नज़र न आने वाले लोग (कहानी) : जिलानी बानो
Nazar Na Aane Wale Log (Story in Hindi) : Jilani Bano
‘‘रोशन चिराग़ को देखकर कोई नहीं सोचता कि उसके नीचे
तेल जल
रहा है,’’ दिसंबर की ठंडी अंधेरी रात में टेबल लैंप
के सामने
बैठे आनंद मुखर्जी एक संपादक के सवालों के जवाब लिख रहे थे।
‘‘मैं एक लेखक हूँ। उन सब अच्छा लिखने वालों की
रचनाएं पढ़ना
चाहता हूँ, जो अपनी आइड्योजी से जुड़े रहें। सारी ज़िंदगी एक मिशन की
पूर्ति में लगे रहे।’’
‘‘आपने पूछा है, मैंने क्या-क्या लिखा है
?’’
‘‘मज़हब, फलसफा, संगीत और सामाजिक विद्याएं पढ़ने के
बाद मैं
कहीं का न रहा। हर तरफ़ दौड़ने लगा। मुझे अपना कद बहुत छोटा लगा। उन महान्
हस्तियों के आगे, जो हुसैन की तरह जिए और हुसैन की तरह मरने का हौसला रखते
थे।
‘‘मेरे निरंतर लिखते रहने का एक ही मक़सद है कि मेरी
लिखी हुई
एक पंक्ति किसी को सच बोलने की ताक़त दे। चोर को मुजरिम कहने का हौसला
हो।’’
अचानक सड़क पर किसी कार के ब्रेक लगने के साथ एक चीख़ सुनाई दी। मुखर्जी
ने टेबल लैंप ऑफ़ किया। ग़र्म लिहाफ़ में लिपटी निर्मला पर एक नज़र डाली
और साल ओढ़ कर जीने की तरफ़ बढ़े। सड़क पर कुछ हो गया था। उस कालोनी में
अंडरवर्ल्ड में काम करने वालों ने बँगले बना लिए हैं। उनके लड़के हर तरफ
कारें दौड़ाते फिरते हैं।
‘‘क्या हुआ ?’’
कार में बैठी कोमल धक्का खाकर अकरम की गोद में फिसल गई। अकरम घबरा गया।
‘‘शायद कोई कार के नीचे आ गया
है।’’
‘‘हाय राम !..इसीलिए तो कहती हूँ, कार चलाते वक़्त
मुझे प्यार...’’
‘‘तो क्या करूँ ? वह तुम्हारा पति हर तरफ़ हमारी
ज़ासूसी के लिए खड़ा हो जाता है।’’
‘‘क्या हुआ ?’’ सड़क पर कार की
चीख़ सुनकर सुल्तान हुसैन ने ब्ल्यू फ़िल्म की आवाज़, रिमोट से कम कर दी।
‘‘ऊँह शायद कोई एक्सीडेंट हो गया
है...’’
शीबा ने फिर टी.वी. ऑन कर दिया।
शीबा बेगम ! अब तुम किसी मिनिस्टर की बेगम नज़र आने लगी
हो।’’ उन्होंने शीबा को अपनी तरफ़ खींच लिया।
‘‘मिनिस्टर का नाम बताइए। वह सुल्तान हुसैन की गोद
में लेट गई।
‘‘वह तो टी.वी. की न्यूज में देख
लेना...’’ सुल्तान हुसैन ने मग में बीयर डाली।
‘‘अब इलेक्शन किसी भी वक़्त हो सकते हैं। केसरी
बार-बार फ्रंट
को धमकियां दे रहे हैं और जब से पार्टी आफ़िस में यह ख़बर फैली है कि
सुल्तान हुसैन ने चार मर्डर करवाए हैं, शर्मा जी तो मुझे देखकर खड़े हो
जाते हैं।’’
दोनों हँस पड़े।
‘‘अब मुझे इलेक्शन का टिकट देने से कौन रोक सकता है
?’’
सड़क पर शोर बढ़ने लगा।
‘‘नीचे जाकर देखना चाहिए...क्या हुआ है
!’’
