लघु कथाएं (भाग-3) : डॉ. पद्मावती

Laghu Kathayen (Part-3) : Dr. Padmavathi

11. हार्ट स्कैन

“डॉक्टर! हार्ट स्कैन क्या ज़रूरी है?”

वातानुकूलित कमरे में भी निशा पसीने से भीग गई। कल से अन्न का दाना मुँह में नहीं गया था। सर चकरा रहा था। टाँगें काँप रही थी। लगा यह चमचमाती कृत्रिम छत सर पर गिर जाएगी।

“देखिए मुन्ने का हार्ट स्कैन करवाना होगा! तेज़ बुख़ार हृदय में तरल द्रव भर देता है। मैं लिखे देता हूँ। एम्बुलेंस तैयार है। आप चले जाइएगा। चिंता न करें। आगे जैसा बताया गया है, किया जाएगा।”

“मुन्ना ठीक हो जाएगा न डॉक्टर? अभी तक तो ठीक-ठाक ही था,” निशा दहाड़ मार कर रोने लगी।

“चुप रहो निशा, चुप रहो। डॉक्टर कह रहे हैं न तो बस चलो। सब ठीक होगा। जल्दी!” वे दम्पति बुरी तरह से घबराए हुए थे।

अविनाश ने डॉक्टर के हाथ से फ़ाइल ली और स्ट्रेचर के पीछे भागने लगा। राहुल तीन साल का था। दो दिन पहले तेज़ बुख़ार आया था। और वे दोनों उसे लेकर इस कॉर्पोरेट अस्पताल में इलाज के लिए आए थे। रक्त परीक्षण में संक्रमण का स्तर कुछ बढ़ा हुआ मिला और कॉरपोरेट उपचार शुरू। आज अचानक सुबह हार्ट स्कैन का आदेश।

एम्बुलेंस बाहर तैयार थी। दोनों मुन्ने को लेकर डॉक्टरों की एक टीम के साथ हार्ट इंस्टिट्यूट रवाना हो गये।

डॉक्टर शर्मा अपने कैबिन में घुसे तो पाया डॉक्टर अरुण और डॉक्टर मिश्रा भी वहीं मौजूद थे।

“क्या हुआ यार बच्चे को? क्या हुआ?”

“साधारण-सा, हाँ वायरल है और क्या होगा?” डॉ. शर्मा ने कोट ढीला कर चाय की प्याली की ओर इशारा किया।

“तो ये हार्ट स्कैन क्यों?” डॉक्टर अरुण की आँखें आश्चर्य से फैल गई।

“डॉ. आप यहाँ नए हो। जान लो यहाँ के तौर-तरीक़े नियम-क़ायदे। यह प्रक्रिया इस अस्पताल में अनिवार्य है,” शर्मा के चेहरे पर मुस्कुराहट थी जो डॉ अरुण को परेशान कर रही थी।

“क्यों? क्या औचित्य?” डॉ. अरुण ने तीन कपों में चाय डाली।

“देखो समझाता हूँ भई। यहाँ मरीज़ जब आता है तो वह उन सब बीमारियों से भी आश्वस्त हो जाना चाहता है जो उसे कभी थी ही नहीं। और उनकी संतुष्टि पर ही तो हमारा भविष्य टिका है। समझे? और डॉक्टर मिश्रा आपका केस कैसा है?”

“बिलकुल ठीक यार। एक दो दिन में डिस्चार्ज दे देंगे।”

“दस दिन हो गए यार अब तो छोड़ दो,” डॉ. अरुण ने घूँट भरते कहा।

“तुम भी न अरुण, घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?”

अरुण ने चश्में पर चाय की भाप पोंछी और उनकी ओर देखा। कमरे में ज़ोर का ठहाका लगा जिसकी आवाज़ कॉरिडोर तक गूँज गई।

12. वृक्षारोपण

वृक्षारोपण अभियान जोर शोर से चल रहा था । हाल ही में पार्षद बनी बिंद्येश्वरी देवी टीवी रिपोर्टरों और संवाददाताओं को काँख में दबाए अतिशय ऊर्जा से इस अभियान में भाग ले रहीं थी ।

आजकल वो हर चैनल और अखबार की खबर थीं । आज भी साढे़ बारह बजे कृष्ण नगर कॉलोनी में एक कार्यक्रम रखा गया था जिसका उद्घाटन मंत्री जी करने वाले थे जिसमें प्रदेश के विधायक भी सम्मिलित हो रहे थे । बिंद्येश्वरी देवी सुबह से ही झूम रही थी । आज का कार्यक्रम भविष्य की नयी संभावनाओं को जन्म देने वाला था । बारह बजने वाले थे और उसे निकलना था । इतने में फोन और द्वार की घंटी,दोनों एक साथ बजी । सामने की बैठक का पर्दा खींच कर पहरेदार अंदर आया ।

‘जी?’ । बिंद्येश्वरी ने रिसीवर उठाया ।

‘मैडम आज साढ़े बारह बजे… वृक्षारोपण कार्यक्रम ... आपकी उपस्थिति कितनी अनिवार्य है आप को पता है’।

‘हाँ...हाँ...बाकी सब तैयारियाँ हो गईं...न्यूज कवरेज..."?

"जी...सब तैयार" । फोन कट गया ।

‘राम सिंह... क्या हुआ?' वह राम सिंह की ओर मुखातिब हुई।

‘मैडम... मोहल्ले वाले आपसे मिलने को वास्ते आया" ।

"ओह! बुलाओ" । इससे पहले रामसिंह बाहर जाता, तीन चार आदमी तेजी से अंदर बैठक में चले आए।

" ये...ये...क्या हो रहा है? आप अच्छी तरह जानती है आपकी नाक के नीचे गली में इतने पुराने घने वृक्ष की कटाई हो रही है और आप ऐसे घिनौने कार्य को समर्थन दे रही है?" अंदर घुसते ही कोपाविष्ट मिस्टर राजमणि दहाड़े ।

" यह उन बंगले वालों का निजी मामला है । और आप भी जानते है हमारे सामने कितनी गंभीर समस्याएं है । उस पेड़ से उनकी चारदीवारी कमजोर हो जाएगी इसीलिए वे काट रहे हैं" ।

" निजी मामला ? नगर निगम का लगाया दस साल पुराना पेड़ है वह । कितना घना छायादार । उनकी आज बनी कोठी की शान में आड़े आया और काट दिया?निजी मामला" । वसंत जी तैश में आकर बोले ।

" देखिए हमारा समय कीमती है।" उसकी आवाज में लापरवाही थी और आँखें ...आँखें घडी की सुइयों पर ।

"ओह हाँ ...और उसकी कीमत बंगले वाले जानते है" ।

"क्या बकवास कर रहे है?" उसकी त्योरियाँ चढ़ गईं।

"अच्छा ... बंगले वाले कुछ भी करेंगे और आप समर्थन देंगी ? आपका मौन ही उनकी हिम्मत बन गया है । वृक्षों को काटना तो सामाजिक अपराध है, अवैध है " । मिश्रा जी ताव में आकर बोले ।"हम शिकायत करेंगे । चुप नहीं रहेंगे" । वे कई सालों से इस गली में रह रहे थे । उस पेड़ को फलते देख चुके थे । आज उसे गिरते देखकर उन्हें बहुत तकलीफ हो रही थी ।

" देखिए बेकार का ड्रामा मत कीजिए । क्या आप लोगों के घरों में लकड़ी की मेज ,अलमारी और कुर्सियाँ नहीं है? क्या खाने की मेज पर खाना नहीं खाते? चलिए मैं आपकी समस्या की किसी और दिन चर्चा करूँगी । हम एसोसिएशन की मीटिंग रखेंगे और भविष्य में ऐसी समस्याओं का समाधान ढूँढेंगे । खैर... आज मुझे बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित होना है । कृपया आज्ञा दीजिए" । बिंद्येश्वरी देवी ने सर झटक कर वक्र स्मित से रामसिंह को इशारा किया और अंदर चली गई ।

टन्न...टन्न....टन्न्न्न......अब तो घड़ी ने भी बारह बजा दिए।

13. शंका

गणेश उत्सव की तैयारियाँ चल रही थी । वह भगवान की मूर्तियाँ बनाता था । मिट्टी की मूर्तियों में जान फूंक देता था । आज अचानक मूर्ति पर काम करते हुए उसके हाथ रुक गए । एक प्रश्न कुछ दिन से मन को मथ रहा था । आज पूछ ही डाला !

"कुछ कहना है…देखो न !"

"आँखें तुमने अभी नहीं बनायी । केवल सुन सकता हूँ, क्या समस्या है तुम्हारी ?"

"सोचता हूँ… कह दूँ या नहीं! कह दूँ क्या?"

"अवश्य !"

"शंका है छोटी सी ।"

"हाँ । हाँ! कहो निःसंकोच ।"

"बुरा न मानोगे? सजा तो न दोगे?"

"इतना विश्वास है मुझ पर तो सजा कैसी?"

"ठीक है …तो बताओ ...क्या तुमने मुझे बनाया या मैं तुम्हें बना रहा हूँ?"

"तुम्हारा मन क्या कहता है?"

"मन कहता है तुमने मुझे बनाया और बुद्धि कहती है मैं तुम्हें बना रहा हूँ । शंका का निवारण करो ...सत्य क्या है?"

"मैं कह भी दूँगा तो क्या? तुम्हारा मन मान जाएगा और बुद्धि विरोध कर देगी" ।

"तुम कहकर तो देखो !"

"तो सुनो मन का आधार है विश्वास और बुद्धि का तर्क ।"

"तो"

"तो मन मनवा कर शांत कर देता है और बुद्धि भटका देती है" ।

"तो"

"तो क्या…तुम्हें क्या चाहिए शान्ति या भटकाव?"

उसकी नज़रें झुक गईं और हाथ फिर चलने लगे!

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