मर्दों की जात (कश्मीरी कहानी) : बंसी निर्दोष

Mardon Ki Jaat (Kashmiri Story) : Bansi Nirdosh

निंदा-आलोचना बादशाहों तक की हुई है। फिर भला मोहिनी भी उससे कहाँ तक बची रह सकती थी! उसके ऊपर तरह-तरह के आरोप लगाए गए। कुछ का कहना था कि उसे कॉलेज में किसी लड़के से प्रेम हो गया था, लड़के ने प्रीति नहीं निभाई, इसलिए उसे मर्दों से चिढ़ हो गई। कइयों का कहना था कि जब वह छोटी थी तो उसके पिता ने उसकी माँ को छोड़ दिया था और तभी से मोहिनी को मर्दों से सख्त नफरत हो गई थी। बहुतों का यह भी कहना था कि रूप-गर्व ने उसे दर्पशील बनाया है। खैर, बात चाहे कुछ भी हो, मोहिनी के मन में यह बात बैठ गई थी कि मर्द स्वभाव से दुष्ट होते हैं और उन पर कभी भी, किसी भी हालत में विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।

मोहिनी के बारे में और भी तरह-तरह की बातें उड़ाई जाती थीं। मगर उसके मुँह पर ऐसी बातें कहने का किसी का भी साहस नहीं होता था। कंपाउंडर तो क्या, अस्पताल के डॉक्टर भी उससे बात करने में खूब सावधानी से काम लेते थे। वह एक ऐसी मधुमक्खी थी, जिसे छेड़ने का किसी में भी बूता नहीं था। शायद इसीलिए सारा अस्पताल उसे ‘मधुमक्खी’ कहकर ही पुकारता था। वह मधुमक्खी की तरह तेज-तर्रार जरूर थी, मगर तितली की तरह चंचल और सुंदर भी थी। अस्पताल के सभी कर्मचारियों का कहना था कि कितना अच्छा होता, यदि अपने रूप की तरह मोहिनी का स्वभाव भी सुंदर होता। जब कभी वह वार्ड में से होकर गुजरती तो छोटे-बड़े सभी उसे घूर-घूरकर देखने लग जाते। वह मन-ही-मन सोचने लग जाती कि आखिर ये मर्द उसे पागलों की तरह क्यों देखते हैं? किसी मर्द को देखकर हम क्यों नहीं भरमा जातीं, आहें भरने लगतीं? अन्य नर्सों से भी वह यदा-कदा इस विषय पर चर्चा करती थी।

“मोहिनी, तुम्हें मर्दों से इतनी घृणा क्यों है, सारे मर्द तो बुरे नहीं होते?” किसी नर्स का यह कथन सुनकर वह एकदम तुनक उठती और फिर मर्दों के खिलाफ उसका लंबा जोरदार भाषण शुरू हो जाता, “सुनो, ध्यान से सुनो। यह मर्दजात ही ऐसी है। किसी अच्छी सी औरत को देख लिया और लगे उसके पीछे भागने, आहें भरने और दिल फेंकने। जब उनसे पूछो कि भई, क्या चाहिए तुम्हें? तो उधर से हीं-हीं करके हँस देंगे। हम औरतें क्यों नहीं मर्दों को छेड़तीं, क्यों नहीं उन्हें आँख मारतीं, क्यों नहीं उन्हें चिढ़ातीं? जिस वक्त किसी औरत को देख वे झूठ-मूठ ही खाँस देते हैं, उस वक्त ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें काली खाँसी का दौरा पड़ा हो।” मोहिनी का भाषण सुनकर नर्सें अकसर उसका दिल रखने के लिए तालियाँ बजातीं और उसकी हाँ में हाँ मिलातीं।

