मच्छर और पवन : बिहार की लोक-कथा
Machhar Aur Pawan : Lok-Katha (Bihar)
एक बार कोई मच्छर किसी मनुष्य को काटकर उसका ख़ून चूस रहा था। उसी समय तेज़ी से बहती हुई हवा ने उसे उड़ाकर दूर कर दिया। भूखा मच्छर क्रोधित होता हुआ हवा के विरुद्ध शिकायत करने बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास गया। वहाँ उन्हें प्रणाम करके निवेदन किया, “भगवन्! तुम्हारा वह दुष्ट पुत्र पवन मुझे बहुत पीड़ित कर रहा है, इस कारण मैं संसार में भोजन प्राप्त नहीं कर पा रहा हूँ। भूख मिटाने मैं किसी मनुष्य के पास जाकर उसके पैरों में गिरता हूँ, प्रणाम करता हूँ, फिर पीछे से जाकर उसके पैरों में डंक चुभाकर थोड़ा-सा रक्त पीता हूँ। फिर गुंजन करता हुआ ऊपर उसके कान के पास जाता हूँ। वहाँ धीरे-धीरे अद्भुत कलरव करता हूँ। मधुर-मधुर गाता हूँ। उसके बाद उसे वस्त्रों में कहीं छेद देखकर उसकी पीठ में घुसकर सहसा निर्भय-निःशंक होकर पहले की तरह डंक चुभाकर कुछ ही ख़ून पीता हूँ। पर मेरी भूख की शांति से पहले ही तुम्हारा यह दुष्ट पुत्र पवन यहाँ आकर स्वयं या पंखे की सहायता से मुझे उड़ाकर भगा देता है। मैं आपके संसार का लघु जीव हूँ। आपकी संतान हूँ, फिर भी पेट भरने में समर्थ नहीं हूँ। आपने मेरी रचना की। जीवों का रक्त मेरे भोजन के रूप में निश्चित किया। मुझे रक्तपान का कार्य दिया। यह दुष्ट पवन मेरे कार्य में विघ्न डाल रहा है। मैं कर्त्तव्यपालन कैसे करूँ? कृपया आप उसे दंडित करें।”
मच्छर की बात सुनकर भगवान ने कहा, “बेटा, मैं आपका कष्ट अनुभव करता हूँ। दुखी मत होओ। पवन को मेरे पास भेजो। मैं उसे पूछूँगा कि वह क्या कहता है। यदि वह दोषी हुआ तो उसे अवश्य दंड दूँगा।” मच्छर आश्वस्त होकर पवन के पास गया और उससे कहा, “भगवान तुम पर कुपित हैं और तुम्हें बुला रहे हैं।” पवन विष्णु के पास गया। उसने सब ओर से साष्टांग दंडवत करके पूछा, “भगवन्! क्या आज्ञा है?”
भगवान ने कहा, “मच्छर तुम्हारी शिकायत कर रहा था। तुम उसे क्यों पीड़ित करते हो? तुम दोनों मेरे पुत्र हो और भाई के समान हो। कहो, किस कारण उसे बाधा पहुँचा रहे हो?” पवन ने विनयपूर्वक कहा, “भगवन्! आपके आदेश से ही मैं सदा सर्वत्र उड़ता हूँ। क्षण भर भी विश्राम नहीं करता हूँ तथा जीवों को जीवन देता हूँ। मेरे चलने से ही जीव साँस लेते हैं और छोड़ते हैं। वायुमंडल साफ़ रखता हूँ। आपने ही मुझे उत्पन्न किया और इस काम में नियुक्त किया। यदि मैं नहीं चलूँगा तो लोग धूप और ताप से तपकर श्वास के बिना मर जाएँगे। देव क्षमा करें, मेरा कोई अपराध नहीं है। मैं आपकी आज्ञा का पालन करता हूँ। आप ही के द्वारा दिया गया कार्य कर सकता हूँ?”
भगवान ने कहा, “ठीक है बेटा, तुम मेरी श्रेष्ठ संतान हो। मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। चिरंजीव हो, जीवों के प्रति दयालु होओ।”
इधर मच्छर सोच रहा था, मैंने अपने पिता ईश्वर को अपना कष्ट निवेदन कर दिया। वे पवन को अवश्य दंडित करेंगे। कल से मैं यथेष्ट रक्तपान करके मोटा और सुखी हो जाऊँगा। दूसरे दिन वह भूख मिटाने के लिए किसी मनुष्य का रक्तपान करने के लिए गया तो फिर ईश्वर द्वारा प्रोत्साहित पवन प्रबल वेग से आकर उसे उड़ाकर दूर ले गया। अत्यंत चकित होकर मच्छर ने फिर भगवान से निवेदन किया।
भगवान ने कहा, “बेटा सुनो! यह न्यायालय है। यहाँ तुम वादी और पवन प्रतिवादी है। न्यायाधीश तभी निर्णय कर सकता है, जब वादी-प्रतिवादी साथ उपस्थित होकर परस्पर युक्ति-प्रतियुक्ति से उत्तर देते हैं। यहाँ सहायक की गवाही भी आवश्यक होती है। तुम्हारा अभियोग विचित्र है। मैं क्या करूँ? जब तुम होते हो, तब पवन नहीं होता। जब वह होता है, तब तुम नहीं होते। वत्स, पहले उसके सामने खड़े होने में समर्थ होओ, तब उसके विरुद्ध अभियोग लगाना। जिनके वित्त और बल समान होते हैं, उनकी मैत्री और विवाद ठीक रहते हैं; बलशाली और निर्बल के नहीं। इसलिए बेटा, और भी सोचो। पवन परार्थी और तुम स्वार्थी। पवन उपकारी है, तुम अपकारी हो। तुम्हारी सहायता करने और कोई गवाही देने मेरे पास नहीं आएगा। पवन सैकड़ों गवाहियाँ कर सकता है। जिन लोगों को तुम पीड़ित करते हो, वे सभी उसके साथ गवाही देंगे। इस स्थिति में मैं तुम्हारे अनुकूल निर्णय कैसे कर सकता हूँ? जाओ, दूसरा भोजन खोजो, अन्यथा तुम्हारा मरना ही ठीक है।” लज्जित मच्छर जैसे आया था, वैसे ही चला गया।
(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)