काश्वी (कहानी) : ज्योति नरेन्द्र शास्त्री

Kashvi (Hindi Story) : Jyoti Narendra Shastri

आज राम अपना सब कुछ गंवा चुका था । ऑफिस , खेत यहाँ तक की घर तक को भी बेचने की नौबत आ चुकी थी । अपने हाथों को माथे पर सटाये राम कुछ सोच रहा था । उसे हर चीज एक-एक करके याद आ रही थी । ठीक 10 साल पहले उसका विवाह काश्वी से हुआ था । शुरुआती तौर पर काश्वी आलस्य से भरी हुई एक लड़की थी । काश्वी के पिता शहर के एक धनाढ्य व्यक्ति थे । गरीबी की आबो हवा भी उसे छु नही पाई थी । घर के छोटे काम से लेकर बड़ा काम करने तक घर मे नौकर_ चाकरो की कमी नही थी । बड़ी मुश्किल से काश्वी की मम्मी संतोष देवी ने उसको खाना बनाना सिखाया था ताकि कल के दिन उसकी शादी होने पर ससुराल से उलाहने तो नही आए । रमाकांत के 3 लड़को के बीच एक लड़की ही थी काश्वी । पिता का पुत्री पर नेह कुछ ज्यादा ही होता है इसी कारण जब संतोष देवी अपने बेटी को कुछ घर का काम सीखने को कहती तो पिता यह कहकर रोक लेते की ' अभी इसकी उम्र ही क्या है ' । इस कारण अभी तक काश्वी खाना बनाने के अलावा अभी तक कुछ सीख ही नही पाई थी । बीतते वक्त के साथ काश्वी अब 22 साल की हो गई थी । घर मे आने वाला कोई भी मेहमान माता पिता को काश्वी के विवाह के लिए टोक ही देता था , 'की अब तो इसके विवाह की उम्र भी हो चुकी है , अब तो इसके हाथ पीले कर ही देने चाहिए '।

राम एक दिन रमाकांत के ऑफिस के पास बैठा अख़बार पढ़ रहा था , रमाकांत जी जैसे ही अपने ऑफिस से बाहर निकले उनके पुराने मित्र हरिमोहन जी मिल गये । दोनो मित्र गले लगकर मिल रहे थे और इसी के चलते उन्होंने अपनी जो अटैची नीचे जमीन पर रखी थी उसे वे बातो ही बातो मे भूल गये थे । अख़बार पढ़ते हुए राम की निगाह उस दृश्य पर एक बार पड़ी थी । दोबारा जब निगाह गई तो अटैची थी लेकिन वो सज्जन महानुभाव नही थे । वो उनके लिए अपरिचित थे । राम ने अटैची उठा ली । और आसपास के दुकानदारों से पता करने लगे की अभी जो व्यक्ति सफ़ेद शर्ट मे टाई लगाए हुए थे वे कौन थे । बड़ी मशक्कत से एक दुकानदार ने उनका पता बताया ।

अटैची के खो जाने से रमाकांत जी बड़े विचलित थे । उन्हे खुद पर बड़ा गुस्सा आ रहा था , ना वो अटैची नीचे रखते और ना ही वो खोती । पुरा परिवार परेशान था । नकदी के अलावा उसमे उनके कुछ जरूरी कागजात थे । तभी अचानक दरवाज़े पर एक नवयुवक ने अटैची के साथ दस्तक दी । रमाकांत जी घर मे है नवयुवक ने घर मे घुसते ही प्रश्न किया । रमाकांत जो अभी तक सोफे पर बैठे हुए थे अचानक से उठकर आते है , हा मै ही रमाकांत हु नवयुवक के चेहरे की तरफ देखते हुए बोले । अटैची को हाथो से पकड़ कर लटका रखा था इस कारण उस पर ध्यान नही जा पाया । 3-4 दिन पहले आपकी ये संदूकची रह गई थी इसे लौटाने आया था । सहसा रमाकांत की आँखो मे एक चमक आई । सारी चिंताएं छु मंतर हो गई । अटैची को हाथो मे ले लिया और खोल कर देखा तो संतोष हुआ । युवक जाने लगा । रुको ! युवक रुक गया । धन्यवाद ! तुम नही जानते तुमने मुझ पर कितना बड़ा उपकार किया है । क्या तुम जानते थे की इस अटैची मे क्या था ? नही , मैने इसे खोलने का प्रयत्न नही किया , युवक ने स्पष्ट उत्तर दिया ।

शाबाश ! जीते रहो , तुम जैसे युवकों से ही देश आबाद है । तुम्हारा नाम और पता तो बताते जाओ । राम ने एक कागज़ पेन मंगवाकर अपना पता लिख दिया और चला गया ।

रमाकांत ने लड़के के बारे मे पता किया वह एक मेहनती और ईमानदार लड़का है । लेकिन हर जगह घूसखोरी के चलते उसे अभी तक नौकरी नही मिल पाई । जिनका कद ऊंचा होता है वह अपने अहसान के तले किसी खुद्दार आदमी का कद गिराया नही करते इसी के चलते रमाकांत जी ने अपने ऑफिस के काम के लिए अखबारों मे प्रेस विज्ञप्ति निकलवा दी । काम की जरूरत के चलते राम भी उसमे इंटरव्यू देने आया था , रमाकांत भी यही चाहते थे की राम उनके यहाँ काम करे क्योकि अगर वो डाइरेक्टली उसको काम देते तो वो खुद्दारी के चलते नौकरी नही कर पाता । राम के पिता ना होने की वजह से घर के माली हालात ठीक नही थे इसलिए उन्हे काम की जरूरत थी । सब कुछ सोच समझ कर ही रमाकांत जी ने ये खेल रचा था । नौकरी मिलने के बाद राम पुरी मेहनत और ईमानदारी से काम करता । देखते ही देखते उसने सालभर की मेहनत मे ना केवल अपने काम से अपने पद को ऊंचा किया अपितु रमाकांत के दिल मे भी एक विशेष जगह बना ली । ऐसा मेहनती और ईमानदार लड़का रमाकांत ने अपने पूरे जीवन मे नही देखा था । रमाकांत की हार्दिक इच्छा थी की उसकी बेटी काश्वी का विवाह राम से हों ।हालांकि दोनो घरो मे कोई समानता नही थी । रमाकांत ने शादी का प्रस्ताव राम के घर भिजवाया , लेकिन कई दिनों तक वो ना नुकुर करते रहे क्योकि काश्वी एक ऊँचे घराने की लड़की थी । उसके लिए उनके घर का आँगन भी छोटा था । रमाकांत के बार-बार जोर देने पर राम की माताजी सुमित्रा देवी ने हामी भर दी ।

काश्वी इस शादी को लेकर बिल्कुल भी तैयार नही थी । चुंकि एक तो वह गाँव मे बिल्कुल रही हुई नही थी । दूसरा उसे प्रत्येक काम नौकरो से करवाने की आदत थी । अब वह कहा चूल्हा चौका , झाड़ पूछ का काम करेगी उसने अपने पापा रमाकांत को बोल दिया मै शादी नही कर सकती । मेरी शादी करनी है तो शहर के किसी लड़के से अन्यथा नही करनी मुझे शादी ।

रमाकांत भी अपनी जिद्द के पक्के थे । स्पष्ट शब्दों मे कह दिया मैने दुनिया देखी है , बाप हु तुम्हारा , बुरा नही सोचूंगा तेरे बारे मे । माना राम और उसका परिवार हमारे बराबर नही है हैसियत मे , लेकिन वो जो है वो लाखो मे है । सगाई तय करने के बाद नियत समय पर दोनो का विवाह तय कर दिया जाता है । आज वह बेटी से एक वधू बन चुकी थी । आज उसका पहला दिन था , उसे लग रहा था की उसके पिता ने उसकी किस्मत फोड़ दी । क्योकि दहेज़ लेने से राम और उसके परिवार ने साफ मना कर दिया था । काश्वी को अब यही चिंता सताये जा रही थी की वह इस वातावरण मे खुद को कैसे समायोजित करेगी ।

शाम होने तक काश्वी की तबियत थोड़ी सी खराब हों गई थी । उसे ताप देकर बुखार आ गया था । राम को पता चलते ही काश्वी के लिए दवा लाया , दवा लेकर काश्वी कुछ ठीक हुई । लेकिन उसका व्यवहार थोड़ा अजीबो गरीब था । राम को ये समझते देर नही लगी की काश्वी इस शादी से खुश नही है । लेकिन वह भी मानवतावाद का पुजारी था । उसके विचार पुरातनपंथी और आधुनिकतावाद दोनो से मेल खाते थे । वह एक लड़की जिसकी शादी महज 24 घंटे पहले हुई है , जिसने उस आँगन को छोड़ा है जिसमे वह जीवन के सतरह-अठारह साल गुजार के आई है । घर की यादे भी तो पीछा कहा छोड़ती है । एक सतरह साल की लड़की से एक तीस साल की औरत जितनी समझदारी से अपना घर चलाती है , जिस तरीके से रहती है ऐसी उम्मीद नही की जा सकती । घड़ी की तरफ देखा । घंटे वाली सुई 10 बजा रही थी । तुम थक गई होगी काश्वी । कुछ खाया या नही । काश्वी ने कुछ जवाब नही दिया । घर बात की या नही , कहते हुए राम ने काश्वी के मोबाईल से रमाकांत जी को फोन किया । रमाकांत जी के फोन उठाते ही राम ने फोन काश्वी को देते हुए कहा लो तुम्हारे पापा बात कर रहे है । अपने पापा से बात करके काश्वी का मन कुछ हल्का हुआ । राम की तरफ देखकर एक हल्की सी मुस्कुराहट दी जो शायद आभास करा रही थी की काश्वी अब उतनी दुःखी नही है । ये सच भी था । " स्त्रिया पुरुषो मे एक सुरक्षा का भाव चाहती है वो ये सोचती है की जितना सुरक्षित मै खुद को पापा के साथ महसूस करती थी , सुरक्षा के भाव सेउतना ही सुरक्षित खुद को पति के साथ महसूस करू " । इसी सुरक्षा के निश्चिंतता भरे भाव के बाद स्त्रिया पुरुषो पर अपना सर्वस्व लुटा देती है । केवल एक दिन की देखभाल से काश्वी यह निर्णय नही कर सकती थी की वह राम के साथ खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती है , उसे रिश्ता बनाने मे वक्त चाहिए था । क्योकि मजबूत धागे और मजबूत रिश्ते दोनो को बुनने मे अधिक समय लगता है ।

राम ने काश्वी को आश्वस्त करते हुए कहा "मै जानता हु काश्वी तुम जिस परिवेश मे रही हो ,यहां तुम्हे ऐसा परिवेश नही मिल रहा । ना तुम्हे इतना काम करने की आदत है और ना तुमने कभी ऐसी हालात मे काम किया । मै पुरी कोशिश करूंगा की तुम्हे दुनिया की हर खुशी देने की " । राम हर सम्भव कोशिश करता की काश्वी को कोई गम नही हो , वह और उसका परिवार हर तरह से काश्वी का ख्याल रखने की कोशिश करते । किसी का ह्रदय परिवर्तन करना हों तो खुद से ज्यादा सामने वाले का ख्याल रखना शुरु कर दो , यही हुआ । शादी के तकरीबन एक महीने बाद काश्वी पुरी तरह से बदल चुकी थी । सुबह के 7_ 8 बजे उठने वाली काश्वी अब सुबह के 4 बजे उठने लग गई थी । अलार्म बजने के बाद भी अगर कभी नींद ज्यादा आने की वजह से 10_ 15 मिनट लेट भी आँख खुलती तो वह खुद को कोसती थी , मेरी आँख क्यो नही खुली । उठते ही धरती माता के साथ पति के चरण स्पर्श करते ही सास , दादी सास सबको प्रणाम करना । उनके उठने से पहले बिस्तर मे उनकी चाय तैयार करना ये सब काश्वी की आदत बन चुकी थी । शाम को ऑफिस से लौटने के बाद राम के पैर दबाना , सास के पैर दबाना । काश्वी ने ना केवल अपने पति का अपितु अपने सास सहित सबका दिल जीत लिया था । अब मोहल्लेभर मे उसकी अच्छाईयो के चर्चे होने लगे थे । लोग उसकी दात देने लगे थे बहु हो तो सुमित्रा की बहु जैसी ।

राम ने थोड़े दिन बाद अपना नया व्यवसाय शुरु किया । मेहनत , काबिलियत और ईमानदारी की वजह से व्यवसाय बहुत अच्छा चलने लगा । अपनी मेहनत से उसने थोड़े दिन मे ही व्यवसाय के 4 चाँद लगा दिये थे । नया घर खरीदा , नई गाडी , नया बंगला सब कुछ नया था । जीवन मे जिन चीजो की कल्पना राम ने नही की थी वो भी उसे मिल गई थी । राम के एक बेटी हुई जिसका नाम बड़े दुलार से किरण रखा । राम का अपनी पुत्री से स्नेह ज़्यादा ही था । जिस कारण ऑफिस जाना प्रायः कम हों गया । दुनिया की तमाम खूबिया राम मे मौजूद थी । अनुशासन , मेहनत, ईमानदारी , विद्वता । कमी थी तो केवल इतनी सी वह सबको अपने जैसा समझ लिया करता था । राम के इसी भरोसे और विश्वाश का फायदा उसके सहकर्मी उठाया करते थे । काश्वी ने कई दफा उनको बोला भी था आप किसी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा मत किया करो । किन्तु राम हर बार उनकी बातों को मज़ाक में टाल जाया करते थे । काश्वी तुम भी , वो मेरे सहकर्मी है , क्या कोई अपने मालिक से दगाबाजी करता है । टेलीस्टाय कम्पनी के एम डी. सुरेन्द्र व सुपरवाइजर ने पीठ पीछे से मार्केटिंग करके कम्पनी की नीव को खोखला कर दिया था । कम्पनी खड़ी तो दिखती थी लेकिन उसकी ईट-ईट कर्जदारो की मेहरबानी की मोहताज थी । देर से ही सही राम साहब ने पत्नी की बातो पर भरोसा करके थोड़ा सावधानी दिखाई तो उन्हे इन सब बातो का पता लगा । एम. डी. और सुपरवाइजर को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया । लेकिन आग लगने के बाद कुँवा खोदने से क्या फायदा ? कम्पनी उस दौर मे खड़ी थी जहाँ कर्जदारो द्वारा नीलामी कभी भी हों सकती थी । इस बात का अंदेशा राम को होते ही उसने कुछ बहाना बनाकर काश्वी , को उसके मायके भेज दिया था । वह नही चाहता था काश्वी उन सब चीजों को देखे । आज काश्वी को गये पूरे बीस रोज हों गये थे । परसो जमीन, मकान सबकी कुर्की होनी थी ।

एक-एक बाते उसकी मस्तिष्क मे आ रही थी । काश्वी उसे कितना समझाती थी लेकिन उसने उसकी एक नही मानी । अब वह काश्वी से किस मुँह से बात करेगा । इतनी बड़ी रकम का वह इंतजाम कहा से करेगा । दोस्तों व रिश्तेदारो ने पैसे के लिए 2 टुक मना कर दिया । कही से कोई पैसे आने की उम्मीद नही । मस्तिष्क गहन चिंतन मे , आँखे शोक सागर मे डूबे हुए थे तभी महसूस हुआ किसी ने कंधे पर हाथ हाथ रखा हो । गर्दन उठाकर बगल मे देखा तो काश्वी थी । मगर ये क्या ? आज काश्वी के शरीर पर एक भी गहना नही , यहां तक की नाक की नथुनी भी नही थी । अन्यथा शरीर पर इतने गहने हुआ करते थे की धन की देवी ही प्रतीत होती थी । राम कुछ बोल पाते इससे पहले काश्वी ने उनके हाथ मे एक पोटली पकड़ाते हुए कहा 'चिंता मत कीजिये । इस पोटली मे मेरे गहने व जीवनभर की संचित कमाई है , आप इससे अपनी जमीन व व्यवसाय को कुर्की होने से बचा सकते हो ' । लेकिन काश्वी तुम्हारे गहने !

मेरी असली सम्पति आप हो , जब आप सही हों तो सब होता रहेगा ।

तुमने मुझे खरीद लिया काश्वी ! अब तक मै तुम्हे देवी मानते आया था , अब से तुम्हे धन की देवी मानूंगा ।

  • मुख्य पृष्ठ : ज्योति नरेन्द्र शास्त्री की कहानियाँ और अन्य गद्य कृतियां
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां