ऑथेलो (नाटक) : विलियम शेक्सपियर
Othello (English Play in Hindi) : William Shakespeare
‘ऑथेलो’ एक दुःखान्त नाटक है। शेक्सपियर ने इसे सन् 1601 से 1608 के बीच लिखा था। यह समय शेक्सपियर के नाट्य-साहित्य के निर्माण-काल में तीसरा काल माना जाता है जबकि उसके अपने प्रसिद्ध दुःखान्त नाटक लिखे थे। इस काल के नाटक प्रायः निराशा से भरे हैं।
‘ऑथेलो’ की कथा सम्भवतः शेक्सपियर से पहले भी प्रचलित थी। दरबारी नाटक-मण्डली ने राजा जेम्स प्रथम के समय में पहली नवम्बर 1604 ई. को सभा में ‘वेनिस का मूर’ नामक नाटक खेला था। शेक्सपियर ने भी ‘ऑथेलो’ नाटक का दूसरा नाम-‘वेनिस का मूर’ ही रखा है। सम्भवतः यह शेक्सपियर का ही नाटक रहा हो। कथा का मूल स्रोत सम्भवतः 1566 ई. में प्रकाशित जिराल्डी चिन्थियो की ‘हिकैतोमिथी’ पुस्तक से लिखा गया है। अंग्रेज़ी साहित्य में इस कथा का शेक्सपियर के अतिरिक्त कहीं विवरण प्राप्त नहीं होता। शेक्सपियर की कथा और चिन्थिओ की कथा में काफी अन्तर है।
इस कथा में मेरी राय में खलनायक इआगो का चित्रण इतना सबल है कि देखते ही बनता है। प्रायः प्रत्येक पात्र अपना सजीव चित्र छोड़ जाता है। विश्व साहित्य में ‘ऑथेलो’ एक महान रचना है क्योंकि इसके प्रत्येक पृष्ठ में मानव-जीवन की उन गहराइयों का वर्णन मिलता है, जो सदैव स्मृति पर खिंचकर रह जाती हैं।
मैंने अपने अनुवाद को जहाँ तक हुआ है सहज बनाने की चेष्ठा की है। कुछ बातें हमें याद रखनी चाहिए कि शेक्सपियर के समय में स्त्रियों का अभिनय लड़के करते थे। दूसरे, उसके समय में नाटकों में पर्दों का प्रयोग नहीं होता था, दर्शकों को काफी कल्पना करनी पड़ती थी। इन बातों के बावजूद शेक्सपियर की कलम का जादू सिर पर चढ़कर बोलता है। यदि आपको इस नाटक में कोई कमी लगे तो उसे शेक्सपियर पर न मढ़कर मेरे अनुवाद पर मढ़िए, मैं आभारी होऊँगा।
- रांगेय राघव
पात्र-परिचय : ऑथेलो (नाटक)
ब्रैबेन्शियो : डैसडेमोना का पिता
कैसियो : एक सम्मानित सैन्य-पदाधिकारी (लेफ्टिनेण्ट)
इआगो : खलनायक : सेना में ‘ऐन्शेण्ट’ पद पर है
रोडरिगो : वेनिस का एक नागरिक, डैसडेमोना का प्रेमी
ड्यूक : वेनिस का शासक
मोनटानो : साइप्रस का राज्यपाल
लोडोविको : वेनिस के सम्भ्रान्त नागरिक
ग्रेशियानो : ब्रैबेन्शियो के सम्बन्धी
विदूषक : ऑथेलो का सेवक
डैसडेमोना : ब्रैबेन्शियो की पुत्री, ऑथेलो की पत्नी
इमीलिया : इआगो की स्त्री
बियान्का : कैसियो की रखैल
साइप्रस के नागरिक, दूत, सम्वादवाहक, अफसर, जहाज़ी लोग (माँझी), गायक तथा सेवकगण, सिनेट (विधान-परिषद) के सदस्य इत्यादि
* मूर-उत्तरी अफ्रीका के निवासी का एक वंशज जो ईसाई है और इटली का वासी है। यह रंग का काला है क्योंकि उसमें हब्शी जाति का-सा रंग बाकी है, वैसी ही आकृति है। एक समय मध्यकाल में मूर बड़े महत्त्वपूर्ण होते थे।
पहला अंक : दृश्य - 1 : ऑथेलो (नाटक)
(वेनिस की एक गली)
(रोडरिगो और इआगो का प्रवेश)
रोडरिगो : क्या बात करते हो! मुझसे बहाने और चाल और भी तुम करोगे इआगो! इसकी तो मुझे आशा ही न थी। मेरे धन के बटुए की तनियों को तो तुमने सदैव अपना समझकर खोला, बन्द किया है और तब भी सब कुछ जान-बूझकर तुमने मुझसे दुराव किया?
इआगो : भगवान की सौंगन्ध, कुछ मेरी भी सुनोगे या अपनी-अपनी कहे जाओगे? मुझे तो सपने में भी इसका गुमान नहीं था! अगर जानकर छिपाता तब तो तुम्हारी घृणा भी उचित होती!
रोडरिगो : तुम नहीं कहते थे कि तुम्हें उससे घृणा थी?
इआगो : यदि मैं उससे घृणा न करता होऊँ तो तुम मुझसे घृणा करो! वेनिस नगर के तीन-तीन सम्भ्रान्त नागरिक व्यक्तिगत रूप से उसके पास गए कि वह मुझे अपना लेफ्टिनेण्ट बनाए, मेरे ही लिए उन्होंने उससे सविनय प्रार्थना की! और क्या मैं अपना मूल्य नहीं जानता कि किसी भी परिस्थिति में मैं उस पद के लिए बिल्कुल योग्य था? किन्तु उसके अहं को ठेस लग गई। वह तो स्वार्थी ठहरा। उसने फौजी काम की बारीकियों के बारे में वह बड़ी-बड़ी बातें कीं, वे उलझनें पेश कीं कि सुनने योग्य थीं! उसने उनसे साफ इंकार कर दिया। नतीजा यह निकला? मेरी सिफारिश करनेवालों को उसने बताया कि उक्त पद के लिए अफसर का चुनाव तो पहले ही कर चुका था। और किसका नाम बताया उसने, जानते हो? फ्लोरेन्स का माइकिल कैसियो, एक महान गणितज्ञ ( व्यंग्य में कहता है, वैसे वह उसे आधे मुनीम से अधिक नहीं समझता। ) का, शायद उसे एक सुन्दर स्त्री ने बर्बाद भी कर दिया है। ( इसका अर्थ वैसे स्पष्ट नहीं है। कुछ लोगों का मत यों है-शायद अब वह एक सुन्दर स्त्री के चक्कर में पड़नेवाला है, जो उसे बरबाद कर देगी। एक और मत है-अब वह सुन्दर स्त्री को पत्नी बनाएगा, तो वह अवश्य ही उसे खोखला करके बरबाद कर डालेगी। ) कभी उसने युद्धभूमि में सेना का संचालन नहीं किया, सिवाय इसके कि उसे किताबी जानकारी हो, शायद एक अनुभवहीन अविवाहित स्त्री से अधिक युद्ध के विषय में वह कुछ नहीं जानता। उसका सारा सैनिकत्व अभ्यासहीन वितण्डा-मात्र है। और उस आदमी को किसकी जगह चुना गया है, जानते हो? मेरी जगह; मैं, जिसकी योग्यता को रोहड्स और साइप्रस ही नहीं, अनेक ईसाई तथा विधर्मी भूमियों में हज़ारों आँखो ने देखा है। मैं तो इस पर हैरान हूँ कि मेरी जगह लेने वाला व्यक्ति सिर्फ बही-खाते लिखने के योग्य है। वह मुनीम उसका लेफ्टिनेण्ट बने और मूर महाराज का पुराना सेवक मैं एक अनुचर मात्र बना रहूँ। ईश्वर, क्या तू नहीं देखता? यही मेरी पुरानी सेवाओं का फल है?
रोडरिगो : मैं तो, भगवान की सौगन्ध, उस मूर का वधिक होना चाहता हूँ...फाँसी लगा दूँ उसे....
इआगो : लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं, नौकरी का यह अभिशाप तो है ही कि उन्नति पक्षपात और सिफारिश पर ही निर्भर रहती है। अफसर खुश तो रास्ता साफ, वर्ना यह कौन देखता है कि योग्यता क्या है! नौकरी करते कितना समय निकल गया, कितना अनुभव प्राप्त हुआ! इस तरीके में तो एक गया और उसके पीछेवाले को अपने-आप जगह मिल गई। अब देखो न, तुम ही न्याय करो, क्या ऐसी हालत में मैं उस मूर से कभी भी प्रेम कर सकता हूँ?
रोडरिगो : मैं तो उसके अधीन कभी नौकरी ही नहीं करता!
इआगो : भाई मेरे, इस तरफ से फ़िक्र छोड़ दो! मैं उसकी सेवा करता हूँ, क्यों? सिर्फ अपनी योजना को उसके विरुद्ध पूरा करने को।
सब तो स्वामी बन नहीं सकते, न सब स्वामियों की सेवा भी उसी भक्ति से की जा सकती है! तुमने बहुत-से कर्तव्यरत सेवक देखे होंगे जो अपने स्वामियों के लिए रोटी और वेतन के लिए ही अपने जीवन तक को खपा देते हैं! गधे की तरह बुढा़पे तक खटते हैं और अन्त में अशक्त हो जाने पर निकाल दिए जाते हैं। ऐसे ईमानदार नीचों को तो कोड़े लगाने चाहिए। कुछ ऐसे नौकर होते हैं जो दिखाई तो देते हैं बड़े कर्तव्यरत और ईमानदार, पर अपने मतलब में चौकस होते हैं। इस तरह मालिक को दिखावे से प्रसन्न करके अपना घर भरते हैं। ये लोग असल में मज़ा लूटते हैं। वे अपने स्वामी के बल पर धन प्राप्त करते हैं और साहसी होते हैं। मैं ऐसों में से ही हूँ। अगर तुम रोडरिगो हो, उसी प्रकार यदि मैं मूर हूँ तो कभी इआगो न रहूँ। ईश्वर साक्षी है कि ऑथेलो की सेवा, मैं प्रेम और कर्तव्यवश नहीं, बल्कि अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए करता हूँ। मेरा ध्येय विचित्र है, जिससे बाहरी रूप से मैं कुछ और हूँ और मेरे भीतर कुछ और ही है। अगर मैं इतना मूर्ख हो जाऊँ कि मेरे बाह्य व्यवहार से ही मेरे मन की बात का पता चल जाए तो समझ लेना कि मैं संसार में उपहास का पात्र बन जाऊँगा। जिसका भीतर-बाहर एक होता है उसका तो हर मूर्ख उपहास करता है। सच्चाई यह है कि मैं वह नहीं हूँ जिसका कि दिखावा करता हूँ।
रोडरिगो : लेकिन इस बात को यदि ऐसा ही माना जाए कि वह सफल हो गया, तो वह होंठोंवाला मूर कितनी प्रसन्नता नहीं पा गया?
इआगो : बढ़ो, उसके पिता को जगाओ, उसे सूचना दो! फिर ऑथेलो का पीछा करो, उसकी प्रसन्नता का नाश करो। पथों पर पुकार-पुकारकर उसके अपराधों की घोषणा करो! हालाँकि वह इस समय हरियाली में है, उसके चारों ओर भयंकर मरुभूमि पैदा करने का यत्न करो! यद्यपि चारों ओर उसे प्रसन्नता ही प्रसन्नता दिखाई दे रही है, फिर भी तुम उसे दुःख और विषाद में ले जाने की चेष्टा करो! ऐसा करो कि उसके आनन्द की चमक धुँधली पड़कर बुझ जाए।
रोडरिगो : यह रहा उसके पिता का घर! मैं उसे पुकारकर बुलाता हूँ।
इआगो : ऐसी तड़पती आवाज़ में पुकारो, ऐसी चीत्कार उठाओ, जैसे महानगर में अनजाने आग लग जाने पर रात को भीषण कोलाहल होता है।
रोडरिगो : जागो...जागो...ब्रैबेन्शियो...श्रीमान ब्रैबेन्शियो, उठो...
इआगो : उठो, ब्रैबेन्शियो... चोर... चोर... अपने घर को देखो... जागते जागते रहो... कहाँ है तुम्हारी पुत्री... तुम्हारा धन... चोर... चोर...
(ब्रैबेन्शियो एक खिड़की से झाँकता है।)
ब्रैबेन्शियो : यह कौन मुझे इस बुरी तरह चिल्लाकर बुला रहा है? आखिर क्या बात है?
रोडरिगो : श्रीमान्, क्या आपका सारा परिवार घर में है?
इआगो : क्या आपके द्वारा सब सुरक्षित हैं? बन्द हैं?
ब्रैबेन्शियो : लेकिन इन सवालों के पूछे जाने का मतलब क्या है?
इआगो : श्रीमान्, आप लूटे जा रहे हैं और आपको पता भी नहीं है! अपनी इज़्ज़त को ढंकने का प्रयत्न करिए। आपकी की लड़की आपको छोड़ गई है। इस समय, हाँ इसी समय, अभी-अभी। एक अधेड़ काला मेंढ़ा ( हिन्दी में मेंढे की मादा के लिए भेड़ के अतिरिक्त शब्द नहीं है, और इस भाव का कोई समानान्तर भी नहीं है। ) तुम्हारी लाड़ली गोरी भेड़ को फुसला रहा है। जागो, जागो, बजा दो घण्टा और जगा दो इन नींद में खुर्राटे भरते हुए नागरिकों को, वर्ना वह शैतान आपको नाना बनाकर छोड़ेगा। मैं कहता हूँ जागिए!
ब्रैबेन्शियो : क्या कहा! पागल हो गए हो क्या?
रोडरिगो : अरे सम्मानित श्रीमन्त! आप मेरी आवाज़ पहचानते हैं?
ब्रैबेन्शियो : नहीं, कौन हो तुम?
रोडरिगो : मेरा नाम रोडरिगो है।
ब्रैबेन्शियो : इस नाम सो तो तुम्हारा स्वागत और भी कम होगा। मैंने तुमसे कह दिया है कि मेरे घर के चक्कर मत लगाया करो। मैं साफ शब्दों में तुमसे कह चुका हूँ कि मेरी लड़की तुम्हारे लिए नहीं है। और अब खाना खाकर, डटकर शराब पीकर तुम नशे में यहाँ आए हो कि अपनी ईर्ष्या, प्रतिहिंसा और नीचता का प्रदर्शन करते हुए तुम मेरा विरोध करो और मेरी नींद बिगाड़ो।
रोडरिगो : शान्त होइए श्रीमन्त! शान्त होइए!
ब्रैबेन्शियो : लेकिन याद रखो कि मेरी शाक्ति और मेरी आत्मा इतनी निर्बल नहीं कि तुम्हें इसका कड़वा फल न चखा सके।
रोडरिगो : धीरज धरिए श्रीमान्!
ब्रैबेन्शियो : तो बताओ यह चोरी-डकैती की बकवास क्या है? यह वेनिस है और मैं किसी बियाबान में तो नहीं रहता?
रोडरिगो : परम सम्भ्रान्त ब्रैबेन्शियो! मैं आपके पास बडे ही सच्चे दिल से आया हूँ। मेरी आत्मा बिल्कुल शुद्ध है।
इआगो : श्रीमान् आप उन लोगों में से हैं जो शैतान के कहने से भगवान की भक्ति भी नहीं कर सकते, क्योंकि आप जानते हैं कि बुराई में से अच्छाई कभी नहीं निकल सकती, क्योंकि हम आपकी सहायता करने आए हैं, आप हमें गुण्डा समझते हैं? आपकी लड़की को एक मस्ताने घोड़े ने घेर लिया है, आप अपनी सन्तान को हिनहिनाता देखना पसन्द करेंगे? आप अपनी लड़कियों के लिए मूर (मूर ऑथेलो भी है, अफ्रीकी घोड़ा भी। उस समय के साहित्य में कितनी मुखरता का उदाहरण मिलता है। ) घोड़ों का प्रबन्ध करेंगे?
ब्रैबेन्शियो : ज़रूर ही तू ऊँचा बदमाश है।
इआगो : आप ज़रूर हैं, सिनेटर जो हैं। ( यह व्यंग्य है। )
ब्रैबेन्शियो : इसका तुझे जवाब देना होगा। रोडरिगो, तुझे तो मैं जानता हूँ!
