मलबा (कहानी) : पर्ल एस. बक - अनुवाद : सुरजीत

Malba (English Story in Hindi) : Pearl S. Buck

बूढ़ी मिसेज वाँग को भी निश्चय ही पता था कि युद्ध हो रहा था। हर व्यक्ति को ज्ञात था कि यह युद्ध एक दीर्घावधि से जारी था और जापानी चीनियों की निर्दयता से हत्या कर रहे थे। पर अभी तक यह बात प्रमाणित नहीं थी और इसको केवल अफ़वाह ही समझा जाता था, क्योंकि वाँगस का कोई आदमी नहीं मारा गया था। पीले दरिया के मैदानी किनारे पर स्थित वाँगस के गाँव ने, जो मिसेज वाँग का ख़ानदानी गाँव था, कभी किसी जापानी को नहीं देखा था। यही कारण था कि वे लोग केवल कभी-कभार जापानियों के बारे में बातें ही करके रह जाते थे।

यह आरंभिक गर्मियों की एक शाम थी। मिसेज वाँग खाना खाकर नित्य की तरह दरिया की रोकथाम के लिए बाँधे गए पुश्ते पर पानी का चढ़ाव देखने के लिए आ गई। वह जापानियों से अधिक उस दरिया से भयभीत थी। वह उस दरिया की भयंकरता से अच्छी तरह अवगत थी। एक-एक करके गाँव के बाक़ी लोग भी मिसेज वाँग के पीछे ही पुश्ते पर चढ़ गए और दरिया के पानी को देखने लगे, जो साँपों की किसी टोली की तरह लहरा-लहरा कर पुश्ते की ऊँचाई को चाट रहा था।

“इस मौसम में मैंने दरिया के पानी में इतना चढ़ाव कभी नहीं देखा।” मिसेज वाँग ने कहा, फिर वह अपने पोते लिटल पिंग के लाए हुए बाँस के स्टूल पर बैठ गई और पानी में थूक दिया।

“यह बूढ़ा शैतान तो जापानियों से भी अधिक भयानक है।” लिटल पिंग दरिया की ओर देखता हुआ बोला।

“बेवक़ूफ़!” मिसेज वाँग जल्दी से बोली, “पानी का देवता सुन लेगा, कोई और बात करो।”

फिर वे जापानियों की बातें करने लगे।

“अगर हम किसी जापानी को देखें तो उसे कैसे पहचानेंगे?” टूंग ने पूछा, जो मिसेज वाँग का भतीजा था।

“तुम फ़ौरन जान जाओगे,” मिसेज वाँग ने आत्मविश्वास से कहा, “मैंने एक बार एक विदेशी को देखा था। उसका क़द मेरे मकान की छत से भी ऊँचा था और उसके बाल मटियाले रंग के थे। और आँखें, आँखें तो बिलकुल मछली की आँखों से मिलती-जुलती थीं। कोई भी आदमी जो हम जैसा न हो, बस, वही जापानी है।”

हर व्यक्ति बड़े ग़ौर से उसकी बातें सुन रहा था, क्योंकि वह गाँव की वृद्धतम महिला थी और गाँव वालों के लिए उसकी बात में ख़ासा वज़न था।

“पर आप उन्हें देख नहीं सकतीं, दादी माँ!” लिटल पिंग बोला, “वे अपने विमानों में बैठे आकाश में छुप जाते हैं।”

मिसेज वाँग ने इस बात का तत्काल कोई उत्तर नहीं दिया, हालाँकि इससे पूर्व वह एक बार बड़े विश्वास से यह कह चुकी थीं कि वह जब तक कोई विमान देख न ले, ऐसी बातों पर यक़ीन नहीं कर सकती। बहुत सारी ऐसी बातें, जिन पर उसे यक़ीन नहीं था, सच साबित हो चुकी थीं। वह इसीलिए लिटल पिंग की बात सुनकर पुश्ते पर बैठे हुए आदमियों पर केवल एक नज़र डालकर रह गई। मौसम बड़ा ठंडा और सुखद था।

“मैं जापानियों पर यक़ीन नहीं रखती!” मिसेज वाँग ने लापरवाही से कहा।

लोग उसकी बात पर ज़रा-सा हँस दिए, पर कोई कुछ बोला नहीं। किसी ने अपना पाइप सुलगाया। यह लिटल पिंग की बीवी थी, जो मिसेज वाँग की भी चहेती थी, वह चुपचाप पाइप से कश लेती रही।

