क्या अजब देश है (अंग्रेज़ी कहानी) : खुशवन्त सिंह

Kya Ajab Desh Hai (English Story in Hindi) : Khushwant Singh

ठग कहानी का शीर्षक 'बाबर से कैनेथ टायसन तक' भी रखा जा सकता था, क्योंकि इसका विषय सोलहवीं शताब्दी के मंगोल हमलावर बाबर से लेकर आधुनिक युग में यूरोपियनों की भारत सम्बन्धी प्रतिक्रियाओं से है ।

बाबर को भारत पसन्द नहीं आया था।

बाबर नामा नामक अपने संस्मरणों में उसने बड़े बेबाक ढंग से यह बात कही थी :

हिन्दुस्तान ऐसा देश है जहाँ की किसी भी बात की सराहना नहीं की जा सकती। यहाँ के लोग सुदर्शन नहीं हैं।

उनको मैत्रीपूर्ण समाज के सुख का ज्ञान नहीं है, जहाँ लोग निस्संकोच होकर मिलते-जुलते हैं, या एक-दूसरे से घनिष्ठता का व्यवहार करते हैं।

इनमें प्रतिभा का अभाव है, मस्तिष्क के गुणों को ये नहीं समझते, व्यवहार में नम्नता नहीं है, दूसरों के प्रति दया भाव नहीं है, नयापन नहीं है और हस्तकलाओं में सुन्दरता नहीं है, भवन-निर्माण में योजनाओं, डिज़ाइन और ज्ञान का अभाव है।

इनके यहाँ घोड़े नहीं हैं, न बाज़ारों में अच्छा गोश्त और रोटियाँ हैं, स्नानगृह नहीं

हैं, विद्यालय नहीं हैं, न मोमबत्तियाँ हैं, न रोशनियाँ हैं ।'

इसके अंग्रेज़ अनुवादकों ने भारत के प्रति बाबर के इस विद्वेष को बढ़ा-चढ़ाकर रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।

इस टिप्पणी के नीचे उन्होंने लिखा है! “भारत के बारे में बाबर की जो राय थी वही आज उच्च वर्ग के यूरोपियनों की भी राय है ।

लेकिन सौभाग्य से कुछ विदेशी ऐसे भी थे जो भारत को उतनी ही गहराई से प्यार करते थे जितनी गहराई से बाबर और आज के उच्च वर्गीय यूरोपियन नफ़रत करते रहे हैं।

यह मनोरंजक तथ्य है कि दुनिया में भारत ही अकेला देश है जिसके प्रति विदेशियों ने या तो ज़बर्दस्त नफ़रत व्यक्त की है या प्रशंसा-दोनों में से एक तो की ही है।

पाँच सौ साल पहले भी यही सच्चाई थी और यही आज भी है।

इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं है कि हम भारतवासी दूसरों की अपने बारे में राय को बहुत महत्त्व देते हैं।

भारतवासी विदेशियों को तीन मुख्य वर्गो में बाँटते हैं।

इनमें सब से बड़ी संख्या उनकी है जो भारत और भारतवासियों दोनों से नफ़रत करते हैं।

दूसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जिनकी नफ़रत आधी है, यानी जो भारत के लोगों को तो नापसन्द करते हैं लेकिन यहाँ का रहन-सहन और सुख-सुविधाओं को पसन्द करते हैं-बड़े-बड़े बँगले, नौकर-चाकर, शिकार, पोलो, वगैरह ।

यहाँ के लोगों में उन्हें लेखक रडयार्ड किपलिंग के पात्र गंगादीन, जैसे लोग ही पसन्द हैं-कुत्तों की तरह वफ़ादार, और जिन्हें अपनी औकात का पता है।

वे पढ़े-लिखे भारतीयों को ज़्यादा ही नापसन्द करते हैं, जो या तो बाबू यानी क्लर्क हैं और जो अंग्रेज़ियत को अपना चुके हैं।

तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जिन्हें भारत के लोग और उनकी हर बात पसन्द है।

उन्हें भारत का रहस्यवाद अपने ईसाई धर्म से ज़्यादा संतोषजनक लगता है, भारतीय संगीत के राग बीथोवेन की सिम्फ़ोनीज़ से ज़्यादा मधुर महसूस होते हैं, पैंट की अपेक्षा धोती ज़्यादा उपयोगी वस्त्र लगता है, मसालेदार भोजन यूरोपियन खाने से ज़्यादा स्वादिष्ट प्रतीत होता है। वे अपने देशवासियों से मिलना-जुलना ज़्यादा पसन्द नहीं करते।

