मंत्रीकुमार : बिहार की लोक-कथा

Mantrikumar : Lok-Katha (Bihar)

बहुत दिन हुए किसी नगर में कोई प्रतापी राजा राज्य करता था । उसका मंत्री बहुत ही बुद्धिमान और राजभक्त था।

राजा और मंत्री दोनों के एक-एक पुत्र था। राजा और मंत्री की तरह राजकुमार और मंत्री कुमार भी एक-दूसरे पर पूरा विश्वास करते और सच्चे मित्रों की तरह खेलते- कूदते थे।

एक दिन राजकुमार और मंत्रीकुमार जंगल में शिकार खेलने गए। शिकार खेलते- खेलते दोनों बहुत दूर निकल गए। शाम हो जाने के कारण उन्होंने जंगल में ही किसी वृक्ष के नीचे रात बिताने का निश्चय किया ।

वे विश्राम करने के लिए ठीक स्थान ढूँढ़ रहे थे कि तभी उन्हें दूर तेज प्रकाश दिखाई दिया। प्रकाश देखकर दोनों कुमार उस ओर बढ़े। एक भयंकर साँप प्रकाश की सीमा में घूमता हुआ दिखाई दिया। तेज प्रकाश उसी साँप की मणि से निकल रहा था ।

मंत्रीकुमार ने राजकुमार से कहा - " बड़ा विषधर साँप है। इसकी मणि यदि किसी वस्तु से ढक दी जाए तो यह सरलता से मारा जा सकता है।" थोड़ा सोच- विचार कर दोनों कुमारों ने तालाब से थोड़ी गीली मिट्टी लाकर मणि के ऊपर डाल दी।

मिट्टी के नीचे मणि दब जाने से बिलकुल अँधेरा हो गया। साँप व्याकुल होकर इधर-उधर फन मारने लगा। तभी मौका देखकर दोनों कुमारों ने तलवार से साँप के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और मणि उठा ली, फिर निश्चित होकर रात भर विश्राम किया।

सुबह उठकर दोनों कुमार जंगल में इधर-उधर घूम रहे थे, तो थोड़ी दूर पर उन्हें कोई सरोवर दिखाई दिया। सरोवर के चारों ओर बड़ी ही सुन्दर फुलवारी बनी हुई थी, परन्तु सरोवर के तट पर कोई लड़की दुःखी होकर रो रही थी। यह देखकर दोनों कुमार लड़की के पास गए और पूछने लगे - "तुम्हें क्या दुःख है, जो यों फूट-फूटकर रो रही हो ?"

लड़की ने कहा- " मैं राजा की लड़की हूँ। यह बगीचा और सरोवर मेरे पिता ने बनवाया था। यहाँ से थोड़ी ही दूर पर मेरे पिता ने एक महल भी बनवाया था। मैं अपने माता-पिता के साथ उसी महल में रहती थी । परन्तु एक विषधर साँप ने एक-एक करके मेरे माता-पिता को डस लिया। आज मेरी बारी है। साँप अभी आता होगा और मुझे भी डस कर मार डालेगा।" इतना कहकर लड़की फिर आँसू बहाने लगी।

दोनों कुमारों ने कहा- " रोओ मत, अब वह साँप तुम्हें डसने के लिए जीवित नहीं है। हमने कल रात उसे मार डाला है। "

यह सुनकर राजकुमारी खुशी से फूली नहीं समायी। दोनों कुमार जब चलने लगे तो राजकुमारी ने कहा—“ आपका यह उपकार मैं जिन्दगी भर नहीं भूलूँगी । शायद आप शिकारी हैं और बहुत थके हुए जान पड़ते हैं। मैं चाहती हूँ कि आप कुछ दिन मेरे अतिथि बनकर रहें। मुझे विश्वास है कि आप मेरे इस अनुरोध को टालेंगे नहीं।"

दोनों कुमार पास ही बने राजा के महल में गए। दोनों कुमारों के लिए राजकुमारी हर प्रकार का सुख-साधन जुटा दिया। दोनों कुमार चैन से महल में रहने लगे और नित्य जंगल में शिकार खेलने जाने लगे। उनके रहने से राजकुमारी भी अपने को हर प्रकार से सुरक्षित अनुभव करने लगी।

एक दिन जब दोनों कुमार शिकार खेलने चले गए तो राजकुमारी सरोवर में स्नान करने गई । जब राजकुमारी स्नान कर रही थी तो कोई शिकारी राजकुमार सरोवर में पानी पीने आया और राजकुमारी की सुन्दरता देखकर वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा।

जब राजकुमारी स्नान करके चली गई तो राजकुमार को होश आया। परन्तु आस- पास चारों ओर राजकुमारी को न देखकर वह पागल हो गया और बार-बार कहने लगा - " अभी थी, अभी गायब हो गई।"

यही वाक्य बार-बार कहते-कहते राजकुमार अपने महल में गया। राजा अपने बेटे की पागलों जैसी दशा देखकर बड़े चिन्तित हुए। सारे राज्य में यह शोर हो गया कि राजकुमार पागल हो गया।

वैद्य के उपचार से भी जब राजकुमार कई दिन तक ठीक नहीं हुआ तो राजा ने घोषणा करा दी कि जो व्यक्ति राजकुमार का पागलपन दूर कर देगा, उसे हम अपना आधा राज्य दे देंगे और उसी के साथ राजकुमारी का विवाह भी कर देंगे।

राजा की घोषणा सुनकर महल के पास रहने वाली बुढ़िया ने सोचा कि हो सकता है, राजकुमार को किसी ने जादू-टोना कर दिया हो-यह सोचकर बुढ़िया राजा के पास गई और बोली –“मैं राजकुमार का पागलपन दूर करने की कोशिश करूँगी। लेकिन इसके लिए मुझे राजकुमार के साथ शिकार खेलने जाने वाले सिपाहियों की जरूरत पड़ेगी।"

राजा ने तुरन्त राजकुमार के साथ शिकार के लिए जाने वाले सिपाहियों को बुढ़िया के साथ जाने का आदेश दे दिया।

बुढ़िया ने सिपाहियों से कहा - "जिस दिन राजकुमार पागल हुआ था, उस दिन कहाँ-कहाँ शिकार खेलने गया था, मुझे चलकर दिखाओ।"

कई स्थानों पर घुमाते-फिराते सिपाही बुढ़िया को लेकर जब सरोवर के निकट पहुँचे तो उस समय भी राजकुमारी स्नान करने आई हुई थी । चतुर बुढ़िया ने परम सुन्दरी राजकुमारी को देखते ही तुरन्त समझ लिया कि अवश्य ही इस राजकुमारी के रूप से राजकुमार पागल हुआ है।

बुढ़िया ने सिपाहियों से सरोवर के पास झोंपड़ी बनाने के लिए कहा। जब झोंपड़ी बन गई तो बुढ़िया उसी में रहने लगी। कई दिन तक बुढ़िया प्रतिदिन राजकुमारी का आना और सरोवर में स्नान करके चली जाना देखती रही।

एक दिन जब राजकुमारी स्नान करके जाने लगी तो बुढ़िया ने कहा- "बेटी, इधर आओ। मैं कई दिन से इस झोंपड़ी में रहती हूँ। तुम नित्य आती हो और स्नान करके चली जाती हो। कभी-कभी मुझ बुढ़िया के पास भी आकर बैठ जाया करो। इससे मेरा और तुम्हारा दोनों का ही समय बातचीत से कट जाया करेगा।"

बातों-बातों में बुढ़िया ने कुछ देर तक राजकुमारी को बैठाए रखा। कुछ देर के बाद जब राजकुमारी जाने लगी तो बुढ़िया ने सिपाहियों को इशारा कर दिया। सिपाहियों ने जबरदस्ती राजकुमारी को उठाकर राजा के महल में पहुँचा दिया। राजकुमारी फूट- फूटकर रोती और बुढ़िया को कोसती ।

राजकुमारी की यह दशा देखकर राजा को बड़ा दुःख हुआ। राजा ने बुढ़िया को बुलाकर पूछा - " इस बेचारी लड़की को तू क्यों पकड़ लाई ?”

बुढ़िया ने कहा- "महाराज, यही वह रूपवती लड़की है, जिसके रूप से राजकुमार पागल हुआ है।"

राजा को जब बुढ़िया की बातों पर विश्वास हो गया, तो राजकुमारी से बोला- “बेटी, तुम्हें यहाँ किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा। यदि सच में तुम्हारे कारण मेरा बेटा पागल हुआ है, तो तुम मेरी सहायता करो। मेरा एक ही बेटा है। मैं चाहता हूँ कि उसके साथ तुम अपना विवाह कर लो।"

राजकुमारी बुढ़िया की दुष्टता से क्रोध के मारे जल रही थी। कहा - " इस पर विचार करने के लिए मैं बारह वर्ष तपस्या करूँगी। इसके बाद मैं अपना विचार बताऊँगी।"

राजा ने सहर्ष उसे बारह वर्ष तपस्या करने का समय दे दिया। राजकुमार ने जब राजकुमारी को देखा और उसे यह मालूम हुआ कि राजकुमारी यहीं महल में ही बारह वर्ष तपस्या करेगी, तो उसका पागलपन दूर हो गया।

उधर राजकुमार और मंत्रीकुमार जब शिकार खेलकर लौटे तो पता चला कि राजकुमारी सुबह से गायब है। राजकुमार को इससे बड़ा दुःख हुआ। थोड़ा सोच- विचार के बाद मंत्रीकुमार ने राजकुमार से कहा- 'आप दुःखी न हों। मैं हर सम्भव प्रयत्न करके राजकुमारी को खोज निकालूँगा।"

उसी दिन से मंत्रीकुमार नित्य ही दूर-दूर तक जाकर राजकुमारी की खोज करने लगा। इसी तरह बहुत दिन बीत गए, परन्तु राजकुमारी का कुछ भी पता न चला।

अन्त में एक दिन ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मंत्रीकुमार उसी राज्य में पहुँचा, जिसमें कि राजकुमारी को बन्दी बनाकर लाया गया था।

मंत्री कुमार जिस नगर में भी जाता था वहाँ के राजा, रानी, राजकुमार और राजकुमारी के बारे में जरूर पूछताछ करता था। उस राज्य में भी पहुँचकर मंत्रीकुमार ने किसी नगरवासी से पूछा-' -"क्यों भाई, इस नगर का राजा कैसा है ?"

नगरवासी ने कहा—“राजा तो बहुत अच्छा है, पर इन दिनों वह बड़ी परेशानी में पड़ा हुआ है।"

मंत्रीकुमार ने पूछा - "कैसी परेशानी भाई ?"

नगरवासी ने बताया- " राजकुमार एक दिन जंगल में शिकार खेलने गया, तो वहाँ किसी सुन्दरी के रूप को देखकर मूच्छित हो गया था, और तभी से पागल हो गया था। राजा ने राजकुमार के पागलपन को दूर करने के लिए आधा राजपाट और राजकुमारी से शादी कर देने की घोषणा की। एक बुढ़िया ने उस सुन्दरी को बन्दी बनाकर राजा के पास ला दिया। अब राजा उस बुढ़िया को आधा राजपाट देकर उसके लड़के के साथ राजकुमारी की शादी करेगा।"

मंत्रीकुमार ने पूछा - " तो उस सुन्दरी से राजकुमार की शादी हो गई ?"

नगरवासी ने कहा- "नहीं, शादी तो अभी नहीं हुई। वह सुन्दरी बारह वर्ष से तपस्या कर रही है। अब दो-चार दिन में वह अपना विचार राजा को बताएगी। परन्तु सुन्दरी के आने से राजकुमार का पागलपन दूर हो गया है।"

मंत्रीकुमार ने पूछा - "बुढ़िया और उसका लड़का कहाँ है ?"

नगरवासी ने बताया–‘“राजमहल के पास ही बुढ़िया की झोंपड़ी है। उसका लड़का पागल है। तीन-चार साल बाद कहीं से माँगता-खाता इधर भी आ जाता है। क्योंकि राजा वचन दे चुका है। इसलिए राजकुमारी की शादी उस पागल से अवश्य कर देगा।"

मंत्रीकुमार ने उस नगरवासी से सारा हाल-चाल और बुढ़िया के पागल लड़के की सूरत- शक्ल का पता लगा लिया।

पूरी बात जान लेने के बाद मंत्रीकुमार लौटकर राजकुमार के पास गया, उसे सब बातें बताईं। राजकुमार को थोड़ा सन्तोष देकर मंत्रीकुमार फिर वहाँ से निकला। रास्ते में ही उसने बुढ़िया के पागल लड़के का भेष बना लिया और पागलों की तरह बकता-बड़बड़ाता बुढ़िया की झोंपड़ी में गया।

बुढ़िया ने उसे अपना लड़का समझकर बहुत प्यार किया, फिर खाना देते हुए बोली–“अच्छा हुआ, बेटा, तू चला आया । तेरे साथ अब राजकुमारी की शादी हो जाएगी। मेरे तेरे लिए भी अब महल बन जाएगा। तू भी अब राजा का आधा राज्य लेकर राजा बन जाएगा।"

परन्तु मंत्रीकुमार कुछ भी नहीं बोलता था और यदि बोलता था तो बिलकुल उसके पागल लड़के-जैसा। खा-पीकर उस रात वह बुढ़िया की झोंपड़ी में ही सो गया।

दूसरे दिन सवेरा होते ही सारे राज्य में शोर हो गया कि बुढ़िया का लड़का आ गया। बुढ़िया भी खुशी-खुशी लड़के को राजमहल दिखाने ले गई।

राजा ने बुढ़िया के लड़के को दामाद मान सारे राजमहल में घूमने-फिरने और अपनी लड़की देखने की आज्ञा दे दी। मंत्रीकुमार बुढ़िया के लड़के के रूप में पागल बनकर सारे महल में घूमने-फिरने लगा और राजा की लड़की से पागलों की तरह बोलता हुआ वहाँ भी गया जहाँ राजकुमारी तपस्या कर रही थी। राजकुमारी के पास पहुँचकर मंत्रीकुमार ने बहुत धीरे से कहा- "मैं बुढ़िया के लड़के का रूप बनाकर तुम्हारे पास तक पहुँचा हूँ । अब तुम चिन्ता मत करो। मैं रात को इसी पागल भेष में तुम्हारे पास आऊँगा। तुम तैयार रहना। मौका देखकर मैं तुम्हें यहाँ से निकाल ले चलूँगा।"

राजकुमारी ने मंत्रीकुमार को पहचान लिया। वह बहुत प्रसन्न हुई, बोली - "मैं तैयार रहूँगी। मेरी बारह वर्ष की तपस्या आज सफल हुई। अब मुझे कोई चिन्ता नहीं है ।"

राजकुमारी से बातचीत करके मंत्रीकुमार पागलों की तरह इधर-उधर देखता वापस बुढ़िया की झोंपड़ी में चला गया। सभी सिपाही और कर्मचारी उसके साथ राजा के दामाद जैसा व्यवहार करने लगे ।

रात को जब सभी कर्मचारी सो गए, तो मंत्रीकुमार बुढ़िया के पुत्र के रूप में पागलों जैसा बड़बड़ाता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। सिपाही और कर्मचारी उसे राजा का दामाद मानकर कुछ नहीं बोलते थे। उसके लिए हर समय आने-जाने की पूरी छूट थी ।

मंत्रीकुमार घूमता-फिरता महल के भीतर राजकुमारी के पास गया। राजकुमारी तैयार बैठी थी। मंत्रीकुमार राजकुमारी को अपने साथ लेकर बाहर निकला। कुछ सिपाहियों ने राजकुमारी को मंत्रीकुमार के साथ देखा। उन्होंने समझा कि राजा की लड़की अपने होने वाले पति के साथ कहीं घूमने जा रही है। किसी ने उन्हें रोका नहीं । मंत्री कुमार और राजकुमारी सवेरा होते-होते उस राज्य से बाहर हो गए।

रात में सुन्दरी राजकुमारी के निकल भागने की बात सुनकर राजा बड़ा दुःखी हुआ । सारे राज्य में शोक छा गया।

मंत्रीकुमार जब राजकुमारी को लेकर राजकुमार के पास पहुँचा तो उनके जीवन में जैसे हरियाली - सी छा गई। मंत्रीकुमार ने राजकुमारी को राजकुमार के साथ विवाह कर लेने की सलाह दी। राजकुमार और राजकुमारी पहले से ही एक-दूसरे को चाहते थे, इसलिए मंत्रीकुमार की बात दोनों ने मान ली।

राजकुमार और राजकुमारी का विवाह हो जाने के बाद मंत्रीकुमार ने कहा- "हमें घर से निकले बारह वर्ष से अधिक हो गए। हमारे माता-पिता दुःखी होंगे। अब हमें अपने राज्य में लौटना चाहिए।"

उसी दिन राजकुमार, राजकुमारी और मंत्रीकुमार अपने राज्य की ओर चल पड़े। रास्ता बहुत लम्बा था। चलते-चलते राजकुमारी और राजकुमार थक गए। मंत्रीकुमार ने उनके आराम की व्यवस्था एक वृक्ष के नीचे कर दी।

जब राजकुमार और राजकुमारी वृक्ष के नीचे सो रहे थे, तो वृक्ष पर दो पंछी भी कहीं से आकर बैठ गए। वे आपस में कुछ बातें करने लगे। मंत्रीकुमार बुद्धिमान तो था ही, वह पक्षियों की भाषा भी समझता था। वृक्ष पर बैठे दोनों पंछी जब आपस में बातचीत करने लगे तो मंत्रीकुमार ने सुना, एक पंछी कह रहा था - " मंत्रीकुमार और राजकुमार एक-दूसरे को प्यार तो खूब करते हैं, परन्तु कल इन दोनों का साथ छूट जाएगा।"

दूसरे पंछी ने पूछा - "कैसे?"

पहले पंछी ने बताया—“यहाँ से चलकर राजकुमार जब अपने राज्य में पहुँचेगा तो राजा इसकी सवारी के लिए हाथी भेजेगा। उस हाथी पर चढ़कर राजकुमार जब महल की ओर जाने लगेगा तो हाथी इसे पटककर मार डालेगा।"

दूसरे पंछी ने कहा- "यह तो बड़े दुःख की बात है। क्या किसी तरह से राजकुमार के प्राण नहीं बच सकते ?"

पहले पंछी ने बताया—‘“यदि राजकुमार को हाथी के स्थान पर घोड़े की सवारी दी जाए तो यहाँ तो इसके प्राण बच जाएँगे किन्तु राजकुमार जब महल के फाटक पर पहुँचेगा, तो फाटक टूटकर इसके सिर पर गिर पड़ेगा और राजकुमार की मृत्यु हो जाएगी।"

दूसरे पंछी ने कहा- "यह भी दुःख की बात है। क्या राजकुमार के प्राण वहाँ भी किसी तरह बच नहीं सकते ?"

पहले पंछी ने कहा – “यदि महल के फाटक को पहले ही गिरा दिया जाए तो वहाँ भी राजकुमार के प्राणों का खतरा टल जाएगा। परन्तु फिर आधी रात को विषधर सर्प डसने से राजकुमार की मृत्यु हो जाएगी।"

दूसरे पंछी ने पूछा - " क्या यहाँ भी राजकुमार की रक्षा किसी तरह हो सकती है ?"

पहले पंछी ने कहा—“यदि सर्प को कोई मार दे तो राजकुमार के प्राण बच जाएँगे, किन्तु यदि राजकुमार की रक्षा करने वाला किसी से इन बातों को बताएगा तो पत्थर का हो जाएगा।"

दूसरे पंछी ने पूछा - " क्या वह पत्थर से कभी मनुष्य भी बन सकेगा ?"

पहले पंछी ने कहा – “यदि उस पत्थर के सामने राजकुमार के दो पुत्र बलिदान कर दिए जाएँगे, तो वह पत्थर जीवित होकर मनुष्य हो जाएगा।"

दूसरे पंछी ने कहा- " अन्त में फिर भी राजकुमार के दो पुत्रों को बलिदान होना ही पड़ेगा। क्या राजकुमार के दोनों पुत्रों के जीवित होने का भी कोई उपाय है ?"

पहले पंछी ने कहा- "वही मनुष्य जो पत्थर - शरीर से जीवित होकर मनुष्य- शरीर धारण करेगा, यदि उन पर अपना हाथ फेर देगा तो वे जीवित हो जाएँगे।"

सुबह हो गई थी। दोनों पंछी उड़ गए। मंत्रीकुमार उनकी सारी बातें सुनता- समझता रहा था। उसने राजकुमार और राजकुमारी को जगाया और राज्य की ओर चले ।

दूसरे दिन राजकुमार अपनी सीमा में पहुँचा तो चारों ओर खुशियाँ मनाई जाने लगीं। राजा ने सीमा पर ही उनके लिए सवारियाँ - हाथी, घोड़ा और पालकी भेज दीं।

किन्तु राजकुमार जब हाथी पर सवार होने लगा तो मंत्रीकुमार ने, जिसे पंछी की बातें याद थीं, राजकुमार से कहा - " राजकुमार, मेरी इच्छा है कि आज मैं हाथी पर चढ़कर राजमहल तक चलूँ और तुम घोड़े पर चढ़कर चलो।"

