Mantralaya : Asghar Wajahat

मंत्रालय : असग़र वजाहत

उसके दिल में धुकधुकी मची थी। वह एकटक बिजली के सामने लगे हण्डे को देख रहा था, क्योंकि उसे बताया गया था कि मंत्रीजी के आते ही हण्डा जल उठता है।

कुछ देर पहले वह बीड़ी जलाने बाह गैलरी में गया था। चपरासी से माचिस मांगी थी और जब यह पता चला कि वह भी बनारस का है तो चपरासी ने उसे बहुत कुछ बताया था। यह भी बताया था कि मंत्री पीछे वाले रास्ते से आकर अपने कमरे में बैठ जाते हैं। वे इस तरफ से नहीं आते जिधर से सब लोग आते हैं।
सामने लगा बिजली का हण्डा अचानक भक से जल उठा। बेहद तेज और तीखी रोशनी से वह कोशिश करते रहने के बावजूद अपनी आंखें खुली न रख सका।
एक सूटधारी व्यक्ति उसके पास आया और बोला-‘‘मुंशी लाल’
और वह सेकेंड के पचासवें हिस्से में खड़ा हो गया।

उसने अपने साथ आने का इशारा किया और एक दरवाजे में घुस गया। उसे इतना तो मालूम था कि अंदर घुसने से पहले ‘में आई कम इन सर’ पूछ लेना जरूरी है उसने चपरासी दोस्त उसे ढकेलते हुए बोला, ‘‘जाओ, जाओ यहां सब ऐसे ही जाते हैं।’’ वह भरभरा का अंदर घुस गया।

उसने, सामने एक महान् भव्य मूर्ति बड़ी सी मेज के पीछे बैठी थी। कालीन ने उसके पैर पकड़ लिए। उसने हाथ जोड़े। मूर्ति कुछ नहीं बोली। कुछ देर बाद दीवर से आवाज आयी, ‘‘मंत्रीजी से क्यों मिलना चाहते हो’
अब वह समझा, ये मंत्री जी नहीं उनके पिछलगुए वगैरा हैं।
उसने कहा, ‘‘जी नौकरी के बारे में सर।’’
‘‘मंत्रीजी क्या नौकरी दिलाने की मशीन है’
‘‘जी वो नौकरी तो है, मतलब थी सर, लेकिन सर, बिना कारण के निकाल दिया।’’
‘‘तो तुम मंत्रीजी से कारण मालूम करना चाहते हो,’’
वह सटपटा गया। ये तो बड़ा जबर आदमी है। पार पाना मुश्किल है।
उसने अपनी पूरी फाइल मूर्ति की ओर बढ़ा दी।
मूर्ति फाइल में इस तरह लीन हो गयी जैसे जीवन का प्रत्येक रहस्य उसमें लिखा हो। पर जल्दी ही मूर्ति ने फाइल बंद कर दी। घंटी बजाई। सूटधारी आया। मूर्ति बोली, ‘ओ. के।’

सूटधारी ने उसे अपने आने का इशारा किया। सूटधारी एक दरवाजे में घुसा । फिर शायद उसी से निकला। फिर शायद उसी में घुसा। फिर शायद उसी से निकला और उसने अगले दरवाजे में घुसने से पहले टाई ठीक की तो वह समझ गया कि मंत्रीजी का यही कमरा है। वे दोनों अंदर घुसे। वह प्रार्थना वाली मुद्रा में खड़ा हो गया। मंत्रीजी मुर्रा भैंस की तरह काले और विशालकाय थे। सूटधारी चला गया। अचानक एक महीन जनानी आवाज आयी, ‘‘तुम्हारा नाम ही मुंशीलाल है’
अरे बाप रे बाप, उसने सोचा, इतने मोटे आदमी की इतनी महीन आवाज।
वह अच्छा खासा कांप रहा था। उसे लगा, लालू में जुबान ही नहीं है। फिर वह पूरा जोर लगाकर बोला, ‘‘जी सर।’’

उसने आंखें उठायीं, मंत्री जी अपनी संपीली आंखों से उसे घूर रहे थे। फिर आवाज आयी ‘‘तुम ही पेशाबखानों पर लिखे मूत्रालय में से बड़े ‘ऊ’ की मात्रा मिटा कर ‘म’ पर बिंदी रख देते हो’ उसको लगा, दिल उछलकर उसके हलक में आ गया हो। वह कांपती आवाज में बोला, ‘‘जी नहीं सर।’’
‘‘तुम मुत्रालय कभी नहीं गए’
‘‘गया हूं सर।’’
‘‘तो तुमने ऐसा कभी नहीं किया’
‘‘जी नहीं सर।’’
‘‘लेकिन तुमने अपने प्रार्थनापत्र में माननीय मंत्रीजी महोदय के स्थान पर माननीय मूत्रीजी महोदय लिखा है।’’
‘‘ये कैसे हो सकता है सर।’’ उसके दिमाग चक्कर खाने लगा।
‘‘नहीं, तुमने लिखा है।’’
‘‘मुझे मंत्रालय और मूत्रालय से क्या मतलब सर।’’ मैं तो अपनी नौकरी के लिए आया था।’’
उसके बाद घंटी बजी और वह पुलिस की हिरासत में बाहर निकाला गया।

उसके ऊपर पता नहीं कितने दफा लगे थे। उसकी हथकड़ियों की रस्सी पकड़े गैलरी में इंस्पेक्टर झूमता चला जा रहा था। पिछले कुछ मिनटों की मानसिक कबड्डी के कारण उसे वास्तव में पेशाब लग आया था। पर उसे मालूम था कि गिरफ्तार होने के बाद हर काम पुलिस से पूछकर करना चाहिए। उसने इंस्पेक्टर से पूछना चाहा, ‘मृत्...’

वाक्य पूरा भी नहीं होने पाया था कि इंस्पेक्टर गिद्ध की तरह उस पर झपट पड़ा, ‘‘साला चिढ़ाता है।’’ एक भारी भरकर झापड़ उसके गाल पर पड़ा और वह गैलरी में गिर पड़ा। उसकी आंखों के सामने कई सूरज नाच गए। और धीरे-धीरे उसका पाजामा, फिर कुर्ता और फिर गैलरी में बिछा कालीन भीगना शुरू हुआ।