नया सवेरा - सवेरे का सूरज (उपन्यास) : यशवंत कोठारी

Naya Savera - Savere Ka Sooraj (Hindi Novel) : Yashvant Kothari

(1)

खट। खट।।

’’कौन ? ‘‘

’’जी। पोस्टमैन। बाबू जी आपकी रजिस्टी है। आकर ले लें। ‘‘अभिमन्यु घर से बाहर आया। दस्तखत किये। लिफाफा लिया। खोला। पढ़ा। और खुशी से चिल्ला पड़ा।

‘‘मॉ। मॉं मुझे नौकरी मिल गयी। ‘‘

अभिमन्यु तेजी से दौड़ पड़ा। खुशी के मारे उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। पिछले तीन वर्पो से वह निरन्तर इधर उधर अर्जियां भेज रहा था, साक्षात्कार दे रहा था मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। हर बार या तो उसकी अर्जी निरस्त हो जाती या फिर साक्षात्कार में उसे अयोग्य घोपित कर दिया जाता। मगर इस बार उसे पूरी उम्मीद थी क्योंकि यह नौकरी मेरिट के आधार पर दी जानी थी और मेरिट में उसका स्थान पहला था। तमाम सिफारिशी लोग रह गये और अभिमन्यु को यह नौकरी मिल गयी। उसने घर के अन्दर आकर मॉं बापू के चरण छुए। उन्होंने आशीप दी। बूढ़ी, पथरायी, पनियल ऑंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े उनके बुढ़ापे की एक मात्र आशा थी अभिमन्यु। अभिमन्यु की आंखों में भी खुशी छा गयी। कमला ने पूछा।

‘‘ भैया कैसी नौकरी है और कहां लगी है ’’ ?

‘‘ अरी पगली। नौकरी तो अध्यापक की है, मगर साथ में मुझे छात्रों के छात्रावास का वार्डन भी बनाया गया है। यहां से पचास किलामीटर दूर जो कस्बा है न वहीं पर जाना है, सोचता हूँ परसों सोमवार को ड्यूटी पर लग जाउं। अब देर करने से क्या फायदा। ’’ क्यों बापूं।

‘‘ हां बेटा अब जाकर भगवान ने हमारी सुनी है तुम तो मन लगाकर काम करना। ईश्वर में आस्था रखना। ईमानदारी व सच्चाई का दामन थामे रखना। ’’ कमला इसका सूटकेस तैयार कर दे। भागवान रास्ते के लिए कुछ बना देना ताकि जाते ही बेटे को तकलीफ न हो ’’

‘‘ अरे तो क्या सारी नसीहतें आज ही बॉंट दोगे। जाओ जाकर सबसे पहले गली-मोहल्ले में यह खुशखबरी सुनाओ और सुनों सबको मिठाई भी बंटवा दो। ’’ अभिमन्यु की मॉं ने कहा।

अभिमन्यु के बापू गली मौहलो में यह समाचार सुनाने के लिए बाहर चले गये। अभिमन्यु अपने दोस्तों से बतियाने चला गया। कमला और उसकी मॉं ने अभिमन्यु के जाने की तैयारी शुरू कर दी।

अभिमन्यु का गांव एक छोटा सा गांव है। ग्रामीण परिवेश के बावजूद अभिमन्यु ने पास के कस्बे में रहकर पढ़ाई की। पढ़ाई में हमेशा अव्वल आता था। छात्रवृत्ति, ट्यूशन तथा घर की खेती के सहारे पढ़ गया। अध्यापक की टेनिंग भी कर ली। वह नौकरी की तलाश के साथ-साथ गांव के बच्चों की ट्यूशन करता रहा। वह एक हंसमुख, खूबसूरत जवान लड़का था जो अपने गांव में एक आदर्श के रूप में देखा जाता था उसने गांव के स्कूल को सेकण्डरी स्कूल में बदलने के लिए काफी कोशिश की, लगातार सरकार को लिखता रहा। अफसरों से मिलता रहा स्कूल की आवश्यकता पर उसने स्थानीय अखबारों में भी लिखा और अन्त में अपने गांव में स्कूल खुलवाने में कामयाब हुआ। दूसरी ओर वह प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बैठने की तैयारी कर रहा था।

उसके मां-बाप औसत भारतीय ग्रामीण लोगों की तरह सीधे, सच्चे और सरल थे। कुछ खेतीबाड़ी थी, मोटा खाते थे मोटा पहनते थे, तथा घर में कुल चार प्राणी थे अभिमन्यु उसकी छोटी बहन कमला और मां-बाप। कमला भी पढ़ रही थी। अभिमन्यु उसकी पढ़ाइ्र की ओर विशेप ध्यान देता था।

गांव छोटा था, मगर आपसी सौहार्द था। भाईचारा था। गांव के झगडे आपस में मिल बैठ कर निपटा लिये जाते थे। बड़े बुजुग्रेा का सम्मान था। छोटों के पगति स्नेह और बराबरी के लोग आपस में प्रेम भाव रखते थे। सांप्रदायिक झगड़ों से कोसों दूर था गांव। सर्वधर्मसमभाव था।

अभिमन्यु घर से बाहर निकला तो उसे अकबर मिल गया। जो कभी उसके साथ पढ़ता था, मगर अपनी पुश्तैनी दुकान पर बैठकर व्यापार में व्यस्त रहता था। उसने अकबर से कहा-

‘‘ अकबर। सुन मुझे नौकरी मिल गयी है। और मैं सोमवार को जा रहा हूं।’’

‘‘ अच्छा। बहुत बहुत बधाई। ओर सुन अब मिठाई खिलाने वापस आयेगा या अभी खिलायेगा। ’’

‘‘ मिठाई तो मां-बाबूजी बांट रहे हे। ’’

‘‘ अब हमारी किस्मत में तो दुकान लिखी है, सो भुगत रहे हैं। ’’

‘‘ इसमें भुगतना क्या है, भाई , मुझे परिस्थितियों के कारण नौकरी करनी पड़ रही है। ’’

‘‘ अच्छा सुन। वहां रहकर हमें भूल मत जाना, गांव आते जाते रहना। ’’

‘‘ कैसी बात करता है अकबर तू भी। तू मेरा सबसे प्यारा दोस्त है और रहेगा।’’

‘‘ अच्छा आ गांव का चक्कर लगाकर आते हैं। ’’

‘‘ कल जाने की तैयारी करूंगा और सोचता हूं वहीं रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करूं ।’’

‘‘ ठीक है। तुम्हें पढ़ने का शौक है और हमें मस्त रहने का। ’’ दोनो हंस पड़े।

***

अभिमन्यु की नियुक्ति जिस छोटे कस्बे के आवासीय विद्यालय में हुई थी, उस का नाम राजपुर था। यह जिला मुख्यालय के पास था। और यहां पर सभी प्रकार की सुविधाएं भी थी। अभिमन्यु प्रातः ही अपने सामान के साथ चल पड़ा और बस से राजपुर आ गया। राजपुर में अभिमन्यु सीधा अपने विद्यालय में चला आया। वहां पर आते आते दस बज चुके थे। उसने विद्यालय में प्रवेश किया। और मन ही मन विद्या के मन्दिर को प्रणाम किया। विद्यालय बहुत बड़ा नहीं था मगर अन्य स्थानों की तुलना में भवन आदि ठीक थे। पास में ही छात्रावास था, जहां पर इस विद्यालय के छात्र रहते थे। उसने कदम प्राचार्य कक्ष की ओर बढ़ाये। बाहर बैठे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से उसने पूछा-

‘‘ प्रिंसिपल साहब हैं ? ’’

‘‘ हां है। मगर व्यस्त हैं। ’’

‘‘ उनसे कहना अभिमन्यु बाबू मिलना चाहते हैं, मेरी नियुक्ति इसी विद्यालय में हुई हैं ’’

‘‘ ओह। आप इन्तजार करें मैं प्रिंसिपल साहब को खबर करता हूँ .

चतुर्थश्रेणी कर्मचारी अन्दर गया। शीघ्र वापस आया और अभिमन्यु को आदर से अन्दर जाने के लिए कहा।

अभिमन्यु ने अन्दर जाते ही प्राचार्य का अभिवादन किया। प्राचार्य ने मुस्करा कर उसका स्वागत किया। बैठने को कहा और बोले।

‘‘ देखो अभिमन्यु। तुम युवा हो। उत्साही हो और सबसे बड़ी बात ये कि तुम मेरिट से चुनकर आये हो। मुझे पूरा विश्वास है कि तुम अपनी प्रतिभा के बल पर इस विद्यालय के छात्रों को और भी आगे बढ़ाओगे। अध्ययन के अतिरिक्त तुम्हें विद्यालय के छात्रावास का भी अधीक्षक कमेटी ने बनाया है क्योंकि यह जरूरी था। सभी छात्र परिसर में ही रहते हैं ताकि उनका सर्वागीण विकास हो। ’’

‘‘ अभी तुम कहां ठहरे हो ? ’’

अभिमन्यु ने ध्यान से देखा। प्राचार्य महोदय एक प्रौढ़ और शालीन व्यक्तित्व के धनी थे। चश्में के पीछे से जिज्ञासा भरी आंखें उसे देख रही थी।

‘‘ जी अभी तो मैं सीधा बस स्टेण्ड से आ रहा हूँ . ’’

‘‘ ठीक है। तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी छात्रावास में ही होगी उन्होंने घंटी बजाई और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बुलाकर निर्देश दिये।

‘‘ सुनो रामलाल। ये अभिमन्यु, बाबू हैं हमारे नये विज्ञान अध्यापक तथा छात्रावास के अधीक्षक। इनका सामान छात्रावास-अधीक्षक-आवास में रखवा दो। ’’ ‘‘ जी बहुत अच्छा सरकार। ’’

‘‘ और अभिमन्यु बाबू आप भी फ्रेश होकर आ जायें। आज से आप की ड्यूटी शुरू है। ’’

‘‘ जी बहुत अच्छा। धन्यवाद, नमस्कार ’’

‘‘ नमस्कार। ’’

रामलाल के साथ अभिमन्यु बाबू छात्रावास में आ गये। छात्रावास में कुल पचास कमरे थे। हर कमरे में दो छात्र थे। कुछ अन्य छात्रावास भी थे। अभिमन्यु को छात्रावास तथा विद्यालय का वातावरण भा गया। उसे नौकरी मिलने की खुशी तो थी ही इस मनेारम और स्वच्छ स्कूल के वातावरण को देखकर और ज्यादा खुशी हुई।

रामलाल सामान रखकर जा चुका था। अभिमन्यु ने छात्रावास के चौकीदार को बुलाया। अपना आवास साफ कराया। नहा धेाकर तरेताजा हो गया। अब तक छात्रावास में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी कि नये अधिक्षक विज्ञान के अध्यापक भी हैं और उन्होंने अपना काम संभाल लिया है। अभिमन्यु ने छात्रावास के छात्रों को अपने कक्ष में उपस्थित होने के निर्देश दिये। सभी छात्र आज यथाशीर्घ अपने गणवेश में नये अधिक्षक से मिलने के लिए आ गये। अभिमन्यु ने देखा सभी छात्र मध्यम वर्गो से आये हुए थे। कुछ पढ़ाई में तेज थे, तो कुछ खेलकूद में और कुछ संस्कृतिक कार्यक्रमों में रूचि रखते थे।

छात्रावास की व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए अभिमन्यु ने यर्वप्रथम हर पच्चीस छात्रों पर एक मॉनीटर तथा चार मॉनीटरों पर एक प्रोक्टर नियुक्त करने की बात कही, सभी छात्रों ने इसे सहर्प स्वीकार कर लिया। विंग अ का मानीटर अभिमन्यु ने पढ़ाई में सबसे तेज छात्र लिम्बाराम को बनाया। विंग ‘‘ब’’ का मॉनीटर असलम को बनाया गया, जो खेल-कूद में होशियार था। और विंग ‘‘स’’ का मॉनीटर सुरेश शर्मा को बनाया विंग ‘‘द’’ का मॉनीटर राजेन्द्र सक्सेना को बनाया गया। इन मॉनीटरों पर विंग के छात्रों की जिम्मेदारी डाली गयी। उसने शारीरिक दृप्टि से सबसे सुदृढ़ अवतारसिंह को जो सबसे उंची कक्षा का विद्यार्थी था प्रोक्टर नियुक्त कर दिया।

अब छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा-

‘‘ प्रिय छात्रों, मैं आपका अध्यापक या छात्रावास का अधीक्षक मात्र नहीं हूं बल्कि आपका स्थानीय अभिभावक भी हूँ । आप अपनी किसी भी समस्या के निराकरण हेतु कभी भी मेरे पास निस्स्ंकोच आ सकते हैं। मेरी कोशिश होगी कि आपकी समस्या का समाधान हो तथा आप अपना पूरा समय पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों में लगा सकें। पिछले कुछ वर्पो से यह विद्यालय जिले में अव्वल आता रहा है, मेरी कोशिश होगी कि यहां के छात्र पढ़ाई, खेलकूद तथा सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में अपना वर्चस्व स्थापित करें।’’

अचानक अभिमन्यु ने देखा कि प्राचार्य महोदय भी चुपचाप आकर पीछे खड़े हो गये हें एक क्षण को उसने अपना वक्तव्य बन्द किया मगर उनकी मोन अनुमति पाकर वह पुनः बोलने लगा।

’’ मित्रों। आज जीवन में सभी चीजों का महत्व है। न केवल पढ़ाई, न केवल खेलकूद बल्कि हर क्षेत्र में काम करना पड़ता है हमारे इस छात्रावास में सभी प्रकार के छात्र है और हम सभी को समान अवसर देकर आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। मेस की व्यवस्था के लिए भी एक समिति बना दी जायेगी। जो ठेकेदार के काम की देखरेख करेंगी।

यह कहकर अभिमन्यु ने प्राचार्य की ओर देखा। और कहा।

’’ प्राचार्य जी भी आपसे कुछ बातें करेंगे। ‘‘

प्राचार्य ने कहा-’’छात्रों अभिमन्यु बाबू के रूप में आप लोगों को एक नये, उत्साही अध्यापक मिले हैं, जो पूरी लगन तथा मेहनत से आपके साथ कंधे से कंधा भिडाकर काम करेंगे और मुझे विश्वास है कि आप विद्यालय की गरिमा को और उॅचा करेंगे। मेरी शुभकामनाएं आपके और अभिमन्यु बाबू के साथ हैं। कल से नियमित सत्र तथा अध्यापन शुरू हो जायेगा। आप लोग कल सुबह 10 बजे विद्यालय प्रांगण में एकत्रित हो वहीं पा आगे बातचीत होगी। ‘‘

यह कहकर प्राचार्य ने अभिमन्यु बाबू को छात्रावास की मिटिंग समाप्त करने की आज्ञा दे दी।

***

विद्यालय का पहला दिन। विद्यालय के स्टाफ रूम में सभी अध्यापक व अध्यापिकाए उपस्थित हैं। लगभग 30 अध्यापक व 3 अध्यापिकायें प्राचार्य स्वयं भी आज अपने कक्ष के बजाय यहीं पर आ गये हैं छात्र विद्यालय प्रांगण में एकत्रित हो रहे हैं।

प्राचार्य ने अभिमन्यु बाबू का परिचय अन्य साथी अध्यापकों एवं अध्यापिकाओं से कराया। सभी ने अभिमन्यु बाबू को हाथों हाथ लिया। अभिमन्यु बाबू के सौम्य व शालीन व्यक्तित्व से सभी प्रभावित थे। एक दो अध्यापक इस बात से दुखी थे कि वे छात्रावास के अधीक्षक नहीं बन सकें। मगर बात बिगड़ी नहीं थी। सब ठीक था। प्रांगण में छात्र पंक्तिबद्ध खड़े थे। प्रार्थना शुरू हुई। पी.टी. हुई प्राचार्य ने छात्रों व अध्यापकों का स्वागत किया। उद्बोधन दिया। उन्हें देश के श्रेप्ठ नागरिक बनने की नसीहत दी। प्रजातान्त्रिक मूल्यों के बारे में बताया और फिर नियमित कक्षा में पढ़ने को भेज दिया। अभिमन्यु बाबू के ष्शुरू के दो कालांश खाली थे। इस समय का सदुपयोग उन्होंने साथी अध्यापकों से परिचय में गुजारा। अंग्रेजी पढ़ाने वाले एग्लो इण्डियन अध्यापक थे एन्टनी। गणित के अध्यापक थे महेश गुप्ता। हिन्दी की अध्यापिका मिसेस प्रतिभा और कॉमर्स के अध्यापक चन्द्र मोहन ष्शर्मा थे। कुछ अन्य अध्यापक भी थे।

एक बात अभिमन्यु को लगी कि हो न हो विद्यालय के अध्यापकों में गुटबाजी जरूर होगी। लेकिन उसने इस ओर ध्यान देने के बजाय अपने अध्यापन काय्र हो ही प्राथमिकता देना उचित समझा। पीरियड लग चुका था। वह हाजरी रजिस्टर, चाक, डस्टर लेकर कक्षा दस के कक्ष की ओर चल पड़ा। आज कक्षा में उस का पहला दिन था और वो मानता थाकि प्रथम दिन पूरी मेहनत से अपना प्रभाव जमाना पड़ता है। उसने आत्मविश्वास के साथ पड़ाना शुरू किया, छात्र दत्तचित्त हो कर उसका व्याख्यान सुन रहे थे। कालांश की समाप्ति पर वह पुनः स्टाफ रूम में आ गया।

सूरज ढलने लगा था। धूप के टुकड़े खिड़की के रास्ते अभिमन्यु के चेहरे पर पड़ रहे थ। उसका चेहरा संतोप के सुख से जगमगाने लगा था। वह उठा, सुराही से पानी पिया और पुस्तकालय की ओर बढ़ गया।

***

जैसे ही ट्रेन मुड़ी अन्ना अचकचा कर धक्के से हिली। जागी। खिड़की के बाहर हल्की रोशनी हो रही थी। सुबह का मनोरम वातावरण बन रहा था। गाड़ी मद्रास से थेाड़ी ही आगे आई थी अब गाड़ी तीस घन्टों से ज्यादा चल चुकी थी।

गाड़ी में चौतरफा बन्द दीवारों के अन्दर बन्द वे दोनों। दूसरी सहयात्री अन्ना के लिए अजनबी, थी। कितना आश्चर्य, साथ साथ लेकिन अलग-अलग। एक दूसरे के लिए अजनबी, शुरू में सहयात्री ने कुछ आगे बढने की कोशिश की थी लेकिन अन्ना की उपेक्षापूर्ण हां, हूं से निराश होकर सो गई थी।

सोई हुई महिला को देख कर उसने मुंह बिचकाया। वह तौलिया ले बाथरूम में धुस गई फ्रेश होकर बाहर आई तो गाड़ी दिल्ली के पास कहीं रूकी पड़ी थी। वह यादों के धुंधलके में खोने लगी।

उसे याद आये पापा, मम्मी। पिछले साल का यूरोप का ट्रिप । महानगरों की जिन्दगी। कॉलेज के दिन। पापा उसे बताते थे महाराणा प्रताप का बलिदान और स्वतन्त्रता संग्राम में राजस्थन का योगदान। उनके अनुसार भारत में शिवाजी और प्रताप का कोई सानी नहीं था। बिजोलिया का किसान आन्दोलन, जैसलमेर के सागरमल गोपा का बलिदान जोधपुर के पैलेस और पुराने कवियों के कवित्त। चतरसिंहजी बावजी की सिखावन, राजिया रा दूहा। मीरा ओर बिहारी की धरती पर वह पहली बार पांव रखने जा रही थी। कैसा होगा राजस्थान ? कैसी होगी उदयपुर की पहाड़ियॉं, जैसाणा और जेाधाणा की रम्मतें।गुजरात के सदा बहार मज़े कठियावाड की मस्तियाँ भी याद हो आई .

उसने सर को हल्का सा झटका दिया यादों के धुंधले आसमान के क्षितिज पर फिर एक लाल सूरज डूबने लगा।

गाड़ी चलने लगी उसके यादों के सितार पर फिर उॅगलियां दौड़ने लगी। रागों की एक अजनबी पहचान उसे महसूस होने लगी। क्या करेगी वह राजस्थान जाकर। अपनी पुरखों की माटी को सर पर लगा लेने से ही क्या हो जयेगा। क्या उसे मन की शान्ति मिल पायगी। क्या उसे घुटन से मुक्ति मिल पायेगी। लेकिन अब वो कर ही क्या सकती थी ?

कभी अमेरिका में, कभी यूरोप में कभी भारत में और अब अपनी मातृभूमि के सहोदरों के बीच। यह कैसी प्यास है जो बुझती नहीं बढ़ती ही चली जाती है क्या कोई नदी कभी तृप्त होती है। बाढ़ के बावजूद नदी की प्यास क्यों नहीं बुझती।

दोपहर का सूरज तेज हो रहा था। गाड़ी जयपुर स्टेशन पर आकर रूकी उसने अपना झोला उठाया और प्लेटफार्म के बाहर आ गई।

उसने अपने मन में एक नई खुशी महसूस की की मम्मी पापा की लाड़ली बेटी फिर एक महानगर की विशाल सड़कों पर अपनी जड़ो की खोज में भटकने लगी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था अब वह क्या करेगी। अकेलापन। भटकाव। उलझाव। फिर भटकाव। क्या भटकाव ही जिन्दगी है। या कोई एक अनिवार्यता, जीवन की सार्थकता की खोज में भटकाव। बस भटकाव, उसे फिर याद आया, अनन्त की खोज में, जीवन एक बिन्दु है। और इस बिन्दु से होकर समस्त बिन्दु संसरण करते हैं यह संसरण के बिन्दु की खोज ही भटकाव है। भटकाव ही अनिवार्यता है। सच पूछा जाये तो क्या जीवन की खेाज रिश्तों की उप्णता की खोज की एक चाह नहीं है।

***

(2)

वह शहर के दक्षिणी भाग की और चल पड़ी। सामने विश्वविद्यालय की लम्बी, उंची बहुमंजिली ईमारतें दिखाई दे रही थी। शिक्षा, सृजन और शैक्षणिक दुनिया का एक अनन्त विस्तार या सुनहरी रेत के पार का संगीत की धाराओं का अनोखा मिलन। दूर तक फैली मासूम धरती। सुहागन की गोद में सोया हुआ मासूम जगत। इस शांत पड़ी झील के तट पर। प्यास का अन्तहीन सिलसिला। प्यास केवल प्यास। जिसके बुझने की आस कभी नहीं रही मेरे पास। सृजन का सुख या समपर्ण का अनोखा संसार। धाराओं के धोरी और आग उगलता विस्तार शिक्षा जगत का, जहां से भाग कर वो यहां पर आई है। अन्ना समझ नहीं पा रही । इस के आगे का अन्तहीन विस्तार उसे किस मोड़ तक पहुंचा देगा। क्या यह सम्भव है कि वो अतीत की परते खोले बिना आगे बड़ जाये। मां बचपन में चल बसी पिता व्यापार और पैसे में व्यस्त। उसका अकेलापन भटकाव बढ़ाता ही चला जा रहा था।

वह एक नई राह पर चल पड़ी सामने केन्द्रीय पुस्तकालय था। शाम अलसाने लगी, एक चिरपरिचित गन्ध की तरह शाम ढलने लगी धूप के कुछ टुकडे खिडकी की राह से अन्दर हॉल में आकर चुपचाप बैठ गये। कुछ चिड़ियाएं भी न जाने कहां से अन्दर घुस गई थी। वह यो ही मन को समझाने हेतु अन्दर हाल में आ गई।

इधर-उधर दीवारों पर एक उदास भूरा रंग। धूसरे धूसरे चेहरे और एक उदास मुस्कान। उसने अपना सर एक सचित्र पत्रिका में गड़ा दिया।

तभी उसे किसी की आवाज सुनाई पड़ी।

’’ हैलो।‘‘ उसने चौंक कर सिर उठाया। एक अजनबी लेकिन मोहक लड़की उसे सम्बोधित कर रही थी।

’’ नई आई हो।‘‘

’’ हां ‘‘

’’ एम.ए. करने। ‘‘

’’ नहीं। ‘‘

’’ तो फिर‘‘

’’ फिर । ‘‘

’’ फिर। ‘‘

और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ी।

’’ तुम्हारा नाम। ‘‘

’’ अन्ना और तुम्हारा। ‘‘

’’ आशा। ‘‘ लगा जैसे सैकड़ों नन्हे सूरज एक साथ उग पड़े हों, याकि चांदनी जाग गइ्र हो। वह समझ नहीं पाई अचानक हुई इस मुलाकात का क्या होगा। लेकिन बात बन गई। उसे फिर याद आया। सुबह की ताजा धूप के टुकड़ों को जी लो। पता नहीं कब चांद घाटी में चरने चला जाये। क्वारेपन की कच्ची धूप उस लड़की की आंखों में टिमटिमा रही थी उसका मन बोराएं पक्षी की तरह फड़फड़ा रहा था। वह नहीं समझ पायी की क्या करें मगर वृक्ष में फड़फड़ाती हवाएं रास्ता ढूंढ़ रही थी और वे एक दूसरे को जानने समझने के लिए केन्टीन की ओर बढ़ गई। अन्ना के लिए यह गाढ़ी और सूखी धुन्धनुमा धूप थी। केन्टीन के एकान्त कोने में दोनों जम गई।

आसपास की मेजें भी भरी पड़ी थी। चिड़ियों की तरह चहचहाती लड़कियां और मंडराते लड़के। कहीं कोइ चिन्ता या भटकाव या उलझाव का नाम नहीं।

‘‘ हां तो अब बताओं अपनी राम कहानी। ’’ यह कह कर आशा फिर खिलखिला कर हंस पड़ी। पहली बार अन्ना ने उसे ध्यान से देखा। सुर्ख तांबई रंग, हलके घुंघराले बाल। मुंह पर अनोखा तेज और हंसती बोलती आंखें। शायद जमाने की धूप और सर्द हवाओं से उसका चेहरा अभी बचा हुआ था।

‘‘ क्या बताउ। मेरे डैड ने मुझे अपनी जन्म भूमि राजस्थान देखने को भेजा है। मां बचपन में ही चल बसी। डैड ने ही पाल पोस कर इतना बड़ा किया समाज विज्ञान में एम.ए. हूं। देश-विदेश घूमी। मगर मन है कि भटकता ही रहता है। पहाड़ों में, मैदानों में, दिशाओं में मैं इस भटकाव को ढूंढती फिरती हूं। इस बार अपनी जन्म भूमि देखने आई थी स्वर्गादपिगरियसी यह भूमि कैसी है, रेतके टीबे या जिन्दगी की रोशनी या फिर बैलगाड़ियों और उंटों के काफिले। ’’

‘‘ अच्छा। अच्छा बन्द कर अपनी कविता और सुन मेरी। ’’

‘‘ अरे हॉं मैं तो भूल गई थी कुछ अपने बारे में भी तो बता। ’’

मैं अपने बड़े भाई के साथ यही यूनिवर्सिटी क्वाटर्स में रहती हॅू। केमेस्टी में एम.एस.सी. कर रही हू और भैया यहीं समाजविज्ञान के प्रोफेसर हैं। ’’

‘‘ अच्छा। ’’ फिर तो तुम्हारे भैया से मिलना चाहिए। ’’

‘‘ लो पहले चाय पीलो। चाय ठण्डी हो रही है। ’’

‘‘ अच्छा भाई। चलों जयपुर में कुछ सुकून मिल जायेगा। ’’

‘‘ अच्छा एक बात बताओ यूरोप तुम्हें कैसा लगा। ’’

‘‘ बस कुछ ज्यादा पसन्द नहीं आया। सीमित दिमाग और सीमित जीवन सब कुछ स्वयं में सिमटा हुआ। दीन-दुनिया से कटा सा। ’’

‘‘ सिमटा हुआ जीवन भी कोई जीवन है। हमारे देश में सब कुछ विस्तृत और महान्। इस महान देश की परम्पराऐं भी महान हैं। ’’

‘‘ तो कब तक रहेगी यहॉं ? ’’

‘‘ जब तक मन लग जाये। शायद पूरा जीवन या कल सुबह ही चली जाउॅ। कहना मुश्किल है। रमता जोगी और बहते पानी की तरह है मेरा मन। पल में तोला और पल में माशा। फिर भी शायद यहां पर कुछ समय तक रह जाउॅगी। अच्छा तुम्हारे भाई से कब मिलाओगी। ’’

‘‘ तुम कहां ठहरी हो। ’’

‘‘ स्टेशन के पास के होटल में। ’’

‘‘ ऐसा कर तू घर ही आ जा। ’’

‘‘ लेकिन। ’’

‘‘ लेकिन, लेकिन क्या। पूरा बड़ा क्वार्टर है और हम केवल दो। ’’ ‘मैं ओर भाईजान। ’’

‘‘ ठीक है। ’’

***

फरवरी मार्च के ये दिन। हवा बौराई हुई बहती रहती है। शहर का वातावरण, फूलों से लदा फदा रहता है वासन्ती फूलों का एक खिला संसार यूनिवर्सिटी में महक रहा है। बड़े-बड़े शानदार बंगलेा के लॉनों में बोगनबेलिया की लताएं इठला रही थी। सुबह का कुवांरा मैासम हो तो फूलों की महक और भी मोहक लगती है। टीचर्स होस्टल को जाने वाली सड़क पर अन्ना और उसकी नई बनी सहेली आशा चली जा रही थी। अचानक पीछे से कार के हार्न की आवाज से वे दोनों चौंक पड़ी। आशा ने मुड़कर देखा भाईजान थे।

‘‘आओ अन्ना। ये मेरे भाई हैं। सोशियोलोजी के प्रोफेसर और ये अन्ना है। अभी अभी मेरी सहेली बनी है और अब हमारे घर चल रही है। ’’

अन्ना सकुचाकर कार में बैठ गई। वे घर आ गये। प्रोफेसर अपनी स्टडी में चले गये। वे दोनों बैडरूम में गपशप करने आ गइ्र।

अन्ना घर तो तुमने बहुत ही खूबसूरती से सजा रखा है हर चीज करीने से और सुन्दरता ऐसी की स्थान से हटाने मात्र से असुन्दर दिखने लगती है।

‘‘ अरे ये मेरा नहीं भाई का शौक है, वे हर चीज करीने से और व्यवस्थित पसन्द करते हैं इसी मारे तो अभी तक कुंवारे हैं और ष्शायद आगे भी ऐसे ही रहेंगे। ’’

‘‘ अरे क्यों ? ’’

‘‘ ऐसा ही है। ’’ आशा ने बात टाल दी। ’’ अच्छा चलो बाहर बैठकर चाय पीते हैभाई भी वहीं आ जायेंगे। ’’

सुन्दर मखमली-लॉन के किनारें पर वासन्ती फूल और लताएं। धीमी हवा के झकोंरें

भाई आये। गम्भीर चाल। मोटा चश्मा। विद्व्रता की एक छाप जो आदमी को समान से जरने का हक दिलाती है।

‘‘ आजकल तुम्हारी क्लासेज का क्या हाल है ? ’’

‘‘ हाल बड़े बेहाल है भाई जी। यूनिवरसिंटी में अब पढ़ने कौन आता है सब मटरगस्ती करने आते हैं। ’’

‘‘ मगर तुम्हे तो पढ़ना है भाई। नही तो चाची कहेंगी लड़की को पढ़ा भी नहीं सका, इतना भी नहीं हुआ। ’’ और वे खिलखिलाकर हंस पड़े।

अन्ना ने देखा दुग्ध श्वेत दन्तपंक्ति, जैसे कई हॅंस एक साथ उड़ पड़े हों और हवा में देर तक तैरती रही वो हंसी।

‘‘ अच्छा और तुम्हारी इस सहेली अन्ना का क्या कार्यक्रम है। कब तक रहेगी । ’’

‘‘ जी अभी कुछ तय नहीं है, सोच रही हू निकल जाउं। ’’

‘‘ कहां। ’’

‘‘ इस प्रदेश को देखने समझने और जीने। ’’

‘‘ तुम एक काम क्यों नहीं करती। ’’

‘‘ जी ’’

‘‘ मेरे पास एक प्रोजेक्ट आया हुआ है राजस्थान के गांवों में कस्बों में महिलाओं और बच्चों का सामाजिक अध्ययन। कई दिनों से इस पर काम करने की सोच रहा था। तुम चाहो तो इस प्रोजक्ट पर काम कर सकती हो। काम का काम और घूमना भी । इसी बहाने तुम राजस्थान के लोक-जीवन और संस्कृति को भी नजदीक से देख सकोगी। ’’

अचानक अन्ना सोच में डूब गई उलझाव के इन दिनों यह प्रोजेक्ट भी क्या बुरा है, लेकिन अन्ना हॉं भरने से पहले कुछ और सोचना चाहती थी।

‘‘ कितने समय रूकना होगा। ’’

‘‘ ये तो तुम पर है। वैसे प्रोजेक्ट कई वर्पो तक चल सकता है प्रारम्भ में एक वर्प समझ लो । ’’

‘‘ ठीक है मुझे स्वीकार है। ’’

अन्ना और आशा दोनों हॅंस पड़े।

‘‘ तो कल विभाग में आकर जोइन कर लो। ’’ यह कहकर प्रोफेसर अपनी स्टडी में चले गये।

रात को पलंग पर लेटे अन्ना ने आंखे बन्द कर ली उसके सामने नये पुराने कई दृश्य आये गये। कई दिन बीत गये। कई रातें रीत गई। दोपहर। शाम। रात। हवा। सूरज। चांद। कहीं मोहित करने वाले बन्धन। कहीं कमल की तरह खिली स्वतन्त्रता। सब कुछ ऑखों के सामने गुजर गया अचानक वह किस बन्धन में बंध गई क्या वह प्रोजेक्ट को सहेज सकेगी। लेकिन जीवन में यह मोड़ उसे भा गया था। रेत के टीबों से मेवाडी पहाड़ों तक की यात्रा का यह सुनहरा अवसर वह खोना नहीं चाहती थी। स्टडी में अभी भी लाईट जल रही थी। शायद प्रोफेसर सिंह अध्ययन कर रहे थे। अन्ना और आशा एक ही कमरे में सो गई।

प्रातः तैयार होकर अन्ना ने समाज शास्त्र विभाग में जाकर ज्वाइन किया और राजस्थान में महिलाओं और बच्चों के सामाजिक अध्ययन के प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए राजपुर रवाना हो गई। जाते समय प्रोफेसर साहब ने राजपुर के तहसीलदार के नाम एक पत्र भी दे दिया।

***

राजपुर में उतरते ही अन्ना ने सोचा सबसे पहले स्थानीय तहसीलदार से ही मिलना चाहिए। प्रशासक के नाते आंकड़ों की भापा में तहसीलदार साहब ने उसे विकास, प्रगति, उपलब्धियॉं, आदि के बारे में कुछ इस तरह बताया कि अन्ना शीघ्र ही उन्हें सफल प्रशासक मान बैठी। तहसील से निकल ही रही थी कि उसे पास में ही आवासीय विद्यालय का विशाल प्रांगण नजर आया। उसने कस्बे में महिलाओं और बच्चों की स्थिति के बारे में इस विद्यालय के स्थानीय अध्यापकों तथा छात्रों से बात करने का निश्चय किया। वह सीधे ही स्टाफ रूम में चली गई। वहां पर हिन्दी की अध्यापिका मिसेज. प्रतिभा से उसने परिचय किया और बोल पड़ी-

‘‘ मैडम। मैं जयपुर से महिलाओं और बच्चों की सामाजिक स्थिति की परियोजना पर काम करने यहॉं आई हू। मैं गांव में महिलाओं और बच्चों की सामाजिक स्थितियों का अध्ययन करना चाहती हू। आप शायद इसी जगह की हैं। अतः शायद मेरी कुछ मदद कर सकें। मैं आपकी आभारी रहूंगी। साथ ही यदि आप अन्य साथी अध्यापकों से भी मेरा परिचय करा सकें तो मुझे सुविधा होगी। ’’

मिसेज प्रतिभा ने खुशी खुशी अन्ना का परिचय अपने सहयोगियों से कराया।

‘‘ ये मि. एन्टोनी अंग्रेजी पढ़ाते हैं।’’ अन्ना ने शा लीनता से हाथ जोड़े।

ये हैं गणित के महेश गुप्ता साहब।

‘‘ नमस्कार। ’’

‘‘ नमस्कार। ’’

इसी समय अभिमन्यु ने स्टाफ रूम में प्रवेश किया। अन्ना ने देखा। अपरिचय के विन्ध्याचल बीच में खड़े थे। लेकिन एक आकर्पण था। मिसेज प्रतिभा ने परिचय कराया।

‘‘ ये है विज्ञान के अध्यापक अभिमन्यु बाबू। कल ही आये हैं और छात्रावास के अधीक्षक भी हैं। ’’

‘‘ ये अन्ना है यहां पर महिलाओं और बच्चों की स्थिति पर शोध करेंगी।’’ ‘‘ अच्छा। नमस्कार। ’’

‘‘ नमस्कार। ’’ अन्ना के दोनों हाथ स्वतः शालीनता से जुड़ गये। अन्ना ने पूछा-

‘‘ इस कस्बे में महिलाओं और बच्चों की स्थिति कैसी है क्या अन्य जगहों की तरह ही है ? ’’

मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।

‘‘ यहां स्थिति कुछ ठीक इस कारण है कि जनता में जागृति है, वे शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं, और अपनी लड़कियों को स्कूलों में भेज रहे हैं। कस्बें में कन्याओं और महिलाओं हेतु पढ़ाई की व्यवस्था भी है। राजनैतिक जागृति भी है। ’’

‘‘अच्छा यह तो बड़ी अच्छी बात है। ’’

‘‘ अब घर की महिला अपने तथा बच्चों के स्वस्थ्य के बारे में भी जागरूक हैं तथा नियमित रूप से सरकारी सुविधाओं का लाभ लेना जानती है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि पिछले कई वर्पो से यहां पर बाल विवाह जैसी कोई घटना नहीं घटी है’’ मिसेज प्रतिभा ने फिर कहा।

‘‘ अच्छा। ’’ अन्ना को आश्चर्य हुआ।

अभिमन्यु बोल पड़ा।

‘‘ इसमें आश्चर्य की क्या बात है सामाजिक कुरितियों के बारे में यदि जनता को सही तरीके से समझाया जाये तो बात समझ में आ जाती है, और एक बार बात समझ में आ जाने के बाद लोग बाग उस बात पर अमल करते हैं। गांव की पंचायत, जाति की पंचायत, बड़े बूढे़ सब मिल बैठकर समस्या को खतम कर देते हैं, और ऐसा तो अक्सर होता रहता है। ’’

‘‘ लेकिन क्या दहेज, बहू जलाना, तलाक, आदि की घटनाएं भी नहीं होती है। ’’

इस बार गणित के महेश जी बोल पड़े।

‘‘ बहन जी ये सब शहरों के बड़े लोगों के चक्कर है गांव में बहू का मान बेटी के बराबर होता है, बेटी को दुख देना और बहू को दुख देना एक ही बात है बहू घर की लक्ष्मी है और लक्ष्मी का अनादर हमारी परम्परा या संस्कृति में कभी नहीं रहा। ’’

‘‘ लेकिन फिर भी क्या सभी कुछ अच्छा ही है। ’’

‘‘ नहीं है सब कुछ अच्छा नहीं है औसत भारतीय कस्बों, गांवों की तरह यहॉं भी पेयजल का संकट है, सरकारी तंत्र में अनियमितताएं है, मगर इन सब के बावजूद एक चीज है आशा, उमंग, उल्लास, खुशी, और जीवन को भरपूर जीने की इच्छा जो हमें हमारी परम्परा से जोड़ती है। प्रजातन्त्र की आवश्यकता है, इसी कारण उसकी कीमत भी देनी पड़ती है। ’’ अभिमन्यु का स्वर कुछ तल्ख हो उठा। मगर सभी ने उसकी बात को सराहा। कुछ पल को वह रूका फिर बोल पड़ा।

‘‘ प्रजातन्त्र के मूल्यों में आस्था रखना ही परम धर्म है जो अनैतिक है उसे समाप्त करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। स्थिति बच्चों की हो या पुरूपों की या महिलाओं की साक्षरता और सत्त शिक्षा से ही सुधार हो सकता है। आखिर बच्चों तथा महिलाओं के बिना एक सम्पूर्ण और सुन्दर विश्व की कल्पना कैसे की जा सकती है ? बच्चे प्रकृति का सबसे खूबसूरत उपहार हैं और महिलाएं वो उपहार हम तक पहुचाती है। ’’

‘‘ लेकिन अभिमन्यु बाबू सवाल ये है कि सब इसके लिए क्या कर सकते है ? अन्ना जी इतनी दूर से यही सब जानने-समझने आई है। ’’ मिसेज प्रतिभा ने बहस के एक जीवन्त मोड़ देने की सफल कोशिश की।

‘‘ हां हम क्या कर सकते हैं ? ’’ महेश जी भी बोल पड़े।

अन्ना ने भी प्रश्न वाचक दृप्टि से देखा।

अब अभिमन्यु बोल पड़ा।

‘‘ मैं तो एक कम उम्र का नौजवान हू युवा होने के कारण अधीर हू और जल्दी से जल्दी मंजिल चाहता हू मगर मैं यह भी जानता हू कि मन्जिल न तो आसान है और न ही बहुत पास। मगर सुनहरे भविप्य के सपने तो देखे जा सकते हैं। ’’

‘‘ सपने हकीकत तो नहीं बन जाते। ’’ अन्ना ने फिर प्रश्न का तीर मारा।

‘‘ सपनों को हकीकत बनाने की कोशिश ही जीवन और संधर्प का दूसरा नाम है। ’’ तभी घन्टी बजी।

‘‘ माफ करें। मैं कक्षा लेकर अभी आता हू। ’’ अभिमन्यु अपनी कक्षा में विज्ञान पढ़ाने चला गया। अन्ना स्टाफ रूम में बैठी बतियाती रही। उसे रह रह कर अभी हुई बहस पर विचार करने में सुख का अहसास हो रहा था। वह सोचने लगी यदि इस प्रोजेक्ट पर काम ही करना है तो इसी कस्बे को आधार बनाकर करना ठीक रहेगा।

मिसेज प्रतिभा पूछ बैठी ।

‘‘ अन्ना तुम कहॉं ठहरी हो। ’’

‘‘ अभी तो आई हू। सोचती हू किसी डाक बंगले में रूक जाउं। ’’

‘‘ मगर डाक बंगला तो यहां से बहुत दूर है। तुम ऐसा करो मेरे पास रह लो। मैं भी अकेली रहती हू मेरे मिस्टर जिला मुख्यालय पर कार्यरत हैं। हम दोनों मिलकर खाना भी बना लेंगे और अपना अपना काम भी करते रहेंगे ।’’

‘‘ मगर आपको असुविधा होगी। ’’

‘‘ असुविधा कैसी। अभी छुट्टी होती है तो अपन दोनों साथ साथ चलते हैं। विद्यालय से पांच मिनट का रास्ता है। ’’

तभी विद्यालय की छुट्टी की घन्टी बजी। ढ़ेरों बच्चे ऐ साथ निकल पड़े मरनो प्रकृति के उपहार धरती पर चल पड़े हों।

अन्ना और मिसेज प्रतिभा भी चल पड़ी।

***

(3)

छात्रावास में अभिमन्यु अपने कक्ष में बैठकर मेस सम्बन्धी जानकारी अपने सहयोगी से ले रहा था तभी विंग मानीटर लिम्बाराम ने प्रवेश किया और आदर के साथ खड़ा हो गया।

‘‘ कहो लिम्बाराम कैसे आये हो ? कुछ परेशानी है क्या। ’’

‘‘ सर। छात्रावास के सम्बन्ध में कुछ बातें करना चाहता था। ’’

‘‘ अच्छा बैठो। सुनो एक काम क्यों नहीं करते चारों मॉनीटर एक साथ आ जाओ और सभी बातों पर एक साथ चर्चा कर ले इस नवीन सत्र की एक कार्य योजना भी बना ले ताकि सब कार्य व्यवस्थित, सुचारू रूप से चल सके।

‘‘ यही ठीक रहेगा सर। अभी छात्रों के पढ़ने का समय भी नहीं है। मैं तीनों मॉनीटरों को बुला लाता हू। ’’

यह कहकर लिम्बाराम जाने लगा। अभिमन्यु ने साथ में अवतार सिंह प्रोक्टर को भी बुलाने के निर्देश दिये। कुछ ही देर में चारों मॉनीटर तथा प्रेाक्टर अभिमन्यु के कक्ष में एकत्रित हो गये। अभिमन्यु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा- ‘‘ आप लोगों पर इस छात्रावास की महती जिम्मेदारी है। मैं तो केवल आप लोगों की सहायता के लिए हू। छात्रावास में मेस की सुविधा साफ, सफाई, सास्कृतिक कार्यक्रम तथा खेलकूद आदि के लिए आप लोगों को दिल लगाकर काम करना होगा। साथ ही आप लोगों को इस कस्बे के सामाजिक उत्थान के लिए भी काम करना चाहिए। मेरी मान्यता है कि आप लोग मिलजुल कर काम करें तो पढ़ाइ्र के अतिरिक्त समय में भी बहुत कुछ कर सकते हैं। ’’

‘‘ हां सर हम भी महसूस करते हैंकि हमारे पास काफी समय बचता है। जिसे हम इधर-उधर के कामों में नप्ट कर देते हैं। यदि कोई स्पप्ट दिशा- निर्देश हो तो हम सब मिलकर कुछ नया और अनोखा काम अवश्य कर सकते हैं। यदि इस काम में हमें आनन्द भी आएगा। और खुशी भी होगी। ’’ लिम्बाराम तुरन्त बोल पड़ा।

‘‘ लेकिन सर ’’ असलम ने अपनी बात रखी ‘‘ जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं उन छात्रों की ओर ध्यान देने के लिए भी हमें कुछ करना चाहिए। ’’

‘‘ बिल्कुल असलम मैं तुमसे शत प्रतिशत सहमत हू तुम चारों मॉनीटर अपनी अपनी विंग के कमजोर छात्रों की एक सूची बनाओ और मैं उन्हें अतिरिक्त समय में यहॉं पढ़ाउंगा ताकि उनकी कमजोरी दूर हो। ’’

‘‘ यही ठीक रहेगा सर। ’’ सुरेश शर्मा बोल पड़ा।

‘‘ और आप लोग एक और बात का ध्यान रखें। यदि किसी छात्र की कोई निजि आवश्यकता हो तो उसका भी ध्यान रखें। हमस ब एक साथ मिल बैठकर उसका समाधान खोज निकालेंगे।’’ अभिमन्यु बाबू ने फिर कहा।

‘‘ खाली समय का सदुपयोग करने की शुरूआत हम वृक्षारोपण से करेंगे। शाम को सभी छात्र छात्रावास के पीदे वाले खाली मैदान में एकत्रित हो जायें वहीं से हम अपनेअभियान का श्रीगने श करेंगे। मैं कोशिश करूंगा कि प्राचार्य महोदय भी उस समय वहां पर उपस्थित रहें। ’’

‘‘ सर एक बात पूछना चाहता हू। अवतार सिंह पहली बार बोला।

‘‘ हां हां पूछो। झिझकों मत। ’’

‘‘ सर कुछ अपने बारे में बताइये। ’’

अभीमन्यु बाबू हंस पड़े कुछ पल मौन रहे। फिर गम्भीर स्वर में बोल पड़े।

‘‘ अवतार सिंह मैं सामान्य निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का सदस्य हू यह नौकरी तीन वर्प की प्रतीक्षा के बाद मिली है। और विज्ञान में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई मैंने जयपुर से की है। प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी यहां रह कर करूंगा।’’

‘‘अच्छा सर। एक बात बताइये। ’’

‘‘ नैतक मूल्यों में इतना ह्रास क्यों हो रहा है ? ’’ लिम्बाराम पूछ बैठा।

‘‘ देखो लिम्बाराम मूल्य हमारी नैतिकता से जुड़े है और आजकल भैातिकवाद का समय हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति तथा खुली बाजार व्यवस्था ने नैतिकता को लगभग नप्ट कर दिया है और मूल्य भी विघटित हो गये है। वर्पो के प्रजातन्त्र ने हमारे जीवन में कई बड़े बदलाव पैदा किये है और दूसरी ओर कई क्षेत्रों में हमने बहुत ज्यादा प्रगति की हैं विकास और प्रगति के कुछ मूल्य भी हमने चुकाये है और नैतिक मूल्यों का हास इन्हीं में से एक है तुम ष्शायद कला संकाय में हो, इतिहास में अक्सर ऐसे अवसर आए है जब मूल्यों में हास होने पर नई दिशा देने के लिए किसी महात्मा सन्त या महापुरूप ने इस देश को दिशा दी है। विकास और प्रगति के मूल्यों को चुकाने के लिए हम आजकल पर्यावरण की समस्या से जूंझ रहे है। समाज को स्पप्ट दिशा निर्देश नहीं होने के कारण अन्धकार में भटकाव है। रोशनी की तलाश जारी है।

‘‘ अच्छा सर विज्ञान की इतनी प्रगति के बावजूद मानव संतुप्ट क्यों नहीं है ? ’’

‘‘ मानव का संतुप्ट हो जाना उसकी प्रगति को रोक देगा। प्रगति के लिए नियमित रूप से आगे की ओर देखना जरूरी है। ’’ चलते जाना ही जीवन है क्या नदी कभी रूकती है वह चलती ही जाती है। ’’

‘‘ सर वृक्षारोपण के लिए क्या करना होगा ? ’’

‘‘ फिलहाल तो हम मैदान को ठीक करेंगे। फिर वर्पा ऋतु में बारिश हो जाने पर पेड़ पौधें को लगायेंगे। ’’

‘‘ लेकिन सर । पौधे ? ’’

‘‘ पौधे वन विभाग देगा या विद्यालय प्रशासन खरीदेगा। ’’

‘‘ प्रशासन के भरोसे तो सर कामकाज नहीं चलता। ’’ सुरेश ने कहा

‘‘ देखो ष्शुरू में ही निराश हो जाना या पूर्वाग्रह पाल लेना ठीक नहीं है हम कोशिश करेंगे और सफल होंगे। ’’ अभिमन्यु ने कहा।

‘‘ अब तुम लोग जाओ शाम पांच बजे पीछे वाले मैदान में एकत्रित हो जाना मैं और प्राचार्य जी वही मिलेंगे। ’’

छात्रों के जाने के बाद अभिमन्यु ने पिताजी को पत्रलिखा ।

श्रद्धैय पिताजी,

सदर चरण स्पर्श।

आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि मैने काम संभाल लिया है। सब कुछ ठीक-ठाक है वातावरण तथा कस्बा दोनों ही ठीक है शायद थोड़ी बहुत उंच नीच है तो वह समय पर अपने आप ठीक हो जायेगी। मुझे यहां पर छात्रावास में ही रहने को क्वार्टर मिल गया है। सोचता हू आप लोग भी यहीं पर आ जाये तो ठीक रहेगा। अब वहॉं गांव में कब तक रहेंगे ? कमला की भी पड़ाई यहां पर जारी रह सकेगी। आपका पत्र पाते ही मैं लेने आ जाउंगा। माताजी को प्रणाम अर्ज कराये तथा कमला को शुभाशीप।

आपका प्रिय पुत्र

अभिमन्यु।

पत्र को पोस्ट करने के लिए उसने चौकीदार को दिया। और स्वयं प्राचार्य से मिलने चल दिया।

प्राचार्य अपने कक्ष में थे। उन्होंने अभिमन्यु की वृक्षारोपण योजना ध्यान से सुनी और कहा-

‘‘मैं तो आ जाउंगा काम भी शुरू कर देंगे। मगर हमारे पास इस समय अतिरिक्त बजट नहीं है। और आप जानते हैं बिना बजट के सरकारी काम कैसे हो सकता है ? ’’

‘‘ आप चिन्ता न करें फिलहाल हम सभी लोग श्रमदान करेंगे। पौधे बारिश के बाद वनविभाग से प्राप्त करेंगे। ’’

‘‘ फिर ठीक है मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है। ’’

‘‘ तो चले। ’’

‘‘ आइये। ’’ अभिमन्यु और प्राचार्य चलकर मैदान में आ गये। छात्र पहले से ही उपस्थित थे। अभिमन्यु ने मॉनिटरों तथा प्रोक्टर का परिचय प्राचार्य से कराया। प्राचार्य ने सबसे पहले मिट्टी उठाकर डाली। काम शुरू हुआं छात्रों ने जमीन को सममतल करना शुरू कर कंकड पत्थर बुहारे दो घन्टों के श्रम से छात्र थक गये। आगे का काम कल करने का संकल्प ले सभी लौट पड़े।

***

दूसरे दिन विद्यालय में अध्यापक कक्ष में इस धटना की चर्चा थी।

एन्टोनी बोले- ‘‘ व्हाट। श्रमदान इस युग में। अभिमन्यु बाबू का दिमाग फिर गया है नया नया जोश है। ’’

‘‘ आप ठीक कहते है। ’’ गणित के गुप्ताजी बोल पड़े। ‘‘ लड़के पढ़ते तो है नहीं ये फालतू का झंझट क्या पालेंगे। ’’

‘‘ मगर यदि कोई अच्छा काम शुरू हो रहा है तो शुरू में ही उस काम की बुराई क्यों करनी चाहिए ’’ मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।

‘‘ आप नहीं समझेगी। नया नया लगा है। अगर इस तरह के लटके झटके नहीं दिखायेगा तो प्रभावशाली कैसे सिद्ध होगा। ’’ चन्द्रमोहन जी ने अपना दर्शन दिया।

आप लोग कुछ भी कहें जी, दुनिया में पृथ्वी दिवस या पर्यावरण दिवस पर इतना काम होने लगा है तो यहॉं अवश्य ही कुछ होगा। मिसेज प्रतिभा ने कहा।

‘‘ हां हां भाई ठीक है। सब हो रहा है होने दो। मगर हमें बक्शों। ’’ एन्टोनी बोल पड़े।

‘‘ हां ये ठीक है। ’’ चन्द्रमोहन बोले।

इसी समय अभिमन्यु बाबू ने स्टाफ रूम में प्रवेश किया। उसे देखते ही सब चुप हो गये।

अभिमन्यु बाबू के हाथ चाक से भरे थे। उन्होंने हाथ धोये। पानी पीया। और एक कुर्सी पर आराम से बैठकर बोले-

‘‘ मुझे देखते ही आप लोग चुप क्यों हो गये। ’’