रोडरिगो : श्रीमान्! मैं हर बात का जवाब दूँगा! लेकिन कृपया यह बताएँ कि क्या आपकी भी इसमें कुछ रज़ामन्दी थी कि आपकी लाड़ली बेटी इस तरह रात की अन्धेरी बेला में सिर्फ एक माँझी के साथ, न सिपाही, न रक्षक, एक किराए के टट्टू नीच माँझी के साथ (वेनिस में नहरें बहुत हैं; जिनमें नावें चलती हैं।) वासनामत्त मूर के आलिंगन में बद्ध होने के लिए गई है? अगर ऐसा हो तो बता दें। शायद आपकी भी ऐसी कुछ इच्छा इस कार्य में रही हो! अगर आप इसे जानते हों तो हम अवश्य इस कोलाहल के लिए अपराधी हैं, घोर अपराधी हैं। लेकिन अगर आपको इस विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है, तो जहाँ तक शिष्टाचार का मेरा ज्ञान है, मैं यही कह सकता हूँ कि आप हमारे प्रति अशिष्ट रहे हैं। यह न समझें कि आप जैसे सम्भ्रान्त और ऊँची स्थिति के व्यक्ति से ऐसे विषय में हम मज़ाक़ कर जाएँगे, इतनी बुद्धि औऱ शिष्टता हम भी जानते हैं। मैं फिर दुहराता हूँ कि यदि आपकी पुत्री ने आपकी कोई आज्ञा इसमें प्राप्त नहीं की है, तो उसने आपके प्रति जघन्य अपराध किया है क्योंकि उसने अपने कर्तव्य, सौन्दर्य बुद्धि और वैभव को एक अमित व्ययी भटकते हुए वासनामत्त पुरुष के साथ बाँध दिया है, जो आज यहाँ है कल कहीं और है। आप मेरी बात की सच्चाई की जाँच करें। अगर वह अपने कमरे में हो या आपके सारे घर में कहीं हो तो राज्य के विधाता के अनुसार आप मेरे इस धोखा देने के प्रयत्न के लिए मुझे कड़े से कड़ा दण्ड दें, मैं तैयार हूँ।
ब्रैबेन्शियो : बत्ती जलाओ! अरे कोई है! मुझे रोशनी दो! कहाँ हैं मेरे आदमी, उन्हें बुलाओ! क्या जो मैंने सपना देखा था वह दुर्घटना उसकी सच्चाई की ओर उँगली नहीं उठाती! अभी से मुझे भय होता है कि यह सत्य ही है। अरे रोशनी दो, मुझे बत्ती दो! (बत्ती-मशाल )
(प्रस्थान)
इआगो : अब मुझे विदा दो! मुझे जाना है। मूर की सेवा में रहते हुए मेरे लिए यह उचित नहीं है कि इस प्रकार आम तरीके से उसके विरुद्ध खड़ा हुआ पाया जाऊँ। मैं जानता हूँ कि इस हरकत के लिए राज्य उसे कितनी भी कड़ी फटकार क्यों न दे, लेकिन राज्य का भी इतना साहस न होगा कि उसे नौकरी से निकाल दे, क्योंकि इस समय उसके बिना राज्य का काम नहीं चल सकता। साइप्रस-युद्ध शीघ्र ही आरम्भ होने वाला है, और वही इस युद्ध का संचालन करने की क्षमता रखता है। उसकी जगह ले सके ऐसा कोई धीर-वीर दिखाई नहीं देता; इसलिए मैं उससे कितनी भी घृणा क्यों न करूँ, चाहे उसके पास रहने को नरक-यातना के बराबर ही क्यों न मानूँ, लेकिन वर्तमान की विवशता के कारण बाहरी तौर से मुझे स्वामिभक्ति और प्रेम दिखाते रहना आवश्यक है। पक्के तौर से पकड़वाने के लिए तुम इन्हें सराय1 की ओर ले चलो, मैं तुम्हें वहाँ, उसके साथ ही मिल जाऊँगा। अच्छा, मैं चलता हूँ।
(प्रस्थान; रात का चोगा पहने ब्रैबेन्शियो मशालें उठाए हुए नौकरों के साथ प्रवेश करता है।)
बैबेन्शियो : कितनी जघन्य बात सत्य हो गई। वह चली गई है। मेरे जीवन से अब आनन्द की घड़ियाँ ही चली गईं समझो। मेरे लिए कटुता के अतिरिक्त अब बचा ही क्या है? बताओ रोडरिगो! तुमने उसे कहाँ देखा! अरी अभागिन! मूर के साथ यही न कहा था तुमने! हाय, अब भी क्या कोई पिता होने की इच्छा करेगा? तुम्हें कैसे पता चला कि वह डैसडेमोना ही थी। मुझे वह ऐसा धोखा दे गई? तुमसे उसने कुछ कहा था क्या? और रोशनी ले लो, मेरे सम्बन्धियों को जगा लो! क्या समझते हो, उन दोनों ने शादी कर ली होगी?
रोडरिगो : मुझे तो यही लगता है।
ब्रैबेन्शियो : हे भगवान! वह घर से भाग कैसे निकली? मेरा रक्त ही मुझे धोखा दे गया? अरे पिताओं! आज से कभी बाहरी बातों को देखकर ही अपनी पुत्रियों पर विश्वास मत कर बैठना। रोडरिगो! ऐसे भी तो कुछ जादू-टोने होते हैं न, जिनसे क्वाँरी लड़कियों की मति फेर दी जाती है, क्या तुमने ऐसी बातों के बारे में नहीं पढ़ा?
रोडरिगो : हाँ श्रीमान, पढ़ा है।
ब्रैबेन्शियो : अरे, मेरे भाई को जगा दो! रोडरिगो! अच्छा होता कि तुम ही उससे विवाह कर लेते! अरे, कुछ इधर जाओ, कुछ उधर ढूँढो। (नौकरों से कहकर फिर रोडरिगो से) तुम्हें भी कुछ पता है कि वह कहाँ होगी? कहाँ होगा वह मूर!
रोडरिगो : शायद मैं बता सकूँ, लेकिन और रक्षक अपने साथ कर लीजिए और मेरे साथ चलिए।
ब्रैबेन्शियो : कृपया तुम्हीं बताओ! मैं हर घर को बुलाऊँगा। शायद ही मेरे बुलाए से किसी घर से लोग मेरे साथ चलने को न निकलें। अरे शस्त्र बाँध लो! और हथियार ले लो! रात के लिए कुछ विशेष अफसरों को भी तत्पर करो! चलो मेरे अच्छे रोडरिगो! तुम जो कष्ट मेरे लिए उठा रहे हो, तुम देखना! मैं कभी तुम्हें उसका बदला चुकाए बिना यों ही नहीं छोड़ दूंगा।
(प्रस्थान)
पहला अंक : दृश्य - 2
(वेनिस की दूसरी गली)
(ऑथेलो; इआगो का मशालें लिए हुए अनुचरों के साथ प्रवेश)
इआगो : यद्यपि युद्ध-व्यापार में मैंने हत्याएँ की हैं, लेकिन इसे मैं अपनी चेतना का सार-तत्त्व मानता हूँ कि कभी ठण्डे दिल से खून न किया जाए। कभी-कभी मुझे अपने भीतर उस नीचता का अभाव-सा मालूम देता है, जो मेरे लिए सांसारिक रूप से बड़ी लाभदायक होती। दस-बीस बार तो मेरी इच्छा प्रबल तक हो उठी कि उसकी पसलियों में गहरा वार कर दूँ।
ऑथेलो : अच्छा यही है कि तुम अपने को रोको और जैसा है वैसा ही चलने दो।
इआगो : लेकिन मैं भी तो देवता नहीं हूँ कि वे आपके विरुद्ध इतनी गन्दी बातें करते रहें, गालियों पर उतर आएँ, नीच से नीच शब्दों का प्रयोग करें और श्रीमान! मुझे क्रोध ही न आए? आखिर कब तक मेरा क्रोध भड़क न उठे! मुझे तो अपने को रोकना भी बड़ा कठिन हो गया। किन्तु मुझे बताएँ श्रीमान्! क्या आपकी कानूनन शादी हो गई? यह निश्चित जानिए कि श्रीमती के पिता बड़े प्रभावशाली और प्रभुत्व वाले व्यक्ति हैं, उनका बड़ा सम्मान है और ड्यूक की आज्ञा* (*वोट की शक्ति।) से उनकी आज्ञा में दुगुना बल है। अगर कानून में ज़रा भी कसर रह गई तो वे आपके विवाह को रद्द करा देंगे और जितनी भी उनमें ताकत होगी लड़ा देंगे कि आप पर गहरी से गहरी मुसीबत बरपा कर सकें।
ऑथेलो : उन्हें अपनी यथाशक्ति बुराई करने दो। मैंने जो राज्य की सेवाएँ की हैं, वे ही उनके दोषारोपण को असत्य सिद्ध कर देंगी। यह तो लोग जानते ही नहीं, और अगर मुझे विश्वास हो जाएगा कि इसपर भी गर्व किया जा सकता है तब मैं घोषणा कर दूँगा कि मेरी धमनियों में भी साधारण रक्त नहीं, कुलीन राजवंशीय रक्त बहता है। मेरे गुण ही मेरे लिए इस अवस्था के भी साक्षी बनेंगे जो कि आज मैंने प्राप्त की है। इआगो, यह सत्य है कि मैं सुन्दरी डैसडेमोना से प्रेम करता हूँ। यदि मैं उसे सचमुच प्यार न करता होता तो क्या एक स्त्री के लिए मैं अपनी स्वतन्त्रता खो देता, सारे समुद्र की अपार सम्पत्ति भी क्या उसकी बराबरी कर सकती है?
(कैसियो तथा अन्य अफसरों का मशालें लिए हुए प्रवेश)
वह देखो! वे मशालें इधर कैसे बढ़ी आ रही हैं?
इआगो : वे शायद श्रीमती के पिता और सम्बन्धी हैं, जो जाग उठे हैं। आप, बेहतर हो भीतर चले जाएँ।
ऑथेलो : कभी नहीं। मैं यहीं बाहर रहूँगा। मैं अपनी स्थिति, सरल-हृदय और सहज स्वभाव के अनुरूप ही उनसे मिलूँगा। क्या ये वही हैं?
इआगो : जेनस की सौगन्ध, यह तो वे लोग नहीं। (जेनस : एक रोमन देवता-जिसके दो सिर थे। जनवरी महीने का नाम इसी जेनस के नाम पर पड़ा है, क्योंकि वह महीना गत वर्ष और नए बर्ष दोनों को देखता है।)
ऑथेलो : यह तो ड्यूक के सेवक और मेरा लेफ्टिनेण्ट कैसियो है।
दोस्तो, नमस्ते ! क्या सँवाद है? (गुडनाइट - अंग्रेज़ी में किसी भी स्थिति का व्यक्ति अपने से नीचे वाले से कहता है। हिन्दी में नमस्ते ही इस प्रकार का पर्याय है, यद्यपि नमस्ते के अपने बन्धन हैं। आगे से हम भी गुडमार्निंग, गुडनाइट आदि शब्दों का प्रयोग करेंगे, क्योंकि वे भी प्राय: प्रचलित हैं। )
कैसियो : जनरल! ड्यूक ने आपकी शुभकामना की है और वे चाहते हैं कि आप तुरन्त उनके सम्मुख उपस्थित हों।
ऑथेलो : क्यों? बात क्या है?
कैसियो : जहाँ तक मेरा ख्याल है, साइप्रस के बारे में कोई बात है। है विषय महत्त्वपूर्ण ही, क्योंकि जहाज़ों से एक के बाद एक करके बारह दूत आ चुके हैं और नींद में से जगा-जगाकर सिनेट के कई सदस्य ड्यूक के निवास-स्थान पर एकत्र भी कर लिए गए हैं। आपकी उपस्थिति की अत्यन्त आवश्यकता है। जब आप अपने निवास-स्थान पर नहीं मिले तब सिनेट ने तीन दल बनाकर लोगों को आपको भिन्न-भिन्न स्थानों में खोजने को रवाना किया है।
ऑथेलो : अच्छा हुआ तुम मुझे मिल गए। मैं ज़रा घर में एक बात कहकर अभी तुम्हारे साथ चलता हूँ।
(प्रस्थान)
कैसियो : ऐन्शेण्ट ! जनरल यहाँ क्या कर रहे हैं? ( पद का नाम। लेफ्टिनेण्ट से नीचे इआगो का पद है-शब्दार्थ है पुरातन।)
इआगो : मानो न मानो, आज जनरल ने बड़ी दौलत से भरा जहाज़ जीता है; समुद्र का नहीं, धरती का। यदि यह इनाम कानूनी मान लिया गया तो समझ लो कि हमेशा के लिए खज़ाना हाथ आ गया।
कैसियो : मैं समझा नहीं।
इआगो : जनरल ने विवाह कर लिया है।
कैसियो : किससे?
इआगो : शादी की है।
(ऑथेलो का पुनरागमन; इआगो सहसा वह वाक्य छोड़कर...)
चलो कैप्टन! तुम चलने को तैयार हो?
ऑथेलो : हाँ, मैं संग चल सकता हूँ।
कैसियो : शायद सैनिकों का दूसरा दल आपको खोजता हुआ आ पहुँचा है।
(ब्रैबेन्शियो, रोडरिगो अन्य अफसरों के साथ मशालें लिए आते हैं।)
इआगो : यह तो ब्रैबेन्शियो है। जनरल! सावधान रहें! इसका उद्देश्य अच्छा नहीं है।
ऑथेलो : ठहरो! रुक जाओ!
रोडरिगो : श्रीमान, यह मूर ही है।
ब्रैबेन्शियो : उस चोर का सर्वनाश हो!
(दोनों ओर से तलवारें खिंचती हैं।)
इआगो : इधर बढ़िए, श्रीमान रोडरिगो! आपसे मेरे दो-दो हाथ हो जाएँ, मैं आपके लिए तैयार हूँ।
ऑथेलो : अपनी चमचमाती तलवारों को म्यान में रख लीजिए, कहीं ओस के कारण उनमें जंग न लग जाए। सम्मानित श्रीमान! आपके शस्त्रों से कहीं अधिक सम्मान पाने की अधिकारिणी आपकी आयु है!
ब्रैबेन्शियो : ओ धूर्त चोर! कहाँ छिपा दी है तूने मेरी पुत्री? ओ अभिशप्त! अवश्य तूने उसपर जादू कर दिया है! यदि कोई इन्द्रजाल न डाला गया होता तो कल्पना के किसी छोर को पकड़कर भी यह विचार नहीं आता कि डैसडेमोना जैसी सुन्दरी विदुषी और प्रसन्नचित्त लड़की, कभी ऐसा काम कर गुज़रेगी! जिसने अपनी जाति के अनेक घने घुँघराले केशोंवाले धनी और सम्पन्न तरुणों से विवाह करना अस्वीकार कर दिया, वह क्या कभी जगहँसाई कराने को, अपने अभिभावकों का संरक्षण छोड़कर तुझ जैसे काले भुजंग की भुजाओं में गिरने को आ जाती? तुझे देखकर उसे आनन्द तो दूर, उल्टे भय ही होता। सारा संसार देखे, क्या यह प्रकट बात असम्भव हो सकती है कि तूने ही अपने कुटिल जादू से उसकी चेतना का हरण कर लिया है तूने जड़ी-बूटियों और धातुओं के धूर्त प्रयोग से उस कुमारी की बुद्धि नष्ट करके उसे पराजित कर दिया है। मैं इस मामले को न्याय के सामने ले जाऊँगा। तू जादू और तन्त्र-मन्त्र करने का अपराधी है। मैं तुझपर निषिद्ध क्रियाओं और जघन्य कार्यों में रत रहने का अभियोग लगाता हूँ, जो धर्म-विरुद्ध हैं और समाज के लिए हानिकारक हैं। इसको गिरफ्तार कर लो और यदि यह विरोध करता है तो उससे स्वयं ही हानि उठाएगा, उसका उत्तरदायित्व हमपर नहीं होगा। पकड़ लो इसे!
ऑथेलो : हाथ मत उठाओ, न मेरे रक्षक लड़े, न मुझपर आक्रमण करने वाले। यदि युद्ध ही करना होता तो बिना किसी के भड़काने से भी मैं युद्ध कर सकता था। आप मुझे अपने इस अभियोग का उत्तर देने के लिए कहाँ ले जाना चाहते हैं?
ब्रैबेन्शियो : जब क्क कचहरी नहीं लगती, तब तक के लिए हम तुझे बन्दीगृह में डाल देना चाहते हैं?
ऑथेलो : मान लो मैं बन्दी भी हो गया, लेकिन उससे ड्यूक को सन्तोष कैसे होगा कि जिनके भेजे हुए आदमी इस समय भी मुझे घेरे खड़े हैं, ताकि वे राज्य के एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए मुझे अपने साथ ले जा सकें।
अफसर : परम आदरणीय श्रीमन्त! यह नितान्त सत्य है। ड्यूक अपनी काउन्सिल (परिषद) के साथ हैं और उन्होंने जनरल को तुरन्त ही बुलाया है।
ब्रैबेन्शियो : क्या कहा? ड्यूक परिषद के साथ! रात के इस समय विचारों में डूबे हुए हैं? बहुत अच्छा! चलो! इसे वहीं ले चलो! मैं अभी अपने मामले को वहीं तय कराऊँगा। मेरा मसला कोई मामूली और बेकार मसला नहीं है। ड्यूक और सिनेट के सदस्य मेरे प्रति की गई बुराई को अपने साथ ही हुई बुराई की तरह ही समझेंगे। अगर ऐसी हरकतों के लिए सजाएँ नहीं दी गईं तो विधर्मी और गुलाम हमारे राजनीतिज्ञ और शासक ही तो बन बैठेंगे?
(प्रस्थान)
पहला अंक : दृश्य - 3
(परिषद-भवन)
(ड्यूक और सिनेट के सदस्य एक मेज़ के चारों ओर बैठे हैं। मेज़ पर बत्तियाँ हैं, पास में सेवक हैं।)
ड्यूक : इन संवादों में कोई गुरुत्व नहीं है कि इन्हें कोई महत्त्व दिया जाए!
सिनेट का एक सदस्य : ठीक कहते हैं। ये तो एक-दूसरे से मेल भी नहीं खाते। इन पत्रों में जो खबरें मुझे मिली हैं, उनके हिसाब से शत्रु की शक्ति एक सौ सात जहाज़ों की है।
ड्यूक : और जो सूचना मुझे मिली है उसके अनुसार शत्रु के पास 140 जहाज़ हैं।
सिनेट का दूसरा सदस्य : और मेरे पास 200 जहाज़ों की खबर है। हालाँकि विगत बार से देखने पर ये खबरें एक-दूसरी से पूरी तरह नहीं मिलतीं, लेकिन ऐसा भेद होना आश्चर्य का विषय नहीं है। आखिर तो ये सारी खबरें अंदाज़ नहीं हैं। फिर भी एक बात सच है और वह यह कि साइप्रस की तरफ तुर्की जहाज़ी बेड़ा बढ़ता आ रहा है।
ड्यूक् : हाँ, ध्यान से देखने पर यह बिल्कुल सँभाव्य ही प्रतीत होता है। संख्या की गलती हो सकती है, लेकिन संवादों की मुख्य बात, मुझे डर है, कहीं सच ही न निकल आए!
जहाज़ी (भीतर से) : क्या हुआ? क्या हुआ? अरे क्या है! ( सेलर-खलासी या माँझी।)
(जहाज़ी का प्रवेश)
अफसर : यह लीजिए! जहाज़ों से एक दूत आया है।
ड्यूक : क्या बात है?
जहाज़ी : तुर्की बेड़ा रोहड्स की ओर बढ़ रहा है, इसलिए श्रीमान्! एंजिलो ने मुझे राज्य के अधिकारियों को सूचना देने की आज्ञा दी है।
सिनेट का एक सदस्य : यह संवाद सत्य नहीं हो सकता। जो हो,
सके औचित्य पर विचार कर लिया जाए। यह तो केवल एक छलावा दिखाई देता है ताकि हम भ्रम में पड़ जाएं। और जबकि हमें साइप्रस की रक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए, हम रोहड्स की ओर ध्यान बँटा बैठें। तुर्कों के लिए साइप्रस का महत्त्व देखते हुए और यह भी उनके लिए रोहड्स की तुलना में साइप्रस को जीतना आसान होगा, क्योंकि उसमें न वैसे कोई प्राकृतिक लाभ ही हैं, न उसकी भाँति कोई रक्षा का ही अच्छा प्रबन्ध है, हमें इन सब बातों पर ध्यान देना चाहिए और यह नहीं समझना चाहिए कि तुर्क बेवकूफ हैं, उनमें योग्यता नहीं है जो वे उसे अन्त के लिए त्याग देंगे जो कि वास्तव में अपना पहला महत्त्व रखता है। न यही मानना चाहिए कि एक आसान और लाभदायक योजना को छोड़कर वे ऐसे कार्य पर उतारू होंगे जिसमें खतरा तो है ही, साथ ही जिसमें हानि की भी सम्भावना है।
ड्यूक : नहीं, किसी भी हालत में तुर्क रोहड्स की ओर उन्मुख नहीं लगते।
(एक दूत का प्रवेश)
दूत : सम्मानित और आदरणीय सज्जनो! श्रीमन्तो! रोहड्स की ओर बढ़ते हुए तुर्कों से एक जहाज़ी बेड़ा और मिल गया है।
सिनेट का एक सदस्य : अच्छा! यही तो मैं भी सोचता था। संख्या में कितने जहाज़ होंगे?
दूत : तीस जहाज़ हैं। अब उन्होंने अपना छलावा छोड़ दिया है और रास्ता बदलकर वे स्पष्टतया ही साइप्रस की ओर बढ़ रहे हैं। आपके वीर और विश्वसनीय पदाधिकारी श्रीमान मोनटानो ने यह सँवाद अत्यन्त विनम्रता के साथ भेजा है और उसकी प्रार्थना है कि इसपर पूर्णतया विश्वास किया जाए।
ड्यूक : तब तो यह निश्चय हो गया कि शत्रु साइप्रस की ओर आ रहा है। क्या मार्क्स लुक्किकोस नगर में उपस्थित नहीं हैं?
सिनेट का एक सदस्य : वे इस समय फ्लोरेन्स में हैं।
ड्यूक : कृपया हमारी ओर से उन्हें पत्र लिखें और शीघ्रातिशीघ्र डाक लगाकर हमारा संवाद भेजें।
सिनेट का एक सदस्य : यह लीजिए! ब्रैबेन्शियो और महावीर मूर आ रहे हैं।
(ब्रैबेन्शियो, ऑथेलो, कैसियो, इआगो, रोडरिगो और अफसरों का प्रवेश)
ड्यूक : महावीर ऑथेलो, राज्य के आम दुश्मन तुर्कों के खिलाफ हमें तुम्हारी सेवाएँ फौरन हासिल करनी चाहिए। मैं आपको देख नहीं पाया, स्वागत श्रीमान ब्रैबेन्शियो! आज रात आपकी अमूल्य राय से हम अभी तक वंचित थे, अब आप भी सहायता करें।
ब्रैबेन्शियो : वही तो मैं आपसे चाहता हूँ। श्रीमानों के श्रीमन्त, मुझे क्षमा करें! न तो मेरी स्थिति ने ही, न राज्य-कार्य में से किसी बात ने आज की रात मुझे नींद से जगाया है। राज्य के इस आम खतरे ने भी मुझमें दिलचस्पी पैदा नहीं की है। क्योंकि मेरा अपना दुःख ऐसी भीषण बाढ़ की तरह है जो सारे दुःखों को निगलने की सामर्थ्य रखता है, किन्तु स्वयं अभी तक वैसा ही प्रचण्ड है।
ड्यूक : क्यों? क्या हुआ?
ब्रैबेन्शियो : मेरी पुत्री! आह मेरी पुत्री!
सिनेट के सदस्य : क्या वह नहीं रही? (मर गई)
ब्रैबेन्शियो : हाँ, मेरे लिए वह मर चुकी है। उसे धोखा दिया गया है। मुझसे चुरा लिया गया है, नीमहकीमों से खरीदी गई जड़ी-बूटियों और जादू से उसकी बुद्धि हर ली गई है। क्योंकि कोई साधारण बुद्धिवाला भी, जिसकी बुद्धि अपाहिज, अंधी और अभावग्रस्त नहीं है, बिना जादू के जाल में फँसे ऐसी भयंकर भूल नहीं कर सकता।
ड्यूक : कौन है वह आदमी जिसने गैरकानूनी तरीके से तुम्हारी पुत्री को विवेक से और तुमको तुम्हारी पुत्री से अलग किया है? कानून के कठोर हाथ को तो आप स्वयं समझकर लागू करने का अधिकार रखते हैं, भले ही दण्ड पाने वाला व्यक्ति मेरा पुत्र ही क्यों न हो?
ब्रैबेन्शियो : आह! श्रीमंत ड्यूक का मैं सादर अभिवादन करता हूँ। यह है वह आदमी, यही है वह मूर, जिसे आपने विशेष आज्ञा देकर राज्यकार्य के सम्बन्ध में यहाँ बुलाया है।
सब : हमें इसके लिए खेद है।
ड्यूक : (ऑथेलो से) तुम्हें इस बारे में क्या कहना है?
ब्रैबेन्शियो : कुछ नहीं, सिवाय इसके कि जो मैंने कहा है उसे स्वीकार कर लें।
ऑथेलो : सम्भ्रान्त, शक्तिशाली और विलक्षण श्रीमन्तो! आप मेरे कुलीन, विश्वसनीय और अच्छे स्वामी हैं। यह बिल्कुल सत्य है कि मैंने इन वृद्ध महोदय की पुत्री को अपने पास रख लिया है। हाँ, मैंने उससे विवाह किया है, यह भी सत्य है। यही मेरा एकमात्र अपराध है। मेरी वाणी कठोर है, मैं मुखर हूँ और प्रेम से मीठे बोल बोलना मुझे नहीं आता, क्योंकि सात वर्ष की आयु से केवल नौ मास पहले तक मेरी भुजाओं ने अपना सबसे अच्छा समय शिविरों से ढँकी हुई युद्धभूमियों में बिताया है। इस विशाल संसार के बारे में, युद्ध और युद्ध की लोमहर्षक घटनाओं के अतिरिक्त सम्भवतः मैं कुछ भी जानकारी नहीं रखता, जिसपर बात कर सकूँ। अपनी रक्षा करने के प्रयत्न में मुझे अधिक सफलता की आशा नहीं है। किन्तु आपने मुझे दया करके आज्ञा दी है तो मैं बिल्कुल स्पष्टतया बिना नमक-मिर्च लगाए अपनी सारी प्रेम-कथा सुनाऊँगा, ताकि आप स्वयं जान सकें कि किस जादू किस जड़ी-बूटी के प्रभाव से, किस कौशल से, मैंने इनकी पुत्री का प्रेम प्राप्त किया है; क्योंकि मुझपर यही तो अभियोग लगाया गया है।
ब्रैबेन्शियो : वह एक लजीली कुमारी है, उसका चित्त शान्त है, कभी उसमें कृत्रिमता नहीं झलकती, लाज स्वयं उस पर लजाती है। क्या यह विश्वास किया जा सकता है कि वह अपनी प्रकृति के विरुद्ध, अपने देश, अपनी आयु, अपनी जाति की परम्परा, लोकमर्यादा का भय, सब कुछ की उपेक्षा करके ऐसे व्यक्ति से प्रेम करेगी, जिसकी कि सूरत देखकर उसके हृदय में भय उत्पन्न होने की सम्भावना अधिक प्रतीत होती है। डैसडेमोना जैसी पूर्णतया अपना स्वभाव भूलकर प्रकृति के विरुद्ध भी ऐसा कर सकती है-ऐसा निर्णय देनेवाला न्याय स्वयं अपूर्ण ही कहलाएगा। ऐसी अस्वाभाविक बात क्यों हुई, यह जानने के लिए अवश्य इसे स्वीकार करना पड़ेगा कि इस विषय में कोई न कोई जघन्य नारकीय तरीका अवश्य अपनाया गया होगा, वरना ऐसा हो कैसे सकता था? इसलिए मैं आपके सामने फिर सशक्त शब्दों में दुहराता हूँ कि अवश्य उसपर किसी जादू की वस्तु का प्रयोग किया गया है और उसके रक्त पर गहरा प्रभाव पड़ा है; अवश्य ही कोई जड़ी-बूटी है जिसे तान्त्रिक ढंग से सिद्ध किया होगा।
ड्यूक : लेकिन विश्वासपूर्वक दुहरा देना तो प्रमाण नहीं बन जाता। जब तक और ठोस और गहरे प्रमाण की सम्भावनाओं और योजनाओं के विषय प्रस्तुत नहीं किए जाते, मैं कैसे इनसे आश्वस्त हो सकता हूँ?
सिनेट का एक सदस्य : कहो ऑथेलो! बताओ, क्या तुमने इस कुमारी को किसी कुटिल और अनुचित रीति से अपने वश में किया है या जैसा कि दो व्यक्तियों में प्रेम-सम्भाषणों में प्रार्थनाएँ होती हैं, मीठी-मीठी बातें होती हैं, उनमें उसे प्रभावित कर लिया है?
ऑथेलो : मैं प्रार्थना करता हूँ कि सैगिटरी से डैसडेमोना को यहाँ बुलवा लिया जाए और अपने पिता की उपस्थिति में वही मेरे विषय में बताए। यदि अपनी बात में वह कहे कि मैंने किसी अनुचित रीति को अपनाया है तो न केवल यह विश्वास, यह पद जो आपने मुझे दिए हैं, मुझसे ले लिए जाएँ वरन् आपका भीषण दण्ड मुझे जीवन से ही वंचित कर दे।
ड्यूक : डैसडेमोना को यहाँ बुलवाया जाए।
(दो या तीन व्यक्तियों का प्रस्थान)
ऑथेलो : एन्शेन्ट (इआगो) तुम उन्हें रास्ता बताओ, क्योंकि तुम इस स्थान से अधिक परिचित हो...
(इआगो और सेवकों का प्रस्थान)
और जब तक वह आती है, जिस ईमानदारी से मैं परमात्मा के सामने अपने अपराधों को स्वीकार करता हूँ, उसी भाँति आपके गम्भीर विचारार्थ बताऊँगा कि मैंने किन उपायों से उस सुन्दरी के प्रेम को प्राप्त किया, किस प्रकार वह मेरी बनी!
ड्यूक : ठीक है ऑथेलो! बता सकते हो।
ऑथेलो : उसके पिता मुझसे स्नेह करते थे और बहुधा अपने यहाँ निमन्त्रित करते थे। किस प्रकार मेरा पवित्र जीवन व्यतीत हुआ, यह बार-बार पूछा करते थे। वे विभिन्न युद्ध, घेरे और दुस्साहस के वर्णन सुनते थे; वे सब जो मैंने जीवन में स्वयं देखे थे। मैं अपने लड़कपन से अब तक की कहानियाँ उन्हें सुनाया करता था। और इसी में कभी मैं उन भयानक खतरों की बात सुनाता जिनमें से मैं बाल-बाल बचा था। कभी भूमि और समुद्र के वक्ष पर किए गए दुस्साहसों को सुनाता। विकराल घेरों में से जीवन-रक्षा के लोमहर्षक वर्णन सुनाता कि कब मैं बन्दी बना, किस प्रकार वहाँ से छूटा और इन यात्राओं में मुझ पर क्या कुछ गुज़रा। मुझे तो गुलाम बनाकर बेचा गया था। और इन्हीं यात्रा-विवरणों में बहुधा मुझे विशाल गुहाओं, रेगिस्तानों, अनगढ़ चट्टानों, खानों और गगनचुम्बी पर्वतों के वर्णन भी सुनाने पड़ते। वे नरभक्षी जो एक-दूसरे को खाते थे, और वे मनुष्य जिनके सिर उनके वक्षस्थल में उगते थे, कभी-कभी मेरा विषय बन जाते। डैसडेमोना को इन बातों में बड़ी रुचि थी; वह बड़े ध्यान से सुनती थी। और जब कभी घरेलू धन्धों के बुला भी ली जाती थी तो जहाँ तक हो सकता जल्दी से जल्दी काम करके आने की चेष्टा करती और मेरे जीवन की कथा को बड़े ध्यान से सुनती थी। अपने में उसकी इतनी दिलचस्पी देखकर एक बार मैंने ऐसा सुअवसर पाया जब वह मेरी जीवन-गाथा सुनने को तत्पर थी। उस समय उसने मुझसे प्रार्थना की कि मैं उसे अपनी पूरी जीवन-गाथा सुनाऊँ क्योंकि अभी तक वह जहाँ-तहाँ से ही सुन पाई थी, सो भी पूरा ध्यान देकर नहीं। मैंने स्वीकार कर लिया और तब अपने तारुण्य में झेली हुई कुछ दुःखद घटनाएँ सुनाईं। वह रोने लगी। जब मेरी कथा समाप्त हुई, उसके मुख से लम्बी आहें निकलीं, मानो वे ही मेरे लिए उपहार थीं। उसने अत्यन्त गद्गद् स्वर से स्वीकार किया कि मेरी कथा अत्यन्त रोचक, विचित्र ही नहीं, वरन्, अद्भुत रूप से करुण भी थी। उसने कहा, अच्छा होता वह उसे नहीं सुनती, और फिर भी वह यही चाहती थी कि ऐसा व्यक्ति ही परमात्मा की असीम कृपा से उसका पति हो। उसने मुझे हृदय से धन्यवाद दिया और आभार स्वीकार करके कहा कि यदि कोई मेरा मित्र ही उसे प्यार करता हो तो मैं मित्र को भी यह कहानियाँ सुना दूँ, और ये कथाएँ ही उसका प्रेम जीतने के लिए काफी थीं। इससे मुझे प्रकट रूप से इंगित मिल गया और मैंने उसके सामने प्रेम प्रकट कर दिया। स्पष्ट ही जो खतरे मैंने उठाए थे, उनके कारण वह मुझसे प्रेम करती थी और मैं इस भावना से पराभूत हो गया कि वह मुझपर करुणा करती थी। यही है वह जादू, जिसका मैंने उसपर प्रयोग किया था। यह लीजिए, डैसडेमोना आ गई है; जो कुछ मैने कहा है, वह भी उसका समर्थन करेगी।
(डैसडेमोना, इआगो और सेवकों का प्रवेश)
ड्यूक : ऐसी कथा तो निश्चित रूप से मेरी लड़की को भी मोहित कर लेती, श्रेष्ठ ब्रैबेन्शियो! अब तो जहाँ तक हो इस उलझे हुए मामले को सुलझाइए! खाली हाथों से न लड़कर इन्सान अपने टूटे हथियारों का ही प्रयोग करते हैं।
ब्रैबेन्शियो : मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि उसकी बात भी सुन लें। यदि वह स्वीकार कर लेती है कि इस प्रेम को उकसाने में उसका आधा हाथ रहा है, और तब यदि मैं इस पुरुष को तनिक भी दोष दूँ, तो मेरा सर्वनाश हो जाए। आ मेरी सरलहृदये पुत्री! इस कुलीन सभा में, बता तो सही, ऐसा कौन है जिसकी आज्ञा का पालन करना तेरा कर्तव्य है?
डैसडेमोना : आदरणीय पिता! मेरा कर्तव्य विभाजित हो गया है। यह शिक्षा जो मुझे एकाग्रचित्त से आपके प्रति श्रद्धा करना सिखाती है और यह जीवन, इनके लिए मैं आपका आभार मानती हूँ। इसलिए आपकी पुत्री के रूप में आपकी आज्ञा का पालन मेरा कर्तव्य है। किन्तु इस ओर मेरे पति हैं, और अपने पिता की तुलना में मेरी माता ने आपके अर्थात् अपने पति के प्रति जो कर्तव्य निबाहा है, पिता पर पति को अन्यतम स्थान दिया है, वही अपने पति मूर के प्रति निबाहना मैं अपना कर्तव्य समझती हूँ क्योंकि वह उनका भाग है।
ब्रैबेन्शियो : भगवान तुम्हारा भला करें! आज से मेरे-तुम्हारे सम्बन्ध समाप्त! (ड्यूक से) आप अपने राज्यकार्य की ओर ध्यान दें! पिता होने से तो अच्छा होता कि मैं किसी को गोद ले लेता। सुनो ऑथेलो! डैसडेमोना को तुमसे अलग रखने की मैं प्राणपण से चेष्टा करता, किन्तु तुम उसे जीत चुके हो तो मैं भी अब अपने हृदय से कहता हूँ कि मैं उसे तुम्हें देता हूँ। पुत्री डैसडेमोना! तुम्हारा चरित्र देखकर मैं प्रसन्न हूँ कि मेरे और कोई सन्तान नहीं है, अन्यथा तुम्हारा यह आज्ञा भंग करना मुझे उनके प्रति कठोर और अत्याचारी बना देता। मैं उन्हें दारुण बन्धनों में जकड़ देता। हो चुका ड्यूक-श्रेष्ठ! हो चुका, मेरा व्यक्तिगत कार्य हो चुका।
ड्यूक : जो कुछ आपने स्वयं कहा, उसका समर्थन करते हुए मैं भी अपना निर्णय देना चाहता हूँ और इन प्रेमियों से आपका समझौता कराना चाहता हूँ। जिसका इलाज ही नहीं, उसे तो अच्छा हुआ-सा ही समझना चाहिए, क्योंकि तब हम उसका निकृष्टतम रूप देख लेते हैं और फिर किसी मिथ्या धारणा के अधीन नहीं रहते। जो दुर्भाग्य आ गया है, उसके लिए खेद करना तो वास्तव में व्यर्थ होगा। यदि बुराई ठीक नहीं हो पाती, तो उसके परिणाम में और भी अधिक दाह हृदय में बस जाता है। किन्तु दुर्भाग्य की मार सहते समय यदि हम धैर्य धारण कर लेते हैं और केवल मुस्कराते भी रहते हैं तो अपने सुखों का अपहरण करनेवाले की उस शक्ति को हर लेते हैं जो हमें कुचल देती है। किन्तु जो उसके लिए बिसूरने बैठ जाता है, वह स्वयं अपने को लुटा देता है।
ब्रैबेन्शियो : जिस तर्क से आप मुझे सान्त्वना दे रहे हैं, उसे ही राज्यकार्य पर भी लागू कर दीजिए! मान लीजिए, तुर्क हमसे साइप्रस छीन लेते हैं तो हमें मुस्कराना चाहिए और तब शायद हमें इस हानि का भी अनुभव नहीं होगा। जिसपर स्वयं नहीं आ पड़ती वह तो पर-उपदेश में कुशल ही होता है। किन्तु जो स्वयं भोगी होता है उसे दुःख के साथ इन सिद्धान्त-वाक्यों को भी सहन करना पड़ता है क्योंकि दुःख के साथ निवारण के लिए धैर्य से भिक्षा माँगनी पड़ती है, जो स्वयं ही अत्यन्त दरिद्र होता है। यह वचन तभी तक ठीक है जब तक व्यथा अपनी नहीं होती, धैर्य पर बात करना और टीस का अनुभव न करना सहज है, किन्तु यह मर्म पर दुधारे की भाँति चलानेवाले शब्द मीठे भी होते हैं, कड़वे भी, यह तो अवसर की बात है। किन्तु शब्द अन्ततोगत्वा शब्द ही होते हैं, मैंने कभी नहीं सुना कि घायल हृदय पर कभी श्रवण-मार्ग से कोई प्रभाव पड़ा हो। मैं आपसे सविनय यही प्रार्थना करता हूँ कि आप अपने राज्यकार्य में लगें और अपने कार्य को आगे चलाएं!
ड्यूक : तुर्क पूर्ण सैन्य-सज्जा और तत्परता से साइप्रस की ओर बढ़ रहे है। ऑथेलो! तुम परिस्थिति के पूर्ण ज्ञाता हो। यद्यपि हमारे पास ऐसा व्यक्ति है जो इस कर्तव्य का पूर्णतया निर्वाह कर सकता है, किन्तु फिर भी जनमत जो कि बहुत बड़ा महत्त्व रखता है, तुम्हारी ही ओर अधिक बोल रहा है और तुम्हें ही अधिक विश्वसनीय और योग्य मानता है। इसलिए आवश्यक है कि अपने आनन्द की इस वेला में तुम अपने को नियन्त्रित करो और इस कठोर और घोर यात्रा के लिए तत्पर हो जाओ!
ऑथेलो : आदरणीय सिनेट के सदस्यगण सुनें! मैं युद्ध-जीवन का इतना अधिक आदी हो गया हूँ कि संग्राम-भूमि का कठोर और दारुण विस्तार मेरे लिए फूलों की शय्या के समान हो गया है। यह स्वीकार करना मेरे लिए सहज है कि मैं दुःख और कठोरता के पथ पर तुरन्त पाँव रख देता हूँ। इसलिए मैं तुर्कों से युद्ध करने को तत्पर हूँ, मैं इस तुमुल संग्राम का नेतृत्व करने को उद्यत हूँ, किन्तु चाहता हूँ कि मेरी पत्नी के लिए उचित प्रबन्ध कर दिया जाए, और उसकी स्थिति और पद के अनुकूल स्थान, धन तथा अन्य वस्तुओं का प्रबन्ध हो जाए!
ड्यूक : क्यों? वह अपने पिता के पास रह सकती है।
ब्रैबेन्शियो : नहीं, मैं उसे नहीं रखूँगा।
ऑथेलो : न मैं ही!
डैसडेमोना : न मैं ही वहाँ रहूँगी कि उनकी आँख के सामने बनी रहकर काँटे-सी गड़ा करूँ। परम दयालु ड्यूक! मेरी दयनीय प्रार्थना पर ध्यान दीजिए! मैं तो सीधी-सादी और अचतुर हूँ। आपकी वाणी मेरी सहायता करने का आश्वासन दे!
ड्यूक : क्या चाहती हो तुम, डैसडेमोना?
डैसडेमोना : मूर के साथ जीवन व्यतीत करने के लिए ही तो मैंने उनसे प्रेम किया है। जो विद्रोह मैंने किया है और जिस प्रकार मैंने आपत्तियों का सामना किया है, मैं संसार में घोषणा कर सकती हूँ कि उन पर पूर्णतया आसक्त हूँ और उनकी वीरता तथा ओज गुण ने ही मुझे इतना प्रभावित किया है। वे युद्ध में चले जाएँ और मैं घर पर छूट जाऊँ, तो जिसलिए मैंने उनसे प्रेम किया, वह मूल कारण ही झुठा दिया जाएगा। उनकी अनुपस्थिति मुझे अत्यन्त उदास और विरक्त बना देगी। कृपया मुझे उनके साथ जाने की आज्ञा दें!
ऑथेलो : स्वामी! डैसडेमोना की प्रार्थना को निष्फल न करें! ईश्वर साक्षी है कि मैं यह दया इसलिए नहीं चाहता कि वासना मेरे मुख में बोल रही है। यौवन के वे प्रारम्भिक उन्माद अब मेरे लिए आकर्षक नहीं रहे हैं क्योंकि मैं उफान की सीमा से आगे आ गया हूँ। केवल मेरी पत्नी को इसका आनन्द प्राप्त होगा, इसलिए मैं आपसे करुणा और दया की भिक्षा चाहता हूँ। ईश्वर न करे, आप निश्चिंत ही रहें, उसके साथ होने के कारण आप मुझे राज्य-कार्य के प्रति उदासीनता दिखाते हुए नहीं पाएँगे। यदि कभी चंचल कामदेव की चपलता मेरी दृष्टि से कर्तव्यपथ को धुँधला भी कर दे, और मैं लोल वासनाओं के आवर्त में पड़ जाऊँ, और मेरी शुद्ध चेतना, मेरी बुद्धि मलिन पड़ जाए तो मेरा शिरस्त्राण कुलवधुओं के हाथ में रह जाए और लोक में विद्यमान समस्त विपदाएँ और अपमान मेरे यश पर आक्रमण करके मेरा सर्वनाश कर दें।
ड्यूक : तब तुम उसे ले जाओ या छोड़ जाओ, तुम्हारा व्यक्तिगत विषय ही रहे। कार्य बहुत गम्भीर है और तुरन्त कर्तव्य चाहता है, उसपर अपना सारा ध्यान केन्द्रित कर दो! कार्य पुकारता है, गति और वेग से उत्तर देना होगा।
सिनेट का सदस्य : आप आज रात ही को प्रयाण करें!
ऑथेलो : जैसी आज्ञा हो! अवश्य!
ड्यूक : हम कल प्रातःकाल नौ बजे फिर मिलेंगे। ऑथेलो, अपना कोई आदमी हमारे पास छोड़ जाओ, वह हमारी लिखित आज्ञा तथा तुम्हारे सम्मानित पद के अनुरूप अन्य आवश्यक वस्तुएँ ले जाएगा।
ऑथेलो : जैसी आज्ञा महाराज! मेरा ऐन्शेन्ट बड़ा ईमानदार आदमी है, और बड़ा ठोस भी है। मैं अपनी पत्नी को उसके संरक्षण में छोडूँगा। मेरे जाने के बाद जो भी आवश्यक वस्तुएँ आप भेजना चाहें उन्हें साथ लेकर वह मेरी पत्नी को साइप्रस पहुँचा देगा।
ड्यूक : यही सही! गुडनाइट! सबको गुडनाइट (ब्रैबेन्शियो से) और आदरणीय श्रीमान! यदि अच्छाई एक ऐसी वस्तु है जिसमें लोक का समस्त सौन्दर्य निहित होता है, तब आपका दामाद भी सुन्दर है। उसका कालापन अखरता नहीं, क्योंकि यह सबको प्रसन्न करता है।
सिनेट का सदस्य : विदा! वीर मूर! डैसडेमोना को कोई कष्ट न देना।
ब्रैबेन्शियो : मूर! यदि तुम्हारे आँखें हैं तो उसे अवश्य देखना, उसने अपने पिता को धोखा दिया है, कौन जाने वह तुम्हें धोखा न देगी?
(ड्यूक, सिनेट का सदस्य, अफसर इत्यादि का प्रस्थान)
ऑथेलो : उसके प्रेम पर मेरा जीवन न्यौछावर है। मेरे अच्छे इआगो! मैं अपनी डैसडेमोना को तुम्हारे पास छोड़ना चाहता हूँ; मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी पत्नी इसकी देखभाल करे। ज्यों ही अवसर मिले, तुम दोनों को लेकर मेरे पास आ जाना। चलो डैसडेमोना! केवल एक घण्टे का ही समय मेरे पास है, मुझे उसी में तुमसे अपने हृदय की बातें भी कहनी हैं और यात्रा का प्रबंध करते हुए सांसारिक विषयों पर बातें करनी हैं। समय कम है, आओ इसका अधिक से अधिक उपयोग करें!
(ऑथेलो और डैसडेमोना का प्रस्थान)
रोडरिगो : इआगो!
इआगो : ओ महान हृदयवाले मित्र! कहो, क्या हुआ?
रोडरिगो : तुम ही बताओ; अब मैं क्या करूँ?
इआगो : जाओ, और आराम से सोओ!
रोडरिगो : इच्छा तो होती है कि अब जाकर डूब मरूँ!
इआगो : अगर तुम ऐसा करोगे तो क्या कभी मेरे प्रेम के अधिकारी बन सकोगे? तुम्हें ऐसी मूर्खता करने की आवश्यकता ही क्या है?
रोडरिगो : जब जीवन ही यातना बन जाए, तब जीवित रहना भी क्या मूर्खता नहीं है? और जब मौत ही हकीम बन जाए तो मरने के नुस्खे में बुराई भी क्या है। दर्द तो नहीं रहेगा।
इआगो : धिक्कार है तुम्हें, जो ऐसी क्षुद्र बातें करते हो! 28 वर्ष के लम्बे अनुभव में मैंने जीवन को परखा है और जब से अच्छे और बुरे की मुझे पहचान हुई है, मैंने कोई ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो केवल अपने को ही प्रेम करता हो। एक दुश्चरित्र स्त्री के लिए डूब मरने के स्थान पर मैं तो मनुष्यत्व को तजकर बंदर तक बन जाना अच्छा समझता हूँ।
रोडरिगो : तो मैं करूँ भी तो क्या? मैं अपनी इस आसक्ति पर स्वयं लज्जित हूँ, किन्तु इसका निवारण मेरे वश की बात नहीं है; इतनी अच्छाई मुझमें नहीं है, यह मैं स्वीकार करता हूँ।
इआगो : अच्छाई! क्या बेकार की बात है! मैं ऐसा हूँ या वैसा, यह तो मेरे ही बस की बात है न? हमारा शरीर उपवन है और हमारी इच्छा-शक्ति ही उसका माली है। हम उसमें कुछ भी बोएँ या न उगाएँ यह तो हमारे ही श्रम पर निर्भर है, हमारी ही रुचि और रुझान की बात है। यही तो हम मनुष्यों का स्वभाव भी है, जिसमें इच्छाशक्ति ही सबका संचालन और निर्माण करती है। यदि मनुष्य के पास विवेक न हो तो इन भटकती वासनाओं और आदेशों का नियंत्रण कौन करता? प्रकृति की क्षुद्रता बिना अंकुश के तो भयानक परिणाम दिखाने की भी क्षमता रखती है। तुम जिसे प्रेम कहते हो वह तो बलवती वासना-मात्र है जिसमें भयानक विषदंश की सामर्थ्य है। विवेक ही उसे बाँध सकता है।
रोडरिगो : यह नहीं हो सकता।
इआगो : सोचकर देखो! इच्छाशक्ति की लगाम हट गई है और उन्मत्त वासना ही तुममें ऐसा भाव उत्पन्न कर रही है। गम्भीर बनो, आत्मसंयम रखो! डूब मरना बिल्लियों और पिल्लों का ही काम है। मैंने सदैव स्वीकार किया है कि मैं तुम्हारा गहरा मित्र हूँ और मैं तुमसे स्नेह के गाढ़े बन्धनों में बँधा हुआ हूँ। अपने बटुए में पैसे भरो और मेरे साथ युद्धभूमि में चल। एक नकली दाढ़ी लगाकर अपने चेहरे को ढंक लो! यह निश्चित है कि डैसडेमोना ऑथेलो से अधिक समय तक अटकी नहीं रहेगी, न वही अपने प्रेम में इतना दृढ़ बना रहेगा। जो इतने आवेश और आवेग से प्रारम्भ हुआ है वह उसी वेग से समाप्त भी हो जाएगा। लेकिन तुम बटुए में धन भरकर ले चलना। इन मूर लोगों की इच्छाएँ परिवर्तनशील होती हैं। अपने बटुए में धन भरा रहना चाहिए। आज जिसे वह बहुत स्वादिष्ट भोजन समझकर खा रहा है, कल ही वह उसे अत्यन्त कड़वा लगने लगेगा। डैसडेमोना भी कल किसी नवयुवक को अपनी तृष्णा का केन्द्र बनाएगी। जब ऑथेलो से उसकी वासनाएं तृप्त हो जाएंगी तब उसे अपनी भूल का अनुभव होगा और तब उसमें मोड़ आएग। लिहाज़ा, बटुए में पैसे भरे रहो! यदि नरक की यातना ही चाहते हो तो डूब मरने से भी अच्छा एक तरीका है। जितना धन इकट्ठा कर सकते हो, कर लो! यदि डैसडेमोना पवित्रता और सतीत्व के चक्कर भी बीच में डालती है, तब भी एक उन्मत्त बर्बर मूर और एक अत्यन्त सुसंस्कृत वेनिस की स्त्री डैसडेमोना के बीच की एक निर्बल शपथ कोई ऐसी बड़ी समस्या नहीं है, जो मुझ जैसे ज़मीन-आसमान के कुलाबे मिलानेवाले शैतान की मदद पाने वाले व्यक्ति के लिए ऐसी कठिन साबित हो कि बुद्धि और कौशल से मैं उसका हल नहीं निकाल सकूँ। मैं कहता हूँ, वह तुम्हें मिलेगी और तुम उसका आनन्द से भोग करोगे। लिहाज़ा धन ले चलो! डूब मरने की बात को आग लगा दो, वह तो सवाल ही नहीं उठता। हाँ, यदि तुम अपनी इच्छा की वस्तु को प्राप्त करने के प्रयत्न में फाँसी पर झूल जाने के बजाय मरना ही अच्छा समझते हो, तो भले ही डूब जाओ और सदा के लिए उससे हाथ धो बैठो!