सुल्तान हुसैन खड़े हो गए। कॉलोनी के हर झगड़े को फ़िरकादाराना
(सांप्रदायिक) रंग देना और फिर उसे ठंडा करना उसके लिए ज़रूरी था। लीडर
बनने का पहला क़दम यहीं से उठता है।
ब्रेक की चीख़ सुनकर राशदा ने निवाला रकाबी में छोड़ दिया। मौलाना ज़ाहिद
अली हशमी भी रोटी छोड़कर खिड़की की तरफ़ देखने लगा।
‘‘शाहिद और माजद ट्यूशन पढ़ाकर आते होंगे। अल्लाह
ख़ैर
करे...’ रशदा खिड़की की तरफ भागी, ‘‘जब से
ये साले
नौदौलतिये हिंदू कॉलोनी में आ बसे है, उनके आवारा लौंडे अंधाधुंध कारें
दौड़ाते फिरते हैं। अच्छा है एकाध कम हो जाए।’’
‘‘आप नीचे जाकर देखिए न, क्या हुआ है
?’’ राशदा बहुत परेशान थी।
मौलाना ज़ाहिद अली हाशमी ने गूदे की हड्डी चूसकर रकाबी में रखी।
जल्दी-जल्दी उँगलियाँ चाटीं। जूठे हाथ दाढ़ी से पोंछे और अल्लाह का शुक्र
अदा करके उठ खड़े हुए।
‘‘शायद कार का एक्सीडेंट हो गया
है।’’ सुनील ने बीयर और गिलास टेबल पर रखकर खिड़की से
बाहर देखा।
अभी नासिर गर्मागर्म तंदूरा चिकन और उससे भी गर्मागर्म एक छोटी-सी
गोल-मटोल लड़की पकड़ लाया था, मगर लड़की को मुखर्जी ने लिफ्ट में नासिर के
साथ देख लिया था, इसीलिए नासिर बेहद परेशान था।
‘‘सुनील ! चलो, ज़रा नीचे एक चक्कर लगा आएँ। किसी का
एक्सीडेंट हुआ है।’’
‘‘तू जा...अपन अब कहीं नहीं जाने वाले, चाहे किसी का
भी एक्सीडेंट हो जाए।
गर्मागर्म चिकन की ख़ुशबू थी या लड़की के बदन से उठने वाली
आँच—सुनील तो बे-पिए लड़खड़ा रहा था, मगर नासिर का दिल धड़क रहा
था।
उसी बिल्डिंग के तीसरे फ़्लोर पर उसका फ्लैट था। अम्मी-अब्बा भी सड़क का
शोर सुनकर जाग उठे होंगे। वे तो यही समझते हैं कि नासिर सुनील के फ़्लैट
में स्टडी करने जाता है। कार के ब्रेक में उलझी किसी की चीख़ भी थी।
गहरे स्याह परदों से घिरे कमरे के अंदर वे चारों बैठे नोट गिन रहे थे।
पार्टी में किसी मेंबर को खरीदने की बात पक्की हो जाती थी, तो उसे दुखीराम
के घर भेज दिया जाता था। दुखीराम ने उस कॉलोनी में बड़ा ख़ूबसूरत मकान
बनवाया था—बिल्कुल मंदिर का मॉडेल। उसे देखते ही ख़रीदने और
बेचे
जाने वाले हर मेंबर का सिर झुक जाता था। दुखीराम सोने-चाँदी के एक छोटे-से
व्यापारी थे, मगर घर के अंदर वह दूसरा धंधा चलाते थे। मेंबर चाहे किसी भी
पार्टी का हो, उसे तोड़ने और दूसरी तरफ़ जोड़ने का बिज़नेस ज़ोरों पर था।
उनका किसी भी प्रार्टी से कोई ताल्लुक नहीं था, इसलिए हर पार्टी ने अपना
करोड़ों रुपया उनके ड्राइंगरूम के नीचे दबा दिया था।
अभी कल ही एक पार्टी के तीन मेंबरों ने दूसरी पार्टी में जाने के लिए एक
करोड़ रुपया लिया था, मगर घर जाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि बहुत सस्ते
बिक गए। सुबह उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान कर दिया कि वे तो तीनों
के बीच, एक-से फ़ासले पर खड़े हैं। चुनाँचे उन्हें अपनी तरफ़ सरकाने के
लिए उन्हें दुखीराम के घर भेज दिया गया। अब वे तीनों दो-दो करोड़ गिनने
बैठ गए।
‘‘लगता है कोई एक्सीडेंट हो गया है। मैं ज़रा नीचे
जाकर देख आऊँ।’’
दुखीराम ऐसे वक़्त किसी न किसी बहाने नीचे उतरकर इधर-उधर नजरें दौड़ाते
रहते थे। उन्हें सी.बी.आई. का डर नहीं था, अपोजीशन पार्टी के चुग़लखोरों
का ख़ौफ था, हालाँकि कॉलोनी वाले उन्हें बड़ा दयालु और धार्मिक इनसान
मानते थे कि कॉलोनी में उनका किसी से लेना न देना। बस, एक दुकान पर बैठे
और घर में घुस गए।
एक छोटी-सी मारुती कार घिसटती हुई फुटपाथ से जा टकराई थी। चीख़ की आवाज़
सुनकर लोग दौड़े चले आ रहे थे।
हर फ़्लैट की, हर घर की खिड़की खुल गई थी।
वहाँ सबसे पहले पहुँचने वाले सुल्तान हुसैन थे, क्योंकि हर लड़ाई को
फैलाना और भड़काना ज़रूरी था। अकरम ने जल्दी से कार स्टार्ट करके फरार हो
जाने की सोची, मगर लोग उसे चारो तरफ़ से घेर चुके थे,
‘‘क्या
हुआ ?....क्या हुआ ?’’
‘‘मेरा डेंजर था-कुत्ते का बच्चा। मैं इसे अभी यहाँ
छोड़कर
अंदर गया था, अंकल,’’ सामने वाले गेट से माइकल दौड़ता
हुआ आया।
‘‘कुत्ते का बच्चा...!
हाय-हाय.....चा-चा....अफ़सोस....हाय
राम ! कितना बेरहम है साला ! नशे में होगा हरामी....पकड़ लो साले
को...’’
‘‘हमें क्षमा कर दीजिए इनकी तबीयत ठीक नहीं
है’’, कोमल ने कार से बाहर आकर सबके आगे हाथ जोड़ दिए।
(इतनी खूबसूरत छोकरी के साथ बैठा था साला। इसीलिए...) अब तो सबको ही
ग़ुस्सा आने लगा।
‘‘इनकी तबीयत तो अभी ठीक किए देते हैं
हम,’’ सुल्तान हुसैन सबको हटाकर आगे बढ़े।
‘‘बुल-डाग था प्यारा डेंजर...हमारे ग्रेंड फादर इसके
ग्रेंडफादर को लंदन से लाए थे,’’ माइकल सिसकियाँ ले
रहा था।
माइकल के डैडी एक मशहूर मिशनरी स्कूल के प्रिंसिपल थे। वहाँ डोनेशन के
बगैर किसी बच्चे को एडमीशन नहीं मिलता था। इस बात पर कॉलोनी के लोग उनसे
नाराज़ रहते थे। हो सकता है, डेंजर हो इसीलिए कार से कुचल दिया हो कि
इंतक़ाम लिया जाए।
सुलतान हुसैन ने चिंगारी को हवा देने की बात सोच ली।
‘‘आइ एम वेरी सॉरी, सर...’’ अकरम
ने सबके आगे हाथ जोड़े।
‘‘यह बहुत दुख की बात होती है,’’
मुखर्जी ने सिर
झुकाकर कहा, ‘‘आप नौजवान लोग हर जगह जल्दी पहुँच जाना
चाहते
हैं। रास्ते की हर चीज़ को मिटाकर, तबाह करके...’’
अकरम बेहद परेशान था। कहीं बात बढ़ गई तो कोमल के पति तक बात जाएगी कि वे
दोनों आधी रात को...
‘‘मेरी ग़लती नहीं है, सर...कुत्ते को एक साइकिल वाले
ने
टक्कर मारी है। वह साइकिल वाला एक बाच्चे का पीछा कर रहा था। बच्चा
इधर-उधर भागकर बचाओ-बचाओ चिल्ला रहा था और फिर-फिर वह मेरी कार के
सामने...’’
‘‘बस करो ये कहानियाँ...’’
मौलाना ज़ाहिद हाशमी ने चिल्लाकर कहा।
‘‘हमारी कॉलोनी में आप एक जानवर की जान लेंगे, तो हम
आपको
छोड़ने वाले नहीं हैं। पता नहीं, आपको कौन-सी पार्टी वालों ने भेजा था। आज
माइकल के कुत्ते को मारा, कल उसके भाई की जान ले सकते
हैं,’’
सुल्तान हुसैन ने अपनी तकरीर शुरू की।
‘‘अजी, मुसलमान लोग तो कुत्ते के दुश्मन होते
हैं।’’ दुखी राम ने बड़े व्यंग्य के साथ कहा।
‘‘हम कुत्ते की कीमत देने को तैयार हैं,
अंकल,’’ कोमल ने सुल्तान हुसैन से कहा।
‘‘अच्छा...बड़ी दौलतमंद देवी जी हैं आप
!’’ मुखर्जी ने नफ़रत भरे अंदाज में उधर देखा।
‘‘एक जानवर को कार से कुचल डाला और उसकी कीमत देकर
चली जाएँगी ?’’
‘‘रोज़ कितने लोगों को रौंद डालती हैं आप
?’’
