निठल्ले केन काका (अंग्रेज़ी कहानी) : रस्किन बॉन्ड
Nithalle Ken Kaka (English Story in Hindi) : Ruskin Bond
हैरानी की बात तो यह थी कि केन काका को देहरादून के आसपास के स्थल दिखाने की पार्टटाइम नौकरी मिल गयी।
वहाँ के दर्शनीय स्थलों में नदी के निकट ही एक प्राचीन किला था, सोलहवीं सदी का एक हिंदू मंदिर था और फिर दस मील के फासले पर पहाड़ी की तलहटी में गंधक वाले पानी के चश्मे थे।
केन काका ने हमें बताया कि वह तीन अमेरिकी दंपति यानी छह पर्यटकों के दत्र को गंधक वाले पानी के चश्मे दिखाने ले जा रहे हैं। दादी खुश हो गयीं।
आखिर, केन काका किसी काम-धंपे से तो लगे! दादी ने उन्हें हैम सैंडविच, घर के बने बिस्कुट और दर्जन-भर संतरों से भरी एक डलिया दी। यह सारा सामान एक दिन के सफ़र के लिए काफी था।
गंधक वाले पानी के चश्मे देहरादून से कुल दस मील के फासले पर थे, मगर तीन दिन तक केन काका के दर्शन नहीं हुए।
जब लौटे, तो उनकी हालत देखते ही बनती थी। धूल सने कपड़े एकदम तार-तार हो गये थे। गाल भीतर को धंस गये थे। सिर की चांद तेज घूप सहने के कारण लाल सुर्ख हो गयी थी।
"यह तूने क्या हाल बना रखा है?" दादी ने पूछा।
केन काका बरामदे में रखी आरामकूर्सी में धंस गये, " भूछ से जान निकली जा रही है, आंटी, कुछ खाने को दो। "
"जो सामान ले गया था, उसका क्या हुआ?"
"हम सात जने थे, पहले ही दिन सब खत्म हो गया।"
"खैर, एक दिन के लिए ही तो था। तू तो कह रहा था, गंधक के चश्मे दिखाने जा रह्म हूँ!"
"हाँ, वहीं तो जा रहे थे" "केन काका बोले," मगर वहाँ पहुँचे ही नहीं। पहाड़ियों में ही भटक गये।"
"पहाड़ियों में कैसे भटक गये? सीघे, नदी के साथ-साथ घाटी पें जाना था...तू जानता है, तू गाइड था और यहाँ पहले भी जा चुका है? "
"जानता हूँ!" केन काका खिसियाकर बोले, " मगर रास्ता ही भूल गया—यानी घाटी ही भूल गया। मेरा मतलब है, मैं उन्हें ग़लत घाटी में ले गया। मैं यही सोचता रह्म कि नदी के अगले मोड़ पर चश्मे होंगे, पर यह वह नदी थी ही नहीं...सो, हम चलते गये, चलते चले गये और चलते-चलते पहाड़ियों पें जा निकले और तब मैंने नीचे देखा और पाया कि हम तो ग़लत घाटी में आ निकले हैं।
तारों की छांव में रात बितायी सबने। बहुत सर्दी थी। अगले दिन मैंने सोचा कि मसूरी के छोटे रास्ते से जल्दी पहुँच जायेंगे, लेकिन हमने फिर गलत रास्ता पकड़ लिया और केंप्टी जा निकले...वहाँ से पैदल चल कर हम मोटर वाली सड़क पर आये और वहाँ से बस पकड़ी। "
केन काका को बिस्तर पर लिटाने में मैंने दादी की मदद की। फिर केन काका के लिए हमने प्याज का सूप बनाया, ताकि पीकर उनके बदन को ताकत मिले।
मैं ट्रे में शोरबा रख कर उनके पास गया। पहले तो उन्होंने मुंह बनाया, फिर और फरमाइश की।
दो दिन तक केन काका बिस्तर में पसरे रहे। आया और मैं बारी-बारी से उनके लिए भोजन लेकर जाते। मगर उन्होंने इस सबका रती-भर एहसान नहीं माना।
सोचता हूँ कुछ काका होते ही ऐसे हैं...कभी सयाने नहीं होते।
"खूब छक कर खा, मगर दूंस-ठूंस कर मत खा" " यह बात दादी अकसर मुझसे कहती, " अच्छा भोजन ईश्वर का वरदान है और दूसरे किसी भी वरदानकी तरह इसका भी ग़लत उपयोग हो सकता है। "
दादी ने रसोई के बारे में कुछ सूक्तियाँ अथवा कहावर्तों की एक सूची बना रखी थी, जिसे उन्होंने रसोई-मंडार के द्वार पर पिन से टांग दिया था। यह सूची इतनी ऊंचाई पर नहीं थीं कि मैं उसे पढ़ न सकूं और इतनी नीचे भी नहीं कि केन काका कि उस पर नजर न पड़े।
कुछ सूक्तियाँ इस प्रकार थीं:
हल्का खाना खाने से उम्र बढ़ती है। खाली प्लेट की बजाय एक निवाला परोसना अच्छा होता है।
हर काम में कौशल की अपेक्षा होती है-दलिया पकाने तक में। खाने-पीने में मनुष्य को इस तरह नहीं डूब जाना चाहिए कि वह सोचना बंद कर दे। बाहर के मुर्ग-मुसल्लम से, घर की रूखी-सूखी दाल-रोटी अच्छी होती है।
अच्छे भोजन से बुद्धि कुशाग्र होती है और हृदय उदार बनता है। ध्यान रखो कि तुम्हारी चटोरी जीभ कहीं तुम्हारा गला न रेत डाले!
