मित्तो बकरी (यहूदी कहानी) : इसाक बेशविस सिंगर - अनुवाद: अरविन्द गुप्ता

Mitto Bakri (Yiddish Story in Hindi) : Isaac Bashevis Singer

हनुक्का, यहूदियों का प्रमुख त्यौहार है जो दिसंबर में आता है। आमतौर पर उस समय गाँव से शहर जाने वाली सड़क बर्फ से ढंकी होती है। पर इस साल सर्दी थोड़ी नरम थी। ज्यादातर समय अच्छी धूप थी। एरेन, रोयेंदार खालों का धंधा करता था। इस साल उसकी कुछ कमाई नहीं हुई थी। इसलिए उसने परिवार की पुरानी बकरी - मित्तो को बेंचने का निर्णय लिया। बकरी एक तो बूढ़ी थी, और दूध भी कम देती थी। शहर के कसाई ने बकरी के बदले, आठ सिक्के देने का वादा किया। इन पैसों से हनुक्का के लिए मोमबत्तियां, आलू, तेल और बच्चों के लिए उपहार खरीदे जा सकते थे। उनसे घर की अन्य ज़रूरतें भी पूरी हो सकतीं थीं। एरेन ने अपने बड़े बेटे रुबिन से, बकरी को शहर ले जाने को कहा।

कसाई के पास जाकर बकरी का क्या हश्र होगा, यह रुबिन को अच्छी तरह पता था। परन्तु उसे पिता के आदेश का पालन करना ही था। यह खबर सुनकर रुबिन की माँ की आँखों में आंसू छलक आये और रुबिन की बहनें एना और मिरियम ज़ोर-ज़ोर से रोने लगीं। रुबिन ने अपनी रुई वाली जैकेट और टोपी पहनी। टोपी से उसके कान ढँक जाते थे। सफ़र के लिए उसने अपनी जेब में दो डबलरोटी के टुकड़े और पनीर भी रखा। फिर उसने मित्तो के गले में रस्सी बाँधी और सड़क पकड़ी। शाम तक उसे बकरी को कसाई के हवाले करना था। रात कसाई के घर बिताकर अगले दिन शाम तक पैसे लेकर रुबिन को घर वापिस आना था। जाते समय पूरे परिवार ने, रुबिन को यात्रा की शुभकामनायें दीं। मित्तो, शांति के साथ खड़ी रही। रुबिन ने जब उसके गली में रस्सी बाँधी तो बकरी ने उसका हाथ चाटा। मित्तो लोगों पर यकीन करती थी। आसपास के लोगों ने उसे हमेशा कुछ खाने को दिया था। उन्होंने कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था।

रुबिन और मित्तो ने शहर की ओर अपना सफ़र शुरू किया। रास्ते में उन्हें खेत, खलिहान और फूंस की छत वाली झोपड़ियाँ मिलीं। गाँव छोड़ते वक्त सूरज तेज़ी से चमक रहा था। पर कुछ देर के बाद अचानक मौसम पलट गया। पूरब की ओर से एक नीले गहरे रंग का बादल, जल्दी से पूरे आसमान पर फ़ैल गया। उसके साथ सर्द हवा भी बहने लगी। कौए नीचे की ओर उड़ने लगे और कांव-कांव रटने लगे। वैसे तो सुबह का समय था, पर जल्द ही शाम जैस अँधेरा छा गया। तभी ओले पड़ने लगे और कुछ ही देर में मुलायम सफ़ेद बर्फ गिरने लगी। अपनी बारह साल के उम्र में रुबिन ने तरह-तरह के मौसम देखे थे, पर इस तरह की तेज़ बर्फ़बारी उसने पहली बार ही अनुभव की थी। बर्फ इनती सघन थी कि उससे दिन की रोशनी पूरी तरह ढँक गयी थी। थोड़ी ही देर में, सामने का रास्ता पूरी तरह सफ़ेद बर्फ से ढँक गया। रुबिन अब पूरी तरह खो गया था। वो कहाँ था? अब उसे इसका कोई अंदाज़ नहीं था। बर्फीली हवा जैकेट चीरते हु उसके कलेजे को हिला रही थी। बकरी मित्तो भी बारह साल की थी और वो सर्दी के मौसम से अच्छी तरह वाकिफ थी। पर अब उसके पैर भी मुलायम बर्फ में धंस रहे थे। तब उसने रुबिन की तरफ देखा, जैसे वो पूछ रही हो, “इस भयंकर तूफ़ान में भला हमलोग बाहर क्या कर रहे हैं?"