वे भारतीय भाषाएँ सीखते हैं। वे हाथ की उँगलियों से खाना खाते हैं, उनकी स्त्रियाँ साड़ी पहनती हैं, माथे पर बिन्दी लगाती हैं और हाथ जोड़कर नमस्ते करती हैं। लेकिन इस श्रेणी के लोगों की संख्या बहुत कम है। भारतवासी उन्हें पागल करार देते हैं।

लेकिन, इनके अलावा एक चौथी श्रेणी भी है-उन लोगों की जिनकी प्रतिक्रिया निश्चित नहीं होती। ये भारतीयों के लिए बहुत चर्चा के विषय होते हैं। कैनेथ टायसन इसी श्रेणी का अंग्रेज़ था।

कैनेथ टायसन से मेरी पहली मुलाकात 1947 की शरद ऋतु में जिमखाना क्लब में हुई थी । इसके दो महीने पहले ही भारत आज़ाद हुआ था। मैं अपने मित्रों के साथ था : एक बंगाली, एक पंजाबी और दोनों की बीवियाँ । टायसन वहाँ आया तो लोगों का ध्यान उसकी ओर गया। वह औरों से ज़्यादा लम्बा-चौड़ा था। गंजा सिर, लँगड़ाती चाल। क्लब के भारतीय हाथों में आने के बाद यह पहला अंग्रेज था जो वहाँ आ रहा था।

पंजाबी ने खुद ही मज़ा लेते हुए चुटकी ली, “काले हिन्दुस्तान में आनेवाला पहला गोरा !

'कौन है ये ? मैंने पूछा।

'तुम कैनेथ टायसन को नहीं जानते?” उसने तुर्शी से सवाल किया। 'पक्का साहब नमूने का डिब्बेवाला। हमसे नफ़रत करनेवालों में एक जिनकी जात अब बहुत कम हो गई है।

टायसन लँगड़ाता हुआ बार तक पहुँचा। वेटर ने तपाक से सलाम मारकर उसका स्वागत किया और ब्रांडी का पेग बनाकर पेश किया।

'यह अब यहाँ क्या कर रहा है जब इसके और सब साथी वापस जा चुके हैं” मैंने प्रश्न किया।

“अपना सामान बाँधने से पहले आखिरी छोटा पैग पीने आया है,” पंजाबी ने अंदाज़ लगाया। “अब उसके लिए यहाँ हम बहुत ज़्यादा हो गये हैं ।'

पंजाबी की बीवी ने ज़रा ज़्यादा ही जोश-खरोश से इस विषय को आगे बढ़ाया : “इसकी बीवी से मिलो-खाँटी अंग्रेज़ मेमसाहब, उस जैसी दूसरी नहीं दिखेगी ।' फिर उसने मिसेज़ टायसन की नकल की, “इन लोगों को इनकी औकात में रखना बहुत ज़रूरी है। इनको ज़रा भी शह दो तो ये सिर चढ़कर बोलने लगेगा ।'

सब हँसने लगे।

'मेरा खयाल है, आप लोग टायसन को गलत समझ रहे हैं,' बंगाली बोला। “जब इसकी कलकत्ते में पोस्टिंग थी, मेरा वास्ता पड़ा था । हालाँकि वह हम में ज़्यादा घुलता-मिलता नहीं था, उसे वहाँ रहना काफ़ी पसन्द था क्योंकि वह छुट्टियों में कभी घर नहीं गया ।

“यानी आधी नफ़रत करने वाला,” पंजाबिन ने टिप्पणी की। 'लेकिन बीवी पूरी नफ़रत वाली थी । जेनिफ़र टायसन ने इसे कभी छिपाया भी नहीं । “माई डियर, मैं टूटिंग बेक की अपनी एक बिस्तर वाली कोठरी में रहना ज़्यादा पसन्द करूँगी, बजाय इनके महलनुमा शानदार कमरों में जहाँ काले-कलूटे नौकर घूमते-फिरते हैं ।” "

बंगालिन ने उसका पक्ष लिया, 'बेचारी ! उसे काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है-परिवार में कोई-न-कोई जब देखो पेट की बीमारी से पीड़ित रहता है।'

“यह नफ़रत करने वालों की काम काज से जुड़ी बीमारी है,' पंजाबी ने टिप्पणी की । 'कभी प्यार करने वाले को यह बीमारी होते सुनी है ? नहीं न ? यह इन्हीं बन्दों को होती है।

