नीम का पेड़ (कहानी) : एस.भाग्यम शर्मा
Neem Ka Ped (Hindi Story) : S Bhagyam Sharma
छुटपन से ही मुझे पेड़ों से बहुत प्रेम है और नीम से तो विशेष नेह है। उसी के नीचे खेल कूद कर मैं बड़ी हुई। ये जो पेड़ चारों तरफ के घरों की बालकनी को छूता हुआ है मैं सुबह उठते ही आँखें मलते हुये बाहर आकर उसे देखती। पक्षियों का चहचहाना,आपस में वे बातें करते है, क्या करते हैं उनकी गतिविधियों को गौर से देख कर ही मेरी सुबह की दिनचर्या होती है। आज मेरा मन बहुत दुखी है, इस पेड़ की वजह से परेशान हूं। क्यों कि इसे काट देंगे ऐसा इस कालोनी की कमेटी ने फैसला किया है। मेरे दादा जी के 500 से अधिक पेड़ यहां पर थे। अब मैं 80 साल की होने वाली हूं। जब मैं आठंवी में पढ़ती थी तब मेरे जन्म दिन पर मैंने बड़े शौक से इस नीम के पेड़ को लगा कर इसकी परवरिश की। आज ये इतना बड़ा हो गया है।
जनसख्ंया बढ़ने के साथ-साथ उनकी जरूरत के लिये हमने पेड़ों को काट कर इमारतें खड़ी की हैं। पर उस पेड़ों के समूहों के वारिस के रूप में आज ये पेड़ बचा है। अच्छे मन वाले एक बिल्डर ने पेड़ के चारों तरफ कई मंजिल फ्लेट बना दिये, और मेरे पति ने मेरी भावनाओं की कद्र करते हुये यहीं एक फ्लैट खरीद लिया।
“कांव..... कांव..... एक कौवे की आवाज सुन कर मैं वर्तमान मे लौट आई।
आ गए तुम ! चलो तुम्हारे खाने का समय हो गया। कल तो इस पेड़ को काट देंगे फिर तुम कहां रहोगे, तुम्हारे रहने का क्या होगा! “ उससे पूछते हुये मैने रोटी के छोटे -छोटे टुकड़े कर अपनी हथेली में रखे तो कौवा 'कावं.....आवाज निकाल कर उन्हें चोंच में दबा कर उड़ गया।
ठीक आठ बजे पता नहीं कहां से मैना के झुण्ड आकर संसद भवन जैसे इस पेड़ के टहनियों में बैठते हैं। ऐसे जोर-जोर से कीच-मुच आवाज निकालते ऐसा लगता है जैसे संसद में चर्चा हो रहीं हो । फिर वे चारों दिशाओं में उड़ जाते। मेरी रोजाना की दिनचर्या में ये भी शामिल है इन्हें देख मेरी खुशी कई गुणा बढ़ जाती है। इसे देखना मेरी रूचि का विषय है। इतने में नीम के पेड़ के कोटर (खोखले) में से गिलहरियां 'कीचं-कीचं' कर गला फाड-फाड कर चिल्लाती हुई बालकनी में आई । मैंने उनके लिये जों मुरमुरे वहां डालें हुए थे उसे खाने के लिये आपस में लड़ती झगड़ती रहीं। उस पेड़ के बिल्कुल ऊंची वाली शाखा पर एक बड़ा मधुमक्खी का छच्ते है। आज मक्खियों का आवागमन दिखाई नहीं दें रहा है। मैंने सोचा शायद पेड़ कटने वाला है, ये बात उन्हें पता तो नहीं चल गई ?
