मूर्ख लड़का और लाल परी : बिहार की लोक-कथा

Moorkh Ladka Aur Lal Pari : Lok-Katha (Bihar)

एक राजा था। उसकी तीन बेटियाँ थीं। राजा अपनी बेटियों को बहुत प्यार करता था। उसने अपनी तीनों बेटियों को पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया। जब तीनों की पढ़ाई पूरी हो गई तो लौटकर आ गईं अपने घर। एक दिन राजा ने तीनों को बुलाकर पूछा, “किसके कारण राज कर रही हो बेटी?” बड़की और मँझली ने कहा, “आपके कारण राज कर रही हैं पिताजी।”

छोटी बेटी का उत्तर भिन्न था। उसने कहा, “अपनी क़िस्मत और अपने भावी पति के कारण राज कर रही हूँ पिताजी।” राजा ने सोचा कि अभी इसकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई है। इसे दोबारा पढ़ाई के लिए भेज देना चाहिए। इसलिए छोटी बेटी को पढ़ाई के वास्ते दोबारा दो बरस के लिए भेज दिया। जब अपनी पढ़ाई पूरी कर दो बरस बाद बेटी आई तो राजा ने उसे फ़ुर्सत में बुलाकर फिर वही सवाल किया।

छोटी बेटी ने फिर वही जवाब दिया। राजा को ग़ुस्सा आ गया। उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि जाओ और सबसे बुड़बक लड़का खोजकर लाओ, उसी से उसका विवाह होगा। सिपाही चल दिए बुड़बक लड़के की खोज में। जाते-जाते सिपाही जंगल में पहुँच गए। वहाँ उन्होंने देखा कि एक लड़का जिस डाढ़ पर बैठा है, उसी डाढ़ को काट रहा है। उस लड़के को सिपाहियों ने बरियारी पेड़ से उतारा और राजा के पास ले गए। राजा ने पूछा, “तुम सबको कैसे पता चला कि यह लड़का सबसे बुड़बक है?”

सिपाहियों ने राजा को सारी बात बता दी। अब राजा को भी समझ आ गया कि यह लड़का सबसे बुड़बक है। उसी लड़के से सबसे छोटी बेटी की शादी हो गई। राजा ने छोटी बेटी को उस लड़के के साथ विदा कर दिया। माँ ने अपनी बेटी को बढ़िया-बढ़िया कपड़ा पहना कर विदा किया। दोनों वहाँ से चल दिए।

चलते-चलते दोनों बहुत दूर निकल आए थे। रास्ते में एक नदी मिली। नदी में पानी की धारा के साथ ‘लाल’ बह रहे थे। रानी ने ‘लाल’ देखकर अपने पति को सावधान किया कि लेना मत नहीं तो ख़तरा बढ़ जाएगा। फिर उस बुड़बक लड़के को लालच आ गया और उसने एक ‘लाल’ अपनी धोकड़ी में डाल लिया।

नदी पार होकर जाते-जाते दोनों दूसरे राज्य में पहुँच गए। रानी ने समझाते हुए कहा कि जाकर राजा से बोलिए कि हम आपके राज्य में बसना चाहते हैं। दूसरे दिन वह राजा के पास गया और अपनी बात बताई। राजा ने कहा, “जहाँ तुम्हारी इच्छा करे, जाओ और जगह देखकर बस जाओ।” दोनों ख़ुशी से रहने लगे। अब उन्हें रोज़गार की तलाश थी। रानी ने पति से कहा, “जाओ राजा के पास और बोलो मुझे कोई काम चाहिए।”

उसने राजा के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। राजा ने कहा, “कोई काम तो नहीं है, पर यदि तुम दरबानी कर सकते हो तो ठीक है।” उसने ‘दरबान’ का काम शुरू कर दिया।

देखते ही देखते समय बीतता चला गया। दिवाली का समय आ गया। सभी दरबारी लोग राजा के दरबार में जुआ खेलते थे। ‘दरबान’ भी जुआ खेलने लगा। उसने लाल निकाल कर रख दिया और जुआ खेलने लगा। उसने बहुत सारे रुपए जीते और जाकर अपनी रानी को सौंप दिए। ऐसा करते-करते वह चार-पाँच दिन में बारह-पंद्रह हज़ार रुपए जीत लाया। जुआ में जीतते देखकर दरबारियों ने राजा से चुग़ली की कि नए दरबान के पास एक ‘लाल’ है। राजा ने उसे बुलाया और ‘लाल’ उससे माँगकर अपनी बेटी को दे दिया। राजकुमारी ने ‘लाल’ गाँथ कर अपने गले में पहन लिया और पलंग पर लेट गई। राजकुमारी ने तोता-मैना का जोड़ा पाल रखा था।

राजकुमारी को लाल पहने देखकर मैना बोली, “कितनी सुंदर लग रही है राजकुमारी!”

इस पर तोता बोला, “तुम्हें कुछ नहीं पता। जब लाल का जोड़ा होता तो और अच्छा लगता।”

राजकुमारी इन दोनों की बातें सुन रही थी। वह गोड़े-मुँहे चादर तानकर सो गई। राजा-रानी ने बहुत जगाया पर वह उठे ही न। अंत में उसने कहा, “मुझे लाल के जोड़े के लिए एक और लाल चाहिए नहीं तो मैं न खाऊँगी और न ही पीऊँगी।”

राजा की एक ही बेटी थी। उसको अपनी बेटी की चिंता सताए जा रही थी। उसने अपनी बेटी से कहा, “जिसने एक लाल दिया है, वही दूसरा लाल भी लाकर देगा। चिंता मत करो।” सुबह उस नए ‘दरबान’ को दरबार में बुलाया गया। राजा ने उसे सख्त आदेश दिया, “चाहे जहाँ से भी हो सके, जाओ और एक लाल लाकर इसका जोड़ा बनाओ। नहीं तो गड्ढा खोदकर पूरे परिवार को उसमें डाल देंगे।”

दरबान ने कहा, “ठीक है पहले मैं घर जाता हूँ और पूछकर फिर बताता हूँ।” घर आकर उसने रानी को सारी बात बताई। रानी बोली, “मैंने उसी दिन आपको चेताया था कि लालच न करें, नहीं तो ख़तरा होगा। आप जाकर राजा को बोलिए कि मुझे दस हज़ार रुपए, एक सिपाही और एक दाई के साथ-साथ साल भर के लिए घर का ख़र्चा भी चाहिए।” उसने जाकर राजा से कहा और राजा ने उसकी सारी बातें मान ली। खजाँची को आदेश दिया गया और उसकी सारी ज़रूरतें पूरी कर दी गईं।

वह चल दिया ‘लाल’ की खोज में। जाते-जाते उसी नदी किनारे पहुँच गया। उसने सोचा कि क्यों न इस बात का पता लगाया जाए कि नदी कहाँ से बहती हुई आ रही है? यही सोचकर वह नदी के किनारे-किनारे चल दिया। एक जगह उसने देखा कि किसी लड़की की मूँडी कटी है और उसका ख़ून नदी में टप-टप गिर रहा है। ख़ून लाल बन रहा है और वही लाल नदी की धारा में बह रहा है। वह चुपचाप एक पेड़ पर चढ़कर छुप गया और छुप-छुपकर देखने लगा कि आख़िर बात क्या है? जब शाम हो गई तो एक राक्षस आया और एक पेड़ से फूल तोड़कर लड़की को सुँघा दिया। लड़की तुरंत जी गई। जब दूसरे दिन राक्षस बाहर जाने लगा तो तलवार से उस लड़की की मूँडी काट दी। फिर उसी तरह खून टपकने से नदी में ‘लाल’ बहने लगे।

राक्षस के चले जाने के बाद उसने पेड़ से उतरकर उसी पेड़ से एक फूल तोड़ा, जिससे राक्षस ने तोड़ा था और उस लड़की को सुँघा दिया। वह तुरंत जी उठी। लड़के को देखकर बहुत ख़ुश हुई। उसका नाम था लाल परी। दोनों ने दिनभर ख़ूब मस्ती की। शाम होने वाली थी। लाल परी ने उसे मच्छर बना दिया। जब राक्षस आया तो कहने लगा, “छीरू मानुस, छीरू मानुस।” लाल परी ने कहा, “यहाँ कहाँ से मानुस आएगा बाबूजी?” यह सुनकर वह शांत हो गया।

इसी तरह से जब राक्षस चला जाता तो वह लड़की को फूल सुँघा कर ज़िंदा कर देता था और शाम को उसकी मूँडी काट देता था। चार-पाँच दिन दोनों इसी तरह दिनभर मौज़-मस्ती करते रहे। उसने लाल परी से कहा कि वह अपने बाबूजी से पूछे कि उसके प्राण कहाँ बसते हैं। लाल परी के पूछने पर पहले तो वह राक्षस टाल-मटोल करता रहा। झूठ-मूठ कुछ भी बता देता। जो भी बताता, लड़का उसे जला देता था, फिर भी राक्षस ज़िंदा था। लाल परी ने फिर से अपने बाबूजी से पूछा, “सही-सही बताइए, आपके प्राण कहाँ बसते हैं?” इस बार उसने सही-सही बता दिया, “मेरे प्राण सात समुंदर पार एक ताड़ के पेड़ पर हैं। उस पर एक पिंजड़ा है। उसमें एक तोता है, उसी तोते में मेरे प्राण बसते हैं।” वह बुड़बक लड़का यह सब राज जान गया। वह चल दिया वहाँ से। जाते-जाते एक पेड़ के नीचे ठहरकर विश्राम करने लगा। थके होने के कारण उसे नींद आ गई। वहीं पर हंस-हंसिनी का बच्चा रहता था। रोज़ एक साँप आकर खा जाता था। साँप परिकल था, चढ़ने लगा पेड़ पर। खुरखुराहट की आवाज़ सुन लड़के की आँख खुल गई। देखा तो एक साँप पेड़ पर चढ़ा जा रहा है। उसने तुरंत अपनी तलवार से साँप के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और अपनी ढाल से उसे तोप दिया। इसी बीच हंस-हंसिनी दोनों आए और चोर के पकड़े जाने पर बहुत ख़ुश हुए। दोनों नीचे लड़के के पास आए। उसने सारा हाल कह सुनाया और ढाल से तोपल साँप दिखाया तो हंस-हंसिनी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।

हंस-हंसिनी ने लड़के से पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो?” लड़के ने सारा हाल कह सुनाया कि सात समुंदर पार एक ताड़ का पेड़ है। उस पर पिंजड़े में एक तोता है, उसी के पास जा रहा हूँ। यह सब सुनने के बाद हंस ने कहा कि तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। लड़के के बैठते ही हंस उड़ गया और हंसिनी डैना फैलाकर उसके ऊपर उड़ रही थी ताकि उसे धूप न लगे। तीनों उड़ते-उड़ते उस ताड़ के पेड़ के पास पहुँच गए जहाँ पर तोता पिंजड़े में बंद था। वहाँ बहुत सारा बिढ़नी देखकर हंसिनी ने लड़के को बचाते हुए आगे बढ़ने को कहा और लड़के ने तोता पकड़ लिया। राक्षस को भी मालूम हो गया। मालूम होते ही जहाँ था, वहाँ से बिड़ियाबिड़ान भागा चला आ रहा था। लड़के ने झट से तोता का डैना तोड़ दिया, फिर भी राक्षस चला आ रहा था। लड़के ने फिर उसका गोड़ तोड़ दिया, फिर भी राक्षस चला आ रहा था। इसके बाद तो लड़के ने राक्षस को नज़दीक पहुँचते देख मूँडी ऐंठ दी और राक्षस के प्राण-पखेरू उड़ गए। लड़का वापस चला आया और लालपरी को उसने सारी बात बताई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था। जब साँझ के बाद अँधेरा भी होने लगा और राक्षस फिर भी नहीं आया तब जाकर उसे विश्वास हुआ। दोनों ख़ुशी-ख़ुशी बहुत-सारे ‘लाल’ लेकर घर आ गए। दूसरे दिन ‘बुड़बक’ लड़के ने एक बोरे में भरकर ‘लाल’ राजा के दरबार में पहुँचा दिए। राजकुमारी हार में गूंथ कर बहुत सारे लाल गले में पहन लिए। वह ख़ुश हुई। वह बहुत सुंदर भी लग रही थी।

राजकुमारी जब सो रही थी तब मैना और तोता दोनों आपस में बात कर रहे थे। मैना बोली, “राजकुमारी कितनी सुंदर लग रही है!” इस पर तोता बोला, “बकवास मत करो। तू क्या जानती है सुंदरता का हाल? राजकुमारी तब सुंदर लगती जब इसके साथ इसका पति भी होता।” राजकुमारी तोता-मैना की बातें सुन रही थी। उसने फिर खटवास-पटवास ले ली। राजा-रानी को जब पता चला तब वे दोनों उसको मनाने आए। राजकुमारी ने कहा, “जब तक मेरी शादी नहीं हो जाती, तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगी।”

इसके बाद राजा-रानी दोनों ने विचार किया कि इस दरबान से बढ़िया लड़का और कौन मिलेगा भला। दरबान यानी उस बुड़बक लड़के की शादी राजकुमारी से हो गई और राजा ने सारा राजपाट उसे सौंप दिया। वह बुड़बक लड़का और तीनों-चारों प्राणी आराम से राजपाट करने लगे।

(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)

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