कुशीनगर की कहानी : जातक कथा
Kushinagar Ki Kahani : Jataka Katha
कुशीनगर का नाम कुशीनगर क्यों पड़ा इसकी एक रोचक कथा है । वही कथा यहाँ प्रस्तुत की जा रही है।
मल्लदेश के राजा की रानी शीलवती से दो पुत्र थे । पहला पुत्र बिल्कुल कुरुप था; किन्तु समस्त विद्याओं का ज्ञाता। दूसरा पुत्र बहुत ही खूबसूरत था; किन्तु बिल्कुल बुद्धिहीन।
कुश एक कुशाग्र बुद्धि का व्यक्ति था । वह जानता था कि उसकी बदसूरती को देख कोई भी कन्या उससे विवाह करना नहीं चाहेगी। फिर भी शीलवती के आग्रह से उसने विवाह करना स्वीकार किया और प्रभावती नाम की एक बहुत ही सुन्दर कन्या से उसकी माता ने उसका विवाह करवा दिया जो सागल देश की राजकुमारी थी।
कुश के असल रुप को छुपाने के लिए शीलवती ने प्रभावती से झूठ कहा कि उसकी पारिवारिक परम्परा के अनुरुप प्रभावती और कुश एक दूसरे को तब तक प्रकाश में नहीं देखेंगे जब तक उनका बच्चा गर्भस्थ नहीं होता।
कुछ दिनों के बाद कुश के मन में प्रभावती को देखने की इच्छा उत्पन्न हुई । उसने अपने मन की बात अपनी माता को बताई। माता ने उसे घोड़ों के घुड़साल में प्रभावती को दिखाने की योजना बनाई। अस्तबल में बैठे एक सारथी के भेष में कुश ने जब प्रभावती को देखा तो उसे एक शरारत सूझी । उसने प्रभावती पर पीछे से घोड़े की लीद(विष्ठा) फेंकी । प्रभावती क्रुद्ध हुई, किन्तु शीलवती के कहने पर वह फिर आगे बढ़ गयी।
इसी प्रकार कुश ने दो-तीन बार अपनी माता की सहायता से प्रभावती को देखा और जितना ही वह उसे देखता उतना ही उसे और देखना चाहता। अत: एक बार माता ने प्रभावती को कमल के जलाशय में भेजा, जहाँ कुश छुपा बैठा था। जब जलाशय में प्रभावती नहाने लगी तो कुश का धैर्य छूट गया। वह तैरता हुआ प्रभावती के पास गया और उसके हाथ पकड़ कर अपना भेद खोला डाला कि वही उसका पति था। उस कुरुप और प्रेत की शक्ल वाले कुश को देख प्रभावती मूर्व्हिच्छत हो गयी। जब उसे होश आया तो वह तत्काल अपने मायके चली गयी।
कुश भी उसके पीछे-पीछे उसे मनाने गया और सागल देश में कई प्रकार की नौकरियाँ की । जब वह टोकरी बनाने का काम करता तो प्रभावती को अपना प्रेम-संदेश टोकरी की कलात्मकता के साथ भेजता। कभी कुम्हार बनता तो अपने हाथों की कलात्मकता से अपना संदेश भेजता। फिर भी प्रभावती उससे घृणा करती रही। अंतत: उसने प्रभावती के घर में रसोईये के रुप में काम कर हर किसी का दिल जीता। फिर भी प्रभावती उससे घृणा करती रही।
एक दिन आठ देशों के राजाओं ने मिलकर सागल पर चढ़ाई की । तब कुश ने अपने ससुर के सामने प्रकट होकर सागल को बचाने का प्रस्ताव रखा । अपने जमाई राजा को वहाँ उपस्थित देख सागलराज बहुत प्रसन्न और आश्चर्य-चकित हुए । जब उन्होंने कुश को अपनी पुत्री के प्रेम में हर प्रकार का संघर्ष करते देखा तो उससे वह बहुत प्रभावित हुआ । उसने प्रभावती को फिर अच्छी फटकार लगाते हुए कुश की प्रशंसा की । प्रभावती ने भी उस संकट की घड़ी में कुश के गुणों को स्वीकारा और सराहा।
कुश के साथ फिर आठ राजाओं की लड़ाई हुई । कुश ने उन आठ राजाओं को पराजित कर उनसे प्रभावती की आठ छोटी बहनों का ब्याह करवा दिया। फिर खुशी-खुशी प्रभावती के साथ मल्लदेश को लौट गया । तभी से मल्लदेश का नाम उसी पराक्रमी राजा कुश के नाम पर पड़ा ।