ऊँट (कहानी) : एस. के. पोट्टेक्काट

Oont (Malayalam Story in Hindi) : S. K. Pottekkatt

सब लोग उसको ऊँट के नाम से ही पुकारते हैं।

वह लम्बा और दुबला है और तार के खम्भे के समान उसके पैर हैं । हाथ कुदालो की तरह हैं, गरदन लम्बी है और छाती हांडी की तरह है जिसके ऊपर सूखे नारियल की तरह एक सिर है ! वही है ऊँट !

पानी से भरे हुए पीपों से लदी गाड़ी खींचता हुआ ऊँट सुबह और शाम जब गली से निकलता, तो एक देखने लायक दृश्य होता । चार छोटे-छोटे पहियों वाली गाड़ी को मुंह से विकृत आवाज में चिल्लाता वह खींचता, तो ऐसा लगता, मानो एक भैंस प्रसव-पीड़ा में इधर-उधर घूमती तड़प रही हो । उसके पीछे-पीछे चार-पाँच छोकरे लग जाते। उसके पीछे-पीछे इस तरह चलते मानो वे गाड़ी धकेल रहे हों । लेकिन वे आपस में ऊँट पर मजाक करते, बुरी हरकतें करते और हँसते। ऊंट उनकी ओर कोई ध्यान न देता । वह दोनों हाथों से गाड़ी का लोहा पकड़कर, ओठों को जबर्दस्ती दबाये हुए, सिर ऊंचा कर, हिलता-डुलता आगे बढ़ता जाता और कभी-कभार निचले ओठ को फैलाकर, नाक को टेढ़ा कर गली के दोनों ओर बारी-बारी से देखता। उसके इस तरह इधर-उधर देखने के कारण लोगों ने उसका नाम ऊँट रख दिया था।

वह अपने शरीर पर होटलों की मेजों पर बिछाया जाने वाला कोई पुराना, फटा, बदबूदार कपड़ा डाले रहता। वह दाहिनी टाँग की पिंडली पर कपड़े का एक टुकड़ा भी हमेशा बाँधे रहता । वह कई बरस पहले उसे लगी एक चोट की याद है । घाव तो कभी का भर गया था और उसके ऊपर बाल भी उग आये थे, फिर भी वह उस पर से कपड़े का टुकड़ा अलग करना नहीं चाहता था। शायद उसका ख्याल था कि उसने वह कपड़ा हटाया नहीं कि वह गिरकर मर जाएगा।

एक होटल के पीछे लकड़ी रखने की एक कोठरी के एक कोने में जूठन की टोकरी के पास उसके आराम करने की जगह है। शाम को अपना काम-काज ख़तम कर वह एक टुकड़ा सिगार पीता हुआ गरदन लंबा कर बैठ जाता । उस समय उसके सहयोगी देहाती लड़के उसकी पीठ और कन्धों पर चढ़कर खेलते। उसके लिए भी वह एक खेल ही है। बडी देर तक यों बैठे रहने के बाद वह अचानक उठ खड़ा होता । तब लडके पिल्लों की तरह उसकी पीठ और कन्धों पर से नीचे जमीन पर गिर पड़ते। यह देखकर वह एक गधे के चीखने की तरह ठट्ठा मार कर हँस पड़ता।

ऊँट और वे लडके शहर के उस बड़े होटल के सहारे अपनी जिन्दगी काट रहे थे। होटल के लिए जितने पानी की जरूरत होती, ऊंट उसे पीपों में भरकर गाड़ी से लाता। यही उसका काम था। सोलह बरस से वह यही काम करता आ रहा था।

सोलह साल पहले की उसकी ज़िन्दगी के बारे में किसी को भी कुछ भी मालूम नहीं । किसी ने मालूम करने की कोई कोशिश भी नहीं की । लोग उसे पानी की गाड़ी का ही एक अंग समझते ।

