मैकविलियम परिवार की आप बीती (कहानी) : मार्क ट्वेन

Macwilliam Parivar Ki Aap Beeti (English Story in Hindi) : Mark Twain

हाँ, तो मैं बता रहा था कि किस तरह से मैंबरेनुअस क्रॉप नामक भयानक और असाध्य बीमारी शहर में फैली हुई थी। सभी माताएँ डर के मारे काँप रही थीं। मैंने श्रीमती मैकविलियम का ध्यान नन्ही पिनेलोप की ओर आकर्षित करते हुए कहा, "प्रिय, अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो कभी भी इस बच्ची को देवदार की टहनी न चबाने देता।"

"ओहो! इसमें नुकसान ही क्या है?" वह बोली। लेकिन इसके साथ ही वह उसके मुँह से टहनी लेने को भी तैयार हो गई। आखिरकार, अच्छे-से-अच्छा सुझाव बिना बहस किए मान लेना विवाहित महिलाओं के स्वभाव में नहीं है।

मैंने जवाब दिया, "प्रिय, यह बात तो जग-जाहिर है कि देवदार किसी बच्चे के खाने के लिए सबसे कम पौष्टिक होता है।"

मेरी पत्नी का हाथ टहनी लेते-लेते वहीं रुककर वापस उसकी गोद में आ गया। वह जरा गुस्सा खाकर बोली, "पतिदेव, तुम्हें अच्छी तरह मालूम है। तुम जानते हो कि तुम्हें मालूम है। सभी डॉक्टर कहते हैं कि देवदार में पाया जानेवाला तारपीन कमजोर कमर और गुरदे के लिए फायदेमंद होता है।"

"आह, मैं गलतफहमी में था। मुझे पता नहीं था कि बच्ची की रीढ़ और गुरदे स्वस्थ नहीं हैं और पारिवारिक चिकित्सक ने सलाह दी है कि..."

"कौन बोला कि बच्ची की रीढ़ और गुरदे स्वस्थ नहीं?"

"अरे, तुमने ही तो मुझे बताया।"

"वाह, क्या सोच है! मैंने तो कभी ऐसी कोई बात नहीं की।"

"प्रिय, दो मिनट पहले ही तुमने नहीं कहा था कि..."

"मैंने क्या कहा, उसे छोड़ो। मुझे परवाह नहीं कि मैंने क्या कहा था। अगर बच्ची देवदार की टहनी चबाती है तो उसमें कोई हर्ज नहीं है। आप भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं। और वह अभी भी चबाएगी।"

"अब आगे कुछ मत कहो। मैं तुम्हारी बात समझ गया हूँ। मैं आज ही जाकर बढ़िया किस्म की देवदार की तीन-चार टहनियाँ मँगवाता हूँ। मेरे बच्चों को किसी बात की कमी नहीं होनी चाहिए, जब तक मैं..."

"ओह! अब कृपा करके अपने दफ्तर जाओ और मुझे जरा चैन से रहने दो। कोई जरा सा भी कुछ कह नहीं सकता। तुम उसे पकड़ बैठोगे और बहस-पर-बहस करते जाओगे, जब तक कि तुम्हें खुद भी पता न होगा कि कहाँ जा रहे हो। और तुम्हें कभी पता नहीं होता।"

"चलो, ठीक है। जो तुम कहती हो, वैसा ही होगा। लेकिन तुम्हारी आखिरी टिप्पणी में तर्क की कमी है, जिसमें..."

लेकिन जब तक मैं अपनी बात पूरी करता, वह बच्ची को साथ लेकर हवा के झोंके की तरह निकल गई थी। फिर रात के भोजन के समय वह मेरे सामने आई तो उसका चेहरा चादर-सा सफेद था।

“आह, मोरटिमर, एक और मुसीबत! बच्ची को पकड़ लिया है!"

"मैंबरेनुअस क्रॉप?"

"मैंबरेनुअस क्रॉप।"

"क्या कुछ उम्मीद कर सकते हैं?"

"कतई नहीं। हाय, अब हमारा क्या होगा?"