मोहिनी आगे कहती, “इन मर्दों का कभी विश्वास मत करना। जब तक दरिया के किनारे पर हो, तब तक ये तुम्हारे गुलाम हैं। नाव में कदम रखा नहीं कि समझ लो, नाव डूब गई। होश सँभालने पर पाओगी कि तुम्हारा मर्द किसी दूसरी ही नाव के चप्पू चला रहा है। मेरी प्यारी बहनो, इन मर्दों से सदा दूर ही रहना, इनकी जात ही ऐसी है।” कुँआरी नर्सों की तुलना में शादीशुदा नर्सों से हँसी-मजाक करने में मोहिनी को ज्यादा आनंद मिलता था, “बोलो, शादी करके तुमने क्या पाया? चार बच्‍चे। बस, इसके अलावा और क्या मिला तुझे?” विवाहित नर्सें उसकी हर बात का समर्थन करती थीं, किंतु अविवाहित नर्सें तालियाँ बजा-बजाकर कहतीं, “हम तुम्हारी एक भी बात मानने के लिए तैयार नहीं हैं।” और वे एक-एक करके अपने प्रेम-संबंधों को व्यक्त करने लग जातीं कि कौन सा डॉक्टर उन पर मरता है, कौन सा कंपाउंडर उन्हें अच्छा लगता है। अस्पताल में कौन सा रोगी उन्हें देखकर आहें भरता है, किस कर्मचारी की आँखें ज्यादा नाचती हैं। इन बातों को सुनकर मोहिनी पीड़ित हो उठती किंतु अन्य नर्सों को यह बातें सुन-सुनकर बड़ा आनंद आता। वे और भी जोर-जोर से तालियाँ बजाने लग जातीं। तब मोहिनी दिल पर पत्थर रखकर कमरे से बाहर आकर अपने वार्ड में आ जाती और सोचने लग जाती, ‘मर्द के बिना क्या सचमुच औरत की गुजर नहीं हो सकती? क्या वह इतनी कमजोर है। मगर क्यों? मैट्रिन मिस टामस तो चालीस पार करके भी मजे में दिन काट रही है और अभी तक कुँआरी हैं। मैं कुँआरी रहकर क्यों नहीं जी सकती? मैं क्यों किसी मर्द के सहारे पर रहूँ। मैं नौकरी करती हूँ, पैसा कमाती हूँ। मैं भला किसी के अधीन क्यों रहूँ? नहीं-नहीं, मर्दों की जात बड़ी बुरी होती है।’

अस्पताल भर में मोहिनी अपने काम में बड़ी होशियार और योग्य मानी जाती थी। सबकी यही राय थी कि वह निष्काम भाव से काम करती है। बर्फ जैसा सफेद एप्रन पहनकर जब वह फुर-फुर करती चिड़िया की तरह एक बेड से दूसरे बेड पर जाती थी तो रोगियों की बाछें खिलने लग जातीं। उसको देखकर उनकी आँखें एक अजीब तरह की ठंडक महसूस करती थीं। दवा चाहे कितनी भी कड़वी क्यों न हो, मगर उसके हाथ से लेने पर रोगी हँस-हँसकर गटक जाते थे। जब किसी रोगी से पूछती कि दवा कैसी लगी? तो रोगी जीभ चाटता हुआ बड़ी अदा के साथ कहता, ‘शहद से भी मीठी।’ यह सुनकर मोहिनी मन-ही-मन हँसने लग जाती बेचारे रोगी। बेचारे मर्द। जब कभी किसी रोगी का सिर अपनी गोदी में लेकर वह उसको दवा पिलाती तो रोगी कुछ समय के लिए अपने सारे दुःख-दर्द भूल बैठता।

अस्पताल में यह प्रसिद्ध था कि जो भी कोई रोगी दवा पीने में जिद करेगा, उसको ‘मधुमक्खी’ दवा पिलाकर ही रहेगी। इसीलिए अन्य वार्डों की नर्सें ऐसे मौकों पर उससे सहायता लेती थीं। मोहिनी हँस-हँसकर बड़े प्रेम के साथ ऐसे जिद्दी रोगियों को कड़वी-से-कड़वी दवा पिला देती थी। अस्पताल में नर्सों की तरह डॉक्टरों के आराम के लिए भी एक अलग कमरा होता है। जब से मोहिनी ने अस्पताल में कदम रखा था, तभी से युवा डॉक्टरों के बीच वह चर्चा का विषय बन गई थी। सभी जानते थे कि मोहिनी से मजाक आदि करना या उससे प्रेम-संबंध जोड़ने का प्रयास करना अपने आपको मुसीबत में डालने के बराबर है। क्या मजाल थी कि उसके साथ कोई ठट्ठा-मसखरी करता। उसके साथ ठट्ठा-मसखरी करने के लिए लोहे का कलेजा चाहिए था। मगर जाने आज कंपाउंडर ब्रजनाथ में यह लोहे का कलेजा कहाँ से आ गया था! रात का वक्त था। सारा अस्पताल जैसे अँधेरे में ऊँघ रहा था। मोहिनी दवाखाने में किसी रोगी के लिए दवा लेने गई। उस समय ब्रजनाथ के सिवा वहाँ और कोई न था। दवाखाने में रंगारंग बोतलें बिजली की रोशनी में चमचम कर रही थीं। मोहिनी को देखकर ब्रजनाथ के हवास गुम हो गए। मोहिनी ने ब्रजनाथ के सामने नुस्खा रख दिया और दो खाली बोतलें आगे बढ़ा दीं। ब्रजनाथ को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वह क्या करे। वह अलमारियों में दवाइयों की बोतलें ढूँढ़ने का बहाना करने लगा। उसकी जुबान पर यह बात बार-बार आ रही थी कि आज मौका अच्छा है, वह मोहिनी से दिल की बात कह डाले। तभी मोहिनी ने खुद ही उन बोतलों को अलमारी से निकाला। ब्रजनाथ पैमाने पर दवाई का कोई पाउडर तौलने लगा। इस बीच वह मोहिनी को कनखियों से बराबर देखता रहा। उसकी आँखों में खुमारी भर आई, चेहरा कुछ लाल पड़ गया। “तुम्हें बुखार तो नहीं है?” मोहिनी ने पूछ लिया। ब्रजनाथ को बात करने का बहाना मिल गया, “हाँ, मैं छह मास से इसी बुखार में तप रहा हूँ। सच, जब से तुम इस अस्पताल में आई हो, मेरा यह बुखार बढ़ता ही जा रहा है।” मोहिनी को ब्रजनाथ की यह बात कुछ समझ में नहीं आई। उसने उसकी नाड़ी पर हाथ रखा। इस छुअन से ब्रजनाथ का तन-बदन सुलग उठा। मादकता की लहर उसके अंग-अंग में दौड़ गई। वह लंबी-लंबी साँसें भरने लगा। वह यह भूल गया कि उसके सामने अस्पताल की एक ऐसी नर्स है, जिसके साथ सीधी बात करने पर भी मुँहतोड़ उत्तर मिलता है। फिर भी जाने किस विश्वास के साथ उसने मोहिनी के बाएँ हाथ को खींचकर अपने हाथ में दबा दिया था।

मोहिनी बिफरकर एक ओर हट गई, मानो उसके पाँव तले चूहा दब गया हो। “बदतमीज!” वह आग बरसाने लगी, “मैं तुमको सबके सामने जलील करूँगी। तुमने मुझे समझ क्या रखा है?”

ब्रजनाथ के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। प्रतिवाद करने की उसकी हिम्मत जाती रही। उसे एक अजीब तरह की दहशत महसूस हो रही थी। यह ब्रजनाथ की खुशकिस्मती थी कि उस समय कमरे में कोई और नहीं था, वरना मोहिनी ने उसकी वह गत बनाई होती कि बेचारा उम्रभर न भूलता। मोहिनी की मुद्रा देख ब्रजनाथ सहम गया। वह हाथ जोड़कर कहने लगा, “मुझसे गलती हो गई। दरअसल, मेरी समझ में कुछ नहीं आता है कि मुझे क्या हो गया है। मोहिनी, मैं सच कहता हूँ, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ। छह महीनों से इसी आग में तप रहा हूँ। आज तक मैंने तुमको कुछ नहीं कहा। अब मैं कसम खाकर कहता हूँ कि भविष्य में भी कुछ नहीं कहूँगा। इस आग को चुपचाप पी जाऊँगा। मैं माफी माँगता हूँ। यह बात किसी से नहीं कहना।”

“तुम सारे मर्द आवारा हो! लफंगे हो! मैं पहले से ही जान गई थी कि तुम क्यों मुझे घूर-घूरकर देखते हो। अब तुम्हारी इन आँखों को न निकलवाया तो मुझे अपनी माँ की बेटी मत समझना।” मोहिनी शायद और भी बहुत-कुछ कहती, मगर उसी समय दवाखाने में एक अन्य कंपाउंडर आ गया। ब्रजनाथ का चेहरा लटक गया। वह समझ गया कि अब उसकी नौकरी की खैर नहीं है।

मोहिनी बालों की लटों को एक झटका देकर तेज-तेज कदमों से बाहर निकल आई। उसने निश्चय किया कि वह बड़े डॉक्टर से ब्रजनाथ की शिकायत करेगी, “कमीना कहीं का! कहता है कि छह मास से मेरे प्रेम की आग में तप रहा है। आज बता दूँगी कि प्रेम की आग कैसी होती है। मजनूँ का बच्‍चा।”

बड़े डॉक्टर से जो कुछ कहना था, उसका विवरण मोहिनी ने मन-ही-मन तैयार कर लिया। बड़े डॉक्टर के द्वार के निकट पहुँचकर उसने अपने एप्रन के बटन बंद कर दिए। उसने देखा कि भीतर कमरा बिजली की रोशनी में जगमगा रहा है। धीरे से दरवाजे का परदा खिसकाया। अंदर नजर डाली तो उसका दिल धक् से रह गया। उसने आँखें मलनी चाहीं। मिस टामस, अस्पताल की मैट्रिन, बड़े डॉक्टर के कंधों पर झूलती हुई अपनी कोई बात मनवाने की जिद कर रही थी। बड़े डॉक्टर का दायाँ हाथ मिस टामस की कमर में पड़ा था। मोहिनी ने केवल इतना सुना, “दो महीने से भी ज्यादा हो गए हैं, अब आपको कोई फैसला करना ही होगा।”

