निर्दयी सौतेली माँ : संथाली लोक-कथा

Nirdayi Sauteli Maan : Santhali Lok-Katha

एक बार किसी समय एक राजा था। राजा की पत्नी एक नन्हा शिशु छोड़ कर स्वर्ग सिधार गई थी। राजा ने उस ठुमक कर चलने वाले नन्हे बालक का अत्यधिक ध्यान पूर्वक पालन-पोषण किया। बालक के पास एक बहुत ही सुंदर बिल्ली थी वह सदैव उस बिल्ली के साथ खेला करता था और बिल्ली को बहुत ही ढंग से रखता था।

राजा के सभी संगी-साथी यह आग्रह करते रहते थे कि वह पुनः शादी कर ले, किंतु राजा वर्जित करता और कहता, निश्चित ही सौतेली माँ उसके बच्चे के प्रति अनुरागी न होगी, अंततः मित्रों ने राजा को दूसरी विवाह के लिए रजामंद कर लिया; तब राजा ने यह संकल्प लिया की यदि ऐसी भार्या मिले जो इस संतान का ख्याल अपने पुत्र-पुत्री सदृश रखेगी, तब मैं पुनः शादी करुंगा। इस कारण उसके मित्र एक दुल्हन की खोज करने लगे। यद्यपि अनेकों लड़कियाँ जो राजा से विवाह के लिए उत्कंठित थीं उन में से एक ने भी ऐसा वचन देने से मना कर दिया, की राजा के संतान को अपने बच्चे के तरह ख्याल रखेगी। एक गाँव में एक नवयुवा दुहागिन थी। राजा के यहाँ क्या हो रहा है, उसे यह विदित हुआ। एक दिन उसने पूछा की क्या राजा के लिए कोई वधू मिल गई है: उसे बताया गया की नहीं कोई राजा के बच्चे की दायित्व नहीं लेना चाहता है। “वे राज़ी क्यों नहीं होते, उसने कहा, मैं तो अविलंब प्रस्तुत हो जाती, यदि मैं रानी होती मुझे इस से कुछ प्रयोजन नहीं होता और मैं संतान का उसकी माँ से ज्यादा अच्छे ढंग से देख-भाल करती।” यह बात राजा के कानों में पड़ी, राजा ने विधवा को बुलवाया और उसे के सौन्दर्य को देख के प्रसन्न हुआ। उसने यह वचन दिया की यदि राजा उस का पाणिग्रहण कर लेता है तो उसके संतान को प्यार से रखेगी।

वह पहले तो बच्चे के प्रति इतना कृपालु भाव रखती की कोई अन्य उतना रख ही नहीं सकता था, मगर कुछ समय के बाद जब उसको अपना एक शिशु हुआ, तब पहले संतान के प्रति उसका द्वेष परिलक्षित होने लगा। वह प्रत्येक दिन यही सोचा करती की कैसे इससे मुक्ति मिले। बच्चा अभी भी अपने बिल्ली के प्रति बड़ा ही समर्पित था। एक दिन जब वह घर वापस आया तो अपनी सौतेली माँ से पूछा की बिल्ली कहाँ है। उसने क्रोध पूर्वक कहा बिल्ली ने लड़के को सम्मोहित कर रखा है दिन भर बिल्ली-बिल्ली। इस पर बच्चा रोने लगा; इस लिए उसने बिल्ली को खोज कर उसके तरफ फेंकते हुए बोली, यहाँ है तुम्हारी बिल्ली, तुम बिल्ली के लिए विक्षिप्त हो, लेकिन बच्चा बिल्ली को तो अपने गोद में ले लिया परन्तु अपनी सौतेली माँ के कठोर वचन के कारण रोता रहा शांत न होने के कारण उसकी मतेई और भी क्रोधित हो गई, उसने बिल्ली को पकड़ कर उसके पंजे से स्वयं ही अपने बाँहों और पैरों को इतना नोचवा लिया की छील जाने से वहां से रक्त स्राव होने लगा और उस के उपरान्त वह रोने-चिल्लाने और बच्चे को डांटने लगी। जब पड़ोसी यह देखने के लिए आये की क्या घटना हुआ है, तब वह कहने लगी की लड़के ने उसे अपनी बिल्ली से नोचवा दिया है। पड़ोसियों ने यह भी देखा की जैसा की उसने संकल्प किया था वह उस तरह से बच्चे को प्यार नहीं कर रही है।

तब तक राजा वहां तत्काल आया और पूछा की क्या घटना है। वह पीछे की ओर मुड़ी और ग़ुस्से में कहने लगी की तुमने खराब बिल्ली पाल-पोस कर रखा है, अंततः बिल्ली ने मुझे नोच लिया; देखो, बिल्ली ने कैसे मेरे चमड़े को उधेड़ दिया है; मैंने इस लड़के के लिए इतना कष्ट उठाया उसका प्रतिफल यही मिला। मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूँगी; अगर मैं रहूँगी तो यह लड़का दुबारा इसी तरह से मुझे आहत कर देगा। राजा ने कहा बच्चों की तरह बिलखना बंद करो; यह अभी नासमझ बालक है, जब यह बड़ा हो जाएगा तो मैं इसे डाँट दूंगा। परंतु रानी अपने हठ पर अड़ गई और घोषणा कर दी की मैं अपने बच्चे को ले कर चली जाउंगी, जब तक राजा यह वादा नहीं करता है की वह अपने बड़े बेटे को जान से मार देगा। राजा ने ऐसा करने वर्जित कर दिया, इसलिए रानी ग़ुस्से में अपने बच्चे को ले कर घर से बाहर निकल गई। अबतक राजा रानी को बेहद प्यार करने लगा था वह भी रानी को रोकने के लिए उसके पीछे गया, और कहा तुम मेरे छोटे संतान को लेकर नहीं जा सकती; वह बोली तुम को इस बच्चे की क्या चिन्ता है? यह मेरा है; मैंने तुम्हारे लड़के को तुम्हारे पास छोड़ दिया है, तुम उसको मार नहीं सकते और जब वह बड़ा होगा, यदि तुम से मेरे बारे में कुछ असत्य कहेगा तो तुम मुझे पीट कर मार डालोगे। अंत में राजा ने कहा ठीक है, वापस चलो यदि लड़का ने तुम्हें कुछ हानि पहुंचाया तो मैं उसको जान से मार दूंगा। लेकिन रानी बोली या तो पहले उसको मार दो या मुझे जाने दो। इस कारण अन्ततः राजा को वादा करना पड़ा और रानी को महल में वापस ले आया। बाद में राजा ने लड़के को बुलाया और उसे खाना खिलाया और बोला की हम लोग उसके चाचा के घर घूमने चलेंगे: बालक बहुत ही प्रसन्न हुआ और जा कर अपना जूता और छाता ले आया और साथ चल दिया, एक कुत्ता भी उसके पीछे-पीछे दौड़ते हुए आने लगा। जब वे जंगल में आये तो राजा ने अपने बेटे से कहा की वह इस पेड़ के नीचे बैठ कर उसका प्रतीक्षा करे, और राजा वहां से चला गया और जो कुक्कुर उसके पीछे-पीछे आ रहा था, राजा ने उस श्वान को मार दिया और खून को टाँगी में पोत दिया और अपने बच्चे को वहीं छोड़ कर वापस अपने घर चला गया।

जब बच्चे के पिता नहीं आये तो वह रोने लगा, एक ठाकुर रोने की आवाज सून कर बच्चा को डरा कर जंगल से भगा देने के लिए तेंदुआ के वेश में आया; लेकिन बच्चा जहाँ पर वह बैठ हुआ था वहां से नहीं उठा; ठाकुर अब भालू के वेश में आया, फिर सांप, हाथी और कई दूसरे वेश में आया लेकिन बच्चा वहीं बैठा रहा; इस प्रकार अन्त में ठाकुर उसको एक बुढ़िया के रूप में आ कर अपने गोद में उठा लिया और सांत्वना देते हुए उसे जंगल के छोर पर के एक गांव के सिवान पर छोड़ दिया।

सुबह में एक धनवान ब्राह्मण को बालक मिला और उसने बच्चे को अपने घर ले आया, किसी ने भी बच्चे पर स्वत्व नहीं जताया, इसलिए ब्राह्मण ने घर ला कर बालक को चरवाहा बना दिया और उसका नाम लेला रख दिया। ब्राह्मण के बेटे और बिटियाँ पाठशाला जाया करते थे और बकरी चराने जाने से पहले लेला उन लोगों का किताब पाठशाला में पहुंचाया करता था। इस प्रकार प्रत्येक दिन विद्यालय जाने से लेला एक या दो अक्षर जानने लगा और जब बकरी चराने जाता तो अपने स्मरण से उन अक्षरों को रेत पर उकेरा करता था। बाद में यह कहते हुए की यह दूसरे बच्चों की तरह पढ़ना चाहता है, अन्य बच्चों ने उसे अपनी पुरानी किताबें दे दिए। इस प्रकार इन किताबों से वह स्वयं ही पढ़ना-लिखना सीख लिया और जब वह बड़ा हुआ तब तक वह ज्ञानी हो चूका था। एक दिन उसे गाँव के किसी लड़की का एक पत्र गिरा हुआ मिला, उसमें लिखा था कि एक लड़की ने उसी शाम को किसी नवजवान के साथ भाग जाने की योजना बनाई है।

लेला पूर्वनिश्चित स्थान और निर्दिष्ट समय पर जा कर एक पेड़ के ओट में छुप गया। शीघ्र ही उसने देखा की एक लड़की जो की ब्राह्मण की बेटी है उस स्थान पर आई है, परन्तु उसका पत्र उसके प्रेमी के पास पहुँच नहीं पाया था इसलिए वह उपस्थित नहीं हो सका। लड़की प्रतीक्षा करते हुए थक गई और यह सोचा की शायद वह कौतुक वश छुपा हुआ है, तो वह आवाज दे कर उसे बुलाने लगी। लेला ने पेड़ पर से उत्तर दिया और लड़की ने सोचा की वह उसका प्रेमी है; और उसने कहा नीचे आओ और चलो हम भाग चलें। इस प्रकार लेला नीचे उतरा और दोनों एकसाथ भागने लगे, जब पौ फटा और लड़की ने देखा की यह जो उसके साथ है वह तो लेला था तब वह नीचे बैठ गई और उसे धोखा देने के लिए डांटने, फटकारने लगी। लेला बोला उसका सामना तो संयोग वश हुआ है; उसने उसे बहला-फुसला कर बाहर भागने के लिए न ही बुलाया है न ही कोई उसको कोई नुकसान पहुंचाया है यदि वह चाहे तो अपने घर जा सकती है या इच्छा हो तो उसके साथ चले। लड़की विचार करने लगी, उसने सोचा अगर वह घर जाती है तो उसे कलंकित किया जायेगा और उसके परिवार को जाति से निष्कासित कर दिया जायेगा, इसलिए अंततः वह लेला के साथ भागने के लिए रजामंद हो गई।

