज रात को आओगे?
कैसियो : मैं बस थोड़ी दूर ही चल सकता हूँ क्योंकि मुझे फिर जनरल की सेवा में उपस्थित रहना है। मैं शीघ्र ही तुमसे निश्चय मिलूँगा।
बियान्का : अच्छी बात है! मुझे भी परिस्थिति के अनुसार ही चलना होगा।
(प्रस्थान)
चौथा अंक : दृश्य - 1 : ऑथेलो (नाटक)
(साइप्रस-दुर्ग के सामने)
(ऑथेलो और इआगो का प्रवेश)
इआगो : क्या सचमुच आप यही सोचते हैं?
ऑथेलो : सोचता हूँ इआगो!
इआगो : क्या एकान्त में चुम्बन करना-मात्र?
ऑथेलो : किन्तु अनधिकृत चुम्बन।
इआगो : या मित्र के साथ शय्या पर नग्न होकर घण्टे भर या ज़्यादा रहना...उसमें हानि नहीं?
ऑथेलो : नग्न सहशयन, इआगो? और उसमें भी हानि नहीं! यह तो शैतान के सामने भी ढोंग करने के समान है। जो ऐसा भलमनसाहत के लिए भी करते हैं,. शैतान उनकी शराफत को ललचाता है, और वे दैव को ललकारते हैं।
इआगो : तब वे कुछ नहीं करते, यह तो मामूली बात हुई, किन्तु यदि मैं अपनी स्त्री को एक रूमाल दूँ...
ऑथेलो : क्या कहा?
इआगो : क्यों श्रीमान्! वह तो उसी का हो गया और जब उसका ही है तो वह फिर जिसे चाहे उसी को दे दे...
ऑथेलो : वह स्वयं अपने सम्मान और पतिव्रत की भी तो रक्षिका है। वह अपने सम्मान के साथ भी ऐसी ढिलाई दिखा सकती है!
इआगो : उसका सम्मान एक भावना-मात्र है जिसे देखा नहीं जा सकता। बहुधा ऐसे भी होते हैं जिनका वास्तव में कोई सम्मान नहीं होता, परन्तु लोग उनके विषय में कुछ और ही सोचा करते हैं। लेकिन जहाँ तक उस रूमाल की बात है...
ऑथेलो : हे भगवान! कितना अच्छा होता कि मैं उसे भूल जाता! तुमने फिर याद दिला दी मुझे और वह मँडराती हुई मुझपर छा गई जैसे कोई गिद्ध रोगों से भरे किसी दुःखी घर पर सबकी मृत्यु की सूचना देता हुआ मँडराने लगता है।