कुंवर और राजा की बेटी : संथाली लोक-कथा
Kunwar Aur Raja Ki Beti : Santhali Lok-Katha
किसी समय एक धनवान व्यापारी एक राजा के नगर में रहता था; और राजा ने एक विद्यालय का स्थापना किया ताकि उसके अपने बच्चों की कुछ शिक्षा-दीक्षा हो जाये, और नगर के लड़के, लड़कियां राजा के बेटे-बेटियाँ और उन सभी के साथ धनवान व्यापारी का बेटा जिसका नाम कुंवर था वह भी पाठशाला जाने लगा।
अब क्या हुआ की राजा की बेटी और कुंवर दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे और राजा की बेटी ने पत्र लिख कर यह कहा की यदि वह उसके साथ विवाह नहीं करेगा तो वह जबरदस्ती उसके घर में आकर रहने लगेगी। कुंवर ने उसे जवाब दिया और उससे विनती किया की वह उसके घर आने का कार्य न करे इससे उसका परिवार उजड़ जाएगा; लेकिन उसने कहा हम दूर दूसरा देश भाग जायेंगे, और वह आजीवन उसका साथ निभाएगा, यदि वह एक दूसरे के जाति के सच्चाई को नजरंदाज कर दे; और यदि वह राज़ी है तो यह निश्चित कर लें की हम किस देश में जायेंगे।
किसी प्रकार उनके इस नियत का समाचार राजा के कानों तक पहुँच गया और राजा ने यह ज्ञात होने के बाद की उसकी पुत्री व्यापारी के बेटे के प्रेम-फाँस में उलझ गई है राजा ने आदेश दिया की राजकुमारी को राजमहल से बाहर न जाने दिया जाए, और इधर व्यापारी ने कुंवर से कठोरता पूर्वक कहा की अब उसे और पाठशाला जाने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन एक दिन राजकुमारी उस स्थान पर गई जहाँ राजा के घोड़े बंधे रहते थे और उनमें से पियारी नाम की एक घोड़ी थी और वह उस घोड़ी के पास गई और कहा तुमने हमारा नमक काफी दिनों से खाया है, क्या तुम ने जो पाया है वह मुझे दे सकती हो? और पियारी ने कहा हाँ निश्चित रूप से। तब राजकुमारी ने पूछा यदि मैं तुम पर सवार हो जाऊँ तो क्या तुम इन घोड़ों के उपर से फाँदते हुए प्राचीर के बाहर निकल कर भाग सकती हो? और घोडी ने कहा हाँ, लेकिन तुम को मुझे कस कर पकड़े रहना होगा। राजकुमारी ने कहा यह मैं देखूंगी: यह तय हो गया की एक दिन मैं तुम पर बैठुंगी और तुम को दीवार को फांद कर बाहर भाग चलाना होगा। तब उसने कुंवर को एक पत्र लिखा और अपनी सेविका के द्वारा सबसे पत्र छुपाते हुए, किसी को पता न चले और कुंवर के हाथ में पत्र देने हेतु भेज दिया, और राजकुमारी ने पत्र में पलायन का दिन निर्धारित करते हुए उसे एक ख़ास पेड़ नीचे प्रतीक्षा करने को कहा।
इसलिए नियत दिन को जब घर के सभी लोग सो गए तो कुंवर उस पेड़ के नीचे गया जहाँ राजकुमारी ने उसे इंतजार करने को कहा था और उसके बाद एकाएक राजकुमारी अपनी घोड़ी पियारी पर सवार हो कर वहां आ गई; कुंवर ने पूछा की वह कैसे महल से भागी और क्या किसी ने उसे भागते हुए देखा है और राजकुमारी ने कहा किस प्रकार उसकी घोड़ी पियारी बिना किसी आहट के दीवार फांद कर महल से बाहर आ गई; तब दोनों पियारी पर सवार हो कर हवा की भांति उड़ते हुए चल पड़े और एक रात में ही दो-तीन राज्यों की सीमा पार करते हुए प्रातः काल में एक सुदूरवर्ती देश में पहुँच चुके थे, तब वे घोड़ी पियारी पर से खाना बनाने, भात पकाने हेतु उतरे, और एक घर में गए जहाँ एक बुढ़िया थी उन्होंने उस बुढ़िया से अपना चूल्हा जलाने हेतु आग मांगा। अब यह बुढ़िया जिसके सात लड़के थे और सभी हत्यारे और लुटेरे थे; और उनमें से छः ने यात्रियों की हत्या कर उनकी पत्नियों को हस्तगत कर ले गए और उनसे ब्याह कर लिया था। जब कुवंर और राजकुमारी बुढ़िया से आग मांग रहे थे तब उस समय उसके सभी सात लड़के शिकार करने गए थे और जब बुढ़िया ने राजकुमारी को देखा तब उसने अपने मन में यह निश्चय किया की वह उससे अपने सबसे छोटे लड़के का विवाह करेगी, और बुढ़िया ने इन को देर तक उलझाए रखने हेतु एक योजना बनाई; इसलिए उसने इनसे कहा की वे उसके ही घर में भात पका लें इसके लिए उसने इन को रसोई बनाने का बर्तन, पानी का बर्तन, जलावन की लकड़ी और अन्य आवश्यक वस्तुओं को देने का प्रस्ताव दिया; इन लोगों को यह नहीं मालूम हो सका की इसका आशय कुंवर को मारने का है और कोई संदेह न करते हुए उन्होंने बुढ़िया का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
जब उन्होंने रसोई का कार्य समाप्त कर लिया तो कुंवर ने बुढ़िया से पूछा क्या वह अकेली रहती है और उसने कहा कि नहीं वह विधवा है लेकिन उसके सात संतान हैं और वे सभी व्यापार के अभियान पर बाहर गये हुए हैं। उसके पुत्र आ रहे हैं या नहीं यह देखने के लिए बुढ़िया बाहर की ओर अपन ध्यान लगाये हुई थी, और उसने यह इंतजाम कर रखा था कि वह जब चाहेगी तब वह अपने छोटे से कुटिया में आग लगा सके और उसके लड़के जब धुआं उठता देखेंगे तो शीघ्रतापूर्वक घर वापस आ जाएँगे। लेकिन बुढ़िया के लड़कों के घर वापस आने से पहले ही कुंवर और राजकुमारी ने अपना भोजन समाप्त कर लिया था और उसके लिए बुढ़िया को धन का भुगतान कर के अपने पियारी घोड़ी पर सवार होकर सरपट चल पड़े। तब बुढ़िया ने अपने झोंपड़ी में आग लगा दिया और उसके लड़कों ने धुआं देख कर झटपट घर की ओर चल पड़े। उनके आने पर बुढ़िया ने उनसे कहा एक रूपवती लड़की बस अभी-अभी यहाँ से गई है जो की तुम्हारे छोटे भाई के पत्नी बनाने के लिए उपर्युक्त है। तब सभी भाइयों ने अपने तलवार को बाँधा और अपने घोड़ों पर सवार होकर उनके पीछे चल पड़े। कुवंर और राजकुमारी को इन ख़तरों के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं था और प्रसन्नता पूर्वक घुड़सवारी करते हुए जा रहे थे लेकिन उन्होंने अपने पीछे घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज सूनी और उन्होंने घूम कर देखा की हाथ में तलवार खींचे कुछ घुड़सवार उनके पीछे चले आ रहे हैं।
तब राजकुमारी ने कहा “हमारे दुश्मन हमारे पीछे हैं; तुम घोड़ी पर आगे की ओर बैठो और मुझे अपने पीछे बैठने दो, तब वे हम दोनों को एक साथ मारेंगे। यदि मैं आगे रहूँगी तो सम्भव है कि वे केवल तुम्हें मार दें और मुझे जीवित उठा के ले जाएं। लेकिन जब तक वे ऐसा सोच ही रहे थे की सात भाइयों ने उन्हें पकड़ लिया और इन को गालियां देने और इन पर आरोप लगाने लगे की उन्होंने जहाँ वे रसोई पका कर भात खाए थे उस घर को आग लगा कर जला दिया है, और उनको कहा की वे एक बार उनके साथ वापस आयें। कुंवर और राजकुमारी अत्यधिक डर गए कोई जवाब न दे सके और उनके पास तलवार भी नहीं था जिससे वे अपनी प्रतिरक्षा कर सकें। तब डाकुओं ने उन्हें घेर लिया और कुंवर की हत्या कर दी, और राजकुमारी से कहा की “तुम यहाँ अकेले ठहर नहीं सकती; हम तुम को वापस ले जायेंगे और तुम हम में से किसी एक से विवाह कर लेना।” राजकुमारी ने उत्तर दिया “मेरा भी जान मार दो, मैं तुम लोगों के साथ कदापि जा नहीं सकती।” डाकुओं ने कहा “हम तुम्हारा घोड़ी और भोज्य पदार्थ सब कुछ ले लेंगे, विवश होकर तुम को जाना ही पड़ेगा।” लेकिन राजकुमारी कुंवर के शव से लिपट गई और डाकुओं के सभी प्रयास असफल हो गए उसको वे खींच कर अलग नहीं कर सके।
तब हत्यारों ने अपने छोटे भाई से कहा “इसे तुम्हारी पत्नी बनना है तुम ही इसे खींच कर अलग करो।” लेकिन उसने यह कहते हुए मना कर दिया की यदि मैं इसे यहाँ से ले कर जाऊंगा तो यह मेरे साथ नहीं रहेगी, सम्भव है कि यह अपने आप को फांसी से लटका ले या पानी में डूब कर प्राण दे दे; मैं ऐसा पत्नी नहीं चाहता, यदि तुम से कोई चाहता हो तो वह ऐसा करे।” लेकिन उन्होंने कहा यह उचित नहीं होगा की उनमें से कोई दूसरी पत्नी कर ले जब की छोटा भाई अभी तक अविवाहित है, और उनकी माता की इच्छा है कि यह छोटे भाई की बहु हो; यदि वह ऐसा नहीं होता है तब वे उसकी हत्या कर देंगे। लेकिन छोटा भाई को उस पर दया आ गई और उसने भाइयों से उस पर रहम करने को कहा इसलिए उन्होंने राजकुमारी का घोड़ी और भोजन और सब कुछ लूट कर उसे वहां छोड़ कर चले गए।
एक दिन और एक रात राजकुमारी मृत कुंवर के पास रोती और विलाप करती पड़ी रही कभी भी एक क्षण के लिए विलाप बंद नहीं हुआ। तब चंदो ने कहा “यह कौन है? कौन क्रंदन कर रहा है और उसके साथ क्या हुआ है? और उन्होंने बिधि और बिधा को इसका कारण ज्ञात करने के लिए भेजा वे वापस आ कर बताये की एक राजकुमारी अपने पति के शव से लिपटी हुई रुदन कर रही है और वह उसे छोड़ कर नहीं हटेगी यद्यपि उसके पास जो कुछ भी था वह लूट लिया गया है। तब चंदो ने कहा उसे जा कर डरा कर भगा दो, और यदि वे उसे डरा कर उसके पति के शव के पास भगा देंगे तो वह कुछ भी नहीं करेंगे, लेकिन यदि वह वहां से नहीं गई तब वे उसे पुनर्जीवित कर देंगे। इस लिए वे वहां गए और देखा की वह उसके शरीर को पकड़ कर अपने गोद में रखे हुए रो रही है; और पहले तो वे बाघिन के वेश में आये और उसके चारों ओर ग़ुर्राते हुए चक्कर काटने लगे, लेकिन वह केवल रो रही थी और उसने गीत गाया- “तुम ग़ुर्राते हुए आई हो, बाघिन: पहले मुझे खाओ, बाघिन: उसके बाद ही मैं अपने मालिक के शरीर को खाने दूंगी।”
वह न तो शरीर को छोड़ेगी न ही बाघिन के भय से भागेगी, इसलिए वे चुपके से वापस तेंदुआ के वेश में आये, और उसके चारों ओर गुर्राहट करते हुए चहलक़दमी करने लगे; लेकिन राजकुमारी ने गीत गया- तुम गुर्राने आई हो तेंदुआ: पहले मुझे खाओ तेंदुआ: उसके बाद ही तुम मेरे मालिक का शरीर खा सकोगी। और वे उसे नहीं भगा सके और दुबारा चुपके से दो भालू के रूप में आ गये, लेकिन उसने केवल पहले वाला ही गीत गया; तब वे दो हाथी के रूप में सामने आये; और तब दो विशाल सांप के रूप में खूंखार ढंग से फुफकारते हुए आये लेकिन वह केवल रोते ही रही; और उन्होंने उसे अनेक तरीक़ों से डराने की कोशिश की लेकिन वह वहां से नहीं हटी और उसने कुंवर का शव नहीं छोड़ा, इसलिए अंत में उन्होंने देखा की राजकुमारी पूर्णतया कुंवर के लिए समर्पित थी और उसे मृत्यु का भय भी अलग नहीं कर सका, इसलिए अंत में वे उसके पास मनुष्य के रूप में आये और उससे पूछा की वह क्यों विलाप कर रही है? जैसा की उन्होंने उसे काफी देर से रोते हुए देखा था और उनका हृदय इस विलाप के कारण द्रवित था। तब राजकुमारी ने कहा “आह यह युवक और में अमुक देश के रहने वाले हैं और हम एक-दूसरे के प्रति आसक्त थे हमारा जीवन एक-दूसरे के साथ बंधा हुआ था हम एकसाथ घर से भाग गए और यहाँ सड़क पर यह मारा गया और हत्यारों ने मुझे बिना मेरी घोड़ी और भोजन के यहाँ छोड़ दिया यही कारण है कि मैं रो रही हूँ।
तब बिधि और बिधा ने कहा बेटी उठो हम तुम्हें घर ले चलेंगे, और तुम्हारे लिए एक दूसरा पति खोजेंगे; यह मृत है और इसे तुम्हारे लिए पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है; तुम को दूसरा मिलेगा; आओ उठो, तुम्हें एक ही जीवन दान मिलेगा। लेकिन राजकुमारी ने उत्तर दिया “नहीं में इसे यहाँ से छोड़ कर नहीं जा सकती। मैं इसे तब तक नहीं छोडूंगी जब तक की मेरा जीवन समाप्त नहीं हो जाता है; परंतु मेरी तुम लोगों से प्रार्थना है कि यदि तुम कोई दवा जानते हो तो एक बार प्रयास करके देखो शायद यह पुनर्जीवित हो जाए। तब उन्होंने कहा “हम कुछ दवा के बारे में जानते हैं यदि तुम्हारी इच्छा है तो हम इसका उपचार करने की प्रयत्न कर सकते हैं;” ऐसा कहते उन्होंने शव को बड़े ही सहूलियत से उठा लिया और राजकुमारी को कहा की एक कपड़ा फैला दो और उस पर शव को लिटा दिया और
शव के साथ उसके सर को यथास्थान रख दिया, और तब उसे एक कपड़े से ढंक कर उसके सर को सही स्थिति में पकड़े रखा; उसने वैसा ही किया जैसा उन्होंने उसे आज्ञा दिया था, और उस पर उन्होंने एक औषध को रगड़ा और अचानक वे वहां से गायब हो गये।
तब कुछ क्षण के पश्चात् उसने कुंवर की छाती को देखा जैसे की वह श्वास ले रहा है; उसके बाद उसने उसको तेजी के साथ उठा लिया और वह जाग पड़ा और कहा- “ओह मैं कितनी देर से सोया था।” लेकिन राजकुमारी ने कहा “बात मत करो सो जाओ; तुम्हारी हत्या कर दी गई थी और दो लोग कहीं से आये और उन्होंने कोई दवा का लेप किया और तुम में जीवन दोबारा आ गया;” तब कुंवर ने कहा कहाँ है वे और राजकुमारी ने कहा कैसे बिना बताये अदृश्य हो गए यह ज्ञात न हो सका।
तब वे उठे और भोजन के खोज में एक गाँव के बाजार में गए और उन्होंने प्रयत्न किया की कोई उनको नौकर रख ले; लेकिन लोगों ने सलाह दिया की वे राजधानी में जाएँ जहाँ राजा रहा करता है, और वहां यदि किसी ने उन्हें नौकर नहीं रखा तब उन्हें जहां राजा एक तालाब की खुदाई करा रहा है वहां मजदूर के रूप में कार्य मिल सकता है। इसलिए वे वहां गए लेकिन उनको किसी ने नौकर नहीं रखा तब वे उस तालाब के खुदाई वाले स्थान पर गए जहाँ सामान्य मजदूर कार्य कर रहे थे और उन्होंने वहां कार्य किया और उनको सप्ताहांत में मजदूरी मिला जिससे वे जीवन यापन आरम्भ किया। कुंवर की इच्छा थी कि किसी प्रकार से पाँच या छः रुपया जमा कर के अपने लिए एक छोटा घर बनाना ले।
अब जब की तालाब की काफी गहरी खुदाई हो गई थी लेकिन उसमें तुच्छ मात्र भी पानी का कोई आसार नहीं दिख रहा था। तब राजा ने पानी के उम्मीद में आज्ञा दिया की तालाब के मध्य में एक स्तम्भ लगाया जाए इससे पानी के भरने में सहायता मिल सकती है; और उसने मज़दूरों से कहा कोई यहाँ से नहीं जाएगा हमारे द्वारा यहाँ तालाब खुदवाने की उपलक्ष में एक भोज का आयोजन किया जायेगा और सभी मज़दूरों के बीच उपहार का वितरण भी होगा, और यह जान कर मज़दूरों को अत्यंत प्रसन्नता हुई।
अब कुंवर की पत्नी जो की सुंदर थी राजा ने उसे देखते ही उसे प्यार करने लगा और उस प्राप्त करने के लिए एक योजना बनाई। इसलिए तालाब के मध्य में खंभा लगाने के पश्चात भी जब जल नहीं प्राप्त हुआ तो उसने कहा “हमें यह देखना होगा की किस चीज की बलि दिये जाने से जल की प्राप्ति होगी। मेरे पास सभी प्रकार के पशु हैं; एक के बाद एक को बलि के लिए प्रस्तुत किया जायेगा और तुम लोग गीत गाते हुए उनको बलि के लिए अर्पण करोगे। इसलिए सबसे पहले एक हाथी को जलाशय के तल में उतारा गया और लोगों ने गाया “जलाशय, हम लोग एक हाथी की बलि देंगे इसलिए साफ पानी के बुलबुले आने दो, ओ जलाशय।” लेकिन पानी नहीं आया।
तब उन्होंने बलि देने के लिए एक घोड़े को उतारा और वही गीत गाया, लेकिन पानी नहीं आया; और उसके पश्चात एक ऊँट, एक गदहा, एक गाय, एक भैंस, एक बकरा और एक भेंड़ की बलि दी गई लेकिन पानी नहीं निकला; और तब उन्होंने यह कार्य रोक दिया। तब राजा ने पूछा कार्य क्यों रोक दिया गया है और उन लोगों ने बताया की अब बलि देने के लिए पशु नहीं है। तब राजा ने उन्हें एक मनुष्य की बलि देने के लिए गीत गाने को कहा, यह देखने के लिए की इससे पानी आ जाए; इसलिए वे सभी गाने लगे और जैसे ही उन्होंने ने गीत गाया की जलाशय के तल के चारों ओर से पानी के बुलबुले निकलने लगे और तब मजदूर इस भय से पीड़ित हो गए की न जाने उनमें से किस की बलि दी जाएगी।
लेकिन राजा ने अपने सैनिकों को भेजा और सैनिक कुँवर को पकड़ कर तालाब के बीच में गड़े हुए खंभे के पास ले गए; और कुँवर के लिए एक गीत गाया और तालाब में उसके तल के चारों ओर से पानी ऊपर उठने लगा और राजकुमारी फूट फूट कर रोने लगी; लेकिन राजा ने कहा “मत रोओ मैं तुम्हारे लिए मदद का इंतजाम कर दूंगा तुम्हें अपने राज्य का हिस्सा दूंगा और तुम मेरे राजमहल में रह सकती हो।” राजकुमारी ने कहा “हाँ इसके बाद मैं तुम्हारे साथ रह सकती हूँ, लेकिन जब तक कुँवर डूब न जाए मुझे यह दृश्य देखने दो;” कुँवर ने अपने आँख राजकुमारी पर स्थिर कर लिया और आँसुओं की धारा उसके चेहरे से नीचे गिरते रहे जब तक की पानी ऊपर उठ कर उसे पूरी तरह ढंक न लिया; और राजकुमारी भी जब तक वह डूब न गया उसे टकटकी लगा कर देखती रही। तब राजा के सैनिकों ने उसे अपने साथ आने के लिए कहा और उसने कहा “हाँ, मैं आ रही हूँ, लेकिन पहले मुझे अपने मृत पति के लिए जल में श्रद्धांजलि देने जाने दो;” और इसी बहाने से उसने पानी में प्रवेश किया और तेजी से उस स्थान के तरफ नीचे गई जहां कुँवर को बाँध कर सतह पर नीचे रखा गया था। राजा के आदेशपाल उसे बचा सकते थे लेकिन वे सभी पानी में जाने से डर गए और वह फिर दोबारा नहीं देखी गई। तब राजा ने सभी मज़दूरों को भोज करा कर भीड़ के बीच पैसों को बाँट कर भीड़ को निरस्त किया और यही कहानी का अंत हुआ।
कहानी का अभिप्राय: अपने परिवार से बिना विचारे दूर होने का गलत परिणाम हो सकता है।
(Folklore of the Santal Parganas: Cecil Heny Bompas);
(भाषांतरकार: संताल परगना की लोककथाएँ: ब्रजेश दुबे)