धीरे-धीरे बर्फ की परत और मोटी होती चली गयी। बर्फ के नीचे, रुबिन के जूते अभी भी खेत की जुती ज़मीन को महसूस कर पा रहे थे। उसे इतना ज़रूर पता था कि अब वो सड़क पर नहीं, बल्कि भटक गया था। पूरब-पश्चिम का, गाँव-शहर का, अब उसे कोई अंदाज़ नहीं था। हवा के तेज झोंके, सफ़ेद बर्फ को चारों तरफ उड़ा रहे थे। मित्तो अब एक जगह पर रुक गयी। उसके लिए अगला कदम रखना भी दुश्वार हो गया था। उसने आगे के अपने दोनों पैर ज़मीन में गढ़ा दिए और घर वापिस लौटने के लिए मिमियाने लगी। रुबिन खतरे को स्वीकार करने को अभी भी तैयार नहीं था। पर उसे इतना ज़रूर पता था अगर उन्हें कोई आश्रय नहीं मिला तो वे दोनों ठण्ड से जमकर जल्द ही मर जायेंगे। यह कोई मामूली तूफ़ान नहीं था। बर्फ की परत अब उसके घुटनों तक आ पहुंची थी। उसके हाथ सुन्न हो गए थे और वो अपने पंजों को महसूस नहीं कर पा रहा था। मित्तो का मिमियाना अब रोने की आवाज़ में बदल गया था। जिन इंसानों पर उसने ऐतबार किया था वो आज उसे दोज़ख में धकेल रहे थे। रुबिन अब प्रार्थना करने लगा, "हे भगवान, मुझे और इस बेक़सूर बकरी को बचाओ !"

अचानक उसे एक छोटा सा टीला दिखाई दिया। बर्फ का इतना बड़ा टीला भला कैसे बना? पास आने पर पता चला कि वो एक सूखी घास का एक ढेर था, जिसे सफ़ेद बर्फ ने अपनी आगोश में लपेट लिया था। टीले में, रुबिन को उम्मीद की एक किरण नज़र आई। आगे क्या करना है? यह गाँव के उस लड़के को अच्छी तरह पता था। उसने पहले टीले के ऊपर की बर्फ हटाई। फिर उसने सूखी घास के उस टीले में, बकरी और खुद के लिए एक छोटी सी गुफा बनाई। अब बाहर चाहें कितनी भी ठण्ड क्यूं न हो, अन्दर ज़रूर गर्मी होगी। और वहां मित्तो के खाने के लिए इफरात में घास भी मौजूद थी। जैसे ही मित्तो ने घास की खुशबू सूंघी वैसे ही उसका मिमियाना बंद हो गया, और उसने घास खाना शुरू कर दी। क्यूंकि बाहर अभी भी बर्फ पड़ रही थी इसलिए रुबिन ने गुफा का मुंह बंद कर दिया। अन्दर हवा आने के लिए उसने लाठी से घास के टीले में एक छेद ज़रूर बनाया।

पेट भर कर घास खाने के बाद मित्तो अपने पिछले पैरों को मोड़ कर आराम से बैठ गई। ऐसा लगा जैसे लोगों के प्रति उसका आत्मविश्वास पुनःस्थापित हुआ हो। रुबिन ने डबलरोटी के टुकड़े और पनीर खाया। पर इस मुश्किल यात्रा के बाद उसे अभी भी भूख लगी थी। उसने देखा कि मित्तो के थन दूध भरे थे। रुबिन बकरी के पास ही लेट गया। फिर रुबिन ने बकरी के थनों को दबाया जिससे दूध सीधा उसके मुंह में जाकर गिरे। दूध गाढ़ा और मीठा था। मित्तो इसलिए बहुत खुश थी क्यूंकि रुबिन उसे एक ऐसे घर में लाया था जिसकी दीवारें, छत और फर्श सभी खाने लायक थे!

रुबिन ने छेद में से बाहर झाँका। बाहर एकदम घुप्प अँधेरा था। क्या अँधेरा तूफ़ान की वजह से था, या फिर रात हो गयी थी? भगवान की बहुत कृपा थी - क्यूंकि घास की गुफा में इतनी ठण्ड नहीं थी। घास के टीले में से जंगली फूलों की सोंधी-सोंधी खुशबू भी आ रही थी। मित्तो के रोएँदार शरीर से भी गर्मी आ रही थी, इसलिए रुबिन बकरी से लिपट कर लेट गया। वो हमेशा से ही मित्तो से बहुत प्यार करता था, परन्तु अब मित्तो उसके लिए छोटी बहन जैसी थी। वो वहां एकदम अकेला था और उसे अपने परिवार की याद सता रही थी। इसलिए उसने मित्तो से बतियाने लगा। "हम लोगों के साथ जो हुआ, उसके बारे में तुम क्या सोचती हो?"

"माँ बकरी ने जवाब दिया।

“अगर मुझे यह घास का टीला नहीं मिला होता, तो हम दोनों ठण्ड से जमकर मर गए होते!”

"माँ...माँ..."

"अगर बर्फ इसी तरह गिरती रही, तो हमें यहाँ कई दिन रहना पड़ सकता है ! "

"माँ...माँ..."

“तुम बोल नहीं सकतीं, यह मुझे पता है। पर तुम मेरी बात समझती तो हो न? हमें एक-दूसरे की ज़रुरत है। क्यूं ठीक है न?"