तभी आया हमारी पिनेलोप को लेकर शुभ रात्रि कहने आई। उसने मेरी के कदमों में परंपरागत प्रार्थना की और कहा, "अब मैं सोने जाती हूँ।"

पिनेलोप जरा सा खाँसी। मेरी पत्नी किसी मरनेवाली की तरह पछाड़ खाकर गिरी। लेकिन पल भर में ही उठकर भय से प्रेरित की भाँति ही प्रबंध करने में जुट गई। उसने आदेश दिया कि बच्ची का खटोला हमारे शयनकक्ष में स्थानांतरित किया जाए। फिर देखने गई कि आदेश का ठीक से पालन हो रहा है। इसके लिए वह मुझे भी अपने साथ ले गई। हमने बड़ी तेजी से सब इंतजाम किए। मेरी पत्नी के ड्रेसिंग रूम में आया के लिए एक चारपाई बिछा दी गई। लेकिन फिर श्रीमती मैकविलियम बोली कि हम दूसरे बच्चे से बहुत दूर हो गए हैं। अगर रात को उसमें कोई ऐसे-वैसे लक्षण प्रकट होते हैं तो...? बेचारी का चेहरा एक बार फिर फक पड़ गया।

फिर हमने खटोले और आया को पुरानी जगह वापस स्थानांतरित किया और अपने लिए एक पलंग पास के कमरे में लगवाया।

लेकिन तभी श्रीमती मैकविलियम ने कहा कि अगर बच्चे को पिनेलोप से संक्रमण हुआ तो? इस विचार ने उसके दिल में एक और डर पैदा कर दिया। लेकिन हम सब मिलकर भी खटोले को जल्दी से वहाँ से हटा न पाए, हालाँकि मेरी पत्नी ने खुद भी उसमें मदद की। उसने बहुत जल्दबाजी में जोर मारा और खटोले के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

हम नीचे के कमरे में गए। लेकिन वहाँ आया के लिए जगह न थी। श्रीमती मैकविलियम ने कहा कि आया का अनुभव अमूल्य होगा। लिहाजा, हम एक बार फिर सारा सामान लेकर वापस अपने शयनकक्ष में लौट आए। इससे हमें बहुत खुशी हुई, जैसे तूफान के थपेड़े खाए पंछी अपने नीड़ में लौट आए हों।

श्रीमती विलियम भागकर यह देखने शिशु कक्ष में गई कि वहाँ सब ठीक तो है। वे एक नया डर लेकर वहाँ से लौटीं।

"बच्चा इतनी गहरी नींद में क्यों सोया हुआ है?"

"प्रिय, बच्चे तो हमेशा इसी तरह गहरी नींद सोते हैं।"

"मुझे पता है, मुझे पता है; लेकिन उसकी इस नींद में कुछ अलग ही है। वह इतनी हमवार सी साँसें ले रहा है। ओह, यह कितना भयानक है!"

"लेकिन प्रिय, वह हमेशा इसी तरह साँस लेता है।"

"ओह, मुझे पता है, मुझे पता है। लेकिन उसकी आया अभी छोटी और अनुभवहीन है। मारिया को उसके साथ रहना चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर मदद कर सके।"

"अच्छा विचार है। लेकिन फिर तुम्हारी मदद कौन करेगा?"

"मुझे कोई जरूरत पड़े तो तुम मेरी मदद कर सकते हो। ऐसे समय में मैं अपने सिवा किसी को कुछ नहीं करने दूंगी।"

मैंने कहा कि मेरे लिए सोना उचित नहीं होगा, जबकि वह रात भर जागकर नन्हे मरीज का ध्यान रखे। लेकिन उसने मुझे विश्वास दिलाया कि वह ठीक है। लिहाजा बूढ़ी मारिया ने जाकर शिशु कक्ष में अपना बिस्तर लगाया।

पिनेलोप नींद में दो बार खाँसी।

"ओह, डॉक्टर अभी तक क्यों नहीं आया? मोरटिमर, यह कमरा बहुत गरम है। हीटर बंद कर दो, जल्दी।"

मैंने उसे बंद कर दिया। साथ ही थर्मामीटर पर नजर डाली और सोचने लगा कि क्या 30 डिग्री बीमार बच्ची के लिए बहुत गरम होता है।

कोचवान शहर की मुख्य बस्ती से यह समाचार लेकर लौटा कि हमारे डॉक्टर साहब अस्वस्थ हैं और बिस्तर पर लेटे हुए हैं। श्रीमती विलियम ने मेरी तरफ सहमी नजरों से देखा और भयभीत स्वर में बोली, "इसमें कोई दैव योग है। यह पूर्व निर्धारित है। वह पहले तो कभी बीमार नहीं पड़े। कभी नहीं। जैसे हम लोगों को रहना चाहिए, वैसे हालात में नहीं रह रहे हैं, मोरटिमर। कितनी बार मैं तुम्हें यह बता चुकी हूँ। अब नतीजा तुम्हारे सामने है। हमारी बच्ची कभी भी अच्छी नहीं होगी। अगर तुम खुद को माफ कर सको तो प्रभु का धन्यवाद करना। मैं तो अपने आपको कभी माफ नहीं करूँगी।"

मेरा इरादा उसे चोट पहुँचाने का नहीं था। लेकिन उपयुक्त शब्दों का चयन किए बिना कह गया कि मेरे विचार में तो हम कोई भिन्न जीवन नहीं जी रहे हैं।

"मोरटिमर, क्या तुम चाहते हो कि ईश्वरीय कोप इस बच्ची पर भी पड़े?"

इसके बाद वह रोने लगी। लेकिन अचानक बोल उठी, "डॉक्टर ने दवाइयाँ तो भेजी होंगी?"

"बिलकुल, ये रहीं। मैं सिर्फ इंतजार कर रहा था कि तुम बताने का मौका दो।"

“ठीक है। लाओ, मुझे दे दो। क्या तुम जानते नहीं कि अब एक-एक लमहा कितना कीमती है। लेकिन दवाइयाँ भेजने का भी क्या लाभ, जबकि उसे पता है कि बीमारी लाइलाज है।"

मैंने कहा कि "जब तक साँस, तब तक आस।"

"आस! मोरटिमर, तुम नहीं जानते कि क्या कह रहे हो। एक अजनमे बच्चे जितना ही जानते हो। अगर तुम्हें मेरी तरह पता होता तो निर्देश यह है कि एक चाय का चम्मच भर दवा हर घंटे पिलानी चाहिए, तभी हम बच्ची को साल भर जीवित रख सकते हैं। मोरटिमर, हालत बिगड़ती बच्ची को एक बड़ा चम्मच दवा तुरंत दे दो।"

"क्यों, एक चाय का चम्मच भर काफी नहीं है।"

"मुझे कहीं पागल मत कर देना। वह मेरी अपनी बहुमूल्य नन्ही है। यह चीज कड़वी है, पर उसके लिए अच्छी है। इससे उसे आराम होगा। हाँ, माँ की छाती पर अपना नन्हा सिर रखकर जल्दी से सो जा। मुझे पता है, उसे सुबह तक जीवित नहीं बचना। मोरटिमर, हर आधे घंटे बाद एक बड़ा चम्मच दवा का। आह, बच्ची को बेलाडोना भी देना चाहिए, एकोनाइट भी। मोरटिमर, मुझे अपने तरीके से इलाज करने दो। तुम इस बारे में कुछ नहीं जानते।"

हमने बच्ची का खटोला पत्नी के तकिए के पास सटाया और सोने की तैयारी कर ली। इस सारे तूफान ने मुझे थका मारा था। दो मिनट में ही मैं आधी नींद में था। तभी श्रीमती मैकविलियम ने मुझे जगाया।

"प्रिय, क्या हीटर चल रहा है?"

"नहीं।"

"मुझे ऐसा ही लग रहा था। कृपया इसे तुरंत चालू कर दो। कमरा ठंडा है।"

मैंने हीटर चला दिया और एक बार फिर सो गया। लेकिन मुझे फिर जगाया गया।

"प्रिय, जरा खटोले को बिस्तर के अपने सिरे पर ले जाने का कष्ट करोगे! यह हीटर के बहुत पास है।"

मैंने उसे वहाँ से हटाया। लेकिन मेरा पाँव कालीन में अटक गया और बच्ची जाग गई। मेरी पत्नी ने बीमार बच्ची को चुप कराया और मैं फिर से सो गया। लेकिन मेरी नींद के धुंधलके में ये शब्द बड़बड़ाहट-से लगे।

"मोरटिमर, अगर हमारे पास थोड़ी हंस की चरबी होती। क्या इसके लिए घंटी बजाओगे?"

मैं नींद में उठा। मेरा पैर एक बिल्ली पर पड़ गया। उसने विरोध प्रकट किया, जिसका जवाब उसे एक तगड़ी लात से मिलता, लेकिन वह लात बिल्ली के बजाय कुरसी को लगी।

"मोरटिमर, तुम रोशनी करके बच्ची को क्यों फिर से जगाना चाहते हो?"

"क्योंकि मैं देखना चाहता हूँ कैरोलीन, कि मुझे कितनी चोट लगी है।"

"अच्छा, जरा कुरसी को भी देख लेना। मेरा खयाल है, उसका तो सत्यानास हो ही गया होगा। और बेचारी बिल्ली, मान लो तुम।"

"मैं उस बिल्ली के लिए कुछ भी अनुमान करनेवाला नहीं। अगर मारिया को यहाँ रहने देते तो ऐसा कुछ भी न होता। वह ये सारे काम करती, जो उसकी जिम्मेदारी है, मेरी नहीं।"

"मोरटिमर, तुम्हें इस तरह की बातें करते शर्म आनी चाहिए। अफसोस है, ऐसे गंभीर समय में, जबकि हमारी बच्ची ऐसी हालत में है, तुम ये छोटे-छोटे काम नहीं करना चाहते।"

"अरे, अरे। तुम जो चाहो, वह करने को तैयार हूँ। लेकिन मैं इतनी रात गए घंटी बजाकर सबको जगाना नहीं चाहता। आखिर सब लोग सो रहे हैं। यह हंस की चरबी कहाँ रखी है?"

"शिशु कक्ष के शेल्फ पर। अगर तुम वहाँ जाकर मारिया से कहो तो।" मैं जाकर हंस की चरबी ले आया और एक बार फिर सोने चला गया। लेकिन मुझे फिर पुकारा गया।

"मोरटिमर, तुम्हें परेशान करना मुझे बहुत बुरा लग रहा है। लेकिन इसकी मालिश करने के लिए कमरा ठंडा है। जरा अँगीठी में आग जला दो। सब तैयार है, सिर्फ एक माचिस लगाने की जरूरत है।"

मैंने अपने आपको घसीटकर बिस्तर से बाहर निकाला और अँगीठी जलाई। उसके बाद मैं निराशा में डूबा वहीं बैठ गया।

"मोरटिमर, वहाँ मत बैठो, ठंड खा जाओगे। बिस्तर पर आओ।"

मैं बिस्तर पर पाँव रखने वाला था, तभी वह बोली, "जरा रुको, कृपया बच्ची को एक खुराक दवा और दे दो।"

मैंने वैसा ही किया। दवा देने के बाद बच्ची कुछ अधिक चुस्त हो जाती थी। इसलिए मेरी पत्नी थोड़ी-थोड़ी देर के बाद बच्ची को जगाकर दवा देती थी और चरबी की मालिश करती थी। मैं एक बार फिर सो गया था, लेकिन फिर से उठना पड़ा।

"मोरटिमर, बच्ची को कुछ झुरझुरी-सी लग रही है। इस बीमारी के लिए यह अच्छा नहीं। कृपया खटोले को अँगीठी के सामने कर दो।"

मैंने वैसा ही किया। इस प्रक्रिया में एक बार फिर कालीन में मेरा पैर फँस गया। मैंने खींचकर उसे अँगीठी में झोंक दिया। मेरी पत्नी उछलकर बिस्तर से उठी और झट से कालीन को निकाला। इसपर हमारी कुछ तू तूमैं मैं हुई। मुझे जरा देर के लिए झपकी लेने को मिली। इसके बाद फिर अनुरोध करके जगाया गया। अब मैंने अलसी की पुल्टिस बनाई। उसे बच्ची के सीने पर लगाया गया, ताकि वह अपना असर दिखाए।

