महानगर में जीवन की जंग—चेन्नई की कथा (आलेख) : डॉ. पद्मावती
Mahanagar Mein Jiwan Ki Jang - Chennai Ki Katha (Article) : Dr. Padmavathi
बंगाल की खाड़ी के निकट बसा दक्षिण भारत का मुख्य व्यावसायिक केंद्र, तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई। एक ओर सागर का अनंत विस्तार तो दूसरी ओर असीमित संभावनाओं का विस्तीर्ण क्षितिज। कला, संस्कृति और अध्यात्म का गढ़। यह नगर ऐतिहासिक विरासत व धरोहरों का समागम स्थल ही नहीं, भक्ति और कला का भी संगम क्षेत्र है। तमिलनाडु का नाम लेते ही आँखों के सामने उपस्थित हो जाते हैं यहाँ के भव्य ऐतिहासिक राजसी मंदिर। अतीत के काल खंड में निर्मित अद्वितीय मनमोहक कलाकृतियाँ जो द्रविड़ स्थापत्य शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। भव्यता और दिव्यता का समावेश कहिए या इतिहास और संस्कृति का अद्भुत मिलन। फिर चाहे वह मैलापुर में स्थित ‘कपालीश्वर मंदिर’ हो या ट्रिपलीकेन का ‘पार्थ सारथी मंदिर’।
तुलनात्मक तौर पर देखा जाए तो दूसरे महानगरों की अपेक्षा चेन्नई में (जिसे पहले मद्रास के नाम से जाना जाता था और 1996 में तत्कालीन राज्य सरकार ने इसका नाम बदल कर ‘चेन्नई’ कर दिया था) जीवन की ‘गति’ औसतन ही मानी जानी चाहिए जो एक स्वागत योग्य तथ्य है। तकनीकी का तंत्र-जाल, सुविधाभोगी जीवन की मृग-तृष्णा, असीमित संभावनाओं का सम्मोहन जैसी स्थितियाँ जो महानगरीय जीवन को परिभाषित करती है, कमोबेश यहाँ भी अवस्थित है। चेन्नई भी इसका अपवाद नहीं है। लेकिन यह कहना भी अतिशयोक्ति न होगा कि अगर कला संस्कृति की गरिमा को सहेजती सभ्यता के प्रत्यक्ष दर्शन की अभिलाषा हो तो दृष्टि दक्षिण की ओर उठ जाती है। सनातन संस्कृति आज भी इस प्रदेश में संपोषित हो रही है, पुष्ट हो रही है। जहाँ विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने आकाश की ऊँचाइयों को छुआ है, वहीं दर्शन कला और अध्यात्म की त्रिवेणी इसकी जड़े सींच रही है। विकास खड़ा है अपनी संस्कृति की नींव पर। इसी कारण एक ओर यहाँ आपको लंबी-लंबी गगनचुम्बी इमारतें मिल जाएँगी, तड़क-भड़क रोशनियों से जगमगाते रंगीन मॉल मन बाँध लेंगे जहाँ देशी और विदेशी हर वस्तु सुगमता से ख़रीदी जा सकती है, वहीं पारम्परिक कला और संस्कृति की संवाहक ‘कला क्षेत्र फाउंडेशन’ के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नृत्यांगनाओं का “भरतनाट्यम” आपकी चेतना के स्तर को शिखर पर पहुँचा देगा। इतना ही नहीं पारदर्शी शांत लहरों के आरोहण-अवरोहण में डूबते सूर्य और उगते चाँद का दृश्य मन को मंत्रमुग्ध कर देगा। जहाँ एक ओर गति है, वहीं दूसरी ओर ठहराव भी है। जहाँ एक ओर भीड़-भड़कम यातायात में फँस जाने की उद्भ्रांत विवशता है, वहीं कलात्मक स्पंदनों को जागृत करती संगीत दीर्घाएँ व प्रदर्शनियाँ है। तनाव है, तो राहत भी है।
