खरगोशों का कष्ट : रामदयाल मुंडा

Khargoshon Ka Kasht : Ram Dayal Munda

एक बार एक जंगल के खरगोशों ने एक बड़ी सभा बुलाई। सभा बुलाने का उद्देश्य था कि हम कैसे सिंहों के मुँह से बच सकेंगे, दिन-दिन उस जंगल के सिंह खरगोशों के रहने की ओर आ रहे थे और धीरे-धीरे उन्हें खाकर खत्म करते जा रहे थे। इस तरह से बचे हुए खरगोशों के मन में इतना भय समा गया कि उन्होंने उनसे बचने का रास्ता निकालने का निश्चय किया। कुछ ने कहा कि हम इस जंगल से बिल्कुल भाग जाएँ। किंतु उन्होंने यह भी अनुभव किया कि उनके लिए भागकर छिप जाने के लिए कोई और अन्य जगह नहीं थी। वे जंगल के उस कोने में सब ओर से सिंहों से ही घिरे हुए थे। कुछ जोशीले खरगोशों ने कहा, ‘‘नहीं, अब डरने से काम नहीं चलेगा। हम सीधे जाकर उनसे कहें कि तुम हमें बड़ा कष्ट दे रहे हो। इतने दिनों तक हम सहते रहे, लेकिन अब से हम माननेवाले नहीं हैं।’’ उनका कहना था कि हम सब मिलकर एक-एक करके सब सिंहों को मारकर खत्म कर देंगे। उनके ऐसा कहते ही एक बूढ़े खरगोश ने कहा, ‘‘तुमने कहाँ सुना है कि बहुत सारे खरगोशों ने मिलकर किसी बाघ को कभी मारा है, या जंगल से भगाया है?’’ धीरे-धीरे वे जोशीले खरगोश मुरझा गए और उन्होंने अपना सिर झुका लिया। अंत में एक किंचित बुद्धिमान खरगोश ने कहा, ‘‘हम अपने बीच से एक मजबूत खरगोश को सिंह के भेष में सिंहों के यहाँ उनका भेद लेने के लिए भेजें। उसी के द्वारा हम पता लगाएँगे कि कैसे हमारा काम बनेगा!

यह बात सभी खरगोशों ने मान ली। लेकिन सवाल था कि कैसे वह खरगोश एक सिंह की तरह दिखाई दे। इसके लिए भी उन सबने मिलकर एक उपाय सोचा। एक कुछ बड़े खरगोश को उन्होंने साल भर तक खूब खिलाया-पिलाया। इतना तक कि चारा न मिलने के समय भी उन्होंने अपना खाना बचाकर उसे खाने के लिए दिया। इस तरह से वह खरगोश अन्य खरगोशों से बहुत बड़ा दिखाई देने लगा। उसी वर्ष, संयोग की बात है कि शिकार करने के समय लोगों ने एक सिंह पर तीर से लगाया, किंतु मरने के पहले ही वह अपने खोह में घुस गया और इस तरह शिकारी उसे नहीं पा सके। वह सिंह खोह में ही मर गया। जैसे-तैसे खरगोशों ने उस सिंह को पाया। सब मिलकर, उसे ढोकर लाए और उन्होंने उसकी खाल उखाड़ी। उसके दाँत और नाखून उखाड़े और उन्हें सिंहों के यहाँ भेजे जानेवाले खरगोश को पहना दिया। सिंहों का पहनावा पहनकर उसने जब डाड़ी के पानी में देखा तो उसे लगा कि वह सचमुच ही एक सिंह की तरह दिखाई दे रहा है। कुछ दिनों के बाद जब उसे यह पहनावा पहनने की आदत हो गई तो वह सिंहों के जंगल में चला गया।

शुरू में एक नए सिंह को अपने जंगल में पाकर सिंहों को कुछ संदेह हुआ, किंतु उसने उन्हें अपना नाम-गाँव इस तरीके से बताया कि उन्होंने इसकी बात मान ली। उसने उन्हें बताया कि हम तुम्हारे ही दल से सिंह हैं। खाने की खोज में एक-दूसरे जंगल में भटक गए थे। शिकारियों के डर से हम अपने पुराने जंगल में वापस नहीं आ सके। अब तो हमने वहीं अपना गाँव-ग्राम बसा लिया है। उसने उन्हें बताया कि मैं अपने बिछुड़े भाइयों के साथ मिलने के तौर पर ही आप लोगों के पास आया हूँ। खरगोश की यह मीठी बात सुनकर सिंह भ्रातृ-प्रेम से द्रवित हो गए। वह जहाँ भी गया, बड़ा सम्मानित हुआ।