‘‘ कुछ नही हम आपके पेड़ लगाने की योजना की चर्चा कर रहे थे। ’’ मिसेज प्रतिभा ने बातचीत का सिलसिला फिर जोड़ा।

‘‘ हां यह तो एक आवश्यकता है। कल्पना कीजिये यदि पृथ्वी ही नहीं होगी तो हम सब कहां होंगे ओर जीवन का क्या होगा। ’’

‘‘ लेकिन ये श्रमदान......। ’’ एन्टोनी बोल।

‘‘ वो तो प्रारम्भिक स्थिति है जब काम दिखने लगेगा तो जिला प्रशासन भी मद्द करेगा और फिर आप सभी भी तो सहयोग करेंगे। शुरू में ही सहायता मांगना ठीक नहीं है। ’’

‘‘ मुझे तो माफ करना भाई। ’’ एन्टोनी उठकर चले गये।

‘‘ अभिमन्यु बाबू आपकी बात और काम दोनो में दम है। आप लगे रहिये। धीरे धीरे लोग आपके साथ हो जायेंगे, और कारवॉं बनता जायेगा। ’’ मिसेज प्रतिभा ने उसका हौसला बढ़ाया।

घन्टी बजी। सभी अध्यापक अपनी अपनी कक्षा की ओर बढ़ गये। अभिमन्यु का कालांश खाली था।

अभिमन्यु के कदम स्वतः पुस्तकालय की ओर बढ गये। उसने देखा पुस्तकालय समृद्ध है लेकिन पढ़ने वालों का अभाव था। पत्र पत्रिकाएं बिखरी पड़ी थी। पुस्तकों पर धूल थी। और वाचनालय खाली पड़ा था। उसके मन में दुख की एक रेखा खिंच गयी। सरस्वती का मन्दिर और पुस्तकों की यह दशा। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था।

शाम को छात्रावास में अपने कक्ष में आने पर चौकीदार ने उसे पिताजी का पत्र दिया। संक्षिप्त सा पत्र था। पिताजी अपने गांव को छोड़ने को तैयार नहीं थे। हां कमला को यहां भेजने को तैयार थे। अभिमन्यु ने तय किया कि अकले रविवार को गांव जाकर कमला को अपने साथ ले आयेगा।

***

अन्ना और मिसेज प्रतिभा साथ रहने लग गयी थी। अन्ना दिनभर कस्बे तथा आसपास के छोटे गांवों में जाकर महिलाओं ओर बच्चों की स्थिति पर सर्वेक्षण करने लगी। उसने महसूस किया कि गांवों में लड़कियों और लड़कों में अन्तर और भेदभाव कुछ ज्यादा ही है। कुपोपण तथा बीमारियों का प्रकोप भी ज्यादा है। सबसे बड़ी बात ये कि गांवों के बूढ़े ही नहीं नई पीढ़ी के पढ़े लिखे नौजवानों का रूख भी ऐसा ही था। लड़कियों को पढ़ाने के नाम पर ज्यादातर ग्रामीण लोग नानुं करते थे। प्रोढ़ शिक्षा केन्द्रों पर भी प्रोढ़ों की संख्या ही ज्यादा नजर आती थी। वहां महिलाऐ कम आती थी। अन्ना ने अपनी संक्षिप्त सी प्रारम्भिक रपट बनाकर अपने निर्देशक को जयपुर भेजी थी, उसने पत्र में प्रोफेसर साहब की बहन को भी यहां आने का निमंत्रण दिया था। शीघ्र ही आशा का जवाब आया कि भाईजान उसकी प्रारम्भिक रपट से सन्तुप्ट हैं तथा वह अपना काम जारी रखें। अगले माह परीक्षा समाप्त होते ही वह भी राजपुर का एक चक्कर लगा लेगी। और सम्भव हुआ तो प्रोफेसर साहब को भी अपने साथ लेती आयेगी।

अन्ना को यह सब जानकर बहुत खुशी हुई। उसके भटकाव-उलझाव को एक किनारा मिलने की उम्मीद थी और इसी उम्मीद को वह अपने प्रोजेक्ट के सहारे सहेज रही थी।

चाय पीते समय शाम को उसने मिसेज प्रतिभा को यह सब जानकारी दी तो वे भी बड़ी खुश हुई । बोली-

‘‘ इस देश में जब तक महिलाओं, लड़कियों और ग्रामीण बच्चों का सामाजिक उत्थान नहीं होगा, तब तक तमाम प्रगति का कोई मतलब नहीं है। प्रगति व्यक्ति और समाज को उपर उठाने के लिए है या नीचे गिराने के लिए । आज भी गांव में लड़कियों को कम उम्र में ही घर के काम काज में जोत दिया जाता है। यह तो शोपण है भाई । ’’

‘‘ ये तो ठीक है मगर हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धूरी तो व्यक्तियों के हाथ- पांव ही हैं, अधिक हाथ, अधिक आमदनी। ’’ अन्ना ने कहा।

‘‘ नहीं ये ठीक नहीं है। इस सामाजिक ढा चें को बदलना होगा तभी तो एक नया खुशहाल, सम्पन्न, तथा समृद्ध भारत होगा। इस महान देश की महानता को बनाये रखने के लिए ग्रामीण जगत का सही विकास आवश्यक

है। ’’

‘‘ वाह वाह क्या बात है मगर बहिनजी यह आपकी कक्षा नहीं, घर है। लीजिये चाय पीजिये ठण्डी हो रही है। ’’ अन्ना ने मजाक किया।

दोनों हंस पड़ी। और चाय पीने लगी।

इसी समय अभिमन्यु बाबू आ गये। नमस्ते की औपचारिकता के बाद कहने लगे -

‘‘ गांव से पिताजी का पत्र आया है। सोचता हू जाकर मिल आउं और बहन कमला को यहां ले आउ ताकि उसकी पढ़ाइ्र जारी रह सके । ’’

‘‘ मिसेज प्रतिभा आप से एक निवेदन है मुझे वापस आने में एक-दो दिन लग सकते हैं तब तक क्या आप छात्रावास के पीछे वाले मैदान में चल रहे काम-काज को चला लेंगी। मैं नहीं चाहता कि यह काम अधूरा रहे। ’’

‘‘ वैसे तो आप ठीक कह रहे है। मगर सुना है कि प्रधानजी तथा कुछ अन्य लोग इस काम से नाराज हैं, वे इस जमीन का कोई अन्य उपयोग करना चाहते हैं। ’’ मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।

‘‘ वो सब बाद में देख लेंगे। जमीन तो विद्यालय की है, मगर प्रबन्ध समिति ओर प्रधानजी ष्शायद कुछ और सोच रहे हैं। मैंने बी.डी.ओ. साहब से भी चर्चा की है और वे इस जमीन में वृक्ष, पार्क, घास आदि विकासित करने में मदद करेंगे। ’’ अभिमन्यु बाबू बोले।

‘‘ तब ठीक है। आप आराम से गांव हो आईये। माता-पिता को ला सकें तो ले आइये। आप निश्चिन्त रहें। कार्य जारी रहेगा। ’’ मिसेज प्रतिभा ने कहा।

‘‘ आप से ऐसी ही आशा थी। ’’

अभिमन्यु ने शालीनता से हाथ जोड़े ओर रवाना हो गया।

***

(4)

अपने गांव के घर में आकर अभिमन्यु ने सर्वप्रथम मॉं-बाप के चरण स्पर्श किये। दोनों बुजुर्गो ने उसे आशीपा। कुशल क्षेम पूछी। कमला की चोटी खींचकर अभिमन्यु ने उसे पूरे चौक में घुमाया। फिर अटैची खोलकर कमला के लिए फ्राक, बापू के लिए धोती कुर्ता और मां के लिए साड़ी निकाल कर दी। कमला ने फ्राक पहनी, इठलाती हुई गयी और अपने भाइ्र के लिए चाय बना लाई। चाय पीते हुए अभिमन्यु ने अपने बापू से कहा-

‘‘ बापू मैं कहता हूं अब आप सभी मेरे साथ चले चलो। वहां पर मुझे क्वार्टर मिल गया है। तीन कमरे हैं। और सब ठीक है। अपन सभी वहां आराम से रह सकते हैं। ’’

‘‘ वो तो ठीक है बेटा मगर अब इस बुढ़ापे में इस गांव को छोड़कर कहां जाये। खेती-बाड़ी है, खेत खलिहान हैं और यह झोपड़ा है। और फिर तुम्हारी मां का मन अब अन्य किसी जगह नहीं लगता है। ’’

‘‘ मां को मैं मना लूंगा। बापू आप हां कर दो। ’’

‘‘ नहीं बेटा अब इन बूढ़ी हड्डियों का मोह छोड़ दो। हमें यहीं रहने दो खेती-बाड़ी की देखभाल भी होती रहेगी और मन भी बहला रहेगा। तुम कमला को ले जाओ। उसे पढ़ाओं लिखाओं। ’’ बापू ने फिर कहा।

‘‘ और अभिमन्यु अब तेरी शादी भी तो करनी है ’’ मां बीच में बोल पड़ी।

‘‘ तू अब पढ़ लिख गया। नौकरी धन्धे से भी लग गया। अब काहे की देरी। ’’

‘‘ हां भैया अब एक भाभी ले भी आओ। घर में बड़ा सूना सूना लगता है। ’’ कमला ने कहा।

‘‘ अरे मॉं तुम भी क्या पचड़ा ले बैठी। अभी तो मुझे प्रतियोगी परीक्षा में बैठना है। उसकी तैयारी करनी है। ’’

‘‘ देखो बेटे ये सब मैं नहीं जानती। बिरादरी से अभी रिश्ते आ रहे हैं। फिर दिक्कत होगी। ’’ मां ने फिर कहा।

‘‘ कोई दिक्कत नहीं होगी मां तुम चिन्ता मत करो। ’’

‘‘ ष्शायद भैया ने कोई लड़की पसन्द कर ली है। ’’ कमला ने कहा।

‘‘ धत् ’’ चुप।’’ ऐसा भी होता है क्या। ’’ तो फिर क्या तय रहा बापू ? ’’ अभिमन्यु ने पूछा।

‘‘ तय यह रहा बेटे कि हम दोनों यहीं रहेंगे। तुम कमला को ले जाओ। और माह में एक बार आकर संभाल जाना। घबराने और चिन्ता करने की कोई बात नहीं है। पूरा गांव अपना है ओर फिर अकबर भी तो यहॉं है। कुछ बात होगी तो उसे बता देंगे। ’’ बापू ने निर्णय सुनाया।

‘‘ ठीक है। तो कमला तुम चलने की तैयारी करो। अपन कल सुबह ही चलेंगे। ’’

‘‘ ओ.के. भैया । ’’ कमला ने इठलाकर कहा।

सब खिलखिलाकर हंस पड़े।

अभिमन्यु गांव में निकल गया। अकबर अपनी दुकान पर बैठा था। दोनों गले मिले। अभिमन्यु ने उदास स्वर में कहा-

‘‘ अकबर मॉं और बापू साथ नहीं चलना चाहते हैं, तुम उनको संभालते रहना। मैं कमला को लेकर कल सुबह ही चला जाउंगा। ’’

‘‘ इसमें इतना उदास होने की क्या बात है। अमंगल में मंगल छिपा है। तू निश्चित रह । मैं मां-बापू का ख्याल रखूगां। ’’

‘‘ अच्छा अब चलता हूं। मां रोटी लिये बैठी होगीं ’’

अभिमन्यु ने खाना खाया और सो गया।

***

अभिमन्यु अपनी बहन कमला को लेकर जब बस से अपने गांव से राजपुर आया तो सुबह का सूरज बादलों से निकलना ही चाहता था। आसमान में आपाढ़ी बादलों का एक झुण्ड था। और हवा में हल्की खुमारी थी। रात को हल्की बारिश हो चुकि थी, और अभी बारिश की संभावना थी। वैसे भी जुलाई में मानसून प्रारम्भ हो जाता है।

अभिमन्यु छात्रावास में अपने क्वार्टर में आया। कमला को सब समझाया और तैयार होकर अपने कक्ष में आया तभी चारों मॉनीटर भी आ गये।

लिम्बाराम ने अभिवादन के बाद कहा-

‘‘ सर। आपके जाने के बाद छात्रावास के पीछे वाले मैदान पर काम करने में कुछ परेशानी हुई। ’’

‘‘ क्या परेशानी हुई ? ’’

‘‘ बस सर। गांव के कुछ लोगों ने आपत्ति की। मगर प्राचार्य साहब ने सब ठीक-ठाक कर दिया। ’’

इसी बीच सुरेश बोल पड़ा-

‘‘ सर कल शाम को झगड़ा हो ही जाता। वो तो प्रतिभा मेडम तथा कुछ अन्य लोग समय पर पहुच गये।’’

‘‘ क्यों , झगड़े का कारण। ’’

‘‘ गांव वाले इस जमीन को अपने प्शुओं के लिए चाहते हैं दूसरी ओर प्रधानजी इस जमीन पर अतिक्रमण की फिराक में थे। ’’ असलम बोल पड़ा।

‘‘ मगर सर। हमने भी कमर कस ली थी और पक्का निश्चय कर लिया थाकि इस जमीन पर वृक्षारोपण, ही करेंगे। ’’ लिम्बाराम ने बताया।

‘‘ अच्छा फिर । ’’

‘‘ फिर सर प्रतिभा मेडम ने प्रिन्सिपल साहब को समझाया। फिर प्रिन्सिपल साहब ने बीडीओ साहब से बात की। ’’

‘‘ अच्छा। बात यहॉं तक पहुच गयी। ’’

‘‘ जी सर। ’’ फिर जब बीडीओ साहब ने आकर गांव वालो तथा प्रधान जी को समझाया तब बात बनी। लिम्बाराम ने पूरी बात बताई।

‘‘ इसका मतलब है कि तुम लोगों ने मेरे नहीं होने के बावजूद एक किला फतह कर लिया है .अब सब लोगों को मिलकर काम करना होगा ताकि हम इस मैदान का सम्पूर्ण विकास कर सकें तथा जमीन का सदुपयोग हो। ’’ अभिमन्यु ने गम्भीर स्वर में कहा। उसे कुछ अजीब सा लग रहा था। उसने प्रोक्टर को बुलवाया । छात्रावास के मेस, सफाई आदि की व्यवस्था के लिए निर्देश दिये और विद्यालय जाने की तैयारी करने लगा।

कुछ देर बाद अभिमन्यु विद्यालय पहुचा, उसने स्टाफ रूम में झांका। कोई नहीं था। प्राचार्य कक्ष में कुछ अध्यापक थे। वह भी वहीं चला गया। प्राचार्य ने उसके अभिवादन के जवाब में कहा-

‘‘ अभिमन्यु बाबू प्रारम्भिक सफलता तो मिल गयी है मैंने बी.डी.ओ. साहब से कह सुनकर जमीन पर फिलहाल विद्यालय का कब्जा करवा दिया है मगर स्थिति ज्यादा ठीक नहीं है कस्बे के प्रभावशाली लोग इस जमीन को आसानी से हाथ से नहीं जाने देंगे। ’’

‘‘ आप ठीक कहते हैं सर । मगर मेरी पूरी कोशिश होगी कि

इस मैदान का पूरा उपयोग वृक्ष, पेड़-पौधो, घास आदि के लिए हो। बारिश हो गयी है और हम आज ही से वृक्षारोपण शुरू कर देंगे। ’’ अभिमन्यु ने उत्तर दिया।

‘‘ ये तो ठीक है अभिमन्यु बाबू मगर अन्य सुविधाओं हेतु हमारे पास कोइ्र बजट नहीं है। ’’ प्रिन्सिपल साहब ने फिर कहा।

‘‘ फिलहाल मैं आपसे कोइ अतिरिक्त बजट की मांग नहीं करूंगा। ’’ अभिमन्यु ने दृढ स्वर में कहा। तभी अंग्रेजी के अध्यापक एन्टोनी बोल पडे़-

‘‘ लेकिन हमें इन सब से क्या लेना देना। अपनी कक्षा लें। नौकरी करें। वेतन लें। और घर जायें। हम इस पचड़े में क्यों पड़ें ’’

‘‘ आप इस पचड़े से बिल्कुल दूर रहें। एन्टोनी साहब। मगर मेरी बात अलग है। एक सीमा के बाद आदमी को किसी से डरने की जरूरत नही है। न समाज न अफसर से और न अपने आपसे क्योंकि गलत काम नहीं करना है।’’ अभिमन्यु ने दृढ़ स्वर में जवाब दिया।

‘‘ सवाल गलत या सही काम का नहीं हैं सवाल ये है कि जमीन पर कब्जा चाहने वाले लोग बड़े प्रभावशाली हैं और वे हम सभी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते है। ’’ महेश जी बोल पड़े।

‘‘ अब ये सब तो भुगतना ही पड़ेगा। आखिर कब तक अन्याय के सामने घुटने टेक कर जिया जा सकता है। और फिर कानून तथा प्रशासन हमारे साथ है। ’’ अभिमन्यु ने तीखे स्वर में कहा।

‘‘ शायद आप ठीक कहते हैं। मगर, अगर मुसीबत आई तो हम सभी पर आयेगी। भुगतना हम सभी को ही है। हम सभी को यहीं रहना है और पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करना चाहिये। ’’ एन्टोनी बोल पड़े।

‘‘ ठीक है। अभिमन्यु बाबू आप अपना काम जारी रखें। ’’ प्राचार्य ने निर्णायक स्वर में कहा।

तभी प्रार्थना की घन्टी बजी। सभी प्रांगण की ओर बढ़ चले। नियमति काम शुरू हो गया।

अभिमन्यु अपनी कक्षा में आया। उसने छात्रों से स्वास्थ्य शिक्षा की बात करना प्रारम्भ की। सभी छात्र यह जानने को उत्सुक थे कि क्या वे अपने घर के अन्दर मामूली बातों का ध्यान रखकर बीमारी से बच सकते हैं। विज्ञान के इस क्षेत्र में उनकी जानकारी बहुत कम थी। अभिमन्यु ने अपने गम्भीर स्वर में छात्रों से संवाद कायम करते हुए अध्यापन प्रारम्भ किया। छात्र प्रभावित होते चले गयें ।

अभिमन्यु ने बताया कि ग्रामीण स्वस्थ्य केंन्द्रों पर टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की देखभाल, परिवार कल्याण आदि की निशुल्क सुविधा होती है। सन् 2000 तक सबके लिए स्वास्थ्य का नारा विश्व स्तर पर दिया जा रहा है और यदि साफ सफाई, पाने के पानी की शुद्धता का ही ध्यान रख लिया जाये तो बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है। गामीण क्षेत्रों में स्वस्थ्य सुधार के लिए जरूरी है कि ग्रामीणों को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी उनकी भापा में तथा सामान्य तरीके से दी जाये। आप लोग चाहें तो अपने घर परिवार, मोहल्ले, पड़ोस में लोगों को पेयजल की ष्शुद्धता के बारे में बता सकते हैं इससे बड़ा लाभ होगा। खाना खाने से पहले हाथ अच्छी तरह धो लेने मात्र से कई बीमारियों से बचा जा सकता है विपय को गम्भीरता बनाते हुए अभिमन्यु ने फिर कहा- सब स्वस्थ्य होंगे तभी देश स्वस्थ होगा। और देश की खुशहाली सभी के स्वास्थ्य में छुपी हुई है। आप लोग अपने खाली समय में गांव की खुशहाली के लिए लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करें।

‘‘ लेकिन सर। स्वास्थ्य रक्षा इतनी जरूरी है तो फिर हमारी पहले वाली पीढ़ी इस ओर ध्यान क्यों नहीं देती। ’’एक छात्र पूछ बैठा।

‘‘ कारण बड़ा साफ है, अशिक्षा। प्राचीनकाल में सभी जागरूक थे। लेकिन गुलामी के दौर ने हमें अशिक्षित कर दिया। अशिक्षा के अंधेरे ने हमें पंगु,

काहिल बना दिया। हमारी प्राचीन संस्कृति में स्वास्थ्य सम्बन्धी जो जानका रियां थी हम उन्हें भूल गये। उपर से कुपोपण और गरीबी ने हमारी हालत और भी खराब कर दी। इसी कारण स्वास्थ्य शिक्षा हम सभी के लिए जरूरी है। और अशिक्षा का अन्धेरा मिटंगा तो सब का स्वास्थ्य ठीक होगा। ’’अभिमन्यु ने विपय को समाप्त किया। तभी घंटी बजी। वह कक्षा से बाहर आया। स्टाफ रूम की ओर चल दिया।

वहां पर मिसेज प्रतिभा व अन्ना बैठी बतिया रही थी।

अभिवादन के बाद उसने अन्ना से पूछा।

‘‘ आपका प्रोजेक्ट कैसा चल रहा है ? ’’

‘‘ प्रोजेक्ट की प्रगति संतोपजनक है। मैनं जो प्रारम्भिक रपट जयपुर भेजी थी उसे निर्देशक महोदय ने ठीक बताया है। लेकिन कुछ बातें समझ में नहीं आती हैं। गांवों में स्वरोजगार और स्त्री शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है कुछ लोगों में नशाखोरी की आदतें भी हैं। सामाजिक बुराईयों भी है। कल मैं एक गांव में गई थी। वहां पर गांव वालों ने बताया पिछले साल एक गरीब आदमी की बिटिया की शादी दहेज के कारण नहीं हो सका। ’’

‘‘ दहेज के राक्षस ने एक परिवार उजाड़ दिया। ’’मिसेज प्रतिभा बोली।

‘‘ गांवों में ऐसी घटनाएं कम ही हैं। ’’अभिमन्यु ने कहा।

‘‘ हां घटनाएं तो कम होती हैं मगर इन्हें रोकने का कोई तरीका भी तो हो। ’’ प्रतिभा मेडम ने कहा।

‘‘ तरीका एक ही है शिक्षा का उजाला फैलाओं। और कन्या केा भी अपने पांवों पर खड़ा होने का अवसर दो। ’’

‘‘ प्रशासन भी तो कुछ करें। आये दिन अखबारों में बाल विवाह के समाचार आते रहते हैं। ’’ अन्ना बोली।

‘‘ हां केवल कानून या नियम बना देने से समस्या का समाधान नहीं हो जाता है, सामाजिक समस्या से लड़ने के लिए पूरे समाज को जागृत होकर लड़ना पड़ता है और आप जानती है कि अनपढ़ आदमी से ज्यादा खतरनाक होता है कुपढ। कुपढ़ गांव-कस्बेां में खूब मिलते हैं उपर से छोटी मोटी नेतागिरी की सुविधा या प्रशासन में पहुंच। गरीब आदमी भी इन कुपढ़ लोगों से बच कर जी नहीं सकता। ये लोग सामाजिक बुरीईयों को थोपते है और आम आदमी को सहन करना पड़ता है।’’ अभिमन्यु ने समझाया।

‘‘ मगर आम आदमी इस बुराई को समझता क्यों नहीं। ’’

‘‘ समझता है खूब समझता है मगर उसकी मजबूरी है। वो क्रान्ति की भ्रन्ति में नहीं पड़ना चाहता। पानी में रहकर मगर से बैर कौन ले। गांव वालों को रहना तो उन्हीं लोगों के बीच है। ’’अभिमन्यु ने कहा।

‘‘ लेकिन अब तो बहुओं को जलाने जैसी घटनाएं भी कभी कभार होने लगी है। ’’ अन्ना ने फिर कहा।

‘‘ हां ये भी शहरी सभ्यता का प्रसाद है पहले गांवों-कस्बों में ऐसा नहीं होता था। ’’ अभिमन्यु बोला।

‘‘ यदि गांवों में स्वरोजगार के साधनों का विकास हो तो स्थिति में सुधार आ सकता है।’’मिसेज प्रतिभा ने कहा।

‘‘ मगर रोजगार है कहॉं ? अन्ना ने पूछा।

‘‘ है। गांवों से शहरों की ओर पलायन करने की संस्कृति को रोकने की जरूरत है गांव अपने स्तर पर रोजगार पैदा कर सकता है गांवों में बहुत संभावनाएं हैं और इन संभावनाओं को तलाशा जाना चाहिए। ’’अभिमन्यु बोल पड़ा।

तभी छुट्टी की घन्टी बजी। अभिमन्यु भी छात्रावास की ओर चल पड़ा।

***

(5)

इस कस्बेनुमा गांव में प्रधान जी का बोलबाला था। वे ही यहां के सर्वेसर्वा थे। आने वाला हर अफसर उनकी चौखट पर हाजरी देता था। मगर सामन्तशाही के विदा होने के साथ साथ प्रधान जी का रोबदाब कम होता जा रहा था। वे इस बात से परेशान थे। इधर नया विकास अधिकारी भी उन्हें कुछ नहीं समझता था। प्रधान जी का मकान कस्बे के बीचोंबीच था। वे जिले के मुख्यालय से छपने वाले स्थानीय पत्र को पढ़ रहे थे। पत्र में विद्यालय में पर्यावरण का्रर्यक्रम तथा वृक्षारोपण का समाचार विस्तार से छपा था। वे इस समाचार से नाराज थे। मगर कुछ कर नहीं पा रहे थे।इसी समय विद्यालय के प्राचार्य महोदय आये। और अभिवादन कर बोले।

‘‘आपने बुलाया था । ’’

‘‘ जी हां, आपके यहां जो नया लड़का आया है और जो छात्रावास का वार्डन भी है। क्या नाम है उसका ? ’’

‘‘ जी अभिमन्यु बाबू। ’’

‘‘ हां उसे थेाड़ा समझा देना। मेरे से पंगा लेकर वह ठीक नहीं कर रहा है। यहां पर हकूमत हमारी है। ये ठीक है कि वृक्षारोपण का हो गया। विकास अधिकारी की बात चल गयी। मगर अब आगे किसी नये काम में हाथ नहीं डालें तो ठीक होगा। ’’

‘‘ लेकिन वो हमारी जमीन थी और हमने उसका उपयोग किया। इसमें गलत क्या था ? ’’

‘‘ सवाल सही या गलत का नहीं है सवाल ये है कि क्या ये कल के छोकरे मुझे पढ़ायेंगे। ’’

‘‘ आप गलत समझ रहें है। अभिमन्यु बाबू ने केवल छात्रों तथा विद्यालय के हित में काम किया है। तथा र्प्यावरण में सुधार से सभी का फायदा है। वर्पा समय पर होगी। गरमी कम पड़ेगी। वातावरण ठीक रहेगा। पशुओं, पक्षियों, मनुप्यों, पेड़, पौधों सभी को शुद्ध वायु मिलेगी। ’’प्रचार्य ने विस्तार से समझाया।

‘‘ मुझे भाषण मत दो। मैं सब जानता हू। हम उस जमीन का अधिग्रहण कर सकते थे। मगर मैंने यह ठीक नहीं समझा। मेरी पहुच राजधानी तक है। ’’

‘‘ आप के प्रभाव से मैं इन्कार नहीं करता। ’’ प्राचार्य बोले।

‘‘ सवाल ये है कि मैं अपने आदमियों को कैसे समझाउं, वे कहीं कुछ कर बैठे तो तुम्हारे अभिमन्यु बाबू बड़ा कप्ट पायेंगे। ’’

‘‘ ठीक है सर मैं चलता हू। ’’

‘‘ हॉं उन्हें किसी सामाजिक झझंट से दूर रहने की सलाह देनां चुपचाप आये कक्षा लें और वेतन लें। ’’