“दादी माँ!” लिटल पिंग की बीवी ने अपने मधुर स्वर में कहा, “अब आप चलें। सूरज डूब चुका है और दरिया पर से कुहरा उठ रहा है।”

“हाँ, मुझे चलना चाहिए।” बूढ़ी वाँग ने अनुमोदन में सिर हिलाते हुए कहा, फिर उसने दरिया की ओर देखा।

यह दरिया! यह अच्छाइयों के साथ-साथ ख़राबियों से भी भरा हुआ था। यदि इस पर बाँध बाँध दिया जाए और पानी रोक लिया जाए तो यह खेतों को सींचता है, पर निश्चित सतह से यदि एक इंच पानी भी ऊँचा हो जाए, तो यह दहाड़ते हुए अजगर की तरह सब कुछ तहस-नहस करके रख देता है। इसी प्रकार तो वह उसके पति को भी बहा कर ले गया था, क्योंकि वह अपने हिस्से के पुश्ते की ओर से लापरवाह हो गया था। वह सदा उसकी मरम्मत कर दिया करता था और उस पर मिट्टी की तहें जमाया करता था। फिर एक दिन दरिया चढ़ा और पुश्ते को तोड़ता हुआ निकल गया। उसका पति मकान के बाहर भाग गया और वह अपने बच्चे को लेकर छत पर चढ़ गई। फिर दरिया पीछे ढकेल दिया गया और उस समय वह वहीं था। अब गाँव की ओर से पुश्ते की देखरेख मिसेज वाँग ने सँभाल ली थी। वह बिना नागा शाम को उस पर चढ़ आती और उसकी देखभाल के लिए देर तक उस पर घूमती रहती। लोग उस पर हँसते और कहते कि अगर पुश्ते में कभी कोई ख़राबी हो गई तो मिसेज वाँग उन्हें समय से पूर्व अवगत कर देगी।

आज तक किसी के मन में यह ख़याल नहीं आया था कि गाँव को दरिया से दूर ले जाते। वाँग ख़ानदान यहाँ पीढ़ियों से बसा हुआ था। बाढ़ के बाद जो लोग उसके विध्वंस से बच जाते, वे पहले से ज़्यादा जोश के साथ उससे निपटने की तैयारियों में लग जाते।

अपने बिस्तर पर नीली मच्छरदानी के अंदर लेटकर वह जल्दी ही शांतिपूर्ण निद्रा की गोद में पहुँच गई। सोने से कुछ देर पहले तक वह बड़े विस्मय से यह सोचती रही थी कि आख़िर ये जापानी क्यों लड़ रहे हैं? केवल बहुत ही वहशी क़िस्म के लोग ही युद्ध किया करते थे। फिर उसकी कल्पना में वहशी लोग घुस आते। अगर वे लोग आ भी जाएँ, तो उनका आतिथ्य-सत्कार करके उन्हें समझाया जा सकता है कि आख़िर वह इस शांत देहात में क्या लेने आए हैं! यही कारण था कि जब लिटल पिंग की बीवी चीख़ी कि जापानी आ गए, तो मिसेज वाँग बिलकुल नहीं घबराई।

“उनके लिए चाय...चाय के प्याले...” वह बड़बड़ाती हुई उठ बैठी।

“दादी माँ! अब समय नहीं है!” लिटल पिंग की बीवी फिर चिल्लाई, “वे आ गए हैं। वे यहाँ आ गए हैं!”

“कहाँ?” मिसेज वाँग बुरी तरह जागकर चिल्लाई।

‘आकाश में!” उसकी बहू रोनी-सी आवाज़ में बोली।

सब लोग बाहर निकल गए थे और साफ़ निखरी सुबह के प्रकाश में आकाश की ओर देख रहे थे, जहाँ हेमंत ऋतु में जंगली हंसों की तरह बड़े-बड़े पक्षी तैर रहे थे।

‘यह...यह आकाश पर क्या है?...यह क्या चीज़ है?” मिसेज वाँग विमानों को देखकर चिल्लाई।

