Murdabad : Asghar Wajahat

मुर्दाबाद : असग़र वजाहत

मिलिटरी की पुरानी गाड़ी। आगे तीन-चार आदमी मजे में बैठ सकते हैं और पीछे पंद्रह-बीस आदमी और ‘लूट’ का सामान तक आ सकता है। असहन खां डकैत ने मिलिटरी की नीलामी में खरीदी थी इलाहाबाद से। डकैती और फौजदारी जैसे कामों के लिए केकड़ा दूर-दूर तक मशहूर है। आजामाबाद वाली फौजदारी में और पीरनपुर वाले डाके में यही गाड़ी थी, जो पुलिस जीप को कई मील पीछे छोड़ गयी थी। टॉप-गेयर में हवा से बात करती हैं, और इंजन इतना बे-आवाज की सोते आदमी के पास से निकल जाये तो करवट न ले।

आजकल केकड़ा अस्सी रुपये रोज में नूरू मियां के इलेक्शन में चल रहा है। रात में जब इलेक्शन दफ्तर के सामने आकर खड़ा होता है तो रोडवेज वाली जीपों की नानी मर जाती है। एक ही गाड़ी लाइट मारती है-केकड़ा और जैसा केकड़ा वैसा ही ड्राइवर। बच्चू खां भी अहसन खां डकैत के साथियों में था। अहसन खां ने बच्चू की गैंग में इसलिए रक्खा था कि दो-चार जिले में उसका जैसा ड्राइवर मिलना मुश्किल है। फतेहपुर, बांदा और हमीरपुर में बच्चू खां की ड्राइवरी का डंका बजता है। बांदा में किसी ट्रक को रोककर कहो कि बच्चू खां के आदमी हैं, फतेहपुर पहुंचा दो तो ड्राइवर इज्जत से बिठाएगा। चाय अलग पिलाएगा और फतेहपुर में छोड़ देगा।

आजकल तो बच्चू खां ने भी नूरू मियां के इलेक्शन में काम कर रहा है। मैला पाजामा और टेरीकोट की गंदी कमीज पहने केकड़ा चलाता है। जेब में माउजर रिवाल्वर पड़ा रहता है। बच्चू खां ने माउजर से शादी कर ली है। पता नहीं कब साली जरूरत पड़ जाये। हंसता रहता है और पान की पीक से पीले दांत झलकते रहते हैं। लेकिन मौके पर बिजली हो जाता है।

केकड़ा के बोनट पर एक बड़ा-सा माइक फिट है और दोनों तरफ खिड़कियों से पार्टी के बड़े-बड़े झंडे बांध दिये गए हैं। जब गाड़ी टॉप गेयर में चलती है तो झंडे इर्द-गिर्द फरफराते हैं। बच्चू खां के साथ शाहिद मियां और जग्गू बैठते हैं। जग्गू शाहिद मियां का बॉडीगार्ड है। छाया की तरह पीछे-पीछे लगा रहता हे। जब कोई काम नहीं होता तब कोठी के दलान में बैठा बीड़ी पिया करता है या खाना पकाने वाली छोकरी रसूलन को छेड़ता रहता है। जग्गू को नूरू मियां ने बचपन से पाला है। अब तो खा-पीकर अच्छा-भला पहलवान है।

‘‘भाइयों और बहनों - आप अपना कीमती वोट हमारे उम्मीदवार नूरू मियां को देकर जिले की तरक्की में हाथ बंटाएं।’’ स्पीकर शाहिद मियां के हाथ में है। हेल्लो-हेल्लो, ठक-ठक।

‘‘हेल्लो-हेल्लो, महिलाओं....देवियों और सज्जनों! लोकसभा के उम्मीदवार श्री नूरूद्दीन अहमद को अपना वोट देकर हमारे हाथ मजबूत कीजिए....’’याद रखिए...यार मुख्तार, चौराहे से और लौड़ों को पीछे भर लो। नारे लगाने वालों की कमी हो गयी है। और ये लो पांच रुपये। सालों को मूंगफली बांट देना, शाहिद मिंया ने खड़खड़ाता हुआ नोट बढ़ा दिया।

‘‘भाइयों और बहनो...’’ शाहिद मियां ने भाषण शुरू कर दिया। पीछे बैठे सब लोग उतरकर सिगरेट सुलगाने लगे ‘‘जैसा कि आप सबको मालूम है, सिंडीकेट वाले बहुत परेशान कर रहे हैं। हम आप से दो-टूक बात ये कह रहे हैं कि एक बार हमें पांच साल का मौका दीजिए। फिर आप देखिएगा कि मुल्क की हालत में क्या चेंज आता है। सिर्फ एक मौका दीजिए। यदि देश में समाजवाद न आया और जिसे केवल और सिर्फ हमारी पाटी ही ला सकती है। तो देश बराबर हो जाएगा....।’’

‘‘बस यार ज्यादा भाषण न करो। अपना ही एरिया है,’’ हैदर ने शाहि मियां के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘और फिर यहां कोई तुम्हारा भाषण क्या समझेगा। तुत तो कल रामलीला के मैदान में बोलना।’’
‘‘चुप रहो यार...तुम क्या जानो। बिलकुल हथियार हो अपने ही एरिया में काम न किया गया तो झांट वोट मिलेगा’ मुख्तार बोला।
‘‘मैं जब कोई बात कहता हूं तो तुम टांग अड़ा देते हो!’’..हैदर हथियार का पारा हाई हो गया।
‘‘चुतियापे की बात करो और कुछ कहा न जाए,’’ मुख्तार ने फिर छेड़ा।
‘‘ऐसी तैसी में जाए साला इलेक्शन,’’ हथियार घर की तरफ चल दिए।
शाहिद मियां ने बिगड़ती हुई स्थिति को संभाल लिया, ‘‘तुम छोड़ो यार इन बातों को, लो सिगरेट पियो।’’

