नीलकमल का पलायन (कहानी) : डॉ रामकुमार वर्मा

Neelkamal Ka Palayan (Hindi Story) : Dr. Ram Kumar Verma

नीलकमल से मेरी भेंट अचानक ही नहीं हुई। रंगून की मुगल स्ट्रीट के पाँचवें तल्ले पर कई दिनों तक मुझे उनकी राह देखनी पड़ी थी। और आज भी मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि उनसे मिलकर मुझे दुःख नहीं हुआ। छि:, छि: की बात आरंभ में ही कैसे आ गई, देखने-सुनने में कोई ऐब नहीं था। उनके साँवले वर्ण में आकर्षण था और उनके नयन ऐसे थे, जैसे किसी बढे मग ने वारुणी का सेवन किया हो।

जब वह मुझसे मिलने आए तो एक विदेशी की तरह उन्होंने मेरा कायिक स्वागत नहीं किया, बल्कि युग-युग से परिचित की तरह पहले थोड़ा झिझके, परंतु दूसरे ही क्षण उनका मुक्त प्रवाह मुझे और मेरे साथी को बहा ले गया।

'मैं जानता था कि तुम आ रहे हो,' उन्होंने दृढ़ स्वर में कहा, 'मैंने बड़े परिश्रम से तुम्हारे लिए सामग्री इकट्ठी की है। सच तो यह है कि तुम जिनके पीछे यहाँ तक आएँ हो, वह मेरा भी प्रिय है।'

और उन्होंने प्रियतमा के पहले पत्र की तरह एक जर्जर नोट-बुक बड़े स्नेह से अपने थैले से निकाली। पढ़ने लगे। वह सन् १९०३ में यहाँ आए थे। छत्तीसवीं गली में रहते थे। उनका रूप सुंदर नहीं था, परंतु उनका कंठ बड़ा मधुर था...

'कीप युअर माउथ शट, यू आर ए चाइल्ड बिफोर मी।' नीलकमल ने तुरत कुछ कंपित स्वर में कहा, और फिर उस क्रोध को दूर करने के लिए उन्हें काफी देर तक बोलना पड़ा। मणि का परिचय यदि मैं 'मृगशावक' कहकर दूं तो कुछ भी अत्युक्ति न होगी। गौर वर्ण, स्निग्ध लघु मुख और सदा मुसकराते नयन। पूरा भाषण सुनने के बाद उसने कहा-यह सब तो अमुक पुस्तक में लिखा है। कुछ नया बताओ मिस्टर नीलकमल। ये इतनी दूर से आए हैं।

'कीप युअर माउथ शट। यू आर ए चाइल्ड बिफोर मी। इसमें कोई संदेह नहीं, परंतु...।'

आखिर बीच में बोलना पड़ा, आपका बहुत आभारी हूँ, मिस्टर नीलकमल। उस समय के कुछ लोग अभी जीवित होंगे। शायद उनसे मिलकर...'
'गॉड ब्लेस यू। मिलकर देखिए, पर है कुछ नहीं। सब खोखले हैं। दूर के ढोल। कई वर्ष लगाए हैं।'

फिर सिगरेट का कश खींचा और हँसकर कहा, 'सबकुछ देख चुका हूँ। पाथेर दावी के एक-एक स्थल से परिचित हूँ। बस बाबा, जरा कार का इंतजाम कर देना। बीवी के पैर में न जाने क्या हो गया है। डॉक्टर चीरा लगा देगा। बेचारी! उसको वहाँ से लेकर घर छोड़ना होगा।'

