लघुकथाएँ (कहानी) : सुदर्शन

Laghu-Kathayen (Hindi Story) : Sudarshan

मेरी बड़ाई : सुदर्शन

जिस दिन मैंने मोटरकार ख़रीदी, और उसमें बैठकर बाज़ार से गुज़रा, उस दिन मुझे ख्याल आया, "यह पैदल चलने वाले लोग बेहद छोटे हैं, और मैं बहुत बड़ा हूँ।"

और जब शाम को मैं और मेरी बड़ाई घर आए, तो हम दोनों खुश थे, और हमारे चेहरे सीढ़ियों के अँधेरे में चमकते थे।

और जब हम सोफ़े पर बैठ गए, तो मेरी छोटी बच्ची एक कुर्सी घसीटकर मेरे पास ले आई, और उसके ऊपर खड़ी होकर बोली-- "मैं तुमसे बड़ी हूँ। तुम मुझसे छोटे हो।"

और मेरे दिल में यह बात चुभी, और मैंने मुड़कर अपनी बड़ाई की तरफ़ देखा, मगर वह बिजली के प्रकाश में गायब हो चुकी थी।

[झरोखे, हिन्द किताब्स लिमिटेड, 1947]

भारी नहीं, भाई है : सुदर्शन

मैंने कांगड़े की घाटी में एक लड़की को देखा, जो चार साल की थी, और दुबली-पतली थी। और एक लड़के को देखा, जो पांच साल का था, और मोटा ताज़ा था। यह लड़की उस लड़के को उठाए हुए थी, और चल रही थी।

लडकी के पांव धीरे धीरे उठते थे, और उसका रास्ता लम्बा था, और उसके माथे पर पसीने के मोती चमकते थे। वह हांप रही थी।

मैंने लड़की से पूछा--"क्या यह लड़का भारी है?"

लड़की ने पहले हैरान होकर मेरी तरफ देखा, फिर मुस्कराकर लड़के की तरफ देखा, फिर जवाब दिया--"नहीं, यह भारी नहीं है। यह तो भाई है।"

[जुलाई, 1947]

संपादक की टिप्पणी : इस लघुकथा का मूल शीर्षक 'बहन भाई' था।

  • मुख्य पृष्ठ : हिंदी कहानियां ; सुदर्शन
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां