कंजूस नौकर : संथाली लोक-कथा
Kanjoos Naukar : Santhali Lok-Katha
एक बार एक धनवान परन्तु कृपण व्यक्ति था। यद्यपि उसने खेती करने हेतु बनिहारों को नियुक्त कर रखा था और बनिहार पूरे वर्ष उसके साथ रहते थे कभी भी बाहर नहीं जाते थे। लेकिन एक बार वे वर्ष के मध्य में ही कार्य छोड़ कर भाग गए। जब ग्रामीणों ने बनिहारों से पूछा की अपना बरस भर का कमाया हुआ मजदूरी छोड़ कर क्यों भाग गए तो उन्होंने उत्तर दिया हमारे स्थान पर तुम यह करना चाहोगे वर्ष के इस व्यस्त समय में वह हम से बड़े प्यार से बात करता है अच्छा भोजन देता है लेकिन जब अनाज इकट्ठा हो जाता है तब हमें भूखा रखने लगता है। इस वर्ष सितम्बर माह से हमलोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं है।
ग्रामीणों ने कहा यह अच्छा कारण है, एक जन झिड़की सुन लेगा लेकिन भूखे कैसे रह सकता है; हम सभी अपना पेट भरने के लिए ही कार्य करते हैं, बुभुक्षा सबसे निकृष्ट व्याधि है। कंजूसी का वृत्तांत बनिहारों ने पड़ोस में और आस-पास सभी ओर फैला दिया की वहां बेगार करना पड़ता है। इसलिए उसे आस-पास से कोई बनिहार नहीं मिल सका और जब वह दूर से बनिहार को लाया और तो पूर्व के बनिहारों से उसके प्रवृत्ति का बखान सुनते ही भाग गए। लोगों ने उसकी कृपणता के कारण रोज की दिहाड़ी पर कार्य करने और मजदूरी जो की सामान्य से अधिक था कि मांग की अन्यथा कार्य करने से मना कर दिया। एक नौजवान जिसका नाम कोरा था उसने यह सब सुना और कहा यदि मैं उस आदमी का बनिहार होता तो मैं वहां से नहीं भागता। मैं उससे अच्छा वेतन प्राप्त करता; उससे पूछो यदि वह बनिहार चाहता है और हाँ कहता है तो मुझे उसके पास ले चलो। वह व्यक्ति जिससे कोरा ने यह बात-चित किया था उसने उस कृपण को सूचित किया की कोरा कार्य हेतु स्वयं की नियुक्त की अभिलाषा रखता है; इस प्रकार कोरा को लाया गया और प्रथम तो उन्होंने हँड़िया पिया और उसके बाद बात-चित आरम्भ किया और कंजूस ने कोरा से पूछा तुम पूरे वर्ष कार्य करोगे बीच में पलायन तो नहीं करोगे! कोरा ने कहा यदि मजदूरी संतोषप्रद मिलेगा तो वह ठहरा रहेगा। मालिक ने कहा जब मैं तुम्हारा कार्य देख लूँगा तो तुम्हारा मजदूरी निश्चित कर दूंगा; यदि तुम कार्यकुशल हुए तो मैं तुम्हें बारह काट चावल दूंगा और यदि तुम औसत दर्जे के श्रमिक हुए तो नौ या दस काट चावल और कपड़ा अलग से दूंगा। तुम्हारी मांग क्या है?
कोरा ने कहा अच्छा मेरी बात सुनो: मैंने सूना है कि तुम्हारे नौकर वर्ष के मध्य में इसलिए भाग गए की तुम उनको खाने के लिए समुचित भोजन नहीं देते थे, मैं तुम से न के बराबर मजदूरी लूँगा, तुम मुझे साल में एक बार एक धान का दाना देना और मैं उसकी बुनाई करुंगा और इस प्रकार मुझे जो भी बीज मिलेगा उसके बुनाई हेतु तुम को मुझे एक नीचे की भूमि दोगे; और मुझे एक दाना मकई दोगे मैं इसे भी बीज के लिए बुनाई करुंगा, और मुझे ऊंची भूमि दोगे जिसमें मैं इन मकई के बीजों की बुनाई करुंगा और मुझे रीति के अनुकूल कपड़ों की समुचित मात्रा प्रदान करोगे, और भोजन के लिए मुझे एक पत्ता भर कर के प्रत्येक दिन तीन बार भात देना। मैं मात्र इतना ही चाहता हूँ एक पत्ता में कुछ जाया नहीं होगा; तुम्हें कई पत्तों को एकसाथ सीकर एक थाल बनाने की आवश्यकता नहीं है। मैं कोई और दूसरा मदद नहीं लूँगा, लेकिन यदि तुम पत्ता पूरी तरह भर कर नहीं दोगे तो मुझे तुम को गालियां देने का अधिकार होगा, और यदि मैं तुम्हारा दिया हुआ कार्य समुचित ढ़ंग से नहीं करुँ तो तुम मुझे गालियां दो मेरी पिटाई भी कर सकते हो, यदि मैं कठिन परिश्रम के भय से भाग जाऊं तो तुम मेरा दाहिने हाथ की छोटी उँगली काट डालना, और यदि तुम मुझे मेरी मजदूरी नहीं दोगे तो हम दोनों ही इस शर्त पर सहमत हैं, इसलिए मुझे भी यह अधिकार होगा की मैं तुम्हारे हाथ की छोटी उँगली को काट लूँ। तुम्हारा मेरे इस प्रस्ताव के उपर क्या कहना है: अपने मित्रों से सलाह कर लो और मुझे जवाब दो?
तब कंजूस बोला “मैं तुम को इन शर्तों पर नियुक्त करता हूँ और यदि मैं तुम्हें अकारण ही निकाल दूँ तो तुम मेरी छोटी उँगली काट सकते हो। तब कोरा ने उस व्यक्ति के तरफ घूम कर कहा तुमने इन बातों को सुना है यदि इसके बाद कोई विवाद उत्पन्न होगा तो मेरे साक्षी रहोगे। इसलिए कोरा ने कार्य आरम्भ किया और पहले दिन उन्होंने उसे एक सखुआ के पत्ता पर भात दिया और कोरा एक ही निवाला में उसे खा गया: लेकिन अगले दिन उसने एक केला का पत्ता लाया और कहा मुझे इसमें भात दो और ध्यान रखना यह पूर्णरूपेण भरा हुआ हो। और उन्होंने ऐसा करने से वर्जित कर दिया: और उसने कहा क्यों नहीं? यह केवल एक ही पत्ता है और उनको देना ही था क्योंकि यह कोरा के अधिकार में था; इसलिए वह अपनी इच्छानुकूल यथेष्ट आहार ग्रहण किया, और प्रत्येक दिन कोरा केला का पत्ता लाता था जब तक की उसके मालिक की पत्नी इससे तंग हो गई और अपने पति से बोली तुमने ऐसा नौकर क्यों रख लिया है – वह पूरे हँड़िया का भात अकेले खा जाता है, पति ने उत्तर दिया चिंता मत करो: उसका पल्लेदारी नहीं के बराबर है, वह सिर्फ स्वयं के लिए कार्य कर रहा है; इस प्रकार कोरा को पूरे वर्ष एक केला के पत्ता में भर कर भात मिलता रहा और वह अपने कार्य के प्रति कभी अकर्मण्य नहीं था इसलिए वे कार्य के परिणाम में कभी भी कोई त्रुटि नहीं निकाल पाए, और जब संवत समाप्त हुआ तो उन्होंने उसे एक दाना धान एक दाना मकई उसके पारिश्रमिक स्वरूप दिए। कोरा उसको भी सावधानी से रख लिया, और उसके मालिक का पुत्र यह देख कर हंस पड़ा और कहा “ध्यान रखना इसे गिरा मत देना या चूहा को मत खिला देना।”
कोरा कुछ जवाब नहीं दिया लेकिन जब मकई के बुनाई का मौसम आया तो उसने अपने मकई के दाना को लिया और उसका रोपण गोबर के ढेर के साथ कर दिया, और उनको बुला कर जहाँ उसने बुनाई की थी उस जगह को दिखा दिया; और धान के बुनाई के समय उसने उसे अलग स्थान पर बुन दिया, और जब धान के बिहन का स्थानांतरण का समय आया तो कोरा ने इस धान के बिहन को एक गड्ढे में लगा कर उन लोगों को बुला कर दिखा कर स्थान चिन्हित करा दिया। जब मकई पक कर तैयार हुआ तो पौधा में दो गुल्ला बड़ा और एक छोटा गुल्ला लगा हुआ था, और धान के बीज से अनेक धान की बालीयां निकली, और जब फसल पक कर के तैयार हो गया तो उसने उसे काट कर के पौधे की पीटाई कर के उस से एक जोड़ा धान मिला और उसने मकई और धान को बीज के लिए निकाल कर अलग रख लिया। और अगले वर्ष उसने इन बीजों को अलग बुन कर एक बड़ा टोकरी धान और मकई उगाया, और उनको भी बीज के लिए रख लिया; और इस तरह पाँच-छः साल में उसने कंजूस के अच्छी उपज वाली सभी खेतों को अपने बीजों को बुनाई के ले लिया और कुछ वर्षों के उपरांत उसने धान के सभी अच्छे खेत ले लिए। नियोक्ता इससे अत्यंत दुःखी था परंतु उसने देखा की कोई शिकायत करना व्यर्थ है और मालिक इतना निर्धन हो गया की उसको कोरा के नौकर के तरह कार्य करना पड़ा।
अंततः कृपण ने गाँव के प्रमुख लोगों को बुलाया और उनके सामने रोने लगा, और उनको इस पर दया आई और उन्होंने उसके लिए मध्यस्थता करने का प्रयास किया लेकिन कोरा ने कहा “मैंने नहीं ईश्वर ने उसे दंड दिया है; इसने दीर्घकाल तक ग़रीबों को बिना कुछ दिए कार्य करने को विवश किया है इसे यह भुगतना ही पड़ेगा;” इसके छोटी उँगली को काट डालो मैं इसके साथ हुए समझौता को खत्म करता हूँ; और उन सभी बनिहारों को बुलाओ जिसके साथ इसने छल-कपट किया है मैं उनका चुकारा करूँगा, किंतु कृपण अपनी उँगली को कटवाना नहीं चाहता था तब कोरा ने कहा उसकी उँगली को मत काटो और मैं उसका आधा जमीन भी वापस कर देता हूँ। कंजूस इस पर सहमत हो गया और उसने यह वादा किया की भविष्य में वह अपने बनिहारों से अच्छे से व्यवहार करेगा, और अपने अपमान को कम करने हेतु उसने अपनी बेटी का ब्याह कोरा के साथ कर दिया और उसने यह स्वीकार किया की यह उसकी अपनी मूर्खता के फलस्वरूप ही यह संकट आ पड़ी।
कहानी का अभिप्राय: अन्याय का आयु बड़ी छोटी होती है। शीघ्र ही उसका प्रतिकार करने वाला सामने आ जाता है।
(Folklore of the Santal Parganas: Cecil Heny Bompas);
(भाषांतरकार: संताल परगना की लोककथाएँ: ब्रजेश दुबे)