"बच्चे नैतिक शिक्षा की कक्षा में पढ़ने आ गये हैं। उन्हें देखों ! तुम तो कहतीं थीं पेड़ जो है वह देवता है। फिर अपने को बचाने का रास्ता उनको पता नहीं होगा क्या ? "मेरे पति के आवाज देने पर मैं नैतिक शिक्षा की कक्षा लेने के लिये तैयार हुई। हमेशा की तरह नीम के पेड़ के नीचे चटाई बिछा कर कालोनी के सभी बच्चे उस पर बैठ गये। कहानी, गाने, खेल में बीतता समय आज कोई ज्यादा अच्छा नहीं लग रहा है क्यों कि मैं बहुत कोशिश करने के बावजूद भी उत्साह के साथ पढ़ा नहीं पा रही हूं। चारों तरफ बच्चों की मम्मियां जो आकर खड़े होकर आनन्दित होती थीं वे भी कोई नहीं आई ।
पेड़ के काटने में महिलाओं की सहमति नहीं। बच्चों को क्या समझ आया होगा ? कक्षा के अन्त में खड़े होकर प्रकृति को बचा कर हम आने वाली पीढ़ी को देगें, ऐसा रोजाना बोलने वाले वाक्यों को बोलते समय मेरी आवाज में जो गंभीरता होनी चाहिये वह न होकर में हिचकिचाहट मालूम हुई।
पेड़ को काटने के लिये जो बड़ी बिजली की आरी मशीन मंगवाई थी उसने करं...करं.....करं कर अपने काम को शुरू कर दिया। टहनियो को मोटे रस्से से बांध दिया, व नीचे पकड़ कर खींचने के लिये कॉलोनी के पुरूष तैयार खड़े थे। पेड़ धीरे से थोड़ा झुका। घोंसलों में जो पक्षी थे वे घबराकर बिलखते हुये उडे, जिनके पर नहीं निकले वे चूजे तो नीचे गिर कर तड़पने लगे, अण्डे नीचे गिर टूट कर फैल गये। खड़े हुये पेड़ का पूरा स्वरूप दिखाई नहीं देता था, पर गिरने पर अच्छी तरह दिखाई दे रहा था।
"अरे पापी लोग ! प्रकृति का क्रोध कितना भयंकर होता है मालूम होने पर भी बार-बार गलती करते हो। तुम्हें अक्ल कब आयेगी ? ” हाथों से छाती को पकड़ कर मैं रोने लगी, तो मेरे पति "सपना देखा क्या ? पूरा शरीर पसीने से भीग गया है। मुझे जगाया तो मैं पहले बालकनी की तरफ दौड़ी।
नये नीम के फूलों की खुशबू को चारों तरफ फैलाते हुये नीम का पेड़ शान्ति से खड़ा था। रात के समय अपने घोंसले को वापस जाने का रास्ता न पता होने वाले तोते, छोटी-छोटी चिड़ियांये, और भी बहुत से पक्षी जिनके नाम भी पता नहीं वे सब,टहनियो पर लाइन से बैठे हुये थे व सवेरा होने का इंतजार कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वे मौन होकर तप कर रहें हो। सुबह जो वध होने वाला है उसे आंखों से न देख सकूं इसलिये बालकनी के दरवाजे को बंद कर पर्दे को भी खींच कर मैं अंदर आकर लेट गई।
"आण्टी....आण्टी ! " आवाज सुन कर मैंने दरवाजा खोला तो कालोनी के सेक्रेटरी की पत्नी विद्या, अपने बेटे आर्यन को साथ लेकर आई थी।
"आण्टी ! रात को बच्चा सोने जाने तक भी सही था। सुबह देखें तो पूरे शरीर में व चेहरे पर इधर उधर लाल लाल फफोले जैसे कुछ हुआ है। क्या ये माता आई है देख कर बताईयेगा ? ”
विद्या की आवाज में डर व घबराहट थी।
आर्यन को देखने के बाद " बच्चे को नहलाने तक इसे मेरे घर में ही रहने दो। तुम्हारी गोदी में छोटा बच्चा है। उसे तुम अच्छी तरह सम्भालो। जाते समय एक गुच्छा नीम के पत्तों को लेकर जाओ व उसे घर के दरवाजे पर टांग देना। "कह कर विद्या को मैंने रवाना किया।
मेरे पति को आर्यन को देखने के लिए कह कर मैं मन्दिर के लिये रवाना हो गई। यहां सब खत्म होने के बाद ही आऊंगी। सोच कर प्रथम आरती से लेकर दोपहर के भोजन तक की सभी झांकियों का दर्शन कर ही मैं घर आई। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब हमेंशा की तरह मेरा नीम का पेड़ मेरे स्वागत के लिये खड़ा था। बच्चे दौड़ कर आकर," दादी मां नीम के पेड़ को काटने का काम कैन्सिल हो गया। " कहा तो सभी महिलाओ के चेहरे खुशी से खिले हुये थे।
आर्यन के माता निकलने वाली बात एक घण्टे में ही पूरी कॉलोनी में फैल गई थी। " इतने सालो से माता गायब थी। अब ये बीमारी आई तो इस नीम के पेड़ को काटने के निश्चय करने के कारण ही है। आण्टी ने प्रेम से उसे पाला पोसा, व उसकी देवी जैसे पूजा की। ये निश्चय ही पाप का काम है इसीलिये आर्यन के माता आई तो अब फिर दूसरे बच्चों को को कैसे नहीं आयेगी ?"
" पेड़ में जान है ये हम सब मानते है, फिर उसे काटेगे तो मनुष्य को काटना ही हुआ ना ? " ऐसी बहुत सारी बातें औरते सोचने लगीं। जो औरते गर्भवती थीं वे और घबरा रहीं थीं।
सुबह दस बजे सब बच्चे आपस में बातें कर पेड़ का चारो तरफ घेर कर खड़े हो गये "नीम के पेड़ को मत काटो।" वे शोर मचाने लगे तथा महिलाएं उनके चारों ओर एक दूसरे के हाथ को पकड़ कर गोला बना कर उसका मौन समर्थन कर रही थीं।
कॉलोनी की कमेटी के फैसले के खिलाफ यह पहला विरोध प्रदर्शन था। उसी समय बिजली की आरी में खराबी आ गई थीं। उसके ठीक होने में दो दिन लगेगे, ऐसा सक्रेटरी के पास फोन आया था। " आर्यन को माता निकली वह देवी का कोप है, हो सकता है जो महिलाऐं सोच रहीं हैं वह सच हो ! इसी लिए ऐसी अड़चन आ रही है। " ऐसे सभी सदस्यों के द्वारा विरोध करने पर पेड़ काटने का फैसला रद्द हुआ।
घर पहुंचने के पहले ही मुझे सब बातों का पता चल गया। आर्यन को गले लगा कर " तुम्हें जो हुआ है वह माता नहीं है उसे देख कर ही मैं समझ गईं। तुमसे पूछना है, इसीलिए तुम्हें यहां रूकने के लिए कहा। कुछ अच्छे के लिए ही ऐसा हुआ है सोच कर तुम्हारे नाटक में मैं भी शामिल हुई। क्यों किया ये नाटक ? तुम सच बोलो। " बड़े प्यार व विश्वास के साथ मैंने पूछा।
'दादी जी, आपने एक बार हमें बताया था कि अंग्रेज लोग माता से बहुत डरते थे। अतः जब अंग्रेज लोग एक स्वंतत्रता सेनानी को पकड़ने आने वाले थे तो उसके साथी ने उस उस सेनानी को पकड़ने से बचाने के लिये एक लोहे को गरम करके उससे सारे शरीर को दांग कर निशान बना दिया था। उसके साथी ने माता आई है ऐसा नाटक किया, तो अंग्रेज जो माता से बहुत डरते थे अतः उसे पकड़ने नहीं आये। कल अचानक यह कहानी मुझे याद आई। "
'मुझे भी ऐसा नाटक करके इस पेड़ को बचाना होगा सोचा। रात को जब सब सो गए तो मैंने उठ कर अगरबती को जला कर पूरे शरीर में लगा लिया।
आर्यन की बात सुन मैंने " तुम दो दिन में ही ठीक हो जाओगे । " कह कर चदंन को पीस कर उसके पूरे शरीर में लगाया।
“अब तुम अपने को बचाने के लिये छोटे बच्चों को परेशान कर नाटक करने को मजबूर मत करना मेरे प्यारे नीम का पेड़ ।" कह कर मैं इस उम्र में भी खुशी से नाचने लगी।