इसी तरह उसकी ज़िन्दगी कट रही थी। वह आठ आदमियों का भोजन अकेले खाता था, ऐसी शिकायत होटल का मैनेजर करता था। पानी लाने के काम के साथ ही वह होटल के लिए लकड़ी भी चीरता था।

विश्व में और देश में क्या हो रहा था, ऊँट को कुछ भी नहीं जानना था। उसको महज दो बार ऐसा महसूस हुआ था कि इस दुनिया में कुछ अजीब घटनाएँ घटी हैं।

एक दिन सुबह वह हमेशा की तरह गाड़ी खींचता जा रहा था। उस समय रास्ते के पास एक फैक्टरी के सामने मजदूरों का धरना चल रहा था । एकाएक एक लारी में पुलिस वहाँ आ पहुंची और लारी से उतरकर वह धरना देने वालों और दर्शकों को लाठी से बेरहमी के साथ पीटने लगी। उस हो-हल्ले में ऊंट अपनी गाड़ी के साथ भीड़ में फंस गया, तो वह गाड़ी छोड़कर भागा। लेकिन भागते समय एक लाठी उसकी पीठ पर भी आ बजी। तब वह पीठ को दोनों हाथों से दबाये हुए गरदन आगे बढ़ाकर, निचले ओठ को फैलाकर और नाक को सिकोड़कर भाग निकला। वह अपने मोहल्ले में पहुंचने पर भी दौड़ता रहा और गली के दोनों ओर के दूकानदारों की ओर बारी-बारी से देखते हुए मुंह को गुफ़ा की तरह खोलकर चेतावनी देता रहा, भागो, नहीं तो मार पड़ने वाली है।"

उसका खयाल था कि शहर के सभी लोगों पर मार पड़ने वाली थी।

उस दिन ऊँट बदहवास होकर लकड़ी वाले कमरे के कोने में दुबका बैठा रहा। होटल मैनेजर के बार-बार कहने और धमकी देने पर भी वह नहीं हिला।

छोकरों ने उसकी गाड़ी खींचकर होटल पर पहुँचा दिया। उस दिन ही छोकरों को मालूम हुआ था कि गाड़ी पर पानी का कितना भारी बोझ था।

दूसरी घटना। एक बार गाड़ी के साथ एक दुर्घटना घट गयी । गाड़ी उलटकर उसकी पीठ पर गिर पड़ी। कोई मामूली आदमी होता, वह उसी वक्त दबकर मर गया होता । लेकिन ऊँट गाड़ी के नीचे से निकल गया। उसकी पीठ और सिर से खून बह रहा था। फिर भी वह चल पड़ा। लेकिन थोड़ी दूर लड़खड़ाते हुए चलने के बाद वह गिर पड़ा । होटल के मैनेजर को खबर मिली, तो उसने आकर ऊँट को एक रिक्शे में बैठाकर अस्पताल पहुंचाया। लोगों का खयाल था कि ऊँट जरूर मर जाएगा। क्योंकि उसका सिर फट गया था। मगर ऊँट बच गया।

जब ऊंट को होश आया, तो उसने अपने को एक मुलायम, सफेद बिस्तर पर पड़े पाया । उसके सिर. ठुड्डी और कन्धों पर सफेद पट्टी बँधी थी। उसने अपनी दाहिनी टांग की पिंडली देखी, तो वहाँ पुराना कपड़ा दिखाई नहीं पड़ा। तब उसने फौरन अपने सिर की पट्टी का एक टुकड़ा फाड़ा और उसे पिंडली में बांधकर, आँखें बन्द कर वह शान्ति से लेट गया ।

थोड़ी देर बाद जब नर्स ने आकर देखा, तो ऊँट बेहोश पड़ा था और उसके सिर से खून बह रहा था।

डेढ़ मास तक वह अस्पताल में पड़ा रहा। उसका बेड बरामदे के कोने में था।

एक दिन रात में बरामदे में आवाज़ सुनकर ड्यूटी डाक्टर ने झांककर देखा, तो वह अचम्भे में पड़ गया। ऊंट लोहे के बेड को एक ओर खींच रहा था। ऐसा करके वह शायद यह जानने की कोशिश कर रहा था कि उसमें गाड़ी खींच सकने की शक्ति थी कि नहीं।

दूसरे दिन उसको अस्पताल से विदा कर दिया गया।

उसने होटल पहुँचते ही गाड़ी का लोहा पकड़ा और उसे खींचते हुए वह तालाब की तरफ रवाना हो गया।

एक दिन होटल के मैनेजर ने ऊँट को अपने कमरे में बुलाया, तो ऊँट हक्का-बक्का रह गया । उसे मालूम नहीं हुआ था कि क्या बात थी।

वह बड़ी देर तक नाक और ओठ को सिकोड़कर और मुंह खोलकर खड़ा रहा । फिर वह बड़े अदब के साथ गरदन को आगे किये हुए मैनेजर के सामने जा हाजिर हुआ।

मैनेजर ने एक बार उसे सिर से पैर तक देखकर कहा, "मैंने तुझे एक बात पूछने के लिए बुलाया है । तेरी उम्र कितनी है ?"

ऊँट आँखें फाड़े चुपचाप खड़ा रहा। कुछ बोला नहीं ।

"तुझे इसकी याद नहीं होगी, तो जाने दे । तू लम्बे अर्सी से हमारे होटल में काम कर रहा है । तुझे मैं अपने बेटे की तरह मानता हूँ। मैं अब तेरी शादी करना चाहता है। तू क्या चाहता है ?"

यह सुनकर ऊँट सकपकाकर रह गया । उसका चेहरा पीला पड़ गया।

"औरत बहुत अच्छी है। तूने उसे देखा है। वह बावर्चीखाने में काम करनेवाली मातु है। चूंकि तुम दोनों हमारे होटल में काम करते हो, इसलिए तुझे उसके लिए पैसा-वैसा देने की जरूर नहीं होगी। शादी में जो खर्च होगा, वह..."

कहकर मैनेजर ने मेज़ की दराज खोलकर उसमें रखे एक सिगरेट के टिन में से दस दस रुपये के तीन नोट बाहर निकालकर मेज पर रख दिये। फिर वह बोला, "ये पैसे तेरी तनख्वाह के ही हैं । और अधिक पैसे खर्च होंगे तो मैं अपनी ओर से भेंट के तौर पर दूंगा। क्या तू तैयार है ?"

ऊँट वैसे ही आँखें फाड़े चुपचाप खड़ा रहा।

ऊँट तो औरत और शादी के बारे में सोच भी न सकता था। मैनेजर की बातों से उसकी रंगों में पहली बार खून की गति कुछ तेज हो गयी। उसने नाक और ओठ को सिकोड़कर इधर-उधर देखा, जैसे वह कुछ सूंघ रहा हो।

"जल्दी जवाब दो । क्या तू तैयार नहीं है ?" मैनेजर ने जरा जोर से रोब के साथ उससे पूछा।

ऊँट ने दाँत निपोरते हुए सिर हिला दिया।

"ठीक है। तू अब जा। कल रात में तेरी शादी होगी। कल तू पानी लाने मत जाना । तुम्हारी छुट्टी रहेगी।

ऊँट धीरे-धीरे सीढ़ी उतरकर होटल के पिछवाड़े चला गया। थोड़ी देर बाद उसने अपने सहयोगी नटखट छोकरों को एक एक कर पुकारा और उनके कान में फुसफुसाकर बताया, "कल मेरी शादी होगी।"

छोकरों ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया। उन्होंने पूछा, "किसके साथ कैसी शादी होगी ?" और वे हँस पड़े।

"कल रात में देखना," ऊँट ने भी हंसते हुए कह दिया ।

दूसरे दिन शाम को होटल के मैनेजर ने ऊँट को पुकारा और उसे एक नयी शर्ट, एक बड़ी धोती और एक अंगौछा दिया।

