खून : गुरबचन सिंह भुल्लर

Khoon : Gurbachan Singh Bhullar

करतारे ने कील पर टँगी तलवार उतारी, म्यान में से निकाली और उसकी धार को देखने के लिए उस पर बाएँ हाथ के अंगूठे को फेरा । वह आँगन में लटकी टहनी के पास गया। बाँह जितना मोटा तना एक ओर से बहुत बढ़ा हुआ था। उसने तलवार का भरपूर वार किया, तना मूली के टुकड़े की तरह धरती पर आ गिरा। तलवार को चूम कर उसने म्यान में डाला और घर से बाहर निकल गया।

चौपाल से घर आते हुए उसने चौकीदार की मुनादी सुनी थी। जमीन का पट्टा करवाने वाले पटवारी गाँव में आ गए थे। इस आवाज़ ने अरसे से धधकती घास-भूसी की आग को और भड़का दिया था। कई वर्षों से उसके दिल के एक कोने में एक बैचेनी सी पसरी हुई थी, लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका था। उसने सोचा, अब वक्त आ गया है। यदि उसे कुछ करना ही था, तो अभी क्यों न करे, जब साथ वाली जमीन का पट्टेदारी में आँकड़ा भरा जाने वाला था।

घर से निकल कर करतारे ने दो मील दूर से निकलती पक्की सड़क वाली राह नहीं पकड़ी। वह नजदीकी गाँव के अड्डे की ओर जाने वाली सुनसान पगडंडी पर तीव्र गति से चलता जा रहा था। पन्द्रह बीघे की बात कोई छोटी नहीं थी, लेकिन वह तो अपने भविष्य के एक दुश्मन का कांटा ही निकालने चला था। वह चाहता था कि आते-जाते उसे कोई और व्यक्ति न मिले। अपने कार्य की गंभीरता के बारे में सोचकर उसका दिल तेज-तेज धड़कने लगता। पहले उसने रात की गाड़ी से जाने के बारे में सोचा था, लेकिन इस प्रकार अगला दिन आ जाता। ऐसे काम करने के लिए रात ही ठीक रहती है।

कई बार करतारा अपनी मंडली के यारों के साथ बैठा शराब पी रहा होता, तो वह शेखी बघारता, "मेरे सामने तो भाई बहते दरिया भी एक बार ठहर जाते हैं।"

कभी-कभी मंडली में से कोई छेड़ता, "जिसकी माँ घर से निकाली हई हो, करतारे, वही तुम से पूछ सकता है कि भई दरिया के पानी कैसे ठहरते हैं। वह भी अब दही से रोटी खाता होगा।"
वह शर्मिंदा होकर कहता, "वह कीड़े-मकोड़े जितना छोकरा मेरा क्या कर लेगा, उसकी माँ मैंने घर से निकाली है क्या?"

जब भी इस बात की चर्चा छिड़ती, बात आई-गई हो जाती। लेकिन करतारे पर अपना असर छोड़ जाती। उसे लगता-ठीक है,उसके भविष्य का दुश्मन दूर बैठा दही से रोटी खा रहा है। क्या हुआ, अगर वह आज कीड़ा-मकोड़ा है, कल को वह बड़ा होकर साँप भी बन सकता है।

थोड़ी-थोड़ी दोपहर हो चली थी। बस आई। बस में गाँव का कोई भी आदमी नहीं था। करतारे ने राहत की साँस ली। वह बस के बीचोंबीच खिडकी वाली सीट पर बैठ गया। वह सोच रहा था कि जग्गर के कल के मामले में वह लोगों की निगाह में साफ दामन नहीं था। जग्गर के कत्ल के समय गाँव में उसके बारे में कई प्रकार की बातें उड़ती रही थीं। कोई कहता था कि उसका सीधा हाथ था, कोई कहता था कि उसे मालूम जरूर था। आम चर्चा यह थी कि पहले पुलिस की उसे भी साथ ही रगड़ने की सलाह थी, लेकिन वह रातों-रात ही थानेदार को रकम झोंक आया था।

खुद कुलवन्त को भी इस बात का शक था कि कत्ल में करतारे का हाथ है। भागती जा रही बस में से दूर-दूर तक फैले हए खेतों पर खाली निगाह डालते हुए उसने सोचा, 'तभी तो उसने मेरे घर में बसने से इनकार कर दिया था।'