मोहिनी उलटे कदम वापस आ गई। उसकी आँखों ने जो देखा था, जो सुना था, उस पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था। मगर वह स्वप्न भी तो नहीं था, एक वास्तविकता थी। वह जल्दी-जल्दी नर्सों के कमरे में आई और एक कुरसी पर धड़ाम से गिर पड़ी। उस समय वहाँ एक अन्य नर्स कोई जासूसी उपन्यास पढ़ रही थी। मोहिनी की यह हालत देख वह घबरा उठी, “क्या बात है मोहिनी, तू परेशान सी क्यों लग रही?” मोहिनी कुछ नहीं बोली।

“क्या किसी ने कुछ अंट-शंट बक दिया?”

“नहीं,” मोहिनी ने सिर हिलाकर कहा।

“तो फिर तू इतनी घबराई हुई क्यों है?” मोहिनी का गला सूख गया था। वह कुछ कहना चाहती थी, मगर जाने क्यों कह न पाई। “मैं समझ गई,” नर्स ने ज्योतिष लगाया, “मैं सब समझ गई। ऐसे मौकों पर बिल्कुल यही होता है। बोल कौन है वह खुशकिस्मत?” वह अभी अपनी बात पूरी भी न कर पाई थी कि मोहिनी ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया।

“सलमा, मुझे आराम करने दे।” मोहिनी ने विनती की। मोहिनी अब कमरे में अकेली रह गई थी, जाने क्यों ब्रजनाथ की वह बातें उसे इस वक्त अच्छी लगने लगीं। वह उठी। कमरे से बाहर आ गई। जनाना वार्ड, मर्दाना वार्ड, ऑपरेशन थिएटर, सबको पार कर वह सीधी दवाखाने के अंदर चली गई। ब्रजनाथ कुरसी पर सिर झुकाए बैठा था, शायद अपने किए पर पछता रहा था। मोहिनी ने ज्यों ही उसके कंधे पर अपना हाथ रखा, वह चौंक उठा। मोहिनी ने आज पहली बार उसे उन नजरों से देखा था, जिनके लिए ब्रजनाथ वर्षों से प्यासा था। मगर वह जाने क्यों उसकी नजरों से नजरें न मिला सका। “मुझे आशा है कि तुमने मुझे माफ कर दिया होगा,” ब्रजनाथ बोला। “मगर, किसलिए?” मोहिनी हँस दी। ब्रजनाथ मोहिनी के इस प्रश्न का मतलब न समझ सका। मोहिनी की नजर उसके कोट के बटन पर पड़ी, जो खुला हुआ था। वह बेझिझक उसके पास जाकर बटन को बंद कर कहने लगी, “छह महीने से तुम मेरे प्रेम में तप रहे हो, यही कह रहे थे न तुम?” और वह जोर से हँस दी। ब्रजनाथ अवाक् बैठा रहा। “जवाब क्यों नहीं देते, क्या मुँह में जुबान नहीं है?” कहकर मोहिनी को लगा कि वह भी उसको अपनी असली बात कह नहीं पा रही है। ब्रजनाथ बिना कुछ कहे मोहिनी की ओर एकटक देखता रहा। एप्रन के बटन खोलकर मोहिनी पुनः ब्रजनाथ से पूछने लगी, “अगर मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हो जाऊँ तो!”

ब्रजनाथ ने सोचा कि शायद वह उसे परख रही है। वह चुप रहा। मोहिनी ने अपना सवाल फिर दोहराया। अबकी बार ब्रजनाथ से न रहा गया, हलकी सी चीख के साथ उसका मुँह खुला, “तुझे मेरी कसम, सच कहती हो?”

मोहिनी ने लजाते-सकुचाते मुँह फेर लिया। ब्रजनाथ के अंदर छुपी आग खुले रूप में सामने आ गई। उसका अंग-अंग रोमांचित हो उठा। दोनों बाँहों में मोहिनी को समेटकर उसने उसे इतने जोर से गले लगाया कि अलमारियाँ हिलने लगीं। “बेशर्मो-बेहयाओ!” उसी समय दवाखाने में बड़े डॉक्टर की आवाज सुनाई दी। मिस टामस भी डॉक्टर के साथ थी। मोहिनी को देखकर उसने नाक-भौंह सिकोड़ ली। “तुम लोग यहाँ नौकरी करने आते हो या इश्क लड़ाने? शहर के लोग झूठ नहीं कहते कि तुम जैसे लोगों ने ही अस्पतालों का नाम बदनाम कर रखा है।”

बड़े डॉक्टर की नजर ब्रजनाथ पर नहीं, मोहिनी पर थी।

(अनुवाद : डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)

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