हर पांच साल के बाद ही तो शहर की किस्मत जागती है। वैसे कच्ची सोई हुई सड़कों और दबी-दबी सी छोटी-छोटी दुकानों के सामने खजहे कुत्ते घूमा करते हैं। घच-घच करते हुए इक्के सवारियों को स्टेशन से कचहरी और कचहरी से बस अड्डा ले जाते हैं। साइकिल की मरम्मत की दुकानों पर गांव से आये ग्राहकों को साइकिल वाले ठगते रहते हैं। हलवाइयों की दुकानों के सामने दूर तक दोनों और मक्खियों की भरमार रहती है। एक-आध सीधी शरीफ लड़की सिर पर पल्लू डाले निकल जाती है तो कन्हई पानवाला जोर से जांघ पर हाथ मारता है और मुस्कराकर नन्हें खां को देखकर आंख मार देता है। कई-कई महीने कोई नई खबर हलचल नहीं पैदा करती। बस सीधी-सादी बेकार व निकम्मी और छोटे-छोटे आपसी झगड़ों व मारपीट की जिंदगी। पुलिस चौकी के सिपाहियों के कैरेक्टर के चर्चे होते हैं। नन्हें खां कभी-कभी ‘कव्वाली’ कर लेते हैं। लेकिन आजकल तो शहर ही बदला हुआ है। चाय के होटल रात में ग्यारह बजे तक खुले रहते हैं। वहां लिखा है ‘मेहरबानी’ फरमाकर सियासत पर गुफ्तगू न करें’ लेकिन हर आने वाला सियासत पर गुफ्तगू करता है। ‘वोट किसको देंगे नूरू मियां को या पंडित ललित नारायण मिश्रा को नूरू मियां अहीरन डाले हैं। उनको कोई हिन्दू तो वेाट न देगा। और मिश्रा जी गोश्त खाते हैं उनको हिंदू वोट देंगे अजी साहिब नूरू मियां ही थे जिन्होंने बरसात में घर गिर जाने वालों को रुपया दिलवाया था। तो क्या नूरू मियां ने अपनी गांठ से दिया था मिश्रा जी ने तो अपने पेसे से अल्लीपुर वाली पुलिया बनवा दी थी। पंडितों को राज है, जो मिश्रा जी हो गये तो एक-आध कारखाना खुलवा देंगे। नूरू मियां क्या उखाड़ लेंगे उन्हें तो पाकिस्तान चले जाना चाहिए। कैसा बगला भगत आदमी है। पहले मुस्लिम लीगी था अब...ये सियासत ही गंदी चीज है मियां! जो साला आता है वही रंग जाता है। एक ही बात है, चाहे नूरू मियां को वोट दो या मिश्राजी को। अमा इलेक्शन से कभी कुछ हुआ है पिछले बीस साल से इलेक्शन ही तो लड़ा है। झांट भी तो नहीं उखड़ी। मिश्राजी हां या नूरू मियां, सब साले एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। वाह जनाब वाह! ये आप क्या कह रहे हैं। एक काफिर और मुसलमान को...एक-एक वोट के सौ रुपये लो। जो साला दे उसी को वोट दो। ये लोग धरमात्मा तो हैं नहीं सारे वहां जाकर पैसा ही बनाएंगे नहीं साहिब ये कैसे हो सकता है अरे पांच साल में एक बार तो कौम की खिदमत करने का मौका आता है। एक वोट है वो मुसलमान भाई को दे दो।’

नूरू मियां के इलेक्शन में शहर के मुसलमान लौंडे जानतोड़ मेहनत करते हैं। कई जिलों में साला एक तो मुसलमान एम.पी. है। वह भी हार गया तो शहर क्या, चार-छः जिले के मुसलमानों की नाक कट जाएगी। किसी भी पार्टी से खड़ा है-है तो मुसलमान। और फिर मुसलमानों की गांड़ में यूं ही डंडा किए रहते हैं लोग। नूरू मियां हार गए तो जनसंघियों की चढ़ बजेगीऔर लखनऊ से दिल्ली तक जिले के मुसलमानों की सुनवाई करने वाला कोई न होगा। और फिर हैदर हथियार को तो वैसे भी कुछ कम नहीं है। मुख्तार तो नूर मियां के इलेक्शन को इस्लाम जिंदाबाद समझकर काम करता है। कलूट का अंडे मुर्गी का कारोबार ठप पड़ गया है। थोड़ा सा नेतागिरी का शौक नूर मियां के इलेक्शन में पूरा हो जाता है। केकड़ा पर ठाठ से बैठे गांव-गांव में घूम रहे हैं। कभी-कभी तो गांव में ऐसा फ्रेश माल दिख जाता है कि हैदर हथियार दबे-दबे कई दिन घूमते हैं। गांव में पुराने मेल-मुलाकातियों से मुलाकात हो जाती है और दस लोग समझते हैं कि कलूट के पास भी कुछ ‘पावर’ है तब ही तो नूरू मियां इतना विश्वास करते हैं। उमाशंकर से तो शाहिद मियां की स्कूल की दोस्ती है। दर्जा एक से ग्यारह तक दोनों साथ पढ़े है। दोनों मुस्लिम स्कूल के पीछे वाली मस्जिद में बैठकर ठर्रा पिया करते थे। गर्ल्स स्कूल की लौंडियों का साथ-साथ पीछा करते थे और शाहिद मियां के बटाईदारों की लड़कियों को सरसों के खेत में साथ-साथ ‘ठीक’ किया करते थे।