इन सबके बावजूद एक और विलक्षणता की चर्चा यहाँ आवश्यक तौर पर करनी ही चाहिए-यहाँ की भीषण गर्मी। सावधान रहें—अगर यहाँ रहना है तो आपकी सहिष्णुता की परीक्षा अवश्य होगी। कारण यह है कि उष्ण भूमध्य रेखा का सामीप्य यहाँ मौसमी बदलाव में अवरोध उपस्थित करता है जिससे बारहों महीने मौसम गर्म ही रहता है। मौसम विज्ञान कुछ भी कहें, चेन्नई में रहना है तो ठंड को भूल जाना होगा और सहृदयता से इस न्यूनता को अपनाना होगा। हाँ, विस्तीर्ण समुद्र की समीपता यहाँ वातावरण में आर्द्रता के स्तर को बनाए रखती है। अगर दिन तप्त कुंड होता है तो संध्या सुहावनी सुरमयी। सूरज के ढलते ही हवा में शीतलता आ जाती है जो ताप के प्रकोप को कुछ हद कर शमित कर जाती है।
महानगरों का अभिशाप-जल का अभाव। चेन्नई भी इस विकट समस्या से अछूता नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व यहाँ वर्षा बहुत ही कम हुआ करती थी। यूँ कहना समीचीन होगा कि वर्षा ऋतु न के बराबर थी। यहाँ मानसून जून-जुलाई में न आकर उसके परावर्तन में नवम्बर–दिसम्बर के महीनों में वर्षा लेकर आता है। आजकल तो इन महीनों में बाढ़ आ जा रही है। और ये व्यतिरेकता उन भूगर्भ परिवर्तनों से हो रही है जो 2004 में सुनामी का कारण बने थे। यह वर्ष इतिहास में अविस्मरणीय रहेगा जब सुनामी ने चेन्नई और इसके समीपवर्ती तटीय इलाक़ों में भयंकर तबाही मचा दी थी। नवम्बर 26 की तारीख़! सुबह सात बजकर तीस मिनट पर अचानक धरती में कम्पन आया। धरती हिली। समुद्र कुछ फुट पीछे हट गया था। यहाँ तक कि जलचर, सीप, मोती सब दिखाई देने लगे थे। तटों पर काफ़ी भीड़ हुआ करती है, विशेषकर अवकाश के दिनों में। सुबह-सुबह स्वास्थ्य लाभ के लिए टहलने वाले बुज़ुर्ग, लहरों के पानी में उछलते-कूदते, मौज-मस्ती करते बच्चे-युवा, सूर्योदय का लुत्फ़ उठाते सैलानी और घुड़-सवार। कश्तियाँ लेकर समुद्र में निकलते मछुआरे। काफ़ी चहल-पहल होती है यहाँ पर। देखते-देखते समुद्र में तेज़ उफान आया। भीमकाय लहरें भंयकर गर्जना करती आसमान को छूती उठीं और समुद्र ने अपनी सीमा लाँघ दी। बहाव आया और सब बहा ले गया। मिनटों में सब कुछ ओझल हो गया। बाद में बताया गया था देश-विदेश में लाखों की बलि चढ़ गई थी। चेन्नई में तो सुनामी ने कई प्राण लील लिये थे। यहाँ से पांडिचेरी लगभग १८० कि.मी. की दूरी पर है जो दक्षिण भारत का ख़ूबसूरत पर्यटन क्षेत्र है और महर्षि अरबिंदो का समाधि स्थल होने कारण बंगालियों के लिए तो तीर्थ से कम नहीं। और तब संयोग से क्रिसमस की छुट्टियाँ थी जिस कारण समुद्री तटों पर अधिकतर बंगाली पर्यटक ही थे जिन्होंने अपनी जान गँवा दी थी इस विभीषिका में। इस तथ्य की जानकारी तो बाद में समाचार पत्रों से मिली थी। जो भी था, अत्यंत भयावह और आतंकित करने वाला अनुभव रहा चेन्नई वासियों के लिए। और फिर उसके बाद तो जैसे चेन्नई पर देव-प्रकोप छा गया। हर वर्ष नवम्बर में बाढ़ आती और चेन्नई की सड़कें पानी से लबालब भर जाती रहीं। पानी घरों में घुस जाता और निवासी शरणार्थी बन कर सरकारी स्कूलों में या सुरक्षित जगहों में दिन बिताते वर्षा के थमने की प्रतीक्षा में। आजकल तो इन तूफ़ानी बाढ़ों का भी नामकरण करने की रीति चल पड़ी है। लगातार कई वर्षों तक नवम्बर का महीना आपदाओं का महीना बन गया चेन्नई वासियों के लिए। नवम्बर आते ही डर और आतंक मन में समा जाता है। कभी उसे ‘वरदा’ कहा गया तो कभी ‘मनडौस’। कभी लोगों ने प्राणों को खोया तो कभी चल-अचल सम्पत्ति को। आख़िरकार सरकार चेती और बरसाती जल निकासी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। समय लगा, पर अब चेन्नई में इन परियोजनाओं के कारण इस समस्या से काफ़ी हद तक नजात पाया जा चुका है। इस दृष्टि से शासन के प्रयास अभिनंदनीय है, श्लाघ्य है।
मद्रास में रहते हुए मद्रासी खाने की अगर बात न की जाए तो अन्याय होगा। मद्रासी कहते ही स्मरण आता है गोल-मटोल श्वेतवर्णी इडली और नरम मुलायम वृत्ताकार भूरे रंग के दोसे का . . . और साथ में सांबर हो तो क्या कहने—सोने पर सुहागा। इडली, दोसा, मेदुवड़ा, ऊतपमु, वेन पोंगल, चक्क्रै पोंगल और . . . और . . . बस . . . नाम सुनते ही मुँह में पानी आ जाए। इसके लिए तो आपको यहाँ प्रत्यक्ष आना होगा और स्वादिष्ट पौष्टिक खाना चखना होगा। अगर व्यवसाय की बात करें तो चेन्नई महानगर व्यापार और वाणिज्य का मुख्य केंद्र तो है ही और ऑटोमोबाइल उद्योग तो यहाँ शिखर की ऊँचाई को छू रहा है, पर वहीं पर ‘आहार उद्योग’ भी अत्यंत सफल व्यापारिक उद्यम के रूप में उभर कर आया है और विशेषकर कई शाकाहारी शृंखलाएँ नितांत सफल व्यावसायिक इकाइयाँ बन सफलता के शीर्ष पायदान पर पहुँच गईं है जिसका प्रमाण है—इनकी अनगिनत शाखाएँ देश–विदेश में फैली हुईं है और शीर्ष व्यापारिक प्रतिष्ठानों की सूची में शामिल है।
शुद्ध शाकाहारी सात्विक आहार को प्रश्रय देना सनातनी मानसिकता को दर्शाता है और चेन्नई महानगर के सर्व देशीय समाज में इस संकल्पना को व्यापारिक स्तर पर उतार लाना सचमुच चुनौती भरा साहस है।
जिस अद्यतन समाज में के.एफ़.सी. और मेक्डोनाल्ड की सफलता को ही व्यापारिक क्षेत्र में प्रामाणिक मूल मंत्र माना जाता हो, वहाँ इन स्थापित मान्यताओं को धता बताते हुए शुद्ध शाकाहारी रेस्तरों की स्थापना और सफलता से उनका निर्वाह इस बात का साक्ष्य है कि भारतीय संस्कृति के मूल्य अभी भी इस धरा पर, इस प्रदेश में अक्षुण्ण है। यहाँ इन्हें स्पष्टतः फलीभूत होते देखा जा सकता है।
तो फिर इडली दोसा हो या ‘बिरियानी’ यहाँ बड़े ही समर्पित भाव से बनाया जाता है और खाया जाता है। कहते हैं कि कुछ साल पहले बिरियानी खाने का चलन मद्रासियों में नहीं था। यहाँ तो कोई इस व्यंजन को जानता तक नहीं था। इस में दो राय नहीं कि आज देश में सबसे अधिक बिरियानी अगर कहीं खाई जाती है तो वह चेन्नई महानगर में। हर सड़क पर, हर मोड़ पर आपको दुकानें मिल जाएगी जिसमें तरह-तरह की बिरयानियाँ बिकती हैं। बिरियानी का क्या कहिए, यह तो शाही व्यंजन है, रोटी, पराँठा तक यहाँ मुश्किल से मिलता था। और तो और उत्तर भारतीय स्वादों से भी चेन्नई वंचित था। भला हो सूचना प्रौद्योगिकी के विकास का। जब अवसर खुले, कौशल का आदान-प्रदान हुआ। दूसरे राज्यों से लोग आए और इस राजधानी में बसते चले गए। लोग आए तो अपने साथ भाषा, संस्कृति, आचार-विचार, खान-पान को भी साथ लाए। चेन्नई अब अपनी ‘मद्रासी’ छवि से धीरे-धीरे निकल कर समावेशी बनने लगा है। इसका सबूत है कि आज हर गली के छोर पर आपको ठेला लगाए गोलगप्पे वाला बिहारी भैया मिल जाएगा। कलकत्ता का रसगुल्ला हो या यू पी की चाट, गुजरात का ढोकला हो या पंजाबी लस्सी—आज ऐसा कोई भी व्यंजन नहीं है जो उपलब्ध न हो यहाँ चेन्नई में। इन वर्षों में पहनावा, खान-पान, तीज-त्योहार सब में दर्शनीय परिवर्तन आ गया है जो स्वागत योग्य है और होना भी चाहिए।
महानगरों में जीवन की अगली विषमता है—दैनंदिन आकाश को छूते कूड़ों के ढेर। चेन्नई में पर्यावरण संरक्षण प्रबल चुनौती है जिससे प्रशासन जूझ रहा है। आधुनिकरण, शहरीकरण और मशीनीकरण ने पर्यावरण को हाशिए पर ढकेल दिया है जिसका दुष्परिणाम इस नगर का हर प्राणी झेल रहा है। प्रदूषित वायु, पेय जल का अभाव और दिन-ब-दिन बढ़ती श्वास संबंधी बीमारियाँ। इन सब न्यूँनताओं के बावजूद यहाँ दक्षिण चेन्नई में २३५ कि मी के विशाल भूभाग को राष्ट्रीय आर्द्र भूमि संरक्षण और प्रबंधन कार्यक्रम के तहत मान्यता प्राप्त है। यह कच्छ भूमि अपनी जैव विविधता के लिए संपूर्ण भारत में विख्यात है। बाढ़ के पानी को सोखने भी विशेष रूप से सक्षम है। जलीय वनस्पतियों और कई नस्लों के प्रवासी पक्षियों को यहाँ देखा जा सकता है। शहरीकरण के तहत भूमि अधिग्रहण ने इसके एक बड़े क्षेत्रफल को निगल लिया है और आज यह एक तिहाई भाग में सिमट कर रह गया है। नैसर्गिक सौंदर्य से भरे हुए इस दलदल प्रदेश से ही सटकर एक बड़े भूभाग में इस महानगर का कचरा एकत्रित किया जाता है जो पूरे प्रदेश को विषाक्त बना रहा है। लेकिन प्रशासन अब चेत रहा है। कचरे के निस्तारण और रासायनिक उपचार के लिए ‘अपशिष्ट प्रबंधन संयत्र’ की परियोजना को कार्यांवित किया गया है जहाँ ‘अपशिष्ट से ऊर्जा’ संकल्पना को साकार करने के लिए सरकार ठोस क़दम उठा रही है जो एक आशाजनक समाचार है। जैव विविधता से सम्पृक्त एक विशाल उद्यान के प्रकल्प को भी अमल में लाया जा रहा है जो जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण को रोक कर इस प्रदेश के सौंदर्यीकरण में भी कारगर होगा। आशा है और परिणाम भी दृष्टिगोचर हो रहे हैं। और एक बात भी ध्यान देगी होगी कि संपूर्ण दायित्व केवल सरकार का नहीं है। केवल व्यवस्था को दोष देने से बात नहीं बनेगी। हर नागरिक का भी इसमें सहयोग आवश्यक है। चाहे फिर वह जल-प्रदूषण हो या वायु प्रदूषण, ये सब संकट स्वयमेव निर्मित ही हैं। कठिन है इन पर विजय प्राप्त करना लेकिन, समस्या असमाधेय नहीं।
इस महानगर की अपनी एक विलक्षण समस्या है—भाषा की समस्या। तमिल एक अर्वाचीन सुसंस्कृत और समृद्ध भाषा है। निर्विवाद सत्य है कि इसका इतिहास और साहित्य अतुलनीय है, असाधारण है। इसमें कोई शंका नहीं। लेकिन वहीं अन्य भाषाओं के स्वीकार में इस प्रदेश की मानसिकता में औदार्य की कमी पाई जाती है। दक्षिण कहते ही उत्तर के मन में हिंदी विरोधी आंदोलनों का स्मरण हो आता है। दक्षिण की छवि हिंदी विरोधी छवि बन गई है। लेकिन भू-तल पर सच्चाई कुछ और ही है। कुछ वर्ष अगर कोई यहाँ आकर रहेगा तो जानेगा कि यहाँ का जन मानस हिंदी विरोधी नहीं है बल्कि हिंदी सीखने का इच्छुक है। हिंदी भाषा जानने की सार्थकता का संज्ञान उसे है। विरोध कहीं है तो वह केवल और केवल ऊपरी तल का ही है। कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आज यहाँ लगभग दस में नौ लोग हिंदी जानते हैं . . . भले ही बोल नहीं पाते पर समझ तो आसानी से सकते हैं। हर दुकान में, हर रेस्तरां में, या यूँ कहिए हर जगह पर हिंदी चलती है, समझी भी जाती है। तो विरोध कहाँ? और किससे? इसका पूरा श्रेय निगमित सेक्टर को और सूचना प्रौद्योगिकी के विकास को दिया जाना चाहिए। वैसे महानगर में रोज़गार की असीमित संभावनाओं के कारण भी यह सम्भव हो पाया है। भवन निर्माण में हो या रेस्तरां उद्योग में, आप पाएँगे, अधिक से अधिक संख्या में बिहारी श्रमिक यहाँ रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं। वातावरण समावेशी बन रहा है। यह हर्ष का विषय है, स्वागत योग्य तथ्य है।
ये तो हुई महानगरीय जीवन के जंग की चर्चा। आइए अब इस नगर में जीवन की सुभीता के लिए ज़रूरी वातावरण और उपलब्ध सुविधाओं पर भी विहंगम दृष्टि डालें। सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो तमिलनाडु या चेन्नई काफ़ी निरापद शांत जगह है। क़ानून और व्यवस्था को क़ायम रखने में प्रशासन की सफलता सराहनीय है। कहा तो जाता है कि महिलाओं की सुरक्षा दर भी यहाँ दूसरे राज्यों की अपेक्षा शीर्ष पर है। साक्षरता दर भी यहाँ दक्षिण में काफ़ी संतोषजनक मानी जा सकती है, विशेषकर महिलाओं में। अपवाद हो सकते हैं। सतर्कता और सजगता भी आवश्यक है। और शिक्षा क्षेत्र की बात करें तो, अगर आप देश के सर्वोत्कृष्ट संस्थान में श्रेष्ठ गुणात्मक शिक्षा के अभिलाषी हैं, तो चेन्नई महानगर ही इसका समाधान है। वहीं दूसरी ओर श्रेष्ठ चिकित्सा सुविधाओं का संज्ञान अगर अभीप्सित है, तो उत्तम विकल्प के रूप में चेन्नई का नाम ही लिया जाना चाहिए। वैसे चेन्नई को तो ‘स्वास्थ्य पर्यटन’ के नाम से अभिहित किया जाता है। चिकित्सा क्षेत्र में इस महानगर ने अप्रतिम संभावनाओं को साकार किया है। विकास सर्वतोमुखी है और ख्याति चतुर्दिश। अस्तु!
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जिन उपलब्धियों की ओर ऊपर संकेत किया गया है, उनकी तुलना में समस्याएँ नगण्य ही मानी जा सकती हैं। समस्या है तो समाधान भी है। आवश्यकता है प्रयास की, सहयोग ही और सदिच्छा की। तो समझिए कि शांत जीवन जीने की इच्छा है, कला संगीत में रुचि है, भव्य मंदिरों के दर्शनार्थी हैं, समुद्र तट पर बैठकर ख़ूबसूरत चाँद देखने की ख़्वाहिश है, तो देर किस बात की? “आइए चेन्नई में आपका स्वागत है।”
(लेखिका तेलुगुभाषी हैं और चेन्नई में गत सत्रह वर्षों से निवास कर रहीं हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं और किसी को आहत करना लेखिका का उद्देश्य नहीं है।)