नेस्रो : मेरा दोस्त (अर्मेनियाई कहानी) : होवान्स तूमानियान

Nesro : Mera Dost (Armenian Story in Hindi) : Hovhannes Tumanyan

(1)

हम गांव के बच्चे साथ-साथ रह कर हमेशा बहुत खुश रहते थे ।

गांव में न तो हमारे लिए स्कूल था और न पाठ याद करने का झंझट था । हम चिड़ियों की तरह मुक्त थे। सारा दिन खेलते-कूदते रहते। सच, खेल के वे क्षण कितने सुखद थे । हम आपस में कितने अच्छे मित्र थे और एक दूसरे को कितना प्यार करते थे । भूख लगती तो घर की ओर भागते । रोटी का एक टुकड़ा और मर्तबान से थोड़ा पनीर लेकर हम फिर खेल के मैदान की ओर दौड़ जाते । फिर कभी शाम को हम सब बैठकर बातें करते और कहानियां सुनाते ।

हमारे एक साथी का नाम था - नेस्रो उसे इतनी ज्यादा कहानियां और परी कथाएं याद थीं कि बस कभी खत्म ही न होतीं ।

गर्मी की चांदनी रातों में हम अपने बाड़े में पड़े लट्ठों के ढेर पर गोला बनाकर बैठ जाते और नेस्रो की तरफ मंत्रमुग्ध से टकटकी लगाए देखते रहते । हमसे प्रेरणा पाकर वह भी खुश हो जाता। वह हमें गुरी पेरी, स्वर्ग के पक्षियों और अंधकार तथा प्रकाश के साम्राज्यों की कहानियाँ सुनाता। फिर हम उससे फरमाइश भी करते- - 'नेस्रो कोई और कहानी सुनाओ न। अच्छा, अंधे राजा वाली कहानी, तोते की कहानी या बिना दाढ़ी वाले गंजे आदमी की भी कहानी सुना दो' ।

(2)

एक दिन हमारे गांव में एक स्कूल खुल गया। गांव के बीस या तीस लोगों ने अपने बच्चों को उसमें पढ़ने भेजा। मेरे माता-पिता ने भी मुझे स्कूल भेजा । एक वर्ष की फीस केवल तीन रूबल थी। लेकिन जिन बच्चों के माता-पिता उसे भी दे पाने की स्थिति में न थे, उनके बच्चे स्कूल जाने से रह गए। इस कारण मेरे बहुत से दोस्त, जिन में नेस्रो भी था, स्कूल में पढ़ने नहीं गए ।

इस तरह हम दोस्तों को जीवन में पहली बार एक दूसरे से अलग किया जा रहा था । अलगाव का यह काम किया था - हमारे स्कूल और हमारे शिक्षक ने । और इस तरह हमें पहली बार यह बताया गया कि हम कुछ लोग धनी हैं और दूसरे लोग गरीब हैं। मेरे कानों में आज भी नेस्रो का बिलख-बिलख कर रोना ओर धूल में लोट-लोट कर चिल्लाना गूंज उठता है- मैं भी स्कूल जाना चाहता हूं, मैं भी स्कूल जाना चाहता हूं।' और फिर उसके पिता की मजबूर आवाज मेरे कानों में गूंजती है - 'भगवान के लिए क्या तुम इतना भी नहीं समझ सकते कि मेरे पास पैसा नहीं है । अगर मेरे पास तीन रूबल होते तो मैं अनाज न खरीद लाता जिससे घर के लोग भूखे तो न रहते। मेरे पास बिल्कुल पैसा नहीं है' ।

सो और अन्य वे दोस्त जो स्कूल नहीं जाते थे, हमें देखने के लिए बहुत उत्सुक रहते थे । वे स्कूल के फाटक के पास आकर खड़े हो जाते और हमें देखने के लिए झांकने लगते । लेकिन शिक्षक उन्हें अन्दर झांकने भी न देता । वह उन्हें खदेड़ कर भगा देता । यहां तक कि वह हमें उनके साथ आधी छुट्टी में खेलने भी न देता । उसका कहना था कि स्कूल के बच्चों के साथ, बाहर के बच्चों को खेलने की क्या ज़रूरत है। मेरे दोस्त निराश होकर चुपचाप चले जाते । स्कूल से दूर कहीं बैठ जाते और छुट्टी होने पर हमारे लौटकर आने की प्रतीक्षा करने लगते । फिर हम सब मिलकर बातें करते हुए घर लौट आते ।

धीरे-धीरे एक साल में मैंने स्कूल के अन्दर नये दोस्त बना लिए। फिर साल बीतते-बीतते नेस्रो ओर स्कूल न जाने वाले मेरे बाकी दोस्त भी दूर होते गए और उन्होंने स्कूल के बाहर मेरी प्रतीक्षा करनी छोड़ दी ।

(3)

मैं दो वर्ष तक अपने गांव के स्कूल में पढ़ता रहा। फिर मेरे पिता मुझे पास के कस्बे में ले गए और वहां के माध्यमिक स्कूल में मेरा नाम लिखवा दिया। यहां सब कुछ मेरे लिए नया था। कस्बे के सभी घरों के छप्पर लाल रंग के थे । लोग बहुत अच्छे और साफ कपड़े पहनते थे । स्कूल भी काफी बड़ा और सुन्दर था । वहां मेरे गांव के स्कूल की तरह एक ही शिक्षक नहीं बल्कि कई शिक्षक थे, जिनमें एक महिला भी थी । यह मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य था ।

उस नये परिवेश और स्कूल के अनुरूप मेरे कपड़ों और पहनावे में भी परिवर्तन आया। अब मैं कस्बे के स्कूल की सुन्दर और स्वच्छ पोशाक पहनता था। कुछ दिनों बाद छुट्टियां हुईं। मैं एकदम बदले हुए रूप में अपने गांव लोटा । जब नेस्रो और मेरे अन्य मित्रों को मालूम हुआ कि मैं घर वापस आया हूं तो सुबह-सुबह वे सब से पहले मुझे देखने के लिए आ गए। वे घर के द्वार पर बड़ी उत्सुकता से मेरी एक झलक पाने के लिए बार-बार इधर-उधर झांक रहे थे। मैं उनसे मिलने बाहर निकला । अब यह तो मुझे याद नहीं रहा कि उस समय हमारी बया बातें हुईं। लेकिन इतना जरूर याद है कि हमारी पुरानी दोस्ती मिट चुकी थी । उन्होंने सबसे पहले मेरी पोशाक को बड़े ध्यान से देखा । नेस्रो ने मेरी छोटे कलर वाली कमीज को तिरछी नजरों से देखकर कहा - "ऐसा लगता है जैसे उन्होंने तुम्हारी दुम के पंख नोच डाले हों।' इस पर सब लोग हंस पड़े । मुझे बुरा जरूर लगा, पर मैंने कुछ कहा नहीं। फिर नेस्रों में मेरी जैकिट का कपड़ा हाथ से छू कर देखा और बाद में अन्य साथियों ने भी यही किया । उस कपड़े की कोमलता को देखकर वे सब चकित थे। दरअसल उस समय ही पहली बार मैंने उनके कपड़ों की ओर ध्यान दिया कि वे कितने गंदे और जगह-जगह से फटे हुए थे । और सच कहूं तो उस समय मुझे पूरा गांव ही गरीबी का मारा हुआ और एक दम गंदा महसूस हुआ ।

(4)

दो साल बाद मेरे पिता मुझे एक बड़े शहर में ले गए और पहले से भी अधिक बड़े स्कूल में दाखिल करा दिया। उस बड़े स्कूल से जब मैं गांव लौटा तो मेरे बचपन के साथी भी अब बड़े हो गए थे । वे मुझ से मिलने आए । अन्य किसानों की तरह उन्होंने भी मुझे सलाम किया और एक और तमीज के साथ खड़े हो गए। उस समय हो रही बातचीत के दौरान जब किसी ने मुझ से पूछा कि क्या मुझे अपने गांव के स्कूल के दिनों की याद है ? तो नेस्रो एकदम बोल उठा था-

"क्या तुम्हें याद है जब हम रात को तुम्हारे बाड़े में लट्ठों के ढेर पर बैठकर कहानियां सुनाते थे ।"

"मैं वह सब कैसे भूल सकता हूं। वे तो मेरी स्मृति के सुखद क्षण हैं ।" मेरा विचार है कि इस उत्तर से नेस्रो खुश हुआ था, लेकिन फिर भी वह मुझ से दूर ही रहा । एक अजनबी की तरह ।

कुछ दिनों बाद मेरे शहर लौटने का समय आ गया। मेरे पिता ने मुझे भेजने के लिए नेस्रो के पिता से एक घोड़ा किराये पर लिया। नेस्रो को उस घोड़े के साथ जाना था जब हम चले तो में घोड़े की पीठ पर बैठा था । नेस्रो अपनी गुदड़ी और पैरों में पुरानी सेंडिल पहने मेरे साथ चल रहा था । उसे देखकर मेरा मन बहुत दुखी हुआ। अभी हम कुछ दूर ही आए थे कि मैंने कहा 'मुझे तो पैदल चलना ही अच्छा लगता है।' और मैं घोड़े से उतर कर पैदल चलने लगा । हम इसी तरह आगे बढ़ते रहे। कभी साथ-साथ पदल चलते और कभी घोड़े पर चढ़ कर । नेस्रो खुश नजर आ रहा था। लेकिन मैंने यह अनुभव किया कि वह मेरी निष्पक्षता और मित्रता की भावना को बिलकुल नहीं समझ रहा था। वह तो मुझे पैदल चलते देखकर बेवकूफ समझ रहा था । मुझे इससे दुख हुआ, किंतु अभी तो इससे भी बुरी बात होने वाली थी ।

रास्ते में हम कुछ खाने चबाने के लिए रुके। हमने एक तरबूज लिया और उसे काटने के लिए हैं। अपनी जेब से चाकू निकाल कर नेस्रो को दे दिया । लेकिन जब हम खा-पी कर फिर से चलने को हुए तो मैंने देखा कि वह चाकू वहां न था। नेस्रो से पूछा तो उसने कसम खा कर कह दिया कि वह उसे लौटा चुका है और मैंने अपनी जेब में रख लिया था। हालांकि मैं इस सत्य को जानता था कि उसने चाकू नहीं लौटाया, फिर भी मैंने अपनी जेबों को टटोल लिया । खैर, हम आगे की यात्रा पर चल पड़े । यह स्पष्ट था कि उसने चाकू चुरा लिया था और बाद में लोगों ने उसे उसके पास देखा भी। किंतु हम जैसे-जैसे अपनी यात्रा पर आगे बढ़ रहे थे, इस घटना से मेरा मन दुखने लगा था। मुझे चाकू खोने का दुख न था बल्कि दुख था उससे भी अधिक हुई उस हानि के लिए जिस के प्रति मेरा साथी बेखबर था ।

जब हम अपने गंतव्य पर पहुंच गए तो नेस्रो वापस जाने लगा। मैंने उसे घोड़े का किराया देने के साथ-साथ जैकेट के लिए कपड़ा भी खरीदकर दिया । इस पर भी जब वह बोला- 'बख्शीश नहीं दोगे' तो मैं बड़े पशोपेश में पड़ गया । मैंने बख्शीश दे दी। लेकिन इस घटना के बाद से, चांदनी रात में लट्ठों के ढेर पर बैठकर नेस्रो से कहानियां सुनने वाले बचपन के दिनों की याद जब भी करता हूं तो मेरा मन पीड़ा और दुख से भर जाता है ।

(5)

'नेस्रो गरीब है... नेस्रो नादान है... नेस्रो गांव की निराशाभरी गरीबी की जिन्दगी से पिस चुका है अगर उसे शिक्षा मिली होती तो वह मुझ से कहीं अधिक अच्छा इन्सान बनकर निकलता ।' यह सब जब नेस्रो के बारे में आज सोचता हूं तो मैं अपने आपसे ऐसी ही बातें कहता हूं और उसे क्षमा करने की कोशिश करता हूं ताकि अपनी नजरों में उसे ऊंचा उठा करू वैसे ही प्यार करूं जैसा बचपन में किया था। मैं चाहता हूं मेरे सामने नेस्रो वैसा ही रहे जैसा वह खामोश, तारों भरी चांदनी रातों में होता था । किंतु ऐसा हो नहीं सकता। मैं उसे उस रूप में देख नहीं सकता ।

अपनी शिक्षा पूरी कर अपने लिए दुनिया में जगह बनाने के बाद मैं एक बार अपने गांव वापस लौटा। उस दिन गांव का चौराहा भीड़ से भरा हुआ था, और बहुत शोर हो रहा था। चौराहे के बीच एक खंभे से नेस्रो बंधा हुआ था और उसका सिर शर्म से झुका हुआ था । मुझे बताया गया, उसे चोरी के अपराध के लिए सजा दी जा रही है। मैंने उसकी और से पैरवी की और उसे छुड़ा लिया। लेकिन मेरे मस्तिष्क में वह दृश्य सदा के लिए अंकित हो गया है--नेस्रो, खंभे से बंधा है, उसका सिर झुका हुआ है और चारों तरफ शोर हो रहा है । हमारे गांव में यों तो चोरी करना और कोड़े की मार पड़ना एक आम बात थी, लेकिन मैं इस घटना को बिल्कुल नहीं भूल सकता, क्योंकि छोटे से नेस्रो को चांदनी रातों में लट्ठों पर बैठ कर कहानियां सुनाते हुए नहीं भुला सकता। मेरे बचपन का मित्र नेस्रो । कितना पवित्र और सुन्दर है... नेस्रो ।

(अनुवाद : विभा देवसरे)

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