नीलकमल किस जाति, धर्म अथवा प्रांत के हैं-यह बताने से कोई लाभ नहीं। वह मात्र एक व्यक्ति है। इसीलिए उनकी पत्नी विजातीय और विधर्मी ही नहीं, विदेशिनी भी है। सुंदरी, सुमुखी, यौवन में निश्चय ही रूपसी रही होगी। नीलकमल इस बुढ़ापे में भी उस रूप की प्रशंसा करते नहीं अघाते। छोटे से ऑपरेशन को लेकर बहुत ही व्यस्त हो उठे हैं, मानो मातक पीड़ा हो रही है। ऑपरेशन के बाद बड़े आदर और स्नेह के साथ उसने विदेशिनी को अंक में भरकर कार तक पहुँचाया और अंदर बैठकर बारबार उसके मुख को उठाकर कहना शुरू किया, 'देखो तो इस मुख कमल को है कितना सुंदर है! अनुपमेय, चालीस वर्ष पहले क्या हुआ। सत्रह वर्ष की लड़की, इक्कीस वर्ष का लड़का। दोनों परम सुंदर। दोनों में प्रेम हुआ। दोनों भाग गए। शादी हो गई।'
फिर बीच-बीच में पीड़ा से कराहती विदेशिनी की ओर अर्ध उन्मीलित नयनों से देखता हुआ गा उठा,

'तुमि विद्या, तुमि धर्म, त्वं ही प्राणी शरीरे बाहुते तुमि मा शक्ति, हृदय तुमि मा भक्ति, तोमराई प्रतिमा गड़ी मंदिरे मंदिरे। तुम उर्वशी हम नहुष, तुमि डीजल इंजन हम गधागाड़ी।'
सहसा मणि की याद आ गई। मैंने कहा, 'मणि को भी ले चलें?'

'मैं कमांडर हूँ, मेरी आज्ञा मानो। मणि को मैंने इस पेड़ के नीचे खड़ा किया था। अब वहाँ नहीं है। छोकरा है एकदम गैरजिम्मेदार। इन लोगों पर विश्वास मत करो, बाबा। मुझ बूढ़े की बात सुनो। चलो ड्राइवर, पहले बीवी को घर छोड़ना होगा। अहा, कितना कष्ट है तुमको...!'

उसके बाद भी क्या छुट्टी पा सके? गद्गद होकर उसने कहा, 'अहा, साक्षात् बुद्ध भगवान् हमरी कुटिया में पधारे हैं। धन्य हो गया हूँ। साहित्यिक भगवान् ही होता है। मैं भी साहित्यिक हूँ। बीमा आओ तो, देखो कौन आए हैं; कृपा करके एक-एक कप चाय ले लें।'

गरीबों का मोहल्ला, काठ के मकान, कच्चा फर्श, आगे की बैठक में पुस्तकों का बेतरतीब ढेर। आदिम युग की एक लँगड़ी मेज, भुजाहीन एक कुरसी, स्टूल, रैक और इधर-उधर बिखरे अनेक भाषाओं के अनेक अखबार, जैसे ये सब उसके स्वभाव से पूर्ण परिचित थे। सहसा एक-एक करके उसकी तीनों पुत्रियाँ वहाँ आ गई। तीनों सौम्य, सुंदर। जैसे माँ की प्रतिकृति हो। 'बौमा' कहकर जिसे संबोधित किया गया था, उसी को दिखाकर नीलकमल ने कहा-'बौमा मेरी माँ है। इस बार बेटी होकर आई है। अहा, क्या रूप है मेरी बेटी का! इस देश की स्टार नंबर एक होगी।'

नीलकमल की वक्तृत्व-कला का स्रोत अक्षय था। पुत्रियों के रूप-गुण से सहसा वह अपने वेतन पर आ गया। बोला, 'मुझको तीन सौ पचास रुपए मासिक वेतन मिलता है। बड़ा बेटा सेना में कप्तान है। माँ को पैंसठ रुपए महीना भेजता है। माँ ही सबकुछ है। माँ का राज्य है। हम तो उस राज्य के क्षुद्रातिशुद्र सेवक हैं। हनुमान हैं। अहा! हनुमान की पूँछ भी नहीं है। जरा ऑटोग्राफ बुक में अपने हस्ताक्षर तो बना दीजिए। भगवान् की स्मृति गरीब की कुटिया में अमर हो जाएगी। प्रेम के बारे में कुछ लिख दीजिए। प्रेम ही एकमात्र शक्ति है। हाँ बौमा, लाना तो ऑटोग्राफ बुक। अहा, मेरी कविता की पुस्तक पढ़ी तुमने! कलकत्ता से कवि शेखर ने मुझे तीन पन्नों का पत्र लिखा है। क्या प्रशंसा की है मेरे जैसे मूर्ख की। गॉड ब्लेस यू। किसान का गीत उन्हें बहुत प्रिय है।'
और उसने गाना शुरू किया-