इलेक्शन से दो हफ्ते पहले शाहिद मियां एक बार उमाशंकर के पास आते हैं, कहते हैं, ‘‘उमाशंकर अबकी फिर इज्जत का सवाल है।’’ उमाशंकर उसको मूलचंद परदेसी के होटल में चाय पिलाता है। मूलचंद परदेसी शाहिद मियां के जाने के बाद उमाशंकर से हाथ जोड़ने लगता है। ‘‘भाई उमाशंकर जी अबकी बार तो शराब का ठेका मुझे दिलवा दो।’’ उमाशंकर दिल से हंसता है। अब साले आए हो रास्ते पर। पूछता है, ‘‘परदेसी तुम्हारा कितना हिसाब हमारी तरफ बाकी है।
‘‘अजी एक पैसा नहीं बाबूजी। अब तो एक ही इच्छा है भगवान से कि शराब का ठेका...।’’

उमाशंकर खद्दर का कुर्त्ता झाड़ता हुआ कहता है, ‘‘शाहिद मियां कुछ न कर सकेंगे....’’मूलचन्द परदेसी पीला पड़ जाता है तो उमाशंकर आगे बढ़ते हुए कहते हैं ‘‘नूर चच्चा से बात करेंगे तुम्हारे लिए।’’ मूलचंद परदेसी की आंखें फिर फैल जाती हैं। उमाशंकर की छाती फूलकर अल्लीपुर वाला ऊसर हो जाती है। अरे बाप रे बाप-एक एम.पी. बिलकुल अपना आदमी।
‘‘अमां तुम भी अजीब लुर आदमी हो जरा-जरा सी बात में नयी दुल्हन की तरह तुनक जाते हो....फिसला देते हो...।’’ ही-ही-ही-ही उमाशंकर हंसने लगा।
‘‘यार हद होती है मजाक की भी जब देखो साले पीछे पड़े हुए हैं। अभी इलेक्शनन होता तो बताता,’’ मुख्तयार ने हैदर की नकल की।
‘‘क्या बताते तुम क्या जानो इलेक्शन किस चिड़िया का नाम है आराम से केकड़ा में घूम रहे हो। मुफ्त में चाय-सिगरेट मिल रही है। तुम तो चाहते होगे कि साला साल भर इलेक्शन रहा करे।’’

‘‘क्यों क्या अपना काम नहीं है करने को’’ हैदर बोले फिर जल्दी ही ठंडे पड़ गए। हैदर के पास सचमुच कोई काम नहीं है करने को। बड़ी मुसबत में चुंगी में नौकरी लगी थी तो साली पहली ही छटनी में चली गर्ई। अब वे सुबह चाय पीकर घर से बाहर निकल आते हैं। थोड़ी देर नसीर की दूकान पर बैठते हैं। वहां से चचा के होटल पर आकर ‘सियासत’ पढ़ लेते हैं। वहां से उठे तो मामू की दूकान में फ्री फंड में शेव बनवाया। कुछ देर मामू से गप मारी तो दोपाहर हो गयी। घर आकर खाना खाया और सो लिए।

नौकरी साली कहां मिलती है यू.पी. के चारों शहरों-फतेहपुर, कानपुर, इलाहाबाद और लखनऊ के इम्लायमेंट एक्सचेंजों में नाम लिखा है। दो -चार सौ रुपये खर्च हो गये मगर नौकरी नहीं मिली.... और घरवालों से बीड़ी साबुन के पैसे कब तक मांगें तंग आकर वही धंधा शुरू कर दिया जो अनवर के बिना चैन नहीं पड़ता है। एक मुनीर तंबाकूवाला, दूसरा रामरतन बजाज और तीसरा मास्टर अब्दुल गफूर पगलेट। ये तीनों आदमी अनवर को दो रुपये हफ्ता दिया करते थे। जब हैदर हथियार ने शुरू-शुरू में ये धंधा किया तो नन्हें खां ने बहुत समझाया था-अब साले नामर्द हो जाओगे। इन साले घूसटों ने अनवर को तो चूस के फेंक दिया। अब तुम्हें फांसा है।....कुछ मजा भी तो न आता होगा-मगर कोई रास्ता नहीं है। कम से कम घरवालों से बीड़ी और साबुन के पैसे तो नहीं मांगने पड़ते। और फिर मास्टर अब्दुल गफूर पगलेट कभी-कभी आमलेट भी खिला देता है।