उसी समय चाँदी के अंडे जैसी कोई चीज़ विमान से निकली और गाँव से ज़रा दूर एक खेत में जा पड़ी। मिट्टी का एक बड़ा फ़व्वारा-सा ऊपर उठा और वे सब उसे देखने के लिए उस ओर दौड़ पड़े। वहाँ किसी तालाब की तरह का लगभग तीस फुट गोलाई का गड्ढा बन गया था। आश्चर्य से सबकी ज़बानें गूँगी हो गईं। इससे पहले कि कोई कुछ बोलता, एक ‘अंडा’ और गिरा, उसके बाद एक और। फिर हर आदमी, जिसका जिधर मुँह उठा, भाग निकला। मिसेज वाँग के अलावा सब भाग रहे थे, जब लिटल पिंग की बीवी ने बाँह पकड़कर उसे अपने साथ घसीटना चाहा तो उसने अपना हाथ छुड़ा लिया और जाकर पुश्ते के किनारे पर बैठ गई।

“मैं भाग नहीं सकती,” वह बोली, “मैं सत्तर वर्ष के दौरान आज तक नहीं भागी। तुम चली जाओ, लिटल पिंग कहाँ है?” उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई, पर लिटल पिंग पहले ही भाग चुका था।

“अपने दादा की तरह वह भी भागने वालों में सदा सबसे आगे रहता है।” मिसेज वाँग ने कहा, पर लिटल पिंग की बीवी उसे छोड़कर नहीं जाना चाहती थी। मिसेज वाँग ने अपनी बहू को उसकी ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाया, क्योंकि उसकी बहू एक बच्चे की माँ बनने वाली थी।

अगर इस हंगामे में लिटल पिंग तुमसे बिछड़ भी जाए और तुम्हें न मिल सके तो भी ज़रूरी है कि उसका बच्चा ज़िंदा पैदा हो!” यह सुनकर भी लिटल पिंग की बीवी वहीं खड़ी रही तो मिसेज वाँग ज़ोर से बोली, “जल्दी से भाग जाओ!”

अब वे विमानों के शोर के कारण एक दूसरे की आवाज़ भी नहीं सुन सकती थीं। फिर न चाहते हुए भी लिटल पिंग की बीवी दूसरों के साथ दौड़ गई।

अब तक हालाँकि केवल कुछ मिनट ही बीते थे, पर पूरा गाँव खँडहर बन चुका था। घास-फूस की छतें और लकड़ी के बीम जल रहे थे। घरों में से हर व्यक्ति निकल-निकलकर भाग रहा था और जब कोई मिसेज वाँग के पास से गुज़रता तो चिल्लाकर उसे अपने साथ आने के लिए कहता।

"आ रही हूँ, आ रही हूँ।” वह वहीं बैठी-बैठी चिल्लाती, पर उसने अपनी जगह से हरकत भी नहीं की। वह अकेली चुपचाप बैठी अपने सामने असाधारण दृश्य देखती रही। अब न जाने कहाँ से कुछ अन्य विमान भी आ गए थे। और पहले वाले विमानों पर हमला कर रहे थे। सूरज अब पकी हुई गेहूँ की फ़सलों के ऊपर आ गया था और वे विमान एक-दूसरे पर झपट-झपटकर वार कर रहे थे। उसने सोचा कि जब यह लड़ाई ख़त्म हो जाए, तो वह गाँव में जाकर देखेगी कि क्या कुछ बाक़ी बच गया है! अब कहीं-कहीं इक्का-दुक्का दीवारें छतों का सहारा लिए खड़ी थीं। यहाँ से उसे उसका घर नज़र नहीं आ रहा था। पर ये दृश्य उसके लिए बिल्कुल ही अजनबी नहीं थे। एक बार उस गाँव पर डाकुओं ने हमला कर दिया था और वह भी इसी प्रकार घरों को जलाकर गए थे। और अब दुबारा ऐसा ही हुआ था। जलते हुए मकान तो उसकी समझ में आ रहे थे। पर आकाश पर चाँदी की तरह चमकते हुए विमानों की लड़ाई उसकी बुद्धि से परे थी। न जाने ये क्या चीज़ें थीं और आकाश पर कैसे ठहरी हुई थीं। वह वहाँ भूखी बैठी सोचती रही और देखती रही।

‘‘मैं इनमें से किसी एक को निकट से देखूँगी।” वह बड़बड़ाई और दूसरे ही क्षण जैसे उसकी इच्छा पूरी हो गई। एक विमान लहराता हुआ बल खाता ज़मीन पर इस प्रकार आया जैसे वह बुरी तरह ज़ख़्मी हो। वह सीधा उस खेत में जा गिरा, जिसमें पिछले ही दिन लिटल पिंग ने सोयाबीन के लिए हल चलाया था, और फिर आकाश साफ़ हो गया। अब वहाँ केवल वह थी और ज़मीन पर पड़ा हुआ विमान!

वह अपनी जगह से उठी। इस उम्र में उसे कभी किसी चीज़ से भयभीत होने की ज़रूरत नहीं थी। उसने निश्चय किया कि विमान को निकट जाकर देखना चाहिए। वह खेतों में से गुज़रती हुई उस ओर बढ़ी। गाँव के सन्नाटे में से तीन कुत्ते निकलकर उसके निकट आ गए और भय से सिकुड़ते हुए उसके साथ-साथ चलने लगे। जब कुत्ते उस विमान के पास पहुँचे तो चौंककर बुरी तरह भौंकने लगे।

“चुप!” मिसेज वाँग उन्हें बाँस के उस टुकड़े से मारती हुई चिल्लाई, जिसका सहारा लेकर वह चलती थी। वह चीख़ रही थी, “कमबख़्तो! यहाँ पहले ही बहुत शोर मच चुका है, अब तुम तो न भौंको!” यह कहकर उसने विमान पर बाँस का टुकड़ा मारा।

‘धातु!” वह जैसे कुत्तों से बोली, “निस्संदेह यह चाँदी है। अगर इसे पिघला लें तो वे सब धनी हो जाएँगे!” यह कहते हुए उसे अपने गाँव वालों की ग़रीबी का ख़याल आ गया था। उसने विमान के गिर्द एक चक्कर लगाया और सोचने लगी कि विमान आख़िर कैसे उड़ता होगा? यह तो बिल्कुल निर्जीव दिखाई दे रहा है। विमान के अंदर भी पूर्ण निस्तब्धता छाई थी। फिर जैसे ही वह विमान की खिड़की के पास आई, उसे अंदर छोटी-सी सीट पर एक नवयुवक आदमी गठरी की तरह पड़ा नजर आया, कुत्ते फिर गुर्राये, पर उसने छड़ी मारकर उन्हें दूर कर दिया।

‘क्या तुम ज़िंदा हो?’ उसने नरमी से पूछा।

आवाज़ सुनकर नवयुवक ज़रा-सा कसमसाया, पर बोल न सका। उसने पास जाकर सूराख़ में झाँका, नवयुवक के पहलू से ख़ून निकल रहा था।

“तुम ज़ख़्मी हो?” वह विस्मय से बोली और नवयुवक की कलाई पकड़ी। जो अभी तक गर्म थी, पर उसमें कोई हरकत नहीं थी। वह नवयुवक को ग़ौर से देखने लगी। नवयुवक के बाल काले थे और त्वचा किसी चीनी की तरह पीली थी, पर वह चीनी नहीं था।

“दक्षिण प्रदेश का होगा,” उसने सोचा। ख़ैर, बड़ी बात यह थी कि वह ज़िंदा था।

“बेहतर होगा कि तुम बाहर आ जाओ,” वह बोली, “मैं तुम्हारे ज़ख़्म पर जड़ी-बूटियों का मरहम लगा दूँगी।”

नवयुवक मुँह-ही-मुँह में कुछ बड़बड़ाया।

“क्या कह रहे हो?” उसने पूछा, पर इस बार भी नवयुवक चुप ही रहा “मैं अभी काफ़ी मज़बूत हूँ” वह जैसे स्वयं से बोली और फिर नवयुवक की कलाई पकड़कर उसे धीरे से बाहर खींच लिया, पर इतने ही में उसकी साँस फूल गई थी।

सौभाग्यवश वह हलका-फुलका-सा आदमी था। जब वह ज़मीन पर आया, उसने अपने क़दमों पर खड़ा होना चाहा, पर फिर मिसेज वाँग पर झूल गया, जिसने फ़ौरन ही उसे सहारा दे दिया।

“अब अगर तुम मेरे घर तक चल सको तो मैं देखूँ, शायद वह वहाँ हो।”

नवयुवक इस बार बड़ी साफ़ आवाज़ में बोला। बुढ़िया ने ग़ौर से उसे सुना, पर एक शब्द भी उसके पल्ले नहीं पड़ा। फिर वह अचानक दूर हटकर खड़ी हो गई।

"क्या बात है?” उसने पूछा।

नवयुवक ने कुत्तों की ओर इशारा कर दिया, जो दुमें ताने खड़े गुर्रा रहे थे। वह एक बार फिर बोला, पर अपने क़दमों पर खड़ा न रह सका और ज़मीन पर आ गिरा। कुत्ते तत्काल ही उस पर झपट पड़े और बुढ़िया ने दोनों हाथों से उन्हें पीट डाला।

“दूर हट जाओ!” वह उन पर चिल्लाई, “तुमसे किसने कहा है कि इसे जान से मार दो!”