वी सिंग द साँग ऑफ कल्टीवेशन ग्रेन।
डिग दी सॉयल
ए डेज टॉयल विद स्पेड इन हैंड ड्रेचिंग इन रेन।

अगर बीमा चाय के प्याले लेकर न आती तो नीलकमल का यह सुमधुर अभियान संगीत क्या रुक पाता? वह भंगिमा देखने की चीज थी। उसी स्वर में उन्होंने याचना की, 'चाय पीकर बीमा का एक चित्र उतार देंगे? मेरी यह रूपसी बेटी सचमुच चित्र की वस्तु है। इस देश में एक दिन इसका नाम गूंजेगा।'

और कहा, 'आओ बीमा। भगवान् बुद्ध तुम्हारा चित्र उतारेंगे। तुम भी आओ माँ, और बेटी तुम भी। और मेरी प्यारी मुन्नी कहाँ गई?'

और वह बेहद व्यस्त हो उठे। ऑटोग्राफ और फोटोग्राफ-इन सबसे निबटते-निबटते धूप में तेजी आ गई। नीलकमल ने माफी मांगी और तुरत ड्राइवर को लोअर पोजुनडंग रोड की ओर चलने का आदेश दिया। काफी दूर चलने के बाद वह एक स्थान पर उतर पड़े, 'वह देखो; वही १४ नवंबर था। युद्धकाल में बम-वर्षा ने कुछ नहीं छोड़ा, ओह! वह भयानक दृश्य...।' ऊपर दृष्टि उठाकर हाथ जोड़े। कहा, 'तब मैं उत्तर में था। साँस रोककर उस विध्वंस-लीला को मैंने देखा है।' और फिर मेरे कान के पास मुँह लाकर कहा, 'तीन साल जेल में रहा हूँ।'
'क्यों?'

'अहा! गॉड ब्लेस यू। तुम्हें पता नहीं। सेना में मैं बड़ा अफसर था। और वीर सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारत की स्वतंत्रता के लिए प्राणोत्सर्ग का निमंत्रण दे रहे थे। अहा! भयंकर वर्षा। हवाई जहाजों की तूफानी गड़गड़ाहट। मूर्तिवत् जनता के सामने मैंने उन्हें आठ-आठ घंटे तक भाषण देते सुना है।'

जैसे नीलकमल कहीं सुदूर अतीत में खो गए हों। फुसफसाकर कहा, 'लेकिन उन्होंने मुझपर गबन का आरोप लगाया। गॉड ब्लेस यू। मेरी विदेशिनी ने तब किस-किस के दरबार में गृहार नहीं की! कैसे उसने मेरी मुक्ति कराई, क्या वर्णन करूँ। अच्छा, वह देखते हैं न नंबर दो सौ उन्हत्तर। यही तो नंबर चौदह के स्थान पर नया मकान बना है। फोटो लो बाबा।'

और उसके बाद बोले, 'यहाँ वह अखाड़ा था, जहाँ कुश्ती करने के बहाने भारतीय क्रांतिकारी इकट्ठे होते थे। जहाँ सेना का भवन है, वहाँ भारती का मकान था। उस तूफानी रात में उसी मकान से सबने सव्यसाची को जाते देखा था। वह देखो। उधर वहाँ बढ़ई, लुहार आदि गरीब लोग रहते थे। आओ, उधर आओ। क्रीक दिखाता हूँ। यहीं से छिपाकर यह नाव ले जाते थे। और उधर मंकी प्वाइंट की तरफ सव्यसाची के छिपने का स्थान था। मैंने तुम्हारे लिए सबकुछ घूम-घूमकर देखा है। ठाकुर दा का होटल देखोगे? अहा! अब तो वहाँ मसजिद है।'

नीलकमल की व्यस्तता कम नहीं हो रही थी। और उत्सुकता के कारण मुझे यह सब अच्छा ही लग रहा था, इसीलिए लौटते समय एक बज गया। मार्ग में सहसा नीलकमल ने कहा, 'मुझे खाना खिलाओगे?'
महान् विपत्ति! मैं स्वयं किसी का मेहमान हूँ। कुछ कहता, तभी ड्राइवर बोल उठा, 'चलिए, वहाँ क्या कमी है?'