राजकुमार ने कहा- " इसमें कौन-सी बात है! लो, मैं घोड़े पर बैठता हूँ, तुम हाथी पर चढ़ जाओ।"

मंत्रीकुमार हाथी पर, राजकुमारी पालकी में और राजकुमार घोड़े पर चढ़कर महल तक आए। महल के फाटक के पास पहुँचकर मंत्रीकुमार ने पंछी की बात याद करके राजकुमार से कहा - " राजकुमार, यदि तुम मेरी बात मानो तो यह फाटक गिरवाकर फिर महल के भीतर घुसो।"

राजकुमार मंत्रीकुमार की कोई भी बात नहीं टालता था ! उसने पिता से कहकर महल का फाटक गिरवा दिया। इसके बाद राजकुमारी - सहित राजकुमार और मंत्री- कुमार महल में गए।

उस दिन सारे राज्य में बाजे बजा-बजाकर खुशियाँ मनाई जा रही थीं, किन्तु मंत्री- कुमार का चित्त पंछी की बातों को सोचता रहा। रात को बारह बजे जब सारा नगर सो गया तो मंत्रीकुमार तलवार लेकर राजकुमार के कमरे में गया। राजकुमार के कमरे के बाहर पहरा देने वाले सिपाहियों ने मंत्रीकुमार को देखा, परन्तु मंत्रीकुमार से राजकुमार की प्रगाढ़ मित्रता थी, इसीलिए किसी ने उसे रोका नहीं।

राजकुमार के कमरे में पहुँचकर मंत्रीकुमार ने देखा कि राजकुमार गहरी निद्रा में सोया पड़ा है, और एक काला साँप उसे डसने के लिए पलंग पर चढ़ रहा है।

मंत्रीकुमार ने खट से तलवार निकालकर साँप का सिर काट दिया । तलवार की आवाज सुनकर राजकुमार जाग पड़ा और बाहर पहरा देने वाले सिपाही भी दौड़े। सभी ने मंत्रीकुमार के हाथ में नंगी तलवार देखकर बड़ा आश्चर्य किया। सारे महल में तहलका मच गया। सिपाहियों ने मंत्रीकुमार को राजा के सामने पेश किया । क्रोध आकर राजा ने बिना कुछ सोचे-समझे मंत्रीकुमार को फाँसी का हुक्म दे दिया।

मंत्रीकुमार रात भर कारागार में बन्द रहा। दूसरे दिन सारी प्रजा के सामने उसे फाँसी दी जाने वाली थी। राजकुमार और राजकुमारी मंत्रीकुमार के इस व्यवहार को समझ नहीं पा रहे थे, राजकुमारी को तो इस पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। परन्तु बात कुछ हुई ही ऐसी उल्टी थी कि किसी का कोई चारा नहीं था।

दूसरे दिन जब फाँसी का समय हुआ तो भरे दरबार के सामने राजा ने कहा- ‘“हमारे यहाँ यह नियम है कि फाँसी देते समय अपराधी की आखिरी इच्छा पूरी करने की कोशिश की जाती है। बोलो, तुम्हारी अन्तिम इच्छा क्या है ?"

मंत्रीकुमार ने कहा—‘“महाराज आप न्यायी और कृपालु हैं। यदि आपका यही नियम है, तो राजकुमार और राजकुमारी को भी दरबार में बुलाया जाए। उनके सामने कुछ गुप्त भेद की बातें बताना चाहता हूँ।"

राजकुमार और राजकुमारी जब दरबार में आ गए तो मंत्रीकुमार ने कहा- " यद्यपि सारी बातें कह चुकने के बाद थोड़ा-थोड़ा करके मेरा शरीर पत्थर का हो जाएगा, फिर भी मुझे इसकी तनिक भी चिन्ता नहीं है, परन्तु मैं मित्रद्रोही कहलाकर इस लोक से जाना नहीं चाहता।"

मंत्रीकुमार ने कहना शुरू किया - " महाराज, जब राजकुमार और राजकुमारी के साथ मैं जंगल से लौट रहा था, तो एक वृक्ष पर दो पंछी आपस में बात कर रहे थे। मैं पक्षियों की भाषा समझता हूँ। एक पंछी कह रहा था कि महल जाते समय राजकुमार को हाथी पटककर मार डालेगा। यदि उसे घोड़े पर बैठाया जाए तो उसके प्राण बच सकते हैं। इसी कारण मैंने राजकुमार को घोड़े पर बैठाया था और स्वयं हाथी पर बैठा था।''—इतना कहने के बाद मंत्रीकुमार पैरों तक पत्थर का हो गया । यह देखकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ।

मंत्रीकुमार ने आगे बताया - "पंछी ने यह भी कहा था कि राजकुमार यदि हाथी से बच जाएगा, तो महल का फाटक गिरने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। यदि उसके नीचे पहुँचने से पूर्व ही फाटक को गिरा दिया जाए तो राजकुमार बच सकता है। इसीलिए मैंने राजकुमार से कहकर फाटक गिरवा दिया था।” – इतना बताने के बाद मंत्रीकुमार का शरीर गले तक पत्थर का हो गया। दरबार में बैठे सभी दरबारी दुःखी होकर 'आह- आह' करने लगे।

मंत्रीकुमार ने आगे कहा- "तीसरी बात पंछी ने यह कही थी कि रात को बारह बजे जब राजकुमार सो रहा होगा, तो एक विषधर सर्प उसे डस लेगा। यदि कोई उस सर्प को मार दे तो राजकुमार के प्राण बच सकते हैं। उसी सर्प को मारने के लिए मैं राजकुमार के कमरे में तलवार लेकर गया था। आप सब जाकर देखिए, राजकुमार के पलंग के नीचे मरा हुआ सर्प पड़ा होगा। पंछी ने कहा था, यदि ये सब बातें राजकुमार की रक्षा करने वाला किसी को बताएगा तो पत्थर का हो जाएगा, इसीलिए मैं बताना नहीं चाहता था।”—इतना कहने के तुरन्त बाद ही मंत्रीकुमार का शेष शरीर भी पत्थर का हो गया।

राजा, मंत्री और प्रजाजन यह सारा कौतुक देख-सुनकर बड़े दुःख में पड़ गए। सबके मुँह से यही निकलता - "बेचारे मंत्रीकुमार के प्राण भलाई - भलाई में चले गए।"

राजकुमार और राजकुमारी ने शोक के मारे कई दिनों तक कुछ खाया पिया नहीं ।

मंत्रीकुमार के पत्थर - शरीर को राजकुमार ने अपने महल में मन्दिर बनवाकर उसमें रख दिया था। राजकुमार और राजकुमारी नित्य उस पत्थर - शरीर की पूजा किया करते थे। इसी प्रकार बहुत दिन बीत गए। राजकुमार के दो पुत्र भी उत्पन्न हुए, पर वे मंत्रीकुमार के पत्थर - शरीर की पूजा निरन्तर करते रहे।

एक दिन राजकुमार जब पत्थर - शरीर की पूजा कर रहा था तो मंत्रीकुमार प्रकट होकर बोला- “ राजकुमार, यदि तुम मुझे निरपराध समझते हो, और चाहते हो कि मैं फिर से जीवित हो जाऊँ तो अपने दोनों पुत्रों का बलिदान मेरे सामने कर दो।"

राजकुमार मंत्रीकुमार की यह बात सुनते ही राजकुमारी के पास गया, बोला- "मंत्रीकुमार आज स्वयं प्रकट होकर कहता था कि यदि तुम मुझे निरपराध समझते हो और चाहते हो कि मैं फिर जीवित हो जाऊँ तो अपने दोनों पुत्रों का मेरे सामने बलिदान कर दो। तुम्हारा क्या विचार है ?"

राजकुमारी ने कहा – “मंत्रीकुमार ने मेरे और तुम्हारे दोनों के प्राण बचाए हैं, इसलिए उनके प्राण के लिए हम अपने प्राणों से प्यारे दोनों पुत्रों को अर्पित कर देंगे।" उसी समय राजकुमार और राजकुमारी ने अपने दोनों पुत्रों का मंत्रीकुमार के पत्थर- शरीर के सम्मुख बलिदान कर दिया।

मंत्रीकुमार पुनः जीवित हो गया। उसने राजकुमार और राजकुमारी को 'धन्य- धन्य' कहा और हाथ फेरकर उनके दोनों पुत्रों को जीवित कर दिया।

राजकुमार और राजकुमारी अपने बीच मंत्रीकुमार को फिर से जीवित देखकर बहुत प्रसन्न हुए। सारे राज्य में मंत्रीकुमार की प्रशंसा की जाने लगी।

(साभार रामकृष्ण शर्मा)

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