सिंहों के बीच रहते हुए और विचरते हुए खरगोश को मालूम हुआ कि सिंहों के मन में खरगोशों के प्रति कितनी घृणा भरी हुई है। उसे मालूम हुआ कि किस तरह सिंह खरगोश को हीन दृष्टि से देखते हैं। उन सिंहों के अनुसार तो धीरे-धीरे सारे खरगोश खाकर खत्म किए जाने थे।

खरगोश ने ये सारी बातें मन में रखीं और एक दिन चुपचाप सिंहों के जंगल से भाग गया और अपने भाई-बंधुओं के पास वापस आया। हमारा भाई बहुत दिनों के बाद वापस आया है, यह सुनकर छोटे-बड़े सभी खरगोश जमा हुए और नई बात सुनने के लिए उन्होंने अपने कान खड़े किए। सिंहों के मन में खरगोशों को हीन दृष्टि से देखने की भावना भरी है, यह सुनकर खरगोशों को बड़ा क्रोध आया, ‘‘अब तो अपने लिए एक अलग जंगल प्राप्त करने पर ही हमारा कल्याण संभव है। इन सिंहों के बीच रहते-रहते हमारे लिए कोई सुख नहीं रह गया।’’ यही सबने कहा। यह सब देखकर चुने हुए खरगोश ने एक बड़ी सभा बुलाई और उसमें उसने अपने भाइयों के लिए सिंहों के राज्य से एक अलग राज्य बनाने की बात कही। उसने उन्हें बताया कि मैं हमारी बातों को लेकर सिंहों के पास जाऊँगा और उनके राजा के सामने रखूँगा।

इसी बीच सिंहों को पता चला कि हाल ही में उनके पास जो सिंह आया था, वह और कोई नहीं, खरगोश था, भावी विरोधी दल का नेता। खरगोश चूँकि उनका सारा भेद जानता था, इसलिए उन्होंने क्रोध से काम नहीं लिया, क्योंकि उन्हें जंगल के दूसरे जानवरों के बीच बदनाम होने का भय था, इसलिए उन्होंने बुद्धि से काम लेने का निश्चय किया।

एक दिन उन्होंने उस खरगोश को आमंत्रित किया। नियत समय पर जब खरगोश उनके पास आया तो सिंहों का राजा स्वयं उसका स्वागत करने को बाहर आया। सिंहों की सभा में उसने उसे अपने ही पास में बैठाया। खरगोश को सिंहों के राजा की ही तरह खान-पान की सारी चीजें मिलीं। इस बार उसे पहले से भी अधिक मान-सम्मान मिला। खरगोश को सिंहों के राजा के साथ रहते-रहते उसी की तरह सुख में रहने की आदत पड़ गई। धीरे-धीरे वह मन में चाहने लगा कि काश! मैं हमेशा ऐसे ही सुख में रहता! कभी-कभी वह सोचता कि कैसे वह अपने देश में गरीबी में ही रहता है और कैसे उसके सारे भाई-बंधु विपत्ति में हैं। लेकिन उसे सुख और आराम में रहने की ऐसी आदत हो गई कि वह यह भूल गया कि वह किसलिए सिंहों के राजा के यहाँ आया था। जब सिंहों के राजा को इन बातों का भान हो गया तो उसने खरगोश से पूछा, ‘‘कहिए, कैसे इतनी दूर से आना हुआ?’’ संकोच के साथ खरगोश ने अपनी बात की, ‘‘हाँ, एक तो यह कि मैं पिछली बार आप ही की तरह बनकर आपका भेद लेने के लिए आया था। एक प्रकार से तो मैंने यह ठीक नहीं किया। मैं उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ परंतु एक प्रकार से मुझे इसमें कुछ भी दोष नहीं लगना चाहिए, क्योंकि हम खरगोश सचमुच ही आपके राज्य में बड़ी विपत्ति में हैं। हम जिधर रहते हैं, उधर धीरे-धीरे अनेक प्रकार के जंगली जानवर घुसते जा रहे हैं और उनमें से अधिकांश तो हमें खा ही जाना चाहते हैं। हम धीरे-धीरे बिल्कुल ही समाप्त होते जा रहे हैं और जो भी बचे हैं, वे दिन-रात भय में ही रहते हैं।’’ सिंहों का राजा पहले ही से जानता था कि खरगोश यही सब बातें करेगा। उसने यह भी सोच रखा था कि उसे किस तरह का जवाब देना चाहिए। ‘‘हाँ, आप लोग हमारे राज्य में कुछ कठिनाई में तो हैं, किंतु यह भी है कि आप लोग राज्य चलाने के काम में कभी पड़े नहीं हैं, इसलिए आपको अलग से जंगल पाने के पहले, आपको राज्य कैसे चलाना चाहिए, इन सब बातों को सीखने की जरूरत है। अब से, जैसाकि आपने कहा, हम आपके बीच से बहुत से खरगोशों को राज चलाने के काम में लगाएँगे।’’ सिंहों का राजा आगे और भी कहता जाता, लेकिन खरगोश ने बीच में ही बात काटी, ‘‘जरा रुकिए, एक बात...यह ठीक है कि हमने कोई बड़ा राज चलाने का काम नहीं किया है, लेकिन इतना तो हम जानते ही हैं कि कैसे हमारे घर-द्वार और गाँव-ग्राम का कल्याण होगा। राज्य मिलने पर तो उसे भी हम उसी तरह चलाएँगे। इसलिए ‘तुम राज्य नहीं चला सकोगे’ यह कहकर आप ठीक नहीं कर रहे हैं।’’

सिंहों के राजा को यह मालूम हुआ कि खरगोश यूँ सीधे रास्ते पर नहीं आएगा। उसने उसे कुछ धमकी देने की तरह कहा, ‘‘मैं तो यही सोच रहा हूँ कि आप जैसों का काम कैसे आसान हो! आपका यह सोचना ठीक ही है कि आपके जात-भाई कैसे सुखी हों। लेकिन आप अकेले कब तक दौड़ते फिरिएगा? आपकी उम्र भी बीत चली और आपके बाल-बच्चे भी बहुत हैं। उनके भावी जीवन के बारे में भी आपको सोचना चाहिए। अगर आप मेरे कथनानुसार चलें तो आपको अलग से राज्य लेने की भी आवश्यकता नहीं होगी और आप स्वयं भी सुख से रह सकेंगे। मैं आज ही अपने लोगों को हुक्म दूँगा कि आपकी संतान को युगों तक किसी प्रकार की तकलीफ न हो। आप भी जब तक जीवित हैं, मेरी ही तरह सुख और सम्मान से रहें।’’

खरगोश के नेता को पहले ही सिंहों की तरह रहने की आदत कुछ-कुछ लग चुकी थी। जिंदगी भर बिना काम किए राजाओं की तरह सुख पाने का रास्ता देखकर वह अपने भाई-बंधुओं को भूल गया और उसने सिंह को अपनी सहमति दे दी। कुछ तो उसने डर के मारे भी ‘हाँ’ कहा, क्योंकि सिंहों के राजा के साथ बात करते हुए उसने एक बार पीछे देखा था तो पाया कि गेट पर दो डरावने सिंह दरवाजा रोके हुए हैं।

सिंहों के राजा के साथ बात खत्म होने के बाद खरगोश राजा की ओर से ही गई बहुत सारी भेंट की वस्तुएँ लिये हुए अपने जंगल में वापस आया। ‘‘हमारे नेताजी वापस आए हैं,’’ यह सोचकर उसके भाई-बंधु बहुत प्रसन्न हुए। तुरंत उसे घेर लिया। सभी खुश हैं कि वे हमारे लिए एक नया देश खोज लाए हैं। जब उसके सारे भाई-बंधु आ गए तो खरगोशों का नेता एक टीले पर खड़ा हो गया और सबको जोहार करके कहने लगा, ‘‘भाइयो, आज मैं आप लोगों के सामने एक नई बात कहने जा रहा हूँ। बात तो यही है कि आज तक हम सिंहों से अलग रहकर ही अपने लिए एक राज्य की माँग करते रहे हैं। इससे लगता है कि हम उनके विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे हैं। चूँकि वे हमसे बहुत अधिक शक्तिशाली हैं, इसलिए इस रास्ते को अपनाकर हम अपना राज्य नहीं पा सकेंगे। इसलिए मेरा विचार है कि अब हमें उनसे मिलकर ही अलग राज्य लेने की कोशिश करनी चाहिए। यही सब विचार करके मैंने इस बार सिंहों के राजा को कह दिया है कि हम आप ही के साथ हैं।’’ खरगोशों का नेता ऐसा ही कहता गया। खरगोश जनता उनकी अधिकांश बातें समझ नहीं पाई, क्योंकि सिंहों के साथ रहते-रहते उसकी भाषा बिल्कुल बदल गई थी। उसके मुँह से खरगोशों की भाषा भी कुछ अजीब सी लगती थी। खरगोश जनता यह देखकर बड़े आश्चर्य में पड़ी कि उनके साथ मन-प्राण से बँधा हुआ उनका अपना आदमी कैसे इतना बदल गया! वह कह रहा था कि खरगोशों की तरह रहना छोड़कर सिंहों की तरह रहने की आदत डालें।

अपने नेता की ये बातें सुनकर सारे खरगोश अपने-अपने घरों को निराश वापस चले गए।

साभार : वंदना टेटे