नासिर ने बड़ी दिलचस्पी से कोमल को देखा। अकरम घबराकर दोनों हाथ मलने लगा।
‘‘हमें माफ़ कर दीजिए। आप जैसा कहेंगे, वैसा ही
होगा,’’ वह सुल्तान हुसैन की तरफ़ बढ़ा, जो खादी का
कुरता
बड़ी-सी तोंद पर ताने किसी टी.वी. सीरियल के विलेन जैसे लग रहे थे।
‘‘आप अपना नाम बताइए।’’
‘‘जी, अकरम अली खाँ। इंडियन एयर लाइंज़ में पाइलेट
हूँ।’’
‘‘इसलिए कार भी प्लेन की तरह चलाते हैं
?’’
‘‘एक मुसलमान एक क्रिश्चियन के कुत्ते को रौंद डाले,
तो
कॉलोनी के हिंदुओं को बेचारे क्रिश्चियन लड़के का साथ देना
चाहिए...’’ दुखीराम ने आहिस्ता से सुल्तान हुसैन के
कान में
कहा तो उन्होंने गर्दन हिलाकर अनुमोदन किया।
‘‘लेकिन आप मेरी बात पर यक़ीन कीजिए...ग़लती साइकिल
वाले की थी। वह सामने वाली गली में भाग गया।’’
‘‘गलती किसी की भी हो, लेकिन एक जानवर का ख़ून हुआ
है। इसका फैसला अब पुलिस करेगी।’’
‘‘हमें पुलिस स्टेशन चलना
चाहिए।’’ मुखर्जी ने अपने विशिष्ट धीमे-धीमें लहजे
में कहा तो सबने समर्थन किया।
कॉलोनी में चाहे कई तरह के लोग रहते हों, लेकिन इस बात को सब मानते थे कि
मुखर्जी साहब बहुत अच्छे, सच्चे और बड़े राइटर हैं कि मिनिस्टर तक उन्हें
देखकर खड़े हो जाते हैं। नौजवान उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं।
‘‘तुम्हारा क्या नाम है ?’’
सुल्तान हुसैन ने कोमल के पास जाकर उसे बड़ी दिलचस्पी से देखा।
‘‘जी...जी...मैं कोमल अग्रवाल हूँ...मैं इनकी...यह
मेरे...मेरे हसबैंड के फ्रैड हैं। मुझे घर छोड़ने जा रहे
थे।’’
‘‘हा हा हा !’’ मौलाना हाशमी
इतनी ज़ोर से हँसे कि सब घबराकर उन्हें देखने लगे।
‘‘अब देखते हैं कि आपको कहाँ छोड़ते हैं
!’’
सुल्तान हुसैन ने मुस्कराकर कहा। फिर अकरम का हाथ पकड़कर एक कोने में ले
गए। कुछ देर बाद बड़े फ़ैसलाकुन अंदाज़ में एलान किया,
‘‘मुखर्जी साहब ठीक कह रहे हैं। हमें पुलिस स्टेशन
जाना ही
पड़ेगा।’’
‘‘हो सकता है, इस कुत्ते को मारने का एक प्लान हो
!’’
‘‘इससे पहले भी किसी ने उसकी टाँग तोड़ दी थी।
‘‘भला सोचिए, पूरी कॉलोनी में सिर्फ़ एक क्रिश्चियन
फैमिली रहती है और उसके साथ ऐसा सुलूक....’’
‘‘अब यह सारी बहस क्या ज़रूरी है
?’’ मुखर्जी ने जम्हाई लेकर कहा।
‘‘हाँ-हाँ, आइए-आइए..’’ सुल्तान
हुसैन ने अकरम की कार का दरवाज़ा खोलकर सबको बुलाया।
‘‘मेरी बात सुनिए, प्लीज़ !’’
अकरम चारों तरफ़ घबराकर सबको देख रहा था।
‘‘मुखर्जी साहब...पहले
आप...बैठिए....’’
छोटी-सी कार में सुल्तान हुसैन, दुखीराम, मौलाना हाशमी सब घुस गए। नासिर
चाहता था, वह सामने कोमल की गोद में समा सके...आख़िर माइकल और नासिर ने
पुलिस स्टेशन तक पैदल जाने का फ़ैसला किया। अकरम ने कार स्टार्ट की तो
माइकल चिल्लाया, ‘‘अरे—कार के नीचे डेंजर
नहीं है। यह
तो एक बच्चा है !’’
‘‘बच्चा ?’’ सब एक साथ चिल्लाए,
‘‘क्या मर गया है ?