मुक्ति (मलयालम कहानी) : तकषी शिवशंकर पिल्लै
Mukti (Malayalam Story in Hindi) : Thakazhi Sivasankara Pillai
बोट नहर से नदी में आयी तो ड्राइवर ने इंजन खोल दिया। नदी में नीचे तक लहरों को बनाते हुए वह यान तेजी से चल दिया था। बीच-बीच में घृणासूचक शब्द बना रहा था। उसकी चाल में एक प्रकार का विराग देखा जा सकता था। मानो कह रहा था कि 'वहीं खड़ा रह!' शायद किसी नापसन्द को लिये बिना जा रहा होगा। दूर तक दौड़कर वे निराश होकर किनारे कहीं खड़े रह गये होंगे। जो भी हो, उस बोट की गति में एक प्रकार की हृदयहीनता दिखाई दे रही थी।
बोट के यात्रियों में चार-पाँच बालक भी थे। वे साथी थे। दोनों किनारों को देखते मजा ले रहे थे। पेड़-पौधे पीछे दौड़ते। लहरें उठकर किनारे तक चढ़तीं। किसी घाट पर रखा एक घड़ा लहरों में उठकर नदी की ओर बह आया। लड़कों के लिए वह बढ़िया मजाक बना रहा।
एक लड़के ने बोट के अन्दर एक विशेष चीज देखी। उसने दोस्तों से कहा, “देखो, एक चिड़िया।”
वह उस ओर बढ़ा।
एक यात्री बोट के नीचे के हिस्से पर बैठा था। सामने दो तल्लों वाली एक छोटी पेटी थी। उसके नीचे का हिस्सा लोहे की छोटी तीलियों वाला पिंजड़ा था। सोने के रंग की एक छोटी चिड़िया उसके अन्दर बैठी अपनी सुन्दर चोंच से कोई आवाज दे रही थी। ऐसी सुन्दर चिड़िया को आज तक बच्चों ने नहीं देखा था। वे उसे घेरकर बैठ गये।
उस यात्री ने पेटी के ऊपर के तल्ले का ढक्कन खोलकर एक डब्बा उठाया और उसमें पड़े सिक्के गिनने लगा। तब चिड़िया दूसरे बोल बोली। वह कुछ कह रही थी। सिक्का गिननेवाला शायद भाषा समझ गया होगा, उसने गिनने के बीच उसे देखा। चिड़िया चोंच खोल देती तो मालिक कुछ गुनगुनाने लगता।
पेटी में से हर चीज एक-एक करके उसने बाहर निकाली। दो किताबें भी थीं। एक लड़के ने एक किताब का नाम पढ़ा ‘पक्षी-शास्त्रम्' । पुराने लिफाफों का एक बण्डल भी था। एक लड़के ने दूसरे के कान में कहा, “जानते हो, वह क्या है? एक आना दोगे तो वह चिड़िया बाहर आकर एक लिफाफा उठाएगी।"
"हम पैसा दें तो उठा देगी?"
“हाँ, उठा देगी।"
चिड़िया का मालिक बनियान की जेब से बीड़ी-दियासलाई लेकर बीड़ी फूंकने लगा। तब भी चिड़िया कुछ बोली, एक तीसरे ही स्वर में।
यात्रियों में से एक ने पूछा, “कहाँ जा रहे हो?"
"कोल्लम्।”
“आलप्पुषा में भी थे?"
“जी हाँ।”
लड़कों में से एक ने अपनी उँगली पिंजड़े के सींखचों के अन्दर डाली। चिड़िया ने चोंच मार दी। चिड़ियावाले ने उस लड़के को डाँटा।
चिडिया और उसकी चेष्टाओं को देखने वाले एक अन्य यात्री ने कहा, "उसे भूख लगी होगी।"
"नहीं, उसका समय नहीं हुआ।”
तब दूसरे यात्री ने पूछा, “इसको क्या खिलाते हो?"