ये उबालकर पानी पीते हैं और सब्ज़ियाँ दवा में धोते हैं, फिर भी पेट की बीमारी से छुटकारा नहीं पाते। यह “दिल्ली का पेट” या “बम्बई का पेट' या जहाँ भी ये रहते हों वहाँ का पेट, जो कुछ भी हो। फिर मुल्ले की तरह जो दिन में पाँच दफ़ा नमाज़ पढ़ने मस्जिद की तरफ़ दौड़ता है, ये नफ़रती लोग बैडरूम से बाथरूम की तरफ़ दौड़ते नज़र आते हैं।

यह तो पुरानी बात है कि ये गोरे हिन्दुस्तान के बारे में काली बातें ही सोचते हैं।'

टायसन हमारी तरफ़ मुड़ा; वह समझ गया था कि उसी के बारे में बातें हो रही हैं। बंगाली ने उसकी तरफ़ देखकर हाथ हिलाया। टायसन ने अपना गिलास उठाया और हमारी तरफ़ बढ़ा। 'मे आइ ज्वाइन यू” यह कहकर उसने बगल की मेज़ से एक कुर्सी इधर सरकाई।

'खुशी से! मैं आपका परिचय अपने दोस्तों से कराता हूँ।

हमने हाथ मिलाये । हमने उसे और पीने को कहा | उसने स्वीकार कर लिया । 'आइ डॉन्ट माइंड इफ़ आइ डू! वापसी के लिए आखिरी। बैरा, ले आना ।' उसने तीन डबल ब्रांडी पीं। फिर खड़े होकर बोला, 'अब आप मुझे माफ़ करें, मेरी लिटिल गर्लफ्रेन्ड कार में इन्तज़ार कर रही है। उसे घर ले जाना है।'

जैसे ही वह उठकर गया, उसके खिलाफ़ हमारी बहस ज़्यादा गर्म हो उठी । “बुरा आदमी नहीं है।' बंगाली बोला, जिसने हमारा परिचय कराया था। 'हमें लोगों के बारे में गलत मत नहीं बनाना चाहिये। यह भारतीयों से मित्रता करने को तैयार है।

पंजाबिन ने फुंकार मारकर कहा, 'और नहीं तो क्‍या! जो पिलाने को तैयार बैठे हैं उन्हें तो दोस्त बनायेगा ही। उसने खुद तो नहीं पिलाई ।

“यह तो हद हो गई ।

“चुप करो,' महिला फूट पड़ी । 'तुम जैसे लोग मुझे नहीं सुहाते । बुरा आदमी नहीं है...क्योंकि कालों से ड्रिंक्स स्वीकार कर लेता है।'

किसी ने चुनौती का जवाब नहीं दिया। महिला ने हमला जारी रखा। 'इसकी औरत तो इससे भी बुरी है। वह अपने हिन्दुस्तानी चाहने वालों से खुश होकर तोहफ़े झटकती रहती है।

लेकिन अपने बच्चों को उनके बच्चों के साथ खेलने नहीं देती । माइ डियर, मुझे उनका रंग नापसन्द नहीं है, इतनी तंगदिल नहीं हूँ मैं। मुझे तो उनकी चीं-चीं भाषा पसन्द नहीं है, और डरती हूँ कि मेरे बच्चे उसे बोलना न सीख _ जायें ।'

'मेरा ख़याल है कि आप इस गोरे-काले की बीमारी से ज़रा ज़्यादा ही पीड़ित हैं, बंगाली ने विरोध किया। “अगर इन्हें यह सब पसन्द नहीं है तो वे यहाँ टिके हुए क्‍यों हैं ?”

इगग्लैंड में अच्छा जॉब नहीं मिल रहा होगा,' पंजाबिन ने जवाब दिया । “उसकी बीवी वहाँ तलाशने के लिए गई तो हुई है।

विश्लेषण जारी रहा। किसी ने भारतीय मूर्तिकला के बारे में टायसन के मत का उल्लेख किया : 'ये आठ हाथों वाली भयंकर कृतियाँ । ये आपको ही मुबारक । मेरी शुभकामनाओं के साथ ।

और जहाँ तक साहित्य का सवाल है, टायसन एक प्रसिद्ध अंग्रेज का मत दोहराकर कहता था : “यूरोप की लायब्रेरी की एक ही अलमारी पूर्व के समूचे ज्ञान के बराबर है।

यह बात मैं नहीं कह रहा, लार्ड मैकाले ने यह कहा था । भारतीय संगीत : 'बोरियत से सराबोर, आँखों में आँसू आ जाते हैं ।'

लेकिन वह न पोलो खेलता था, न शिकार पर जाता था। तो फिर वह यहाँ क्‍यों टिका हुआ धा ? और वह साल दर साल अपनी घर जाने की छुट्टी का इस्तेमाल क्यों नहीं करता था ?

कया यहाँ किसी कोने में छिपी उसकी कोई भारतीय प्रेमिका भी है ?

कुछ महीनों बाद मुझे इन प्रश्नों का उत्तर मिल गया। मैं वे परिस्थितियाँ बताता हूँ जिनके कारण यह जानकारी हुई।

मैं हर शाम अपने कुत्ते को घुमाने ले जाता था। हमारी सैरगाह बहुत खूबसूरत थी : काफ़ी दूर-दूर तक फैला पार्क जिसमें लोदी राजवंश के ऊँचे-ऊँचे मकबरे बने थे।

हम शाम को सूरज डूबने से पहले घर लौट आते थे जिससे सियारों से बच सकें, जो सहवास के मौसम में खतरनाक हो जाते हैं और जिनमें ज़हर भी पैदा हो जाता है।

एक शाम हमें ज़रा देर हो गई। अँधेरा होने लगा था; मकबरों के शिखर ही झुटपुटे में दिखाई पड़ रहे थे। मैंने अपनी चाल तेज़ की और कुत्ते को आवाज़ दी।

तभी बगल से तम्बाकू की बू आई। मैंने देखा एक लम्बा-सा आदमी पाइप पी रहा है और हाथ में चाबुक लिये उसे घुमा रहा है। जब मैं पास आया तो उसका साथी मुझे दिखाई दिया। यह दाशुंड कुतिया थी।

इसका सामने का आधा हिस्सा ज़मीन के एक गट्ढे में था और पीछे चूहे की तरह पूँछ हवा में लहरा रही थी। मेरे पैरों की आहट से उसका ध्यान टूटा। वह गड़ढे से बाहर निकली, नाक से ज़मीन की मिट्टी उड़ाई और मेरी तरफ़ दौड़ी।

'रुक जाओ, मार्था। एकदम रुक जाओ ।

“गुड ईवनिंग मिस्टर टायसन ।

“ओह, हलो,' उसने मुझे पहचाना तो नहीं, लेकिन यह देखकर कि मैं सिख हूँ, कहा, “गुड ईवनिंग, मिस्टर सिंह। पार्क में घूमने आये हैं। शाम का यह वक्‍त बहुत अच्छा होता है, है न? अरे, रुक जाओ, मार्था ।

मार्था पीछे हटी और गड्ढे में फिर घुसने लगी। 'यह बहुत खुश रहती है,

जब नाक घुसाने के लिए कुछ मिल जाता है।' टायसन ने यह कहकर उसकी ओर गर्व से देखा। “कुत्ते ऐसे ही होते हैं। मेरी पिछली कुतिया-दी महीने पहले मर गई वह-वह भी इसी तरह करती थी।

'लेकिन मेरा कुत्ता ज़रा ज़्यादा ही तेज़ है इस मामले में । ज़रा बड़ा भी है, हम यहाँ छोटे से फ्लैट में रहते हैं मैंने बताया। ये शब्द मेरे मुँह से निकले ही थे कि मेरा जर्मन शेफ़र्ड कृत्ता, सिम्बा, अँधेरे में से बाहर निकल आया। उसने मार्था की पूँछ हिलती देखी तो वहाँ अपनी नाक ले जाकर समूँघने लगा। मार्था पीछे हटी, सिम्बा की तरफ़ देखकर भौंकी और फिर तेज़ी से उसके चक्कर लगाने लगी।

"तुम्हारे लिए बहुत बड़ा है, लड़की। अब उसे छोड़ो । घर वापस चलो, देर हो रही है,' टायसन ने हुक्म दिया। 'सुन्दर है न ?

