मैडम बैपटिस्ट (कहानी) : गाय दी मोपासां

Madame Baptiste (French Story) : Guy de Maupassant

मैं जब लूबै स्टेशन के वेटिंग- रूम में घुसा तो सबसे पहला काम यह किया कि वहाँ घड़ी को देखा । मतलब पेरिस एक्सप्रेस के लिए मुझे दो घंटे बीस मिनट इंतजार करना होगा ।

अचानक मुझे थकान सी लगने लगी, जैसे मैं बीस मील पैदल चलकर आया होऊँ , फिर मैंने इधर -उधर नजर दौड़ाई, जैसे स्टेशन की दीवारों पर मुझे समय बिताने का कोई जरिया मिल जाएगा । हारकर मैं फिर से बाहर निकल गया और स्टेशन- गेट के बाहर रुककर अपने दिमाग को टटोलने लगा कि कुछ करने को मिल जाए । वहाँ की सड़क एक तरह से एक छायादार मार्ग ही था जिसके किनारे बबूल के पेड़ लगे थे। यह मार्ग छोटे - बड़े आकार के और अलग - अलग ढंग से बने मकानों की दो कतारों के बीच चला गया था । ये ऐसे मकान थे, जो छोटे कसबों में ही देखने को मिलते हैं । सड़क एक हलकी सी पहाड़ी पर चली गई थी, जिसके छोर पर कुछ पेड़ थे मानो यह एक पार्क में जाकर खत्म होती हो ।

जब -तब कोई बिल्ली सड़क पार करती और होशियारी से गटरों पर से कूद जाती थी । एक पिल्ला हरेक पेड़ को सूंघता और रसोईघरों से बचे- खुचे टुकड़े झपटने की फिराक में था , लेकिन इनसान मुझे एक भी नहीं दिखाई दिया । मैं बेचैन और हताश हो गया । अब मैं क्या करता ? मैं अभी उस विकल्प के बारे में सोच ही रहा था कि रेलवे स्टेशन के उस छोटे से कैफे में जाऊँ , जहाँ बैठकर मुझे बेहद अरुचिकर बीयर पीनी पड़ेगी और एक नहीं पढ़ा जा सकने वाला अखबार पढ़ना पड़ेगा, तभी मुझे एक शवयात्रा दिखाई दी , जो एक बगल की गली से निकलकर उस मार्ग पर आई, जहाँ मैं खड़ा था और शवगाड़ी देखकर मुझे राहत मिली । इससे कम -से - कम दस मिनट के लिए तो मेरे पास कुछ करने को होगा ही ।

लेकिन अचानक मेरी जिज्ञासा जागी । लाश के पीछे आठ सज्जन थे, जिनमें से एक तो रो रहा था , जबकि बाकी आपस में बतियाते जा रहे थे । उनके साथ कोई पुरोहित नहीं था , जिससे मैंने अपने मन में कहा — यह एक गैर धार्मिक अंतिम संस्कार है । फिर मैंने सोचा कि लूबैं जैसे कसबे में धार्मिक विचारों का त्याग करके सोचने वाले कम- से - कम सौ स्वतंत्र चिंतक तो होंगे ही , जो अपने आपको दिखा सकते थे। तो फिर यह क्या हो सकता था ? शवयात्रा जिस रफ्तार से जा रही थी, उससे तो यही साबित होता था कि लाश को बिना किसी संस्कार के दफनाया जाना था , इसलिए उसमें धर्म का कोई दखल नहीं होना था ।

जिज्ञासा में भरकर मैं बड़े पेचीदा अनुमान लगाने लगा और जब शवगाड़ी मेरे पास से निकली तो मेरे मन में एक अजीब खयाल आया कि मैं भी उन आठ सज्जनों के साथ उसके पीछे चलूँ । उससे मेरा कम- से - कम एक घंटा तो निकल ही जाता , इसलिए मैं भी उदास चेहरा लिये उनके साथ - साथ चलने लगा । यह देखकर सबसे पीछे चल रहे दो सज्जन चकित होकर पीछे घूमे और फिर धीमे -धीमे एक - दूसरे से कुछ कहने लगे ।