“दूध, केला, मूंग की दाल-सब कुछ देता हूँ।"
उसने पेटी को खोलकर दिखाया। उसमें छोटी बोतल में दूध था, केले थे और मूंग की दाल भी थी।
“उसे रोज क्या मिल जाता है"-एक यात्री ने पूछा। वह तो रोज बदलता रहता है। फिर भी एक बात है। इस चिड़िया के आने के बाद उसे पैसे की तंगी नहीं आयी। किसी अनजाने कोने में चला जाए तो भी एक रुपया तो मिल ही जाता है।
“इसे कहाँ से पाया?" एक यात्री ने पूछा।
“वो बात...यह चिड़िया मामूली पक्षीशास्त्र वालों के यहाँ न मिलेगी। उनके पास गौरैयाँ हैं, फँसाकर पकड़ लिये गये पक्षी। और यह...यह केवल कैलाश में मिलती है। मरेगी नहीं।"
“तुम्हें कहाँ से मिली?"
“काशी से। एक संन्यासी ने दी थी।" फिर वह उसकी कहानी कहने लगा। सभी कुतूहल से उसे सुनने लगे।
“यह पार्वती देवी के पालतू पक्षियों में से है। रोज इसे खिलाने के बाद ही देवी पानी पीतीं। पर कोई पंख गिर जाता तो फिर वह चिड़िया वहाँ रह नहीं सकती। ऐसे ही वह मनुष्य के बीच आ गयी। एक अपूर्व घटना है यह!"
एक बूढ़े ने पूछा, “वह अंग जहाँ से पंख झड़ गया, क्या देखा जा सकता है?"
“हाँ, जी।"
चिड़िया कुछ बोलने लगी। बूढ़े ने एक प्रश्न और पूछा, “यह चिड़िया क्या कह रही है?"
वह हँसने लगा।
बूढ़े का प्रश्न, “कैलाश की सारी बातें यह जानती होगी?"
वह इस भाव से हँसा कि चिड़िया ने सब बताया है और वह सब जानता है।
“पर क्या तुम बता सकते हो?"
वहीं एक बालक माँ को तंग कर रहा था कि उसे एक आना चाहिए। माँ उसे डाँट रही थी। कुछ यात्री आपस में बोल रहे थे कि इतनी विदग्ध चिड़िया से भविष्य का पता लगाएँ तो ठीक होगा। तभी चिड़िया का मालिक सारी चीजें पेटी में रखकर उठ खड़ा हुआ।
बोट आगे बढ़ रही थी। लगा कि उसकी गति तेज हो गयी है। पके धान के खेतों के बीच से होकर एक नीली रेखा के समान पम्पा नदी बह रही थी। कुछेक चिड़ियाँ फुदकती-कूदती और आसमान की ओर उड़ती दिखाई दीं। समृद्धि और आजादी का सन्देश लेकर मानो पश्चिमी हवा उन चिड़ियों को दुलार रही थी।
पिंजड़े के पास बैठे एक लड़के ने धीरे से एक सींखचा हटा दिया। द्वार खुल गया। चिड़िया चहककर उड़ गयी। बेचारा मालिक डर गया। बोट में बैठे लोग दंग रह गये। मालिक चिल्लाया। वह नटखट बालक माँ की गोद में जा छिपा।
चिड़िया पश्चिमी किनारे किसी बाड़े पर जा बैठी। एक दूसरी चिड़िया को छूते हुए आगे बढ़ गयी। वहाँ की चिड़िया भी उसके पीछे उड़ चली। पर पहले वाली चिड़िया-जैसी तेजी नहीं थी उसमें। कुछ दूर गयी ही थी कि वह एक मादा चिड़िया को घेरकर फिर उड़ने लगी।
चिड़िया का मालिक लपककर बोट के ऊपर पहुंचा। बोट में बैठे सब चिड़िया की गति देख रहे थे। पर हजारों चिड़ियों के बीच कोई उसे पहचान नहीं पा रहा था। पर उसने उसे देख लिया। वह उठती, गिरती, छिपती दिखाई देती, और फिर नारियल के पेड़ों के पीछे गायब हो जाती। फिर नीले आकाश पर एक बिन्दी के समान प्रत्यक्ष हो जाती।
वह चिड़िया उड़ रही है। पंख पसारकर तेज उड़ रही है। वह करतब दिखा रही है। वह उस ऊँचाई तक उड़ गयी, जहाँ दूसरी चिड़िया जा नहीं पायीं। वहाँ से उसने नीचे देखा : सब कितना छोटा है! कितना विशाल संसार! कैसे-कैसे दृश्य! लम्बे-लम्बे खेत, हरे-भरे बाग, बड़े-बड़े नगर, विशाल समुद्र-सब एक साथ दिख पड़ा।
वह चहक उठी, फिर चहकी। लगातार चहकती रही। गला फटता नहीं। चोंच टूटती नहीं। वही चाहती है वह। चोंच उठाये बिना वह जोर से चहकी। उसे लगा कि उसकी आवाज दिगन्तों में प्रतिध्वनित हो रही है।
अँधेरा हो गया तो वह क्या करेगी? उसे पिंजड़ा नहीं। दूसरी चिड़ियाँ उसे जानती हैं क्या? अपने घोंसलों में उसे प्रवेश देंगी क्या? उड़ते-उड़ते ऐसे स्थान पहुँचे जहाँ धान के खेत नहीं, तो क्या करे? उसे कुछ खाना नहीं है। अँधेरे की ओर उड़ेगी, प्रभात में भी उड़ती रहेगी। उसे उड़ते ही रहना है, चलते रहना है। समुद्र और स्थल के पार जाना है। उड़-उड़कर आसमान के छोर तक पहुँचना है।
उसकी दृष्टि से भी वह ओझल हो गयी। नहीं, सूर्यमण्डल में एक बिन्दी के समान वही दिखाई पड़ रही थी। ध्यान से देख रहा था वह कि तभी सूर्य की उज्ज्वल आभा में वह छिप गयी।
बोट की गति और बढ़ गयी थी। चिड़ियावाला वैसा ही खड़ा था। बोट की तरफ एक चिड़िया आती दिखाई दी। उसने कोई प्यारा नाम पुकारा। चिड़िया पास आकर फिर ऊँचे उड़ गयी। वह किसी दूसरी तरह की चिड़िया थी।
उसने बोट रोकने या फिर धीरे-धीरे चलने को कहा। उसकी चिड़िया लौट आएगी। वह कभी कहीं नहीं जाएगी। पर किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया।
उसने उस बालक को पकड़ा, जिसने पिंजड़ा खोल दिया था। चिड़िया की किसी ने डेढ़ सौ रुपये कीमत आँकी। वह रकम उसी से वसूली जाएगी।
वह फिर बोट के ऊपर चला गया। चारों ओर देखा। स्वच्छन्द होकर कई चिड़ियाँ उड़ रही थीं। केवल वही एक दिखाई नहीं पड़ रही थी।
किसी ने पूछा, “पहले भी कभी वह इस तरह उड़ी थी?"
"पिंजड़े के बाहर चली जाती थी, उड़ती नहीं थी। मेरी प्यारी...उड़-उड़कर पंख थक जाने से कहीं गिर गयी होगी।"
वह सिसक-सिसककर रोने लगा। विशाल खेतों को देख वह उत्साह से उड़ गयी थी। लौट आएगी ही। उसके हाथ से खाना चुगेगी, नहीं तो वह कैसे जिएगी?
उसने उसे पास कहीं किनारे उतारने को बोटवाले से कहा। तब किसी ने पूछा, “उतरकर तुम कहाँ से उसे पकड़ोगे?"
“सो तो ठीक है!” वह फिर रोने लगा। उसने क्षितिज के कोने-कोने में आँख दौड़ायी, पर चिड़िया की दुनिया उसके पार थी। आँसुओं के कारण वह ठीक से देख नहीं पा रहा था।
साँझ को सभी चिड़ियाँ अपने-अपने घोंसले लौटती दिखाई दीं। तो उसकी चिड़िया गयी कहाँ?
कोल्लम् में बोट से उतरकर खुले पिंजड़े के साथ वह धीरे-धीरे चलने लगा। तब भी वह आसमान पर उड़ रही चिड़ियों को देख रहा था।
बोट के रास्ते में कहीं बाड़े पर सोने के रंग की एक चिड़िया अकेले बैठी चहक रही थी। वह किसी को बुला रही थी। खेतों में फसल की कटाई हो रही थी। चिड़ियाँ उड़ रही थीं। पर वह अपरिचित थी। कभी-कभी बोटों के ऊपर वह मँडराने लगती। कभी बोट के अन्दर पहुँच जाती। उसके लिए खाना वर्जित हो गया। और अब ...अब तो किसी के पास आने पर भी वह उड़ नहीं पा रही थी।