Khalu Jaan Ki Padhai Kaise Chhooti : Asghar Wajahat

खालू जान की पढ़ाई कैसे छूटी : असग़र वजाहत

एक मज़ेदार किस्सा

सन 1926 की जुलाई में किसी दिन खालूजान का नाम क्रिश्चियन स्कूल में लिखवाया गया था। पढ़ाई का खालूजान को बचपन से ही बहुत शौक था लेकिन खानदान के दूसरे लोग जैसे उनके चाचा और मामू इस बात के सख्त खिलाफ थे कि खालूजान उनके साथ पतंगबाज़ी, कबूतर बाज़ी, बटेर बाज़ी में हिस्सा न ले कर स्कूल चले जाएं ।मतलब यह कि जब वो पतंग उड़ा रहे हो तो खालूजान चर्खी पकड़ने के बजाय स्कूल में बैठे कलम घिस रहे हों। जब वो कबूतरों को दाना खिला रहे हों तो ख़लूजान अंग्रेजी ग्रामर रट रहे हों।

सोचते सोचते खालूजान के मामू की समझ में एक तरकीब आ गई।

खालू जान के वालिद पुराने ज़माने के रईस थे। सुबह उनका दरबार लग जाता था।मुसाहिब उनको आकर घेर लेते थे। उनके सामने सब दो ज़ानू होकर बैठते थे। मजाल न थी कि कोई टस से मस हो जाए। खासदान और उगालदान गर्दिश में रहते थे । मज़े मज़े के किस्से सुनाए जाते थे। कभी-कभी नाच गाने की महफिले भी आरास्ता हो जाती थीं।

एक दिन उनका 'दरबार' लगा हुआ था।खालू जान के मामू दरबार में हाजिर हुए । झुककर तीन बार सलाम किया और सफेद फर्श पर वहां बैठ गए जहां उन्हें बैठना चाहिए था। फर्श पर कौन कहां बैठे यह सबको मालूम होता था। कुछ देर के बाद मामू ने कहा- हुजूर कुछ अर्ज़ करना चाहता हूं ।

- कहो मियाँ क्या बात है ?

- मियां महमूद हुसैन का स्कूल जाना बंद करवा दिया जाए।

- क्यों क्या बात हो गई?

- हुजूर मसला बड़ा संजीदा है।

- क्यों? क्या बात हो गई, खुदा खैर करे।

- महमूद कुफ़्र बकने लगे हैं।

- ये तुम क्या कह रहे हो?

- जी हां हुज़ूर, महमूद मियां कहते हैं, 'ऑल राइट वेल डन' ।

- इसका क्या मतलब हुआ?

- हुजूर, इसका मतलब हुआ, ईसाई मज़हब सच्चा और पक्का मज़हब है। मैं उसे कबूल कर लूंगा।

दोपहर को खालू जान स्कूल से लौट कर आए तो उनके वालिद साहब ने बुलाया और कहा- मियाँ अपना बस्ता इधर रख दीजिए। आप कल से स्कूल नहीं जाएंगे।'

उस जमाने में बेटा बाप से कोई सवाल नहीं कर सकता था। सिर्फ जी हां कहता था।

खालू जान ने बस्ता रख दिया और चर्ख़ी पकड़ ली।