वे वहां से चले गये और कुछ दिनों तक घूमने के बाद वे एक बड़े नगर में पहुँचे, उन्होंने निवास के लिए जगह एक टूटे हुए घर में लिया और अगले सुबह लेला नगर में काम ढूंढने गया। वह कचहरी में गया और अपना नामांकन एक अधिवक्ता के रूप में कराया और जल्द ही वादी एवं दंडाधिकारी यह जान गए की यह काम में कितना निपुण है और उसने अपने वकालत पेशा को विस्तार पूर्वक उपार्जित किया। एक दिन राजा ने कहा यह व्यक्ति अत्यंत ही चित्ताकर्षक है, मैं यह जानने को उत्सुक हूँ कि इसकी पत्नी कैसी होगी और राजा ने एक बुढ़िया को उस की पत्नी से मिलने के लिए भेजा, लिहाज़ा बुढ़िया वहां गई और लेला की पत्नी से वार्तालाप कर के वापस राजा के पास आई और कहा तुम्हारी पत्नियों में से कोई लेला की पत्नी जैसी मनभावन नहीं है। ऐसे में राजा ने निश्चय किया की वह जा कर स्वयं ही मिलेगा, तब बुढ़िया ने कहा यदि वह यह देखेगी की राजा आ रहा है तो घर में छुप जाएगी। राजा एक गरीब आदमी के छद्मवेष में गया और लेला की पत्नी को देखा और पाया की बुढ़िया ने अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं कहा था। तब वह निश्चय किया की वह लेला की पत्नी पर अपना आधिपत्य जमाएगा। इसलिए पहले लेला को रास्ते से हटाना होगा इस कारण उसने लेला को बुलाया और कहा की तुम एक श्रेष्ठ व्यक्ति हो और तुमने मुझे संतुष्ट भी किया है। मैं तुम्हें एक और कार्यभार देना चाहता हूँ यदि तुम इसे निष्पादित कर सको, इस हेतु मैं तुम्हें अपने साम्राज्य का आधा हिस्सा के साथ-साथ अपनी बहन से ब्याह भी करा दूंगा। लेला ने कहा की आप को कोई वादा करें इस से पहले सोच लें। राजा ने कहा “वैसा ही है” एक खास पर्वत पर चाँदमोनी कुसुम फूल खिलता है, तुम मेरे लिए वह फूल ले आओ और मैंने जैसा की तुम को वचन दिया है। मैं वह सब कुछ तुम्हें दे दूंगा। राजा को यह पूर्ण अपेक्षा थी कि यदि लेला उस पर्वत पर गया तो उस पर निवास करने वाली राक्षसी उसे खा जाएगी। लेला बोला की वह वहां जायेगा यदि राजा गवाहों के उपस्थिति में प्रतिज्ञा पत्र लिख कर दे और राजा ने ऐसा स्वेच्छापूर्वक कर दिया। इस प्रकार लेला ने अपनी पत्नी को जा कर सभी बातों को बताया, तब उसकी पत्नी बोली यह तो बहुत अच्छा हुआ, मेरी एक छोटी बहन जो उस पर्वत पर रहती है उसका नाम चाँदमोनी है और यह वही है उसी ने चाँदमोनी कुसुम फूल का पेड़ लगा रखा है; जब तुम वहां पहुंचोगे तो उसको नाम से बुलाना वह निश्चय ही तुम को फूल देगी।

इस प्रकार लेला प्रस्थान किया और जब वह चला गया तो उसकी पत्नी अस्वस्थ हो गई, और उसका शरीर घावों से भर गया। लेला अपने अभियान के पथ पर अग्रसर था, तभी राजा ने बुढ़िया को लेला की पत्नी से मिलने के लिए भेजा- देख आओ की वह क्या कर रही है और बुढ़िया ने आकर के कहा- वह तो बीमारी से आक्रमित है; तब राजा ने दवाईयां भेजी और बुढ़िया को उसकी सेवा करने के लिए कहा। इधर लेला पहाड़ पर के एक खोह के पास चला गया जहाँ चाँदमोनी एक राक्षसी के साथ रहती थी और राक्षसी मानव आखेट हेतु बाहर गई हुई थी, तब लेला ने आवाज दी- चाँदमोनी और चाँदमोनी ने कहा- यह कौन है? लेला उससे याचना पूर्वक कहा की उसे कहीं छुपा दिया जाए और तब उन्होंने एक योजना बनाई की कैसे राक्षसी को मारा जाना चाहिए और चाँदमोनी ने लेला को गुफा में छुपा दिया। तत्काल राक्षसी वापस आ गई और बोली चाँदमोनी मुझे एक मनुज गंध आ रही है, वह कहाँ है? लेकिन चाँदमोनी बोली की यहाँ उसके अतिरिक्त और कोई दूसरा नहीं है, संभवतः मानव मांस भक्षण करते रहने के कारण यह गंध तुम्हारे अपने ही देह से आ रही हो और उसने राक्षसी को यह सलाह दिया की तुम अपने शरीर को गर्म घी से लेप लो तो ऐसा नहीं होगा। राक्षसी इस सलाह से सहमत हो गई। इसलिए चाँदमोनी लोहे के एक बड़े कड़ाह में घी को उबलने के लिए आग पर रख दिया, जब घी उबलने लगा तब उसने राक्षसी को बुलाया; राक्षसी कड़ाह के उपर झुकी हुई थी तब लेला दौड़ता हुआ बाहर आया और राक्षसी को धक्का दे कर खौलते हुए घी के कड़ाह में गिरा दिया और राक्षसी मर गई। तब चाँदमोनी ने लेला से पूछा की वह यहाँ क्यों आया है, लेला ने उसको बताया की वह कुसुम फूल लेने आया है। चाँदमोनी ने उससे वादा किया की वह उसको कुसुम फूल देगी, परंतु अब उसका क्या होगा! वह जिस राक्षसी के साथ रहती थी वह तो अब मर गई है। लेला ने वादा किया की वह उसको अपने साथ लेते जाएगा। इसलिए उन्होंने राक्षसी के जीभ, कान और पंजे काट कर रखा लिए और नगर में वापस आ गए। लेला सीधे अपनी पहली पत्नी के पास गया जो की अब अपनी व्याधि से मुक्त हो चुकी थी।