प्राचार्य महोदय चले गये। उनके मन में कइ्र तरह के विचार आ रहे थे। वे प्रधान जी के निहित स्वार्थे तथा घटिया हथकण्डों से परिचित थे। इधर अभिमन्यु बाबू एक युवा उत्साही अध्यापक थे वे उनके उत्साह को भी बनाये रखना चाहते थे।

वे जब विद्यालय की ओर बढ़ रहे थे तभी छात्रावास का प्रोक्टर अवतार सिंह व कुछ अन्य छात्र दौड़ते हुए आये प्राचार्य से बोले-

‘‘ सर अभिमन्यु सर पर कातिलाना हमला हुआ हे वे बेहोश है। हम आपको खबर करने आये हैं कुछ अन्य छात्र अस्पताल ले गये हैं। ’’

‘‘ चलो अस्पताल चलते हैं। ’’ प्राचार्य व छात्र तेजी से अस्पताल की ओर चल पड़े। डाक्टर प्राचार्य से परिचित थे। बोले-

‘‘ घबराने की बात नहीं है। मामूली चोट आई है शायद हमलावर ज्यादा कुछ कर नहीं पाये। शीघ्र ही होश आ जायेगा।’’

तभी पुलिस वाले भी आये। अभिमन्यु बाबू एक खाट पर लेटे थे। सिर पर पट्टी थी। उन्होंने आंखे खोली। प्राचार्य व छात्रों को देख कर मुस्कराने की कोशिश की। कमला उनके पास ही खड़ी थी। प्राचार्य के पूछने पर अभिमन्यु बाबू ने पुलिस कार्यवाही के लिए मना कर दिया।

‘‘ ये छोटे मोटे हादसे तो होते रहते हैं सर। इनमें थाना, पुलिस, कोर्ट, कचहरी की नहीं आपसी समझ और सदभाव की जरूरत है। वे लोग अपनी गलती समझ जायेंगे। क्योंकि प्रधान जी के आदमी शायद जमीन के मामले में मेरे से नाराज थे। ’’अभिमन्यु बाबू ने शान्त स्वर में कहा।

‘‘ हां ये तो उन्होंने मुझसे भी कहा था। ’’ प्राचार्य बोल पड़े।

‘‘ सर आपकी इजाजत हो तो हिसाब-किताब बराबर कर दें। ’’ अवतार सिंह बोल पड़ा।

लिम्बाराम और असलम ने भी हां भरी। मगर अभिमन्यु बाबू तुरन्त बोल पड़े।

‘‘ नहीं नहीं। कभी नहीं। हमें हिंसा से नहीं प्यार और भाईचारे से उन्हें जीतना है। ’’

तभी खबर पाकर मिसेज प्रतिभा तथा अन्ना भी आ गयी। अभिमन्यु बाबू की देखरेख का जिम्मा प्राचार्य ने छात्रों को दिया। रात में व्यवस्था हेतु निर्देश देकर वे चले गये। अभिमन्यु बाबू आराम करने लगे।

कुछ दिन तक कस्बे में तनाव रहा मगर अभिमन्यु बाबू की सूझबूझ तथा छात्रों पर उनके नियंन्त्रण के कारण कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। बीमारी के दौरान अभिमन्यु बाबू ने घर पर खबर नहीं होने दी। वे स्वयं बीमारी से आत्मबल से लड़े और जल्दी ठीक हो गये। छात्रावास में आकर अभिमन्यु बाबू ने वृक्षारोपण की अपनी योजना को पुनः जारी रखा। वे सुबह क्लास लेते। सांयकाल वृक्षारोपण कार्यक्रम को देखते ओर रात में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते। बारिश का मौसम आ गया था। नन्हें नन्हें पौधे धीरे धीरे बढ़ रहे थे प्रकृति ने एक हरी मखमली चादर ओढ़ रखी थी। पौंधेां को देखकर अभिमन्यु बाबू अक्सर खुश होते। उन्हें लगता मानों सैकड़ों बच्चें एक साथ खिलखिला रहे हों।

लिम्बाराम और साथी मॉनीटरों ने छात्रावास के कमजोर छात्रों की एक सूची बनाकर उनको पढाने की व्यवस्था की। इससे छात्रों में एक नये उत्साह का संचार हुआ। असलम ने फुटवाल की टीमें बनाई और रोजाना मैदान पर अभ्यास करने लगा।

अवतार सिंह ने एक रोज आकर बताया कि छात्रावास के कमरा नम्बर पच्चीस में रहने वाला छात्र रंजन आजकल गुमसुम और अकेला रहता है। अभिमन्यु बाबू ने एक रोज शाम के समय रंजन को अपने कक्ष में बुलाया और उससे प्यार से पूछा।

‘‘ बोलो रंजन तुम्हें क्या परेशानी है, मैंन सुना है तुम कोई नशीली दवा खाने लगे हो। ’’

प्रारम्भ में तो रंजन मना करता रहा। मगर बाद में सहानुभूति पाकर बोल पड़ा।

‘‘ सर। मैं अत्यन्त दुखी और परेशान हू। मेरे माता-पिता के पास धन तो बहुत है मगर मेरे लिए समय बिल्कुल नहीं है इसी कारण छात्रावास में रहता हू। बचपन में महीनों मैं अपने पिता से बात नहीं कर पाता था। मम्मी अलग सामाजिक कार्यो में व्यस्त रहती थी। एक रोज मेरे मित्र ने मुझे यह डग का रास्ता दिखा दिया। ’’

‘‘ क्या छात्रावास में तुम्हारे अलावा भी कोई ऐसी दवा लेता है ? ’’

‘‘ नहीं। प्रारम्भ में मैंने एक आधा कश लिया मजा आया। फिर मैं आदि होने लगा। ’’

‘‘ अच्छा तुम मेरे साथ डाक्टर के चलो। ’’

पूरी बात सुनकर डाक्टर साहब बोले-

‘‘ नशीली दवाओं का सेवन एक विश्वव्यापी समस्या है मगर रंजन अभी प्रारम्भिक अवस्था में है। कुछ दवाओं और कुछ स्नेहभाव से ठीक हो जायेगा। ’’

अभिमन्यु बाबू ने रंजन के कमरे में लिम्बाराम की ड्यूटी लगा दी और रंजन में धीरे धीरे खोया हुआ आत्मविश्वास वापस आने लगा। उन्होंने प्राचार्य को कह कर रंजन के पिता को भी बुलाया। रंजन के पिता को सब कुछ समझाया गया। उन्होंने प्रतिमाह रंजन को देखने आने का वादा किया। अगली बार रंजन के माता पिता आये। रंजन उस दिन बहुत खुश था। मां बाप के जाने के बाद रंजन ने डग छोड़ने का निश्चय किया। अभिमन्यु, लिम्बाराम व अन्य छात्रों ने रंजन को अपने साथ रखा। धीरे-धीरे रंजन ठीक हो गया।

रंजन अब नशीली दवाओं के शिकंजे से बच गया था। वह छात्रावास के अन्य छात्रों को इन दवाओं, तम्बाकू आदि के कहर से अवगत कराने लगा। पढ़ाई के साथ साथ रंजन को इस काम में मजा आने लगा।

अभिमन्यु बाबू ने नशे से बचने के लिए छात्रों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से डाक्टर साहब की एक वार्ता छात्रावास में कराने का निश्चय किया। डाक्टर साहब इस कार्य हेतु सहर्प तैयार हो गये।

सायंकाल के समय छात्रावास के कॉमनहाल में अभिमन्यु बाबू ने सभी छात्रों को एकत्रित होने का निर्देश दिया। प्रारम्भिक उद्बोधन के बाद डाक्टर साहब ने अपनी बातचीत प्रारम्भ की। उन्होंने कहा- मैं भापण देने के बजाय आन लोगों के साथ एक संवाद कायम करके अपनी बात कहूंगा ताकि आप लोग नशे की बुराईयों और उसके दुप्प्रभाव को आसानी से समझ सकें। ’’

‘‘ वास्तव में मादक द्रव्यों का प्रयोग एक गंभीर विश्वव्यापी समस्या है। आज की पीढ़ी की सामाजिक, व मानसिक स्थिति कल की पीढ़ी से अलग है। पीढ़ियों के इस अन्तराल के कारण एक संवादहीनता की स्थिति बन गयी है, ओर आज का युवा इस संवादहीनता का हल नशीली चीजों में तलाशता है। रंजन ने यही किया था। उसके पिता माता से उसका संवाद नहीं हो रहा था। क्यों रंजन। ’’

‘‘ जी हां डाक्टर साहब मैं अकेलेपन और उपेक्षा से उब गया था । ’’

‘‘ तुम ठीक कहते हो रंजन। उपेक्षा के कारण व्यक्ति नशे की और प्रव्रत होता है। शहरी परिवेश, समाज, पाश्चात्य संस्कृति आदि कारण भी युवा को नशे की आंर धकेलते हैं। ऐसी स्थिति में कोई साथी उन्हें दवा की पहली खुराक देता है, मजा आता है और फिर व्यक्ति उसका आदि हो जाता है। आज प्रतिवर्प लाखों लोग तम्बाकू के सेवन से मर रहे हैं। तम्बाकू के अलावा, गांजा, चरस, अफीम, हेरोहन, बा्रउनश्शुगर, स्मेक आदि दवाओं का घातक असर ह्दय संस्थान, फेफडों, दिमाग आदि पर होता है। ’’

‘‘ लेकिन सर क्या नशे से पीडित व्क्ति को सामाजिक तिरस्कार से ठीक किया जा सकता है ? ’’ लिम्बाराम ने पूछा।

‘‘ नहीं बेटे। नशे से पीड़ित व्क्ति को सहानुभूति चाहिए। उस कारण का पता लगना चाहिए जिससे वह नशे का आदि होता है। तभी उसे नशे की लत से छुटकारा दिलाया जा सकता है। ’’डाक्टर साहब ने शंका समाधान किया।

नशे वाले युवा को प्यार, सहानुभूति से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने उपसंहर किया।

छात्रों पर वार्ता का बहुत अधिक असर हुआ।

रंजन व कुछ अन्य छात्रों ने मिलकर कस्बे के युवाओं को तम्बाकू सेवन के नुकसान बताने हेतु एक शिविर लगाया। शिविर से कस्बे में एक जागरूकता आई। परिणाम स्वरूप कई युवाओं ने तम्बाकू के सेवन से बचने की कसम खाई।

मगर प्रधान जी के आदमी इस धटना से फिर नाराज हो गये। उनके ही आदमी डग बेचते थे। अभिमन्यु बाबू के इस प्रयास पर फिर एक रोज प्राचार्य को टेलिफोन पर कहने लगे।

‘‘ देखो प्रिंसिपल साहब ये सब ठीक नहीं है। ’’ अभिमन्यु बाबू इसी तरह करते रहे तो हमें दूसरे रास्ते काम में लाने होंगे। ’’ प्राचार्य को धमकी देते हुए प्रधान जी बोले।

‘‘ वो तो आप अजमा चुके हैं। अभिमन्यु बाबू पर हमला हो चुका है। ’’

वो मेरा काम नहीं था। मैं उन्हें हटवा दूंगा। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। ’’

‘‘ देखिये प्रधान जी अध्यापक का जो दायित्व हैं वही अभिमन्यु बाबू कर रहे हैं। इस लड़ाई में मैं उनके साथ हू। क्योंकि सच्चाई, इमानदारी और नैतिकता हमारे साथ है हमारा रास्ता इन्साफ का रास्ता है। ’’प्राचार्य बोले।

‘‘ मैं तुम्हें भी समझा रहा हू। ’’

‘‘ मैं जानता हू आप क्या कहना चाहते हैं मगर अध्यापक के पास नैतिक बल के अलावा है ही क्या, हम इसी बल पर जिन्दा हैं और रहेंगे। ’’

‘‘ जैसी तुम्हारी मर्जी। मैं अपने आदमियों को नाराज नहीं कर सकता।’’ ये कहकर प्रधान जी ने टेलिफोन रख दिया।

प्राचार्य ने एक गहरी सांस ली और स्टाफ रूम की ओर चल पड़े। वहां पर अभिमन्यु बाबू व अन्य अध्यापक थे। प्राचार्य ने संक्षेप में प्रधान जी से हुई बातचीत का ब्योरा दिया। तो गणित के गुप्ता जी बोल पड़े।

‘‘ हमें इन सब झगड़ो में पड़ने की जरूरत क्या है ? ’’

‘‘ हम अपनी कक्षा ले और आराम करें।’’ चन्द्र मोहन शार्मा बोल पड़े। कुछ अन्य अध्यापकों ने भी उनका साथ दिया। तभी मिसेज प्रतिभा ने कहा हम सब मिलकर यदि किसी अच्छे काम में साथ नहीं दे सकते तो हमारे होने का अर्थ ही क्या रह जाता है ? ’’

अभिमन्यु बाबू ने लड़कों में नशीली दवा की आदत छुड़ाने के प्रयास किये तो सभी को अच्छा लगना चाहिए। आखिर यह एक विश्वव्यापी समस्या है और एक पूरी पीढ़ी के भविप्य का प्रश्न है। क्या गुमराह पीढ़ी को सही रास्ता दिखाना हमारा कर्तव्य नहीं है। ’’

‘‘ समस्या का निदान यह तो नहीं कि हम कस्बे के प्रभावशाली लोगों से लड़ें। ’’

‘‘ हम कहां लड़ रहें हैं। ’’प्राचार्य बोले। ‘‘और न ही हमें लड़ना है। ’’

‘‘ हमारी जिम्मेदारी हमारे छात्र और उनका सर्वागींण विकास है। हमें नैतिक मूल्यों की रक्षा करनी है। ’’

‘‘ आप ठीक कहते हैं सर। ’’पहली बार अभिमन्यु बोल पड़ा।

‘‘ समाज में व्याप्त बुराई का यदि एक अत्यन्त छोटा सा हिस्सा भी हम नप्ट कर सकें तो यह हमारी एक बड़ी सफलता होगी और इस सफलता के लिए हमें कुछ सहन भी करना पड़े तो करना चाहिए। ’’ अभिमन्यु ने दृढ स्वर में कहा।’’ और फिर समस्याओं से भागकर हम जायेंगे कहॉं, वे तो साये की तरह हमारे पीछे लगी रहेगी। हमें समस्याओं से निपटना पड़गा। चाहे वे सामाजिक हो या आर्थिक या राजनैतिक या फिर मानसिक। ’’

‘‘ ठीक है। प्राचार्य बोल पड़े। अगले महीने हम विद्यालय में भी कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम करेंगे। मैं चाहता हूं कि इन कार्यक्रमों की बागडोर मिसेज प्रतिभा आप संभाले।’’

‘‘ जैसा आप उचित समझें। ’’

छुट्टी की घन्टी बजी।

सभी लोग अपने अपने घरों की ओर चल पड़े।

***

सायंकाल का समय था। अन्ना और मिसेज प्रतिभा टहलती हुई छात्रावास में आई। कमला वहीं थी। वे तीनों बातें करने लगी। थोड़ी देर में अभिमन्यु बाबू मेस की व्यवस्था देखकर लौटे, तो बोले।

‘‘ अन्ना जी आपका प्रोजेक्ट कैसा चल रहा है ? ’’

‘‘ ठीक चल रहा है। अगले माह प्रोफेसर यहॉं आयेंगे तब पूरी जानकारी हो सकेगी।’’

‘‘ अच्छा तब सांस्कृतिक कार्यक्रम में उन्हें ही मुख्य अतिथि बना लें। ’’ प्रतिभा ने कहा।

‘‘ हां हां क्यों नहीं यह तो खुशी की बात होगी।’’ अन्ना बोल पड़ी। अभिमन्यु ने भी सहमति जता दी।

सेचती हूं इस बार सांस्कृतिक कार्यक्रम में कुछ नया करें। आप क्या सोचते है।’’

‘‘ नया अवश्य करें, मगर समस्या-प्रधान चीजें लें, तोकि हम नई पीढ़ी को कोई सन्देश दे सकें। बालविवाह, बालिका शिक्षा, नशीली दवाओं से बचाव आदि पर कोई वाद विवाद या नाटक किया जा सकता हे। ’’

हम नशाबन्दी, मिलावट, अर्थशुचिता, पर भी कुछ कार्यक्रम कर सकते हैं। ’’ अभिमन्यु ने विपय सुझाये। अन्ना ने कहा।

‘‘ हम छात्र-श्क्षिा संबन्धों पर भी चर्चा कर सकते हैं। विपयों की कमी नहीं है। ’’

‘‘ हां विपय तो और भी हो सकते हैं, विधवा विवाह, दहेज, कालाबाजारी, गांवों से पलायन, स्वरोजगार आदि। मगर कार्यक्रमों का स्वरूप कैसा हो ? ’’ मिसेज प्रतिभा ने जानना चाहा।

‘‘ कार्यक्रम जनरूचिकर तथा शिक्षप्रद भी हो।’’ अभिमन्यु की बाते मिसेज प्रतिभा को जम गयी।

अब बातचीत का विपय अन्ना का प्रोजक्ट हो गया। तभी कमला चाय बना लाई। चाय पीते हुए अन्ना बोली।

‘‘ पुरूप प्रधान समाज में नारी की स्थिति कैसे सुधर सकती है ? ’’

‘‘ ष्शायद आप गलत सोचती हैं। नारी ही नारी की सबसे बड़ी शत्रु है। एक नारी दूसरी नारी का शोपण करती है। धर में भी और समाज में भी। मामला दहेज का हो या शिक्षा का। नारी नारी का साथ नहीं देती। ’’ अभिमन्यु बोला।

‘‘ मैंने यूरोप में भी देखा और अपने देश में भी। वहां भी मन भटकता है। यहां भी भटकता है भटकाव ही औरत की जिन्दगी है क्या ? ’’

‘‘ नहीं। भारतीय परम्परा और संस्कृति में नारी मन में भटकाव नहीं है भटकाव पाश्चात्य संस्कृति की देन है। और अभी भी औरत स्त्री भटकाव में नहीं लगाव में जीती है और यही कारण है कि हमारे देश में शादी एक पवित्र बन्धन है। ’’ अभिमन्यु बोला।

‘‘ हां ये तो है। ’’ मिसेज प्रतिभा ने कहा।

इसी कारण पश्चिम की तुलना में हमारे समाज में स्थायित्व है। मन धर परिवार में एकाकार हो जाता है। आस्थावादी विचारों के कारण भारतीय जन मानस स्वयं का ही नहीं सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करता है वह सब को साथ लेकर चलता है। सब के प्रति समभाव। धर्म हमारे लिए एक साधन है। बाधा नहीं। ’’ अभिमन्यु ने कहा।

तभी छात्रावास के चौकीदार ने आकर अभिमन्यु के हाथ में तार दिया। तार अभिमन्यु बाबू के धर से आया था उनके पिताजी की तबियत ठीक नहीं थी।

अभिमन्यु बाबू ने तुरन्त कमला से कहा तैयार हो जाओ। हम अभी गॉंव चलेंगे। ’’

मिसेज प्रतिभा ने कहा-‘‘ आप बापू व मां को यहीं ले आईयें ’’

अन्ना ने भी कहा-‘‘ हां यहीं ठीक रहेगा यहां पर चिकित्या की सुविधा भी अच्छी है। ’’

अभिमन्यु बाबू बोले-‘‘ मैं तो शुरू से ही इसी कोशिश में था। मगर मॉं बापू मानते ीही नहीं थे। अब जाकर ले ही आता हू। ’’

‘‘ आप ज्यादा चिन्ता नहीं करे। इैश्वर सब ठीक करेगा। उसमें आस्था से जीवन की हर कठिन घड़ी गुजर जाती है। ’’ मिसेज प्रतिभा ने अभिमन्यु को सांत्वना दी।

‘‘ अमंगल में मंगल छिपा है। सब ठीक हो जायेगा। ’’ अन्ना ने भी कहा।

‘‘ अच्छा हम चलते हैं। आप बापू-मां को लेकर जल्दी आईयेगा। ’’ ये कहकर अन्ना मिसेज प्रतिभा चल पड़ी।

अन्ना व मिसेज प्रतिभा के जाने के बाद अभिमन्यु व कमला ने बस पकड़ी और गांव पहुंच गये।

***

(6)

अभिमन्यु और कमला जब गांव पहुंचे तो रात गहरा चुकी थी। गॉंव सुनसान और नीरव था, अपने घर तक पहुचने में अभिमन्यु ने शीघ्रता बरती। घर के बाहर ही उसे अकबर मिल गया।

‘‘ कैसे हैं बाबूजी। ’’ अभिमन्यु ने अधीरता से पूछा।

‘‘ अब ठीक है। वे सो रहे हैं। मां उनके सिरहाने बैठी हैं। ’’

कमला तुरन्त भीतर चली गयी। वो मां से लिपटकर रो पड़ी। अभिमन्यु भी अन्दर आया। मॉं के चरण छुए। बाबूजी के बारे में पूछने लगा।

‘‘ क्या हुआ था। ’’

‘‘ अब बुढ़ापा सबसे बड़ी बीमारी है बेटा। ’’ मां ने रोते हुए कहा।

‘‘ कुछ दिन बुखार रहा। वैधजी की दवा दी । फायदा नहीं हुआ। एक रोज बेहोश हो गये। फिर होश आया तो बॉंया हिस्सा काम नहीं करता है। ’’

‘‘ अभिमन्यु, बापू के लकवा हो गया है। ’’ अकबर ने हकीकत बताई।

‘‘ मां अब मैं तुम दोनों को यहां नहीं रहने दूंगा। कल सुबह ही बापू को लेकर राजपुर चलेंगे। वहीं अच्छा इलाज भी हो सकेगां ’’

‘‘ जैसा तुम ठीक समझो बेटा। अब हमारे दिन ही कितने हैं काश तुम शादी कर लेते तो कुछ चैन मिलता। ’’

तभी अभिमन्यु के बापू ने ऑंखें खोली। पहचानने की कोशिश की।

अभिमन्यु ने चरण छुए। वह बापू के शरीर पर मालिश करने लगा। मां व कमला घर के काम में लग गयी।

अकबर चला गया। अभिमन्यु सूने कमरे में अकेले चुपचाप विचार करने लगा। उसे याद आया हाड़ तोड़ मेहनत कर घर चलाने वाला बापू, आज कैसी असहाय स्थिति में है। उसे अपने घर परिवार के अभाव, भूख, बेकारी के दिन भी याद आये। उसका मन उदास हो गया। उसे याद आया बचपन में नंगे पांव स्कूल जाना। एक ही कुर्ते को रात में धोकर सुबह पहन कर परीक्षा देने जाना। इस गांव से कितनी यादें जुड़ी हुई है। बचपन और जवानी की यादें। जिन्दगी की कठोर यादें अभावों की यादें। भूख और प्यास की यादें। अकाल की यादें। उसे फिर याद आया किस तरह परीक्षा के दिनों में भी उसने अकबर का कुर्ता पहन कर परीक्षा दी थी, क्योंकि उसका इकलौता कुर्ता नदी में बह गया था। और तुरन्त दूसरा कुर्ता बनवाने को पैसे नहीं थे। इसी गांव के पोस्ट आफिस के बाहर बैठकर उसने लोगों के पत्र और तार लिखे थे। कभी निःशुल्क और कभी पैसे लेकर ताकि अपनी पढ़ाई जारी रख सके। उसकी आंखें भर आई। बापू ने एकाध बार तो उसके स्कूल की फीस मां के गहने बेचकर भरी थी। समय ने सब धो दिया। बापू ने तभी पानी मांगा। अभिमन्यु तन्द्रा से जागा। बापू को पानी पिलाया। खुद भी पिया। रात काफी बीत गयी थी। अभिमन्यु वहीं बापू के पैंताने सो रहा।

सुबह अभिमन्यु, मां, कमला और बापू को लेकर राजपुर चला आया। वहां पर सर्वप्रथम अभिमन्यु ने बापू को डाक्टर साहब को दिखाया और दवा शुरू हुई। धीरे धीरे बापू की तबियत सम्भलने लगी। विद्यालय के अध्यापक भी अभिमन्यु के घर पर कुशलक्षेम पूछने आये। छात्रावास की व्यवस्था अभिमन्यु ने पुनः सम्भाल ली ।

रंजन की नशीली दवा लेने की आदत छूट चुकी थी। कमजोर बच्चों को लिम्बाराम व अन्य होशियार छात्र पढ़ा रहे थे। वृक्षारोपण तथा मैदान का काम ठीक था। छात्र सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी में व्यस्त थे। कुछ छात्र मिलकर एक पत्रिका भी निकालना चाहते थे। शायद हस्तलिखित भित्ति पत्रिका की योजना थी।

इधर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी अभिमन्यु रात को पुनः करने लगा। उसे अपने सफल होने की उम्मीद भी थी। प्रारम्भिक लिखित परीक्षा वह पास कर चुका था। अभी अन्तिम लिखित परीक्षा होने में तीन माह थे वह बापू की बीमारी के कारण कुछ परेशान था। मगर मां व कमला सब सम्भाल रही थी। यदा कदा मिसेज प्रतिभा तथा अन्ना भी आ जाती थी। बापू की तबियत संभल रही थी अब वे खाट पर बैठ सकते थे। बोलने लग गये थे।

अभिमन्यु ने मां से कहा- ‘‘ मॉं मुझे विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कुछ समय ज्यादा देना पड़ सकता है। ’’

‘‘ ठीक है बेटा तुम काम में व्यस्त हो जाओ मैं और कमला सब सम्भाल लेंगी। ’’

***

विद्यालयके स्टाफ रूम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के क्रम में प्राचार्य ने अध्यापकों तथा कक्षाओं के मॉनीटरों का एक उपवेशन बुलाया था। सभी लोग प्राचार्य कक्ष में उपस्थित थे।

मिसेज प्रतिभा ने सर्वप्रथम सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की। तीन दिन तक चलने वाले इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में समाजविज्ञान के प्रोफेसर सिंह आ रहे थे। उसकी स्वीकृति मिल चुंकी थी। समारोह में नाटक, वाद-विवाद तथा निबन्ध प्रतियोगिताएं होनी थी। खेलकूद प्रतियोगिताएं अलग चल रही थी। कुछ छात्रों ने एक पत्रिका निकालने की बात कही। प्राचार्य महोदय ने एक हस्तलिखित पत्रिका निकालने की व्यवस्था करने के निर्देश एन्टोनी सर को दिये ताकि छात्रों की सृजनात्मक प्रतिभा प्रकाश में आयें।

अन्तिम दिन समापन समारोह में पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में विकास अधिकारी के बुलाने का निश्चय किया गया। प्राचार्य ने मिसेज प्रतिभा के साथ कुछ अन्य छात्रों तथा अध्यापकों की ड्यूटी लगा दी ताकि काम सुचारू रूप से चल सके । उद्घाटन सत्र के तुरन्त बाद वाद-विवाद प्रतियोगिता रखी गयी थी। विपय भी रोचक था। ‘‘दहेज प्रथा का औचित्य’’ छात्रों में उत्साह था। अध्यापक भी इस कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटे हुए थे। अगले सोमवार से कार्यक्रम शुरू होने थे। सोमवार आया। जयपुर के प्रोफेसर सिंह निर्धारित समय पर अन्ना के यहां आ गये। अन्ना ने अपनी प्रोजेक्ट रपट दिखाई। प्रोजेक्ट की प्रगति से वे खुश थे। सन्तुप्ट भी। आशा भी साथ आयी थी। अन्ना व आशा आपस में बतियाने लगी। तभी प्रतिभा ने कहा।

‘‘ चलो स्कूल में कार्यक्रम के उद्घाटन का समय हो रहा है। ’’

प्रो.सिंह ने कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया, छात्रों ने सभा भवन को खूब सजाया था।

प्रारम्भ में प्राचार्य महोदय ने विद्यालय के इतिहास पर प्रकाश डाला। प्रो.सिंह ने अपने संक्षिप्त मगर सारगर्भित भापण में देश की इस नई पीढ़ी को भावी कर्णधार बताया। उन्होंने नये युग के निर्माण की महत्ता को समझाया और छात्रों को युग निर्माता की संज्ञा दी।

कार्यक्रम चल ही रहा था कि बिजली घुल हो गयी। तभी एक कोने से शोर शराबा हुआ कुछ छात्र आपस में झगड़ने लगे। कुछ अध्यापक दौड़े मगर तब तक देर हो चुकी थी। भीड में प्रधान के आदमी धुस आये थे। असामाजिक तत्वों ने मिलकर तोड़ फोड़ नारेबाजी शुरू कर दी थी। ’’

प्राचार्य महोदय ने मौके की नजाकत को सम्भालते हुए मंच से कहा

‘‘ आप लोग शांत हो जाइयें विद्यालय की गरिमा का ध्यान रखिये। हम सब इसी विद्यालय की प्रतिप्ठा से जुड़े हुए हैं।

तभी कोइ्र चीज सनसनाती हुई और अभिमन्यु बाबू के सिर पर लगी। उनके सिर से खून बहने लगां सारा वातावरण बिगड़ गया। शोरगुल, अन्धकार और आपा धापी का माहोल बन गया, प्राचार्य की आवाज शोर में डूब गयी।

अभिमन्यु बाबू को तुरन्त अस्पताल ले जाया गया उन्हें मरहम पट्टी के बाद छुट्टी दे दी गयी। कस्बें में भी तनाव था। छात्र उत्तेजित थे। वे दो दो हाथ करना चाहते थे। कस्बे में जनता भी प्रधानजी व उनके आदमियों से तंग आ चुकी थी। मगर अभिमन्यु बाबू, प्राचार्य आदि ने छात्रों को समझाकर शान्त किया।

मगर छात्रों के मन में प्रधान जी के प्रति आक्रोश था। वृक्षारोपण का मामला, फिर रंजन तथा कुछ अन्य को नशीली दवांए बेचने का मामला आदि से कस्बे की आम जनता तथा छात्र सभी परेशान थे। मगर वे लोग मजबूर थें कई बार कस्बे वालों ने कोशिश की थी। मगर प्रधान जी के हाथ लम्बें थे। पुलिस-प्रशासन उन पर हाथ डालने में झिझकता था। वे एक तरह से माफिया लीडर हो गये थे।

विद्यालय में घटी घटना का विवरण अखबारों में छपा था। छात्र फिर उत्तेजित हो रहे थे। छात्रावास में मिटिंग करते। मगर अभी तक कार्यवाही नहीं की गयी थी। अभिमन्यु अक्सर घूम घूम कर छात्रों को समझाता। प्राचार्य ने समारोह को समाप्त धोपित कर दिया। पुरस्कार विजेता छात्रों को पुरस्कार दे दिये गये। छात्रों का एक दल इन सबसे अलग अध्ययन में व्यस्त हो गया। परीक्षाएं पास आ रही थी।

अभिमन्यु भी अपनी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग गयां बापू का स्वास्थ्य धीरे धीरे सुधर रहा था।

एक रोज शाम को वो छात्रावास में अपने कक्ष में बैठा था तभी प्रोक्टर अवतार सिंह आया। कहने लगा।

‘‘ सर एक इशारे की देर है हम सब मिलकर प्रधानजी व उनके आदमियों से निपट सकते हैं। ’’

‘‘ नहीं अवतार सिंह हमें यह नहीं करना है। पाप का धड़ा भरने दो अपने आप फूट जायेगा। ’’

‘‘ मगर सर आप तो कहते थे कि अन्याय को सहना भी अन्याय है। ’’

‘‘ हां मैं अब भी कहता हॅं। मगर जब तक पुण्य है तब तक व्यक्ति की ज्यादतियां चलती है। पाप का घड़ा तो रावण का भी भर गया था। और फिर वह स्वतः नियति के हाथों नप्ट हो गया था। ’’

‘‘ ठीक है सर। सर एक ओर बात है मेरे चाचा अपनी लड़की का ब्याह जल्दी करना चाहते है। वो अभी बारह वर्प की ही है। ’’

‘‘ ये तो गलत है। बाल विवाह कानूनन अपराध है इसके लिए शारदा एक्ट बन चुका है। ’’

‘‘ हमने समझाया मगर चाचा मानते ही नहीं है। ’’

‘‘ भैया मुझे ले चलो। गांव के बड़े बुजुर्गो को इकटठा करो। ’’ ये सब तो रोकना ही पड़ेगा। यदि सामाजिक बुराइयों को नहीं रोक सकते तो हमारा पढ़ा लिखा होना बेकार हे। ’’

‘‘ चाचाजी कहते हैं। जल्दी शादी से कई परेशानियों से बच सकते हैं। फिर गोना तो देर से करते हैं। ’’

‘‘ चाचाजी गलत कहते हैं। जल्दी शादी से सैंकड़ों परेशानियॉं पैदा होती है। तुम चाचाजी को समझाओं। उन्हें पत्र लिखो। जरूरत पड़े तो मुझे ले चलो। ये नहीं होना चाहिए। अपने गांव के सरपंच की मदद लो। ’’

‘‘ मैं फिर कोशिश करता हूं। सर आप चलते तो ठीक रहता। ’’

तभी अन्ना अपने प्रोफेसर सिंह के साथ आई।

‘‘ आप अभी यहीं हैं प्रोफेसर साहब ’’। अभिमन्यु ने अभिवादन के बाद पूछा।

‘‘ हां सोचा कुछ दिन रहकर यहां के गांवों में स्त्री व बच्चों की स्थिति पर एक पुस्तक लिखूं। ’’

‘‘ये तो खूब अच्छी बात है। ’’

‘‘ लेकिन मुश्किल ये है कि गांवों के लोग ज्यादा सहयोग नहीं करते हैं।’’ अन्ना बोल पड़ी।

हां तुम ठीक कहती हो। ’’

‘‘ इस अवतार सिंह के चाचाजी अपनी लड़की का बाल विवाह करना चाहते हैं मगर हम सभी को मिलकर इसे रोकना होगा।’’

‘‘ हां सर आप सभी चलियें।’’ अवतार सिंह बोला। मामला प्रोफेसर सिंह व अन्ना की रूचि का था सो अवतार सिंह, के साथ सभी उसके गांव चल पड़े। गांव पास ही था। अवतार सिंह ने अपने घर में जाकर चाचा को बताया कि उसके अध्यापक तथा बड़े प्रोफेसर साहब आये है चाचा शुरू में नाराज हुए। मगर अभिमन्यु बाबू के तर्को तथा प्रोफेसर सिंह के निवेदन से बात उनकी समझ में आयी। अभिमन्यु ने अवतार सिंह के चाचा से कहा-

‘‘ देखिये। आपकी लड़की अभी कुल बारह वर्प की है। अभी तो इसके खेलने खाने के दिन हैं।’’

‘‘ लेकिन बाद में बिरादरी में लड़का आसानी से नहीं मिलता है। गांव में बदनामी होती है। ’’

‘‘ काहे की बदनामी। सरकार ने इस बाल विवाह को गैर कानूनी घोपित कर रखा हे।’’

‘‘ सवाल कानून का नहीं है मास्टर जी। सवाल समाज और गांव तथा बिरादरी का है आप तो चले जायेंगे। हमें तो यहीं रहना है। ’’

‘‘ देखिये हम सभी आपसे निवेदन करते हैं कि इस बाल विवाह को रोकिये। यह एक सामाजिक अपराध है।’’ प्रो.सिंह बोले।

अवतार सिंह और अभिमन्यु बाबू ने भी समझाया।

गांव के सरपंच भी आ गये। धीरे धीरे अवतार सिंह के चाचा पर बातों का असर हुआ उसने अपनी बच्ची का विवाह अठ्ठारह वर्प पर करने का निश्चय कियां उसने बाल विवाह नहीं करने की सौगन्ध के साथ ही गांव में सरपंच के साथ मिलकर बाल विवाह रोकने में सहयोग करने की सौगन्ध खाई इस सफलता से सभी बड़े खुश थे। वे रात में ही वापस राजपुर लौट आये। अन्ना ने प्रोजेक्ट में इस घटना का वर्णन विस्तार से करने का निश्चय किया। दूसरे दिन प्रोफेसर साहब वापस चले गयें समाचार छपाया। चारों तरफ अभिमन्यु बाबू की तारीफ हुई। साथी अध्यापक भी खुश हुए प्राचार्य ने अभिमन्यु बाबू को बुला कर शाबाशी दी ।

इसी बीच राजपुर के प्रधान जी ने कुछ लोगों को इकठ्ठा किया और अभिमन्यु बाबू के खिलाफ भड़काया। कुछ लोग इस बात से भी नाराज थे कि विवाह जैसे पवित्र कार्य में भी अभिमन्यु बाबू रोड़ा अटकाते हैं। मगर अभिमन्यु बाबू ने कोइ्र प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।

विद्यालय में अध्यापन के बाद अभिमन्यु बाबू छात्रावास में अपने क्वार्टर में आते। बापू की सेवा सुश्रुपा करते और कमला की पढ़ाई-लिखाई देखते। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते।

***

एक दिन अभिमन्यु बाबू को प्राचार्य ने अपने कक्ष में बुलाया और कहा-

‘‘ अभिमन्यु बाबू मैं इस लड़ाई में तो आपके साथ हू क्योंकि आप सच्चाई, ईमानदारी, और नैतिक मूल्यों के लिए काम कर रहे हैं मगर मेरी कुछ सीमाएं है और आप जानते होंगे कि एक सीमा के बाद हमस ब केवल मूकदर्शक रह जाते हे। ’’

‘‘ आपसे सहमत हू सर। मगर आप चिन्ता नहीं करे। मेरा दायित्व में खूब समझता हू। इसका अन्तिम परिणाम स्थानान्तरण या प्रोबेशन पर होने के कारण बर्खास्तगी भी जानता हू। ’’ अभिमन्यु बाबू ने अपना पक्ष रखा।

‘‘ बात ये है अभिमन्यु बाबू कि आज सुवह ही प्रधान जी का फोन आया था, वे एक बार आपसे मिलना चाहते है मेरा भी ख्याल है कि मिल लेने में हर्ज ही क्या है। आपकी और उनकी कोई व्यक्तिगत लड़ाई तो है नहीं ’’

‘‘ लड़ाई तो स्वार्थो और मूल्यों के बीच है सर। ’’

‘‘ और फिर वे एक बार पिटवा चुके हैं धमकियां दिलवा चुके हैं। फिर मिलने का औचित्य क्या है ? ’’

‘‘ मेरी सलाह मानकर एक बार आप उनसे मिल लें। शायद बात सुलझ जाये वे यह बात आपके भविप्य के लिहाज से कहा हू। आज सांयकाल आप मेरे साथ उनके यहां चलेंगे। ’’

‘‘ यदि यह आपका आदेश है तो मुझे स्वीकार है। मैं सांयकाल आपके साथ चला चलूंगा।’’ यह कह कर अभिमन्यु बाबू बाहर आ गये। सारे दिन उनका किसी काम में मन नहीं लगा। सांयकाल के समय प्राचार्य प्रधानजी के बंगले पर पहुचे वहां पर कुछ लोग पहले से ही थे। एक दो को और अभिमन्यु बाबू ने पहचान लिया। प्रधान जी ने कहा।

‘‘ देखो अभिमन्यु तुम सुधार के अच्छे काम कर रहे हो। ’’ मुझे भी यह सब अच्छा लगता है। मगर प्रजातन्त्र में सबके हितों को ध्यान में रखना पड़ता है। अब देखों तुमने मेस के इस ठेकेदार के काम को बन्द कर दिया। ’’

‘‘ तो क्या मिलावटी खाना खिलाकर बच्चेां को बीमार कर देता ? ’’

‘‘ देखों खाने से कोई नहीं मरता, भूख से मरते हैं। ’’ और ये किशनबाबू के दवा का तो कारोबार ही चौपट हो गया। कोई भी इनकी दुकान से दवा खरीदनें नहीं आता। ’’

‘‘ तो इसमें मेरा क्या कसूर है ? वे नशीली दवा का धन्धा करते थे। पकड़े गये। छापा पड़ा। बदनाम हुए। अखबारों में छपा। ’’ अभिमन्यु बाबू उखड़ गये।

‘‘ मेरी बात ध्यान से सुन लो।’’ ‘‘प्रधान जी ने कठोर आवाज में कहा। ’’

‘‘ इसी प्रकार आसपास के गांवों में शिक्षा के नाम पर बाल विवाह राकने के प्रयास भी तुमने तथा तुम्हारे छात्रों ने किये हैं। ’’

‘‘ यह एक सामाजिक बुराई है और इसे रोकना जरूरी हैं ’’

‘‘ सदियों से चली आ रही परम्परा बुराई नहीं होती। ’’

‘‘ दादा अपने पोते का व्याह अपने सामने करना चाहता है फिर गोना बाद में युवावस्था में होता है इसमें बुराई क्या है। ’’

‘‘ बुराई ये है कि ष्शादी दो पवित्र आत्माओं का मिलन है।’’ गुड्डे गुड्डियों का ब्याह नही. ’’

ठीक है छोड़ो इस बात को। मैंने तुम्हें और प्राचार्य को यह कहने बुलाया है कि आप लोग अपने काम से काम रखो। इन व्यर्थ के प्रपन्चों में नहीं पड़ों।’’ ‘‘ ये व्यर्थ के प्रपंच नहीं है। प्रधान जी।’’ इस बार प्राचार्य बोल पड़े। ‘‘ ये हमारी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हम सभी को इस यज्ञ में मदद करनी चाहिए।’’

‘‘ देखो प्रिन्सिपल साहब मैं आपको फिर समझाता हू। ’’ कि आप वृक्षारोपण वाली जमीन से हाथ खींच लें। ’’

‘‘ ऐसा कैसे हो सकता है। यह तो विद्यालय की जमीन है।’’

‘‘ मेरे हाथ बहुत लम्बे हैं। ’’ इस बार प्रधान जी ने सीधा वार किया।

‘‘ मैं आप दोनों का टान्सफर करा दूंगा। या फिर राजधानी जाकर अभिमन्यु बाबू को बर्खास्त करा दूंगा। आप दोनों अपने आपको समझते क्या हैं।’’

अब अभिमन्यु बाबू ने क्रोध में आकर कहा।

‘‘ आप जो चाहे कर लें। हमें अपने मार्ग पर चलने दें। आप की हरकतों का जवाब देने के बजाय हम अपना काम करना ज्यादा पसन्द करेंगे। हमारा काम ही हमारा जवाब है। ’’

‘‘ ठीक है फिर मैं आपको देख लूंगा। ’’

प्रधान जी के यहां से अभिमन्यु बाबू सीधे छात्रावास की ओर चल पड़े। प्राचार्य भी चले गये। अभिमन्यु बाबू का मन उदास था। रास्ते में छात्र मिले। मगर उन्होंने ध्यान नहीं दिया सीधे अपने कक्ष में आये। बापू अब ठीक थे। कमला की परीक्षाएं चल रही थी अभिमन्यु बाबू चुपचाप छत पर टहलने लगे। कुछ ही दिनों में प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू होने वाली थी। उन्होंने अपना ध्यान परीक्षा की ओर केन्द्रत करने का निश्चय किया ओर सो गये।

***

(7)

अन्ना अपने कमरे में मिसेज प्रतिभा के साथ अपनी सर्वेक्षण रपट को अन्तिम रूप देने के पूर्व विमर्श कर रही थी। बातचीत को शुरू करते हुए अन्ना ने कहा।

‘‘ ग्रामीण क्षेत्र में बालिकाओं पर कभी ध्यान नहीं दिया है। उन्हें हमेशा एक भार समझा गया। इसका बड़ा मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। और ये बालिकाएं बड़ी होकर जब मॉं बनती है या गृहस्थ जीवन में प्रवेश करती है तब भी अपने आपको कमजोर, असहाय समझती हुइ्र हमेशा किसी के सहारे जीवन यापन करती है। ’’

‘‘ तुम ठीक कहती हो लेकिन बालिकाओं पर अब ध्यान दिया जाने लगा है उन्हें अब पढ़ने भी भेजा जाता है। बीमार होने पर इलाज भी कराया जाता है। ’’ मिसेज प्रतिभा ने बात को आगे बढ़ाया।

‘‘ लेकिन सबसे अहम समस्या तो शिक्षा की है। खासकर प्रोढ़ महिलाओं की शिक्षा तथा उत्तर साक्षरता की और अभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। एक और बात जो मैने सर्वे के दौरान महसूस की है वो ये कि हर कोई यह समझता है कि पढ़ने का कोई लाभ लड़की या महिला को मिलने वाला नहीं है। जब कि हकीकत में बात ऐसी नहीं है। एक कन्या को शिक्षित करने अर्थ है एक पूरे परिवार को शिक्षित करना। क्योंकि शिक्षित महिला दूसरे परिवार में जा करके शिक्षा की नई अलख जगाता है। ’’ अन्ना ने अपना निप्कर्प प्रस्तुत किया।

‘‘ राजपुर तथा आसपास के गांवों, खेड़ों, ढ़ाणियों में जाकर मैंने यह महसूस किया है कि समाज में उपेक्षित स्त्री और बालिका दोनों हैं। जबकि देश के भविप्य के लिए इनको सुखी, स्वस्थ्य और खुशहाल रखा जाना चाहिए।’’ अन्ना फिर बोली।

‘‘ और फिर इतने सारे बन्धन। सब महिलाओं के लिए हैं। ’’ मिसेज प्रतिभा ने कहा।

‘‘ हां बन्धनों का अपना अलग इतिहास है। सदियों की गुलामी तथा रूढ़िवादिता ने बेड़ियां डाल दी है। विदेशी हमलेां से बचने के लिए नये नये बन्धन महिलाओं और बालिकाओं पर लगाये गये थे। ’’ अन्ना बोली।

‘‘ हां और फिर कई जगहों पर पैदा होते ही लड़कियों को मार डालने की परम्परा भी तो थी। ’’

‘‘ हां यह दुखद अध्याय भी था मगर यह समाप्त हो चुका है। ’’

हां इतिहास में रह गयी हैं ये बाते। मगर अभी भी इस देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु बहुत कुद किया जाना है। ’’

‘‘ तुम ठीक कहती हो। तुम अपनी रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी देना। ’’

‘‘ निश्चित रूप से। मैं चाहूंगी कि इस रपट के कुछ अंश छपें और उन पर बहस हो। ताकि आगे के कार्यक्रमों पर काम हो सके। ’’

‘‘ अन्ना एक बात बताओ। तुम्हारा प्रोजेक्ट तो अब शीघ्र ही समाप्त हो जायेगा। फिर सोचा है क्या करोगी।’’

‘‘कुछ नहीं सोचा। मैं सेाचना भी नहीं चाहती जो हाथ में है उसे पूरा कर लूं। बस फिर शायद वही उलझाव, भटकाव शायद वापस पापा के पास चली जाउं। वे हैदराबाद में हैं। नई मम्मी ने बड़े प्यार से बुलाया है मगर कुछ कह नहीं सकती। कुछ निश्चित भी नहीं है तुम जानती हो मेरा मन तो बस पंछी की तरह है बस उड़ जाना चाहती हूं। ’’

‘‘ तुम्हारा मन पन्छी है मगर सब कोई तो पक्षी नहीं बन सकते। रविवार को तुम्हारे जिजाजी आयेंगे। ’’

‘‘ अच्छा सच। कितनी खुशनसीब हो तुम।’’ दोनों हंस पड़ी।

रात गहरा रही थी। अन्ना व मिसेज प्रतिभा सो गये।

प्रधान जी ने अपनी कार्यवाही शुरू कर दी थी। प्राचार्य और अभिमन्यु बाबू अपने अपने काम में व्यस्त थे। कस्बे के स्थनीय लोगों में प्रधानजी तथा उनसे जुड़े निहित स्वार्थो वाले लोग इधर-उधर अभिमन्यु बाबू के खिलाफ जहर उगल रहे थे। इधर छात्रावास में भी छात्रों में फूट डालने की कोशिश की जा रही थी। वातावरण ठीक नहीं था। अभिमन्यु बाबू के बापू का स्वास्थ्य भी ज्यादा ठीक नहीं था।

इधर प्रधान जी राजधानी का चक्कर भी लगा आये थे। और उन्होंने कस्बे में अफवाह उड़वा दी थी कि शीघ्र ही प्राचार्य और अभिमन्यु बाबू को ठीक करने के आदेश राजधानी से आ जायेंगे।

छात्रावास में जिस ठेकेदार को अभिमन्यु बाबू ने घटिया और मिलावटी खाना खिलाने के कारण निकाल दिया था, वो ठेकेदार भी प्रधानजी के साथ था। विद्यालय में छात्रों में कई प्रकार की बीमारियां होने लग गयी थी। छात्रावास के मॉनिटर तथा प्रोक्टर भी असमंझस की स्थिति में थे। इसी बीच प्राचाय्र ने एक रोज स्टाफ मिटिंग बुलाई। वे बोले-

‘‘ शीघ्र ही छात्रों की परीक्षाएं होने वाली हैं। अधिकांश कक्षाओं में पाठ्यक्रम पूरा हो चुका है। ऐसी रिर्पोट मिली है। यदि किसी कक्षा में पाठ्यक्रम अधूरा है तो कृपया उसे पूरा करावें। ’’

‘‘ सर। परीक्षा के दिनों की ड्यूटी की स्थिति कैसी रहेगी। पिछली बार भी काफी तनाव था। ’’ एन्टोनी बोले।

‘‘ तनाव होते रहते हैं। हमें इन सबके बजाय स्वयं के काम की ओर ध्यान देना चाहियें ठीक है कि सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान कुछ गड़बड़ी हो गयी। मगर ऐसा हर बार तो नहीं होगा। ’’ प्राचाय्र ने कठोर स्वर में कहा।

‘‘ फिर भी सर। कुछ सुरक्षा व्यवस्था।’’ गणित के महेश जी बोल पड़े।

‘‘ इस तरफ से आप निश्चिंत रहें। नकल विरोधी कानून पास हो चुका हे। मैं इसे पूरी सख्ती से लागू करूंगा। आप लोग निश्चिंत होकर परीक्षा व्यवस्था की ओर ध्यान दें। अपराधिक तत्वों को कोइ्र रियायत नहीं दी जायेंगी।’’

‘‘ सर मैं कुछ कहना चाहता हूं। ’’ अभिमन्यु बाबू ने अनुमति मांगी।

‘‘ यस मि. अभिमन्यु।’’

‘‘ सर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम लोग छात्रों को पहले से ही इस प्रकार से तैयार करें कि नकल विरोधी कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़े।’’

‘‘ वो कैसे।’’ प्राचार्य ने पूछा।

‘‘ पाठ्यक्रम समय पर पूरा होने के बाद यदि सभी छात्र अच्छी तैयारी करें तो इस अधिनियम की जरूरत ही नहीं पड़े। ’’ अभिमन्यु बाबू ने पूछा।

‘‘ ये थोथा आदर्शवाद है। ’’ एन्टोनी बोल पड़े।

‘‘ थोथा आदर्श नहीं, श्रीमान् हम अपने गिरेबान में झांकें क्या हम सब पाठ्यक्रम के साथ न्याय करते हैं। पाठ्यक्रम के साथ न्याय नहीं होने से भी नकल होती है।’’

‘‘ खैर छोड़ों इस बहस को। जरूरत पड़ने पर हम इस नियम का उपयोग करेंगे। आप लोग अपना अपना दायित्व पूरा करें। ’’

यह कह प्राचार्य ने उपवेशन समाप्त किया। और अभिमन्यु बाबू को अपने कक्षमें रोक लिया।

‘‘ देखो अभिमन्यु बाबू इस बार परीक्षा में आप को सहायक केन्द्राध्यक्ष बनाया जा रहा हे। ताकि सब कुछ व्यवस्थित और ठीक चले। ’’

‘‘ सर मैं अभी बहुत जूनियर हूं।’’

‘‘ सवाल सीनियर-जूनियर का नहीं। विश्वास का है, वैसे भी हमारे यहां के छात्रों का परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहता है। हां एक बात और प्रधानजी व उनके लोग अपना काम कर रहें हैं। तुम थेाड़ा सावधान रहना। ’’

‘‘ सर मेरा उद्देश्य तो केवल संस्था की प्रतिप्ठा को उपर उठाना है, मैंने हर काम को इसी कोण से देखा और सोचा है। ’’

‘‘ ठीक है तुम चलों। ’’

अभिमन्यु बाबू नमस्कार करके बाहर आये। स्टाफ रूम में मिसेज प्रतिभा तथा कुछ अध्यापक बैठे थे। शायद उन्हें इस बात की जानकारी मिल गयी थी कि अभिमन्यु बाबू को सहायक केन्द्रध्यक्ष बनाया गया है। मिसेज प्रतिभा ने बधाइ दी।

मगर कुछ अध्यापकों ने अभिमन्यु बाबू को देख कर मुंह बिचकाया। अभिमन्यु बाबू ने शालीनता से कहा।

‘‘ मुझे आप सभी लोगों के सहयोग की आवश्यकता है। परीक्षा का काम सभी का काम है। हमें विद्यालय में व्यवस्था को बनायें रखना हे। और हमारा विद्यालय तो जिले में अव्वल रहता हे। ’’

‘‘ हां वो तो आप नहीं थे तब भी अव्वल था। ’’ एन्टोनी ने कहा।

‘‘ हमें इस परम्परा को बनाये रखना है। ’’

तभी चपरासी ने आकर कहा।

‘‘ सर। आपके पिताजी की तबियत बहुत खराब है।’’

अभिमन्यु तुरन्त अपने क्वार्टर की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर देखा पिताजी बेहोश थे। छात्रों का एक झुण्ड भी वहां था। मां ओर कमला रो रही थी। उन्होंने तेजी से छात्रों को हटाया मां-कमला को सांत्वना दी। और बापू को अस्पताल ले जाने की तैयारियां की। अस्पताल में डाक्टरों ने जांच के बाद बताया कि किडनी का आपरेशन होगा। और अभी करना होगां तुरन्त खून की जरूरत थी। अभिमन्यु बाबू ने अपना खून देने की पेशकश की। तब तक छात्रावास के छात्र और प्रतिभा तथा अन्ना भी वहां पहुंच गयी थी। छात्रों में से केवल दो छात्रों का खून मिला। छात्र मोहम्मद शरीफ तथा एन्थेनी का खून रोगी के खून से मिला। वास्तव में सभी के समझ में आ गया कि खून जात-पात, सम्प्रदाय, छोटे-बड़े में विभिजित नहीं किया जा सकता। साम्प्रायिकता से उपर होता है खून का रंग जो केवल लाल होता हे।

अन्ना का खून भी मिल गया। इस प्रकार बापू को अन्ना व मोहम्मद शरीफ का खून चढ़ाया गया। उनका आपरेशन सफल रहा।

ष्शाम को अस्पताल में बापू की जिन्दगी और मोत की लड़ाई में डाक्टर जीत गये थें आपरेशन के बाद देखभाल की जिम्मेदारी अन्ना, मां और कमला ने अपने सिर पर ले ली। बापू ज्यादा बोल नहीं सकते थे, मगर चुपचाप आंखों से सब व्यक्त कर देते थे।

अभिमन्यु के बापू अस्वस्थ तो थे, मगर मन से कुछ कहना ओर करना चाहते थे, उन्होंने इश्शरे से अभिमन्यु को अपने पास बुलाया और अटकते हुए कहा-

‘‘ बेटे इस नश्वर देह का क्या भरोसा। कब क्या हो जाये। मेरी बड़ी इच्छा है कि शरीर किसी के काम आ जाये। बेटे मेरी तम्मना है कि मैं अपने शरीर का दान कर दूं। नेत्रादान तथा देहदान के फार्मो पर दस्तखत कर दूं। तुम बचे हुए काय्र कर लेना। ’’

अभिमन्यु की मां भी यह वार्तालाप सुन रही थी। तुरन्त बोल पड़ी।

बेटा दो फार्म लाना। एक मेरे लिए भी। ’’

‘‘ क्यों मॉं ऐसा क्यों ? ’’

बेटा इससे बड़ा पुण्य का काम और क्या हो सकता है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी आंखों से कोइ्र नेत्रहीन व्क्ति इस दुनिया को देख सके और इस संसार का आनन्द ले। मैं भी तेरे बापू की तरह ही नेत्रहीनका पुण्य कमाउंगी। ’’

‘‘ अच्छा मां जैसी आप दोनों की इच्छा। ’’

शाम को अभिमन्यु ने आकर फार्मो पर माता पिता के दस्तखत कराकर स्थानीय चिकित्सालय में जमा कर दिये ताकि देह दान का काम सफल हो सके।

अभिमन्यु के माता पिता द्वारा देहदान का समाचार अखबारों में बड़ी सुर्खियों में छपा। वास्तव में स्वास्थ्य शिक्ष में अखबार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। अभिमन्यु के माता पिता को इस सत्कर्म के लिए चारों तरफ से बधाई मिली।

इससे प्ररित होकर कस्बे के कई लोगों ने भी नत्रदान हेतु फार्म भरे। शुरू में कुछ लोग इस काय्र से असंतुप्ट थे। मगर जब उन्हें बताया गया कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही नेत्रों तथा देह के अन्य अंगों को काम में लिया जाता है तो काफी ज्यादा संख्या में नेत्रदान के फार्म भरे गये। लेकिन प्रधान जी व उनके आदमी इस काम से भी नाराज हुए। उनके आदमियों ने पूछा ‘‘ मृत्यु के बाद शरीर की ऐसी दुर्दशा। नरक मिलेगा। ’’

किन्तु लोगों ने प्रधानजी की बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। नेत्रदान एक संकल्प की तरह हो गया। नेत्रदान महादान व देहदान के नारे से कस्बा गूंज उठां

***

(8)

अभिमन्यु बाबू विद्यालय में परीक्षा की तैयारी करने लगे। परीक्षायें निश्चित दिवस से सुचारू रूप से चलने लगी। प्रधान जी के आदमियों ने गड़बड़ी की कोशिश शुरू में की। मगर प्राचाय्र की दृढता तथा पुलिस-प्रशासन की ठोस व्यवस्था से अव्यवस्था नहीं हो पाई। प्रधान जी मनमसोस कर रह गये। इधर वे फिर राजधानी गये थे, लेकिन प्राचार्य या अभिमन्यु बाबू के खिलाफ कुछ खास नहीं कर पाये थे। दूसरी ओर धीरे-धीरे कस्बे के लोगों को अभिमन्यु बाबू की योजनाओं पर विश्वास होता जा रहा था। पर्यावरण, शिक्षा, प्रोढशिक्षा तथा अन्ना द्वारा किये जा रहे सब कार्यो की कस्बे की जनता को अखबारों के जरिये जानकारी मिल रही थी। साथ ही वे यह भी महसूस कर रहे थे कि इन सब कार्यो में अभिमन्यु या उनकी टीम के किसी भी सदस्य का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं है। ये सब परोपकार का काम है और धर्म का काम हे। जनता में एक नई जागरूकता एक नया उत्साह इस वर्प देखनें में आया था। छात्रावास के छात्र अपने खाली समय में कस्बें में इन कार्यक्रमों की चर्चा करते। सफलता का श्रेय प्राचार्य अभिमन्यु बाबू तथा अन्ना को देते। प्रशासन ने भी इन कार्यो में सहयोग दिया था। विकास अधिकारी इन कार्यो से संतुप्ट थे। ऐसी स्थिति में प्रधानजी का दुखी होना स्वाभाविक था उनके कुछ खास लोग हमेशा इस टोह में रहते हैं कि स्कूल या छात्रावास में कुछ गड़बड़ी हो तो वे मामले को उठायें। मगर उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

इसी बीच अभिमन्यु बाबू ने प्रतियोगी परीक्षा की अन्तिम परीक्षा पर गम्भीरता से ध्यान देना शुरू किया। अप्रेल के अन्तिम सप्ताह में परीक्षा थी। अभिमन्यु बाबू के बापू का स्वास्थ्य अब ठीक था। वे अस्पताल से वापस छात्रावास आ गये थे। मां और कमला उनकी सेवा कर रही थी। अभिमन्यु बाबू परीक्षा देने जाने वाले थे। मां के पास आकर बोले।

‘‘ मां मेरी आई.ए.एस. की परीक्षा सोमवार से शुरू होगीं तैयारी मैने कर ली है। बापू की तबियत भी ठीक है। तुम कहो तो परीक्षा दे आउं। शहर जाना होगा।’’

‘‘ जरूर जाओ बेटा। परमात्मा तुम्हें कामयाब करें। यहां मैं ओर कमला सब सम्भाल लेंगे। फिर अन्ना-प्रतिभा मैडम तथा छात्र तो हैं ही। ’’

‘‘ हां मां सोचता हूं परीक्षा दे ही आउं। ’’ यह कहकर उन्होंने मां बापू के चरण छाुए और परीक्षा देने के लिए चले गये। परीक्षा देकर अभिमन्यु बाबू वापस राजपुर आये तो प्राचार्य ने उन्हें बुलाया और कहा।

‘‘ प्रधान जी अपने काम में सफल हो गये हैं। आज राजधानी से भी टेलीफोन आया है। ’’ शायद कुछ बुरी खबर आने वाली है। ‘‘ अच्छा तुम्हारे पर्चे कैसे हुए। ’’प्राचार्य ने पूछा।

‘‘ सब ठीक हो गये सर। मुझे विश्वास है कि मेरा चयन हो जायेगा। ’’

‘‘ शाबाश। तुम चिन्ता मत करो। सब ठीक हो जायेगा।’’

ष्शाम को बापू की तबियत का हाचाल पूछने अन्ना व प्रतिभा आई तो अन्ना ने अभिमन्यु से परीक्षा के बारे में पूछा।

‘‘ पेपर तो ठीक हो गये हें साक्षात्कार भी ठीक ही हुआ हे। ’’

‘‘ सब हो जायेगा। आप जैसे जहीन, ईमानदार और नैतक मूल्यों में दृढ़ आस्था रखने वाले अफसरों की देश को बड़ी जरूरत है’’ अन्ना ने कहा।

आखिर कार्य पालिका प्रजातन्त्र का एक स्तम्भ है। ’’ मिसेज प्रतिभा बोली।

‘‘ हां वो तो ठीक है मगर चयन होना इतना आसान भी नहीं है। ’’

‘‘ आसान नहीं है मगर असंभव भी तो नहीं है। ’’

‘‘ हां ये बात तो है। ’’

कमला चाय ले आयी। मिसेज प्रतिभा ने कमला की परीक्षा के बारे में पूछा-

‘‘ मेरा तो परिणाम भी आ गया।आठवीं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुइ्र हूं।’’ कमला ने चहक कर कहा।

‘‘ ओह। शाबाश। बधाई मिठाई कब खिलाओगी। ’’ अन्ना ने कहा। सब खिलखिलाकर हॅंस पड़े।

बापू का स्वास्थ्य अब ठीक-ठीक था। मगर लगातार सेवा से मां की तबियत गड़बड़ा गयी थी। अभिमन्यु ने मां को डाक्टर साहब को दिखाया। वे बोले।

‘‘ थकान और वृद्धावस्था से ऐसा हो जाता है आप इन्हें ताकत की दवाइयां दे तथा कुछ फल, दूध एवं पौप्टिक आहार दें। ठीक हो जायेंगी।, चिन्ताजैसी कोइ्र बात नहीं है। ’’

अभिमन्यु बाबू सुबह शाम मॉं-बापू की सेवा में रहते । एक शाम मॉं ने कहा-

‘‘ बेटा अब मेरा बुढ़ापा है, बापू बीमार है बस एक इच्छा हे, बहू का मुंह देख लूं। एक बात बता। अन्ना के बारे में क्या सोचता है रे तू। ’’

अभिमन्यु शरमा गया। इस दृप्टि से कभी सोचा भी नहीं था। मामूली शैक्षणिक जान पहचान थी बस। बोला-

मॉं ऐसी भी क्या जल्दी है बापू को पूरा ठीक हो जाने दे। मेरी मानों तो पहले कमला की शादी करना। ’’

कमला के अठारह बरस की होने में अभी पांच वर्प की देर है और तू चौबीस का हो गया है। बोल क्या मरजी है तेरी।’’

‘‘ देख मां-अभी परीक्षा दी है उसका परिणाम आने दो फिर विचार करेंगे।’’

‘‘ ठीक है। ’’

अभिमन्यु ने मां-बापू को दवा दी। और छात्रावास की तैयारी में लग गया।

अचानक सुबह सुबह कमला ने जगाया और अखबार नचाती हुई बोली

‘‘ भैया इसमें तुम्हारा परिणाम छपा है। ’’

‘‘ ला मुझे दिखा। ’’

‘‘ नहीं पहले मिठाई लाओ। ’’

‘‘ ला मुझे दे नही तो मारूंगा। ’’

तभी मां भी आ गयी। बापू आशा भरी नजरों से देख रहे थें अभिमन्यु ने लपक कर कमला के हाथ से अखबार छीन लिया। स्थानीय अखबार था। आई.ए.एस. का परिणाम प्रकाशित हुआ था। अभिमन्यु प्रथम घोपित हुआ था उसका वर्पो का सपना आज पूरा हुआ था।

‘‘ मां मां में आई.ए.एस. में प्रथम आया हू.। ’’

उसने मां बापू के चरण छूए। मां ने आशीपा। असहाय बापू की आखों से आंसू छलक पड़े। अभिमन्यु भी भावविभोर हो गया। काश आज बापू बोल सकते। मगर बापू खुश थे।

शीघ्र ही यह खबर कस्बे में जंगल की आग की तरह फैल गयी कि अभिमन्यु बाबू आई.ए.एस. हो गये हैं। छात्र, अध्यापक नागरिक सब बधाई देने आने लगे। तभी प्राचार्य भी आये। उन्होंने अभिमन्यु बाबू को माला पहनाई, बधाइ्र दी और कहा-

‘‘ तुम चाहो तो अपने वर्तमान पद से त्यागपत्र दे सकते हो ताकि प्रधान जी जो राजधानी जाकर कर के आये हें, उसका प्रभाव नही हो। ’’

यह ठीक समझकर अभिमनयु बाबू ने अध्यापक के पद तथा छात्रावास के अधिक्षक पद से अपना त्यागपत्र दे दिया। जिसे प्राचार्य ने स्वीकृति हेतु उच्च अधिकारियों को भेज दिया। इसी बीच प्राचार्य का स्थानान्तरण आदेश भी प्रधानजी के क्रियाकलापों से आ गयां मगर प्राचार्य ने कोइ्र चिन्ता नही की। अन्ना व मिसेज प्रतिभा ने आकर अभिमन्यु को बधाई दी। आज अन्ना ने मां के चरण छूए। बापू को प्रणाम किया। अभिमन्यु ने उसकी सर्वे रिपोर्ट के बारे में पूछा अन्ना बोली।

‘‘ मैने प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाकर जयपुर प्रो. सिंह को भेज दी है। तथा रिपोर्ट के कुछ हिस्से प्रकाशनार्थ भी भेजे हैं। शायद शीघ्र ही छपकर आ जायेंगे।’’

‘‘ अरे यह तो बहुत अच्छी बात है। ’’

तभी मां आई और बोली।

‘‘ बेटा अब तो तुम आई.ए.एस. भी हो गये हो। अब शादी के लिए क्या बहाना बनाओगे। ’’अभिमन्यु शरमा गया। क्या जवाब दे। मां फिर बोली ‘‘ अन्ना का भी प्रोजेक्ट पूरा हो गया है। ’’

लेकिन बातचीत कैसे शुरू हो। तभी मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी-

‘‘ अन्ना तुम अपने पापा को तार देकर यहीं बुला लो। ’’

क्यों।

‘‘ अभिमन्यु से अच्छा दामाद उन्हें कहॉं मिलेगा।’’ मिसेज प्रतिभा ने हंसते हुए कहा। ’’

‘‘ तुम तो मजाक करती हो। ’’

‘‘ हां बेटी मेरी भी यही इच्छा है। ’’ अभिमन्यु की मां बोल पड़ी।

अभिमन्यु के पिता ने भी आशा भरी नजरों से अन्ना की ओर देखा। बोल नहीं सकते थे। मगर आंखों ने बहुत कुछ कह दिया था।

अन्ना ने कनखियों से अभिमन्यु बाबू को देखा। एक क्षण को दोनों की नजरें मिली। शरमाई और झुक गयी। मूक सहमति पाकर अन्ना ने साड़ी का पल्लू ढका और मां-बापू का आशिर्वाद ले लिया। उसने पापा को तार देकर बुला लिया। प्रो. सिंह को भी तार दे दिया ताकि आशा भी आ जायें।

विद्यालय के अध्यापकों, छात्रों, कसबे के लोगों ने मिलकर अभिमन्यु बाबू के अई.ए.एस. बनने पर उनका अभिनन्दन करने का निश्चय किया। प्राचार्य महोदय ने विद्यालय में सब व्यवस्था कराने का जिम्मा लिया। प्राचार्य महोदय स्वयं स्थानान्तरण का संत्रास भेग रहे थे, मगर इस कार्य के प्रति उनके मन में बड़ा उत्साह था। छात्रों ने भी खूब मन से इस कार्यक्रम को सफल बनाने का निश्चय किया। स्थानीय नागरिकों ने भी सहयोग दिया। इस कस्बे में काम करने वाला व्यक्ति पहली बार आई.ए.एस. जैसे उच्च पद हेतु चयनित हुआ था। अभिमन्यु के गांव के लोग भी इस अभिनन्दन समारोह में शामिल होने के लिए आये थे।

प्रारम्भ में प्राचार्य महोदय ने सभी का स्वागत किया ओर कहा यह सभी के लिए सौभाग्य की बात है कि हमारे विद्यालय के और इस तहसील के एक गांव के हमारे अपने अध्यापक अभिमन्यु बाबू ने देश की सवो्रच्च सिविल परीक्षा प्रथ म स्थान में पास की है वास्तव में इस गौरव के लिए अभिमन्यु बाबू की जितनी प्रशंसा की जाये कम है बहुत कम लोग जानतें हैं कि अभिमन्यु बाबू विज्ञान के अध्यापक होकर भी राजनीति व समाजविज्ञान के भी ज्ञाता हैं। इन्होंने छात्रों की बहुमुखी प्रतिभा के विकास के लिए काफी काम किया है। इस विद्यालय में रहते हुए अभिमन्यु बाबू ने र्प्यावरण, नशीली दवाओं, बाल विवाह , प्रोढ शिक्षा जैसे सार्वजनिक महत्व के क्षेत्रों में काम किया। इस वर्प विद्यालय का परीक्षा परिणाम पिछले से भी बेहतर रहा है।

वास्तव में विद्यालय में छात्रों का सर्वांगीण विकास हेतु हमें अभिमन्यु बाबू जैसे लोगों की जरूरत है। वे एक युग के निर्माण में बहुत ही महत्वपूण्र भूमिका अदा कर रहे हैं वे सच्चे अर्थो में युग निर्माता हैं। उन्होंने अपने छात्रों में युग निर्माण की बात कूट-कूट कर भरी है।

मैं इनका अभिनन्दन करता हू और उम्मीद करता हॅं कि देश के आला अफसर के रूप में युग निर्माण की प्रक्रिया को जारी रखेंगे। ’’ यह कह कर प्राचार्य महोदय बैठ गयें तभी प्रो. सिंह खडे हुए और बोले- ‘‘ मैं भी आप का स्वागत करता हू। अभिनन्दन करता हू और आपके उज्जवल भविप्य की कामना करता हू। वास्तव में इस देश को ईमानदार अफसरों की बड़ी जरूरत है।’’

अन्ना के पापा भी पहुंच गये थे वे अभिमन्यु के बारे में देख सुनकर बहुत खुश हो रहे थे।

अन्ना ने उन्हें अभिमन्यु बाबू की उपलब्धियों तथा कार्य प्रणाली के बारे में सब कुछ बता दिया था। अन्ना के पापा अभिमन्यु बाबू के बारे में सब जानकर अभिभूत थें उन्हें यह जानकर और भी खुशी हुई की दोनों एक दूसरे को पसन्द करते थे। उन्हें यह जोड़ी बहुत अच्छी लगी।

तभी प्रधान जी ने अपने आदमियों के साथ हाल में प्रवेश किया एक बार तो सन्नाटा छा गया। सब स्तब्ध थे। पता नहीं क्या हो। छात्र अलग कसमसाने लगे। कुछ छात्र तो नारेबाजी करने लगे। कुछ छात्र उत्तेजित हो गये। प्राचार्य ने खड़े होकर छात्रों को शान्त किया। प्रधानजी मंच पर चढ़ गये। अभिमन्यु बाबू के गले में माला पहनाई। हाथ मिलाया बधाई दी। और माईक पर आकर बोले।

‘‘ मुझसे बडी गलती हुइ। मैं आप सभी के सामने अभिमन्यु बाबू से और आप सब से क्षमा याचना करता हू। आप लोग कृपा करके मुझे क्षमा करें। मैं इस देवता पुरूप को पहचान नहीं पाया। अपने क्षुद्र स्वार्थो के कारण मैंने तथा मेरे आदमियों ने अभिमन्यु बाबू को नाना दुख दिये। उन्हें प्रताड़ित किया। धमकियां दी यहां तक कि उन पर हाथ भी उठाया। आज मैं अपने कर्मो का प्रायश्चित करता हू। ’’ आज से मैं अभिमन्यु बाबू के दिखाये मार्ग पर चलकर जनहित में काम करने का प्रण लेता हू। एक बात और प्राचार्य महोदय का जो स्थानान्तरण मैंने कराया था उसे भी पुनः रद्द करवा दिया है। प्राचार्य महोदय भी मुझे क्षमा करें।’’

यह कह कर प्रधान जी ने पुनः अभिमन्यु बाबू से हाथ मिलाया और मंच से उतरकर सभा में बैठ गये।

सभी छात्रों ने प्रसन्न होकर तालियां बजाई । हाल ‘‘ प्रधान जी जिन्दाबाद। ’’ ‘‘अभिमन्यु बाबू जिन्दाबाद। ’’ के नारेां से गूंजने लगा।

अभिमन्यु बाबू अपने अभिनन्दन का प्रत्युत्तर देने खड़े हुएं हाल काफी समय तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। शान्ति होने पर अभिमन्यु बाबू ने बोलना शुरू किया।

‘‘ दोस्तों मैं आप ही के बीच का एक छोटा आदमी हू। कल तक आप के बीच में काम करता था। अध्यापक था जो भी दायित्व मुझे सौपा जाता था उसे मन लगाकर पूरा करने की कोशिश करता था।

मुझे खुशी है कि प्रधान जी ने अपनी गलती महसूस की वे बड़े है। बुजुर्ग है मैं उनका सम्मान और अभिवादन करता हू जो हुआ सो हुआ। अन्त भला तो सब भला।

मैं आप केा बताना चाहता हू कि यदि हम अपना काम ईमानदारी व निप्ठा से पूरा करें तो हमें सफलता अवश्य मिलती है। सफल होने के लिए दृढ आत्मविश्वास और काम करना की लगन होनी चाहिए बस। रास्तें की तमाम रूकावटों के बावजूद सफल होना ही मानव का स्वभाव है जब तक सफलता नहीं मिले तब तक कर्म को त्यागो मत। हम सबको मिलकर एक नये युग, एक नये भारत, एक नये विश्व का निर्माण करना है। जो जहां है वहां पर अपनी पूर्ण सामर्थ्य के साथ काम करे। तभी युग निर्माण का महान स्वप्न साकार होगा। हम सब एक हैं। हमारे देश की परम्परा, संस्कृति और इतिहास ने हमें मिलजुल कर रहना सिखाया है। सर्व धर्म समभाव तथा वसुदैव कुटुम्बकम हमारे आदर्श रहे हैं। अपने इस अभिनन्दन के लिए मैं आप सभी का आभार व्यक्त करता हू। तथा यह भी घोपणा करता हू। कि आई.ए.एस. के रूपमें अपनी पहली पोस्टिंग इसी कस्बे में लेने की कोशिश करूंगा और कस्बे के समग्र विकास के लिए हर सम्भव प्रयत्न करूंगा। मैं इस तहसील में पैदा हुआ। यह मेरी पहली कर्मभूमि रही है। और अब भी मैं कहीं पर रहूं, इस कस्बे तथा यहां के लोगों के लिए मेरे दावाजे हमेशा खुले रहेंगे। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि यह तहसील पूरे देश में एक आदर्श तहसील के रूप में जानी जाये। यहां पर कोइ्र अनपढ़ नहीं होगा, कोई नशा नहीं करेगा। पर्यावरण ठीक होगा हम सब मिलकर एक नये युग का निर्माण करेंगे। जहां पर सब जगह सुख और संतोप रहेगा। इस अवसर पर मैं प्राचार्य महोदय अपने साथी अध्यापको प्रो. सिंह अन्ना जी, छात्रों तथा नागरिकों सभी के प्रति आदर और स्नेह व्यक्त करता हूं। और आपको विश्वास दिलाता हू कि प्रजातन्त्र का एक स्तम्भ कार्य पालिका कन्धे से कन्धा भिड़ाकर देश में एक नये युग के निर्माण हेतु कृत संकल्प है। आईये हम सब मिलकर युग निर्माण के अधूरे कार्य को पूरा करें।’’

‘‘ हाल देर तक तालियों से गूंजता रहा। अभिमन्यु बाबू अपनी सीट पर आकर बैठ गए तभी अन्ना के पापा मंच पर चढ गये। और माईक पर बोले। ’’

‘‘ मैं अभिमन्यु बाबू की सगाई अपनी बेटी अन्ना के साथ करने की धोपणा करता हू दोनों एक दूसरे को पसन्द भी करते है।’’

फिर एक बार हाल बधाईयों और तालियों से गूंज उठा। अन्ना ने शरमाकर आखें झुका ली।

अभिनन्दन कार्यक्रम समाप्त हो गया। प्राचार्य महोदय पूर्ववत काम करने गये। सामान्तवादी प्रधान जी जनहित में लग गये। टेनिंग पूरी करके अभिमन्यु बाबू जब इसी कस्बे में एस.डी.एम. बनकर आये तो उनके साथ मिसेज अन्ना थी। वे दोनोंमिलकर पुनः एक नये युग के निर्माण हेतु काम करने लगे। अभिमन्यु बाबू ने तहसील को दो वर्पो में ही आदर्श तहसील के रूप में विकसित कर दिया। गणतंत्र दिवस पर उन्हें इस कार्य हेतु राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। युग निमा्रण का युग निर्माण सपना पुनःसाकार हुआ।

***

समय निरन्तर चलता रहता हे। समय किसी के लिए भी नहीं रूकता। वास्तव में हम समय का भेग नहीं करते हैं। समय ही हमारा भेग करता है। समय के साथ साथ चलना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है। कभी न कभी समय छोड़ कर आगे बढ़ जाता है।

कुछ वर्पो के अन्दर सब कुद बदल गया है। राजपुर जिला घोपित हो गया और अभिमन्यु बाबू इस जिले के प्रथम जिलाधीश नियुक्त होकर आ गये हैं। आज वे और अन्ना अपने विशाल बंगले के लॉन में बैठ कर अपने पिछले दिनों की यादे ताजा कर रहे हैं। अचानक अन्ना ने कहा।

‘‘ देखिये समय किस तेजी से बदल रहा है। आज राजपुर जिला बन गया है। सर्वत्र आर्थिक पैमाने हो गये हैं। मनुप्य का सोच आर्थिक सोच हो गया है। खुली अर्थ व्यवस्था ने समाज को एक नये संसार से परिचित कराया है। ’’

‘‘ - हां ये तो हैं, मगर सब कुछ खुल जाने से स्वतंत्रता स्वच्छदता में बदल जाती है और समाज तथा व्यक्ति के उच्छृखंल बन जाने की संभावना बन जाती है। ’’ अभिमन्यु बाबू ने गंभीर होकर कहा।

‘‘ - हां यह संभव है। मगर ष्शायद आजके विश्व की यही मांग है। वैसे भी निर्धनता मनुप्य जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। निर्धन होना ही सबसे बड़ा अपराध है। यक्ष ने जब युधिप्टिर से पूछ कि सबसे ज्यादा दुखी कौन है तो युधिप्टिर का प्रत्युत्तर था-निर्धन व्यक्ति सबसे ज्यादा दुखी है। उपनिपदों में भी निर्धनता को पौरूप-हीनता माना गया है। अर्थात व्यक्ति में पौरूप उतना ही है, जितना उसके पास धन हे। सभी गुण कंचन में बसते हैं। धनवान ही रूपवान, चरित्रवान, साहित्य, कला, संस्कृति का पारखी, सज्जन और सबल होता हैं हर युग में धनवान की पूछ होती रहती है। राजा, मंत्री भी धनवान की बात ध्यान से सुनता है। इसलिए युग में धन का महत्व और भी ज्यादा हैं। जीवन में निर्भरता का अभिशाप सबसे बड़ा अभिशाप है। धन से युग में सब कुछ क्रय किया जा सकता है और इसी कारण व्यक्ति साम, दाम, दंड, भेद, सही, गलत सभी तरीकों से धन कमाने के लिए दौड़ पड़ता है, वह पैसे की इस अन्धी दौड़ में घुड़ दौड़ के घोड़े की तरह दौड़ रहा है। निर्धन तो हमशा दुख, कोप ओर दुर्भाग्य का मारा होता है, ओर यदि व्यक्ति धनवान से निर्धन हो जाता हे तो उसके कप्ट और बढ़ जाते हैं, मित्र मुंह मोड़ लेते हैं, रिश्तेदार पहचानना बंद कर देते हैंऔर उपेक्षा व अपमान का जीवन जीने को बाध्य होना पड़ता हे। ’’

अन्ना एक सांस में बोल पड़ी।

अन्ना का लम्बा पक्तव्य सुनकर अभिमन्यु बाबू कुछ नहीं बोले। वे कही अतीत में खो गये थे। इसी समय अर्दली ने आकर दिल्ली से आवश्यक सूचना प्राप्त करने हेतु फोन की सूचना दी। अभिमन्यु बाबू अन्दर फोन सुनने चले गये। अन्ना ष्शून्य में निहारने लगी। पता नहीं क्यों आज उसका पुराना जीवन दर्शन जाग उठा था।