"माँ .....” मित्तो ने नींद में जवाब दिया। रुबिन ने घास का एक तकिया बनाया और उसपर सिर रखकर वो सो गया। मित्तो की भी आँख लग गयी।

जब आँख खुली तो रुबिन को दिन-रात का कोई अंदाज़ नहीं था। बर्फ ने छेद को बाहर से बंद कर दिया था। उसने लाठी से छेद को दुबारा खोला। बाहर अभी भी अँधेरा था। बाहर अब भी लगातार बर्फ पड़ रही थी और हवा नाच कर रही थी। मित्तो ने भी अपनी आँखें खोलीं। जब रुबिन ने उसका अभिवादन किया तो बकरी ने जवाब में कहा, "माँ....." शायद उसके कहने का आशय था, "जो कुछ भगवान ने हमें दिया है- गर्मी, ठण्ड, भूख, खुशहाली, अँधेरा और रोशनी, हमें सभी चीज़ों को तहेदिल स्वीकार करना चाहिए।" सोकर उठने के बाद रुबिन को भूख लगी थी और वो खुश था कि मित्तो के पास ढेर सारा दूध था। मित्तो दिन भर खाती रहती कभी बाएं तो कभी दायें से, कभी ऊपर, तो कभी नीचे से !

रुबिन और मित्तो ने घास के उस टीले में तीन दिन बिताये। रुबिन, मित्तो के साथ ही बड़ा हुआ था। वो उसे हमेशा से प्यार करता था, पर इन तीन दिनों में मित्तो के प्रति उसका अनुराग बेशुमार बढ़ा था। मित्तो, रुबिन को दूध पिलाती और उसे गर्म रखती। अपने धीरज से वो उसे शांत रखती। इन तीन दिनों में रुबिन ने उसे न जाने कितनी कहानियां सुनायीं, जिन्हें मित्तो ने अपने कान खड़े कर बड़े ध्यान से सुना। जब रुबिन उसके माथे को सहलाता तो मित्तो उसके हाथों को प्यार से चाटती जब वो कहती, "माँ तो उसका अर्थ होता, "मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ।” तीसरी रात तूफ़ान कुछ थमा और बाहर आसमान में चाँद चमका। दूर-दूर तक फैली चांदनी में, बर्फ चमकने लगी। फिर रुबिन घास के टीले को खोद कर बाहर निकला। बाहर सफ़ेद सन्नाटा था। आसमान में तारे चमक रहे थे और चाँद अपनी निर्मल रोशनी चारों तरफ बिखेर रहा था।

चौथे दिन सुबह रुबिन को बाहर बर्फ पर फिसलने वाली बेपहिया गाड़ी की आवाज़ सुनायी दी। घास का टीला सड़क के काफी पास था। गाड़ी पर सवार किसान ने रुबिन को कसाई के पास शहर जाने का रास्ता नहीं, बल्कि गाँव वापिस जाने का रास्ता बताया। टीले में रुबिन ने प्रण लिया था कि वो मित्तो को कभी नहीं बेंचेगा। परिवार और पड़ोसियों ने, रुबिन और बकरी को ढूँढने की बहुत कोशिश की, परन्तु उन्हें उनका कोई नामोनिशान नहीं मिला। व दोनों हमेशा के लिए कहाँ खो गए ? माँ और दोनों बहनें, रुबिन को याद कर फूट-फूट कर रोयीं पिता बाहर से शांत, पर वो भी अन्दर से बहुत दुखी थे। तभी एक पड़ोसी दौड़ता हुआ आया। उसने रुबिन और मित्तो को सड़क पर आते हुए देखा था। इससे परिवार में ख़ुशी की एक ज़बरदस्त लहर दौड़ी। रुबिन ने उन्हें पूरी कहानी सुनायी - कैसे उसे एक घास का टीला मिला और कैसे मित्तो ने उसे दूध पिलाया।

उसके बाद से परिवार में सबने मित्तो को बेंचने का इरादा छोड़ दिया। अब क्यूंकि कड़ाके की सर्दी पड़ने लगी थी इसलिए लोगों को गर्म खालों की ज़रुरत पड़ने लगी थी। इससे एरेन का धंधा चल निकला था। हनुक्का के त्यौहार पर रुबिन, मिरियम और एना ने मोमबत्तियां जलाने के बाद "ड्राईडील" नाम का वाद्ययन्त्र बजाया। मित्तो अलाव के पास बैठी झिलमिल करती मोमबत्तियों और बच्चों को देखती रही। कभी-कभी रुबिन उससे पूछता, “मित्तो, क्या तुम्हें मेरे साथ घास के टीले में बिताये दिन याद हैं ?” तब मित्तो मुस्कुराती और अपना सफ़ेद सिर हिलाते हुए कहती, “माँ....." सिर्फ यह एक शब्द, उसके सारे विचार और प्यार बयां कर देते।

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