नरक (कन्नड़ कहानी) : के.वी. तिरुमलेश

Nark (Kannada Story in Hindi) : K. V. Tirumalesh

(यहाँ जो आए हैं, कहीं नहीं जाते)

पुण्यवंत (फिलहाल उसका नाम ऐसा ही रहे) परलोक आया और मुख्य द्वार पर खड़ा हो गया। वहाँ पर उसने पहरेदार को देखा । सोचा था कि चित्रगुप्त, उपगुप्त आदि दफ्तर में होंगे और उसे सीधा स्वर्ग भेज देंगे। मगर दरवाजे के पास एक पिल्ला भी नहीं था! जहाँ-तहाँ नोटिस चिपकाया गया था। जो पढ़ नहीं सकते, उनकी सुविधा के लिए ऑडियो संदेश समय - समय पर सुनाई दे रहे थे । पुण्यवंत जब दरवाजे के पास आया तो सूचना आई कि देहरी पर खड़े हो जाइए। फिर निर्देश आया कि दरवाजे पर जो हस्त चिह्न परीक्षण यंत्र है, उस पर अपनी हथेलियों को टेक दीजिए। ओह, यह बायोमेट्रिक है, यह सोचते हुए उसने हथेलियों को टेका। एक दीर्घ नंबर दिखाई पड़ा। कहा गया कि इसे याद रखना ।

फिर दरवाजा खुल गया। बाहरी सूचनाओं के अनुसार यह डाटुम सिस्टम में इकट्ठा करके रखा गया है कि किस जीव को नरक जाना है, किसको स्वर्ग जाना है। दरवाजे पर हाथ रखने के तुरंत बाद ही पुण्यवान लोगों के लिए स्वर्ग का दरवाजा खुल जाता है, पापियों के लिए नरक का दरवाजा खुलता है। जीवों को निर्धारित जगह जाना चाहिए। इसमें गलती होने का सवाल नहीं उठता। हमारे पुण्यवंत को शक ही नहीं था कि वह स्वर्ग नहीं जाएगा । उसका एक सज्जन परिवार में जन्म हुआ था। बचपन से ही पुण्य कार्यों में लगा हुआ था। उसने जीवन-भर दूसरों की सेवा में बिताया था। हर साल तीर्थयात्रा करता था । आसेतु हिमाचल की कई बार यात्रा की थी। पांच बार मानसरोवर की यात्रा भी की थी। वह जो कुछ कमाता था, गरीबों में बाँट दिया करता था। वह भगवान का परम भक्त था, परम साधु था, निरहंकारी था, अच्छा पति था, अच्छा पिता था और बढ़िया समाज सेवक था । आदमी क्या इससे ज्यादा पुण्यवान हो सकता है? उसकी मृत्यु भी उस समय हुई थी, जब वह नदी में डूबती एक गाय की रक्षा कर रहा था। जब घरवाले उसके शव के आगे रो रहे थे, विलाप कर रहे थे, उसने कहा, 'रे मूर्ख! मैं तो पुण्य-कार्य में मरा हूँ और मैं स्वर्ग जा रहा हूँ, बाई-बाई!'

मगर उसकी बातें उन्हें सुनाई नहीं दे रही थीं। आखिर वह कर भी क्या सकता था ? इंतजार नहीं किया जा सकता था न ? चला गया। अब बायोमेट्रिक चाबी से दरवाजा खुला। आगे एक अंधकार से भरा दालान था । उसने सोचा था कि स्वर्ग में रोशनी होगी। मगर यहाँ अंधकार था। कुछ दूर आगे बढ़ा तो धुंधली रोशनी दिखाई पड़ी। पुण्यवंत ने देहरी के आगे पांव रखा तो एलईडी बल्ब के अक्षरों में यह वाक्य चमक रहा था - 'आपका नरक में स्वागत है, यहाँ जो आए हैं, कहीं नहीं जाते हैं!' साथ में ऑडियो भी था। पुण्यवंत का दिल बैठ गया। यह क्या! मैं नरक में आ गया! मैंने सोचा था कि मुझे सचमुच स्वर्ग मिलेगा, मगर यह मुसीबत कहाँ से आ पड़ी?

इस प्रदेश में पूरा का पूरा डिजिटलाइजेशन हो गया है, क्या यहाँ यह संभव है? किससे पूछना है ? उसे लगा कि यहाँ उसके जैसे कई परदेसी आत्माएँ भी भटक रही हैं। उन्हें किसी दूसरे जीव की चिंता नहीं थी। हर कोई जीव अपनी ही चिंता डूबे थे।

विशाल दालान और वही अंधेरी धुंध, जगमगाता दीया । कई आसन । कभी-कभी 'बैठ जाइए' का ऑडियो सुनाई देता था। साथ में इसी प्रकार की अन्य कई सूचनाएँ थीं। पहले से ही निर्धारित निर्देश ।

सूचना आई कि कोई शिकायत हो तो शिकायती कमरे में जाइएगा। इसके साथ ही 'शिकायती कमरे का मार्ग' सूचना देती लाइट चमकी । पुण्यवंत तुरंत शिकायती - कमरे की ओर चल पड़ा। वह एक लंबा हाल था। वहाँ कई कंप्यूटर थे। मगर एक भी खाली नहीं था। एक आवाज सुनाई पड़ी कि आपका वेटिंग नंबर 209 है। पुण्यवंत के मुँह से 'हाय- हाय' निकली। मगर इंतजार किए बिना दूसरा मार्ग नहीं था। यहाँ दूसरा काम भी नहीं था न ? यहाँ भूख, प्यास, नाश्ता और खाने का सवाल भी नहीं था। पता चला कि शून्य हो चुका जीव ऐसी भौतिक बातों के पार होता है। वह एक सोफा पर बैठ गया। वहाँ उसी के जैसे कई लोग इंतजार में थे। कुछ देर के लिए उसे नींद ने अपने आगोश में ले लिया। यह बिना सपने की नींद थी, क्योंकि यहाँ सपने ही नहीं थे। किसी घड़ी यह सूचना आई कि नंबर 209 को कंप्यूटर के पास जाना है। पुण्यवंत वहाँ जाकर बैठ गया। कंप्यूटर ने 'वैलकम' कहा। पुण्यवंत ने ‘थैंक्स' कहा। फिर जो डिजिटल वार्तालाप हुआ, वह इस प्रकार था:

'बायोमेट्रिक कोड नंबर ?'

उसने टाइप किया।

'पास वर्ड ?'

अँग्रेजी में 'कन्नड़' शब्द टाइप किया। यहाँ भी अँग्रेजी व्यावहारिक भाषा थी ! उसने मुश्किल से अँग्रेजी सीखी थी, अब काम आया।

'आठ डिजिटल्स से कम न हो, फिर से कोशिश करें ।' कन्नड़ सात डिजिटल का था, इसलिए उसने उसे ‘कन्नड़वाला' किया।

'पास वर्ड आल्फान्यूमेरिक हो ।'

यानी ? पास में जो जीव बैठा था, जानकारी के लिए उससे पूछा, 'यह आल्फान्यूमेरिक क्या है ?' जीव को मानो इस सवाल का इंतजार था, कहा- 'लेटर और नंबर का मिला हुआ।'

बेचारा जीव, अभी छोटी उम्र का है और नरक आया है, उसने सोचा।

'क्या हुआ ?' पुण्यवंत ने पूछा।

'मोटर साइकल का एक्सिडेंट, मगर यह मेरी गलती नहीं है । '

'उम्र कितनी ?'

'बीस ।'

'यहाँ क्यों आए ?'

'उसी के बारे में पूछने के लिए।' वह जीव ज्यादा बात बढ़ाना नहीं चाहता था । उसकी अपनी ही समस्या गंभीर थी !

'कन्नडवाला 49' टाइप किया। 49 उसकी मरने की उम्र थी।

'कनफर्म के लिए नंबर 1 दबाएँ, एडिट करने के लिए 2 दबाएँ।' 1 दबाया।

'यहाँ दायीं ओर जो रैंडम नंबर है, टाइप करें।'

वह भी आल्फ़ान्युमेरिक था, जो अनोखी शैली में था। पता नहीं चलता था कि 'शून्य' कौन-सा है और 'ओ' कौन-सा है! सोचने के पहले ही दूसरा रैंडम नंबर आकर बैठ जाता था। मुसीबत ही मुसीबत है ! आखिर कोशिश करते-करते उसने उस स्टेज को पार किया।

'यहाँ की व्यवस्था कैसी है? अच्छी है तो 1 दबाएँ। अच्छी नहीं है तो 2 दबाएँ।' 1 दबाया।

'तो शिकायत क्या है? नीचे की सूची में जो चाहें, दबाएँ-'

1. समय के पहले मुझे यहाँ बुलाया गया है।

2. मैं अपना नाम भूल गया हूँ। मेरा नाम क्या है ?

3. यहाँ जो कोई आया है, उसे कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है। तब क्या करना चाहिए ?

4. बैठने के लिए कुछ और आसनों की आवश्यकता है।

5. मदद के लिए कोई नहीं है।

6. जो सूचनाएँ हैं, उचित नहीं हैं।

7. किसी नौकरी की आवश्यकता है।

8. लोगों की संख्या ज्यादा है।

9. ... ... ...

99. आदि ।

सोचा कि 2 को दबाऊँ या 99 दबाऊँ ? आखिर 99 दबाया। फिर अन्य नंबर...

तभी एक कड़कड़ की आवाज आई ? मानो कंप्यूटर को क्रोध आया हो।

'नंबर 101 को दबाना ।'

दबाया।

'बायोमेट्रिक कोड नंबर ?'

वह याद था। टाइप किया।

'पास वर्ड ?'

उसे भी टाइप किया।

'गलत पास वर्ड । फिर कोशिश करें।

गलत ? क्या हुआ ? ओह, 49 के बदले 20 टाइप किया था। सॉरी कहते हुए ठीक किया।

'समस्या क्या है?'

'मुझे स्वर्ग मिलना है, नरक भेज दिया गया है। कृपया ठीक करें!'

" इस दूसरे शब्द को सिस्टम पहचानता नहीं है। कृपया फिर कोशिश करें। '

उसे समझ में नहीं आया कि अब क्या करें। मोटर साइकलिस्ट से पूछना चाहा, मगर वह उठ कर चला गया था। वहाँ कोई दूसरा आकर बैठा था। उससे बातचीत करनी चाही, मगर उसने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की । शायद सचमुच पापी था ।

‘मैं नरक में आनेवाला व्यक्ति नहीं हूँ, कृपया ठीक करें। '

तभी एक भयानक संदेश आया : 'सिस्टम इज डाउन, बाद में कोशिश करें।' यह संदेश आते ही कंप्यूटर शट डाउन हो गया ।

जब वह मोटर साइकलिस्ट मिला तो पुण्यवंत ने उससे यह बात कही।

'यह कोई नई बात नहीं है। मैं पिछले कई सालों से यही कोशिश कर रहा हूँ। मुझे भी यही संदेश आ रहा है। पहले यहाँ पर देवता रहते थे । अब सब कुछ यंत्रीकरण से ऑनलाइन हो गया है। यहाँ आनेवालों की संख्या भी बढ़ रही है और सिस्टम पर दबाव बढ़ गया है। '

'सिस्टम की मरम्मत करनेवाले कोई नहीं हैं ? '

' हैं, मगर वे रोबोट हैं। वे हमसे बातें नहीं करते । '

'अभी मेरे पास एक रोबोट बैठा था। बात की तो जवाब नहीं दिया।'

'वह रोबोट है । '

'अब क्या करना ? '

'बार- बार कोशिश करना। '

'नरक माने यही है !'

अनुवाद : डी. एन. श्रीनाथ

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