माँ और बेटा (कहानी) : गाय दी मोपासां

Mother And Son (French Story) : Guy de Maupassant

रात का खाना खत्म कर मर्दो की टोली धूम्रपान कक्ष में बातचीत कर रही थी । वे सब अप्रत्याशित विरासत और विचित्र रूप से पैतृक धन मिल जाने के विषय पर चर्चा कर रहे थे। तब मास्टर ले ब्रुमेंट आगे बढ़े और आग की ओर अपनी पीठ करके खड़े हो गए । उन्हें हम लोग कभी एक शानदार न्यायाधीश तो कभी शानदार वकील कहा करते थे ।

उन्होंने कहा, मुझे एक ऐसे उत्तराधिकारी को ढूँढ़ना है, जो चिंताजनक परिस्थितियों में अजीब तरीके से गायब हो गया है । आम तौर पर यह जिंदगी में सामने आनेवाली भयावह घटनाओं में से एक है । शायद ऐसी घटनाएँ आए दिन होती हैं , लेकिन जहाँ तक मैं समझता हूँ, जिस घटना का जिक्र मैं कर रहा हूँ , वह शायद सबसे डरावनी है । उस घटना से जुड़े ये कुछ तथ्य हैं , जो मैं आप सबके सामने रख रहा हूँ -

करीब छह महीने पहले मैं एक ऐसी महिला के सामने खड़ा था , जो अपनी अंतिम साँसें ले रही थी । उसने मुझसे कहा, महोदय, मैं आपको एक ऐसी जिम्मेदारी सौंप रही हूँ, जो सबसे संकटपूर्ण, सबसे कठिन और सबसे ज्यादा थका देनेवाली है । कृपा कर मेरी उस वसीयत को पढ़ लें , जो वहाँ टेबल पर रखी है । अगर आप इसमें नाकाम हुए तो भी आपको फीस के पाँच हजार फ्रैंक मिलेंगे, और अगर आप कामयाब रहे तो आपके हिस्से में आएँगे एक लाख फ्रैंक । मैं चाहती हूँ कि मेरी मृत्यु के बाद आप मेरे बेटे को ढूंढ़ निकालें ।

उसने बिस्तर पर बैठने के लिए मुझसे मदद माँगी, ताकि वह और अच्छी तरह से मुझसे बात कर सके । वह कराहती हुई मुझसे बात कर रही थी । उसका दम फूल रहा था और गले से भारी होती जा रही साँस की आवाज आ रही थी ।

उसका मकान धन - संपदा से भरपूर नजर आ रहा था । उसमें सुरुचिपूर्ण सादगी से सजा - धजा एक - एक आलीशान अपार्टमेंट था । दीवार पर भव्य दिखनेवाली सामग्री की मोटी परत थी । फर्श इतना मुलायम दिख रहा था , मानो आगंतुकों का स्वागत कर रही हो ।

अपनी बची- खुची साँसें गिन रही महिला ने आगे कहा-

आप पहले शख्स हैं , जिन्हें मैं अपनी यह भयंकर कहानी सुना रही हूँ । मैं कोशिश करती हूँ कि अपने हौसले से मैं आपको यह कहानी अंत तक सुना सकूँ । आपके लिए सबकुछ समझ लेना जरूरी है । मैं जानती हूँ कि आप दयालु होने के साथ- साथ दुनियादार भी हैं । उम्मीद करती हूँ कि आप पूरी ईमानदारी और क्षमता के साथ मेरी मदद करेंगे । मेरी बात गौर से सुनिए -

शादी से पहले मैं एक नौजवान से प्यार करती थी । मगर मेरे परिवार ने उसे स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वह इतना धनी नहीं था । कुछ ही दिनों बाद मेरी शादी एक धनवान व्यक्ति से हो गई । मैंने उससे बिना कुछ जाने - समझे, बस अपने माँ -बाप का कहा मानकर शादी कर ली । वैसे ही जैसे ज्यादातर जवान लड़कियाँ कर लेती हैं । उसके यहाँ मैंने एक लड़के को जन्म दिया । कुछ वर्षों बाद मेरे पति की मौत हो गई ।

इस दौरान जिस लड़के से मैं प्यार करती थी, उसकी शादी हो चुकी थी । जब उसने देखा कि मैं विधवा हो गई हूँ , तो उसे इस बात का बहुत दुःख हुआ । उसे इस बात का भी अफसोस था कि वह अब पहले की तरह कुँवारा और आजाद नहीं था । वह मुझसे मिलने आया । मुझे देखकर वह इतना फूट- फूटकर रोया कि मेरा दिल भी पसीज गया । पहले वह मुझसे एक दोस्त की तरह मिलने आया । शायद मुझे उसे अपने घर आने ही नहीं देना चाहिए था । पर मैं क्या करती ? मैं एकदम अकेली, उदास, बेसहारा और नाउम्मीद जो थी ! और शायद मैं तब भी उसे चाहती थी । हम औरतों को कभी- कभी न जाने किस-किस तरह के दुःख उठाने पड़ते हैं !

अब तक मेरे माँ - बाप गुजर चुके थे, और इस दुनिया में उसके सिवाय मेरा और कोई परिचित नहीं था । वह अकसर मेरे घर आने लगा । पूरी शाम मेरे साथ ही रहता । मुझे उसे इतनी जल्दी- जल्दी अपने यहाँ नहीं आने देना चाहिए था । इस वजह से भी कि वह खुद शादीशुदा था । पर मेरे अंदर इतनी इच्छाशक्ति नहीं थी कि मैं उसे आने से रोक पाती ।

अब मैं कैसे बताऊँ ? वह मेरा प्रेमी बन चुका था । यह सब कैसे हुआ ? क्या मैं इसे सही ठहरा सकती हूँ ? क्या कोई भी इसे उचित ठहरा सकता है? क्या आप सोचते हैं कि जब दो लोग एक - दूसरे के प्यार में खिंचे चले जाते हैं तो उनके जीवन में इससे उलट भी कुछ हो सकता है ? महोदय , क्या आप यह सोचते हैं कि हमारे अंदर ऐसी शक्ति होती है कि हम अपने आप से हमेशा लड़ते रहें और किसी की विनती को ठुकराते रहें । क्या यह संभव है कि कोई अनुनय-विनय करता रहे, आँसू बहाता रहे , उन्मत्त शब्द कहे , घुटनों के बल बैठकर याचना करे, प्यार जताए और हम उसे नजअंदाज करें । यही वे तरीके हैं , जिनसे ऐसे पुरुष हमारे करीब आने की कोशिश करते हैं , जिन्हें हम चाहते हैं , जिनकी छोटी - से - छोटी इच्छा पूरी करते हैं , उनकी खुशियों का खयाल रखते हैं । इतना कुछ होने के बावजूद अगर हम सम्मान के लिए संसार के कायदे पर चलें तो क्या हम निराशा के अँधेरे में नहीं डूब जाएँगे ? इसके लिए इतनी शक्ति कहाँ से आएगी ? खुशियों का गला घोंटने का क्या खूब तरीका होगा ? खुद को अनसुना करने की क्या जिद होगी ? और पाक - साफ दिखने की खुदगर्जी नहीं होगी ?

संक्षेप में कहूँ महोदय , तो मैं उसकी पत्नी बन चुकी थी और मैं खुश थी । यही नहीं, यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी भी थी और सबसे बड़ी कायरता का नमूना भी कि मैं उसकी पत्नी की दोस्त बन गई ।

सबने मिलकर मेरे बेटे की परवरिश की । हमने उसे एक संपूर्ण पुरुष बनाया , जो बुद्धिमान था , विवेकी और निश्चय का पक्का था । साथ ही महान् और उदार विचारोंवाला भी था । देखते- ही - देखते वह सत्रह वर्ष का हो गया ।

मेरा नौजवान पुत्र मेरी ही तरह मेरे प्रेमी से बहुत प्यार करता था । जितना मैं अपने प्रेमी को चाहती थी , मेरा पुत्र भी उसे उतना ही चाहता था । वजह यह थी कि वह हम दोनों की आँखों का तारा था और हम उसका पूरा खयाल रखते थे। मेरा बेटा उसे डियर फ्रेंड कहकर बुलाया करता था । उसकी बहुत इज्जत करता था , बदले में उसने भी ईमादारी , कर्मठता और सम्मान का सबक सीखा । वह उसे अपनी माँ के पुराने स्वामिभक्त और समर्पित कॉमरेड की तरह देखता था । मैं कैसे बताऊँ , वह उसे नैतिकता सिखानेवाले पिता , अभिभावक और संरक्षक की तरह समझता था ।

शायद इस वजह से भी वह उससे कोई सवाल नहीं करता था , क्योंकि उसने बचपन से ही मेरे घर में उसे देखा था , जो हर वक्त मेरे करीब रहता था , और हम दोनों के सुख - दुःख का खयाल रखा करता था ।

एक शाम मैं रात के खाने पर उन दोनों का इंतजार कर रही थी । यह मेरा पसंदीदा काम था । मैं दोनों की राह देख रही थी , साथ ही खुद से यह सवाल कर रही थी कि दोनों में पहले कौन आएगा । तभी दरवाजा खुला, मेरा प्रेमी अंदर दाखिल हुआ । मैं उसकी तरफ अपनी बाँहें फैलाए आगे बढ़ी । उसने अपने होंठ मेरे होंठ पर रखे और एक लंबा सा चुंबन लिया ।

अचानक हमें एक हलकी सी आवाज सुनाई पड़ी । यह वैसे ही सरसराहट और रहस्यमयी आवाज, जो किसी के होने का अहसास कराती है । हमने पीछे मुड़कर देखा तो मेरा बेटा जीन खड़ा था । वह हतप्रभ था और हमें एकटक हैरानी से देखे जा रहा था ।

उस वक्त एक अजीब सी उलझन पैदा हो गई थी । मैं पीछे हटी, अपने बेटे की तरफ हाथ बढ़ाती हुई आगे बढ़ी, जैसे मैं उसे मनाना चाहती थी । पर वह पलटा और मेरी नजरों से ओझल हो गया । वह जा चुका था ।

मैं और मेरे प्रेमी, दोनों एक -दूसरे के सामने अब भी खड़े थे। इतने अफसोस में डूबे थे कि एक शब्द तक बोलने की स्थिति में नहीं थे। मैं धम्म से कुरसी पर बैठ गई । अंदर से एक अस्पष्ट मगर तीव्र इच्छा पैदा हुई कि दौड़कर बाहर चली जाऊँ , रात के अंधेरे में हमेशा- हमेशा के लिए गुम हो जाऊँ । फिर मेरे अंदर से सिसकियाँ फूट पड़ीं । मैं रो रही थी, दर्द से काँप रही थी । मेरा दिल टूट चुका था , मेरी नस-नस में हमेशा के लिए कुछ खो देने और बदकिस्मती का वह भयंकर अहसास हो रहा था । मैं शर्म से गड़ी चली जा रही थी । ऐसी परिस्थिति में फँसीकिसी भी माँ की तरह , मेरे हृदय में भी शर्म और पीड़ा का भाव भरता चला जा रहा था ।

उसने डरे - सहमे चेहरे से मेरी ओर देखा । कहीं मेरा बेटा फिर न लौट आए, इस भय से उसमें न मुझे छूने की हिम्मत थी, और न मुझसे बात करने की । आखिर में उसने कहा-

मैं उसे ढूँढ़ने जा रहा हूँ, उससे बात करूँगा और सबकुछ समझा दूंगा । बस इतना कहूँगा कि मुझे उससे मिलना होगा और सबकुछ बताना होगा ।

और फिर वो तुरंत निकल गया ।

मैं इंतजार करने लगी । विचलित मनोदशा के साथ इंतजार करने लगी । मैं हलकी सी आवाज से भी काँपने लगती, अंगीठी में जलती आग से कुछ चटखने की भी आवाज होती तो मैं बुरी तरह डर जाती और फिर मेरे मन में ऐसे ऐसे खयाल आते कि मैं बता नहीं सकती ।

मैंने एक घंटे तक इंतजार किया , फिर दो घंटे हो गए । मेरा दिल डर से ऐसे काँप रहा था , जैसा पहले कभी नहीं हुआ था । वह ऐसी वेदना थी कि जिसका कष्ट, मैं नहीं चाहूँगी कि दुनिया के सबसे दुर्दात अपराधी को दस मिनट के लिए भी सहना पड़े । मैं सोच रही थी कि मेरा बेटा कहाँ होगा? वो क्या कर रहा होगा ?

आधी रात के करीब एक संदेशवाहक मेरे पास मेरे प्रेमी की लिखी एक परची लेकर आया । मुझे आज भी उसका एक - एक शब्द याद है ।

क्या तुम्हारा बेटा लौट आया ? मैं उसे ढूँढ़ नहीं सका । मैं यहाँ हूँ । मैं इस वक्त कहीं नहीं जाना चाहता हूँ ।

मैंने उसी परची पर पेंसिल से लिखा-

जीन अब तक नहीं लौटा है । तुम्हें उसे ढूँढ़ना ही होगा ।

और मैंने पूरी रात उसी कुरसी पर बैठे - बैठे, उसके इंतजार में बिता दी । मुझे लग रहा था कि मैं पागल हो जाऊँगी । ऐसा लग रहा था कि मैं पागलों की तरह दौड़ने लग जाऊँ , जमीन पर लोटने लग जाऊँ । मगर मैं अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रही थी । बस इंतजार करती जा रही थी । एक घंटे के बाद दूसरा घंटा बीतता चला जा रहा था । आखिर अब क्या होगा? मैं यह सोच रही थी , अंदाजा लगाने की कोशिश कर रही थी । लेकिन दिमाग पर पूरा जोर डालने के बाद , और अपनी अंतरात्मा की धिक्कार सुनकर भी मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी ।

और तब मुझे यह डर लगने लगा कि दोनों मिल गए तो क्या होगा । दोनों आमने- सामने आएँगे, तो क्या करेंगे ? मेरा बेटा क्या करेगा? मेरा दिमाग भयभीत करनेवाली शंकाओं और अशुभ आशंकाओं से जैसे फटा जा रहा था ।

महोदय , क्या आप मेरी भावनाओं को समझ पा रहे हैं ? मेरी नौकरानी, जो इन बातों से अनजान थी, वह बार- बार मेरे कमरे में आती और लौट जाती । उसे शायद लग रहा था कि मेरा दिमाग खराब हो चुका है । मैं उसे कुछ कहकर या फिर इशारा कर बाहर जाने को कह देती थी । उसने एक डॉक्टर को बुला लिया , जिसने बताया कि मुझे कोई गहरा सदमा लगा है । मुझेबिस्तर पर लिटा दिया गया । मुझेदिमागी बुखार था । लंबी बीमारी के बाद जब मुझे होश आया, तब मैंने अपने करीब अपने प्रेमी को देखा वह अकेला था ।

मैं पूछ बैठी —

मेरा बेटा ? मेरा बेटा कहाँ है ?

उसने कोई जवाब नहीं दिया, मैं हकलाने लगी-

मर गया, मर गया । क्या उसने खुदकुशी कर ली ?

नहीं , नहीं , मैं कसम खाकर कहता हूँ । लेकिन पूरी कोशिश के बाद भी हम उसे ढूँढ़ नहीं सके ।

तब मैं अचानक उत्तेजित हो गई , कुछ हद तक क्रोधित भी । अकसर कहा जाता है कि औरतों में इस तरह का गैरजिम्मेदार और अविवेकपूर्ण क्रोध देखा जाता है । उसी तरह के गुस्से से मैंने कहा -

खबरदार ! उसे ढूँढे बगैर तुम कभी मेरे करीब न आना और न मुझसे मिलने की कोशिश करना । चले जाओ यहाँ से !

वह चला गया ।

उसके बाद से न मैंने कभी अपने बेटे को देखा, न अपने प्रेमी को । बीस साल से मैं ऐसे ही जिंदगी काट रही हूँ ।

क्या आप सोच सकते हैं कि मेरे ऊपर क्या बीती है ? क्या आप इस भयानक सजा का अंदाजा लगा सकते हैं , जिसमें एक माँ का हृदय इन अंतहीन मुसीबत के पलों की वजह से धीरे - धीरे पंगु होता चला गया ? अंतहीन ही कहा न मैंने? पर नहीं , इसका अंत होनेवाला है, क्योंकि मैं अपने प्राण त्याग रही हूँ । मैं मर रही हूँ, और मैं इस वक्त भी उनमें से किसी को भी देखेबिना इस दुनिया से जा रही हूँ ।

उसने जिसने मुझसे प्यार किया, पिछले बीस वर्षों से रोज चिट्ठी लिखता है । मगर मैंने कभी उसे मिलने की इजाजत नहीं दी, एक सेकेंड के लिए भी नहीं । क्योंकि मेरे अंदर एक विचित्र भावना थी, कि अगर वह मुझसे मिलने आया, तो ठीक उसी वक्त मेरा बेटा भी यहाँ उपस्थित हो जाएगा । ओह! मेरा बेटा ! मेरा बेटा ! क्या वह मर चुका है ? क्या वह जिंदा है ? आखिर वह कहाँ छिपा है ? वहाँ है, शायद उसे विशाल सागर के पार या फिर एक ऐसे सुदूर देश में , जिसका मैं नाम तक नहीं जानती, क्या वह कभी मुझे याद करता है ? काश! वह समझ पाता । ये बच्चे भी कितने कठोर होते हैं ! क्या उसने सोचा कि वह मुझे किस भयंकर पीड़ा को झेलने के लिए छोड़े जा रहा है? उसने सोचा कि जवानी के दिनों से लेकर इस बुढ़ापे तक वह मुझे निराशा के किस भँवर में अनगिनत वेदनाओं को सहने के लिए धकेलकर जा रहा है? क्या उसे अहसास है कि उसकी बूढ़ी माँ , जिसने वात्सल्य के चरम तक उससे प्यार किया, वह मरने जा रही है ? ओह! क्या यह उसकी निर्दयता नहीं है ?

आप उसे यह सब बताएँगे न महोदय ? क्या आप नहीं बताएँगे ? आप उसे मेरे ये अंतिम शब्द जरूर सुनाइएगा मेरे बच्चे, मेरे प्यारे -प्यारे बच्चे, बूढ़ी औरतों पर दया करो! जिंदगी उनके साथ पहले ही जल्लादों और जंगलियों जैसा व्यवहार करती है । मेरे प्रिय पुत्र , जरा सोचो कि जब से तुम गए हो, तुम्हारी माँ का क्या हाल हुआ है । मेरे प्यारे बच्चे, उसे माफ कर दो, उसे प्यार करो, और चूँकि उसे लंबी असह्य पीड़ा सहनी पड़ी, इसलिए वह अब जब कि वह मर चुकी है ।

उसका दम फूलने लगा, वह इस तरह काँपने लगी जैसे अपने जीवन के आखिरी शब्द कह रही हो और उसका बेटा बिस्तर के करीब खड़ा सबकुछ सुन रहा हो ।

उसने आगे कहा-

महोदय , उसे यह भी बता दीजिएगा कि मैंने उस दूसरे आदमी का चेहरा फिर कभी नहीं देखा ।

एक बार फिर वह चुप हो गई , और फिर उखड़ती साँसों को थामकर कहा -

कृपा कर अब मुझे अकेला छोड़ दीजिए । मैं अकेले ही मरना चाहती हूँ, क्योंकि वे दोनों मेरे साथ नहीं हैं ।

मास्टर ले ब्रमेंट ने आगे कहा -

और दोस्तो , फिर एक मूर्ख की तरह फूट - फूटकर रोता हुआ मैं उसके घर से बाहर निकला । सच कह रहा हूँ , मेरे रोने की आवाज सुनकर मेरा बग्गी चालक घूमकर मुझे देखने लगा था ।

जरा सोचिए , हर दिन हमारे आस - पास इस तरह विधि का खेल खेला जा रहा है ।

मुझे उसका वह बेटा नहीं मिला है । हाँ, उसका वही बेटा । आप लोग उसे चाहे जो कहें , मैं तो उसे एक गुनहगार बेटा ही कहूँगा ।