अभिमन्यु बाबू वापस आये बोले ।

‘‘ अन्ना दिल्ली से महत्वपूर्ण सूचना आई है। इस वर्प पन्द्रह अगस्त का समारोह स्वर्ण जयन्ती के रूप में मनाया जायगा और इस पुनीत कार्य हेतु काफी तैयारियां की जायगी। मुख्य समारोह हमेशा की तरह दिल्ली में होगा। हमें भी अपने जिले में स्वतंत्रता की स्वर्ण जयन्ती मनानी हे। ’’

-‘‘ अच्छा यह तो बड़ी खुशी की बात है। क्या वास्तव में आजाद हुए पचास वर्प हो गये हैं। ’’

-‘‘ हां हां क्यों नहीं।’’

-‘‘ देश ने कई क्षेत्रों में बहुत अच्छा विकास किया है। विज्ञान - तकनोलोजी, अन्तरिक्ष अनुसंधान, रक्षा अनुसंधान, आदि क्षेत्रों में हमारा देश विश्व के कुछ प्रमुख देशों में से एक है। ’’

-‘‘ लेकिन अभी भी देश में गरीबी, अशिक्षा का अन्धेरा है। समय के साथ स्वास्थ्य और अच्य समस्याएं बढ़ रही है।

-‘‘ समस्याओं का निदान भी हो रहा है। हम सब मिलकर आगे बढ़ रहे है। और सबसे बड़ी बात यह है कि हमने स्वतंत्रता को पचास वर्पो तक सहेज कर रखा है। मां भारती के आंचल पर धब्बा नहीं लगने दिया है। ’’

-‘‘ कुछ हद तक आप ष्शायद ठीक कह रहे हैं। मगर सब कुछ ठीक-ठाक हो ऐसा भी नहीं लगता है।’’

-‘‘ सब कुछ कहीं भी ठीक नहीं होता है। हर जगह कुछ कमियां होती है। एक आधे भरे हुए गिलास को आधा खाली भी कहा जा सकता है। खैर। मुझे कार्यालय जाना है और हां तुम कमला को फोन करके बच्ची सहित बुलवा लेना। स्वतंत्रता दिवस समारोह देख कर उसे बड़ी खुशी होगी। ’’

‘‘ जी अच्छा। ’’

अभिमन्यु बाबू दफतर चले गये। अन्ना को अपना अतीत कचोटने लगा। यूरोप-अमरिका में पली बसी प्रवासी भारतीय अब इस देश की माटी से वापस इतनी जुड़ गई थी, कि उस अब पश्चिम की हवा की भी याद नहीं आती। मगर जो खुली हवा इस देश में बहने लगी है, उसका परिणाम क्या वही होगा जो विदेशों में हुआ है। ष्शायद नहीं क्योंकि इस देश की संस्कुति, परम्परा बहुत गहरे तक एक दूसरे को जोड़े रखने की क्षमता रखती हे।

राष्ट्रीय एकता, अखण्डता तथा देश भक्ति यहां के लोगों में कूट कूट कर भरी हुई है। और ऐसी स्थिति में देश के बिखरने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता हे। दंगे, कर्म्यू, जातिवादी उम्माद कुछ समय के लिए आते हैं और तेज हवा के झोंके की तरह चले जाते हैं। वे देश की एकता और साम्प्रदायिक सौहार्द को तोड़ नहीं पाते। यह महान देश एक है। यहां पर एकता में अनेकता है और अनेकता में एकता है।

अन्ना ने कमला को फोन कर बच्ची सहित आने का निमंत्रण दिया। शा म को गाड़ी भेज दी। कमला अपनी एक मात्र बच्ची के साथ अन्ना के पास आ गई। अन्ना ने कमला को गले लगाया, कमला ने अभिमन्यु बाबू के चरण छुए, नन्ही मामाजी की गोद में चढ़ गई। सभी ने मिलकर खाना खाया। खाने के बाद कमला, अन्ना और अभिमन्यु बाबू बैठे तो कमला बोल पड़ी।

-‘‘ भाई साहब अब जब की आजादी की पचासवीं वर्प गांठ मनाई जा रही है। आप क्या सोचते हैं ? ’’

-‘‘ इसमें सोचना क्या हैं ये तो एक खुशी का मौका है कि देश में प्रजातन्त्र पचास वर्पो से निरन्तर चल रहा है। ’’

- वो तो ठीक है, मगर क्या इस प्रजातंत्र की कोई कीमत भी दी है।’’

-‘‘ कीमत का देश की अस्मिता के सामने क्या महत्व है। देश एक रहे तो कोई भी कीमत ज्यादा नहीं है। ’’

-‘‘ विकास के कारण क्या हमने कुछ खोया है ? ’’

-‘‘ हां शायद पर्यावरण पर कुछ प्रभाव हुआ है। ’’

-‘‘ और हमारे नैतिक मूल्य कम हुए हैं।’’ अन्ना ने कहा।

-‘‘ नैतिक मूल्य हर देश में कम हुए हैं हमारे देश में मूल्य अन्य देशों की तुलना में बेहतर है। ’’ अभिमन्यु बाबू ने बात को संभाला।

-‘‘ लेकिन आप ये भी तो देखिए कि हम शायद गांधी जी को भूल गये हैं।’’

मैं ऐसा नहीं मानता। गांधी जी की प्रासंगिकता आज भी है। सच, ईमानदारी और अहिंसा का रास्ता कभी बन्द नहीं होता। केवल कुछ समय के लिए हम रास्ते भटक सकते हैं। ’’

-‘‘ लेकिन इस भटकाव के लिए कौन जिम्मेदार है। ’’ कमला ने पूछा।

-‘‘ हम सभी। हम सभी इस भटकाव के लिए जिम्मेदार हैं। यदि रास्ता बदल दिया गया है तो मंजिल कैसे मिलेगी। हमें हमारा सही रास्ता चुनना होगा। तभी हम अपनी मेजील की ओर जा पायेंगे। ’’

-‘‘ लेकिन लगता है कि हम कहीं खो गये हैं। ’’

नहीं खोये नहीं भटक गये हैं और यदि सुबह का भूला सांय को धर लौटे आता है तो उसे भूला नहीं कहते। ’’ अभिमन्यु बाबू ने हंसते हुए कहा। सभी सोने चले गये क्योंकि दूसरे दिन प्रातः जल्दी उठकर आजादी की पचासवीं जयन्ती मनानी थी।

***

(9)

पन्द्रह अगस्त उन्नीसौ सत्ताणवें

आजादी का पचासवां स्वतन्त्रता दिवस का पावन पर्व। आज पूरे कस्बे में अपूर्व उत्साह, उल्लास और उमंग थी। सर्वत्र खुशी, अमग, चैन लेकिन कहीं कहीं लोगों के दिलों में कसक भी थी।

अभिमन्यु बाबू अपने उसी स्कूल में झण्डा रोहण करने गये जहां पर वे कभी एक अध्यापक के रूप में कार्यरत थे। सभी अध्यापक बड़े प्रसन्न थे कि जिलाधीश महोदय ने उनके कार्यक्रम में आने की स्वीकृती प्रदान की थी। स्कूल के वातावरण में उत्साह था। छात्र प्रसन्न थे और अध्यापकों ने जी-जान लगाकर मेहनत की थी। राष्ट्र भक्ति के गीत बज रहे थे। पाण्डाल सजा था। शहर के गणमान्य लोग उपस्थित थे।

अभिमन्यु बाबू ने झण्डारोहण किया। राष्ट्र गान हुआ। परेड की सलामी ली गयी। प्रधानाध्यापक के उद्बोधन के बाद अभिमन्यु बाबू ने शहर के प्रबुद्ध व्यक्तियों को प्रमाण-पत्र और पुरस्कार बांटे। एक विकलांग को पुरस्कार देने अभिमन्यु बाबू उसकी सीट तक चल कर गये। एक सैनिक की विधवा पुरस्कार ग्रहण करते हुए रो पड़ी। सभी की आखें नम हो गयी। अभिमन्यु बाबू ने अपने उद्बोधन में कहा-

‘‘ आज आजादी की पचासवीं साल गिरह है और इस मुबारक मौके पर मैं आप सभी को बधाई देता हू। आज हमें अपने उन नेताओं, क्रंतिकारियों ओर देशभक्तों को याद करना है, जिन्होंने आजादी की इस लड़ाई में अपना सर्वस्व त्याग दिया।

आज हमें सागरमल गोपा, केसरी सिंह बारहठ, माणिक्यलाल वर्मा, मेहर खां के साथ-साथ चन्द्रशेखर, भगतसिंह, लाला लाजपतराय आदि कें बलिदानों को याद करना है । आज महात्मा गांधी के पुण्य स्मरण का भी दिन है। सरदार वल्लभ भाई पटेल का योगदान कौन भूल सकता है. आज हम सभी एक है और एक रहे। हमें हमारी भावात्मक एकता को बनाये रखना है। देश भक्ति को बनाये रखना है। सीमा की चौकसी रखनी हैं राष्ट्रीय एकता, अखण्डता और सांस्कृतिक समरसता के लिए प्रयास करना है। देश के आजाद होने के साथ-साथ हमें हमारी स्वाधीन चेतना को जगाये रखना है। स्वाधीनता की चेतना जब तक जीवित है, हमें कोई खतरा नहीं है। हमने तीन युद्ध लड़े हम विजयी रहे। आंतकवाद से लड़े हम विजयी रहे। हमें सामाजिक यथार्थ तथा रचनात्मक दिशा बोध के साथ-साथ सामाजिक समरसता को बनाये रखना है।

समाज, राष्ट्र और व्यक्ति सब मिलकर ही एक सम्पूर्ण राष्ट्र का निर्माण करते हैं।

आजादी के इस दौर में हमें वन्दे मातरम और जन गण मन की अक्षुप्णता को बनाये रखना है। आइये सब मिलकर नारा लगाये। ’’

‘‘ भारत माता की जय। ’’

‘‘ भारत माता की जय। ’’

कार्यक्रम समाप्त हुआ। अभिमन्यु बाबू , अन्ना, कमला, नन्ही सब अपने बंगले वापस आ गये।

सायंकाल सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। भवनों पर रोशनी की गयी। सर्वत्र सब कुछ सुहावना लग रहा था। आज रक्तदान हुए, नेत्रदान व देहदान के फार्म भरे गये। स्वास्थ-शिक्षा व पौढ़ शिक्षा के लिए समाज के लोगों ने संकल्प लिये। मगर अन्ना से नहीं रहा गया। वो पूछ बैठी -

-‘‘ इतना सब होने के बाद भी आम आदमी खुश क्यों नहीं है। ’’

-‘‘ खुशी का इजहार करना हर एक के लिए संभव नहीं होता। ’’ कमला ने कहा।

-‘‘ मगर इसका मतलब क्या औसत नागरिक प्रसन्न नहीं है। ’’

-‘‘ नहीं वह खुश हें मगर उसे लगता है कि यह खुशी क्षणिक है और इसी कारण वह चुपचाप रहता है। ’’

-‘‘ नहीं ऐसा नहीं है। वास्तव में पचास वर्पो में औसत व्यक्ति को अभावों ने तोड़ दिया हे। अब खुली अर्थ व्यवस्था से उसे स्वयं के लिए खतरा नजर आ रहा है। इसी कारण वह चुप है।’’

-‘‘ लेकिन चुप रहने से क्या होता है। ’’

-‘‘ चुप की दहाड़ बहुत बड़ी होती हे। मौन की आवाज सबसे तेज होती है। ’’

-‘‘ चलो छोड़ो भाई जान।’’ कमला ने कहा। नन्ही टीवी देखकर प्रसन्न हो रही थी।

-‘‘ क्या दृश्य-श्रव्य माध्यम सबके लिए हितकर हे। ’’ अन्ना ने दूसरा प्रश्न छोड़ा।

-‘‘ सवाल हित का नहीं आवश्यकता का है। आज टीवी के बिना समाज में जीना मुश्किल है। ’’ कमला ने कहा।

-‘‘ लेकिन टीवी के नुकसान बहुत है। ’’

-‘‘ और फायदे भी बहुत है ’’ - अभिमन्यु बोल पड़ा। आज टीवी से शिक्षा, अनोपचारिक शिक्षा और दूसरा शिक्षा के क्षेत्र में बिल्कुल नये प्रयोग हो रहे हें जो हमारे देश को एक नये भविप्य की ओर से जा रहे हें। शीध्र ही देश में कम्प्यूटर शिक्षा का जाल बिछ जायेगा और इस शिक्षा से हमारा तकनीकी ज्ञान बहुत बढ़ जायेगा। हम देश विदेश में घर बैठे मिटिंग कर सकेंगे।

-‘‘ हां हां क्यों नहीं टेली-कांफ्रेसिंग एक बिल्कुल सामान्य सी बात होगी। जैसे फोन एक सामान्य उपकरण है, ठीक वैसी ही यसुविधा हो जायेगी। ’’

-‘‘ फिर तो बड़ा मजा आयेगा। ’’ कमला बोल पड़ी।

मगर अन्ना ने कुछ नहीं कहा।

कमला और अन्ना कमरे में आई।

अन्ना ने नन्ही को प्यार से थप थपाकर सुला दिया और कमला से पूछा।

-‘‘ अब दूसरा कब ? ’’

-‘‘ नहीं भाभी हम दोनों एक हमारे एक। बस। ’’ और भाभी तुम्हारे.....।’’

हम तो भाई शून्य जनसंख्या वृद्धि में विश्वास रखते है। ’’

दोनों हॅंस पड़ी। सभी आराम करने लग गये।

***

स्वतंत्रता दिवस समारोह पर अखबारों ने बड़े बड़ो परिशिप्ट प्रकाशित किये थे। पिछले पचास वर्पो की उपलब्धियों की बढ़ चढ़ कर विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गयी थी। स्थानीय समाचारों में अभिमन्यू बाबू का भापण प्रमुखता से प्रकाशित हुआ था। समाज में विकृतियां उभरी है, ये ठीक है, अभिमन्यु सोच रहे थे, मगर क्या सब कुछ धुंधला गया है, क्या आशा की कोई किरण बाकी नहीं है। अभिमन्यु बाबू ने स्वयं से कहा।

- नहीं मैं ऐसा नहीं मानता। रात कितनी ही लम्बी हो । सुबह अवश्य होती है और सवेरे के सूरज की रोशनी अन्धेरे को चीर कर बहुत दूर तक प्रकाश फैला देती है। पूरब का यह सूर्य हम सभी को प्रकाशित करेगा और हमारे मन के अंधकार को दूर करेगा।

***

कमला के जाने के बाद अन्ना कुछ उदास हो गयी। इतना बड़ा बंगला, सभी प्रकार की साधन सुविधाए। नौकर चाकर, रूतबा, मगर मन है कि फिर भी उदास। सब कुछ है मगर कुछ भी नहीं आखिर इसका कारण का है ? नारी मन में यह अतृप्ति क्यों है, ष्शायद इसका कारण समाज में व्याप्त उपेक्षा है, मगर अब समय बदल रहा हे नारी ने हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झण्ड़े गाड़े हैं। प्राचीन काल में भी नारी ने अपना वर्चस्व स्थापित किया था और आज भी कर रही है जीवन के हर क्षेत्र में नारी ने आगे आकर पुरूप के कन्धे से कन्धा भिड़ाकर काम किया है। नारी किसी से कम नहीं है। आर्थिक समृद्धि और भैतिक साधनों की वृद्धि में नारी का यागदान है। उसे मन ही मन तसल्ली हुई। लेकिन फिर उसे लगा कि क्या भैतिकयात्रा की समाप्ति के बाद सब कुछ समाप्त हो जाता है, शायद नहीं क्यों कि भैतिक यात्रा की समाप्ति के बाद एक नई अर्थवान यात्रा का विकास होता है। पश्चिम में इस यात्रा के महत्व कोई नहीं मानता है, मगर भारत में भैतिक यात्रा की समाप्ति के बाद भी व्यक्ति की यात्रा निरन्तर चलती रहती है और व्यक्ति एक नयी आध्यात्मिक यात्रा के अनन्त मार्ग पर चल पड़़ता है।

अन्ना अपने विशाल शयन कक्ष में आइ । उसने किताबों की शेल्फ में से एक किताब उठाई, मगर किताब के पिछे उसे एक डायरी दिखाई दी। उसे आश्चर्य हुआ। अभिमन्यु की पुस्तकों की शेल्फ में डायरी-। उसने डायरी को उठा लिया अभिमन्यु की डायरी थी। उसके प्रारम्भिक जीवन के बारे में विस्तार से लिखा हुआ था। आज वह इस उच्च पद पर था। अभिमन्यु की डायरी को अन्ना ने पढ़ा और रख दिया। इसी बीच अभिमन्यु आ गया। बोला-

‘‘ अन्ना क्या कर रही हो। ’’

‘‘ कुछ नहीं बस यों ही। ’’ अन्ना ने बात टाल दी। मगर अभिमन्यु समझ गया कि बात कुछ है।

‘‘ सुनो अन्ना। ’’

‘‘ हॉं जी। ’’

आज सांय मुझे कुछ जरूरी काम से बाहर जाना है और कल सुबह जिले में पल्स पोलियो अभियान का प्रारम्भ होना हे, इस कार्यक्रम के लिए तुम्हें भी चलना होगा। ’’

‘‘ पल्स पोलियों में मेरा क्या काम। ’’

‘‘ है भाई हम सभी का काम है। नई पीढ़ी निरोगी हो, उसे लकवा -पोलियो जैसी बीमारी नहीं हो इस पुनीत महाभियान को हम सभी में अपना अपना योगदान करना है। ’’

‘‘ मुझे क्या करना होगा ? ’’

‘‘ तुम जिले के बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने का शुभारम्भ करोगी। सब तैयारियां जिले के छोटे अधिकारियों द्वारा कर ली गई है। सुबह सात बजे से यह कार्यक्रम शुरू होगा। ’’

‘‘ अच्छा तो फिर आज सॉंय आप कहॉं जाने वाले हैं। ’’

‘‘ इसी पल्स पोलियों महाभियान के सिलसिले में मुझे पास के गांवों का दौरा करना है। ’’

‘‘ मैं भी साथ चलूंगी। हम आपके पुराने गांव भी चलेंगे। ’’

‘‘ जैसी आप की इच्छा। ’’

अभिमन्यु और अन्ना कार में बैठकर अपने पुराने गॉंव तक पहुचे साथ में जिले के अन्य अधिकारी भी थे। इसी गांव में पल्स पोलियो कार्यक्रम को शुरू किया जाना था। गांव में पहुंचते ही अभिमन्यु ने सर्वप्रथम अकबर को बुलाया।

दोनो पुराने मित्र आपस में गले मिले। उम्र की छाया अकबर के शरीर पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी।

अभिमन्यु ने अकबर से कहा-

‘‘ इस गांव के प्रत्येक बच्चे को पोलियो की खुराक पिलाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। अकबर, भाभी को भेजकर गांव की हर महिला और बच्चें को सुबह पोलियो की दवा पिलाने के लिए पास वाले स्कूल में लाना है। ’’

अकबर ने तुरन्त हॉं भरी और कहा-

‘‘ सर। इस कार्य के लिए हम सब मिलकर प्रयास कर रहें हैं। सभी को खुराक पिलाने की जानकारी देदी गइ है कार्ड भी बनवा दिये हैं ओर इस कार्य के लिए हमने एक समिति भी बना दी है। ’’

‘‘ गुड। वेरी गुड।’’ अभिमन्यु बोल पड़ा।

अचानक अभिमन्यु को अपना बचपन याद आया। उसने अकबर से पुराने मित्रों के बारे में पूछा। अकबर के मॉं बाप के बारे में जानकारी ली। वे कुशल थे। अभिमन्यु को अपने माता पिता के चले जाने का दुख था, मगर उसने जाहिर नहीं होने दिया।

गांव का निरीक्षण करने के बाद अभिमन्यु अपने अमले के साथ वापस जिला मुख्यालय आ गया। दूसरे दिन प्रातः अन्ना ने पल्स पोलियो कार्यक्रम का श्रीगणेश किया। इस अवसर पर उसने कहा-

‘‘ आज देश को एक निरोग और स्वस्थ पीढ़ी की आवश्यकता है, पूरे विश्व में पोलियो का उन्मूलन हो रहा है, हमें इस कार्य में पीछे नहीं रहना है। हर बच्चे को जिस की उम्र पॉंच वर्प की हो उसे पोलियो की दवा पिलाकर पोलियो को जड़ से मिटाना है। ’’

शाम तक जिले के हर बच्चे को पोलियेा की दवा पिलाई गई। अन्ना व अभिमन्यु ने मिलकर जिले में इस काम को सफल किया।

अभिमन्यु अपने कार्यालय में बैठा था। पी.ए. ने आकर बताया कि जिले की शान्ति समिति के सदस्य मिलना चाहते हैं। उसने उन्हें अन्दर भेजने के आदेश दिये। जिले की शान्ति समिति का पुर्नगठन किया गया था। अकबर, मिसेज प्रतिभा, अवतारसिंह, आदि को शामिल कर के अभिमन्यु ने समाज के सभी लोगों को प्रतिनिधित्व दिया था।

समिति में कुछ बुद्धिजीवियों को भी लिया गया था। समिति के लगभग सभी सदस्य एक साथ आ गये थे, यह एक अनौपचारिक उपवेशन था। अभिवादन के बाद अभिमन्यु ने कहा-

‘‘ कहिये आप लोगों ने कैसे कप्ट किया ? ’’

अकबर ने कहा-

‘‘ सर समिति का काम-काज तो ठीक चल रहा है, मगर राजपुर की सीमा अन्य प्रान्त की सीमा से मिलती है और प्रान्त में उग्रवाद व आतंकवाद के कारण कभी कभी परेशानी आ जाती है। ’’

‘‘ हॉं आतंकवाद की समस्या सर्वत्र हैं। हमें इस दिशा में भी सोचना चाहिये। ’’ आप बताईये हमें क्या करना चाहिये। ’’ अभिमन्यु ने पूछा।

‘‘ हमारी सीमाओं पर हम निगरानी बढ़ा दें। जहॉं कहीं भी अपराधी हो उन्हें पकड़ने की कोशिश करें ? ’’

‘‘ लेकिन अपराधियों को पकड़ना मुश्किल काम है।’’ अवतार सिंह ने कहा।

‘‘ मुश्किल कुछ नहीं हे। यदि जन-सहयोग हो तो उग्रवाद पर काबू पाया जा सकता है।’’ अभिमन्यु ने कहा।

समिति के सदस्य इस बात से सहमत थे कि अपराधियों को पकड़ने के प्रयास में जन-सहयोग आवश्यक है।

मिसेज प्रतिभा बोली-

‘‘ सर पिछली बार बस में बम फटने से पांच निर्दोप लोग मारे गये थे।’’

‘‘ हां मगर वह एक दुखद घटना थी। और हमने इस घटना को पुनः नहीं होने देने के लिए उपाय कर लिये हैं। ’’

‘‘ आतंकवाद की सर्वत्र निन्दा होनी चाहिये।’’ ये युवा हमारे ही समाज के एक भाग हैं लेकिन गुमराह हैं। गुमराह को सही राह पर लानें के प्रयास किये जाने चाहियें हमें और सरकार को एक जुट होकर इन उग्रवादियों को देश की मुख्य धारा से जोड़ना चाहिए।’’ शान्ति समिति के वयोवृद्ध सदस्य सेवानिवृत प्राचार्य जी बोल पड़े।

सभी ने उनकी बात का समर्थन किया।

‘‘ सर आतंकवाद के अलावा भी कुछ समस्याए हैं जिन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। ’’ अकबर फिर बोल पड़ा।

‘‘ कहो। ’’

‘‘ साम्प्रदायिक तनाव, जातिवादी गठबंधन और स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं। ’’

‘‘ देखो भाई, यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे जिले में अभी भी दंगे नहीं हुए हैं।’’ अभिमन्यु ने हॅंसते हुए कहा।

सभी हॅंस पड़े।

‘‘ और जहॉं तक तनाव या जातिवादी गठबंधनों का प्रश्न है ये सर्वत्र हैं और स्थिति विस्फोटक नहीं है। यदि कोई खास समस्या हो तो उस पर ध्यान दिया जा सकता है। ’’

‘‘ नहीं ऐसा तो नहीं हे। ’’ एक नक कहा।

‘‘ स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों के लिए अतिरिक्त जिलाधीश व जिले के चिकित्सा अधिकारर अच्छा कार्य कर रहें है, यदि आप चाहे तो उनसे भी मिल सकते हैं। ’’

‘‘ सर एक बात और। ’’ प्राचार्य ने कहा-

‘‘ हमारे गांव के पास की फैक्टी से हानिकारक गैसों का रिसाव होता है। उसे रोकने के लिए कई बार निवेदन किया है। ’’

‘‘ हॉं मुझे याद है, हमने सरकार को लिखा है और शायद शीघ्र इस फैक्टी में गैसों को साफ करने के उपकरण लगा दिये जायेंगे। इस फैक्टी से निकलने वाले दूपित जल को भी गांव में नहीं छोड़ा जायेगा। इसे भी साफ करने के संयत्र दिये जायेंगे। इस सम्बन्ध में आदेश कर दिये गये हैं।’’

‘‘ जी बहुत अच्छा। ’’

एक अन्तिम बात सर। अवतार सिंह बोल पड़ा।

‘‘ सर कच्ची बस्तियों में कुछ काम ठीक से नहीं चल रहा है। ’’

‘‘ हॉं इस सम्बन्ध में एक नयी योजना बना कर सरकार को भेजी गयी है शायद एक-दो दिन में आदेश आ जायेंगे। कल ही मैं स्वयं बस्ती का दौरा करूंगा। ’’

यह कह अभिमन्यु ने उपवेशन समाप्त कर दिया।

***

(10)

अन्ना के पास बहुत सा समय खाली रहता। करने को कुछ विशेप नहीं था। ऐसे में वो स्वयं में खो जाती। कुछ न कुछ सोचती रहती। कमरे में अकेली बैठी प्रवासी जीवन पर सोचने समझने के प्रयास करती। अन्ना ग्रामीण जीवन में महिलाओं की स्थिति पर कार्य कर चुकी थी और इसी कारण महिलाओं, विशेप कर गरीब और दलित महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती थी। सामाजिक संस्थाओं, स्वयंसेवी संस्थाओं और सरकारी प्रयासों से वह संतुप्ट नही थी। उसने कच्ची बस्ती में रहने वाली महिलाओं तथा बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रही उपेक्षाओं पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। कच्ची बस्ती में प्रोढ़ खिक्षा केन्द्र खोलने, बालिकाओं के नियमित विद्यालय जाने तथा उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी देने के लिए उसने स्वयं आगे आने का निश्चय किया।

तभी उसे पापा का टेलीफोन मिला। वे स्वयं राजपुर में कुछ समय के लिए उसके पास आ रहे थे। अन्ना को बड़ी प्रसन्नता हुई। कितने लम्बे अन्तराल के बाद वो पापा से मिलेगी। अभिमन्यु को भी इस समाचार से अच्छा लगा। अपने मॉं-बापू के जाने के बाद उसे पहली बार किसी बुजुर्ग का आशीर्वाद मिलेगा। अन्ना और अभिमन्यु पापा को लिवाने गये। पापा आये। कुशल क्षेम के बाद अभिमन्यु, अन्ना और पापा बैठे। बातचीत पापा के जीवन से ही शुरू हुई।