फिर जब कुत्ते दूर हट गए तो उसने किसी न किसी प्रकार नवयुवक को अपनी कमर पर लादा और काँपती-डगमगाती, उसे घसीटती हुई गाँव के खंडहरों तक ले आई। उसने नवयुवक को एक गली में लिटा दिया। फिर वह कुत्तों को साथ लिए अपने मकान की तलाश में चल दी। उसका मकान ढेर हो चुका था। वह जगह उसे आसानी से मिल गई। यहीं उसका मकान था। पुश्ते में बने उस दरवाज़े के सामने जो पानी की निकासी के लिए बनाया गया था। जहाँ से वह सदा उस दरवाज़े को देखती रहती थी। गेट चमत्कारिक रूप से सुरक्षित था और न ही पुश्ते का कुछ बिगड़ा था। मकान को दुबारा बनाना कठिन नहीं था। हाँ, वक़्ती तौर पर वह अवश्य तबाह हो चुका था।

वह फिर नवयुवक के पास आ गई। वह नवयुवक को, जिस हालत में छोड़ गई थी, उसी प्रकार पड़ा हुआ था। वह पुश्ते की टेक लगाए बैठा था और हाँफ रहा था। चेहरे पर पीलापन फैला हुआ था। नवयुवक ने अपना कोट खोल दिया था और उसमें से एक थैला निकालकर, थैले में पट्टी और किसी चीज़ की बोतल निकाल ली थी। ज़ख़्मी नवयुवक फिर कुछ बोला, और फिर वह कुछ न समझ सकी। आख़िर उसने इशारे से पानी माँगा। गली में बिखरे हुए बर्तनों में से एक उठाकर वह पुश्ते पर चढ़ गई और दरिया से पानी भरकर ले आई। फिर उसने नवयुवक का ज़ख़्म धोया और पट्टी बाँधने लगी। इस दौरान नवयुवक न जाने उसे क्या-क्या बताता रहा, पर वह उसका एक शब्द भी न समझ सकी।

“तुम शायद दक्षिण की ओर के रहने वाले हो!” वह बोली, “मैंने सुना है कि तुम्हारी भाषा हमारी भाषा से भिन्न है।” वह उसको सांत्वना देने के लिए हँसी, पर वह उदास आँखों से उसे देखता ही रहा। अब वह काम से निपटकर हँसमुखता से बोली, “मैं अपने खाने के लिए कुछ ढूँढ़ लाऊँ। फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा।”

वह कुछ नहीं बोला, पुश्ते पर कमर टिकाकर फिर हाँफने लगा और इस प्रकार शून्य में नज़रें गाड़ दीं, जैसे वहाँ उसके अलावा कोई न हो।

‘जब तुम्हारे पेट में रोटी जाएगी तो तबीयत ठीक हो जाएगी!” वह बोली, “और मेरी हालत भी!” स्वयं उसे भी अब बड़े ज़ोर की भूख लग रही थी।

उसे यक़ीन था कि नानबाई टूंग की दूकान पर उसे रोटियाँ मिल सकती थीं। फिर उसे याद आया कि तंदूर दरवाज़े के अंदर की ओर था। वह दरवाज़े का फ्रेम अभी तक छत के एक कोने को सहारा दिए खड़ा था। वह दरवाज़े में आ खड़ी हुई और फिर बैठकर मलबे के नीचे हाथ घुसेड़ दिया। उसकी उँगलियाँ किसी चीज़ से टकराईं। उसके अंदर अवश्य गर्म-गर्म रोटियाँ होंगी! उसने सोचा और बड़ी होशियारी से अपना हाथ घुमाया। उसकी नाक में मिट्टी और चूने की गर्द घुस गई। उसे देर अवश्य लगी, पर जैसा कि उसका ख़याल था, टोकरी में गर्म रोटियाँ मौजूद थीं। उसने एक-एक करके रोटियों के चार रोल निकाल लिए।

“मुझ जैसी बूढ़ी औरत को मारना बड़ा मुश्किल है!” वह बड़बड़ाई और मुस्करा दी। फिर एक रोल खाते हुए वापसी के लिए मुड़ गई। काश! ज़रा-सा लहसुन और चाय का एक प्याला मिल जाता! वह सोच रही थी, पर ऐसे समय में सारी चीज़ें कैसे मिल सकती थीं?

अचानक उसने कुछ आवाज़ें सुनीं। जब वह पुश्ते के निकट पहुँची तो देखा कि कुछ सैनिक नवयुवक को घेरे हुए खड़े थे। न जाने वे कहाँ से आ गए थे! वे सब उस ज़ख़्मी नवयुवक को घूर रहे थे, जो आँखें बंद किए पड़ा था।

“तुम यह जापानी कहाँ से पकड़ लाईं बूढ़ी माँ?” उसे देखते ही वे चिल्लाए।

“कौन जापानी?” वह उनके निकट आते ही बोली।

“यह!” वे नवयुवक की ओर देखते हुए चिल्लाए।

“क्या यह जापानी है?” वह विस्मय से चीख़ पड़ी, “पर यह तो बिल्कुल हमारी तरह ही दिखाई देता है। इसकी आँखें काली हैं और इसकी त्वचा…”

“जापानी है यह जापानी!” उनमें से एक उसकी बात काटकर चीख़ पड़ा।

“ठीक है, होगा!” वह धीरे से बोली, “यह आकाश पर से आ गिरा था!”

“यह रोटी मुझे दो!” दूसरा सैनिक चिल्लाया।

“ले लो!” वह बोली, “पर यह एक इसके लिए छोड़ दो!”

‘इस जापानी बंदर को रोटी खिलाओगी?” किसी ने क्रोध में कहा।

“मेरे ख़याल में यह भी भूखा है।” मिसेज वाँग बोली। वह अब उन सैनिकों को नापसंद करने लगी थी। यों भी सैनिक उसे सदा से नापसंद थे। “मेरी इच्छा है कि तुम लोग यहाँ से चले जाओ!” वह बोली, “तुम लोग आख़िर यहाँ क्या कर रहे हो? हमारा गाँव तो सदा शांतिपूर्ण रहा है।”

“अब तो सचमुच यह शांतिपूर्ण दिखाई दे रहा है! यह सब इन जापानियों का किया-धरा है।

“हाँ! मेरा भी यही ख़याल है।” उसने अनुमोदन किया, “पर क्यों?” उसने फ़ौरन पूछा, “यह बात मेरी समझ में नहीं आई!”

“क्यों? इस कारण कि यह हमारी ज़मीन पर अधिकार करना चाहते हैं।”

‘हमारी ज़मीन पर?” उसने दुहराया, “नहीं, वह इस पर कभी अधिकार नहीं कर सकते।”

“कभी नहीं!” वे सब चिल्लाए।

बातें करने और बुढ़िया की बाँटी रोटी खाने के दौरान उनकी नज़रें पूर्व की ओर जमी थीं।

“तुम लोग पूर्व की ओर क्यों देख रहे हो?” मिसेज वाँग ने उनसे पूछा।

“उस ओर से जापानी आ रहे हैं!” उस आदमी ने उत्तर दिया, जिसने बुढ़िया की रोटी ली थी।

“क्या तुम लोग उनसे भाग रहे हो?”

“हम यहाँ बहुत थोड़ी संख्या में हैं,” वह याचक अंदाज़ में बोला, “हम लोग एक गाँव की रक्षा पर नियुक्त थे—पाऊ एन गाँव, जो...”

“मैं उस गाँव को जानती हूँ,” वाँग ने उसका वाक्य काट दिया, “उसके बारे में विस्तार से बताने की ज़रूरत नहीं है। मैंने अपना लड़कपन वहीं बिताया है। पाऊ कैसा है? वह जिसकी सड़क पर चाय की दुकान है, मेरा भाई है।”

“वहाँ अब एक भी व्यक्ति ज़िंदा नहीं है।” सैनिक ने बताया, “अब वहाँ जापानियों का अधिकार है, उनकी भारी सेना विदेशी बंदूकों और टैंकों के साथ वहाँ आ गई थी, इसलिए हम लोग क्या कर सकते थे?”

“निश्चय ही तुम केवल भाग ही सकते थे, “उसने गर्दन हिला दी। वह स्वयं को बीमार और दुर्बल-सा महसूस कर रही थी, ‘तो वह भी मर गया!’ उसका इकलौता भाई भी मर गया। अब अपने बाप के ख़ानदान की वह अंतिम प्राणी ज़िंदा बची थी।

सैनिक अब उसे अकेला छोड़कर पीछे हटते जा रहे थे।

“वह आ रहे हैं, काले बदमाश!” वे कह रहे थे, “अच्छा होगा, हम लोग यहाँ से चले जाएँ।”

सूर्य सिर पर आ चुका था और काफ़ी गर्मी थी। अगर उसे जाना ही था तो अच्छा होगा कि अब चली जाए, पर पहले वह पुश्ते पर चढ़कर उनको दिशा का अनुमान लगा लेगी। वे लोग पश्चिम की ओर गए थे। उस ओर दृष्टिसीमा तक मैदान फैला हुआ था। मीलों दूर उसे कुछ लोगों की भीड़-सी नज़र आ रही थी। उसने सोचा कि वह अपने गाँव वालों को दूसरे गाँव में जाकर देखेगी। शायद वे लोग वहीं गए हों।

वह धीरे-धीरे पुश्ते पर चढ़ गई। धूप बहुत तेज़ थी, पर पुश्ते पर आकर उसे हवा लगी तो ज़रा शांति आई। उसे यह देखकर एक झटका-सा लगा कि दरिया पुश्ते के किनारे तक चढ़ आया था। शायद यह पानी उस आख़िरी घंटे में बढ़ा था।

“तू बूढ़े शैतान!” वह ग़ुस्से से बोली, “पानी का देवता सुनता है तो सुन ले। यह है ही शैतान! पहले ही सारा गाँव तबाह हो गया है और ऊपर से यह भी बाढ़ की धमकियाँ दे रहा है।”

उसने झुककर अपने हाथ धोए। फिर मुँह पर पानी डाला। पानी बिल्कुल ठंडा था, जैसे बरसात का पानी हो। फिर उसने उठकर चारों ओर नज़र दौड़ाई। पश्चिम की ओर दूर, केवल भागते हुए सैनिकों की आकृतियाँ थीं। उनकी पृष्ठभूमि में अगले गाँव का धुँधला-सा नक़्शा नज़र आ रहा था, जो ज़मीन का ऊँचा-सा टुकड़ा बना हुआ था। अच्छा होगा कि वह उस गाँव के लिए चल दे। निस्संदेह लिटल पिंग, उसकी बीवी और अन्य लोग वहाँ उसकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे, उसके मस्तिष्क में आया। फिर जैसे ही वह जाने के लिए मुड़ी, उसकी नज़र पूर्वी क्षितिज पर जम गई। पहले-पहल उसे केवल धूल का एक बादल-सा नज़र आया। फिर वह बादल जल्दी ही काले चमकदार धब्बों में बदल गया। ये धब्बे गतिशील थे। उसे जल्दी ही पता चल गया कि वे आदमी थे—बहुत सारे आदमी। एक पूरी सेना, और फिर वह जान गई कि यह कौन-सी सेना थी!

यह है जापानी सेना! उसने सोचा, उनके ऊपर गरजते हुए विमान थे, वे शत्रु की तलाश में उनके सिरों पर मँडरा रहे थे।

“न जाने तुम लोग किसकी तलाश में हो!” वह ऊँची आवाज़ में बोली, “अब तो केवल मैं, लिटल पिंग और उसकी बीवी ही बचे हैं, तुमने मेरे भाई को तो पहले ही मार दिया है।”

वह तो भूल ही गई थी कि उसका भाई मर चुका था, पर अब उसे याद आ गया। उसकी बड़ी अच्छी दुकान थी। साफ़-सुथरी, अच्छी चाय, अच्छा मीट। सदा एक दाम रखता था। वह बड़ा अच्छा आदमी था। उसके अलावा उसकी बीवी और सात बच्चों का क्या हुआ? स्पष्ट है कि वे सब भी मारे गए होंगे और अब ये जापानी उसकी तलाश में थे। उसे ख़याल आया कि पुश्ते पर तो वह आसानी से देख ली जाएगी, इसलिए वह तेज़ी से नीचे उतर गई।

