मॉलमून (कहानी) : शर्मिला बोहरा जालान

Mallmoon (Hindi Story) : Sharmila Bohra Jalan

"सुना है कोलकाता में एक नया मॉल खुला है, गड़ियाहाट में। क्यों न हम वहाँ भी चलें", नीना ने राहुल से कहा। राहुल और नीना की नई-नई शादी हुई है। दोनों निवासी तो हैदराबाद के हैं पर सुबह-सुबह हवाई जहाज से कोलकाता आए हैं। यहीं से रात की रेलगाड़ी पकड़ कर दार्जिलिंग, शिलांग जाएँगे। नीना दार्जिलिंग कई बार जा चुकी पर राहुल का मन है हनीमून वहीं मनाएँ सो एक बार और वहाँ जा रही है।

अब पूरा एक दिन हाथ में है कोलकाता में गुजारना है। दोनों का कोई भी रिश्तेदार यहाँ नहीं रहता सो क्या किया जाए, तो यह तय हुआ कि 'सिटी सेंटर' शॉपिंग कांप्लेक्स, जो दमदम हवाई अड्डे से ज्यादा दूर नहीं है, घूमा जाए। 'इनाक्स' में फिल्म भी देख लेंगे और शाम को 'गड़ियाहाट मॉल' घूम फिरकर स्टेशन चल देंगे। नीना के एक पहचान वाले कोलकाता में निकल आए जिन्होंने पूरे दिन घुमने-फिरने के लिए एक गाड़ी का बंदोबस्त कर दिया जिसका भाड़ा राहुल-नीना चुका देंगे। पर दोनों को कोलकाता कहाँ घूमना है। पड़ा ही क्या है यहाँ! हाँ 'सिटी सेंटर' नहीं देखा हुआ है सो देखेंगे। 'गड़िया मॉल' भी देख लेंगे। 'फोरम' तो देखना शायद नहीं हो पाये। ड्राइवर विश्वास करने लायक लगा सो दोनों अपना सामान गाड़ी में छोड़ 'सिटी सेंटर' में घुस गए।

यहाँ राहुल ने सबसे पहले पिजा खरीदा। वह पूरे दिन पिजा ही खाता है और नीना उसे टोकती नहीं, भले ही उसके चक्कर में वह भूखी रह जाए। ऐसा नहीं है कि उसे पिजा पसंद नहीं पर पूरे दिन में चार बार वह नहीं खा सकती। राहुल को मना करके क्या होगा। नाराज हो गया तो! उसे उसके गुस्से के बारे में कुछ नहीं मालूम। वह गुस्सा होता है तो क्या करता है। शांत होता भी है या नहीं। बात को बढ़ाता है या खत्म कर देता है। बेकार इन छोटी-छोटी बातों को लेकर टोका-टाकी करने से क्या होगा। अगर वह बिफर गया तो? जितना कम उलझो उतना अच्छा है। प्यार बना रहेगा।

क्या कम दिक्कत आई शादी में। जब से नीना के पिता का व्यवसाय खराब चलने लगा। नीना के लिए रिश्ता बताने वाले लोग भी नहीं रहे। एक-दो लोगों ने एक-दो लड़कों की बात चलाई पर कोई बिहार का दकियानूसी घर था तो कोई चौंतीस-पैंतीस वर्ष का आदमी। कब अट्ठाइस से तीस की हो गई नीना, यह वह भी नहीं जानती। वह तंग आ चुकी थी। इसी बीच राहुल की बात आई। उसे संबंध समझ में आ गया। लड़के वालों का एक कारखाना है। अपनी गाड़ी, अपना तीन मंजिला मकान। छोटा-सा परिवार। घर में सिर्फ राहुल की माँ और पिता हैं। बड़े भाई की शादी हो चुकी है और वह दिल्ली में रहता है। पर यह रिश्ता इतनी आसानी से क्या हो सकता था! राहुल नीना से चार वर्ष छोटा है। छब्बीस साल का। उम्र की बात छुपानी ही चाहिए तभी बात बनेगी। नीना के घर वालों और नाते-रिश्तेदारों ने साथ दिया और बात दबी रह गई।

रिश्ता तय हो गया। शादी भी हो गई। एक बार शादी हो जाए उसके बाद नीना सब सँभाल लेगी। बैठा लेगी तालमेल। वह कोई वैसी लड़की तो है नहीं जिसकी किसी के साथ बनती नहीं है। उसके साथ तो सब रहना चाहते हैं, बात करना चाहते हैं, इसलिए नीना खुश है। अब कम से कम कोई उसे ताना तो नहीं मारेगा की इतनी बड़ी होकर कुँवारी डोल रही है। भगवान जो करता है अच्छा ही करता है। देर-सबेर सही, एक अच्छा लड़का मिल ही गया।

दोनों हाथ पकड़ मॉल में घूम रहे हैं।

कैसी मायावी दुनिया है। ठंडा-ठंडा जादू। धीरे-धीरे तन को छूता। मन को भटकाता, उड़ाता, एक रंगीन स्वप्निल दुनिया की सृष्टि करता। कैसा अजीब सा आकर्षण। राहुल कहता है, "मॉल में लगता है हर आदमी मुझे ऊपर से नीचे तक अजीब तरह से तौल रहा है। वैसे देखो तो कोई भी घूरता नहीं है फिर भी खुद को यह लगता है कि हर आदमी अंदर तक भेद रहा है। लगता है मुझे यह बताना होगा, यह हिसाब देना होगा कि मैंने किस ब्रांड के कपड़े और जूते पहन रखे हैं। कौन-सा डीओ लगाया है और कौन-सा आफ्टर शेव।"

जहाँ देखो वहाँ लोग ही लोग, हर उम्र के लोग। आकर्षक मोहित करने वाले कपड़े पहने, चमचमाते लोग। सामान निहारते लोग। खरीदो। खरीदो और फेंको की अंतर्ध्वनि निकालते लोग। सामान ही सामान। हर उम्र के लोगों के लिए हर तरह का सामान। सामान में डूबते-तैरते लोग। रोजमर्रा के जीवन में भी मॉल तलाशते लोग। कहाँ रखा है रोज-रोज मॉल-सा मायावी चमकीला जीवन। मॉल से निकालते ही वही गर्मी, धुएँ, बारिश और पसीने से चिपचिपाता बिना मेकअप का चेहरा। मॉल के बाहर का जगत मॉल के अंदर के जगत से एकदम भिन्न।

बाहर लोग प्रायः खीझते, झुँझलाते, चिड़चिड़े-से। वही मॉल में मीठा बोलते हुए। राहुल बोला, "हनीमून के लिए मॉल से अच्छी जगह और क्या होगी। पूरा का पूरा दिन सामान देखते, पसंद करते, चुनते हुए गुजार दिए जाए।

छोड़ो, हम दार्जिलिंग नहीं जाते।" यहीं 'सिटी सेंटर', 'फोरम', और 'गड़िया मॉल' घूमते हुए दस दिन निकाल देंगे। दस दिन कम पड़ेंगे। हमारा हनीमून एकदम अलग हट कर होगा - 'मॉल मून'। फिर देखना सारे लोग देखा-देखी ऐसा करने लगेंगे। चमचमाते पेशाबघर भी हैं यहाँ।"

नीना हँस दी। बोली, "अरे पैसे? ...इतने दिन इतना सामान देखेंगे तो खरीदेंगे भी तो।"

राहुल बोला, "हाँ, वह तो चाहिए। इस बार उतने पैसे हम लेकर नहीं आए पर देखना एक दिन इतना कमाऊँगा कि पूरा एक महीना मॉल में घूमते सामान खरीदते गुजारूँगा। पूरा मॉल खरीद दूँगा तुम्हें। देखना, एक दिन बहुत कमाऊँगा।"

"आज भी अच्छा कमा रहे हो। क्या कम है?"

"हाँ, वह तो है। कारखाना है अपना खुद का। पर वह चलता...।

एक अच्छी बात बताता हूँ। कोई साल भर पहले मैं राजस्थान गया था। चुरू। वहाँ एक जगह मैंने आठ कट्ठा जमीन खरीदी है। सबने बहुत मना किया कि क्यों खतरा उठाते हो। उस जमीन पर कोई काम नहीं कर सकोगे। वहाँ के लोग उस जमीन को छूने नहीं देंगे। फिर भी मैंने हिम्मत की। जानती हो क्यों? सुना है वहाँ किसी राजा का राज्य था। वहाँ उस स्थान स्थान पर उस समय खजाना गाड़ा गया था। उस जगह की खुदाई करवाने से वह हाथ लगेगा। अभी तो मैं थोड़ा व्यस्त हूँ पर जब भी वक्त निकाल पाऊँगा उस काम में हाथ लगाऊँगा। अभी मैंने उस जगह को घेर कर रख दिया है। यह कोई परी-कथा नहीं कह रहा। एकदम सच बता रहा हूँ। मेरे हाथ में भी तो राज योग है। जो भी मेरी जन्मपत्री देखता है कहता है, गड़ा खजाना लिखा है। पर, यह बात तुम अभी किसी से भी कहना मत।"

नीना राहुल की बात समझ नहीं पाई कि वह क्या कह रहा है। यह सब तो किस्से कहानी की बातें हैं। पर ठीक है, जो भी हो, राहुल भले ही खजाना न खोज निकाले इतना तो जरूर कमाता रहेगा। जिससे वह मनपसंद शॉपिंग करती रहेगी। नीना राहुल की बात सुन बेफिक्र हुई। बचपन से लेकर बड़े होने तक उसके पास हर वह चीज रही जो वह पाना चाहती थी। हाँ, इन कुछ वर्षों में पापा का व्यवसाय ठीक न होने पर उसने शॉपिंग करना थोड़ा कम जरूर कर दिया था। फिर भी इतना उसके पास हरदम रहता था जिससे वह आधुनिक लगे। नीना स्वयं भी, छोटा ही सही, व्यवसाय करना चाहती है। वैसे तो राहुल के पास क्या नहीं है। गाड़ी, तीन मंजिला घर, व्यापार सब कुछ। फिर भी करने में क्या बुराई है। आजकल कौन नहीं कर रहा। न जाने राहुल इस बारे में क्या सोचता है। क्यों न वह राहुल से पूछे, बात करे।

नीना ने घुमाफिरा कर राहुल से कहा, मेरा मन है, मुझे आता है... मुझे लगता है मैं प्रदर्शनी लगा सकती हूँ, एकदम अलग हटकर साड़ियाँ लेकर काम शुरू कर सकती हूँ।"

नीना ने अपनी बात कह तो दी पर उसे लगा अभी राहुल जोर से बोलेगा, 'नहीं'। गुस्सा हो जाएगा। कहेगा, क्या कमी है तुम्हारे पास। कहेगा, यह सब भूल जाओ कि तुम साड़ी-वाड़ी का धंधा करोगी। राहुल चुप था। वह कोई जवाब नहीं दे रहा था। थोड़ी देर बाद उसने कुछ सोचते हुए कहा, "मैं भी चाहता हूँ कि तुम कोई काम करो। बस अभी कुछ दिन रुक जाओ। अभी हमारी नई-नई शादी हुई है। अभी रुकना ठीक होगा उसके बाद करना। कमाना ही चाहिए।" नीना खुश हो गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि राहुल ऐसा कह रहा है। नहीं-नहीं राहुल पुराने ख्याल का लड़का नहीं है। वह एक अच्छा लड़का है। यही तो वह चाहती थी और उसे क्या चाहिए था। दोनों खुश हो 'इनाक्स' में घुस गए और चिप्स खाते हुए कोक पीते हुए 'क्या कूल हैं हम' फिल्म देखने लगे।

फिल्म खत्म होने के बाद दोनों ने सोचा कि यहाँ से निकलकर 'गड़िया मॉल' जाने से स्टेशन जाने में कहीं देर हो जाए और ट्रेन छूट जाए तो क्यों न 'सिटी सेंटर' में ही समय गुजार दिया जाए।

दोनों एकांत खोजकर बैठ गए और इधर-उधर की बातें करने लगे। बात ही बात में राहुल ने कहा, "नीना! अब तुम हमारे घर की हो। तुमसे बात की जा सकती है। वह जो अपनी गाड़ी है न, काली लांसर, वह पापा ने अभी खरीदी नहीं है। शोरूम वाले शर्माजी पापा के पुराने दोस्त हैं। उन्होंने कहा, एक दो महीना रखकर गाड़ी चलाकर देखिए। जँचे तो खरीद लीजिएगा नहीं तो दूसरी देख-पसंद कर चुन लीजिएगा। पापा को नई-नई गाड़ी का शौक रहता है। ऐसा हम करते रहते हैं। गाड़ी बदलते रहते हैं। पर मैं सोचता हूँ कि क्या होगा अभी इतनी महँगी गाड़ी खरीद कर। व्यवसाय ठीक हो जाए तब खरीद लेंगे।" नीना ने टोका, "व्यवसाय तो अच्छा चल रहा है।"