‘‘ पाप अपने प्रारम्भिक जीवन के बारे में बताईये। ’’

अभिमन्यु ने पूछा।

‘‘ कुछ खास नहीं। मैं हैदराबाद में पैदा हुआ था। प्रवासी राजस्थानी था। शिक्षा पूरी नहीं कर सका। मगर पैसा कमाना चाहता था। विदेश चला गया। हर प्रकार का काम किया। लगन थी। पैसा हो गया। पहले व्यापारी फिर उद्योगपति बन गया। अन्ना की मॉं विदेशी थी। शीघ्र देहान्त हो गया। अन्ना भारत आ गयी थी। मैं प्रवासी था। मन विदेश में नहीं लगा। तभी एक भारतीय नारी से मैंने दूसरा विवाह किया, यह विवाह चला नहीं। अथाह संसार सागर में मैं अकेला था। सब समेट कर वापस हैदराबाद आ गया। मैं काफी समय से शा न्त अकेलापन भोग रहा हू। आज अचानक तुम लोगों के बीच अपने को पाकर अच्छा लग रहा है। मैंने अपने पैसा का एक न्यास बना दिया है। अन्ना मुख्य न्यासी है। चाहता हू इस पैसे का सदुपयोग हो। मेरी भी पुरखों की धरती देखने की बड़ी लालसा थी। अब जाकर पूरी हुई । अपनी माटी से जुड़ने का आनन्द ही कुछ और होता है। ’’ पापा एक सांस में बोल गये।

‘‘ लेकिन पापा सब कुछ होकर भी कुछ नहीं होना यह अजीब संयोग क्यों होता है ? ’’

‘‘ क्या पता बैटा। ’’ पापा मौन हो गये।

‘‘ पापा अब आप हमारे साथ ही रहिये। वैसे भी घर में कोई बड़ा-बुजुर्ग नहीं है। ’’ अभिमन्यु ने कहा। मगर पापा ने कोई जवाब नहीं दिया।

अभिमन्यु ने फिर कहा-

‘‘ आज कच्ची बस्ती का दौरा है, अन्ना तुम भी तो चलना चाहती थी। ’’

‘‘ हॉं पापा आप भी चलिये। ’’

‘‘ हां चलो। ष्शायद मैं भी गरीबों के लिए कुछ कर पाउं। अपने न्यास से मदद दूंगा।’’

पापा, अन्ना, अभिमन्यु राजपुर की कच्ची बस्ती की तरफ चल पड़े। उबड़ खाबड़ रेत के टीलों पर बसी कच्ची बस्ती। सर्वत्र गरीबी के दर्शन, न बिजली की सुविधा न पेयजल। न शिक्षा व स्वास्थ्य।

अभिमन्यु और अन्ना को देखकर लोगों ने अपने दुखड़े रोने शुरू कर दिये। एक आदमी बोल पड़ा-

‘‘ सर सड़क पर गाड़ियां बहुत तेज गती से जाती हैं, अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं। ’’

‘‘ हूं। ’’

‘‘ और सर बिजली नहीं है। नलों में पानी नहीं आता है। ’’

‘‘ हूं। ’’

‘‘ हमारे यहॉं पर एक भी प्राथमिक शाला नहीं है। ’’

‘‘ हॉं स्कूल आवश्यक है।’’ पापा ने कहा।

‘‘ महिलाओं के लिए शिक्षा केन्द्र होने चाहिये। ’’ एक बच्ची बोल पड़ी।

अभिमन्यु समझ गया मूल समस्या बरीबी और बेकारी है और इस समस्या से निजात पाना आसान काम नहीं है। फिर भी प्रयास किया जाना चाहिये। अन्ना ने वहीं पर बस्ती की कुछ महिलाओं को एकत्रित किया और कहा-

‘‘ आप स्वयं आगे आयें। सांयकाल पढ़ाने की व्यवस्था की जा रही है। आप सांयकाल पास के मकान में एकत्रित हो और प्रोढ़शिक्षा के कार्यक्रम से जुड़े। ’’

बस्ती में पानी, बिजलीकी व्यवस्था के लिए पापा ने प्रयास किये। बस्ती के लोगों ने शुरू में ध्यान नहीं दिया। लेकिन पापा और अन्ना लगे रहे। अभिमन्यु के प्रशासनिक सहयोग से दलित वर्ग के लोगों में जागृति आने लगी। वे अपने अधिकारों को समझने लगे।

अन्ना और पापा बार बार कच्ची बस्ती जाते। लोगों को समझाते। बच्चों को स्कूल भिजवाने के प्रयास करते। रात्रि में प्रोढ़ों को पढ़ाने की व्यवस्था करते। धीरे धीरे कच्ची बस्ती में परिवर्तन आने लगे।

सामाजिक परिवर्तनों के साथ साथ कच्ची बस्ती के लोगों में भी स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूकता आई । छोटे परिवार के लाभ भी वे समझने लगे। बढ़ती जनसंख्या के खतरों से बचने के उपायों पर अब खुली चचा्र करने लगें

कच्ची बस्ती में सुधार के कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिए अभिमन्यु ने एक कच्ची बस्ती सुधार समिति बना दी ।

समिति प्रति सोमवार बस्ती में जाती, बस्ती के लोगों की समस्याओं को सुनती और समाधान के प्रयास करती। बस्ती के लोगों की समस्यसऐं भी गिनी चुनी थी। पानी-बिजली आने के बाद सड़कें और नालियां बन गई। बच्चे पढ़ने जाने लगे। अपराधी लोगों ने बस्ती में आना-जाना कम कर दिया। धीरे धीरे बस्ती की औरतें प्रोढ़ शिक्षा केन्द्रेा में आने लगी। वे हिसाब सीख गयी। हस्ताक्षर करना सीख गई। उन्हें स्वास्थ्य के बारे में जानकारी हो गयी। पापा और अन्ना के नियमित आने के कारण सरकारी अफसर भी बस्ती कीसमस्याओं पर ध्यान देने लगे। अन्ना ने महसूस किया की बस्ती की सभी समस्याओ की जड़ में नशाखोरी है, बस्ती के लोग शराब, तम्बाकू और अन्य मादक पदार्थो के आदि हैं। वे लोग कच्ची शराब का उपभोग करते है। अन्ना ने बस्ती में शराबबन्दी हेतु बस्ती के लोगों को जागरूक किया। बस्ती की महिलाओं ने अन्ना को सहयोग दिया। बस्ती की महिलाओं ने शराब की दुकान के सामने निरन्तर प्रदर्शन और धरना दिया। परिणामस्वरूप शराब की दुकान को बस्ती से दूर ले जाया गया। तम्बाकू से उत्पन्न खतरों की ओर ध्यान दिलाने के भी सार्थक परिणाम आये। नशाबंदी शिवरों का आयोजन किया गया।

तम्बाकू और अन्य दवाओं के उपयोग पर रोक से बस्ती के लोगों के जीवन-स्तर में सुधार आने लगा। गरीब घरों में दोनों समय चूल्हा जलने लगा। मर्दो की कमाई से घर में शराब के बजाय खाने-पीने का सामान आने लगा। बच्चों के कुपोपण पर भी रोक लगी। बस्ती के बच्चे और महिलाएं मिलकर छोटे-मोटे रोजगार में लग गये। कच्ची बस्ती में धीरे धीरे विकास की गंगा बहने लगी। बस्ती के लोग, अन्ना को देवी समझने लगे। अन्ना को भी अपने होने की सार्थकता महसूस होने लगी। बस्ती के विकास के समाचार धीरे धीरे राजधानी तक पहुचने लगे। पत्रकारों के सहयोग के कारण स्थानीय, प्रान्तीय राप्टीय स्तर के समाचार पत्रों में बस्ती में हो रहे परिवर्तनों पर समाचार कथाएं छपने लगी। लोगों को जानकारी मिली तो कई स्वयं सेवी संस्थाएं भी आगे आई। सरकारी अनुदान भी मिले और राजपुर की यह कच्ची बस्ती एक आदर्श बस्ती के रूप में पहचानी गई। अन्ना को अपना श्रम सार्थक होते देखकर आन्तरिक खुशी हुई। उसके चेहरे पर संतोप की मुस्कान थी। यह देख कर अभिमन्यु बोल पड़ा। --

‘‘ आज बड़ी प्रसन्न दीख रही हो, क्या बात है।’’

‘‘ प्रसन्नता की बात है। कच्ची बस्ती के विकास से मुझे लगता है मैंने एक अच्छा काम किया। मेरे होने की सार्थकता सिद्ध हुई। शायद मेरी जड़ों की खोज भी अब पूरी हुई है।’’

‘‘ अच्छा चलो तुम्हें संतुप्ट देखकर मुझे भी अच्छा लगता है। पापा कहॉं हैं ? ’’ अभिमन्यु बोला-

‘‘पापा आज वापस जाने की बात कर रहे थे, मैंने मना किया है। ’’

‘‘ नहीं उन्हें अब यहीं रहना है। मेरी ओर से भी कहना। मैं कार्यालय जा रहा हू। ’’

‘‘ जी अच्छा। ’’

अन्ना पापा के पास आयी। पापा पर अब उम्र के पड़ावों की छाया स्पप्ट दिखाई दे रही थी। मम्मी के जाने के बाद पापा टूट गये थे, फिर प्रवासी जीवन छोड़कर वे वापस अपने देश लौट आये थे। मगर यहॉं भी जीवन का आनन्द नहीं मिला था। पापा चुपचाप, शान्त पलंग पर लेटे थे। अन्ना ने धीरे से कहा-

‘‘ पापा । ’’

‘‘ हॉं बेटे । ’’

‘‘ आप वापस जाना चाहते थें। ’’

‘‘ हॉं।’’

‘‘ लेकिन पापा अब आप हमारे साथ ही रहिये। वहॉं अब है भी क्या ? ’’

‘‘ वो तो ठीक है मगर-।’’ पापा वाक्य पूरा नहीं कर सके।

‘‘ मगर-वगर कुछ नहीं आप को अब हमारे साथ ही रहना है। उनकी भी यही इच्छा है। ’’ अन्ना ने निर्णायक स्वर में कहा।

पापा कुछ नहीं बोले। शून्य में देखते रहे। अन्ना चुपचाप उन्हें देखती रही।

अभिमन्यु, अन्ना पापा अपने विशाल लॉन में बैठे थे। तभी अकबर और सेवानिवृत्त प्राचार्य भी आ गये। एक अनौपचारिक वातावरण बन गया। अभिमन्यु और प्राचार्य मिलकर स्कूल के पुराने दिनों की चर्चा करने लगे। अकबर भी बातचीत में शामिल हो गया। अचानक प्राचार्य ने कहा-

‘‘ कच्ची बस्ती के काम से जिले का नाम रोशन हुआ है। ’’

‘‘ हॉं ये बात तो है। ’’ अकबर बोल पड़ा।

‘‘लेकिन जिले में अब उग्रवाद का साया पड़ गया है। कल के अखबार में फिर एक बम फटने का समाचार है। ’’ अकबर बोला-

‘‘ लेकिन संतोष की बात है कि कोई जान माल का नुकसान नहीं हुआ है। ’’ अभिमन्यु ने कहा।

‘‘ हॉं लेकिन इस तरह कब तक चलेगा। ’’ अन्ना ने कहा ।

‘‘ यह समस्या कोई एक जिले या राज्य की नहीं है। यह एक विश्वव्यापी समस्या है। गुमराह और भटके हुए लोगों को, पड़ोसी देशों से मदद मिलती है और ये युवा हमारे देश की मुख्य धारा से कटकर उग्रवादी बन जाते हैं। इन युवाओं को समझा कर वापस मुख्य धारा से जोड़ना ही मुख्य कार्य है। ’’

‘‘ लेकिन यह तो बड़ा मुश्किल काम है। ’’ पापा बोले।

‘‘ हॉं मुश्किल अवश्य है मगर असंभव नहीं। यदि सब मिलकर प्रयास करें तो संभव है। वास्तव में मित्रता या शत्रुता स्थायी नहीं होती, स्थायी व्क्ति के स्वार्थ होते हैं। कल जो बम फटा था, उसमें गिरफतार युवा को हम लोगों ने तथा पुलिस ने समझाया और उसने आत्मसमर्पण करने का विचार व्यक्त किया है। ये भटके हुए अपने ही बच्चे इन्हें घर का रास्ता दिखाने की आवश्यकता हे। ’’

‘‘ यह तो एक अच्छा समाचार है।’’ अन्ना ने कहा।

‘‘ और सुनाओ अकबर तुम कैसे आये।’’ अभिमन्यु ने पूछा।

‘‘ सर गॉंव के स्कूल में जो प्रोढ़शाला खोली गयी है, उसमें उत्तर साक्षरता हेतु पुस्तकों की आवश्यकता थी। ’’

‘‘ ठीक है इस वर्ष सभी केन्द्रों में पुस्तकें भेजने के प्रयास किये जा रहे हैं। शायद इस बजट बाद में यह कार्य सम्पन्न हो जायेगा। ’’

मैं ट्रस्ट से भी पुस्तकें क्रय करने के लिए राशि दूंगा। ’’ पापा बोल पड़े।

सभी ने मौन सहमति व्यक्त की।

‘‘ अच्छा मैं चलूं। ’’ अकबर ने कहा।

‘‘ ठीक है। ’’

अकबर के जाने के बाद अन्ना, अभिमन्यु और पापा बैठे रहे। कुछ समय तक मौन रहा। फिर पापा बोले-

‘‘ विदेशों में इतने बरस रहा मगर यह सुकून नहीं मिला। अपनी धरती अपने लोग, अपनी मिट्टी, अपनी हवा, सब कुछ अपना और प्यारा। ’’

‘‘ पापा यही सब सोच कर तो मैं उस समय आपको छोड़कर भारत लौट आई थी। मुझे पश्चिमी जीवन की निरर्थकता का बोध हो गया था। ’’ अन्ना बोली।

‘‘ मगर आज भी कितने प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, इन्जीनियर, डाक्टर प्रतिवर्ष विदेश चले जाते हें। अभिमन्यु ने कहा।

‘‘ हॉं इस प्रतिभा पलायन को रोकने के प्रयास किये जाने चाहिए। आश्चर्य की बात है कि विदेशों में किये जाने वाले अधिकांश उच्च तकनिकि कार्य भारतीय कर रहे हैं। फिर भी वे उपेक्षित जीवन जी रहे हैं। ’’

‘‘ क्यों कि अपने देश में उन्हें साधन नहीं मिल रहे हैं। ’’

‘‘ साधनों की दुर्लभता से कोई घर नहीं छोड़ता। ’’

‘‘ घर छोड़ने का कारण महत्वाकांक्षा है। ’’

‘‘ लेकिन महत्वाकांक्षी होना बुरा नहीं है। ’’

‘‘ सवाल अच्छा या बुरे का नहीं है। सवाल ये है कि हमारा देश के प्रति भी कोई कर्तव्य है या नहीं। जिस देश में पैदा हुए, पले, बढ़े उसी देश को केवल स्वयं की प्रगति के लिए छोड़ कर चले जाना उचित हे क्या ? ’’ अभिमन्यु ने तीखे स्वर में कहा।

‘‘ शायद तुम ठीक कह रहे हो। मगर युवा मन की उमंगों को रोकना मुश्किल होता है, उस समय तो मन पंक्षी बन कर उड़ जाना चाहता है। ’’पापा ने कहा।

‘‘ पंछी बनकर उड़ने के लिए इस देश का आकाश छोटा नहीं है पापा। इस महान देश की महान विरासत में काम करने का आनन्द ही कुछ और है। ’’- अभिमन्यु बोला।

‘‘ शा यद यही सब सोचकर तुम यहीं रह गये। ’’ अन्ना ने हॅंसते हुए कहा। सब हंस पड़े।

***

अभिमन्यु अपने कार्यालय में बैठा था। आज उसके पी.ए. ने बताया कि कुछ लोग उपभोक्ता आन्दोलन के बारे में बात करने के लिए आने वाले हैं। उपभोक्ता आन्दोलन पूरे समाज पर प्रभाव डाल रहा था। शासन ने भी उपभोक्ता के संरक्षण हेतु कानून बना दिये थे। उपभोक्ता संगठन के प्रतिनिधी आये। संगठन के अध्यक्ष ने सबका परिचय कराया। फिर कहा-

‘‘ सर जिले में उपभोक्ता के हितों को ध्यान में रखने के लिए एक उपभोक्ता न्यायालय बना है, मगर इसमें अभी भी नियुक्ति नहीं हुई है। ’’

‘‘ यह कार्य शीघ्र कर दिया जायगा।’’ अभिमन्यु बोला।

‘‘जिले में उपभोक्ताओं को अगर न्याय मिल सके तो बहुत अच्छा रहेगा।’’ सचिव बोल पड़े।

‘‘ ठीक है। उपभेाक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए शासन ने कानून बना दिया है। मगर केवल कानून से काम नहीं चलता है। आप जनता को जागरूक करिये। उन्हें उपभोक्ता कानूनों की जानकारी दीजिये। उपभोक्ता को ज्ञात होना चाहिये कि जिस सेवा को वो सशुल्क प्राप्त कर रहा है, उस सेवा में होने पर उसे हर्जाना मिल सकता है। यह जानकारी जन-मानस तक पहुचाने में आप लोग क्या कर रहें हैं। ’’ अभिमन्यु ने पूछा।

‘‘ सर हम मीडिया के माध्यम से लोगों को जानकारी दे रहे हैं। ’’

‘‘ यह काफी नहीं है नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से भी लोगों को बताईयें। प्रोढ़ शिक्षा केन्द्रों में जाईये और लोगों को उपभोक्ता आन्दोलन के बारे में बताइये। कुछ उदाहरण भी दीजिये। ’’

‘‘ उदाहरण कैसे सर। ’’ अध्यक्ष ने पूछा !

‘‘ उदाहरण बिल्कुल स्पप्ट और व्ययवहारिक होने चाहिए। यदि एक व्यक्ति ने घड़ी खरीदी है और घड़ी खराब हो गयी है तो उस व्यक्ति को हर्जाने स्वरूप नई घड़ी मिलेगी या घड़ी का पूरा पैसा और यही बात अन्य वस्तुओं पर भी लागू होगी। ’’

‘‘ उपभोक्ता को अपनी बात कहने का भी अधिकार है। यदि कोई कम्पनी उसे मुआवजा नहीं देती है तो उपभोक्ता अदालत में जा सकता है।’’ सचिव बोला।

‘‘ बिल्कुल सरकार व वकील का खर्चा नहीं होता है।’’ एक अन्य साथी बोल पड़ा।

‘‘ तो आप लोग कस्बे के बुद्धिजीवियों, अध्यापकों व जागरूक लोगों को एकत्रित कीजिये और इस आन्दोलन से जनता को अवगत कराईये। प्रशासन आपको आपके वांछित सहयोग देगा।’’ अभिमन्यु ने कहा और उपवेश्न समाप्त किया।

उपभोक्ता आन्दोलन के सक्रिय कार्यकर्ताओं ने जिले के गांवों में जाकर लोगों से बातचीत ष्शुरू की। पास के एक गांव में जब वे पहुंचे तो एक किसान ने पूछा-

‘‘ मैंने एक कम्पनी से एक फव्वारा सिंचाई के लिए खरीदा है जो कम समय में ही खराब हो गया है। मुझे क्या करना चाहिये। ’’

‘‘ सर्वप्रथम तुम सम्बन्धित कम्पनी को लिखो, बिल की प्रति अपने पास रखो। यदि दुकानदार या कम्पनी तुम्हारा फव्वारा नही बदलती है या उसकी निशुल्क मरम्मत नहीं करती है तो तुम जिला उपभोक्ता न्यायालय में अपना वाद दायर कर सकते हो। वहां से तुम्हें न्याय मिल जायेगा। ’’

‘‘ लेकिन मैं तो गरीब, अनपढ और कम्पनी सर्व समर्थ.....।’’

‘‘ उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है तुमने शुल्क दिया है और कम्पनी को तुम्हारा काम करना होगा।’’

लोगों के समझाने पर किसान ने कम्पनी को पत्र लिखा गांव के मास्टर जी ने मदद की, कुछ दिनों में ही कम्पनी का आदमी आकर उसका उपकरण ठीक कर गया। गांव में यह समाचार फैला तो उपभोक्ता आन्दोलन की सार्थकता लोगों की समझ में आयी। धीरे धीरे लोगों में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जानकारी बढ़ने लगी। एक नये सामाजिक परिवर्तन काआधार तैयार हुआ।

***

सर्दियों के दिन थे। लॉन में अभिमन्यु, अन्ना और पापाजी बैठे थे। बंगले के चौकिदार ने सूचना दी कि कुछ स्कूली बच्चे मिलना चाहते हैं अभिमन्यु ने उन्हें अन्दर बुला लाने की आज्ञा दी। कुछ स्कूली बच्चे अपने स्कूलली गण्वेश में आ गये। अभिमन्यु और अन्ना ने बड़े प्यार से उनसे बातचीत शुरू की बच्चों ने बताया कि वे अभिमन्यु के पैतृक गांव से आये हे। जिला स्तरीय व खेलकूद में भाग लेकर वापस गांव चले जायेंगे।

अन्ना ने पूछा-

‘‘ तुम लोगों के गांव में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी है ? ’’

‘‘ हॉं मेम अब स्वास्थ्य शिाक्षा की जानकारी मिलती है। ’’

‘‘ अच्छा ये बताओं सभी के पास पुस्तके हैं। ’’ पापा ने पूछा।

‘‘ नहीं सर कुछ बच्चों के पास पुस्तकों की कमी है। ’’

एक बच्चे ने शालीनता से उत्तर दिया।

‘‘ क्यों ? ’’ अभिमन्यु ने जानना चाहा।

‘‘ सर गरीबी के कारण पुस्तकें नहीं खरीद पाये। ’’ एक अधिक उम्र के छात्र ने कहा।

अभिमन्यु मौन रह गये। पापा ने पूछा।’’

‘‘ अच्छा तुम्हारे स्कूल में ऐसे कितने छात्र है जिन्हें पुस्तकों की आवश्यकता है।’’

‘‘ सर करीब बीस छात्रों केा पुस्तकों तथा गणवेश हेतु यदि छात्रवृति मिल सके तो कृपा हो।’’ एक अन्य छात्र बोल पड़ा।

अन्ना फिर सोच में डूब गयी। अभिमन्यु को अपने ही गांव के बच्चों की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा। वो मन ही मन दुखी हुआ। पापा बोल पड़े।

‘‘ अन्ना मेरे न्यास से इस गांव के सभी गरीब स्कूली छात्रों को पुस्तकें तथा गणवेशों को दिये जाने चाहिये। ’’

‘‘ हॉं पापा यही ठीक रहेगा। ’’ अन्ना ने सहमति व्यक्त की। इस वार्तालाप के बीच में ही अन्ना ने देखा कि एक छात्र सहमा सा दूर खड़ा था। अन्ना ने उसे अपने पास बुलाया, प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और पूछा-

‘‘ तुम्हारा नाम क्या हे ? ’’

‘‘ मोहम्मद शरीफ ।’’

‘‘ किस के लड़के हो।’’

‘‘ अकबर का। ’’

‘‘ अच्छा तो तुम अकबर के बेटे हों। ’’ अभिमन्यु बोला।

‘‘ हॉं अंकल।’’ अब लड़का खुल गया था।

‘‘ अकबर भाई को नमस्कार कहना।’’ अन्ना बोल पड़ी।

‘‘ अच्छा गांव में किसी छात्र को छात्रवृति मिलती है ? पापा ने पूछा।

छात्रों ने कोई जवाब नहीं दिया।

अच्छा एक काम करना। गरीब छात्रों से एक-एक प्रार्थनापत्र लिखवाकर स्कूल के प्राचार्य से अग्रेपित करवाकर मुझे भेज देना मैं अपने न्यास से गरीब छात्रों के लिए वजीफा दूंगा।’’ पापा ने निर्णायक स्वर में कहा।

स्कूल के छात्रो को अच्छा लगा। वे सभी को प्रणाम कर वापस जाना ही चाहते थे। कि अन्ना ने सबको मिठाई खाकर जाने को कहा। बच्चे चहकने लगे। अभिमन्यु, अन्ना और पापा को भी अपना बचपन याद आ गया। कुछ समय बाद बच्चे चले गये।

समय गुजरता रहता है व्यक्ति के पास छूट जाती है जीवन की कड़वी मीठी यादें। आज फिर अभिमन्यु को अपना अतीत याद आ गया था।

वे कुछ उदास हो उठा। सांझ गहरा गयी थी। वे सब अन्दर चले गये।

अन्न ने कमला को बुलवा लिया था। पापा भी थे। अभिमन्यु ने भी समय निकाला था, सभी मिलकर पुरानी बातों को याद कर रहे थे। अभिमन्यु के संघर्प की गाथा एक खुली किताब की तरह थी, एक सामान्य अध्यापक से उच्च पद तक पहंचने की कथा जो सच्चाई, ईमानदारी और नैतिक मूल्यों पर आधारित थी। अभिमन्यु को देश से प्रेम था, प्रजातन्त्र से प्रेम था। लगातार काम करने से अभिमन्यु को लोगों का प्यार भी मिला था। प्रजातान्त्रिक मुल्यों में आस्था के कारण अभिमन्यु सर्वत्र आदर पाता था। वे चारों बैठे थे तो पापा बोले-

‘‘ अभिमन्यु आप अब भावी जीवन के बारे में क्या सोचते हैं। ’’

‘‘ मुझे अपने जीवन के भवितव्य से क्या करना है। व्यक्ति से बड़ा है देश , देश का भवितव्य उज्जवल होना चाहिए। व्यक्ति आते हैं, चले जाते है, महान देश रहना चाहिए और यही हम सब का लक्ष्य होना चाहिए। ’’

‘‘ फिर भी क्या सोचते हो तुम। ’’ अन्ना बोली।

‘‘ सोचना क्या है। कर्मण्येवाधिकारस्ते। बस मुझे चलते जाना है माइल्स टू गो बिफोर आई स्लीप। ’’

‘‘ फिर भी। ’’ कमला ने कुरेदा। ’’

‘‘ कुछ नहीं, अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। देश अक्षुण्ण रहे और इसमें यदि मेरा कोई योगदान संभव हो तो अवश्य हो।’’

‘‘ लेकिन यदि कोई साथ न दे तो।’’ कमला ने फिर पूछा।

‘‘ कोई बात नहीं एकला चालो रे। ’’ अभिमन्यु बोला।

‘‘ मैं चाहता हू कि मेरा देश निर्भय हो ओर सभी का सिर गर्व से उन्नत हो। सवेरे का सूरज सभी को प्रकाश दे। वो सभी को बिना भेदभाव से अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाये। यही मेरी अभिलाषा है। एक नया सवेरा हो और सभी को रोशनी मिले, यह रोशनी सभी के जीवन को आलोक से भर दें। आओं हम सब मिलकर एक नये सवेरे का स्वागत करें ;उसे प्रणाम करें। ’’

‘‘ तमसो मॉं ज्योतिर्गमय। ’’

***

  • मुख्य पृष्ठ : यशवंत कोठारी : हिंदी कहानियां, उपन्यास और गद्य रचनाएँ
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां