कारा और गूजा : संथाली लोक-कथा
Kara Aur Guja : Santhali Lok-Katha
एक समय कारा और गूजा नाम के दो भाई थे दोनों श्रेष्ठ श्रेणी के धनुर्धर, धनुष और बाण के परिचालन में अति दक्ष थे। जिस राज्य के वे नागरिक थे, वहाँ एक चील का जोड़ा ने बहुत उपद्रव मचा रखा था: ये दोनों चील पेड़ पर के एक घोसला में रहने वाले अपने नवजात बच्चों के आहार के लिए, जब तक की पूरा देश शिशुओं के किलकारी से विहीन न हो गया तब तक वहाँ के छोटे-छोटे बच्चों को उठा कर घोसला में ले जाया करता था और मार कर अपने बच्चों को खिला देता था। इस प्रकार एक दिन प्रजा का एक समूह राजा के दरबार में जा कर राजा से निवेदन किया की यदि उन्होने चील का अंत नहीं कराया तो अब प्रजा यह राज्य को छोड़ कर चली जाएगी। इसके बाद राजा ने यह उद्घोषणा कराया की जो कोई भी इन चील के जोड़ा को मार देगा उनको राजा के ओर से एक बृहद भूखंड पुरस्कार में दिया जाएगा, और इस मुनादी के बाद कई लोगों ने चील को मारने का प्रयास भी किया; लेकिन चील पर तीर से कोई भी प्रहार नहीं कर पाता था क्योंकि चील ने अपने घोसला का निर्माण हल-फाल और दुरमुस (जमीन पीटकर समतल करने का पत्थर का गोल टुकड़ा जो लंबे डंडे में जड़ा रहता है।) से किया था जिससे की तीर उन तक पहुँच नहीं पाता था और निशानेबाज़ों को अपना प्रयास छोड़ना पड़ता था। अंत में कारा और गूजा ने सोचा की उनको कोशिश करनी चाहिए, इस लिए जब तक की पक्षी अपने बच्चों को खिलाने के लिए वहाँ आ नहीं जाते हैं उन्होने पक्षी पर घात लगाकर आक्रमण करने की योजना बनाई और तब उन्होने दुरमुस के अगले हिस्से में स्थित छेद जहां की डंडा लगाया जाता है के उसी छेद से दोनों चील पर तीर चलाया और दोनों चील घायल हो कर नीचे गिर कर मर गए, गंगा और जमुना के उस उद्गम स्थल पर जहां पर वे दोनों चील गिरे थे उस भूमि पर एक बड़ा खड्ड बन गया। तब कारा और गूजा ने मृत चीलों के शव को उठा कर राजा के पास ले गए और राजा ने पूर्व घोषित पुरस्कार स्वरूप उन्हें एक बृहद भूखंड पारितोषिक में दिया; और इस कार्य से उपकृत कृतज्ञ पड़ोसियों ने कारा और गूजा के राजा से प्राप्त भूमि को एक बृहद धान का खेत बना दिया और इतने बड़े पराक्रम से आनंदित हो कर जहां चीलों के गिरने से खड्ड का निर्माण हुआ था उस स्थान को भी कारा और गूजा को दे दिया।
कारा और गूजा अपना अधिक समय जंगल में व्यतीत करते थे, जो कुछ भी उनको मिलता वे उसी पर निर्भर रहते थे; कन्दरा में सोते थे और शाम को भात और जंगल से प्राप्त कंद-मूल को पका कर खाते थे। एक दिन जब वे कंद को भून रहे थे तब एक बाघ ने उनको देख लिया और अचानक उनके पास आ कर बोला “तुम क्या पका रहे हो? मुझे भी थोड़ा दो या फिर मैं तुम लोगों को खा जाऊँ।“ इस लिए जब वे भुना हुआ कंद खाने गए तो उन्होने आग में से कोयला निकाल कर बाघ के सामने फेंका जो की गुफा के मुहाना पर बैठा हुआ भोजन की प्रतीक्षा कर रहा था और बाघ ने उसे चबा डाला और तब से बराबर जब भी वे कुछ अच्छा खाने के लिए बनाते तो उसका टुकड़ा बाघ के सामने खाने के लिए देना पड़ता था; बाघ वहाँ से हटता ही नहीं था बल्कि वहीं इस उम्मीद में पड़ा रहता की उसे कुछ अच्छा खाने को मिलेगा, अब कारा और गूजा ने आपस में परामर्श किया की कैसे इस बाघ से पिंड छुड़ाया जाए। तब गूजा अचानक उछला और बाघ पर झपट्टा मार कर उसका पुंछ पकड़ लिया और उसे ऐंठना शुरू कर दिया और तब तक ऐंठते रहा की जब तक पूँछ उखड़ कर उसके हाथ में नहीं आ गया और बाघ ग़ुर्राते हुए वहाँ से भागा। कारा और गुजा