ऑनलाइन क्लास (व्यंग्यात्मक लेख) : स्वप्निल श्रीवास्तव (ईशू)
Online Class : Swapnil Srivastava Ishoo
ऑनलाइन क्लास: महिला सशक्तिकरण का एक और उदाहरण
करोना, कोविड-19, क्वारंटाइन, लॉक डाउन जैसे नए शब्दों को सुनते हुए आज 3 महीने हो गए और
अब ऐसे लगते है जैसे “ चाय, बिस्कुट, और अख़बार”. खैर आज की बात कुछ अलग है, आज स्कूल का
पहला ऑनलाइन “पैरेंट – टीचर मीट” है। हमारी श्रीमती जी भी एक अनुभवशील अध्यापिका हैं और
पिछले कई वर्षों से अपने अध्यन कौशल का प्रयोग विद्यालय के छात्र-छात्राओं पर करती आ रही हैं।
आप पूछेंगे, इसमें नया क्या है लेखक महोदय, एक मध्यम वर्गीय परिवार की महिला अपने समय के
सदुपयोग करने या जीविकोपार्जन के लिए अक्सर अध्यन क्षेत्र में अपना कौशल दिखाने उतरती
है।…..तो साहब, नयापन आया उस वैश्विक महामारी के साथ जिसे करोना या कोविड -19 कहते है।
पिछली एक दो पीढ़ी ने न तो ऐसी महामारी देखी थी, न सुनी थी। जैसा जैसा सोशल मीडिया पर
देखते या सुनते गए अपने अपने दैनिक जीवन में अमल में लाने लगे। “कपालभाति” से ले कर “गरमी
में ख़तम होता वायरस” सभी मेसेज ट्रेंड कर रहे थे, इस चक्कर में ना A. C सर्विस कराई ना कूलर
लगाया।
अभी कुछ ही दिन परिवार के साथ बीते थे कि स्कूल के मेसेज ट्रेंड करने लगे, सुनने में आया कि
ऑनलाइन क्लासेज होंगी। बच्चे टेंशन में आए की छुट्टियों का दौर ख़त्म और स्कूल शुरू…..पर देखने
लायक चेहरा तो श्रीमती जी का था जो टेंशन और मुस्कराहट के बीच का भाव लाने के प्रयास में
विफल होती साफ़ दिख रहीं थीं। और मैं पूर्ण विश्वास के साथ कहता हूँ, ऐसा ही कुछ माहौल अन्य
अध्यापिकाओं और अभिभावकों के घर पर भी होगा। साहब, “कंप्यूटर का इतिहास, चार्ल्स बेबेज, बिल
गेट्स, डेस्कटॉप, मेनफ्रेम, सुपर कंप्यूटर” आदि का ज्ञान तो था पर जब भी पॉवर-पॉइंट, PDF या MS
Word की बात करो तो जवाब मिलता था, “आप, हेल्प कर दीजिए प्लीज”। बात सिर्फ पावरपॉइंट की
होती तो हमें भी कोई हर्ज़ न होता, आखिर अपना महत्व और हुनरकौशल दिखाने का एक और मौका
जो मिल जाता, पर बात हद से आगे निकल गयी थी। अब बातें गूगल क्लास रूम, ऑनलाइन टेस्ट,
ऑनलाइन विडियो कांफ्रेंसिंग की होने लगी थी।
यह वो दौर था जो ऑनलाइन क्लासेज के ज़रिये मध्यमवर्गीय महिला सशक्तिकरण का एक और
अध्याय लिखने जा रहा था।
अन्य अध्यापिकाओं की तरह हमारी श्रीमती जी ने भी कमर कस ली थी……।लैपटॉप और मोबाइल पर
ZOOM, Webex जैसे नए अप्लिकेशन डाउनलोड करवाए गए…..हमने कहा डाउनलोड करना सीख लो तो
ज़वाब मिला “पहले जो ज़रूरी है वो….हमारी विडिओ कान्फ्रेस के ज़रिये मीटिंग है”. चेहरे का भाव देख
हमने भी मदद करने में ही भलाई समझी. पर बात यहीं रुकी नहीं हुक्म आया की “विडिओ कान्फ्रेस
के समय आप भी साइड में खड़े रहिये हमें हेल्प हो जाएगी……” हमने भी हाँ बोल दिया, कौन सा नया
काम था, आखिर ऑफिस में अक्सर बॉस यही तो करवाते हैं। देखते ही देखते कांफ्रेंस कॉल, विडिओ
कॉल और विडिओ कांफ्रेंस का दौर चल पड़ा। शुरू- शुरू में तो कई अध्यापिकाओं को अपने पतियों को
हड़काते और अपना काम करवाते खूब सुना….फिर सभी नें “म्यूट” का आप्शन प्रयोग में लाना सीख
लिया।
सोशल मीडिया’ के इतर श्रीमती जी को पहली बार देर रात तक “कंप्यूटर का” एवं “कंप्यूटर पर” प्रयोग
करते देख कई बार मेरी आखें नम हो गई और मन ही मन हम करोना के कृतज्ञ हो गए….जो काम
हम पिछले 10 वर्षों में न करवा पाए वह पिछले 3 महीने में करोना के दौर में लॉक डाउन में हो
गया। क्या विडिओ डाउनलोडिंग, क्या पॉवरपॉइंट और क्या गूगल वर्कशीट, अब तो श्रीमती जी ऐसे
प्रयोग में लाती हैं जैसे फ्रिज़ से सब्ज़ी निकाली, धोई, काटी और छोंक दी….लो सब्ज़ी तैयार। अब बातें
कंट्रोल-C, कंट्रोल-V और ऑनलाइन पोलिंग की होती है। अब तो बच्चों में भी वैसा भय का माहौल है
जैसे क्लासरूम में हुआ करता था……चाहे किसी बच्चे से सवाल पूछना हो, चुप करना हो या पूरी
क्लास की क्लास लगानी हो। श्रीमती जी का कॉन्फिडेंस और चेहरे का भाव अब वैसे ही दिखता है
जैसे पहले वह एक्टिवा पर हेलमेट लगा के स्कूल के लिए जाया करती थीं।
यह सब देखकर, मेरे दिल में श्रीमती जी, उन सभी अध्यापिकाओं और गृहणी अभिभावकों के लिए
सम्मान कई गुना बढ़ गया है, जिन्हें हम जाने- अनजाने कंप्यूटर को लेकर यह ताना मारते आए है
कि “लाओ हटो, तुमसे न हो पायेगा”।
इस दौर में जूझ कर सितारों की तरह उभरे उन सभी अध्यापक, अध्यापिकाओं और अभिभावकों को
समर्पित।
चलिए चलता हूँ…. दाल गैस पर चढ़ी है और शायद 4 या 5 सीटी आ चुकी है……कभी समय मिला तो
इस पुरुष प्रधान युग में पुरुषों के गृहकार्य कौशल की ज़द्दोज़हद पर भी एक लेख लिखुंगा। नमस्ते!!