“बहुत सुन्दर है,' मैं बोला। मैं समझ गया, वह रुकना नहीं चाहता था। “गुड नाइट, मिस्टर टायसन। अब चलो, सिम्बा।'

इसके बाद टायसन मुझे लगभग रोज़ लोदी पार्क में मिलने लगे। मैं सिम्बा को पार्क के कई चक्कर लगवाकर उसकी कसरत करवाता था। टायसन उस एक ही हिस्से में रहते जहाँ कई गड़ढे और छेद थे । उसकी कुतिया इनमें से कीड़े-मकोड़े निकालने में व्यस्त हो जाती, और वे खुद पाइप पीते और चाबुक लिये आराम से उसका इन्तज़ार करते रहते।

वे सूरज डूबने के बाद भी देर तक वहाँ रहते। कई दफ़ा मुझे झुटपुटे में उसकी लम्बी काया दिखाई देती, और कई दफ़ा तम्बाकू की बू से पता चल जाता कि वे आस-पास ही कहीं हैं। उनके आखिरी शब्द हमेशा यही होते : 'आज के लिए बहुत हो गया। अब घर चलो, देर हो रही है। मार्था _ स्वीटी ।

कुतिया गड्ढे से अपना सिर निकालती, मालिक की तरफ़ उसे उठाती, जैसे कह रही हो, 'कुछ देर और रुको। मैं एक चूहा और निकाल लूँ फिर छेद में एक बार सूँघती, बाहर सिर निकालकर हवा छोड़ती और नाचती-सी मालिक के पीछे चल पड़ती।

टायसन को घर जाने की छुट्टी लिये बिना सालों गुज़र गये थे। उसने मुझे बताया, “मैं जब चाहे जा सकता हूँ। लेकिन ये छुट्टियाँ इकट्टी होकर दो साल तक हो जायेंगी। तब ज़्यादा अच्छा रहेगा, है न ?'

"लेकिन यात्रा का पैसा तो इकट्ठा होगा नहीं ?”

“अरे, वह। उसकी परवाह कौन करता है ?

कुछ साल बाद लोगों ने पूछना ही बन्द कर दिया कि टायसन घर क्‍यों नहीं जाते।

सर्दी के महीनों में, जब उसकी पत्नी यहाँ होती, तो वे कुछ मिलना-जुलना भी करते।

गर्मी के दिनों में जब वह अकेला होता तो लोग उसे निमन्त्रित करते, क्योंकि उन्हें लगता कि वह अकेलापन महसूस कर रहा होगा। वह मार्था को भी साथ ले जाता, जो कार में बैठी रहती । चाबुक उसके हाथ में रहता था।

समय बीतने के साथ मार्था मोटी होती चली गई । सभी दाशुंड कुत्तों की तरह मार्था भी, जिसका किसी से कभी संगम नहीं हुआ था, हमेशा गर्भवती कुतिया की तरह दिखाई देने लगी थी-उसका पेट ज़मीन को छूता रहता था। टायसन उस पर और भी ज़्यादा ध्यान देने लगा था।

“बड़ी प्यारी बिटिया है। उम्र हो रही है। अब तेरह साल की है-यदि मनुष्य होती तो अब अस्सी की उमर होती ।...अब ज़्यादा दौड़-भाग मत करो, लेडी ।

कुछ देर घुमाने के बाद वह उसे उठाकर कार तक ले जाता। मार्था अपने इतना प्यार करने वाले मालिक के हाथों में आहें भरती चली जाती

गर्मियों की एक शाम मैं अपने एक अंग्रेज़ मित्र के यहाँ गया हुआ था, कि टायसन भी वहाँ आ पहुँचा । उसने मार्था को कार से बाहर निकाला। हमारे मेज़बान के यहाँ भी उसी उम्र की एक बुल टेरियर कुतिया थी। दोनों एक-दूसरे के साथ क्यारियों में खेलने लगे, और हम बगीचे में पैग ढालते रहे।

“अब तुम यहाँ से बाहर निकलना चाह रहे होगे,” मेज़बान ने मौसम की गर्मी की ओर इशारा करते हुए कहा, पिछले पूरे हफ़्ते थमामीटर 2" तापमान से नीचे नहीं आ रहा था। इस वक्त लंदन में थेम्स नदी के किनारे के पढों में कितना मज़ा आ रहा होगा। मैं वहाँ जाने के लिए अपने बायें हाथ की कुरबानी भी दे सकता हूँ।'

टायसन ये बातें पहले भी सुन चुका था। मेज़बान कहता रहा, 'मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, तुम जानते ही हो । खुश्क गर्मी मुझे बरदाश्त होती है। और ज़िन्दगी के बहुत से साल अभी बाक़ी पड़े हैं।'

टायसन ने कोई जवाब नहीं दिया। हम चुप हो गये। गिलासों में बर्फ़ के टकराने और झींगुरों की आवाज़ें ही सुनाई दे रही थीं। टायसन ने अपना पाइप जलाया।

मार्था ने क्यारी में छींक मारी । दूसरी कुतिया ने उसका साथ दिया। दोनों एक साथ फटफटाने और फिर उत्तेजना से चीखने लगे।

'ज़रूर यह घूस होगी,' मेज़बान बोला, और घूमकर कुतिया से कहने लगा, 'पकड़ लो, फ़्लॉसी । ये बहुत परेशान करती हैं । चुपचाप घर में आती हैं और बड़े-बड़े दाने छोड़ जाती हैं। फ़्लॉसी, पकड़ लो,' उसने ज़ोर से कहा।

कुतियों ने सारी ताकत लगाकर उस पर हमले करना शुरू कर दिया। वे बार-बार मालिकों को देखतीं, कि आंगे कया करें ।

छेद में से एक घूस टिकी-टिकी-टिकी की आवाज़ करती बाहर निकली । वह लॉन में हमारी तरफ़ भागी। कुतियाँ उसका पीछा करते हुए दौड़ीं। हमने मेज़ पर अपने पैर रख लिये और कूतियों की हिम्मत बढ़ाने के लिए चिल्लाने लगे। “इधर, मार्था । इधर, फ़्लॉसी ।

घूस तेज़ी से मुड़ी और सड़क का रुख किया । उसकी टिकी-टिकी-टिकी आवाज़ें उसके पीछे दौड़ रही थीं । दोनों कुतियाँ उसके पीछे तेज़ी से भाग रही थीं बुल टेरियर कुतिया कई गज़ आगे थी। घूस सड़क पार कर गई और एक सूखे नाले के साथ दौड़ने लगी। बुल आगे थी, मार्था सड़क के बीच-कि किसी गाड़ी की रोशनी उस पर पड़ी । वह देखने के लिए रुक गई कि यह कया है और अपनी बड़ी भूरी आँखें रोशनी पर गड़ा दीं। एक क्षण बाद गाड़ी उसके ऊपर से गुज़र गई।

टायसन कुर्सी से उछला और उसकी ओर दौड़ा। मार्था की पीठ टूट गई थी, वह बुरी तरह छटपेटा रही थी। टायसन ने उसे बाँहों में भर लिया और भीतर लाया। उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे थे।

मेज़बान ने पशुओं के डॉक्टर को फ़ोन किया। वह कुछ ही मिनट में वहाँ पहुँच गया। उसने मार्था की जाँच की और सिर हिला दिया। फिर उसने बैग से एक पिचकारी निकाली, उसमें कोई द्रव भरा और कुतिया में उसका इंजेक्शन लगा दिया। “इससे इसकी तकलीफ़ कम होगी।

अपने मालिक को निहारते मार्था की मृत्यु हो गई। टायसन फूट पड़ा और. बच्चों की तरह रोने लगा।

इसके बाद टायसन को मैंने लोदी पार्क में कभी नहीं देखा कुछ दिन बाद क्लब के बोर्ड पर उसके फ़र्नीचर, क्रॉकरी, कटलरी वगैरह बेचने का विज्ञापन निकला । वह छुट्टी पर नहीं जा रहा था, उसने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और हमेशा के लिए विदा हो रहा था।

पन्द्रह दिन बाद वह हवाई अड्डे पर खड़ा था। उसके अंग्रेज़ दोस्त और दफ़्तर के भी भारतीय कर्मचारी उसे विदाई देने आये थे। हमेशा की तरह शान्त वह नम्नतापूर्वक सबसे बातें करता रहा, और गर्दन झुकाकर फूल मालाएँ डलवाता रहा । लाउड स्वीकर ने उड़ान भरने की घोषणा की, तो सबसे हाथ मिलाकर चुपचाप भीतर चला गया-उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

"तो टायसन, तुम भी अब जा रहे हो. उसके एक अंग्रेज मित्र ने कहा।

'हम तो सोच रहे थे कि तुम अब यहीं रहोगे और यहाँ की राष्ट्रीयता के लिए अर्जी दोगे ।

“कभी भी नहीं,” उसने अन्तिम बार हाथ हिलाते हुए कहा।

“ये इंग्लैंड में पशुओं के लिए असभ्य कानूनों की वजह थी।

मैं तुम से पूछता हूँ, कोई अपने प्रिय कुत्ते को छह महीने अपने से अलग कैसे छोड़ सकता है ?

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