मास्टरजी का बेटा (कहानी) : ज्योति नरेन्द्र शास्त्री

Masterji Ka Beta (Hindi Story) : Jyoti Narendra Shastri

38 दिनों की गर्मियों की छुटिया समाप्त हो चुकी थी । मास्टरों की छुटिया बच्चों की छुटियो से कुछ पहले समाप्त हो चुकी थी क्योंकि गुरुजनो को अभी प्रवेशोत्सव की भी तैयारी करनी थी । कल से विधालय खुलने थे । सरकारी विधालय के बजाय प्राइवेट विधालय कुछ जल्दी खुल गये थे क्योकि उनके सामने एक सबसे बड़ी समस्या होती है अपने अस्तित्व को बनाने की । उनमे खुद को बेहतर बनाने के लिए कम्पीटिशन की भावना होती है । दो विधालय भी अगर परस्पर आमने सामने हों तो दोनो मे यही महत्वपूर्ण होता है की मेरिट मे कितने बच्चे आ रहे है । कितने बच्चों ने प्रथम श्रेणी स्थान प्राप्त किया । कुछ भी हो कोशिश यही रहती है की कोई बच्चा फेल ना हो , सबके मेरिट आये । अगर क्लास मे एक 2 बच्चे भी मेरिट मे आ जाये तो फिर होता है उनका बाजारी प्रदर्शन । बड़े-बड़े बोर्ड व होर्डिंग लगाए जाते है । साथ मे अगर कोई दूसरी स्कूल का बच्चा मेरिट मे आ जाये तो कोशिश रहती है वह बच्चा उनके ही विधालय मे पढ़े ताकि अगली क्लास मे वह मेरिट मे आए तो उसके माध्यम से उस विधालय मे बच्चों की संख्या मे वृद्धि हो सके , कुछ स्कूल वाले तो ऐसे बच्चे के स्नातक स्तर की फीस तक फ्री कर देते है ।

ऐसा नही है की सरकारी विधालयों मे पढ़ाई नही होती । सरकारी विधालय मे लगभग शिक्षक जी तोड़ मेहनत करवाते है । कुछ निक्कमे और नाकारा लोगो को छोड़ दो तो लगभग शिक्षक जी तोड़ मेहनत करवाते है । तथा सरकार द्वारा भी तमाम सुविधाएं विधार्थियों को उपलब्ध करवाई जाती है ।

महिपाल गुरुजी ने आज स्कूल खुलने के उपलक्ष्य मे अपने मोबाईल पर स्टेटस लगाया । अपने बच्चों को सरकारी विधालय मे प्रवेश दिलाकर उनका भविष्य सुनिश्चित करे , यहां आपको अत्यधिक प्रशिक्षित मास्टर मिल रहे है , सरकार आपको ये सुविधाएं दे रही है फ़लाना ढिकाना । यह स्टेटस जैसे ही उनके मित्र किसन ने देखा तुरंत रिप्लाई कर दिया । गुरुजी जब सरकारी विधालय इतने ही अच्छे है तो आपने अपने खुद के बच्चे को प्राइवेट स्कूल मे एडमिशन क्यो दिला रखा है ? बस फिर क्या था गुरुजी ने तो बात की पूँछ ही पकड़ ली । किशन और महिपाल दोनो अच्छे मित्र थे । बचपन से दोनो साथ ही पढ़े थे । किशन क्लास का पढ़ाई मे सबसे टॉप विधार्थी था । सरकारी नौकरी उसे पसंद नही थी । वह लेखक और कवि था । कवि के अंतस ने कह दिया की सरकारी नौकरी नही करनी , मतलब नही करनी । फिर क्या था ? सम्हाल लिया अपना पुस्तैनी धंधा । वही किराणे की दुकान और हरिपुरा की वही चौपाटी । आज गुरुजी का गुस्सा सातवे आसमान पर था । गुरुजी को लग रहा था की आज किसन ने सबसे प्रतिष्ठित पद को चुनौती दी है । जबकी यह चुनौती केवल व्यक्तिगत विचारों की थी । गुरुजी को यह भी प्रतीत होता था की एक दुकान चलाने वाला मामूली सा कवि मेरे जैसे शिक्षक के सामने मजाल क्या जो ठहर पाए । जैसे ही छूटी हुई गुरुजी पहुँचे सीधा किसन की दुकान पर । ग्राहकी कुछ ज्यादा थी इस कारण किसन महिपाल को नही देख पाया था । मुझे आता देखा नही , अभिवादन नही , चाय पानी तक की नही पूछा । यह बात गुरुजी को कुछ और ही ज्यादा चुभ गई । तेज आवाज़ मे किसनवा ! ओ किसनवा ! किसन बाहर आता है , उसे इस बात की भनक तक नही होती की कल की बात उसके मित्र के मन मे इस कदर चल रही होगी । पानी का गिलास लाता हु , कहकर अंदर जाने को होता है तो गुरुजी कहते है मै पानी पीने नही आया । तुम्हारी जात बिगाड़ने आया हु ।

किसन अहीर बिरादरी का था । अब उसका भी सब्र जवाब दे रहा था । अहीरो मे अक्खड़पन कुट-कुट कर भरा होता है इसके साथ ही सीधापन भी ।

क्या बात हो गई गुरुजी , क्यो इतने ताव मे हो ? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुए सरकारी मास्टर के बारे मे अनाप-सनाप कहने की । मास्टरजी मैने क्या अनाप सनाप कह दिया ? मैने तो केवल आपके स्टेटस का रिप्लाई किया था जब आपने लगा रखा था , मैने तो आपसे केवल जवाब माँगा था ।

आप कहते हो आपमें योग्यता अधिक होती है जबकि प्राइवेट मास्टर आपसे कम सैलरी मे पढ़ाते है । उनके कम रुपियो मे पढ़ाने का ये कतई मतलब नही है की उनमे योग्यता कम है । जब आपमें इतनी ही योग्यता होती है तो खुद के बच्चों को क्यो प्राइवेट स्कूलों मे धकेलते हो । अपनी योग्यता पर विश्वाश रखो जब आप दुसरो के बच्चों को पढ़ा सकते हो तो खुद के बच्चों को क्यो नही ? जहा तक बच्चा पढ़े वहां तक की क्लास सरकारी स्कूल मे है । आज सरकारी विधालयों के कम नामांकन होने का यही कारण है गुरुजी खुद के बच्चे को महंगी फीस भरकर बड़ी बोर्डिंग स्कूल मे डालते है और ओरो से उम्मीद करते है उनके बच्चे सरकारी विधालय मे पढ़े । आम आदमी भी यही सोचता है गुरुजी शायद खुद के बच्चे को सरकारी विधालय मे इसलिए नही पढ़ाते क्योकि उनको पता है हम ज्यादा नही जानते । ऐसा मै नही कह रहा हु मास्टरजी । आमजन की भावना कह रही है । मेरा विधालय दूर है इसलिए बच्चे को साथ नही ले सकता । आपका विधालय ही तो दूर है गुरुजी बाकी स्कूल तो हर गाँव मे है । किसन ने बोलना जारी रखा । कल को आपके बच्चे को ही सरकारी नौकरी मिल जाये तो आप उसे कही भी भेज दो । पर गुरुजी बात दरअसल ये है की आपने आपकी सैलरी फिक्स है अगर कम परिणाम देने पर वेतन कटौती होने लग जाये तो आप अपने बच्चे को क्या पड़ोसी के बच्चे को भी लेकर जाओगे । गुरुजी निरुत्तर खड़े थे । तब तक आसपास भीड़ भी जमा हों चुकी थी । वाह कवि महोदय ! वाह ! भीड़ मे से किसी ने ताली बजाई । उसके बाद तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थी ।

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