शाहिद मियां को कसरत का शौक है। चौड़ा-चकला सीना और तगड़ी बाहें। टेरीलीन की तंग पैंट और चमचमाती बुशर्ट में काफी जंचते हैं। गोरा रंग, चौड़ा माथा, हाथ में बंधी कीमती घड़ी। कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते छोटे-मोटे नेता हो गये हैं। कॉलिज यूनियन तो उनके बाप की जागीर है। कोई साला मुकाबले पर खड़ा होने की हिम्मत ही नहीं कर सकता है। कॉलिज प्रिंसिपल को मारने के बाद तो बड़ा दबदबा हो गया है। थाना कोतवाली भी करते हैं! जुए, शराब और लड़कियों को छेड़ने की इल्लत में बंद साथियों को छुड़वा लाते हैं। दारोगा जी से याराना है। सगे चाचा एम.पी. हैं। दारोगा साला भी डरता है कि साला ‘अल्ला मियां के पिछवाड़े’ न ट्रांसफर करवा दे। फिर शाहिद मियां बात-बात में कहते हैं-यू.पी.-उ.पी. के लोगों को तो मैं कम ही जानता हूं। हां, दिल्ली का कोई काम हो तो बताओ। दिल्ली... छोटा-मोटा आदमी तो नाम सुनते ही शंट हो जाता है। शाहिद मियां तो हीरो हैं हीरो। जावा मोटरसाइकिल पर निकलते हैं। जग्गू सोलाबोर बंदूक लिए पीछे बैठा रहता है। बाकरगंज के चौराहे पर रुकते हैं और जोर से चिल्लात हैं-अबे रहमत, सुज्जन, सगीरा, छिद्दू सालो कहां हो। रहमत चचा के होटल में उतर आता है। शाहिद मियां जग्गू के हाथ से सोलाबोर लेकर कहते हैं, ‘‘साले अभी तुम्हें गोली मार दूंगा। खैराती से अभी तक रुपया नहीं लाया’ रहमत हंसता है। बड़े मज़ाकी हैं शाहिद मियां। पर ख़याल भी कितना रखते हैं। अदनापुर वाले डाके में सजा खाये बिना न बचता। शाहिद मियां की ही हिम्मत थी जो रोज़नामचा बदलवा दिया था। ‘‘तुम लोगों को सालो, पिछले इलेक्शन की तरह जानतोड़ काम करना है।’’ और फिर जावा फट से स्टार्ट हो जाती है।

केकड़ा चुंगी चौकी के सामने चाय की दुकान पर रोक दिया गया। शाहिद मियां नीचे कूद पड़े। पीछे से लड़के कूदने लगे। नारे लगाने वाले लौंडे कहने लगे कि हम भी चाय पीयेंगे। शाहिद मियां ने कहा, ‘‘सालो पांच रुपये की मूंगफली खा गये अब चाय पियोगे भाग जाओ यहं से...।’’ हैदर हथियार, उमाशंकर और मुख्तार के कूदने के बाद कलूट उतरे। उनके गंजे सिर पर तीन-चार बाल पार्टी के झंडे की तरह लहरा रहे थे।
जग्गू ने चाय का आर्डर दिया-पंद्रह समोस,े तीस रसगुल्ले, पंद्रह चाय, तीन पैकेट पानामा और बाद में पंद्रह पान।

‘‘यार शाहिद मियां, तुम कलूट चचा के माथे में चुनाव निशान खुदवा दो,’’ मुख्तार ने कहा और सब हंसने लगे। कलूट मियां भी हंसे। उन्हें अपने गंजे सिर की बड़ी फिकर है। कई बार खोपड़ी घुटवा चुवे हैं। बाल उगाने वाली सारी दवाएं लगा चुवे हैं। कुछ दिन हुए ‘सियासत’ में पढ़ा था कि एक जापानी डॉक्टर सिर पर ट्रैक्टर चलाकर बाल उगा देता है। लेकिन इस जापानी डॉक्टर वे बारे में काफी छान-बीन वे बाद भी पता नहीं चल सका, कई महीने अंडे की जर्दी मली। मगर सब बेकार।
‘‘शाहिद मियां, कल चल के पपड़ीखेड़ा वाले परधान से मिल लेव। आज बाज़ार में मिला रहे तो पांच हज़ार हांकत रहे,’’ जग्गू बोला।
‘‘पांच हज़ार साला गांजा ज़्यादा पी गया था क्या गिने-चुने एक हज़ार वोट हैं साले के पास।’’
‘‘वो ऐसे ठीक न होगा यार। तुम दरोगाजी को भेजकर देशी शराब की इसलत में चालान करवा दो तो काम बन जाये,’’ उमाशंकर बोला।
‘‘वो तो सब हो जायेगा यार। मुझे असली फिक्र शहर की है।’’
‘‘देखो शहर के सेंट-परसेंट मुसलमानों के वोट तुम्हारे हैं। मुसलमान साले तुम्हें वोट नहीं देंगे तो जाएंगे कहां’ उमाशंकर ने कहा।
‘‘क्या कहते हो यार सेंट-परसेंट। भाई साहब, कसाइयों का एक भी वोट नहीं मिल रहा है आपको। खैराती ने जनसंघियों से पांच सौ रुपये ले लिये हैं,’’ मुख्तार ने बताया।
‘‘अच्छा! खैराती अब ये करेंगे जब साले गउकुशी में पकड़े जाएंगे तो जनसंघी ही उन्हें बचाएंगे आना तो उन्हें चचाजान ही के पास है।’’
‘‘भइया अगर...।’’

शाहिद मियां बात काटकर बोले, ‘‘देखो जग्गू कसाई टोले में जाकर कह दो कि अगर जनसंघ को वोट दिया और बाद में गउकुशी में पुलिस गांड़ में डंडा करे तो कोई चचाजान के पास न आए।’’
‘‘जुलाहों के वोटों का क्या हुआ’

‘‘देखो,’’ शाहिद मियां आंकड़े देने लगे, ‘‘शहर में मुसलमानों की सबसे बड़ी बिरादरी कुंजड़ों की है। उनका मुखिया चचाजान के सामने कुरआन उठा चुक है। दूसरी बिरादरी चिकवों की है। उनकी मस्जिद में चचाजान परसों नमाज़ पढ़ने गये थे। वहां यासीन ने नामज़ के बाद पूरी बिरादरी से कहा है कि जो नूरू मियां को वोट न मिले तो रोटी-बेटी बंद हो जाएगी। उसके बाद जुलाहों का नंबर आता है। उनकी डिमांड ये थी कि इमली तले की मज़ार बनवा दो जाए। तो कल से उसमें काम लग जाएगा। साला छोटा दारोगा किस दिन काम आएगा अब सवाल उठता है हिंदू वोटों का, तो भाई साहब, आपके अध्यक्ष शर्मा बाबू तक ललितनारायण मिश्र की कन्वेसिंग करते घूम रहे हैं। ये हाल है तास्सुब का। चचाजान ने दिल्ली और लखनऊ तक उनकी शिकायत की है। देखो क्या होता है। लेकिन ठाकुर वोट आपको मिलेगा...’’
‘‘अमां मौलवी सिब्तुल हसन, ‘फिदा’ चचा मियां के खिलाफ प्रोपेगेंड करते घूम रहे हैं,’’ मुख्यात ने कहा।
‘‘उससे क्या होता है शियों के कितने वोट हैं शहर में ज़्यादा-से-ज़्यादा दो तीन सौ... और मौलाना मियां का सुन्नियों पर कोई असर है नहीं। मौलाना इस्लामुलहक और मौलाना मुहम्मद अहमद चचाजान के पक्के सपोरटर हैं। मौलाना इस्लामुलहक की लड़की वाले केस में चचाजान न...’’
‘‘तुमने भी तो बहती गंगा में हाथ धोये थे, ’’ किसी ने कहा और सब हंसने लगे। शाहिद मियां झेंप गये।
‘‘यार छोड़ो उस किस्से को...।
सामने पान की दुकान से रज्जाक भागता हुआ आया।’’ शाहिद मियां, अभी-अभी जनसंघियों की जीप स्टेशन की तरफ गयी है। छेक लेव रास्ते में...।’’
‘‘बैठो-बैठो-जल्दी करो यार,’’शाहिद मियां, चिल्लाने लगे।
सब लोग जल्दी-जल्दी केकड़ा पर बैठने लगे।
‘‘जल्दी बैठो...यार बच्चू खां प्यारे जरा ड्राइवरी की कला दिखा दो।’’
बच्चू खां ने टॉप गेयर में केकड़ा डाल दिया। केकड़ा लाइट मार गया।
बहेलियन टोला के सामने से जनसंघियों की जीप आती दिखाई दी। केकड़ा उसके बिलकुल पास जाकर बीच सड़क पर रुक गया। केकड़ा का लाउडस्पीकर गरजने लगा-
‘‘जनसंघी हाय-हाय’’
‘‘पकड़ संघी हाय-हाय’’
और जवाब में-
‘‘नूरू मियां हाय-हाय’’
कुछ ही देर में सिर्फ हाय-हाय ही सुनाई देने लगी। दोनों उम्मीदवार केवल एक-दूसरे पर हाय-हाय कर रहे थे। दूर तक बस हाय-हाय था।
‘‘जग्गू इस तरह काम नहीं चलेगा। चार छः लौंडों को बोनट पर खड़ा करो।’’

जग्गू सामने से कूदकर बोनट पर चढ़ गया। पीछे मुख्तार और उसके साथ दो और लड़के केकड़ा के बोनट पर खड़े होकर नाचने लगे। हाय-हाय की आवाजों के साथ नाच तेज होता गया तो मुख्तार ने पहले आनी कमीज और फिर पाजामा उतार दिया।
‘‘शेम-शेम-शेम-शेम-शेम-शेम’’
‘‘शेम-शेम-शेम-शेम’’
दोनों लाउडस्पीकर बिना मतलब समझे ‘शेम-शेम चिल्ला रहे थे, लेकिन फैलती आवाजों के साथ यह शब्द आसपास और दूर की चीजों के साथ अर्थ देता दिखाई पड़ रहा था।
‘‘साइड दो, जीप आगे जाएगी’ जनसंघियों की जीप से आवाज आई।
‘‘साइड नहीं दिया जाएगा। जीप कच्ची पर उतार कर ले जाओ।’’
‘‘ये कौन सी सभ्यता है’
‘‘सभ्यता गयी अपनी मां की चूत में,’’ लाउडस्पीकर ने जवाब दिया।
‘‘पकड़ संघी हाय-हाय’’
बोनट पर से मुख्तार चिल्लाया- छेंक लिया है सालों को, जाने न पाए।’’
जीप वाले थक गए तो जीप बैक होना शुरू हो गयी।

जनसंघियों की ऐसी-तैसी करने के बाद जब केकड़ा आफिस की ओर लौटा तो शाहिद मियां बहुत खुश थे। एक साला झटहा-सा दादा है राम! उसी के बलबूते जनसंघी अकड़ा करते थे, जबकि राम को कल्लन वगैरह का गिरोह कई बार बुरी तरह ठोंक चुका है। यार मोहर्रम की गश्त में राम ने दो लड़कियों को छेड़ा था। दोनों पनी मोहल्ले की थीं। कल्लन को पता चल गया तो राम को घर से निकाल लाया था और जी.टी रोड पर पचास जूते मारे थे।