बेशक वे एक - दूसरे से यही पूछ रहे थे कि क्या मैं इस कसबे का रहनेवाला हूँ, फिर उन्होंने अपने आगे चल रहे दो सज्जनों से पता किया और वे भी मुझे घूरने लगे । वे जिस तरह से मुझ पर गौर कर रहे थे, उससे मैं नाराज हो गया और इस बात को खत्म करने के इरादे से मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें झुककर अभिवादन करने के बाद कहा-

" माफ करें जनाब, आपकी बातचीत में दखल देने के लिए, लेकिन मैं तो सिविल फ्यूनरल देखकर पीछे पीछे चला आया; हालाँकि मैं तो यह भी नहीं जानता कि यह मृतक सज्जन कौन हैं , जिनके साथ आप चल रहे हैं ? "

" सज्जन नहीं , महिला है । " उनमें से एक ने कहा ।

यह सुनकर मुझे बहुत ताज्जुब हुआ और मैंने पूछा - " लेकिन यह तो सिविल फ्यूनरल है न, क्यों ? "

तब दूसरे सज्जन ने, जो मुझे सबकुछ बताना चाहता था, मुझसे कहा, " है भी और नहीं भी । पादरियों ने हमें चर्च का इस्तेमाल करने को मना कर दिया है । "

यह सुनकर आश्चर्य से मेरे मुँह से आ -ह निकल गई । मेरी समझ में कुछ नहीं आया, लेकिन मुझ पर उपकार करने को उत्सुक मेरे उस पड़ोसी ने आगे कहा — यह जरा लंबी कहानी है । इस जवान औरत ने खुदकुशी कर ली थी और यही वजह है कि उसे किसी धार्मिक संस्कार के साथ दफनाया नहीं जा सकता । जो शरीफ आदमी सबसे आगे चल रहा है और रो रहा है, वह इसका पति है। "

मैंने थोड़ा हिचकिचाते हुए जवाब दिया — " आपकी बात से मुझे बहुत ज्यादा ताज्जुब हो रहा है और दिलचस्पी भी । अगर मैं आपसे इस पूरे मामले की तफसील जानना चाहूँ तो मेरी नामाकूली तो नहीं होगी ? अगर मैं आपको परेशान कर रहा हूँ तो सोच लीजिए कि मैंने आपसे इस बारे में कुछ नहीं कहा । "

उस शरीफ आदमी ने ऐसे मेरा हाथ पकड़ लिया, जैसे हम एक - दूसरे से परिचित हों ।

" बिलकुल नहीं, बिलकुल नहीं ! आइए, दूसरों से थोड़ा पीछे रुक लेते हैं , मैं आपको इस बारे में बताऊँगा; हालाँकि बड़ी दुःख भरी कहानी है यह । कब्रिस्तान पहुँचने से पहले हमारे पास काफी वक्त है, क्योंकि वह वहाँ है, जहाँ वे पेड़ दिखाई दे रहे हैं और इस पहाड़ी पर चढ़ने में थोड़ी मुश्किल भी होगी। "

उसने कहना शुरू किया - " यह जवान औरत , मैडम पॉल आमो, पड़ोस के एक रईस व्यापारी फोंटानेल महोदय की बेटी थी । जब वह ग्यारह साल की छोटी बच्ची ही थी, तब उसके साथ एक भयंकर हादसा हुआ । एक नौकर ने उसके साथ गलत काम कर दिया । वह तो जैसे मर ही गई और उस आदमी ने जितने वहशीपन से यह काम किया था, उससे उसकी करतूत का पता चल गया । एक जबरदस्त आपराधिक मामला दर्ज हुआ और यह साबित हो गया कि उस वहशी ने तीन महीनों तक उस मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाया था, तब उसे उम्र कैद की सजा सुनाई गई ।

" नन्ही लड़की अपनी बेइज्जती का कलंक लेकर बड़ी हुई । वह अलग - थलग पड़ गई थी । उसका कोई साथी नहीं था और बड़े लोग भी उसे चूमने से बचते थे, क्योंकि वे सोचते थे कि अगर उन्होंने उसके माथे को चूमा तो उनके होंठ गंदे हो जाएँगे । वह एक तरह की दैत्य बन गई । पूरे कसबे के लिए एक घटना बन गई । लोग धीमे से एक - दूसरे से कहते — नन्ही फोंटानेल को जानते हो तुम और जब वह सड़कों पर निकलती तो सब उससे मुँह फेर लेते । उसके माँ - बाप उसके लिए कोई आया भी नहीं रख पाए कि वह उसे घुमाने बाहर ले जाती । दूसरे नौकर उससे दूर - दूर रहते, जैसे उसके पास आने से उन पर जहर चढ़ जाएगा ।

" जब बच्चे हर दोपहर बाद खेलते तो उस बेचारी बच्ची को देखकर तरस आता था । वह चुपचाप अपने में सिमटी अपनी नौकरानी के पास खड़ी- खड़ी दूसरे बच्चों को मजे करते देखती रहती थी । कभी- कभी दूसरे बच्चों के साथ मिलने की इच्छा को वह दबा नहीं पाती थी और सहमी - सहमी, घबराई सी आगे बढ़ती, चोर कदमों से किसी टोली से जा मिलती थी , जैसे अपनी बदनामी के बारे में वह सचेत हो , तभी एकदम से माँएँ , चाचियाँ -ताइयाँ और आयाएँ दौड़ती हुई आ जाती और उनकी देख -रेख में दिए गए बच्चों को हाथ पकड़कर जंगलियों की तरह खींचती वहाँ से ले जाती थीं ।

" नन्ही फोंटानेल अकेली, अभागी रह जाती, उसकी समझ में नहीं आता कि इसका क्या मतलब है, उसका दिल दुख से टूट जाता । वह रोने लगती, फिर वह सुबकती हुई दौड़ जाती और अपनी आया की गोद में अपना सिर छिपा लेती ।

" जब वह बड़ी हुई तो स्थिति और भी खराब हो गई । लोग लड़कियों को उससे दूर रखते, मानो उसे प्लेग हो गया हो । याद रखने वाली बात है कि उसे कुछ भी नहीं सीखना था , कुछ भी नहीं; अब उसे दुलहन बनने का अधिकार नहीं रह गया था ; वह पढ़ने लायक होने से पहले ही उस रहस्य को जान चुकी थी , जिसका अंदाजा भी माँएँ अपनी बेटियों को नहीं लगने देतीं और उनकी शादी की रात भी उन्हें वह सब बताने में वे काँप जाती हैं ।

" जब वह सड़कों से, गलियों से गुजरती थी तो हमेशा उसके हाथ एक गवर्नेस होती थी मानो उसके माँ - बाप को डर था कि उसके साथ फिर से कोई नई भयंकर अनहोनी न हो जाए , ऐसे में उसकी आँखें उस रहस्यमय अपमान से झुकी रहती थीं , जिसका बोझ वह हमेशा अपने ऊपर महसूस करती थी । ऐसे में दूसरी लड़कियाँ, जो खुद इतनी मासूम नहीं थीं , जितना लोग उन्हें समझते थे, उसकी तरफ जान - बूझकर देखती थीं और कुछ - कुछ फुसफुसातीं , खी - खी करती थीं और अगर वह उनकी तरफ देख लेती थी तो वे फौरन अन्यमनस्क होकर मुँह फेर लेती थीं । बहुत कम लोग उससे अभिवादन करते थे; बस कुछ ही आदमी थे, जो अभिवादन में उसके लिए सिर झुकाते थे । माँएँ उसे न देखने का बहाना करती थीं , जबकि कुछ बदमाश उसे उस नौकर के नाम पर मैडम बैपटिस्ट कहते थे, जिसने उसे बरबाद किया था ।

" कोई भी उसके मन की आंतरिक पीड़ा को नहीं समझता था, क्योंकि वह बोलती बहुत ही कम थी और हँसती बिलकुल भी नहीं थी । खुद उसके माँ - बाप उसकी मौजूदगी में अपने आपको असहज महसूस करते थे, मानो उन्हें किसी असाध्य अपराध के लिए उससे लगातार शिकायत थी ।