रोडरिगो : अच्छा, मान लो मैं अड़ा रहूँ, तो तुम विश्वास दिलाते हो कि अंत तक मेरा साथ दोगे?
इआगो : मेरे बारे में पक्का समझो! जाओ! धन एकत्र करो! मैं तुम्हें कई बार बता चुका हूँ, और फिर-फिर कहता हूँ कि मुझे मूर से घृणा है। मेरी घृणा का कारण मेरे हृदय में जमा हुआ है और तुम्हारा कारण भी कम नहीं है। आओ, हम प्रतिहिंसा के लिए अपने हाथ मिलाएँ और उसका विनाश सोचें! यदि तुम उसकी पत्नी को अपवित्र करके आनंद ले सकोगे तो इसमें मेरा आनंद कम नहीं समझना। समय के गर्भ में अनजानी घटनाएँ हैं, जिनका भविष्य में ही जन्म होगा। जाओ, धन लाओ! कल फिर और बातें होंगी। अब विदा!
रोडरिगो : तो कल सुबह मुलाकात कहाँ होगी?
इआगो : मेरे निवास-स्थान पर।
रोडरिगो : मैं ठीक वक्त पर आ पहुँचूँगा।
इआगो : विदा रोडरिगो! याद है न?
रोडरिगो : क्या?
इआगो : डूबना नहीं है, यह तो पक्की हुई न?
रोडरिगो : हाँ, अब मेरा इरादा बदल गया है।
इआगो : अलविदा रोडरिगो! अपने बटुए में पर्याप्त धन भर लो।
रोडरिगो : मैं अपनी सारी ज़मीन बेच दूँगा।
(प्रस्थान)
इआगो : इसी तरह मैं मूर्खों से अपनी आवश्यकता पूरी करता हूँ। हाय! अपने अगाध और अत्यन्त परिश्रम से उपार्जित ज्ञान से यदि मैं इस मूर्ख के कार्य के लिए अपने लाभ और स्वार्थ का त्याग करके समय और शक्ति का दुरुपयोग करता तो कितने दारुण दुःख की बात होती! मैं उस मूर से घृणा करता हूँ। लोग तो यह भी कहते हैं कि उसने मेरी स्त्री को भी अपवित्र किया है। मैं इसकी सचाई के बारे में कह नहीं सकता, किन्तु संदेह-मात्र के आधार को ही मैं ऐसे विषय में प्रमाण मानकर कार्य कर सकता हूँ। जितना ही ऑथेलो मुझे अच्छा समझता है, उतनी ही मुझे अपनी योजना को कार्यान्वित करने में सफलता मिलेगी। कैसियो सुंदर पुरुष है। देखूँ। कैसियो भी निकले और मेरा भी काम बने! दुधारी कुटिलता के लिए क्या करना उचित होगा! सोचता हूँ! कुछ दिन बाद ऑथेलो के कान भरना शुरू करूँ कि कैसियो तुम्हारी डैसडेमोना से बहुत अधिक घुला-मिला हुआ है। कैसियो सुन्दर है, उस पर सन्देह किया जाना उचित है। उस स्त्री को मिथ्याडम्बर रचने की प्रेरणा दे सकता हूँ। दूसरी ओर ऑथेलो मुक्तहृदय का व्यक्ति है, दयालु भी है। जो अपने को ईमानदार दिखाते हैं वह उन्हीं को सच्चा समझता है, और कोई भी नकेल पकड़कर उसे गधे की तरह चला सकता है। यही ठीक है। यही बीज है जिसे धरती में से फूटकर निकलना है। कुटिलता और रहस्य का अंधकार इसकी रक्षा करे ताकि इस भयानक दानवी षड्यन्त्र का जन्म हो सके!
(प्रस्थान)
दूसरा अंक : दृश्य - 1 : ऑथेलो (नाटक)
(साइप्रस का एक समुद्र-तट)
(साइप्रस के गवर्नर मोनटानो तथा दो नागरिकों का प्रदेश)
मोनटानो : क्या अन्तरीप से समुद्र के बारे में कुछ पता चल रहा है?
एक नागरिक : कुछ नहीं। केवल एक भयानक बाढ़ ही आकाश और पृथुल तरंगों के बीच में दीखती है, कोई पाल नहीं झलकता।
मोनटानो : मुझे लगता है, धरती पर यह तूफान और भी तेज़ होगा। अपने युद्ध-परिवेशों पर मैंने ऐसा भीषण प्रभंजन टूटते कभी नहीं देखा। यदि समुद्र पर भी ऐसी ही अवस्था है तो कौन-सा काठ का जहाज़ होगा जो आँधी का ऐसा वेग झेल सकेगा और यह हवा की चपेट चट्टानों को पिघलाने की शक्ति लिए चिंघाड़ती फिरती है! पता नहीं इस सबका परिणाम क्या होगा।
दूसरा नागरिक : होगा क्या? तुर्की जहाजी बेड़ा नष्ट हो जाएगा, बिखर जाएगा। फेनों से ढंके हुए तीर पर खड़े होने पर लगता है कि आकाश की ओर थपेड़े मारती अजगर-सी भीमाकार तरंगें भीषण वायु के चपेटे खाकर ऐसी घुमड़ती हुई बढ़ती दिखाई देती हैं, जैसे वे ध्रुव तारे के रक्षक ज्योति-प्रहरी सप्तर्षियों को ही निगल जाएँगी। मैंने तो समुद्र पर ऐसे तूफान को कभी गरजते नहीं देखा।
मोनटानो : यदि तुर्की जहाज़ी बेड़े ने किसी खाड़ी में घुसकर अपनी रक्षा नहीं कर ली है, तो निश्चय ही वह डूब गया होगा। ऐसे तूफान में वह बच जाए, यह तो असम्भव लगता है।
(तीसरे नागरिक का प्रवेश)
तीसरा नागरिक : सुनो भाइयो! मैं खबर सुनाता हूँ। युद्ध समाप्त हो गया। इस भयानक तूफान ने तुर्कों को ऐसा उखाड़ फेंका है कि उनकी साइप्रस पर हमले करने की सारी योजना ही छिन्न-भिन्न हो गई है। अभी-अभी वेनिस का एक बड़ा जहाज़ आया है और उसके लोगों ने स्वयं तुर्की जहाज़ी बेड़े के एक बहुत बड़े भाग को तूफान में नष्ट-भ्रष्ट होते देखा है।
मोनटानो : क्या यह सच है?
तीसरा नागरिक : वह जहाज़ वेरोना से बन्दरगाह में आ गया है। ऑथेलो के लेफ्टिनेण्ट माइकिल कैसियो किनारे पर आ गए हैं। मूर अभी समुद्र पर हैं और उन्हें अब साइप्रस के गवर्नर का स्थान दिया गया है।
मोनटानो : बड़ी प्रसन्नता की बात है। वे इस आदर और सम्मान के योग्य हैं।
तीसरा नागरिक : किन्तु तुर्की जहाज़ी बेड़े के विनाश का संवाद लाने वाले कैसियो अभी तक मूर के विषय में चिंतित दिखाई दे रहे हैं और ईश्वर से उनकी सुरक्षा की प्रार्थना कर रहे हैं। तूफान ने ही उन दोनों को अलग कर दिया था।
मोनटानो : परमात्मा उनकी रक्षा करे! मैं स्वयं उनके अधीन काम कर चुका हूँ। वे तो पूर्ण योद्धा हैं। संग्राम-भूमि में उन्हें देखना चाहिए। चलो, हम समुद्र-तीर पर चलकर उस जहाज़ को देखें जो बन्दरगाह में आया है और ऑथेलो के आने तक आकाश और लहरों के बीच में तब तक अपनी आँखें गड़ाए खड़े रहें जब तक लहरों पर उनके जहाज़ का पाल फरफराता न दिखाई दे जाए।
तीसरा नागरिक : चलिए! वहीं चलें! अभी तो हर क्षण नए जहाज़ों के आने की आशा है।
(कैसियो का प्रवेश)
कैसियो : मैं आप सब लोगों को मूर के प्रति इतना आदर दिखाने के कारण धन्यवाद देता हूँ। वे सचमुच वीर हैं। समुद्र भीषण हो गया था। तूफान ने ही मुझे उनसे विलगा दिया। ईश्वर उनकी रक्षा करे।
मोनटानो : वे जिस जहाज़ में हैं, है तो वह अच्छा न? मज़बूत तो है?
कैसियो : वैसे तो वह मज़बूत लकड़ी का बना है। उस जहाज़ का चालक भी बड़ा कुशल और अनुभवी है। अभी मेरी आशाएँ मिट नहीं गई है। मृत्यु की छाप ने मुझे ग्रस नहीं लिया है जो मैं हताश हो जाऊँ।
(नेपथ्य में-‘पाल! जहाज! पाल!' चौथे नागरिक का प्रवेश)
कैसियो : यह कैसा शोर है?
दूसरा नागरिक : सारा नगर तो खाली पड़ा है। समुद्र-तीर पर खड़ी भीड़ चिल्ला रही हैं-पाल! पाल! जहाज़!
कैसियो : मुझे तो लगता है कि यह नए गवर्नर ही होंगे।
(तोपों की सलामी सुनाई देती है।)
दूसरा नागरिक : सलामी देने का मतलब है कि दोस्त जहाज़ ही आया है।
कैसियो : मेरी विनय है कि आप स्वयं जाकर ठीक पता चलाएँ कि कौन आए हैं।
दूसरा नागरिक : मैं जाता हूँ!
(प्रस्थान)
मोनटानो : क्यों लेफ्टिनेण्ट! क्या तुम्हारे जनरल का विवाह हो गया है?
कैसियो : निश्चय! उनका विवाह तो बड़ा आनन्ददायी रहा है उन्हें। जिस स्त्री से उन्होंने विवाह किया है उसका मैं किन शब्दों में वर्णन करूँ! और यौवन की जितनी सुन्दर कथाएँ आपने सुनी हैं वे तो पीछे रह गईं; वह इतनी सुन्दर है कि कल्पना के पंख भी उसे उड़कर पार नहीं कर पाते। कवियों की कलम उसका वर्णन नहीं कर सकती। चित्रकारों की तूलिकाएँ वे रंग नहीं दरसा सकतीं।
(दूसरे नागरिक का पुन: प्रवेश)
कैसियो : बताइए! कौन आए हैं?
दूसरा नागरिक : यह तो कोई इआगो हैं। जनरल के एन्शेण्ट है।
कैसियो : अवश्य उसकी यात्रा बड़ी अच्छी रही होगी। भयानक तूफान और गरजती आँधियाँ, समुद्र के गर्भ में छिपे प्रतारक जन्तु जो अनजाने जहाज़ों का सब कुछ नष्ट करने को विह्वल रहते हैं, और न सिर्फ अनगढ़ चट्टानें ही, परंतु सर्वग्राहिणी दलदलें भी। इन सबकी भी विध्वंसक प्रकृति जैसे नष्ट हो गई है क्योंकि डैसडेमोना के सौन्दर्य ने मानो उनपर जादू कर दिया है, तभी तो उसका जहाज इतनी सुगमता से बिना किसी हानि के इतनी शीघ्र आ पहुँचा?
मोनटानो : यह डैसडेमोना कौन है?
कैसियो : वही तो, जिसके बारे में मैंने अभी कहा, हमारे संचालक का संचालन करनेवाली शक्ति। वह इसी वीर इआगो की संरक्षता में भेजी गई थी और आशा से एक सप्ताह पूर्व ही आ पहुँची है। देवाधिदेव जूपिटर! ऑथेलो की रक्षा करो! तुम ही उसकी पालों में अपना प्रचंड श्वास भरकर उन्हें फुला दो, ताकि उसका शानदार जहाज़ सुरक्षित-सा इस खाड़ी में आ पहुँचे! वह आए और डैसडेमोना की बांहों में शान्ति पाए! हमारे बुझे हुए हृदयों को फिर से ज्योतित कर दो और सारे साइप्रस में हर्ष और सुख फैला दो।
(डैसडेमोना, इमीलिया, इआगो, रोडरिगो और सेवकों का प्रवेश)
कैसियो : वह देखिए! जहाज़ का खज़ाना किनारे पर उतर आया है। अरे साइप्रस के निवासियो! आदर और प्रेम से उसके सामने घुटने टेक कर प्रणाम करो! स्वागत! देवी, स्वागत! ईश्वर की असीम अनुकम्पा आपको कवच की भाँति घेरे रहे।!
डैसडेमोना : धन्यवाद वीर कैसियो! मेरे स्वामी के बारे में क्या सँवाद है?
कैसियो : वे अभी नहीं आए हैं और सिवाय इसके कि वे सकुशल हैं और शीघ्र ही आ पहुँचेगे, मैं तो कुछ भी नहीं जानता।
डैसडेमोना : मुझे चिन्ता हो रही है। आप उनके साथ थे। अलग कैसे हो गए?
कैसियो : समुद्र की भयानक लहरों और तूफान के झकोरों ने हमें अलग कर दिया।
(नेपथ्य में ‘पाल! जहाज!' तोपों का गर्जन)
सुनिए कोई जहाज़ आया लगता है।
दूसरा नागरिक : तोपों की सलामी दी जा रही है। इसका मतलब है कि यह भी दोस्त जहाज़ है।
कैसियो : सँवाद लाइए!
(नागरिक का प्रस्थान)
कैसियो : आह वीर एन्शेण्ट! स्वागत! (इमीलिया से) देवी, आप भी यहीं हैं। (इआगो से) बुरा न मानना मित्र, यदि मैं स्वागत के उपलक्ष्य में तुम्हारी स्त्री का चुम्बन करता हूँ, यह साहस मेरी कुलीन परम्पराओं का प्रभाव है, न कि किसी कलुषित भावना का।
(चुम्बन करता है।)
इआगो : जितना यह तुम्हें अपना अधर-दान देती है उतना ही यदि यह तुम्हें अपनी जीभ देती, जैसे कि मुझे देती है, तो अवश्य ही तुम भर पाते।
डैसडेमोना : लेकिन वह तो बात ही नहीं करती।
इआगो : लेकिन मेरा कटु अनुभव मुझे बताता है कि जब मैं सोने को होता हूँ तो यही जीभ कतरनी की तरह चलती है। मेरी की शपथ,* (* ईसामसीह की माता का नाम मेरी था।) यह मैं मानता हूँ कि आपके सामने यह अपने विक्षोभ को जीभ से व्यक्त नहीं करती, मन ही मन कोसती रहती है।
इमीलिया : आपके ऐसा कहने का कोई कारण नहीं है।
इआगो : अरे रहने दो! सबके सामने तुम बड़ी मधुर, मिलनसार और सुन्दर दिखाई देती हो, जैसे कोई आकर्षक चित्र हो, और भीतर लोगों से मिलने के समय अवश्य तुम्हारी आवाज़ इतनी मीठी सुनाई देती है लेकिन रसोईघर में तुम जंगली बिल्ली की तरह खोखियाती हो; जब तुम्हारे दिल में किसी का नुकसान करने का इरादा पैदा होता है तब तुम भगतिन बन जाती हो, किंतु ज़रा किसी ने छेड़ दिया तो शेरनी की तरह बिफर उठती हो। जब घर गिरस्ती के काम की ज़रूरत होती है उस समय तो तुम पर आलस छा जाता है, पर जब रात को बिस्तर पर हो तब ज़रूर घरवाली के कामों में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी लेती हो।
डैसडेमोना : धिक्कार है तुमपर! नारी की निन्दा कर रहे हो!
इआगो : नहीं, किन्तु है यह सत्य ही, भले ही आप मुझे इसके लिए तुर्क कह लें-विधर्मी कह लें, बर्बर कह लें। जागने पर तुम्हारा मन व्यर्थ के आनन्दों की प्राप्ति की ओर जाता है, क्रीड़ारत रहता है, पर जब बिस्तर की ओर जाती हो मानो कोई बड़ा काम करने जाती हो।
इमीलिया : आपको मेरी प्रशस्ति गाने की ज़रूरत ही क्या है?
इआगो : बेहतर है, क्योंकि जो मैं कहूँगा वह प्रकट ही है।
डैसडेमोना : अच्छा! अगर मैं कहूँ कि मेरा वर्णन करो, तो तुम क्या कहोगे?
इआगो : रहने दें देवी! मुझे कहने को विवश न करें, क्योंकि आलोचना में मैं बड़ा मुँहफट हूँ।
डैसडेमोना : कोई बात नहीं। कहो तो! हाँ, कोई बन्दरगाह की ओर उस जहाज़ की खबर लाने गया है या नहीं, जिसको अभी तोपों ने सलामी दी थी?
इआगो : हाँ, देवी!
डैसडेमोना : मैं प्रसन्न नहीं हूँ। मैं अपने हृदय की भावना को छिपाने के लिए ही इधर-उधर की बातों में मन लगाए रहने की चेष्टा कर रही हूँ। अच्छा चलो! मेरा वर्णन करने का प्रयत्न करो!
इआगो : मैं समझ नहीं पाता कि कैसे कहूँ। मेरे विचारों को मेरे मस्तिष्क में से निकलने में उतना ही कष्ट हो रहा है जितना ऊन में से लासा निकालते समय होती है। सारा दिमाग ही उखड़ता-सा लगता है। किन्तु मेरी म्यूज़ * (* म्यूज़-कला की देवी।) श्रमरत है। लीजिए सुनिए, वह कहती है-यदि वह सुन्दरी और विदुषी है, तो सौंदर्य आनन्द प्राप्त करने के लिए है और बुद्धि उसकी अपनी वस्तु है, जिससे वह अपने सौन्दर्य को और भी सुन्दर बनाती है।
डैसडेमोना : खूब कहा! किन्तु यदि वह काले रंग की है और चतुर भी है तो?
इआगो : काली होने पर भी यदि वह चतुर है तो उसे एक गोरा प्रेमी अवश्य मिलेगा जो उसके कालेपन के उपयुक्त होगा।
डैसडेमोना : ऊहूँ, यह तो अच्छा नहीं।
इमीलिया : अच्छा! यदि वह गोरी हो पर मूर्ख हो!
इआगो : गोरी और सुन्दर स्त्री को आज तक किसने मूर्ख कहा? उसकी तो मूर्खता भी उसे सदैव उत्तराधिकारी प्राप्त करा देती है।
डैसडेमोना : यह तो शराबखानों में बेवकूफों को हँसाने वाली पुरानी घिसी-घिसाई कहमुकरियाँ और कहावतें हैं। बताओ, तुम उस स्त्री के लिए क्या कहोगे जो काली और कुरूप ही नहीं, मूर्ख भी हो!
इआगो : ऐसी मूर्ख और कुरूप तो कोई स्त्री होती ही नहीं, जिसमें इतनी भी बुद्धि न हो कि सुन्दरी और चतुर स्त्रियों की तरकीबों की नकल न कर सके।
डैसडेमोना : ऐसा अज्ञान तो वास्तव में दयनीय है। जो सबसे खराब है, उसकी ही तुमने सबसे अधिक प्रशंसा की है। किन्तु उस प्रशंसा की वास्तविक पात्री के बारे में तुम क्या कहोगे, जिसकी अच्छाइयाँ इतनी गहरी बुनियाद पर टिकी होती हैं कि वे ईर्ष्या और संदेह को भी उखाड़ फेंक सकती हैं।
इआगो : जो सदैव सुन्दरी है और कभी अभिमान नहीं करती, वह वाक्कुशल होती है, किन्तु कभी वाचाल नहीं होती। जिसके पास काफी धन होता है, किन्तु कभी तड़क-भड़क को पास नहीं आने देती, जो इच्छाओं को वश में रखकर समय आने पर ही उनकी पूर्ति करती है, जो क्रुद्ध होने पर प्रतिहिंसा का सुयोग पाकर भी अपने प्रहार को रोक देती है और क्रोध को दूर करती है, सहन करने की सामर्थ्य रखती है, जो कभी इतनी अचतुर नहीं होती कि बुरे के लिए अच्छे को बदल डाले, जो सोच सकती है, फिर भी अपने भावों को व्यक्त नहीं करती, जिसके पीछे प्रेमियों की भीड़ चलती है, किन्तु जो पलटकर नहीं देखती, वह स्त्री यदि कभी ऐसी स्त्री हो सकती है...
डैसडेमोना : वह करती क्या है?
इआगो : अधिक से अधिक बच्चों को दूध पिला सकती है और घर-गिरस्ती का हिसाब रख सकती है।
डैसडेमोना : छि:! क्या चिंतन है! क्या निष्कर्ष है! इमीलिया! ये तुम्हारे पति हैं अवश्य, परन्तु इनके विचार को स्वीकार मत करना! कैसियो! तुम्हारा इस विषय में क्या विचार है? इआगो तो बड़े अश्लील और मुँहफट सलाहगीर हैं। हैं न?
कैसियो : देवी! वे मतलब की बात करते हैं और कोई लगाम नहीं लगाते। आप तो इन्हें विचारक के रूप में न देखकर एक सैनिक के रूप में देखें तो अधिक अच्छा हो।
इआगो : (स्वगत) अरे! यह तो डैसडेमोना का हाथ पकड़कर उसके कान में बात करता है। यह तो बहुत अच्छा है। इसी ज़रा-से जाले में तो कैसियो जैसी बड़ी मक्खी को फँसा दूँगा! अच्छा! कैसियो! तू डैसडेमोना के साथ मुस्करा रहा है! मुस्करा ले! तेरे इस प्रेम-प्रदर्शन में से ही तो तेरी बेड़ियाँ मैं पैदा करूँगा जो तुझे बाँध लेंगी। ठीक कहता हूँ ऐसा ही होगा। अगर तेरी इन तरकीबों से ही तेरी लेफ्टिनेण्टी न छिनवा दूँ तो कहना! अरे, कैसे इसकी उँगलियों को बार-बार चूम रहा है! इस चुम्बन से ही तो तू अपनी कुलीनता और अच्छाइयों के आडम्बर को प्रकट कर रहा है! फिर चुम्बन लिया? वाह रे स्त्री के सम्मान करने के प्रयोग! फिर ले गया उँगलियों को होंठों की ओर! (तुरही बजती है) मूर! मूर की तुरही बजी!
कैसियो : यह तो आवाज़ मेरी पहचानी है। उनके साथ ही बजाई जाती है।
डैसडेमोना : चलो, हम उनका स्वागत करें!
कैसियो : लीजिए, वे आ गए!
(ऑथेलो और सेवकों का प्रवेश)
ऑथेलो : आह! मेरी आज्ञादायिनी स्वामिनी!
डैसडेमोना : मेरे प्रिय ऑथेलो!
ऑथेलो : अपने सामने तुम्हें देखकर मुझे अपार हर्ष हो रहा है। तुम मेरे प्राणों का आनन्द हो! यदि हर तूफान के बाद ऐसा सुख मिले, तो यह प्रचण्ड पवन तब तक चले जब तक मुर्दे करवटें न बदल डालें, कोई चिन्ता नहीं यदि उठती हुई लहरें आकाश में स्वर्ग को छू लें या नरक तक पृथ्वी के नीचे धँस जाएँ। यदि मुझे कभी मरना है तो मैं इस क्षण मर जाऊँ, क्योंकि इस क्षण मैं पूर्ण तृप्त हूँ और अज्ञात भविष्य में सम्भवत: ऐसी परितृप्ति कभी नहीं मिल सकेगी!
डैसडेमोना : ईश्वर न करे ये इच्छाएँ पूर्ण हों! जैसे-जैसे समय बीते, परमात्मा करे हमारा प्रेम और आनन्द परिवर्धित हो!
ऑथेलो : भाग्य के देवताओ! तथास्तु कहो! आज मैं ऊपर तक आनंदप्लावित हो गया हूँ। कैसे कहूँ! मेरा आनन्द तो शब्दों में समा नहीं पा रहा है! गिरा अनयन है, नयनों में वाणी नहीं है, मैं इस गूँगे की मिठास का वर्णन करूँ? (चुम्बन लेते हुए) यह...और यह...सच, यदि हमारे जीवन में टकराहट हो तो यही उसका रूप हो...* (* अर्थात् चुम्बन ही टकराहट का रूप हो।)
इआगो : (स्वगत) इस समय तो तुम्हारे तार मिले हुए हैं, लेकिन मैं तो इस सामंजस्य को तोड़ ही दूँगा, फिर देखना कैसा बेसुरा राग निकलता है। मैं झूठ नहीं कहता, ईमानदार आदमी हूँ।
ऑथेलो : चलो, दुर्ग की ओर चलें। मेरे पास बड़ी खुशखबरियाँ हैं। हमारा युद्ध समाप्त हो गया है और तुर्क डूब गए हैं। मेरे मित्रो! द्वीप के निवासियो! आप लोग तो सकुशल हैं? प्रिये! साइप्रस की प्रजा तुम्हें बड़ा स्नेह और सम्मान देगी। यह सदैव मुझे बहुत चाहती है। प्रियतमे! मैं वाचाल हो गया हूँ और अपने ही सुखों में रम गया हूँ न, कि मुझे कुछ ध्यान नहीं रहा! मेरे अच्छे इआगो! ज़रा खाड़ी तक चले जाओ और बक्स इत्यादि जहाज़ से उतरवा लो! जहाज़ के कप्तान को दुर्ग में ले आना। वह बड़ा योग्य और सम्माननीय व्यक्ति है। चलो डैसडेमोना, साइप्रस में तुमसे मिलकर आनन्द आ गया।
(ऑथेलो, डैसडेमोना और सेवकों का प्रस्थान; केवल इआगो और रोडरिगो रह जाते हैं)
इआगो : क्या तुम कुछ समय बाद बन्दरगाह पर मिलोगे? यदि तुम वीर हो, और जैसा कि कहा जाता है कि क्षुद्र व्यक्ति भी प्रेम में इतने उदात्त हो जाते हैं, जितने कि वे होते नहीं, तो मेरी बात सुनो! आज रात लेफ्टिनेण्ट की ड्यूटी है रात्रि-प्रहरियों और रक्षकों की देख-भाल करना। एक बात पहले बता दूँ कि डेसडेमोना और कैसियो में गहरी प्रीति है।
रोडरिगो : उससे? यह कैसे हो सकता है?
इआगो : चुपचाप मेरी बात सुनो और अपने मुँह को बन्द ही रखो! याद है न? शुरू में ऑथेलो की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर डैसडेमोना ने किस आवेश से उससे प्रेम किया था! लेकिन बातों के कारण तो वह सदैव वैसा ही प्रेम नहीं कर सकती! अगर तुममें थोड़ी भी बुद्धि है, तो शायद तुम भी ऐसा नहीं समझोगे। अपने हृदय की इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए उसे कोई सुन्दर पात्र चाहिए। भला ऐसे शैतान के-से कुरूप मूर को देखकर वह सुख कैसे पा सकती है! जब पहली वासना का आवेश शान्त हो जाता है, तब उस अग्नि को भड़काने के लिए किसी नई वस्तु की आवश्यकता होती है-समवयस्कता, सुन्दर मुख, अच्छा स्वभाव और रुचियाँ, इनमें से कोई भी ऐसी उत्तेजना दे सकता है। मूर में तो ऐसा कोई गुण नहीं। अत: यह स्पष्ट ही है कि जब ऐसी कोई बात डैसडेमोना को नहीं मिलेगी जिसमें उसका मन रम सके, तो उसका कोमल स्वभाव उचाट खाएगा और उसकी आँखों से सारे पर्दे उतर जाएँगे। उसे लगेगा वह सब कुछ खो चुकी है। वह उससे ऊबने लगेगी और तब वह अपने स्वभाव से मेल खानेवाले प्रेमी की खोज करने लगेगी। अब अगर ऐसी हालत हो जाए और इसके सिवाय कुछ हो नहीं सकता, तब कैसियो के सिवाय और ऐसा कौन है जो उस परिस्थिति में अधिक उपयुक्त और भाग्यशाली दीखता हो? वह बड़ा मिठबोला है और ऐसी नैतिकता उसके पीछे नहीं कि जो अपनी जघन्य तृष्णा पूरी करने के लिए मीठे व्यवहार का दिखावा करने से उसे रोक दे। उसके अतिरिक्त ऐसा कोई नहीं जिसको डैसडेमोना अपने प्रेम का पात्र बना सके। वह बड़ा अविश्वसनीय व्यक्ति है और अवसरवादी भी है। वह अपने अनुकूल परिस्थितियाँ बनाना जानता है और ऐसे मौके कभी नहीं चूकता जिनमें वह अपनी कलुषित वासनाओं की तृप्ति कर सके। वह पक्का शैतान है। और फिर जवान है, खूबसूरत है और कमसिन, अनुभवहीन और मूर्खों को आकर्षित करने के सारे गुण उसमें मौजूद हैं। वह पक्का धूर्त है। और डैसडेमोना ने तो उसके प्रति अपने आकर्षण को प्रकट भी कर दिया है।
रोडरिगो : लेकिन, जाने क्यो मुझे इस सब में विश्वास नहीं होता। वह स्त्री सर्वश्रेष्ठ मानवी गुणों से पूर्ण है।
इआगो : क्या मूर्खता की बात है! वह एक साधारण स्त्री-मात्र है और उसमें भी वही वासनाएँ तथा पाप की ओर लिप्त होने की तृष्णा है। यदि वह असाधारण होती तो वह मूर के प्रेम में कभी नहीं पड़ती। वह भी अंगूर की शराब ही पीती है। अरे अक्ल के दुश्मन! देखा नहीं था, वह कैसे उसके हाथ को दबा रही थी? अच्छा कहो, तुमने नहीं देखा?
रोडरिगो : देखा क्यों नहीं था, लेकिन वह तो सौजन्य की बात थी?
इआगो : मैं शर्त बदकर कहता हूँ कि वह वासना थी। अनैतिकता और तृष्णा के इतिहास की वह भूमिका-मात्र थी। उनके होंठ इतने पास आ गए थे कि उनके श्वास टकरा रहे थे। रोडरिगो! ये कुटिल विचार हैं। जब यह पारस्परिक मिलन इस प्रकार रास्ता बनाता है तब ही पाप की वास्तविक क्रिया अपने को साकार कर उठती है। वह स्वामिनी की भाँति आकर बाद में अपना सर्वाधिकार कर लेती है। मूर्ख न बनो! मेरी बात मानो! मैं तुम्हें वेनिस ले आया हूँ। आज रात जो मैं तुमसे कहूँ उसके लिए सन्नद्ध रहो! कैसियो तुम्हें नहीं जानता। वह निकट ही होगा। किसी तरह उसे कुद्ध करने की कोई तरकीब निकाल लो, ज़ोर से बोलकर या उसकी फौजी पाबन्दियों पर कोई धब्बा लगाकर, या जैसा भी मौका देखो उसे किसी तरह से चिढ़ा दो!
रोडरिगो : अच्छी बात है!
इआगो : वह बड़ा तुनुकमिज़ाज है और उसे जल्दी गुस्सा चढ़ता है। हो सकता है, वह तुमपर भी वार करे। ऐसा करो कि वह तुमपर हमला करे। मैं तो इसी में से ऐसा कारण ढूँढ निकालूँगा कि साइप्रस में गदर हो जाए। कम से कम इतना तो हो जाएगा कि कैसियो को नौकरी से हाथ धोना पड़ जाएगा। तुम्हारी मंज़िल पास आ जाएगी और मुझे मौका मिल जाएगा कि मैं अपनी परिस्थिति का लाभ उठाकर तुम्हारे लिए रास्ता साफ कर सकूँगा ताकि तुम्हारी इच्छाओं की शीघ्रातिशीघ्र पूर्ति हो जाए।
रोडरिगो : मैं तुम्हारे आदेशानुसार चलूँगा और प्रयत्न करूँगा कि इस अवसर का लाभ उठाया जा सके।
इआगो : मैं विश्वास दिलाता हूँ। कुछ देर बाद मुझसे दुर्ग के पास मिल लेना! तब तक मैं मूर का सामान लाने जाता हूँ। विदा!
रोडरिगो : विदा!
(प्रस्थान)
इआगो : मुझे विश्वास है कि कैसियो डैसडेमोना से प्रेम करता है और यह भी विश्वसनीय और उचित लगता है कि वह भी उसे चाहती है। यद्यपि मूर से मैं घृणा करता हूँ फिर भी मानना पड़ेगा कि वह स्वभाव से स्नेही, दृढ़ तथा उदात्त है और वह डैसडेमोना के प्रति बहुत उदार, स्नेही, और प्रेमी पति प्रमाणित हो गया। मैं भी उसे प्यार करता हूँ, केवल वासनाजन्य तृष्णा के कारण नहीं, हालाँकि मैं अपने को पाप के प्रति अबोध भी नहीं मानता, लेकिन इसमें तो मेरी प्रतिहिंसा की तृप्ति होती है, क्योंकि मुझे सन्देह है कि विषयी ऑथेलो ने मेरी स्त्री को भ्रष्ट किया है। यह विचार तो मेरी नस-नस में विष भर दे रहा है, और जब तक मैं 'पत्नी के लिए पत्नी' का बदला नहीं ले लूँगा, तब तक मुझे कभी भी चैन नहीं पड़ेगा। यदि यह नहीं होगा तो मैं ऑथेलो के हृदय में ऐसी आग लगा दूँगा जो कभी बुझाई नहीं जा सकेगी। पहले तो मुझे इसके लिए कैसियो की कमियों को पकड़ना होगा, ओर यह तभी हो सकता है जब वह दो कौड़ी का कुत्ता रोडरिगो धैर्य धरकर मेरे आदेशों के अनुसार चले। जब कभी मौका लगेगा मैं ऑथेलो से कैसियो की गन्दे से गन्दे शब्दों में निन्दा करूँगा। मुझे यह भी सन्देह है कि कैसियो की मेरी स्त्री से मित्रता है। ऑथेलो मेरे प्रति कृतज्ञ होगा, मैं उसे मूर्ख बनाऊँगा, उसकी शान्ति के विरुद्ध षड्यन्त्र रचूँगा और उसके साथ ऐसा घात करूँगा कि वह पागल तक हो जाए! मेरी योजना यहाँ (सिर में) है लेकिन अभी कुछ स्पष्ट नहीं है। कुटिलता का मुँह तभी स्पष्ट दीखता है जब वह प्रयोग में लाई जाती है।
(प्रस्थान)
दूसरा अंक : दृश्य - 2
(साइप्रस की एक गली)
(ऑथेलो के घोषणावाहक का प्रवेश; उसके हाथ में घोषणा-पत्र है, उसके पीछे प्रजा है।)
घोषणावाहक : तुर्की बेड़े के पूरी तरह विनष्ट हो जाने का सँवाद पाकर हमारे वीर सेनानायक ऑथेलो की यह इच्छा है कि प्रत्येक व्यक्ति विजय का आनन्द मनाए; नृत्य, गीत और उत्सव के प्रबन्ध किए जाएँ, क्योंकि विजय के आनन्द के अतिरिक्त यह उनके परिणय का भी परम शुभ अवसर है। उनकी इस इच्छा की घोषणा की जाती है। भोजन के लिए लंगरों का प्रबन्ध किया गया है जहाँ कोई भी स्वतन्त्रता से भोजन कर सकता है। उससे प्रीतिभोज का कोई मूल्य नहीं लिया जाएगा। इस समय पाँच बजे से ग्यारह बजे तक कोई रोक नहीं होगी। परमात्मा हमारे साइप्रस द्वीप तथा हमारे वीर व गौरवान्वित सेनानायक ऑथेलो का मंगल करें!
(प्रस्थान)
दूसरा अंक : दृश्य - 3
(दुर्ग का एक विशाल प्रकोष्ठ)
(ऑथेलो, डैसडेमोना, कैसियो और सेवकों का प्रवेश)
ऑथेलो : प्रिय माइकिल! आज रात को प्रहरियों पर तुम स्वयं दृष्टि रखना! प्रत्येक कार्य में नियमित मर्यादा होनी चाहिए, कहीं आनन्द अपनी सीमा का उल्लंघन करके उत्पात न बन जाए!
कैसियो : इआगो को इस सम्बन्ध में सारे आदेश दे दिए गए हैं, किन्तु फिर भी मैं स्वयं निरीक्षण करता रहूँगा।
ऑथेलो : इआगो बहुत ईमानदार है। अच्छा, गुडनाइट माइकिल! कल प्रातःकाल शीघ्रातिशीघ्र मैं तुमसे बातें करूँगा। (डैसडेमोंना से) चलो प्रिये!
अभी हमें अपने परिश्रम का फल प्राप्त करना है और वह आनन्द तो हमारे-तुम्हारे बीच का है। (कैसियो से) गुडनाइट!
(ऑथेलो, डैसडेमोना तथा सेवकों का प्रस्थान; इआगो का प्रवेश)
कैसियो : स्वागत इआगो! चलो, प्रहरियों का निरीक्षण कर आएँ!
इआगो : इस समय नहीं लेफ्टिनेण्ट! अभी तो दस भी नहीं बजे। डैसडेमोना के प्रेम के कारण ही हमारे जनरल ने समय से पूर्व ही हमें छोड़ दिया है-इसके लिए हमें दोष नहीं देना चाहिए। अभी तक उन्होंने उसके साथ रात्रि व्यतीत नहीं की है और फिर वह तो आनन्द-केलि का आधार ठहरी!
कैसियो : वह एक बहुत अच्छी महिला है।
इआगो : और सचमुच, कहते हैं वह बड़ी क्रीड़ातुरा भी है।
कैसियो : सच, वह बड़ी स्फूर्तिमती और मोहिनी है।
इआगो : कैसी सुन्दर आँखें हैं उसकी! ऐसा लगता है कि मानो प्रेम की ओर प्ररित करनेवाली वह स्वयं एक प्रेरणा ही है।
कैसियो : आकर्षक नेत्र! किन्तु फिर भी उनमें कितनी लज्जा है, संकोच है।
इआगो : जब वह बोलती है तब क्या वह मानो प्रेम करने का निमंत्रण नहीं देती?
कैसियो : वह हर प्रकार से पूर्ण है।
इआगो : उनकी सुहागरात के आनन्द के लिए, आओ लेफ्टिनेण्ट! मेरे पास एक मदिरा का पात्र है और यहाँ साइप्रस के वीर युवक हैं, कोई ऐसा नहीं जो कृष्णवर्ण ऑथेलो के आनन्द और मंगल-कामना के लिए पीने को तत्पर न हो।
कैसियो : नहीं, प्रिय इआगो! आज रात नहीं। शराब के नाते मेरा दिमाग बहुत कमज़ोर है, मैं तो चाहता हूँ कि समाज के स्वागत-सत्कार के आयोजनों में आनन्द मनाने का कोई दूसरा ही साधन निकल आए।
इआगो : अरे, ये सब अपने मित्र हैं। बस, एक प्याला पीओ! मैं भी तुम्हारे साथ पीऊँगा।
कैसियो : एक प्याला शराब पानी में मिलाकर मैं आज रात पी भी चुका हूँ! और देखो न, मेरा चेहरा कैसा सुर्ख हो गया है। इस निर्बलता को मेरा दुर्भाग्य ही समझो। इस कमज़ोरी से और खेलने का मुझमें साहस नहीं है।
इआगो : कमाल करते हो! आनन्द की रात है और सारे वीर यही कामना करते हैं।
कैसियो : कहाँ हैं वे?
इआगो : सब द्वार पर हैं। मैं सच कहता हूँ, बुला लो भीतर!
कैसियो : बुलाता हूँ पर शराब मुझे तकलीफ देती है।
(प्रस्थान)
इआगो : यदि मैं इसे पी हुई शराब के ऊपर बस एक प्याला-भर और पिलाने में सफल हो गया तो समझ लो यह किसी भी जवान औरत के लिए कुत्ते की तरह पागल और मस्त हो जाएगा। और उधर प्रेम में पागल मूर्ख रोडरिगो भी डैसडेमोना के लिए शुभकामना में पी-पीकर धुत हो चुका है और वह भी आज प्रहरी है। यहाँ मेरे साथ साइप्रस के तीन कुलीन और उद्दण्ड तरुण हैं जो ज़रा-सी बात पर भड़क उठते हैं और भिड़ने को तैयार रहते हैं। मैंने उन्हें पिला-पिलाकर उत्तेजित कर रखा है। वे भी प्रहरी हैं। अब शराबियों के इस दल में मुझे कैसियो को पिलाकर ऐसे पेश करना है कि द्वीप-निवासी उत्तेजित हो उठें। लो, वे आ गए! यदि मेरी आयोजना के अनुसार सब कार्य पूर्ण हो गए तो फिर मेरी नाव तो हवा और पानी की अनुकूलता में मज़े में बहेगी।
(कैसियो का मोनटानो तथा अन्य नागरिकों के साथ प्रवेश; पीछे मदिरा पात्रों के साथ सेवक हैं)
कैसियो : भगवान-कसम! उन्होंने मुझे तो पहले ही पिला-पिलाके चक्क कर दिया।
मोनटानो : ज़रा-सी लीजिए! सैनिक हूँ, सच कहता हूँ, बहुत थोड़ी सी!
इआगो : शराब लाओ!
(गाता है)
खन खन प्याले बजे हमारे
खन खन खन खन खन खन खन!
होता है, इन्सान सिपाही
और ज़िन्दगी छोटा भाई,
पिए न क्यों फिर कहो सिपाही!
खन खन प्याले बजें हमारे
खन खन खन खन खन खन खन!
लड़को! और शराब लाओ!
कैसियो : भगवान-कसम! क्या ज़ोरदार गाना है!
इआगो : इसे मैंने इंग्लैंड में सीखा था, जहाँ के लोग पीने में कमाल करते हैं। तुम्हारे डेन, जर्मन, यहाँ तक कि मोटी तोंदवाले हालैण्डवासी भी इस मामले में अँग्रेज़ों के सामने कुछ नहीं हैं।
कैसियो : क्या अँग्रेज़ इतना पियक्कड़ होता है?
इआगो : डेन शराब के नशे में पछाड़ खा जाए, मगर अँग्रेज़ चूँ भी न करेगा। जर्मन को पीने में मात देते वक्त तो उसे पसीना भी नहीं आता। हालैण्डवासी तो कै करने लगता है, जबकि अँग्रेज़ अपना प्याला भरवाने की इच्छा करता है।
कैसियो : हमारे वीर जनरल के स्वास्थ्य के लिए...
मोनटानो : लेफ्टिनेण्ट! मैं तुम्हारे साथ हूँ। शराब के साथ तो अब इंसाफ होगा।
इआगो : आह, प्यारे इग्लैंड!
राजा स्टीफन योग्य व्यक्ति था, बड़ा वीर था;
उसकी ब्रीचेस ( चुस्त पाजामा ) की कीमत बस एक क्राउन ( सिक्का ) थी।
दर्जी ने छ: पेंस ( छोटा सिक्का।) अधिक ले लिए हाथ से,
गाली राजा ने दी उसको यही बात थी।
वह ऊँचे दर्जे का था इन्सान नामवर,
तुम हो नीचे दर्जे के, काहिल सबसे।
गर्व राष्ट्र का लाता सदा पतन जगती पर,
सन्तोषी बन रहो, मिले जो लेकर, सुख से!
और शराब लाओ!
कैसियो : भगवान-कसम! यह गाना तो पहलेवाले से भी अच्छा है।
इआगो : और गाऊँ!
कैसियो : नहीं! क्योंकि ऐसे गानेवाले के लिए यह स्थान उपयुक्त नहीं है। भगवान सबसे ऊपर है। कुछ प्राणी ऐसे हैं जिनकी रक्षा होनी चाहिए, कुछ आत्माएँ ऐसी हैं जिनकी रक्षा नहीं होनी चाहिए।
इआगो : यह सच तो है लेफ्टिनेण्ट!
कैसियो : जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं जनरल का कोई अनिष्ट नहीं चाहता। शायद इसलिए मेरी रक्षा हो जाएगी।
इआगो : यही मेरी आशा भी है लेफ्टिनेण्ट!
कैसियो : हाँ, किन्तु तुम्हारी मर्ज़ी से ही सही, पर मुझसे अधिक नहीं। लेफ्टिनेण्ट से पहले एन्शेण्ट नहीं। छोड़ो भी यह सब। आओ अपने कर्तव्य का पालन करें! ईश्वर हमारे पापों के लिए हमें क्षमा करे। श्रीमान! आइए! अपने कर्तव्य की ओर ध्यान दें। महाशयो! मुझे यह न समझना कि मैं नशे में हूँ। मैं जानता हूँ, यह मेरे एन्शेण्ट हैं। यह मेरा दायाँ हाथ है, यह बायाँ है। मैं बिल्कुल ठीक हूँ। देखो! मैं बिल्कुल ठीक बातें कर रहा हूँ।
सब : बिल्कुल!
कैसियो : क्यों? बिल्कुल ठीक! तब आप लोग मेरे बारे में यह न सोचें कि मैं नशे में हूँ।
(प्रस्थान)
मोनटानो : किले के बुर्ज पर चलो, अब अपनी-अपनी जगह पर पहरा देना उचित है।
इआगो : (व्यंग्य से) आपने इस आदमी को देखा जो अभी बाहर गया है? वह अपने को इतना महान योद्धा समझता है कि सीज़र के पास खड़ा होने योग्य है। और उसकी धूर्तता देखो! बिल्कुल पता नहीं चलता कि उसमें और उसकी भलमनसाहत में फर्क क्या है? कैसे अफसोस की बात है! ऑथेलो ने उस पर कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी डाल रखी है! मुझे डर है, किसी न किसी दिन जब यह नशे में झूम जाएगा, द्वीप पर बड़ी हलचल मचा देगा।
मोनटानो : क्या अक्सर यह ऐसा ही हो जाता है?
इआगो : हाँ, हर रात सोने जाते वक्त पीता है। अगर रात इसे सुला न दे तो इसके पीने का अन्त न हो।
मोनटानो : तब तो जनरल को इसकी सूचना देना उचित है। शायद उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं हो; हो सकता है कि रहमदिली की वजह से उन्होंने सिर्फ इसकी अच्छाइयों पर गौर करके इसकी बुरी आदतें नज़रन्दाज़ कर दी हों। ठीक है न?
(रोडरिगो का प्रवेश)
इआगो : (उससे अलग से) क्यों रोडरिगो! मैं कहता हूँ लेफ्टिनेण्ट पीछे लग जाओ!
(रोडरिगो का प्रस्थान)
मोनटानो : यह कितने अफसोस की बात है कि ऑथेलो ने अपने बाद एक नशेबाज़ को इतनी ताकत दे रखी है। ऐसे मामले में वीर मूर को सूचित कर देना तो एक बहुत बड़ी ईमानदारी ही समझनी चाहिए।
इआगो : भाई, मैं तो सारे साइप्रस की दौलत के बदले में भी ऐसा नहीं कर सकता। मुझे कैसियो से बहुत प्रेम है और उसकी यह बुरी आदत छुड़ाने के लिए मैं तो कुछ भी करने को तैयार हूँ। सुनो, सुनो! यह भीतर कैसा शोर हो रहा है?
(पुकार; ‘बचाओ! बचाओ!' रोडरिगो को भगाते हुए कैसियो का प्रवेश)
कैसियो : कमीने! हरामी! शैतान!
मोनटानो : लेफ्टिनेण्ट! क्या बात है? क्या बात है?
कैसियो : यह बदमाश मुझे मेरा कर्तव्य सिखाएगा? मैं इसे मार-मार के भुर्ता बना दूँगा!
रोडरियो : मार-मार के!
कैसियो : फिर बोला लुच्चे!
(रोडरिगो को मारता है।)
मोनटानो : नहीं, वीर लेफ्टिनेण्ट! मारो मत! मैं प्रार्थना करता हूँ, मारो मत।
(रोकता है।)
कैसियो : छोड़िए मुझे! वर्ना मैं आपका भी सिर तोड़ दूँगा।
मोनटानो : छोड़ो-छोड़ो! तुम नशे में हो।
कैसियो : नशे में हूँ?
(लड़ते हैं)
इआगो : (रोडरिगो से अलग से) भाग-भाग! तुरन्त बाहर जाकर शोर करके आसमान सिर पर उठा ले! खूब चिल्लाना : गदर! गदर! बलवा! बलवा!
(रोडरिगो का प्रस्थान)
सुनिए वीर लेफ्टिनेण्ट! भगवान की मर्ज़ी! महाशयो! बचाओ! लेफ्टिनेण्ट मोनटानो! श्रीमान! बचाओ। स्वामी! लो-लो, घण्टा बज गया। (घण्टा बजता है।) खतरे का घण्टा! कौन बजा रहा है घण्टा! उफ, शैतान! नगर जाग उठेगा। भगवान की इच्छा! अरे रुको! कभी सिर उठाने लायक नहीं रहोगे!
(ऑथेलो और सेवकों का प्रवेश)
ऑथेलो : क्या बात है?
मोनटानो : ईश्वर की सौगन्ध। मेरा खून बह रहा है। उफ, कितनी चोट लगी है। कितना घायल हो गया हूँ।
(मूर्छित हो जाता है।)
ऑथेलो : जान प्यारी है तो हाथ रोक दो!
इआगो : रुको-रुको लेफ्टिनेण्ट! मोनटानो! श्रीमान! नागरिको! क्या समय, स्थान और कर्तव्य! आप सबको भूल गए हैं? मैं कहता हूँ रुको! जनरल आपसे कुछ कहना चाहते हैं? धिक्कार है! रुकिए, रुकिए!
ऑथेलो : रुक जाओ! ठहर जाओ! कैसे हुआ यह सब! किसने की इसकी शुरुआत! क्या हम तुर्कों जैसे हो गए हैं? भगवान ने तुर्कों जैसे शत्रु को हटाया था, क्या इसीलिए कि हम आपस में लड़ मरें? ईसाई धर्म की लाज कहाँ है तुम्हारी? यह बर्बर झगड़ा! अगर अब किसी का गुस्से से उमंगकर हाथ भी हिला तो समझ लो उसे अपनी जान की परवाह नहीं! जो हिला सो मरा! उस भयानक घण्टे का बजाना रोक दो, व्यर्थ ही द्वीप-निवासियों पर आतंक छा जाएगा। अब कहिए, क्या बात है! इआगो! तुम ईमानदार हो! दुःख के मारे कैसी मुर्दनी छा गई है तुमपर! बोलो! इसे किसने शुरू किया। मेरे प्रति तेरे प्रेम की सौगन्ध! मैं तुझसे पूछता हूँ।
इआगो : मैं नहीं जानता। क्षण-भर पहले तो सब एक-दूसरे के मित्र थे, मानो दूल्हा-दुल्हन हों और क्षण-भर बाद ही खड्ग लेकर एक-दूसरे पर टूट पड़े। फिर ऐसे लहू के प्यासे हो गए जैसे आकाश ग्रहों ने इनकी मति फेर दी। कैसे बताऊँ कि इस दुर्घटना का प्रारम्भ कैसे हुआ। अच्छा होता किसी गौरवमय युद्ध में मेरे पाँव ही कट जाते तो कम से कम मैं ऐसा दृश्य देखने को यहाँ उपस्थित तो न होता!
ऑथेलो : क्या है यह सब माइकिल! क्या तुम बिल्कुल भूल गए कि तुमसे क्या आशा थी? क्या तुम अपने-आपको भुला बैठे?