इलेक्शन आफिस के सामने रोडवेज की जीपें खड़ी थीं। दाहिनी ओर दीवार पर बहुत बड़े शब्दों में नुरूद्दीन का नाम लिखा था। अंदर बड़े से हाल में मैली चादर पर बैठे बहुत लोग बीड़ियां पी रहे थे। कहीं-कहीं पर सफेद टोपियां झलक रहीं थीं। सामने की ओर आफिस इंचार्ज कैसर मियां पेट्रोल वाले का हिसाब कर रहे थे और वह लगातार पाजामे में हाथ डाले खुजा रहा था। अल्लन ड्राइवरों को पैसे बांट रहे थे। बिंदू काका देहात से आए कार्यकत्ताओं को दस-दस रुपया खुराकी दे रहे थे। आफिस इंचार्ज कैसर मियां के सिर के बिलकुल ऊपर सौ पावर का बल्ब लटक रहा था। शाहिद मियां को देखते ही कैसर मियां ने उन्हें अपनी ओर आने का संकेत दिया।
‘‘कुछ हुआ’ कैसर मियां ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
‘‘चचाजान से कहा तो है...’’
‘‘अब कहने सुनने से काम नहीं चलेगा। दो हजार रोज का खर्च है। इलेक्शन है, कोई हंसी-खेल नहीं है। ऐरा गैरा नत्थू खैरा तो साला लड़ने के बारे में सोच ही नहीं सकता है। जल्दी-से-जल्दी रुपये का बन्दोबस्त नहीं हुआ तो चाचा इलेक्शन हार जाएंगे।’’
‘‘मुख्तार साहब भी दिल्ली से नहीं लौटै। पैसा ही लेने गए हैं।’’
‘‘दिल्ली-पिल्ली को छोड़ो। तुम घर से पैसा ले आओ।’’
‘‘चचा कहते हैं घर के पैसे से कोई इलेक्शन नहीं लड़ता है।’’
कैसर मियां उनको घूरते रहे और शाहिद मियां उठ गए। दरवाजे के पास से जग्गू ने उन्हें इशारा किया था।
‘‘बारह बजने वाले हैं।’’
‘‘ले आए हो’
‘‘हां, गाड़ी में रखी है।’’
‘‘और सब लोग हैं’
‘‘हां सब रुके हुए हैं।’’
‘‘नन्हू के होटल से कवाब लाए’
‘‘चलते टाइम केकड़ा रुका के ले लेंगे।’’

एक बार फिर खास-खास लोग गाड़ी में बैठ गए। केकड़ा स्टार्ट हुआ। रात के बारह बज चुके थे। सड़कें वीरान थीं। छोटी-छोटी दुकानों के ऊपर बड़े-बड़े ताले लटक रहे थे। जी. टी. रोड पर एक-आध ट्रक निकल जाता था। केकड़ा अस्पताल होता होता हुआ मानसिंह की कोठी के सामने से स्टेशन की तरफ फर्राटे भरने लगा।
‘‘शाहिद मियां, नाके पर जनसंघियों ने बड़ी झंडियों-पंडियां लगाई हैं। पहले उसी को साफ कर दिया,’’ मुख्तार ने बताया।

केकड़ा स्टेशन की तरफ नहीं मुड़ा, सीधा आगे बढ़ता रहा। चिलवर और शीशम के पेड़ों पर रोशनी पड़ती रही और बदन काट देने वाली हवा सरसराती रही। नाके के पास जाकर केकड़ा रुक गया। मुख्तार लग्गा लेकर बोनट पर चढ़ गया। ऊपर बिजली के दो खम्भों से जनसंघ का बैनर एक डोरी में बधा लहरा रहा था। नीचे एक मरियल कुत्ता भौंकने लगा तो हैदर एकहथियार ने उसे एक पत्थर मार दिया। वह पीं-पीं करता भाग गया। तमुख्तार ने एक ही झटके में डोरी तोड़ दी। सारे पोस्टर जमीन पर आ गएं जल्दी जल्दी बटोरकर सबको पीछे केकड़ा में भर लिया गया।
‘‘बैक करो गाड़ी बैक।’’
‘‘नहीं यार आगे पोल में बड़ा-सा बैनर बंधा है उसे भी साफ करते चलो।’’

आगे सचमुच पांच गज कपड़े का बैनर लगा था। पांच गज कपड़ा देखकर कलूटे के मुंह में पानी आ गया। लड़कों के पास साला पहनने का कपड़ा नहीं है। उसने मुख्तार से कहा,‘‘कपड़ा न फटने पाये धीरे से काटो।’’ चारों डोरियां काट दी गयीं और बैनर नीचे गिरा तो कलूट ने बड़ी एहितयात से तह कर बगल में दाब लिया। सब हंसने लगे।

स्टेशन से निकलकर केकड़ा रेल बाजार आया जहां बहुत से पोस्टर और झंडियां पीछे भर दी गयीं। मुख्तार अपना काम बड़ी कलाकारी से कर रहा था। एक बैनर और मिला जिसे कलूट ने तह कर अपनी बगल में रख लिया। केकड़ा फिर स्टार्ट हुआ और हरिहरगंज, जनसंघियों के गढ़ में जाकर रुक गया। ‘‘यहां झगड़ा हो जाने का डर है शाहिद मियां,’’ कलूट बोला। बच्चू खां हंसने लगा।‘‘माउजर में पांच गोली हैं कलूट भाई, ‘‘जग्गू ने भी तहमद से एक रिवाल्वर निकालकर दिखा दिया। शाहिद मिलां बोले, ‘‘ नहीं यार किसी साले की इतनी हिम्मत नहीं पड़ेगी कि हमसे भिड़े। काम शुरू करो।’’मुख्तार रस्सी काटने लगा। झाड़ियां और पोस्टर नीचे गिरने लगे। हैदर हथियार, उमाशंकर, कलूट अन्हें समेट-समेटकर पीछे भरने लगे। एक इमारत की खिड़की से किसी ने झांक कर देखा और फिर खिड़की जल्दी से बंद की ली। पीले-पीले बल्बों की रोशनी में सब साफ-साफ दिखाई दे रहा था।
‘‘यार शाहिद मियां, बहुत थक गए। अब कुछ प्रोग्राम हो जाए।’’ पीछे से आवाजें आने लगीं।
‘‘कौन-सी मिली है प्यारे,’’ पीछे से फिर आवाज आई।
‘‘संतरा है,’’ जग्गू ने जवाब दिया।
‘‘चलो बढ़िया रहेगी। कवाब और दालमोट तो ले ही लिया होगा। बस इस जाड़े में संतरा मजा दे जाएगी।’’

कलक्टर साहब के बंगले और जेल होती हुई गाड़ी सुनसान सड़क पर रुक गयी। आम के पेड़ के नीचे झाड़ियां जमा करके आग लगा दी गयी औ चारों ओर सब बैठकर तापने लगे। घने अंधेरे में आग की लपटें और सनसनाती ठंडी हवा। शाहिद मियां ने घड़ी देखी तो तीन बजने वाले थे। मगर ये काम पूरा ही हो गया। कल लखनऊ से कुछ हरिजन कार्यकर्त्ता आकर हरिजनों के वोट संभाल लेंगे। इलेक्शन जीता-जिताया है।
‘‘लाओ प्यारे, खोलो संतरा,’’ हैदर हथियार आग के पास खिसककर एक ईंट के ऊपर बैठ गए।
‘‘तुम लोग भी यार संतरा को पता नहीं क्या समझते हो। अब की चचाजान इलेक्शन जीत गए तो दिल्ली चलना। ओबराय इंटरकांटीनेंटल होटल में इतनी स्कॉच पिलवा दूंगा कि हलक तक भर जाएगी। और बगल में एक-एक खूबसूरत लौंडिया।’’
‘‘वाह यार वाह! जिंदगी का मजा आ जाए, ‘‘हैदर हथियार उमाशंकर की रान पर हाथ मारकर उछल पड़े।
‘‘ये प्रोग्राम तुमने पिछले इलेक्शन में भी बनाया था। बाद में सब टांय -टांय फिस्स हो गया, ’’उमाशंकर खद्दर के पाजामे को झाड़ता हुआ बोला।
‘‘अरे यार पिछले इलेक्शन की बात छोड़ो। अबकी चचाजान का चांस है। साले पांचों उंगलियां घी में होंगी। मैं दिल्ली ही में परमानेंट अड्डा जमा लूंगा। क्या लड़कियां होती हैं दिल्ली की। साले इतनी फारवर्ड कि तुम्हारे यू.पी. की रंडियां भी उनका मुकाबला नहीं कर सकतीं।’’
‘‘तो फिर ले चलो एक बार शाहिद मियां। चाहे बाद में साली जान ही क्यों न चली जाए,’’ मुख्तार ने हैदर मियां को लिया।
‘‘छोड़ो यार क्या हरामीपन है,’’ हैदर हथियार बिगड़ने लगे।

जग्गू ने बोतल खागल दी बोतल चक्कर लगाने लगी। धीरे-धीरे गर्मी चढ़ने लगी। दालमोठ और कबाब के साथ संतरा मजा दे रहा था। लंबे-लंबे कडुवे घूंट हलक के नीचे उतर रहे थे। कुछ ही देर में संतरा सबको छाप बैठा। शाहिद मियां पिछले इलेक्शन के किस्से और दिल्ली की लड़कियों के चाल-चलन पर बातचीत करते रहे। मुख्तार को ज्यादा हो गयी तो सिर के नीचे ईंट रखकर लेट गया। कलूट ने केकड़ा से लाकर और झंडियां अलाव में डाल दीं। आग एक बार फिर भड़क उठी। उनके तमतमाते चेहरे चमक गए। जग्गू तीसरी बोतल खोलने लगा। कलूट ने लंबे-लंबे चार घुंट लिये और दोनों हाथों से सिर को पकड़कर बैठ गया। दिन-भर की थकान नस-नस से उतरने लगी। उमाशंकर के दिमाग में हाई पावर आइडिया आने लगे। इलेक्शन जाए अपनी मां की चूत में, अब नौकरी वाली बात पक्की कर ली जाए
‘‘यार शाहिद मियां, इस बार नौकरी वाला काम करवा देना,’’ उसने भर्राई हुई आवाज में कहा।
‘‘बिलकुल यार पक्की बात है, बस इलेक्शन खत्म होते ही तुम्हारा काम हो जायेगा।’’
‘‘चुप रहो यार, ये उमाशंकर साला तो पीकर हमेशा धंधे की बात करता है,’’ हैदर हथियार बिगड़ने लग।
‘‘तुम तो चुतिया हो। धंधे की बात न करें तो साले पेट को कहां ले जाएं।’’

