केन काका की नौकरी (अंग्रेज़ी कहानी) : रस्किन बॉन्ड
Ken Kaka Ki Naukri (English Story in Hindi) : Ruskin Bond
केन काका के बारे में कुछ करना होगा !” आखिर, एक दिन दादी ने हताश होकर अपने आपसे कहा।
मैं किचन में दादी के पास बैठा मटर छील रह्म था और बीच-बीच मेंएक-आध दाना अपने मुंह में भी डाल लेता था।
सूजी बिल्ली साइडबोर्ड पर बैठी थी और बड़े घीरज से दादी को स्टू (उबला) गोश्त पकाते देख रही थी। सूजी को स्टू गोश्त अच्छा लगता था।
दादी कहे जा रही थीं, “यहीं बात नहीं कि उसका यहां रहना मुझे खलता है, और फिर मैं उससे कोई रुपया पैसा भी तो नहीं चाहती, लेकिन किसी नौजवान के लिए इतने लंबे समय तक बेकार रहना भला ठीक लगता है !”
“दादी, केन काका नौजवान हैं क्या ?"
“चालीस का हो गया। हर कोई कहता है, बड़ा होकर समझदार हो जायेगा ।"
“केन काका मेबल आंटी के पास क्यों नहीं चले जाते ?”
“मेबल् आंटी के यहां भी जाकर रहता है। एमिली आंटी और बेरिन आंटी के घर भी जाता है। यही तो मुसीबत है इसकी-इतनी सारी बहनें हैं इसकी, जो इससे प्यार-मनुहार करती हैं और इसे अपने पास रखने को भी तैयार हैं और इसकी हरकतें भी बरदाश्त करती हैं...उनके पति खाते-पीते लोग हैं और जब-तब इसे अपने पास रखने की स्थिति में भी हैं।
इसीलिए केन तीन महीने एमिली के यहां और तीन महीने मेरे पास बिताता है। इस तरह, वह किसी न किसी का मेंहमान बन कर पूरा साल बिता देता है और इसीलिए इसे खाने-कमाने की कोई चिंता नहीं होती।
“एक तरह से केन काका भाग्यशाली हुए न !" मैंने कहा।
इसका भाग्य हमेशा इसका साथ नहीं देगा। अब तो मेबल भी न्यूजीलैंड जाने की बात कह रही है। और एक बार हिंदुस्तान आजाद हो गया, एक-दो बरस के भीतर होगा ही, तो एमिली और बेरिल भी शायद इंग्लैंड चली जायेंगी,. क्योंकि उनके पति फौज में हैं। और सारे अंग्रेज अफसर भी चले जायेंगे।”
“केन काका उनके साथ इंग्लैंड क्यों नहीं चले जाते ?"
“वह जानता है, वहां जायेगा तो उसे काम करना पड़ेगा। जब तुम्हारी आंटियां देखेंगी कि नौकरों-चाकरों के बिना ही काम चलाना है, तो वे ज्यादा देर तक केन काका को रखने को तैयार नहीं होंगी। और फिर, इंग्लैंड या न्यूजीलैंड जाने का उसका भाड़ा कौन देगा ?”
“अगर केन काका नहीं गये, तो क्या वह यहीं आपके पास ही रहेंगे, दादी ? आप तो यहीं रहेंगी न ?"
“हमेशा के लिए थोडे। जब तक जीवित हूं।'”
“दादी, आप इंग्लैंड नहीं जायेंगी ?”
'नहीं, मैं यहीं बड़ी हुईं। मेरी दशा पेड़ों जैसी है। मैंने जड़ पकड़ ली है यहां | में कहीं नहीं जाऊंगी। तब तक नहीं, जब तक बूढ़े पेड़ की ,तरह मेरे सारे पत्ते नहीं झड़ जाते...हां, बड़े होकर तुम चले जाओगे।
अपनी पढ़ाई शायद तुम इंग्लैंड में ही पूरी करो।"
“नहीं, पैं तो यहीं पढूंगा। मैं अपनी सारी छुट्टियां आपके साथ बिताना चाहता हूं, दादी ' अगर मैं इंग्लैंड चला गया, तो बुढ़ापे में आपकी देखभाल कौन करेगा ?”
“मैं बूढी तो हो ही गयी हूं। साठ पार कर गयी।”
“इतनी उम्र क्या ज्यादा होती है ? केन काका से थोडी ही तो ज्यादा है। और जब आप सचमुच बूढ़ी हो जायेंगी, दादी, तो केन काका की देखभाल कौन करेगा 7?”
“यह चाहे तो अपनी देखभाल खुद कर सकता है। वक्त आ गया है कि वह ऐसा करना सीख ले। फिर यही वक्त है, वह कोई काम-धंघा भी दूंढ़ ले।"
मैंने भी इस समस्या पर विचार किया। मुझे ऐसा कोई काम दिखाई नहीं पड़ता था जो केन काका के अनुकूल होता-या यों कहिए कि कोई आदमी ऐसा नहीं दिखा जो केन काका को अनुकूल समझे |
तब आया ने ही एक सुझाव दिया।
वह बोली, “गुलशन की महारानी को बच्चों के लिए ट्यूटर चाहिए। एक लड़का है, एक लड़की है, बस ।”
“तू कैंसे जानती है ?” दादी ने पूछा।
“बच्चों की आया के मुंह से सुना है। दो सौ रुपए देते हैं और काम भी कोई ज्यादा नहीं है-हर रोज सुबह दो घंटे”
मैंने कहा, “केन काका को पसंद आना चाहिए।”
“ठीक कहते हो ।” दादी बोलीं, “उसे समझाते हैं कि एक अर्जी डाल ही दे। चाहिए तो यह कि वह ख़ुद जाकर उनसे मिले। महारानी की नौकरी अच्छी रहेगी ।'
केन काका ने वहां जाना और काम के बारे पें पूछताछ करना स्वीकार कर लिया। जब वह गये तो महारानी घर पर नहीं थी, मगर महाराजा ने उनका इंटरव्यू लिया।
“तुम टेनिस खेलते हो ?" महाराजा ने पूछा।
“जी, खेल लेता हूं '” केन काका बोले। उन्हें याद आया कि जब वह स्कूल में पढ़ते थे, तो थोड़ी-बहुत टेनिस खेल लेते थे।
“ठीक है, यह नौकरी तुम्हारी हुई। मैं डबल्स मैच के लिए चौथे खिलाड़ी की तलाश में था...और सुनो,” इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र का नाम लेकर उन्होंने पूछा, “कभी कैंब्रिज में रहे हो ?”
“नहीं, मैं आक्सफोर्ड में था।” केन काका ने एक अन्य शिक्षा केंद्र का नाम लेकर जवाब दिया।
इस बात से महाराजा बड़े प्रभावित हुए। वह अपने बच्चों के लिए किसी ऐसे ही ट्यूटर की तलाश में थे जो आक्सफोर्ड में पढ़ा हो और टेनिस भी खेलता हो।
केन काका ने आकर इस इटरव्यू की बात दादी को बतायी।
दादी बोलीं, “लेकिन, केन, तू तो कभी आक्सफोर्ड गया नहीं ! फिर यह बात क्यों कही तूने "
“और क्या, मैं आक्सफोर्ड गया हूं। भूल गयी, वहां मैं तुम्हारे भाई जिम के साथ दो साल रहा।”
"हां, मगर तुम तो शहर में उसके 'पब' (शराबखाना) में नौकरी करते थे। तुम आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तो कभी नहीं गये।"
“ठीक है...महाराजा ने मुझसे पूछा ही नहीं कि मैं यूनिवर्सिटी गया या नहीं। उसने तो यही पूछा था कि मैं कैब्रिज में रहा हूँ कि नहीं। तब मैंने बता दिया, मैं आक्सफोर्ड में रहा हूं जो एकदम सच है।
महराजा ने मुझसे यह नहीं पूछा कि में आक्सफोर्ड में क्या करता था। अजी, फर्क ही क्या पड़ता है "' और केन काका सीटी बजाते हुए चलते बने।
हमें यह जानकर बड़ा अचरज हुआ कि केन काका अपनी इस नौकरी में खूब चमके। कम से कम शुरू में तो ऐसा ही हुआ।