कैसियो : क्षमा करें जनरल! मैं कुछ नहीं कह सकता।
ऑथेलो : वीर मोनटानो! तुम अपने आचार-व्यवहार में सदैव अत्यन्त सुसंस्कृत और सुसंयत थे और अपने यौवन में भी अपने गाम्भीर्य और शान्तिप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। बुद्धिमानों में भी तुम्हारा नाम अत्यन्त आदर के साथ लिया जाता है। क्या बात है कि तुम अपने यश को नष्ट करना चाहते हो? इस तरह बात-बात में झगड़ा करना क्या शोभनीय है? मुझे सारी परिस्थिति समझाओ!
मोनटानो : परम दयालु ऑथेलो, मैं बहुत घायल हो गया हूँ। तुम्हारा अफसर इआगो तुम्हें सारी बातें बता सकता है। क्षमा करना, मैं बोल नहीं सकता, मेरे अंग-अंग में दर्द होता है। न मैं जानता हूँ कि मैंने क्या गलती की है। बेशक, अगर अपनी जान बचाना, अपनी ज़िन्दगी से प्यार करना, अपनी रक्षा करना, एक भयानक वार से अपनी हिफाज़त करना गलती है तो मैं भी कसूरवार हूँ।
ऑथेलो : ईश्वर की सौगन्ध! अब मेरी तर्क-बुद्धि पर मेरा क्रोध छाता जा रहा है। मेरी निर्णय-शक्ति मन्द हो रही है और क्रोध मुझे बहाए लिए जा रहा है। यदि मैं तनिक भी अपनी भुजा उठाऊँ या हिला दूँ तो तुममें सबसे अधिक वीर भी आतंक से मर जाएगा, मेरे भयानक दण्ड का भागी होगा। मुझे तुरन्त बताओ कि यह खूनी झगड़ा कैसे शुरू हुआ, किसने अगुवाई की और कौन अपराधी है? वह मेरा सगा भाई भी क्यों न हो, उसे मेरी मित्रता से हाथ धोना पड़ेगा। कितने शर्म की बात है कि तुम अपने निजी मामले, अपने घरेलू झगड़े ऐसे नगर में करो जहाँ युद्ध की भयानक छाया का आतंक अभी तक प्रजा के हृदय को भयभीत किए हुए हैं। और वह भी रात को, ठीक दुर्ग में और वह भी रक्षा-केन्द्र में? कितनी भयानक भूल है! इआगो! यह किसने शुरू किया?
मोनटानो : यदि तुम उसके प्रति स्नेह या नौकरी में उसके साथ सम्बद्ध होने के कारण सच नहीं बोलते और इधर-उधर की बात करते हो, तो तुम सच्चे सैनिक ही नहीं हो!
इआगो : आह! मेरे मर्म को न छुओ! माइकिल कैसियो के विरुद्ध कुछ कहने की जगह तो मेरी जीभ कट जाती तो अच्छा होता! किन्तु मुझे विश्वास है कि यदि कह दूँगा तब भी कैसियो का कुछ नहीं बिगड़ेगा। सुनिए जनरल! बात यों है, मैं और मोनटानो बातें कर रहे थे कि एक आदमी बचाओ-बचाओ चिल्लाता भागा आया। पीछे-पीछे कैसियो तलवार खींचे उसे धमकाते आ रहे थे। लगता था कि मार ही देंगे। तब यह (मोनटानो) महाशय कैसियो के सामने पड़ गए और इन्होंने इनसे रुकने की प्रार्थना की। मैं उस चिल्लानेवाले के पीछे दौड़ा, क्योंकि कहीं उसके चिल्लाने से नगर न जाग उठे और हुआ भी यही। वह बहुत तेज़ दौड़ता था। मैं उसे न पा सका। तभी मैं इधर दौड़ा क्योंकि इधर तलवारें खनखना रही थीं। कैसियो चिल्ला रहे थे कि मार डालूँगा और वह ऐसी बात थी जो मैंने अभी आज रात से पहले देखी भी नहीं थी। मुझे लौटने में ज़्यादा देर भी नहीं लगी। लौटते ही क्या देखता हूँ कि ऐसे जोर-शोर से तलवारें चल रही थीं, बस वैसे ही जैसे कि आपने इन्हें अलग करते वक्त देखा। इससे ज़्यादा मुझे इस मामले में कुछ नहीं मालूम। इन्सान आखिर इन्सान है। भूल बड़ों-बड़ों से भी होती है। और गुस्से में ऐसा होता है। कैसियो का ऐसा क्या कसूर है, गुस्से में तो लोग गलतफहमी में पड़कर अपने खासुलखासों पर हमला कर बैठते हैं। और यह भी पक्की बात है कि वह जो आदमी भाग गया है उसने कैसियो का अपमान किया था, जिसे धैर्य से सह सकना भी सम्भव नहीं था।
ऑथेलो : मैं जानता हूँ कि कैसियो के प्रति तुम्हारी सद्भावनाएँ, तुम्हारा स्नेह विषय की गम्भीरता को कम करने के प्रयत्न में है, इसीलिए जहाँ तक हो सका है, तुमने अपने विवरण को ऐसा रंग देने का प्रयत्न किया है कि अपराध प्रकट नहीं हो। यह सच है कि मैं तुम्हें चाहता हूँ कैसियो! लेकिन अब तुम्हें मैं अपना मातहत अफसर नहीं रख सकता।
(डैसडेमोना का सेवकों के साथ प्रवेश)
देखो! इस शोर-गुल से डैसडेमोना भी जाग गई है। मैं तुम्हारे मसले को एक मिसाल बनाकर पेश करूँगा।
डैसडेमोना : क्या बात है?
ऑथेलो : अब सब ठीक है प्रिये! चलो, सोने चलें! (मोनटानो से) तुम्हारे घावों की देख-रेख मैं खुद करूँगा। इआगो! नगर पर सचेत दृष्टि रखना और जो इस झगड़े से घबरा गए हैं उन्हें तसल्ली देना! चलो डैसडेमोना! यह तो योद्धा के जीवन का ही एक अंग है कि अपनी शान्तिपूर्ण निद्रा को इस प्रकार के झगड़ों में नष्ट किया करे।
(इआगो और कैसियो के अतिरिक्त सबका प्रस्थान)
इआगो : क्यों लेफ्टिनेण्ट! क्या घायल तो नहीं हुए?
कैसियो : इतना कि अब हकीम मेरा इलाज नहीं कर सकते।
इआगो : भगवान न करे!
कैसियो : मैंने अपना अच्छा नाम आज खत्म कर दिया। वही मेरे जीवन का अमर अंश था। अब तो मैं पशु से भी गया-बीता हूँ। हाय! मेरा सारा यश चला गया।
इआगो : कसम से, मैं तो समझा था तुम्हें कोई घातक चोट लगी है। शरीर के घाव में जो पीड़ा की भावना होती है वह नाममात्र की हानि से कहीं अधिक पीड़ा देती है। यश क्या है? एक झूठा और बेकार का प्रदर्शन, जो प्राय: अयोग्य भी प्राप्त कर लेता है और जो मामूली-सी बात पर नष्ट हो जाता है। कोई भी अपना यश तब तक नहीं गँवाता जब तक अपने को स्वयं ही हारा हुआ नहीं समझता। फिर निश्चय ही तुम जनरल का स्नेह और विश्वास एक बार फिर जीत सकते हो। इस वक्त तो वह तुमसे नाराज़ है, क्योंकि तुमने एक अपराध किया है, और इसलिए तुम्हें निकालने को वह मजबूर हो गया है। लेकिन इसका मतलब यह थोड़े ही है कि उसके दिल में तुम्हारे खिलाफ कोई गहरी रंजिश भी है। यह तो ऐसे समझ लो, जैसे कोई बफरे हुए शेर को धमकाने को एक मासूम कुत्ते को मार उठा हो। ( मोनटानो और कैसियो की तुलना ही यहाँ प्रकट की है।) यह तो नीति की बात है। उससे फिर क्षमा माँग लेना और फिर वह तुम्हारा हो जाएगा।
कैसियो : अच्छा यही होगा कि मुझसे घृणा की जाए बजाय इसके कि इतने वीर जनरल के अधीन कार्य करने के लिए मुझ जैसे पूर्णतः अयोग्य, शराबी, नशेबाज़, अफसर रख लेने की प्रार्थना की जाए! शराब पीकर बकना, झगड़ा, हमला करना! और गाली देना! और अपनी छाया को देखकर बहकना! ओ मदिरा की अदृश्य आत्मा! यदि तेरा कोई और विदित नाम न हो तो, ले आ, तुझे स्वयं शैतान कहकर क्यों न पुकारूँ?
इआगो : वह कौन था जिसका तुमने तलवार लेकर पीछा किया था? उसने तुमसे क्या किया था?
कैसियो : पता नहीं। मैं नहीं जानता।
इआगो : यह कैसे हो सकता है?
कैसियो : मुझे बहुत-सी धुँधली-धुँधली-सी बातें याद हैं। कुछ साफ याद नहीं आता। एक झगड़ा हुआ था और कुछ नहीं। हे भगवान! अपनी ही बुद्धि को नष्ट करने के लिए मनुष्य एक ऐसी वस्तु अपने ही मुख से गले में उतार लेता है कि हर्ष, सुख और आनन्द और मनोरंजन की खोज में भी वह अपने को पशु बना लेता है!
इआगो : किन्तु इस समय बिलकुल ठीक हो। इतनी जल्दी तुम कैसे ठीक हो गए?
कैसियो : एक शैतान की जगह दूसरे ने ले ली है-नशे की जगह गुस्सा आ पहुँचा है। एक अपूर्णता मुझे दूसरे का अनुभव कराती है। यहाँ तक कि मुझे अपने से घोर घृणा हो रही है।
इआगो : अरे तुम तो बड़े नीतिशास्त्री हो! समय, स्थान और परिस्थिति को देखते हुए ऐसा न होता तो कहीं अच्छा होता, किन्तु जब ऐसा हो ही गया है तो अपने बस में जितना है मामले को सुधार लेने की कोशिश करो!
कैसियो : यदि मैं अपने पद के लिए उससे प्रार्थना करता हूँ तो अवश्य वह मुझसे कह देगा कि मैं नशेबाज़ हूँ। यदि मेरे एक नहीं सौ-सौ मुँह होते तब भी इस अभियोग ने मुझे चुप करा दिया होता। अब अक्ल की बात करूँ, तब मूर्खता की, और फिर एक हैवान बन जाऊँ ऐसे आदमी को कौन अपना विश्वासपात्र बना सकता है? कितना विचित्र है! मदिरा का अगला प्रत्येक चषक अपवित्र है और उसमें सिवाय शैतान के कुछ नहीं रहता।
इआगो : नहीं, यह मत कहो! अच्छी मदिरा यदि उचित मात्रा में ली जाए तो वह एक अच्छे आनन्ददायक मित्र की भाँति है। योग्य लेफ्टिनेण्ट! उसे दोष न दो! यह तो मैं आशा करता हूँ कि तुम मुझे अपना प्रेमी मानते हो।
कैसियो : इसका तो मैंने प्रमाण उपस्थित किया है। मैं कितनी बार पी गया था!
इआगो : इसमें विचित्र क्या है? तुम या कोई भी एक न एक बार पी ही जाता है। अब मैं तुम्हें इस मामले में बढ़ने की तरकीब बताता हूँ। इस समय हमारे जनरल की पत्नी ही स्वामिनी है, क्योंकि उसने उसका हृदय अपने सद्गुणों तथा सौन्दर्य से पूरी तरह जीत लिया है। तुम उसी से जाकर प्रार्थना करो कि वह तुम्हें फिर तुम्हारा स्थान दिलाए। वह बड़े अच्छे स्वभाव की करुण और विशाल हृदयवाली स्त्री है। वह तो याचना करने पर माँगे हुए से अधिक न देने तक को नीच कार्य समझेगी! उससे प्रार्थना करो कि वही तुम्हारे और उसके पति के बीच की दरार को भर दे! और मैं इस बात पर अपनी सारी सम्पत्ति दाँव पर लगाकर कहता हूँ कि यह जो दरार पड़ी है, भर जाएगी तो ऐसा पक्का सम्बन्ध होगा कि यह दरार तुम्हें बाद में लाभदायक-सी दिखाई देने लगेगी।
कैसियो : सचमुच! सलाह तो बहुत अच्छी है।
इआगो : कसम से, मेरी ईमानदारी और प्रेम पर शक न करो!
कैसियो : मैं भी इसी राय का कायल हूँ। भोर ही में डैसडेमोना से इस कार्य की प्रार्थना करूँगा। सचमुच इस समय यदि भाग्य ऐसे छोड़ जाएगा तो फिर मैं भला कहाँ का रहूँगा?
इआगो : यही तो! गुडनाइट लेफ्टिनेण्ट! मैं पहरे पर जाता हूँ।
कैसियो : गुडनाइट! मेरे अच्छे इआगो!
(प्रस्थान)
इआगो : कौन कहेगा कि मैं यह सब करने के कारण नीच हूँ, कुटिल हूँ! क्या मैंने अपनी राय निहायत ईमानदारी और प्रेम से नहीं दी, क्या यही ऑथेलो की कृपा प्राप्त करने का एकमात्र रास्ता नहीं है? दूसरों को मदद देने को तैयार रहने वाली डैसडेमोना को अपने पक्ष में कर लेने के अलावा और कौन-सी आसान तरकीब है? प्रकृति के तत्त्वों के समान ही वह भी अत्यन्त दानशीला है। और जहाँ तक डैसडेमोना की मूर को जीत लेने की बात है, वह भी क्या मुश्किल है? वह चाहे तो उसको अपने पवित्र ईसाई धर्म से ही विमुख कर दे। उसके प्रेम के बन्धन में मूर इतना बँधा हुआ है कि वह चाहे तो उसे बना दे, चाहे तो बिगाड़ दे। कैसियो के भले के लिए यदि मैंने उसे ऐसी राह सुझाई है तो फिर मुझे किस तरह कुटिल और दोषी ठहराया जा सकता है? नरक के देवताओ! जब शैतान मनुष्य को भयानक पाप करने को प्रेरित करता है तब वह सदैव उन्हें बड़ा साधुवेश धरकर आकर्षित करता है। यही तो मैं भी कर रहा हूँ। मेरी योजना यह है कि जब वह अपने पद पर पुन: नियुक्ति की प्रार्थना लेकर डैसडेमोना के पास जाएगा और वह मूर से उसकी ओर से ज़ोर से सिफारिश करेगी, मैं मूर के दिमाग में यह ज़हर भरूँगा कि डैसडेमोना कैसियो को फिर नियुक्त करवाना चाहती है ताकि वह उससे अपनी वासनाओं की तृप्ति करने का अवसर बदस्तूर पा सके। जितना ही वह कैसियो की ओर से बोलेगी, उतना ही ऑथेलो का विश्वास भी उसके पातिव्रत्य पर से उठता जाएगा। इस प्रकार मैं उसके पवित्र नाम पर बट्टा लगा दूँगा और उसकी अच्छाई में से ही मैं ऐसा फन्दा बना दूँगा जिसमें सबके सब अपने-आप फँस जाएँगे।
(रोडरिगो का प्रवेश)
कहो रोडरिगो! क्या हाल है?
रोडरिगो : इस शिकार की दौड़ में मेरा तो वही हाल है जो शिकार करनेवाले का नहीं बल्कि शोर मचानेवाले, भौंकनेवाले कुत्ते का होता है। मेरा तो धन करीब-करीब समाप्त हो गया। आज रात तो मेरी बेहद पिटाई हुई है। मैं समझता हूँ, अन्त में मुझे ज़रा ज़्यादा अनुभव आ रहा है। पैसा हाथ नहीं, अक़्ल ज़रा ज़ोर देकर कहती है कि मेरा वेनिस लौट जाना ही अच्छा है।
इआगा : वे कितने दीन होते हैं जिनमें धैर्य नहीं होता! हर ज़ख्म पूरने के लिए वक़्त लेता है। तुम जानते हो, हम मामूली अक़्ल से ही काम लेते हैं, कोई जादू तो जानते नहीं। और बुद्धि तो देखो, क्रमश: अपना विकास प्राप्त करती है। क्या सारी योजना सन्तोषजनक रूप से नहीं चल रही? इसमें कोई शक नहीं कि कैसियो ने तुम्हें मारा है, लेकिन हमने भी ज़रा-सी तकलीफ सहकर कैसियो को नौकरी से निकलवा दिया है। माना कि हर वस्तु सूर्य के आलोक में ही पनपती-बढ़ती है, लेकिन देखो न, जो फल पहले लगते हैं, वे ही पहले पकते भी है। तनिक सन्तोष से काम लो। भगवान कसम! सुबह हो गई। आनन्द और कार्य में रत मनुष्य को समय बीतता हुआ पता भी नहीं चलता। अब तुम जाओ, जहाँ तुम्हें जाना है। बाकी तुम्हें फिर पता चल जाएगा। जाओ, अब जल्दी से चले जाओ।
(रोडरिगो का प्रस्थान)
अब मुझे दो काम करने हैं। एक तो मुझे अपनी स्त्री को कैसियो की ओर से बोलने को डैसडेमोना के पास भेजना है। दूसरे मुझे तब तक ऑथेलो को दूर रखकर, ठीक तभी बीच में लाना चाहिए जब उसे डैसडेमोना से प्रार्थना करता हुआ कैसियो दिखाई दे। यही रास्ता ठीक है। योजना को विलम्ब और अकर्मण्यता से विनष्ट नहीं करना चाहिए।
(प्रस्थान)