दुलहे की पोशाक देखकर लड़कों को मालूम हो गया कि ऊँट ने उनसे जो कहा था वह सचमुच सही था।

"कौन है वह औरत ?" लड़कों ने पूछा। "तुम लोग देखो !" ऊँट ने हँसकर कहा।

रात हो गयी और होटल का आना-जाना बन्द हो गया, तो दस नंबर के कमरे में शादी की तैयारी शुरू हुई ।

नयी पोशाक पहने हुए घबड़ाहट के साथ ऊँट कमरे में दाखिल हुआ। उसकी टांग में बँधा हुआ कपड़े का टुकड़ा ज्यों-का-त्यों था।

दुलहिन फ़र्श पर बिछी चटाई पर सज-धजकर बैठी थी। ऊंट ने उसकी ओर ताका । ऊँट को मालूम हो गया कि वह मोटी और काली और बावर्चीखाने की नौकरानी मातु ही थी। पाशविक खुशी को दबाते हुए वह उसकी ओर एकटक ताकते हुए खड़ा हो गया।

मैंनेजर और ऊंट के सहयोगियों की उपस्थिति में शादी की रस्म पूरी की गयी।

लड़कों को उस कमरे में घुसने नहीं दिया गया था। वे लकड़ी वाले कमरे की छत पर चढ़कर देख रहे थे ।

आकाश में बादल दौड़ रहे थे। कभी चांदनी छिटक जाती थी और कभी बूंदाबांदी होने लगती थी।

"सियार की शादी मे कभी धूप और कभी वर्षा होती है और ऊँट की शादी में कभी चांदनी छिटकती है और कभी बारिश होती है।" ये कहते हुए लड़के ठट्ठा मारकर हँसे और छत से नीचे उतरकर सोने चले गये।

शादी के बाद ऊँट को सूझ न रहा था कि अब क्या करे। वह आँखें फाड़े हुए खड़ा था। मैनेजर ने हुक्म दिया, “अब अपनी जगह जाकर इसके साथ सो जा।

ऊँट लकड़ी वाले कमरे में जाकर वहाँ सोये हुए लड़कों की बगल में अपनी बीवी के साथ लेट गया।

ऊँट को यह मालूम नहीं हुआ कि शादी से उसने क्या पाया था, या क्या खोया था। पहले ही की तरह उसकी जिन्दगी चलती रही। जिन्दगी की कितनी ही बातों के बारे में उसे कुछ भी मालूम न था। उसी में वह शादी भी एक थी।

महीने पर महीने गुजरते गये ।

प्रत्यक्ष में ऊँट में कोई परिवर्तन दिखायी नहीं देता था। लेकिन उसकी खोपड़ी में चिन्ताओं की भाग-दौड़ हो रही थी। उसे कोई बीमारी नहीं थी, लेकिन एक सिर-दर्द शुरू हो गया था ।

गाड़ी खींचते वक्त अब वह गली में इधर-उधर नहीं देखता था। उसकी गरदन अब झुकी रहती थी। बिना किसी वजह के ही वह नाराज हो जाता। ऐसे मौकों में वह फटी आवाज में चिल्लाने लगता ।

मातु को वह कभी-कभार ही देखता, बावर्चीखाने में जब वह चक्की में नारियल पीसती होती या चूल्हे पर मसाला भूनती होती । बावर्चीखाने में जब पानी डालने जाता, तभी उसको यह मौका मिलता। ऊँट को देखते ही मातु मुंह ढंककर ठहाका मारती।

ऊँट सब-कुछ बर्दाश्त कर लेता।

शादी हुए छः महीने ही बीते थे कि मातु ने एक बच्चे को जन्म दिया।

एक दिन गाड़ी खींचते हुए ऊँट जा रहा था, तो सड़क पर लड़के चिल्लाने लगे, “ऊँट बेटा हुआ है !"

ऊँट ने गरदन मोड़कर देखा। गली से होकर मातु जा रही थी। उसकी गोद में उसका दुलारा बेटा भी था।

ऊँट की आँखें चमक उठीं। वह एक आम आदमी की तरह शान से मुस्कराया । फिर हौले से गाड़ी रोककर मातु के नजदीक़ गया।

मातु घबराकर खड़ी हो गयी। ऊँट ने उसकी गोद से उस नन्हें-मुन्ने को लेकर अपनी छाती से लगा लिया। फिर बच्चे को एक हाथ से गोद में दबाये ही गाड़ी खींचने लगा।

यह देखकर मातु ज़ोर से चिल्लाती हुई गाड़ी के पीछे-पीछे दौड़ पड़ी। यह देखकर लड़के चिल्लाने लगे, लोग तमाशा देखने लगे। शोर-शराबा सून कर एक सिपाही भी वहां पहुंचा।

पुलिस की टोपी देखते ही ऊँट गाड़ी वहीं छोड़कर भाग खड़ा हुआ।

मुन्ने को कांख में दबाये वह सीधे होटल पहुँचा और वहां से पुलिस की टोपी देखते ही वह घबराकर होटल की सीढ़ी चढ़ कर दस नम्बर के खाली कमरे में घुस गया और उसने दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया।

होटल का मैनेजर, मातु, सिपाही और कुछ लोग कमरे के बाहर इकट्ठे हो गये।

" अरे ! दरवाजा खोलो !" मैनेजर ने हक्म दिया।

लेकिन अन्दर से कोई जवाब नहीं मिला।

तब दरवाजे पर ठोकर मारते हुए मैनेजर फिर चिल्लाया, "अरे तुझसे मैं दरवाजा खोलने के लिए ही कह रहा हूँ न !"

"मुन्ने को मैं नहीं दूंगा!" ऊंट ने भीतर से रोते हुए कहा ।

वह बात तो बाद की है। पहले तू दरवाजा खोल !"

"यह मुन्ना मेरा है !" भीतर से फिर ऊँट बोला।

"अरे ! मै तुझसे दरवाजा खोलने को कह रहा हूँ न !" मैंनेजर दरवाजा पीटते हुए बोला।

"इसकी मां मुझे नहीं मिली। लेकिन मेरा मुन्ना तो मुझे मिल गया !" ऊँट दयनीय स्वर में गिड़गिड़ाया ।

"अरे ! यह क्या बक-बक लगा रखी है ? यह किसका मुन्ना है ?' सिपाही ने पूछा।

"वह इसका मुन्ना है," मैनेजर ने मातु की ओर हाथ उठाकर कहा।

"वह तो समझ रहा हूँ। लेकिन मुन्ने का बाप ?"

पुलिस के सवाल की उपेक्षा करते मैनेजर ने जोर से ऊँट से पूछा, "अरे । तू बच्चे को क्या करने जा रहा है?"

"मैं इसको पाल-पोसकर बड़ा बनाऊँगा...नहीं तो बेच डालूंगा...नहीं तो मार डालूंगा...यह मेरा ही बेटा है, मैं चाहे जो करूँ !" ऊँट ने जवाब दिया।

"अरे बच्चू ! तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या ? अगर तू दरवाजा नहीं खोलता, तो मैं दरवाजा तोड़ दूंगा और तुझे मार डालूंगा !"

"तोड़ोगे, तो मैं मुन्ने को खिड़की से बाहर फेंक दूंगा, हाँ !" ऊँट ने एक विकृत आवाज में धमकी दी ।

तभी मुन्ने की रुलाई भीतर से सुनायी पड़ी।

"हाय-हाय ! वह जानवर मेरे मुन्ने को मार डालेगा !" मातु परेशान होकर, रोती हुई चीख पड़ी।

"मुन्ने राजा, सो जा ! सो जा !" भीतर से ऊँट की लोरी सुनाई दी।

मैनेजर बड़ी परेशानी में पड़ गया। कुछ लोग परेशान होकर खड़े-खड़े सोच रहे थे कि अब क्या होगा, और कुछ लोगों के लिए वह एक बड़ा ही मनोरंजक दृश्य था।

"यह तो आप लोगों का आपसी मामला मालूम होता है। इससे मेरा कोई वास्ता नहीं हो सकता।" कहते सिपाही नीचे उतरने लगा, तो मैनेजर ने उसको रोकते हुए कहा, “यहाँ वह बच्चे की हत्या करने की धमकी दे रहा है और तुम इसे हमारा आपसी मामला कहकर जा रहे हो?"

"हत्या होने के बाद आप थाने में खबर करें। मैं नहीं रुक सकता ," कहते हुए सिपाही चला गया ।

मैनेजर असमंजस में पड़ गया। हो सकता था कि दरवाजा तोड़ने पर ऊंट मुन्ने को गली में फेंक देता। ऐसी हालत में बात खतरनाक हो सकती थी।

बच्चे की रुलाई पुनः सुनाई पड़ी। अन्दर ऊँट बच्चे के साथ क्या कर रहा था, नहीं मालूम ।

"अरे मुन्ना, तेरे पास ही रहेगा। वह भूख से रो रहा है। तू दरवाजा खोल । हम तुझे कुछ नहीं कहेंगे।" मैनेजर ने शान्त स्वर में कहा ।

मगर कोई जवाब नहीं मिला।

मुन्ने की रुलाई लगातार आ रही थी।

"उसे छोड़ दीजिए। जब उसे भूख लगेगी, वह आप ही बाहर निकलेगा।" एक दर्शक ने कहा।

"खपरैल हटाकर ऊपर से कोई कमरे में उतरे तो कैसा?" एक दूसरे दर्शक ने अपना विचार प्रकट किया।

"किसी के कमरे में जाने के पूर्व ही वह हैवान बच्चे को मार डालेगा।"

मैनेजर ने कहा, "हम देखते हैं कि वह यों कितने दिन तक कमरे में बन्द रहता है।"

"उसकी कोई चिन्ता नहीं। लेकिन मुन्ना भूख-प्यास से मर नहीं जाएगा ?" होटल एजेंट कणारन ने कहा ।

"जो हो, हमें इन्तजार करना पड़ेगा।"

विवश होकर आखिर मैनेजर और दूसरे लोग वहां से हट गये। लेकिन एजेंट कणारन कमरे के दरवाजे के निकट लेट कर पहरा देने लगा।

दिन बीत गया। रात बीत गयी। लेकिन ऊँट ने दरवाजा नहीं खोला। सुबह होने पर मैनेजर और होटल के दूसरे कर्मचारी दस नम्बर के कमरे के दरवाजे पर जा खड़े हुए। मैनेजर ने ऊँट को पुकारा ।

लेकिन खामोशी छायी थी। आखिर मैनेजर ने दरवाजा तोड़कर भीतर घुसने का निश्चय किया।

दरवाजा तोड़ा जाने लगा। फिर अन्दर से ऊँट की कोई आवाज नहीं आयी।

दरवाजा टूटने के बाद मैनेजर ने अन्दर झांककर देखा, तो वह चीख पड़ा । अन्दर छत की शहतीर से ऊँट की नंगी देह लटक रही थी। उसकी छाती में मुन्ना कपड़े से बँधा हुआ था।

मैनेजर ने आलमारी पर चढ़कर ऊँट की छाती से कपड़ा खोलकर मुन्ने को अलग किया।

मुन्ना का शरीर अभी ठण्डा नहीं हुआ। उसका दिल हौले-हौले धड़क रहा था।

"मुन्ना अभी जिन्दा है।" मुन्ने को संभाले हुए मैनेजर ने कहा ।

लम्बी गरदन को जरा सरकाकर, मुंह जरा खोलकर, अधखुली आँखों से ऊंट ने दरवाजे से घुस आयी रोशनी में मुन्ने की तरफ देखने की कोशिश की।

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