जब गाँव के दो अन्य आदमियों पर जग्गर के कत्ल का मुकदमा बना, तो करतारे ने कुलवन्त से घर बसाने की बात चलाई। जग्गर की मौत के बाद वह एकदम बेसहारा रह गई थी। सास-ससुर पहले ही मर चुके थे और सिर्फ दो वर्ष का एक बेटा ही अब उसके परिवार में रह गया था। करतारा समझता था कि एक तो कुलवन्त बेसहारा रह जाने के कारण शायद उसकी बात मान लेगी। दूसरी बात, रिश्ते के लिहाज से भी वह उस पर अपना हक समझता था। जग्गर के दादे-पोते की ओर से इकलौता भाई होने के कारण, वह समझता था कि यदि कुलवन्तो उसके घर नहीं बैठेगी तो क्या करेगी।

पहले करतारे ने शामो नाइन के द्वारा बात चलाई। फिर उसने स्वयं ही कलवन्तो से बात की। कुलवन्तो की आँखें नदी सी बहने लगीं, "करतारे, तुमने मेरे साथ ऐसी बात करने की हिम्मत कैसे की? अभी तो मरने वाले की चिता भी ठंडी नहीं हुई, लेकिन मेरे लिए तो यह ताउम्र ठंडी नहीं होगी।"

करतारे ने तिनके से मिट्टी कुरेदते हुए कहा, "कुलवन्त कौर, शामो नाइन ने भी मेरे साथ बात की थी, लेकिन मुझे कसम है, यदि जग्गर सिंह के कत्ल के बारे में मुझे पहले से जरा भी भनक लगी होती। लोग साले ऐसे ही बकवास करते हैं।"

"लोग तो बकवास करते हैं, लेकिन यदि तुम सचमुच ही पाक-दामन थे, तुम्हें बनिए से पैसे सूद पर ले थानेदार की जेब भरने की क्या जरूरत आ पड़ी थी?" कुलवन्त ने दुपट्टे के किनारे से आँखें साफ की।

“मैंने किसी साले से पैसे लेकर नहीं दिए। लोगों का क्या मुँह पकड़ा जा सकता है? अब तो कातिल पकड़े भी गए, दूध का दूध, पानी का पानी हो गया है।"

"दूध और पानी का फैसला तो परमात्मा करेगा करतारे। लेकिन तुम कभी फिर से ऐसी बात न करना। परमात्मा के लिए, मुझे यह बच्चा पालने दे। जो होना था, हो गया," कुलवन्त ने जैसे मिन्नत की।
"कुलवन्त कौर, भाई का दुख मुझे भी बहुत है। भाई तो एक-दूसरे की बाँह होते हैं..." करतारा मासूम बना खड़ा था।
"यदि अभी भी तुम समझो, इसमें तुम्हारा ही खून है। बड़ा हो तुम्हारी ही बाजू बनेगा..."
"मैं भी तो तुमसे यही कह रहा हूँ, लेकिन तुम्हारे कान पर जूं नहीं। रेंगती।"

"नहीं करतारे, तुम अपने घर में राजी-खुशी रहो, मुझे मेरे हिस्से के दुख भोगने दो। जो होना था, हो गया। मुझे बच्चा पालने दे, राम-राम करके। मैं इस पर इन सभी बातों की कोई परछाई नहीं पड़ने दूंगी। सौ गायों जैसे जग्गर का पाप सात कुल का नाश कर देगा, जिसने भी यह कुकर्म किया है।"

करतारा समझता था कि औरत बड़ी चालाक निकली। लालटेन जैसी कुलवन्ती घर की रोशनी बन जाती। लड़के ने भविष्य में उसका दुश्मन बनने की बजाए उसे अपना बाप समझना था। पंद्रह बीघे जमीन और उसके अधीन हो जानी थी।

बस किसी अड्डे पर रुकी। करतारे की सोच की लड़ी टूट गई। बाहर आठ-नौ साल का एक लड़का मीठी गोलियाँ बेच रहा था। उसे देख, करतारे ने सोचा, अब तो लड़का इतना बड़ा हो गया होगा। यदि कुलवन्तो ने उसके कान भरने शुरू कर दिए होंगे, तो वह पांच-सात सालों में उसकी गर्दन भी उतार सकता है। करतारे के नजदीकी गाँव में चौदह साल के लड़के ने अकेले ही चालीस साल के एक आदमी को काट डाला था।

बाहर कुछ-अँधेरा सा हो गया था। करतारे ने देखा, एक बादल सूरज के ऊपर आ गया था। उसने निगाह बस के अंदर घुमाई। उसके मन में आया कि लोग जग्गर के कल के लिए अभी भी उसकी ओर अंगुल करने से नहीं हटे थे। आखिर आगे या पीछे बात कुछ न कुछ हद तक निकल ही आती है। लेकिन उसका डर फिर से जागा, यदि उसने थोड़ी देरी की, लड़का जवान होकर पहल कर जायेगा। जाटों की दुश्मनी तो कई पीढ़ियों तक जाती है।
यदि अभी उसका काम बन जाए तो दस बीघे उसकी और पंद्रह बीघे जग्गर वाली जुड़कर पच्चीस बीघे का पट्टा बन सकता था और वह सरदार कहलवा सकता था। अभी वह जमीन जिन लोगों को बँटाई या ठेके पर मिलती थी, वे ऐश कर रहे थे। कुलवन्तो जब से अपने बाप के साथ गई थी, दो-तीन बार चुपचाप शहर आई थी और बनिए के द्वारा जमीन को ठेके या बँटाई पर दे गई थी।

करतारे को कुलवन्तो का गाँव में आना चुभता था। वह समझता था कि कुलवन्त के दिल में खोट है। कुलवन्तो के साथ हुई बातचीत में से उसे सिर्फ एक ही बात याद थी कि वह भी बाकी लोगों की भाँति जग्गर के कत्ल के मामले में उसका हाथ मानती थी। उसकी बाकी बातों को वह त्रियाचरित्तर समझता था।

लेकिन करतारे के होठों पर एक सोच आकर ठहर गई-यदि कोई उलझन खड़ी हो गई? जग्गर के कत्ल में उसका एकदम सीधा हाथ तो नहीं था, लेकिन थानेदार ने तब भी उसे बुलाकर कील पर टंगी हुई हथकड़ी दिखा दी थी। करतारे ने सोचा, यह ठीक है कि, यदि वह चाहता तो अनहोनी के बारे में जग्गर को पहले से सूचित कर सकता था, लेकिन उसे लगा था कि वे शायद उसकी सिर्फ टाँग ही तोड़ेंगे। शरीर में से किसी की टाँग तोड़ दी जाए, इस बात से अन्तर्मन में थोड़ा सुकून मिलता है।

कैले तथा दीपे ने एक जमीन लेने का सौदा किया और जग्गर ने उसका ज्यादा दाम देकर उसे खरीद लिया। उन्होंने जग्गर से बदला लेने की ठान ली। उस दिन जग्गर खेत गया हुआ था और कैला तथा दीपा अपने खेत में भट्ठी लगा कर बैठे थे। करतारा अपने खेत से बैल को भगाते हुए अचानक ही उनके पास पहुँच गया। दारू के नशे में उन्होंने उसे बता दिया कि वे जग्गर की टाँग तोड़ने के लिए बैठे थे। वे जानते थे कि करतारे तथा जग्गर में भी आपसी मेल-मिलाप कम ही था।

करतारा वहाँ से आ गया था। दिन ढले जब जग्गर अपने खेतों से वापस लौटा, उसे कैले तथा दीपे ने आ घेरा। कैले ने गंडासा उसकी टाँग पर दे मारा, लेकिन वार खाली चला गया। जग्गर भागने लगा तो कैले ने ललकारा, "दीपे, जाट हाथ से गया, पकड़ ले साले को।" और दीपे ने बरछा उसकी कमर में खोंस दिया। पैर अटकने से जग्गर गिरा तो उसी के बोझ के साथ बाकी का बरछा भी उसके अंदर तक धंस गया और वह वहीं ढेर हो गया।

पुलिस को पता लग गया था कि करतारा उसी दिन कैले तथा दीपे के पास गया था।
...और करतारे ने बड़ी मुश्किल से, सूद पर पैसे लेकर थानेदार से अपना पीछा छुड़ाया था। और अब जब वह स्वयं अपने ही हाथों से ऐसा कारनामा करने जा रहा था, तो क्या बनेगा। बात छिपेगी नहीं। उसे अपने ही भतीजे का खून करने के बारे में सोच कर उबकाई सी आई और उसका दिल किया कि वह अगले अड्डे पर उतर वापसी की बस पकड़ ले।

लेकिन वह कैसे उसका भतीजा हुआ? वह भविष्य में बनने वाला उसका दुश्मन था। उसे उस गाँव में कौन जानता था। जाते ही अंधेरा हो जाने वाला था। परमात्मा सब ठीक रखे, सुबह वह वापस गाँव आ जायेगा। यदि कोई अड़चन आई भी, तो दो बीघे जमीन गिरवी रख देगा। जग्गर वाली पंद्रह बीघे तो उसे मिल ही जानी थी। और कल के लिए आजकल कौन पकड़ा जाता है। उसने सोचा, किसी की टाँग-बाजू तोड़ डालो, दो-चार साल के लिए ही अंदर जाना पड़ता है. कत्ल करो बरी। कभी मौके की कोई गवाही नहीं, कभी कोई और कानूनी दावपेंच आड़े आ जाता है।

बस एक झटके से रुक गई। वह नीचे उतरा, सूरज डूबने ही वाला था। उसने अभी तीन कोस पैदल जाना था। उस समय तक घुसमुसा अँधेरा फैल जाना था। वह मन में योजना बनाने लगा कि कैसे अकेले वहाँ तक पहुँचेगा।

थोड़ा-थोड़ा अँधेरा फैलने लगा था। कुछ दूरी पर गाँव में कुत्ते भौंक रहे थे। वह पगडंडी के नजदीक ही एक कुँए के पास बैठ गया।

अजनबी गाँव, न कोई जान न पहचान । काम ही ऐसा करने आया है, वह किसी से कुछ पूछ भी तो नहीं सकता। करतारे के मन में फिर डर ने सिर उठाया-यह कैसे हो सकता है कि वह चुपचाप ही लड़के का, और यदि ठीक लगे तो कुलवन्तो का भी काम तमाम कर गाँव लौट जायेगा और कानों कान किसी को खबर भी नहीं होगी?

उसने अपने-आप में हिम्मत पैदा की। किसी से कुछ पूछने की जरूरत भी नहीं थी। जग्गर के विवाह के समय बारात जिस धर्मशाला में ठहरायी गई थी, उसके नजदीक ही जग्गर की ससुराल वालों का खेत वाला घर था और अन्दर वाला घर रोटी खाते समय उसने अच्छी तरह से देखा ही था। क्या पता, प्रभु की कृपा हो जाए और दोनों माँ-बेटा बाहर खेतों वाले घर में अकेले ही किसी कामधन्धे के सिलसिले में आए हों, और...
खेतों की ओर से पगडंडी पर कोई आ रहा था। करतारे ने स्वयं को दिलासा दिया, 'जो होगा, देखा जायेगा। बहुत योजनाएं बना ली हैं। उसने तलवार कुएँ की मेंड़ पर रख दी और खड़ा हो गया। आने वाला कोई लड़का था। उसके पास खाली बर्तन थे। शायद खेत पर रोटी देकर आया लगता था।

"बेटा, यह गाँव सोणपुरा ही है न?" करतारे ने लड़के से बात चलाई, “पट्टे के कारण रास्ते ही बदल गए हैं।"
"हाँ, यह सोणपुरा ही है। पहले रास्ता वहाँ से जाता था।" लड़के ने कहा। "तेरे बाप का नाम क्या है, बेटा?" "सुच्चा सिंह।"

करतारे को याद आया, जग्गर के ससुर का नाम भी सुच्चा सिंह ही था, लेकिन उसकी घरवाली को मरे हुए एक अर्सा हो गया था। यह किसी और सुच्चा सिंह का लड़का होगा। उसने सोचा कि लड़के को बातों में लगा ले, शायद कोई भेद मिल ही जाए। उसने मजाक में लड़के से कहा, "बेटा, तुझे इस समय अकेले में डर नहीं लगता? मैं तो तेरे जितना था तो अंधेरे में अकेले बाहर जाने से डरता था।"
"डर किस बात का?" लड़के ने बिना झिझक के जवाब दिया।
"हमारे गाँव में तो तुम्हारी उम्र के लड़के को चोर पकड़कर ले जाते हैं।" करतारे ने हँसकर कहा।

"मुझे कौन हाथ लगायेगा। मालवे में मेरा शेर जैसा चाचा है, करतारा। टुकड़े-टुकड़े कर देगा।" लड़के ने स्वाभाविक ही कुएँ की मेंड़ पर पड़ी तलवार को देख कर कहा।

करतारे को धरती-आसमान घूमते नजर आए। उसने दौड़कर लड़के को अपनी गोदी में उठा, सीने से भींच लिया। तलवार कुएँ की मेंड़ पर पड़ी रह गई। सोणपुरा गाँव की ओर जाते हुए उसकी आँखें झमाझम बह रही थीं।

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