महाराजा इतना खराब टेनिस खेलते थे कि वह यह जान कर प्रसन्न हुए कि कोई उनसे भी ख़राब खेल सकता है। सो, केन काका महाराजा के 'डबल्स' में पार्टनर होने के बजाय 'सिंगल्स' में उनके चिर विरोधी बन गये।
जब तक वह महाराजा से हारते रहेंगे, उनकी नौकरी बनी रहेगी।
टेनिस के मैचों के बीच और महाराज के साथ बतख का शिकार करने के बीच केन काका बच्चों को विद्यादान देने के लिए थोड़ा समय निकाल लेते थे।
बच्चों को लिखना, पढना और गणित सिखाते थे। बीच-बीच में मुझे भी अपने साथ ले जाते, ताकि कभी कोई सवाल गलत निकालें, तो मैं उन्हें बता दूं।
केन काका घटा के सवालों में कमजोर थे।
महाराजा के बच्चे मुझसे छोटे थे। केन काका यह कहकर मुझे उनके पास बैठा जाते-“रस्टी, जरा देखते रहना, ये सवाल सही निकालें' और जेब में हाथ डाले बेसुरी सीटी बजाते हुए वह टेनिस कोर्ट की तरफ निकल जाते।
उनके दोनों छात्र यदि एक ही सवाल के अलग-अलग जबाब निकालते, तो भी केन काका दोनों की पीठ थपथपाते हुए कहते, “बहुत खूब ! बहुत खूब !
मुझे खुशी है कि तुम दोनों डट कर,मेहनत करते हो। एक का जवाब सही है, और दूसरे का गलत। पर में किसी का दिल तोड़ना नहीं चाहता। इसलिए नहीं बताऊंगा कि कोन सही है और कौन गलत।”
लेकिन बाद में घर लौटते हुए वह मुझसे पूछते, “किसका जवाब सही था, र्स्टी ?"
“दोनों गलत थे, केन काका," मैं कहता।
केन काका हमेशा यह दावा करते थे कि उनकी लगी-लगाई नौकरी न छूटती, यदि महाराजा को वह टेनिस में न हराते।
ऐसी बात नहीं थी कि केन काका महाराजा से जीतने को लालायित थे। मगर यदा-कदा वह महाराजा के सचिवों और अतिथियों के साथ टेनिस खलते-खेलते अच्छा खेलना सीख गये थे। और इस तरह महाराजा से हारने की भरसक कोशिश के बावजूद एक मैच वह उनसे जीत ही गये।
इस पर महाराजा एकदम भड़क उठे।
“मिस्टर बांड !" महाराजा ने कठोर स्वर में कहा, “हम नहीं समझते कि तुम हारने का महत्व समझते हो। सभी जीत नहीं सकते। हारने वाले न हों, तो दुनिया कहां जायेगी ?”
“बहुत अफसोस है महामहिम,” केन काका बोले, “मैं तो संयोग से जीत गया।"
उस दिन तो महाराजा ने केन काका को क्षमा कर दिया। मगर हफ्ते भर बाद फिर यही हुआ। केन काका फिर जीते और इस बात से महाराजा इतने खफा हुए कि बिना कुछ बोले भुनभुनाते हुए टेनिस कोर्ट से निकल गये।
अगले दिन महराजा पढ़ाई के वक्त आ धमके। केन काका और दोनों बच्चे हर रोज की तरह उस समय “सिफर-काटे' के खेल में मगन थे।
“मिस्टर बांड ! कल से तुम्हारी सेवाओं की हमें आवश्यकता नहीं होगी।
हमने अपने सचिव से कह दिया है कि नोटिस के बदले तुम्हें एक महीने का वेतन दे दें।"
केन काका जेबों में हाथ डाले खुशी-खुशी सीटी बजाते हुए घर लौटे।
“आज जल्दी आ गया तू !” दादी ने पूछा।
“उन्हें अब मेरी जरूरत नहीं रही !” केन काका बोले।
“खैर, कोई बात नहीं। भीतर आकर चाय पी ले ।"
दादी तो जानती थी कि केन काका की यह नौकरी भी ज्यादा दिन नहीं चलेगी | फिर वह झिड़कती-फटकार्रती भी नहीं थीं। जैसा कि उन्होंने बाद में कहा, “इसने कम से कम कोशिश तो की। और यह नौकरी पहली नौकरियों रो अधिक दिन चली-दो महीने।'