लकड़ी की आग निरंतर नहीं जलती। मैं हर बीस मिनट बाद उठकर अँगीठी में लकड़ी डालता था। इससे श्रीमती मैकविलियम को दवा देने का मौका मिल जाता। अब दवा देने का समय दस मिनट कम हो गया था, जिससे उसे बहुत तसल्ली हुई। मैं बार-बार अलसी की पुल्टिस तैयार करता और बच्ची के शरीर पर जहाँ न लगी हो, वहाँ फिर से पुल्टिस लगाता। सुबह होने तक लकड़ी खत्म हो गई। पत्नी ने कहा कि मैं नीचे तहखाने में जाकर और लकड़ी ले आऊँ।

मैंने कहा, "प्रिय, यह बहुत मेहनत का काम है। कुछ अधिक कपड़े पहनाने के कारण बच्ची भी अब काफी गरमाइश महसूस कर रही होगी। तो क्यों न हम फिर से पुल्टिस लगा दें और।..."

मैं अपनी बात पूरी नहीं कर पाया, क्योंकि बीच में ही टोक दिया गया था। मैं नीचे तहखाने से कुछ लकड़ियाँ लाया। इसमें थोड़ा समय लगा। फिर बिस्तर पर लेटकर खर्राटे भरने लगा, जैसे कि कोई थका-माँदा आदमी भरता है, जिसके शरीर की सारी ताकत निचुड़ गई हो। सुबह पौ फटते ही मैंने अपने कंधे पर किसी की कड़ी पकड़ महसूस की। मैं अचानक जैसे होश में आ गया। मेरी पत्नी मुझे पकड़े हुए घूर रही थी।

जब वह सँभलकर बोलने लायक हुई तो कहने लगी, "सब खत्म हो गया। बच्ची को पसीना आ रहा है। हमें क्या करना चाहिए?"

"हे भगवान्! तुमने मुझे कैसा डरा दिया। मुझे नहीं मालूम, हमें क्या करना चाहिए। शायद हम उसे पोंछकर फिर से पुल्टिस लगा दें।"

"अरे मूर्ख, एक मिनट भी खोना बुरा होगा। डॉक्टर को बुलाने जाओ। तुम खुद ही जाओ। उसे कहो कि अवश्य आए, जिंदा या मुरदा।"

मैं बेचारे बीमार आदमी को बिस्तर से घसीटकर ले आया। उसने बच्ची को देखा और बोला कि वह मर नहीं रही है। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पर मेरी पत्नी ऐसे नाराज हो गई जैसे उसने उसे कोई बहुत अपमानजनक बात कह दी हो। तभी उसने कहा कि बच्ची की खाँसी का कारण उसके गले में किसी वजह से हो रही खराश है। तब मुझे लगा कि पत्नी उसे दरवाजे का रास्ता दिखाने का इरादा कर रही है। अब डॉक्टर ने कहा कि वह बच्ची को और जोर से खाँसने की दवा देगा, ताकि गले में जो कुछ अटका है, वह बाहर आ जाए और तकलीफ दूर हो। उसने उसे कुछ दिया, जिससे उसे जोरों की खाँसी छिड़ गई। इससे लकड़ी की एक नन्ही सी फाँस जैसी कोई चीज बाहर निकली।

"इस बच्ची को कोई मैंबरेनुअस क्रॉप नहीं हुआ है।" वह बोला, "यह देवदार की टहनी या ऐसा ही कुछ चबाती रही है। इससे इसके गले में कुछ नन्ही छिपटियाँ फँस गई हैं। इनसे उसे कोई नुकसान नहीं होगा।"

"जी नहीं।" मैंने कहा, "मेरा विश्वास है कि इसमें जो तारपीन होता है, वह बच्चों में पाए जानेवाले कुछ रोगों के लिए बहुत लाभदायक होता है। मेरी पत्नी आपको इस बारे में बता सकती है।"

लेकिन वह कुछ नहीं बोली। वह तिरस्कार-सा प्रदर्शित करती वहाँ से हटी और कमरे से बाहर चली गई। उसके बाद हमारे जीवन में घटी इस एक घटना की चर्चा हम कभी नहीं करते। इससे हमारी जीवनधारा शांतिपूर्वक प्रवाहित हो रही है।

बहुत कम विवाहित लोगों को मैकविलियम परिवार जैसा विलक्षण अनुभव होता है। इसलिए इस लेखक ने सोचा कि शायद यह पाठकों के लिए दिलचस्प हो।

(अनुवाद : सुशील कपूर)