नीलकमल ने कहा, 'देखो भाई, तुम तो जानती ही हो। दाएँ मोड़कर नुक्कड़ पर कार रोक लेना। आज बहुत मेहनत की है। बस, दो मिनट में आता हूँ।'

उस 'दो मिनट' का अर्थ भोजन की मेज पर समझ में आ सका। नीलकमल की मस्ती देखते ही बनती थी। बोला, 'प्रेम किया है आपने कभी? अहा! प्रेम किया था चंडीदास ने, और उसने गाना शुरू किया-

पीरिति रसैते ढालि प्राण मन
दियाछि तोमारे पाय।
तुमि मोर गति तुमि मोर पति
मन नाहि आन भाय॥
सती वा असती तोमाते बिदित
भाल मंद नाहि जानि।
कहे चंडिदास पाप-पुण्य मम तोमार चरण खानि॥
अहा!
औ रूप-माधुरी पासरिते नारि
कि दिए करिब बश।
तुमि से तंत्र तुमि से मंत्र
तुमि उपासना रस॥

तुम सब साहित्यिक हो। एक प्रेम के पुजारी के पीछे पागल हो। जानते हो, जब प्रेम उपजता है तो क्या होता है?

सखि की पुछसि अनुभव मोय।
सोइ पीरिति अनुराग बाखानिते तिले-तिले नूतुन होय॥
जनम अवधि हम रूप नेहारल नयन न निरपित भेल।
से हो मधुर बोल श्रवणहि शुनल श्रुतिपथे परश न गेल॥

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विद्यापति कह प्राण जुड़ाइत लाखे न मिलल एक॥

न जाने कब खाना समाप्त हुआ, पर देखा-वह हाथ में ग्रास लिये कहीं दूर, अति दूर पहुँच गए हैं।

ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियाँ
किलक-किलक उठत गाय
फिरत भूमि लटपटाय
धाय मोहे गोद लेके दशरथ की रनियाँ

'खाना खाओ भाई, नीलकमल।'
नीलकमल ने आँखें खोली।

अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मगर क्या कीजै
और भी दुःख हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग।

फिर कई दिन बीत गए। नीलकमल के दर्शन नहीं हुए। मणि से पूछने पर उसने कहा, 'आजकल नीलकमल की खूब पिटाई होती है।' हतप्रभ मैंने पूछा, 'कौन पीटता है?'
मणि बोला, 'उनकी पत्नी और पुत्रियाँ।'

विश्वास नहीं आया। वे सौम्य सुमुखियाँ उसे क्यों और कैसे पीटती है? मणि बोला, 'प्रेम और रूप से पेट भरता देखा है कभी? नीलकमल वेतन को भी प्रेमरस में घोलकर पी जाता है।'

आखिर वह देश छोड़ने के दिन आ गए। मन न माना तो एक दिन हवाई अड्डे जाते-जाते उसके घर पहुँच गया। कहीं जरा भी तो अंतर नहीं। वही दृश्य। कही रूप। गद्गद स्वर में पुकार उठे, 'अहा! गॉड ब्लेस यू। मैं कहता था न कि भगवान् अवश्य पधारेंगे। बीमा, देख तो कौन आए हैं। चाय तो ला। क्या कहूँ विदेशिनी मरते-मरते बची है। देखो न, रूप कैसा मुरझा गया है। सात दिन अस्पताल में रहना पड़ा, फिर से ऑपरेशन हुआ।'

क्षण भर में पत्नी, पुत्रियाँ और पुत्र भी हमारे चारों ओर थे। वही सौंदर्य, वही विनम्रता, वही गरीबी और वही अस्त-व्यस्तता। साथी ने कहा, 'जा रहे थे। सोचा, मिलते चलें।'
'अहा! गॉड ब्लेस यू। मेरा उपन्यास तो देखा ही नहीं। यहाँ के जीवन पर इससे अधिकृत रचना आज तक नहीं हुई है। पूरा हो जाने पर...।'
साथी बोले, 'यह तो आप बहुत महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं।'

'अहा! गॉड ब्लेस यू। आप पहले व्यक्ति हैं, जिसने इस तत्त्व को समझा। भारत जाकर किसी से कहना, वह इसे जरा देख ले। तैंतीस करोड़ देवताओं का देश है।'
मैंने कहा, 'अवश्य कहूँगा, लेकिन अब तो...'

बस्ता खोलकर उन्होंने पांडुलिपि निकाली। कहा, 'तुम्हारे पहले साथी ने मुझे पत्र लिखा है। गॉड ब्लेस यू। कितना सुंदर पत्र है। मेरी बेटी के शील, सौजन्य और सौंदर्य पर वह कितना मुग्ध है, पढ़ो तो। ऐसा ही पत्र तुम भी लिखोगे क्या?'

कई देशों में घूमने के बाद फिर उसी स्थान पर लौटना पड़ा। संदेश भेजने पर एक दिन वह आए, लेकिन केवल कुछ क्षणों के लिए। बड़ा आश्चर्य हुआ। बोले, 'जा रहे हो। कुछ सामग्री मिली? अहा! यहाँ के लोग छछे हैं, बास्टर्ड। किसी की मदद नहीं करते।'
मणि ने कहा, 'मिस्टर नीलकमल! आप गलत....'

'कीप युअर माउथ शट। यू आर ए चाइल्ड बिफोर मी। तुम लोगों को कुछ आता-जाता नहीं।' और वह लौट पड़े, 'बीवी बहुत बीमार है। अच्छा, जरा सुनो तो।'

जीने तक उन्हें छोड़ने गया। वहीं एक क्षण रुककर उन्होंने मुझे देखा और कहा, 'जानते हो, मैं रामकृष्ण परमहंस का अवतार हूँ।'

मेरी समझ में कुछ नहीं आया। यद्यपि मणि ने इस बात का संकेत कर दिया था, लेकिन मैंने उसे गंभीरता से नहीं लिया। नीलकमल ने कहा, 'आई ऐम गोइंग टू व इट वन ऑफ दीज डेज। माई वाइफ इज शारदा माँ। हाँ, विदेशिनी शारदा माँ का अवतार है। मैं सच कहता हूँ, यू विल फ्लाई टु मी वन डे। अब तो जाओ।'
मैंने कहा, 'ऐसा है तो अवश्य आऊँगा।'

'मैंने नेताजी के बारे में सामग्री इकट्ठी की है। शरत् के बारे में भी बहुत परिश्रम किया है। तुम्हारे-मेरे नोट मिलते हैं। गॉड ब्लेस यू। अच्छा, पत्र देना।'
'दूंगा।'
'बच्ची का फोटो भेजना। वो इस देश की स्टार नंबर एक होगी।'
'भेजूंगा।'

नीचे उतरते-उतरते कहा, 'और मेरे पत्र की राह मत देखना। लिखना-वही प्रेम है। वही सत्य है।'

और फिर एकदम नीचे उतरते चले गए। आज भी वहाँ से मित्रों के पत्र आते हैं, पर मणि के अंतिम पत्र में बड़ी चिंता की खबर है। लिखा है, 'नीलकमल की नौकरी छूट गई है।'

पढ़कर दर्द हुआ। माना कि रामकृष्ण परमहंस नौकरी नहीं करते थे, पर नीलकमल का यह पलायन...।

अब जाने दो, इसका फैसला करना मेरा काम नहीं है।

(सन् १९६०)

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