ने पूँछ को भून कर खाया, और उनको यह काफी स्वादिष्ट लगा इसलिए उन्होने यह निर्णय किया की बाघ का शिकार करेंगे और उसे मार कर खा जाएँगे। इसलिए दोनों भाई बाघ की खोज में सभी जगह घूमने लगे और जब बाघ उनको मिला वे उसका पीछा तब तक किए जब तक की वे उसे दौड़ा कर मार न दिये; तब उन्होने आग सुलगाया और बाघ के बाल को आग में झुलसा कर और उसके मांस को भून कर उन्होने एक शानदार भोजन तैयार किया: लेकिन वे लोग उसका उदर नहीं खा सके। कारा उदर को खाना चाहता था लेकिन गूजा ने उसे खाने नहीं दिया, इसलिए कारा ने उदर को अपने कंधे पर उठा कर उसे दूर ले गया।
अभी वे दोनों सड़क के किनारे के बरगद के पेड़ के छाया के नीचे बैठे ही थे कि एक राजा का बारात का जलूस आ रहा था; जब कारा और गूजा ने बारात को आते देखा तो वे अपने साथ बाघ के उदर को लेकर पेड़ के ऊपर चढ़ गए। बारात पेड़ के नीचे आकर रुक गई और उनमें से कुछ लोग सो गए, कुछ बाराती खाने कि तैयारी करने लगे और राजा भी पालकी से निकल कर बाहर छाया में आराम करने के लिए पेड़ के नीचे लेट गया। कुछ समय के बाद कारा बाघ के उदर को हाथ में थामे हुए थक गया और गूजा से फुसफुसा कर कहा अब मैं इसे और ज्यादा देर तक थामे नहीं रह सकता। गूजा ने कहा इसे किसी भी मूल्य पर मत छोड़ना परंतु कारा अब तक इतना थक चुका था कि उदर उसके हाथ से छुट कर सीधे राजा के ऊपर जा गिरा; अकस्मात ऐसा होने के कारण राजा के सभी सेवक जाग के उठ खड़े हुए और यह चिल्लाने लगे कि राजा का पेट फट गया है और वे सब कुछ वहीं पेड़ के नीचे छोड़ कर व्यग्रता में भाग खड़े हुए; परंतु जब वे थोड़ी ही दूर गए थे कि उन लोगों ने यह सोचा की हम लोग सब कुछ वहाँ छोड़ आए हैं और यात्रा लम्बी है सामग्री के बिना हम लोग कैसे यात्रा तय करेंगे, इसलिए वे वापस बरगद के पेड़ के नीचे आने के लिए मुड़े।
लेकिन इसी बीच कारा और गूजा नीचे उतर कर आए और सभी कीमती कपड़ों और दूसरे मूल्यवान वस्तुओं को जमा किया और उसे ले कर पेड़ पर चढ़ गए। और कारा ने एक बड़ा सा ढोल ले लिया और उसके एक तरफ छोटे-छोटे कई छेद बना दिए: और उसी पेड़ पर जंगली मधुमक्खी का एक घोसला था कारा ने मधुमक्खीयों को पकड़ कर एक-एक मधुमक्खी को छेद में से ढोल के अंदर डाल दिया। जब राजा के सेवक वापस आए और देखा की ऊपर पेड़ पर दो आदमी हैं तो उन्होने कहा : “क्यों तुमने हमारे राजा का अपमान किया? हम लोग तुम्हें जान से मार देंगे।“ कारा और गूजा ने उत्तर दिया “आओ देखे कौन किस को मारता है।“ इसलिए वे युद्ध करने लगे राजा के आदमियों ने अपने बंदूक से कारा और गूजा पर आक्रमण किया और जब तक की उनका गोली और बारूद खत्म नहीं हो गया और वे थक गए वे युद्ध करते रहे लेकिन वे कभी भी उनको मार नहीं पाये। तब कारा और गूजा ने ललकारा “अब हमारी बारी है।“ और उन्होने भी कहा “हाँ, अब तुम्हारी बारी है।“ इसलिए कारा और गूजा ने ढोल पर थाप लगाई और कहा “टूट पड़ो, मेरे प्यारे, उन पर टूट पड़ो।“ और जंगली मधुमक्खीयां ढोल से निकल कर राजा के आदमियों पर टूट पड़ी और उनको डंक मारते हुए वहाँ से खदेड़ दिया। तब कारा और गूजा ने उन लोगों के सभी सामानों को ले कर वहाँ से अपने घर गए और क्योंकि इनके पास अत्यधिक संपत्ति संग्रह हो गया था इसलिए इन को प्रिय राजा का सम्मान मिला।
कहानी का अभिप्राय: क्योंकि दोनों भाई एकता पूर्वक एक दूसरे के साथ देते रहे इसलिए उनको सफलता प्राप्त हुई।
(Folklore of the Santal Parganas: Cecil Heny Bompas);
(भाषांतरकार: संताल परगना की लोककथाएँ: ब्रजेश दुबे)