तब राजा ने देखा की लेला से प्रतिस्पर्धा करना व्यर्थ है और उसने अपना आधा राज्य लेला को दे दिया और प्रतिज्ञा के अनुसार उसने अपनी बहन से लेला की शादी भी कर दिया। इस प्रकार लेला अपनी तीन रानियों और संतानों के साथ के रहते-रहते हुए उकता गया था, कुछ वर्षों के बाद लेला ने उनको बताया की वह एक राजपुत्र है और अब उसकी इच्छा है की वह अपने देश की यात्रा करे और यह देखे की उसके पिता जीवित है या नहीं। इसलिए वे सभी बड़े ही भव्य ढंग से घोड़ा और हाथीयों पर बैठ के उस नगर में आए, जहाँ लेला के पिता जी रहा करते थे। लेला के परित्याग के पाँच या छह दिन के बाद ही उस के पिता की आँख की रोशनी खत्म हो गई थी और राज्य का प्रबंध प्रधानमंत्री के हाथों सौंप दिया था। प्रधानमंत्री और रानी ही अब सब व्यवस्था कर रहे थे। जब प्रधानमंत्री ने सुना की लेला बड़ी सेना ले कर आया है तब उसने सोचा की लेला देश को लूट लेगा और इस डर से प्रधानमंत्री देश छोड़ कर भाग गया। तब लेला ने आपने पिता को सन्देश भेजा की वह उनका पुत्र आया है, जिसका जंगल में परित्याग कर दिया गया था, यह सुन के राजा खुशी से झूम उठा और उसने सभी को यह बात बताई, अब उसको कुछ-कुछ धुंधला दिखाई पड़ने लगा था, और कुछ समय बाद जब वह लेला के शिविर में आया तब तक उसके आँख की रोशनी भी पूर्णतः लौट गई थी। जब पिता और पुत्र मिले दोनों एक दूसरे के गले लग के खूब रोये, इस अवसर पर लेला ने एक भोज के आयोजन का आदेश दिया और जब तक यह सब तैयारी चल ही रही थी कि एक परिचारिका दौड़ते हुए आई और कहा की दुष्ट रानी ने फांसी लगा कर आत्म हत्या कर लिया है। इसलिए वे उसके शव का अग्निसंस्कार क्रिया करने चले गए और वहां से लौट कर उन्होंने भोज का आनंद उठाया। राजा ने अपने पद को त्याग दिया और राज्य को लेला को हाथ सौंप दिया और प्रजा ने भी लेला से निवेदन किया की वह यहीं रहे और राजा बन कर उन पर शासन करे, इस प्रकार लेला प्रसन्नता पूर्वक सपरिवार सदैव के लिए वहां रहने लगा।

कहानी का अभिप्राय: जीवन में आने वाले क्षणिक क्लेश से घबराये बिना साहस, धैर्य और संयम के साथ बुद्धिमानी पूर्वक आगे बढ़ते रहना चाहिए।

(Folklore of the Santal Parganas: Cecil Heny Bompas);

(भाषांतरकार: संताल परगना की लोककथाएँ: ब्रजेश दुबे)

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