" कोई ईमानदार आदमी अपना हाथ किसी आजाद मुजरिम को जान - बूझकर नहीं देगा , भले ही वह मुजरिम उसका अपना ही बेटा हो , क्यों ? और उस लड़की के माँ - बाप अपनी बेटी को वैसे ही देखते थे, जैसे वे अपने उस बेटे को देखते , जो अभी- अभी जेल से छूटा हो । वह खूबसूरत और पीली, छरहरी , देखने में सबसे अलग थी और जनाब, अगर उसके साथ वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना न जुड़ी होती तो मुझे वह बहुत पसंद आती ।

" देखिए, अट्ठारह महीने पहले जब यहाँ एक नए उप - प्रशासक की नियुक्ति हुई तो वह अपने प्राइवेट सेक्रेटरी को भी साथ लेकर आए । वह एक अजीब किस्म का इनसान था , लगता है वह पेरिस में विद्यार्थियों के इलाके लैटिन क्वार्टर में रहता था । उसने कुमारी फोंटानेल को देखा और उससे प्यार करने लगा । जब उसे उस घटना के बारे में बताया गया तो उसने बस इतना कहा, वाह ! यह तो भविष्य की गारंटी है और मैं तो कहूँगा कि यह अच्छा ही हुआ कि मेरे शादी करने के बाद न होकर यह पहले ही हो गया । इस औरत के साथ मैं चैन से सोऊँगा ।

" उसने उससे प्रणय निवेदन किया, उसका हाथ माँगा और उससे शादी कर ली, फिर क्योंकि उसमें निडरता की कमी नहीं थी , वह लोगों से इस तरह मिलने गया जैसे कुछ हुआ ही न हो । कुछ लोगों ने उन्हें लौटा दिया , दूसरों ने नहीं लौटाया, लेकिन आखिर में लोग उस घटना को भूलने लगे और लड़की को समाज में उसकी सही जगह मिल गई ।

" वह अपने पति को देवता की तरह पूजती थी , क्योंकि उसने उसे उसकी इज्जत , उसकी सामाजिक जिंदगी वापस दी थी और लोगों की राय को धता बता दिया था , अपमान सहे थे और थोड़े में कहें तो ऐसा हिम्मत का काम किया था , जो बहुत कम आदमी कर पाते हैं । उसके दिल में अपने पति के लिए अपार प्यार था ।

" जब वह गर्भवती हो गई और लोगों को इसका पता चल गया तो सबसे खास लोगों और सबसे ज्यादा हुज्जत करने वालों ने भी उसके लिए अपने दरवाजे खोल दिए, जैसे मातृत्व ने उसे सचमुच शुद्ध कर दिया था ।

" है तो यह हँसने वाली बात , लेकिन सच है । सब कुछ अपने हिसाब से ठीक चल रहा था कि अभी उस दिन हमारे कसबे के सरंक्षक संत का भोज पड़ा । अपने कर्मचारियों और अधिकारियों से घिरे उप - प्रशासक ने संगीत प्रतियोगिता की अध्यक्षता की और जब उन्होंने अपना भाषण पूरा कर लिया तो पदक बाँटने की बारी आई । उनके निजी सचिव पॉल आमो ने विजेताओं को पदक पकड़ाए ।

" आप तो जानते ही हैं , ऐसे लोग तो हमेशा होते ही हैं जो ईर्ष्या और वैर भाव की वजह से सारी मर्यादा भूल जाते हैं । कसबे की सारी भद्र महिलाएँ मंच पर थीं । अपनी बारी आने पर मूर मिलिओन गाँव का बैंड मास्टर वहाँ आया । इस बैंड को दूसरे दरजे का पदक मिलना था, क्योंकि सभी को तो पहले दरजे का पदक नहीं दिया जा सकता ? जब निजी सचिव ने उसे उसका पदक पकड़ाया तो उस आदमी ने उसे उसके मुँह पर दे मारा और तमकदार बोला-

यह मेडल तुम बैपटिस्ट के लिए रखो । तुम पर उसका पहले दरजे का मेडल बकाया है , जैसे मेरा भी है ।

" वहाँ बहुत सारे लोग थे, जो हँसने लगे । आम लोग न तो उदार होते हैं और न सभ्य । सबकी आँखें उस बेचारी महिला की तरफ उठ गई । आपने कभी किसी औरत को पागल होते देखा है जनाब? देखिए, हम वहाँ मौजूद थे! वह खड़ी हो गई और लगातार तीन बार पीछे अपनी कुरसी पर गिरी, मानो वहाँ से बचकर भाग जाना चाहती हो , लेकिन उसने देखा कि वह भीड़ में से होकर नहीं निकल सकती, फिर भीड़ से एक और आवाज आई – अरे ! अरे ! मैडम बैपटिस्ट!

और फिर भीड़ से हँसी और रोष का मिला- जुला शोर उठा । बार - बार इस शब्द को दोहराया गया ; लोग उस दुखी औरत का चेहरा देखने के लिए पंजों के बल खड़े हो गए । आदमियों ने अपनी बीवियों को बाँहों में उठा लिया , ताकि वे उसे देख सकें । लोग पूछने लगे — कौन सी है वह ? वह नीले कपड़ों वाली ?

" लड़के मुरगों की तरह बाँग देने लगे और हर तरफ से हँसने की आवाजें आने लगीं ।

“ अब वह अपनी कुरसी पर हिल- डुल भी नहीं रही थी , मानो भीड़ को दिखाने के लिए उसे वहाँ जड़ दिया गया था । वह न तो हिल - डुल सकती थी , न गायब हो सकती थी और न ही अपना चेहरा छिपा सकती थी । उसकी पलकें जल्दी- जल्दी झपक रही थीं जैसे एक साफ रोशनी उसके चेहरे पर चमक रही हो और ऐसे हाँफ रही थी जैसे खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी पर चढ़ते समय घोड़ा हाँफता है । ऐसा दृश्य था कि देखने वाले का दिल ही टूट जाए । बहरहाल , इस बीच जनाब आमो ने उस बदमाश का गला पकड़ लिया था और वे अफरा - तफरी के माहौल में एक - दूसरे को लेकर जमीन पर लुढ़क रहे थे। समारोह बीच में ही रुक गया था ।

" एक घंटे बाद , जब आमो और उसकी पत्नी घर लौट रहे थे तो वह जवान औरत , जो उस बेइज्जती के बाद से एक शब्द नहीं बोली थी और जो ऐसे काँप रही थी जैसे उसकी तमाम नसें स्प्रिंग से हिला दी गई थीं , वह जवान औरत अचानक उछलकर पुल की दीवार पर चढ़ गई और इससे पहले कि उसका पति उसे रोक पाता, वह नदी में कूद गई । मेहराबों के नीचे पानी बहुत गहरा है, उसकी लाश मिलने में दो घंटे लग गए । वह मर चुकी थी । "

यहाँ आकर वह आदमी रुक गया और आगे बोला - " उस स्थिति में उसके लिए शायद यही करना सबसे अच्छा था । कुछ बातें ऐसी होती हैं , जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता । अब आप समझ ही गए होंगे कि पादरी ने उसे चर्च में लाने देने से क्यों मना कर दिया । आह! अगर यह धार्मिक अंतिम संस्कार होता तो सारा कसबा यहाँ मौजूद होता , लेकिन आप समझ सकते हैं कि उसकी खुदकुशी और उस घटना की वजह से परिवार उसके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो रहा है, फिर ऐसे अंतिम संस्कार में शरीक होना यहाँ कोई आसान बात नहीं है, जो धार्मिक रीति से नहीं हो रहा हो । "

हम कब्रिस्तान के गेट से होकर आगे बढ़े । इस कहानी ने मुझे इतना अधिक प्रभावित किया कि मैं ताबूत को कब्र में उतारे जाने तक वहीं रुका रहा , फिर मैं बेचारे पति के पास गया, जो जोर - जोर से सुबक रहा था । मैंने गरमजोशी से उसका हाथ दबाया । उसने आँसुओं से तर अपनी आँखों से चकित होकर मुझे देखा और बोला - " शुक्रिया, जनाब! "

मुझे इस बात का अफसोस नहीं हुआ कि मैं शवयात्रा के पीछे-पीछे क्यों चला आया ।