एक दिन केन काका जब इस बात पर झिंक रहे थे कि उनके बाल झड़ते जा रहे हैं और चांद भी बढ़ती जा रही है, तो दादी ने अपने पुराने नुस्खों की किताब में देखकर बताया कि गंजेपन की एक दवा है, जिसका सफल प्रयोग उनके दादाजी किया करते थे।
यह एक प्रकार का लोशन था जो ब्रांडी में खीरा सोख़कर तैयार किया जाता था। केन काका बोले, " मैं इसका प्रयोग करके देखूंगा। '
दादी ने एक हफ्ते तक ब्रांडी में खीरा भिगो कर रखा। फिर बोतल केन काका को पकड़ायी और निर्देश दिया कि सुबह-शाम यह लोशन अपनी चांद पर लगाओ।
अगले दिन जब दादी उनके कमरे में गयीं, तो क्या देखती हैं कि बोतल में सिर्फ़ खीरे पड़े हैं। केन काका, ने सारी ब्रांडी पी डाली थी।
केन काका को मुह से सीटी बजाना अच्छा लगता था। निठल्ले तो थे ही। जेबों में हाथ डाले वह घर के बाहर-भीतर, बगीचे में और सड़क पर इस सिरे से उस सिरे तक मटरगश्ती करते हुए घीमे-धीमे सीटी बजाते रहते थे।
फिर, हमेशा एक जैसी ही सीटी बजाते थे केन काका। स्वयं काका को छोड़, सभी को उनकी सीटी बेसुरी लगती थी।
मैं उनसे पूछता, "' केन काका, आज आप क्या सीटी बजा रहे हैं?"
"'ओल् बैन रिवर' धुन।" उन्होंने एक अंग्रेज़ी गीत की पहली पंक्ति सुनाते हुए कहा, "पहचान नहीं पाया तू?"
अगली बार भी जब वह वैसे ही सीटी बजा रहे थे, तो मैंने फिर पूछा, "काका आज भी आप" ओल् मैन रिवर' की धुन बजा रहे हैं? "
"नहीं। यह 'डैनी बाय' धुन है।" उन्होंने एक और गीत के शीर्षक का नाम लिया। "फर्क समझ नहीं पाता तू?"
यह कह बेसुरी सीटी बजाते हुए फूहड़ चाल से वह आगे बढ़ गये।
कभी-कभी केन काका कि सीटी दादी को नाराज कर देती।
" केन! सीटी बजाना बंद नहीं कर सकता तू? तेरी सीटी ने मेरी नाक में दम कर रखा है। सीटी बजाने के बजाय तू गाना क्यों नहीं गाता? "
"मुझे गाना नहीं आता। वैसे भी यह" ब्लू डैनूबी' की धुन है। इस धुन के कोई बोल नहीं हैं। " और सीटी बजाते हुए वह किचन में ही थिरक-थिरक कर चलने लगे।
दादी ने कहा, " जा, बाहर बरामदे में जाकर सीटी बजा और नाच। यहाँ किचन में यह सब नहीं चलने दूंगी। सारा खाना ख़राब हो जाता है। "
जब दांत के डाक्टर ने केन काका का एक दुखता दांत निकाल दिया, तो हमने समझा कि अब तो वह सीटी बजाना छोड़ देंगे। मगर केन काका और भी ऊंची और तीखी सीटी बजाने लगे।
एक दिन वह जेबों में हाथ डाले ख़ाली-खाली सड़क पर जोर से सीटी बजाते हुए जा रहे थे। तभी उधर से एक लड़की साइकिल पर आयी।
एकाएक वह रुकी, साइकिल से उतरी और केन काका का रास्ता रोककर खड़ी हो गयी। फिर केन काका का पूरा नाम लेकर बोली, " केथेन बांड, मैं जब भी इधर से गुजरती हूँ, तुम सीटी बजाते हो। अब अगर तुमने फिर कभी सीटी बजायी, तो अपने भाई से कह कर तुम्हारी मरम्मत करवा दूगी। "
केन काका का चेहरा तमतमा गया, " मैंने तुम्हें देखकर तो सीटी नहीं बजायी? '
"वाह, सड़क पर तो और कोई आता-जाता दिखाई नहीं देता!"
"मैं 'गॉड सेव द किंग' की धुन बजा रहा था। तुमने पहचानी नहीं?"