"क्या अच्छा चल रहा है। प्लास्टिक का ही तो कारखाना है। आजकल सब चीनी प्लास्टिक सामान खरीद रहे हैं। हमारा धंधा ठप्प-सा ही समझो। मैं भी चीन जाने की बात सोच रहा हूँ। बस अब शादी हो गई है। अब कदम बढ़ाऊँगा। चीन जाकर वहाँ के इलैक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक के सामान हैदराबाद लाऊँगा। वैसे तो बहुत मारवाड़ी इस धंधे में घुस आए हैं और बहुत सारा बाजार चीनी माल से भरा पड़ा है, फिर भी अभी हैदराबाद के कुछ बाजार ऐसे हैं जहाँ मैं चीनी माल भर सकता हूँ। यह काम जल्दी शुरू करने की बात सोच रहा हूँ। इसके पहले कई तरह के कामों के बारे में सोचा पर इसमें ज्यादा लाभ है। यह सब कुछ शुरू करते ही देखना साल भर में अच्छे पैसे आ जाएँगे।" नीना को यह सब अजीब-सा लगा। ये बातें उसके लिए नई थीं। उसने धीरे से पूछा, "क्या हम लोग गाड़ी नहीं रखेंगे?" राहुल बोला, "इतनी महँगी वाली नहीं। कम कीमत वाली लोन पर लेंगे।" यह कह चुकने के बाद राहुल धीरे-धीरे घर में कितना खर्च लगता है बताने लगा बोला, "जिस मकान में हम रहते हैं वह पूरा मकान हम लोगों का थोड़े न है। वहाँ पहले दोनों ताऊजी, चाचा और दादाजी के भाई सभी साथ रहते थे। करीब बीस-पच्चीस लोगों के साथ हम थे। पूरा मकान तीन मंजिल का है। आधी मंजिल एक-एक के हिस्से में आई है। अपने वहाँ सिर्फ दो कमरे हैं। वैसे हम लोगों की पुराने हैदराबाद में कुछ जमीन है जहाँ गोडाउन बने हुए हैं और वहाँ से जो भाड़ा आता है उससे हमारा खर्च निकल जाता है। दादाजी के सभी भाइयों की जो जमीन है उससे भाड़े के जो पैसे आते हैं ट्रस्ट में जाते हैं। वहीं से पूरे मकान की बिजली का खर्च निकलता है। अब उस मकान में ज्यादा लोग तो रहे नहीं। चाचाजी-ताऊजी का अपना अच्छा धंधा चल रहा है। बंजारा हिल्स में घर बनाकर रहने लगे हैं। बच गए हम सो दो लोगों के कमरे का बिजली खर्च आता ही कितना है। अगर ट्रस्ट से निकल जाता है तो कौन सा बड़े धन का भुगतान हो रहा है।"

नीना को पसीना आ रहा था। इतना पसीना कैसे आने लगा जबकि 'सिटी सेंटर' तो बर्फ की तरह ठंडा पड़ा है। उसे डर लगने लगा और घबराहट भी। यह एक के बाद एक क्या-क्या बोल रहा है राहुल। कैसे-कैसे भेद हैं। क्या पापा को राहुल की ये बातें मालूम हैं? क्या उनसे पूछें। क्या वह उन्हें कहे कि उसके साथ क्या हुआ है? नहीं। नहीं। वह अपने मुँह से पापा से कभी कुछ नहीं पूछेगी न ही चर्चा करेगी। पापा को यह सब जानकर दुख होगा। धक्का लगेगा। अगर पापा का व्यवसाय अच्छा चलता तो क्या पापा कभी इस घर में उसका रिश्ता करते? अब उसे यह सब नहीं सोचना चाहिए। उसका विवाह हो चुका है। राहुल अच्छा लड़का है। चलो अब उसे इस तरह सोचना चाहिए कि वह भी राहुल के साथ चीन देख आएगी।

नीना को कुछ भी बोलते न देख राहुल ने कहा, "छोड़ो। कैसी-कैसी बातों में हम लग गए। आओ कुछ और खरीद लें।" नीना का मन था कि वह एक जींस व एक हैंड बैग खरीदे पर उसने मना कर दिया। जो है वही पहन लेगी। क्या होगा इतने-इतने कपड़े खरीद कर। सिर्फ खरीदने से क्या होता, उसकी सार-सँभाल भी तो करनी पड़ती है। दिन भर उन्हें धोते और आयरन करवाते रहो। बाजार में धुलवाने और आयरन करवाने में भी क्या कम पैसे लगते हैं? ज्यादा कपड़े हों तो पूरे-पूरे दिन उन्हें समेटते-सहेजते रहो, उसी में उलझे रहो। तभी नीना ने देखा, राहुल उसके लिए रंग-बिरंगी 'ऊँ' लिखी एक कुर्ती खरीद लाया है।

"देखो कितनी सुंदर है। तुम इसे पहनकर और भी छोटी लगोगी और सुंदर भी। फिर मैं सबसे कहूँगा यह 'मॉल मून' का असर है। मुझे पता है तुम मुझसे बड़ी हो पर आजकल सब कुछ चलता है।" नीना को फिर से पसीना आ गया और वह भेदिए राहुल को एकटक देखने लगी।

  • शर्मिला बोहरा जालान : हिन्दी कहानियाँ
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां