क़ुदरत का करिश्मा : बिहार की लोक-कथा

Kudrat Ka Krishma : Lok-Katha (Bihar)

एक समय की बात है। एक दिन एक शिकारी शिकार के लिए जंगल में दर-दर भटक रहा था। बहुत देर हो चुकी थी, पर कोई शिकार हाथ नहीं लगा था। वह थक गया था और उसके चेहरे से पसीना टप-टप टपक रहा था। चलते-चलते वह किसी पेड़ के नीचे रुक गया। धनुष-बाण ज़मीन पर रख अपने चेहरे से पसीना पोंछा। थोड़ी राहत मिली उसे। चारों ओर देखा। दूर-दूर तक कोई शिकार नज़र नहीं आ रहा था। यहाँ तक कि आसमान में कोई चिड़िया भी उड़ती नहीं दिख रही थी।

ठीक इसी समय एक भूखा शेर भी शिकार की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। बड़े ही सधे क़दमों से शेर आगे बढ़ रहा था कि यदि कोई शिकार है तो उसे उसकी आहट सुनाई न दे। भूख से उसका चेहरा बेहाल था। चलते-चलते वह इतना थक चुका था कि उससे चला भी नहीं जा रहा था। वह शिकार न मिलने के कारण अब अधिक क्रोधित और ख़तरनाक हो गया था।

इस तरह से शिकारी और शेर दोनों शिकार की तलाश में जुटे थे। अचानक उन्हें झाड़ियों से एक आवाज़ सुनाई दी। शिकारी ने ज़मीन से धनुष-बाण उठाया और एक कोने में छिप गया। वह कान लगाकर सुनता रहा। उधर शेर भी बिलकुल → बिल्कुल चौकस था और शिकार पर झपट्टा मारने को तैयार बैठा था। शेर ने भी कान लगाकर सुना। फिर से घास पर चलने की आवाज़ आई।

कुछ देर बाद झाड़ियों के पीछे से एक सुंदर मादा हिरण बाहर निकली। हिरण गर्भवती थी। वह जंगल के ख़तरनाक जानवरों से चिंतित रहती थी। विशेषकर आजकल उसकी सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि वह कैसे अपने बच्चे को सुरक्षित जगह पर जन्म दे, जहाँ कोई जंगली जानवर उसे नुक़सान न पहुँचा सके। इसी चक्कर में बेचारी भूखी-प्यासी हिरण किसी अच्छी जगह की तलाश करते-करते नदी किनारे उन झाड़ियों में जा छुपी थी। उसे ऐसा लगा था कि इन झाड़ियों में किसी जंगली जानवर का आना बहुत मुश्किल है। उसे ज़रा भी आभास नहीं था कि यहाँ भी शिकारी मेरा शिकार करने को तैयार बैठे हैं।

थोड़े ही समय में जब हिरण के प्रसव का समय बिल्कुल निकट आ गया तो उसी समय आसमान में घनघोर बादल छा गए और वर्षा करने को आतुर हो उठे। साथ ही साथ बिजली भी कड़कने लगी। अचानक बिजली किसी पेड़ पर गिरी और जंगल में आग लग गई। आग बुरी तरह से पूरे जंगल में फैलती जा रही थी। हिरण ने दाएँ देखा तो एक शिकारी तीर का निशाना उसकी तरफ़ साध रहा था। घबराकर वह बाएँ मुड़ी तो उस तरफ़ एक भूखा शेर झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड़ चुकी थी और पीछे मुड़ी तो नदी में जल बहुत था।

मादा हिरण क्या करती? वह प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी। बुरी तरह से घबरा गई कि अब क्या होगा? वह जीवित बचेगी भी या नहीं? क्या वह अपने शावक को जन्म दे पाएगी? क्या शावक जीवित रहेगा? क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी? क्या वह शिकारी के तीर से बच पाएगी? क्या वह भूखे शेर का भोजन बनेगी? वह एक तरफ़ आग से घिरी थी तो दूसरी तरफ़ पानी से भरी नदी थी। आख़िर क्या करे वह? वह इसी उधेड़बुन में थी और उसे कोई भी उपाय नहीं सूझा।

प्रसव पीड़ा के दर्द से कराहती हिरण ने अपने आपको शून्य में छोड़ दिया और अपना पूरा ध्यान प्रसव पर केंद्रित कर लिया। शेर पल-पल आगे बढ़ रहा था लेकिन हिरण निडर होकर अपने बच्चे को जन्म दे रही थी। अचानक कुदरत का एक करिश्मा हुआ। एक तेज़ बिजली कड़की और काले कपड़े पहने शिकारी पर जा गिरी। उसके हाथ से बाण ग़लत दिशा में चल गया और बाण शेर की आँख में जा लगा। बेचारा शिकारी बिजली से पूरी तरह झुलस गया। शेर दहाड़ता हुआ इधर-उधर भागने लगा। घनघोर बारिश शुरू हो गई और जंगल की आग बुझ गई। हिरणी ने शावक को जन्म दिया। ईश्वर का करिश्मा देखकर हिरण ख़ुद हैरान थी।

हमारे जीवन में भी कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं, जब हम चारों तरफ़ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होते हैं। तब हमें सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व एवं प्राथमिकता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इन समस्याओं का समाधान हमारे बस में नहीं होता। हम चाहकर भी कई समस्याओं को हल नहीं पाते क्योंकि समस्या का हल हमारे हाथों में नहीं होता है। ऐसे में हम मानसिक संतुलन खो देते हैं और बुरी तरह घबरा जाते हैं। ऐसी स्थिति में बिना घबराए सब कुछ नियति पर छोड़ देना चाहिए। अंततः यश-अपयश, हार-जीत, जीवन-मरण का अंतिम निर्णय नियति ही करती है। हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।

ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग हमारी सराहना करेंगे और कुछ लोग हमारी आलोचना करेंगे। दोनों ही मामलों में हम फ़ायदे में हैं। एक हमें प्रेरित करेगा और दूसरा हमारे भीतर सुधार लाएगा। इस तरह से जो भी होगा, अच्छा ही होगा।

(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)

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