अभी वह बीच में ही थी कि उसे पानी का फाटक याद आ गया। यह बूढ़ा दरिया सदा ही उनके लिए मुसीबत बना रहा है। अब वह अपनी सारी बदमाशियों को ज़रा-सा हरजाना क्यों न चुका दे! यह सदा साज़िशें करता रहा है। किनारे काटता रहा है। ज़मीन दबाता रहा है, तो फिर क्यों नहीं! वह एक क्षण के लिए डगमगाई। बेचारा मुरदा जापानी नवयुवक भी इस बाढ़ में बह जाएगा। बड़ा अच्छा लड़का नज़र आता है और फिर उसने नवयुवक जापानी को कटार लगने से भी तो बचाया था। निस्संदेह यह उसकी जान बचाने के समान तो नहीं था, पर उस जैसी ही क्रिया थी। वह नवयुवक के पास गई। फिर उसे खींचती हुई ऊपर ले आई और पुश्ते के किनारे पर लिटाकर दुबारा नीचे उतर गई। उसे अच्छी तरह पता था कि पानी का फाटक कैसे खोला जाता है। फ़सलों को पानी देने के लिए बाँध का एक दरवाज़ा तो एक बच्चा भी खोल सकता था, पर वह यह भी जानती थी कि पूरा फाटक कैसे खोला जाता है। सवाल यह था कि क्या वह उसे इतनी जल्दी खोल सकती थी कि पानी की लपेट से स्वयं को बचा सके!

“मैं एक बूढ़ी स्त्री ही तो हूँ, “वह बड़बड़ायी। वह एक क्षण को हिचकिचाई कैसी दयनीय बात थी कि वह लिटल पिंग की बीवी के बच्चे को नहीं देख सकती थी। न जाने वह कैसा होगा! पर आदमी सब कुछ कहाँ देख सकता है! उसने जीवन में बहुत कुछ देख लिया। आख़िर इस नज़ारेबाज़ी का कहीं तो अंत होना ही था!

उसने फिर पूर्व की ओर एक नज़र डाली। जापानी अब मैदान में से आते हुए साफ़ नज़र आ रहे थे। वे काले और चमकते हुए बिंदुओं की एक लंबी गतिशील पंक्ति दिखाई दे रहे थे। अगर वह यह दरवाज़ा खोल दे तो यह तेज़-तीखा पानी गुर्राता हुआ मैदान को लपेटता, एक बड़ी झील का रूप बनाता हुआ उनकी ओर बढ़ेगा और फिर शायद वे सब सदा-सदा के लिए पानी में खो जाएँगे। निश्चय ही ये लोग उस तक, लिटल पिंग और उसकी बीवी तक कभी नहीं पहुँच सकते थे।

वह बड़े आत्मविश्वास से फाटक की ओर मुड़ी और बड़बड़ाई, “ठीक है, कुछ लोग विमानों से लड़ते हैं और कुछ बंदूकों से लड़ते हैं। अगर तुम्हारे पास इस जैसा उद्दंड दरिया हो तो दरिया से भी लड़ो।”

उसने फाटक में से लकड़ी का एक मोटा-सा खूँटा खींच लिया। हरी काई के कारण खूँटा बड़ी आसानी से बाहर फिसल आया था। पानी की एक तेज़ धार बाहर उछल पड़ी। उसे अब केवल एक मोटी कील और खींचनी थी। फिर दरिया अपनी पूरी तेज़ी से उद्दंड बाढ़ के रूप में बाहर निकल आता। मिसेज वाँग ने ज़ोर लगाया। कील अपनी सूराख़ में से ज़रा-सी फिसली। यह काम करके तो शायद मैं अपने सारे पाप ही क्षमा करवा लूँ। उसने सोचा, शायद मेरा बुड्ढा पति भी अपनी यातना से मुक्ति पा ले। इस काम के आगे उसके एक हाथ का महत्त्व ही क्या है? फिर हम दोनों...सहसा उसके विचारों का क्रम टूट गया। अचानक कील फिसलकर उसके हाथ में आ गई। एक धमाके से पुश्ते का फाटक गिरा और पानी के भव्य रेले ने उसे अपनी लपेट में ले लिया। उसने अपना दम घुटता-सा महसूस किया, पर फिर उसे दरिया को आख़िरी बार संबोधित करने का अवसर मिल गया, “आ जा बूढ़े शैतान!”

फिर उसे ऐसा लगा, जैसे पानी ने उसे बुरी तरह जकड़कर आकाश पर उछाल दिया हो। उसके आगे-पीछे, ऊपर-नीचे हर ओर पानी ही पानी था। वह उसे किसी ऐसी गेंद की तरह इधर-इधर उछाल रहा था जो किसी नटखट बच्चे के हाथ लग गई हो। दरिया उसे अपनी लहरों में अच्छी तरह लपेटकर गुर्राता हुआ दुश्मनों की ओर बढ़ गया।

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