‘‘पेट तुम्हारे ही पास है क्या मैं बहनचोद आई.टी आई. की ट्रेनिंग करके पिछले तीन साल से घूम रहा हूं। यू.पी. के चार शहरों के बेकारी के दफ्तरों में नाम दर्ज है। मेरे पास पेट नहीं है क्या अगले साल अब्बा रिटायार हो जाएंगे तो पेट साला बढ़कर मटका हो जाएगा।’’ हैदर बोला, ‘‘चिल्लाने लगे साले बिना बात समझे अब मैंने कब कहा कि साले तुम जिंदगीभर बेकार रहो और बीड़ियां मांग-मांग कर पीते रहो’’

‘‘हां कुछ तो होवा चाही, कलूट धीरे से बोले। उन्हें चढ़ चुकी थी। कुछ साल पहले तक अंडे-मूर्गी का कारोबार करते थे। अब ठप पड़ा है। शुरू करने के लिए पैसा चाहिए। और पैसा लाटरी से आ नहीं सकता। उधार कोई देता नहीं। बैंक कोमिया लिए जाने के बाद भी एजेंट साला कहता है इनकमटैक्स देते हो तो लोन मिल जायेगा। कितने बड़े-बड़े चूतिया पड़े हैं दुनिया में। अबे जो इनकमटैक्स देता है उसे लोन की क्या जरूरत पड़ेगी। कलूट मौलवी इसरार को गाली देते हैं। साले ने चढ़वा-चढवाकर पांच बच्चे करवा दिये। कहता था इस्लाम इसी तरह तो फैलेगा। अब इसरार मौलवी पता नहीं कहां चला गया है। आजकल होता तो कलूट मियां ‘इस्लाम’उसी के हवाले कर देते। पांच बच्चों को पालो-पोसो तो ‘इस्लाम की’ पोल पट्टी खुले। ठाठ से खाते हैं मुर्गी। दाढ़ी पर हाथ फेर-फेरकर फेरकर लेक्चर झाड़ते हैं साले और चल देते हैं।
‘‘हो जाएगा यार, सब ठीक हो जाएगा,’’ शाहिद मियां बोले,’’ खोल जग्गू, बोतल खोल।’’ चौथी बोतल खुल गयी।

‘‘वापसी में रास्ते-भर उमाशंकर को इंडिया अपने बाप का लगता रहा। दिमाग खोपड़ी से निकलकर ऊपर आ गया था। नसों से गरमी कबड्डी खेल रही थी। सन्न-सन्न करती ठंडी हवा गर्म कानों को छूती निकल जाती। बाकरगंज के चौराहे पर केकड़ा रुका तो हैदर हथियार और उमाशंकर कूद पड़े। केकड़ा आगे बढ़ गया। चार बज रहे थे।
‘‘सुबह दस बजे पीरनपूर चलना है,’’ हैदर ने बताया।

‘‘देखा जाएगा यार। हर्मी रह गए हैं गांड मराने को।’’ वह घर की ओर बढ़ गया। घर के दरवाजे के सामने पहुंचकर वह रुक गया। पुराना, बरसात के पानी से गला एक बेढंगा-सा दरवाजा उसके घर का दरवाजा है। जगह-जगह से छेद हो गए हैं एक चौखट नीचे से पूरी तरह गल गयी है। घर के अंदर दलान में बाबूजी की चारपाई बिछी होगी और ऊपर खूंटी से धुआं देती लालटेन टंगी होगी। पतवार से पटी दल्लान क छत नीचे झुक आयी है। लालटेन की रोशनी में बाबूजी का काला दुबला-पतला चेहरा रजाई के बाहर फटे तकिए पर एक ओर पड़ा होगा। दमें के पुराने मरीज का सीना जिस तरह फूलता पिचकता है वैसे ही बाबूजी का सीना रजाई के नीचे उठ-बैठ रहा होगा। गाल की उभरी हुई हड्डियां और सिमटी-सिकुड़ी हुई खाल, पचास भुखमरी में बिताए साल....। दूसरे पलंग पर माताजी गठरी बनी पड़ी होेंगी। कोठरी में उसका बिस्तर लगा होगा और स्टूल पर खाना रखा होगा। वह कुछ देर घर के दरवाजे के सामने खड़ा सोचता रहा। फिर कुंडी खटखटा दी। सारे मोहल्ले में आवाज फैल गई। बाबू के उठने की आवाज आई और कूत्ते भौंकने लगे।

वह अंदर घुस गया। बाबूजी फिर कराहते हुए लेट गए। वह लालटेन लेकर कोठरी में घुसा। पैर डगमगा रहे हैं और खोपड़ी सन्ना रही है।...मुर्दाबाद...अटलबिहारी...मुर्दाबाद। हाय-हाय शेम-शेम-शेम-शेम। हैदर हथियार, मुख्तार....और कलूट और चेहरे दीवरों पर तैरने लगे। ताक में रखी कुछ किताबें ऊपर उठ आयी। लालटेन रखकर उसने थाली के ऊपर से डलिया हटा दी। अरहर की दाल और जौ-चने की रोटी...! लालटेन भकभकने लगी। पेट तो शराब और कबाब से ऊपर तक भरा है। उसने दाल उंगलियों में लेकर मुंह में डाल ली। ठंडी दाल गर्म सीसे की तरह हलक में उतर गयी। उसके दिमाग में हाय-हाय मुर्दाबाद की तकरार होने लगी।

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